Wednesday, 27 April 2016

माननीय दिल्ली सरकार ! इस स्कूल की ओर भी देखिए एक बार !

 दिल्ली को साफ करने के लिए 'स्वच्छता अभियान' और प्रदूषण मुक्त करने के लिए 'ऑड इवन' जैसी व्यवस्थाएं करने के बाद भी एक स्कूल के सामने गन्दगी का अम्बार ऐसा लगा हो कि खड़े होने की कहीं जगह ही न हो !गेट के पास छाया होने के बाद भी अभिभावक और उनके बच्चे दोपहर दो बजे खुले आसमान के नीचे भयंकर धूप में खड़े होने पर मजबूर हों !
      पूर्वी दिल्ली गाँधी नगर के पास महिला कालोनी के सामने जो "राजकीय प्रतिभा विकास विद्यालय गाँधी नगर" है इस विद्यालय के गेट के पास में अंदर बहुत बड़ा ग्राउंड है कहीं बिलकुल छाया नहीं है स्कूल के सामने ही गेट के बाहर एक बहुत बड़ा छायादार पेड़ है उसकी छाया बहुत घनी है अगर थोड़ा बहुत पानी बरस जाए तो नीचे नहीं आता किंतु दुर्भाग्य ये है कि स्कूल के सामने एवं स्कूल की बाउंड्री के पास होने के कारण कानूनी
तौर पर स्कूल के बच्चों का अधिकार है छुट्टियों के समय उस जगह पर खड़े होकर धूप और बर्षा बचाने का किंतु उस पेड़ की सुंदर छाया में घड़ा बेचने वाले ने अतिक्रमण पूर्वक कब्जा जमा रखा है पेड़ के नीचे की सम्पूर्ण जगह पर घड़े फैला रखे हैं वो लोग कुछ जगह में अपनी चारपाई डालकर लेट जाते हैं उन्हें देखकर रेडी वाले भी वहीँ खड़े होने लगे हैं वहीँ वो नशा पत्ती करते हैं भद्दी भद्दी गालियाँ देते हैं जो बच्चों और अभिभावकों को
सुनना सहना उनकी मजबूरी होती है इन सबके बाबजूद वहाँ बैठने क्या खड़े होने लायक कहीं जगह नहीं बचती है !उसके अलावा गेट के आस पास दूर दूर तक छाया का कहीं नामोनिशान नहीं होता है । 
      दोपहर दो बजे जब छुट्टी होने को होती है तब अभिभावक लोग अपने बच्चों को लेने आधा घंटे पहले आकर उस तपती धूप में गेट पर खड़े हो जाते हैं दूसरी बात छुट्टी होते  समय बड़ा विद्यालय होने के नाते भीड़ अधिक हो ही जाती है तो रोड पर जाम भी लग जाता है ऐसी परिस्थिति में बच्चे उस तपती हुई धूप से बचने के लिए यदि रुकना चाहें तो कहाँ रुकें ! जिन अभिभावकों अपने बच्चे लेने आने में कुछ देर हो गई है वे बच्चे अपने माता  पिता का इंतजार करने के लिए कहाँ खड़े हों !या तो धूप में खड़े होकर उन लोगों की गालियाँ सुनें या कहीं और जाएँ !अपुष्ट सूत्रों से जानकारी तो यहाँ तक मिली है कि नशीले द्रव्यों की सप्लाई तक यहाँ से की जाती है यदि ये बात एक प्रतिशत भी सही हुई तो ये स्कूल के पास घड़ा बेचने वाले लोग बच्चों के भविष्य के साथ बड़ा खिलवाड़ कर रहे हैं । 
       अतएव आपसे निवेदन है कि बच्चों अभिभावकों एवं विद्यालय की गौरव रक्षा के लिए यदि आप उचित समझें तो इस अतिक्रमण को हटवाएं और उस पेड़ के नीचे बच्चों को बैठने लायक  स्वच्छ वातावरण तैयार करवाएँ !
     स्कूल के अंदर बाहर 'स्वच्छ भारत अभियान' के बैनर पोस्टर लगे हों स्वच्छता पर बड़े बड़े कार्यक्रम चलाए जा रहे  हों और स्कूल के सामने का यह वातावरण हो कितना उचित है आप स्वयं देखिए -


 माननीया मंत्री जी -
        (मानव संसाधन मंत्रालय भारत सरकार )
                                       आपको सादर नमस्कार !

 विषय - संस्कृत और प्राचीन ग्रंथों विषयों से सम्बंधित रिसर्च के विषय में -
  महोदया -
     विदित हो कि मैंने संपूर्णानंद संस्कृत विश्व विद्यालय वाराणसी से व्याकरणाचार्य (MA)एवं ज्योतिषाचार्य(MA)  किया है 'तुलसी साहित्य और ज्योतिष' पर काशी हिन्दू विश्व विद्यालय से Ph .D.की है प्राचीन विज्ञान के आधार पर ही 'ग्रंथ लेखन एवं फ़िल्म निर्माण' में ज्योतिष योगदान\ रोग एवं मनोरोग विज्ञान की दृष्टि से !  आयुर्वेद,योग,मानवव्यवहार  रोग, मनोरोग, भूकंप, वर्षा आदि प्राकृतिक सामाजिक व्यवाहरिक पारिवारिक आदि जगत के लिए अत्यंत लाभकारी महत्त्व पूर्ण शोधकार्य प्राचीन विज्ञान और संस्कृत के आकर ग्रंथों के आधार पर मैंने किया है जिसे कहीं भी कभी भी किसी भी मंच पर सिद्ध किया जा सकता है ।सरकार यदि इस विषय में मेरी मदद करे तो मैं विश्वास पूर्वक कह सकता हूँ कि मानवता का तो बहुत बड़ा लाभ तो होगा ही साथ ही कई वो पहलू जिनके रहस्य आधुनिक चिकित्सा एवं विज्ञान के लिए वरदान सिद्ध हो सकते हैं !
       अतएव आपसे निवेदन है कि आप मुझे समय दें और  इस विषय में मेरी बात सुनें !यदि आपको उचित लगे तो हमारे रिसर्च कार्य में सरकार हमारी मदद करे !
                                                          निवेदक  भवदीय -
          राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान (रजि.)
------------------------------ आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी --------------------------------
एम. ए.(व्याकरणाचार्य) ,एम. ए.(ज्योतिषाचार्य)-संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी
एम. ए.हिंदी -कानपुर विश्वविद्यालय \ PGD पत्रकारिता -उदय प्रताप कालेज वाराणसी
पीएच.डी हिंदी (ज्योतिष)-बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU )वाराणसी
K -71 ,छाछी बिल्डिंग, कृष्णा नगर, दिल्ली -110051
Tele: +91-11-22002689, +91-11-22096548
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Tuesday, 26 April 2016

अरे कन्हैेये !मीडिया ने महत्त्व क्या दे दिया अपने को CM-PM समझने लगे तुम !

जनता की नजरों से  गिर चुके नेताओं के हीरो कन्हैेये !दिल्ली का मुख़्यमंत्री बनने के लिए ऐसी वैसी हरकतें मत कर !गला वला मत दबवा क्या भरोस किसी दिन कोई जोर से न  दबा दे ! 
   अरे पगले ! फैसले कभी अपनी सुविधानुसार नहीं आया करते !ये नक्सलियों की निजी पंचायतों में होता होगा कि जो अपने को पसंद न आवे उसे कह दो अस्वीकार्य है!अगर कोई ऐसे फैसलों से असहमत भी हो तो भी अपनी बात कहने के लिए कानून की शरण ले या बाया  लोकतंत्र चुनौती दे !ऊट पटांग बोल बोल कर JNU जैसे बड़े शिक्षण संस्थानों की प्रतिष्ठा के साथ क्यों खिलवाड़ करता जा रहा है यहाँ तुम अपनी लड़ाई नहीं लड़ रहे अपितु अपने विश्व प्रसिद्ध  शिक्षण संस्थान के संस्कारों का इतना गंदा परिचय दे रहे हो तुम !राजनीति करने के लिए झुट्ठौ अपना गला दबवाते घूम रहा है !अपने ऊपर क्यों करवा रहा है कागजी हमले ! दिल्ली का मुख़्यमंत्री बनना चाह रहा है क्या ?अपने ऊपर जूते मत फेंकवा ! राजनीति करनी है तो विश्व विद्यालय की बेइज्जती भी मत करा सीधे राजनीति में आ !अन्यथा लोग पढ़ने लिखने वाले छात्रों को भी तुम्हारी दृष्टि से ही देखने लगेंगे !वहाँ के पढ़ने लिखने वाले छात्रों पर रहम कर !बक्स दे वहाँ पढ़ने वाले छात्रों का भविष्य और बना रहने दे वहाँ के शिक्षकों का गौरव ! तेरे बहाने ही सही वहाँ के 'कंडोमों' तक की चर्चा तो हो गई और कितनी बेइज्जती करवाना चाह रहा है JNU की !ऐसे कैसे कोई माता पिता अपने बेटा बेटियों को ऐसे शिक्षण संस्थानों में भेजना पसंद करेगा !  
     जनता की नजरों से  गिर चुके राजनेताओं के हीरो हैं PK और कन्हैया! ऐ  कन्हैेये ! दिल्ली का मुख़्यमंत्री बनने के लिए ऐसी वैसी हरकतें मत कर !गला वला मत दबवा क्या भरोस किसी दिन कोई जोर से न  दबा दे अपने ऊपर जूता मत फेंकवा !बल्कि तुम मुख्यमंत्री बनोगे तो क्या करोगे दिल्ली वालों के साथ उसके लिए ये अपना एक अलग नारा दे दे - जैसे -"   "  'न ऑड न इवेन' रोड रहेंगे बिलकुल खाली ! न गाड़ियाँ  न एक्सीडेंट ! न ट्रेफिक न ट्रेफिक व्यवस्था !रोडों  पर न आदमी न औरतें !न अपराध न बलात्कार !घर घर सामान पहुँचाएगी दिल्ली सरकार !"
    अरे झुट्ठे कन्हैेये ! किसकी लड़ाई लड़ रहे हो तुम ! क्यों भ्रम फैला रहे हो समाज में !अचानक क्यों होने लगे तेरे ऊपर हमले पहले क्यों नहीं हुए !  दिल्ली के अगले चुनावों में मुख्यमंत्री बनने के लिए ये ऊट पटांग हरकतें कर रहे हो तो साफ साफ कहो उसके लिए जहाज में जाकर गला दबवाने की क्या जरूरत !
  अब कन्हैया भी दिल्ली के मुख़्यमंत्री पद का सशक्त दावेदार है मुख्यमंत्री बनने कला उसे भी आ गई जूतेचप्पल फेंकवा रहा है अपने ऊपर !जेल घूम आया !अपने ऊपर हमले करवा लेता है ,अपने को धमकी धुमकी दिलवा लेता है !मुख़्यमंत्री बनाने वाली ऐसी बहुत हरकतें सफलता पूर्वक कर चुका है वो !
   अगली शर्दियों से अपनी लीला मंडली के साथ रजाई लेकर जंतर मंतर की रोडों पर लेटेगा ,ग़रीबों का हमदर्द दिखने के लिए कुछ दिन रात  झुग्गियों में गुजारेगा !दलितों का हमदर्द दिखने के लिए अंबेडकर साहब की मूर्ति कुछ दिन साथ लेकर घूमेगा! चोरी चोरी व्यापारियों से चंदा लेगा ! सवर्णों और पैसे वालों के प्रति घृणा पैदा करेगा ! सरकारों और नेताओं को बेईमान बताएगा अपने को आम आदमी बताएगा ऐसा करते करते बन जाएगा अगले चुनावों में मुख़्यमंत्री !बारी दिल्ली बारे दिल्ली वाले कितनी जल्दी और कैसी कैसी बातों से खुश हो जाते हैं ! 
     मोदीद्रोहियों का हीरो है कन्हैया !दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने तक वो हर हरकत करेगा जो करते कर रहा जो इसके लिए इसलिए वो वैसी हर हरकत कर रहा है ! नेता बनने के लिए जूते चप्पल स्याही आदि अपने ऊपर फेंकवा कर विरोधियों का नाम लगा देना फैशन सा बनता जा रहा है ! नेता बनने वाले ऐसे राजनीति के शौकीनों पर कसी जाए नकेल !
     कितने गंदे होते हैं वे लोग जो देश समाज एवं देश के प्रतीकों के प्रति यह जानते हुए भी कि इससे उत्तेजना फैलेगी फिर भी  ऊटपटाँग बोलकर समाज को भड़का देते हैं और बाद में माँगते हैं सिक्योरिटी !ऐसे बड़बोले नेताओं को  सिक्योरिटी मिलनी बंद हो जाए तो ये डरपोक लोग ऊटपटाँग बोलना बंद कर देंगे !अन्यथा ऐसे सरकार कहाँ कहाँ किसको किसको रखाती घूमेंगी !वो भी जनता के पैसे पर ये जनधन का दुरूपयोग है !ये गलत है जनता के साथ सरासर अन्याय है । जनता पर तेंदुए हमला कर रहे हैं महिलाओं पर अपराध बढ़ते जा रहे हैं उन्हें सिक्योरिटी नहीं है नेताओं को रखाते घूम रहे हैं सुरक्षा कर्मी !
     आजकल नेता बनने के लिए कई लोग अपने हमदर्दों से या फिर ठेका या भाड़ा देकर अपने ऊपर जूते चप्पल स्याही आदि हलकी फुल्की चीजें फेंकवाने लगे हैं उन्हें लगने लगा है कि ऐसी ही हरकतें कर के इतने कम समय में यदि कोई मुख्यमंत्री बन सकता है तो मैं क्यों नहीं !
       ऐसे लोगों को चाहिए कि जूते चप्पल चाँटे आदि मार मार कर उन्हें नेता बनाने वाले अपने वालेंटियर्स को कभी नहीं भूलना चाहिए उचित तो ये है कि मंत्री आदि बन जाने के बाद किसी बड़े ग्राउंड में ऐसे अपने वालेंटियर्स के सम्मान के लिए भव्य समारोह करना चाहिए।आपको याद होगा कि अभी कुछ वर्ष पहले एक नेता ने ऐसा किया भी था !एक आम आदमी ने बकायदा अपने वालेंटियर से खुली सभा में चाँटा मरवाकर बाद में उसके घर इस बात के लिए धन्यवाद देने  गया था कि आपके कठिन प्रयास से मीडिया कवरेज बहुत मिली !
     इससे मीडिया कवरेज पूरा मिलता है और नुक्सान कुछ भी होता नहीं है !कुलमिलाकर  जूता और स्याही फेंकने वाले होते हैं नेताओं के अक्सर अपने हमदर्द लोग !आम जनता में इतनी हिम्मत कहाँ होती है वो तो दो चांटे सहकर आ जाते हैं अपने घर !
     कानपुर का एक संस्मरण मुझे याद है बात 1995 की है मेरे परिचित एक दीक्षित जी हैं जो जिला स्तरीय राजनीति में हाथ पैर मारते मारते थक चुके थे कोई जुगत काम नहीं कर रही थी बेचारे राजनीति में कुछ बन नहीं पाए थे !मैंने एक दिन उनसे पूछ दिया कहाँ तक पहुँच पाई आपकी राजनीति ? वो बोले पहुँची तो कहीं नहीं ठहरी हुई है तो हमने कहा क्यों हाथ पैर मारो संपर्क करो लोगों से !तो उन्होंने कहा कि ये सब जितना होना था वो चुका अब तो नेता बनने का डायरेक्ट जुगाड़ करना होगा ,तो मैंने कहा कि वो कैसे होगा तो उन्होंने कहा कि धन और सोर्स है नहीं न कोई खास काबिलियत ही है अब तो राजनीति में सफल होने के लिए लीक से हट कर ही कुछ करना होगा मैंने पूछा  वो क्या ? तो उन्होंने कुछ बिंदु सुझाए - 
  • पहली बात यदि मैं ब्राह्मण न होता तो ब्राह्मणों सवर्णों को गालियाँ दे दे कर नेता बनने की सबसे लोकप्रिय विधा है जिससे बहुत लोग ऊँचे ऊँचे पदों पर पहुँच गए ! 
  • दूसरी बात बड़े बड़े मंचों पर खड़े होकर मीडिया के सामने देश के मान्य महापुरुषों प्रतीकों को गालियाँ दी जाएँ, दूसरे बड़े नेताओं पर चोरी, छिनारा ,भ्रष्टाचार आदि के आरोप लगाए जाएँ ,गालियाँ दी जाएँ महापुरुषों की मूर्तियाँ या देश के प्रतीक तोड़े जाएँ जिससे बड़ी संख्या में लोग आंदोलित हों ! 
  • तीसरी बात किसी सभा में मंच पर अपने ऊपर स्याही या जूता चप्पल आदि कोई भी हलकी फुल्की चीजें फेंकवाई जाएँ जिससे चोट  लगने की  सम्भावना भी न  हो  और प्रसिद्धि भी पूरी मिले इससे एक ही नुक्सान हो सकता है कि सारा अरेंजमेंट मैं करूँ और फेंकने वाले का निशाना चूक गया तो बगल में बैठा कार्यकर्ता नेता बन जाएगा मैं फिर बंचित रह जाऊँगा इस सौभाग्य से ! 
  •  चौथी बात अपने घर में जान से मारने की धमकी जैसे पत्र किसी से लिखवाए भिजवाए जाएँ किंतु पोल खुल गई  तो फजीहत ! 
  •   पाँचवीं बात अपने आगे पीछे  कहीं बम  वम लगवाए जाएँ जो अपने निकलने के पहले या बाद में फूटें किंतु बम लगाने वाला इतना एक्सपर्ट हो तब न !अन्यथा थोड़ी भी टाइमिंग गड़बड़ाई तो क्या होगा पता नहीं ! 
  •  छठी बात किसी दरोगा सिपाही से मिला जाए और उससे टाइ अप किया जाए कि वो यदि किसी चौराहे पर मुझे बेइज्जती कर करके  गिरा गिराकर कर मारे इससे मैं नेता बन जाऊँगा और उसकी तरक्की हो जायेगी !इसी प्रकार से यदि मैं किसी किसी दरोगा को मारूँ तो मैं नेता बन जाऊँगा और उसका ट्राँसफर हो जाएगा ! 
  • सातवीं बात किसी जनप्रिय विंदु को मुद्दा बनाकर खुले आम आमरण अनशन या आत्म हत्या की घोषणा की जाए किंतु कोई मनाने क्यों आएगा मेरा कोई कद तो है नहीं !
  • किसी बड़े नेता पर बलात्कार का आरोप लगाकर प्रसिद्ध हो जाए और  प्रसिद्ध होने पर राजनीति में कद बढ़ ही जाता है किंतु मैं तो ये भी नहीं कर सकता!क्योंकि मैं महिला नहीं हूँ । 
  • यदि मैं अल्प संख्यक होता तो अपने धर्म स्थल की रात बिरात कोई दीवार तोड़वा देता बाद में बनती तो बन जाती नहीं बनती तो भी क्या किंतु मैं अपने धर्म का मसीह बन बैठता लोग हमें मनाते फिरते चुनाव  लिए किंतु मैं ब्राह्मण हूँ ये भी नहीं कर सकता !

Monday, 25 April 2016

मोदी जी पर 4 आने के भी घपले घोटाले के दाग नहीं है उन्हें 'अशुभ' बता रहे हैं हजारों करोड़ के चाराचोर !

   भाजपा को चाहिए कि वो ऐसे खूसटों से बचाकर रखे मोदी जी का प्रभावी व्यक्तित्व और संघ का सम्मान एवं हिंदुत्व  का गौरव तथा अपने सांस्कृतिक प्रतीक !भाजपा में रहकर केवल अपने लिए कार्यकरने वाले लोगों की अपेक्षा भाजपा के लिए काम करने वाले समर्पित कार्यकर्ताओं  की प्रतिभा के साथ साथ उनकी अतिरिक्त योग्यता को भी महत्त्व मिलना चाहिए !जो ऐसेकुतर्कोंएवंआरोपों काप्रभावीजवाब देने मेंसक्षम हों !
पार्टी के स्थानीय कार्यकर्त्ता अपनी स्वयं की छवि जनसेवक  नेता की क्यों नहीं बना पा रहे हैं जिससे उनकी निजी पहचान भी पार्टी के विकास में सहायक हो ! योग्य ,अनुभवी ,कानून विद, भाषाविद तथा शालीन  भाषा भाषी एवं पार्टी के पक्ष में तर्क पूर्ण प्रस्तुति की क्षमता रखने वाले कुशल वक्ताओं को भी पार्टी से जोड़ने की जाए अतिरिक्त पहल !विरोधी लोग मोदी जी, भाजपा ,आरएसएस आदि के विषय में कुछ भी बोल जाते हैं किंतु अपने बचाव पक्ष की तर्क पूर्ण प्रस्तुति इतनी सक्षम क्यों नहीं हो पा रही है कि अपने तर्कों से ऐसे लोगों को लगाम दी जा सके !कभी केजरीवाल ,कभी लालू ,कभी कन्हैया कभी कोई और कुछ भी बोल जाते हैं देश के लोकतांत्रिक तरीके से चुने हुए देश प्रधानमंत्री के लिए जिनके सम्मान की रक्षा करना लोकतंत्र पर भरोसा करने वाले हर राष्ट्रवादी स्त्री पुरुष का कर्तव्य है क्योंकि प्रधानमंत्री केवल किसी पार्टी का नहीं अपितु देश का होता है !इसी उत्साहित भावना से बचाल नेताओं का प्रतीकार किया जाए !

    मोदी जी को ही हर जगह मोर्चा सँभालना पड़ता है आखिर क्यों ?पार्टी प्रांतों में कुछ  स्थापित नेताओं के अलावा भी तो प्रतिभावान कार्यकर्ता लोग होंगे पार्टी में उन्हें भी क्यों न प्रोत्साहित किया जाए !नई भर्तियों में परिचयवाद  परिवार वाद आदि भूलकर कार्यकर्ताओं के चयन में  प्रतिभावाद  को प्राथमिकता क्यों न दी जाए ! और उनके कंधों पर रखकर विकसित किया जाए स्थानीय नया नेतृत्व  ! 

      जनप्रिय लोकाकर्षक भावों को सौम्य भाषा में प्रकट कर पाने वाले नेता  क्यों नहीं पनपने  रहे हैं !आज टीवी चैनलों में भाजपा का पक्ष रखने वाले लोग घंटे घंटे भर की बहसों में कभी ये नहीं समझा पा रहे होते हैं कि आखिर वो क्या कहने को भेजे गए थे !क्या  कहना चाह रहे हैं और कह क्या रहे हैं पूरी पूरी बहसों में भाजपाई प्रवक्ताओं के चेहरे से जनाकर्षक भाव गायब होते हैं सब कुछ बनावटी सा लगता है उन्हें अपने पुराने नेताओं से क्यों कुछ सीखना नहीं चाहिए !

   आज भी मोदी जी अपनी बातों से जन भावनाओं के विशाल समुद्र को मथते हुए अपार भीड़ के हृदयों तक उतर जाते हैं अटल अडवाणी जोशी जी आदि और भी श्रद्धेय लोग बहस करते समय या भाषण करते समय हृदय  पक्ष  को भी साथ ले जाया करते थे जिससे उनकी बातें लोगों के हृदयों तक उतर जाया करती थीं तब होती थी सजीव बहस और उसका पड़ता था लोगों पर प्रभाव !आज केजरीवाल भी ऐसा करने में सफल हैं तो भाजपा की नई पीढ़ी का ध्यान आखिर है किधर ! केवल अपने से बड़े नेताओं का नाम ले लेकर चुनाव जीतने का अपरिपक्व खेल आखिर कब तक चलेगा !

     दिल्ली के चुनावों में मोदी जी को यदि इसप्रकार से अड़ाया न गया होता तो कम से कम उनकी शाख बचाई जा सकती थी जिनके बल पर कार्यकर्ता आज भी उत्साहित किया जा सकता है किन्तु आज दिल्ली का भाजपाई कार्यकर्त्ता न केवल निरुत्साहित है अपितु वो सत्ता से चिपकना चाहता है उसे  बचा कर रखना भाजपा के लिए बहुत जरूरी है जो केवल नैतिकता के आधार पर ही संभव है !

     बिहार में एकबार फिर दाँव पर लगाया गया मोदी जी के उसी व्यक्तित्व का !स्थानीय नेतृत्व के निष्प्रभावी होने से मोदी जी का प्रभावी व्यक्तित्व भी उतना असर नहीं छोड़ पाता है जितना होना चाहिए !  बंधुओ !भाजपा की दिल्ली पराजय का कारण 'आप' न होकर अपितु  भाजपा का अपना उदासीन नेतृत्व था !जिसकी कमजोरी के कारण ही दिल्ली भाजपा पहले भी लगातार कई चुनाव हार चुकी थी । 

  अब भी कई ऐसे ही प्रांतों में प्रतिभावान लोगों को प्रस्तुत ही नहीं होने दिया जाता और प्रभावी रूप से कुछ परोस पाने  की उनकी अपनी क्षमता नहीं होती है! इसीलिए अनावश्यक रूप से बारबार लेना पड़ता है मोदी जी का नाम !जिसकी वहाँ जरूरत ही नहीं होती है ।  

     भारतीय जनता पार्टी में भी आज कार्यकर्ताओं की भर्ती का आधार परिवारवाद परिचयवाद नेतासमूहवाद चाटुकारितावाद आदि हावी होते देखा जा रहा है ऐसी परिस्थिति में योग्य विद्वान अनुभवी सम्बद्ध विषयों की जानकारी रखने वाले अपनी बात को समझाने की क्षमता रखने वाले कार्यकर्ताओं का नितांत अभाव होता जा रहा है पार्टी की विचारधारा को समाज की स्वीकरणीय शैली में परोसने की शैली ही समाप्त होती जा रही है जो भाजपा की मुख्य पहचान रही है । नेताओं के पास अपनी बातों के समर्थन में न कोई ऐतिहासिक उदाहरण होते हैं न कोई गद्य गरिमा न कोई भाषा का लालित्य न कोई हाव भाव ! आजकल टीवी चैनलों पर घंटों चलने वाली बहसों  में भाजपा का पक्ष रखने वाले लोगों की भाषा में जनता को परोसा जाने वाला साधारणीकरण बिलकुल गायब होता जा रहा है, बहसों में व्यक्तिवैचित्र्यवाद के आधार पर केवल समय पार किया जाता है वही कुछ कानूनी आँकड़े बार बार पढ़कर रिपीट किए जा रहे होते हैं कई बार तो एंकर पूछ कुछ रहा होता है उत्तर कहीं और का होता है कई बार तो उत्तर देने के लिए उद्धृत किया जाने वाला उदाहरण इतना विस्तारित  एवं अरुचिकर होता है कि मूलबात  से उसका कोई सम्बन्ध ही नहीं रह  जाता है इससे मूल बात एवं उदाहरण दोनों भटक जाते हैं इस घालमेल से  जनता तक कुछ पहुँच ही नहीं पाता है । 
   श्रोताओं में अगर कुछ पढ़े लिखे लोग समझ भी पा रहे होंगे तो उनकी बातों से वो सहमत नहीं होते पत्रकार हों या विपक्ष के लोग वो आपकी सही बात भी क्यों टिकने देंगे और आम जनता आपकी बात समझ नहीं पा रही होती है इसलिए आम जनता के हृदयों तक पहुँचने के लिए भाजपा को हर जगह मोदी जी की जरूरत पड़ती है किंतु मोदी जी अब केवल मोदी जी ही नहीं हैं अपितु वो देश के प्रधानमन्त्री भी हैं और सत्ता में होने के कारण उनसे दस काम अच्छे होंगे तो एक बिगड़ भी सकता है जिसे विपक्ष के लोग जनता के सामने परोसने लगते हैं उसको दबाने के लिए जितना समय प्रांतों में मोदी जी को देना जरूरी होता है अब उतना वो वहाँ दे नहीं सकते उनकी तमाम मजबूरियाँ हैं इसीलिए भाजपा दिल्ली  चुनावों में सहज नहीं हो पाई  !
    जिन प्रदेशों में वहाँ के प्रांतीय नेता बिना मोदी जी के बिना भी अपनी क्षमता के आधार पर जनता से हृदय के सम्बन्ध बना पाते हैं वहाँ वो अपने पुरुषार्थ से पार्टी की पहचान बनाने में सफल होते हैं ! वहाँ पार्टी की स्वाभाविक विजय होती है किंतु कुछ बाहरी नेता या अभिनेताओं के बलपर नहीं जीते जा सकते चुनाव अब हर किसी को विकास और विकास के लिए उसकी बातों पर विश्वास चाहिए । इसलिए जनता से अच्छे लोगों को लेकर उनके समर्पण ज्ञान गुण गौरव अनुभव आदि का भी उपयोग किया जाना चाहिए !

अरे कन्हैेये !अपने ऊपर क्यों करवा रहा है कागजी हमले ! झुट्ठौ क्यों दबवा रहा है अपना गला ! दिल्ली का मुख़्यमंत्री बनना चाह रहा है क्या ?

जनता की नजरों से  गिर चुके राजनेताओं के हीरो हैं PK और कन्हैया! 
      ऐ  कन्हैेये ! दिल्ली का मुख़्यमंत्री बनने के लिए ऐसी वैसी हरकतें मत कर !गला वला मत दबवा क्या भरोस किसी दिन कोई जोर से न  दबा दे अपने ऊपर जूता मत फेंकवा !बल्कि तुम मुख्यमंत्री बनोगे तो क्या करोगे दिल्ली वालों के साथ उसके लिए ये अपना एक अलग नारा दे दे - जैसे -"   "  'न ऑड न इवेन' रोड रहेंगे बिलकुल खाली ! न गाड़ियाँ  न एक्सीडेंट ! न ट्रेफिक न ट्रेफिक व्यवस्था !रोडों  पर न आदमी न औरतें !न अपराध न बलात्कार !घर घर सामान पहुँचाएगी दिल्ली सरकार !"
    अरे झुट्ठे कन्हैेये ! किसकी लड़ाई लड़ रहे हो तुम ! क्यों भ्रम फैला रहे हो समाज में !अचानक क्यों होने लगे तेरे ऊपर हमले पहले क्यों नहीं हुए !  दिल्ली के अगले चुनावों में मुख्यमंत्री बनने के लिए ये ऊट पटांग हरकतें कर रहे हो तो साफ साफ कहो उसके लिए जहाज में जाकर गला दबवाने की क्या जरूरत !
  अब कन्हैया भी दिल्ली के मुख़्यमंत्री पद का सशक्त दावेदार है मुख्यमंत्री बनने कला उसे भी आ गई जूतेचप्पल फेंकवा रहा है अपने ऊपर !जेल घूम आया !अपने ऊपर हमले करवा लेता है ,अपने को धमकी धुमकी दिलवा लेता है !मुख़्यमंत्री बनाने वाली ऐसी बहुत हरकतें सफलता पूर्वक कर चुका है वो !
   अगली शर्दियों से अपनी लीला मंडली के साथ रजाई लेकर जंतर मंतर की रोडों पर लेटेगा ,ग़रीबों का हमदर्द दिखने के लिए कुछ दिन रात  झुग्गियों में गुजारेगा !दलितों का हमदर्द दिखने के लिए अंबेडकर साहब की मूर्ति कुछ दिन साथ लेकर घूमेगा! चोरी चोरी व्यापारियों से चंदा लेगा ! सवर्णों और पैसे वालों के प्रति घृणा पैदा करेगा ! सरकारों और नेताओं को बेईमान बताएगा अपने को आम आदमी बताएगा ऐसा करते करते बन जाएगा अगले चुनावों में मुख़्यमंत्री !बारी दिल्ली बारे दिल्ली वाले कितनी जल्दी और कैसी कैसी बातों से खुश हो जाते हैं ! 
     मोदीद्रोहियों का हीरो है कन्हैया !दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने तक वो हर हरकत करेगा जो करते कर रहा जो इसके लिए इसलिए वो वैसी हर हरकत कर रहा है ! नेता बनने के लिए जूते चप्पल स्याही आदि अपने ऊपर फेंकवा कर विरोधियों का नाम लगा देना फैशन सा बनता जा रहा है ! नेता बनने वाले ऐसे राजनीति के शौकीनों पर कसी जाए नकेल !
     कितने गंदे होते हैं वे लोग जो देश समाज एवं देश के प्रतीकों के प्रति यह जानते हुए भी कि इससे उत्तेजना फैलेगी फिर भी  ऊटपटाँग बोलकर समाज को भड़का देते हैं और बाद में माँगते हैं सिक्योरिटी !ऐसे बड़बोले नेताओं को  सिक्योरिटी मिलनी बंद हो जाए तो ये डरपोक लोग ऊटपटाँग बोलना बंद कर देंगे !अन्यथा ऐसे सरकार कहाँ कहाँ किसको किसको रखाती घूमेंगी !वो भी जनता के पैसे पर ये जनधन का दुरूपयोग है !ये गलत है जनता के साथ सरासर अन्याय है । जनता पर तेंदुए हमला कर रहे हैं महिलाओं पर अपराध बढ़ते जा रहे हैं उन्हें सिक्योरिटी नहीं है नेताओं को रखाते घूम रहे हैं सुरक्षा कर्मी !
     आजकल नेता बनने के लिए कई लोग अपने हमदर्दों से या फिर ठेका या भाड़ा देकर अपने ऊपर जूते चप्पल स्याही आदि हलकी फुल्की चीजें फेंकवाने लगे हैं उन्हें लगने लगा है कि ऐसी ही हरकतें कर के इतने कम समय में यदि कोई मुख्यमंत्री बन सकता है तो मैं क्यों नहीं !
       ऐसे लोगों को चाहिए कि जूते चप्पल चाँटे आदि मार मार कर उन्हें नेता बनाने वाले अपने वालेंटियर्स को कभी नहीं भूलना चाहिए उचित तो ये है कि मंत्री आदि बन जाने के बाद किसी बड़े ग्राउंड में ऐसे अपने वालेंटियर्स के सम्मान के लिए भव्य समारोह करना चाहिए।आपको याद होगा कि अभी कुछ वर्ष पहले एक नेता ने ऐसा किया भी था !एक आम आदमी ने बकायदा अपने वालेंटियर से खुली सभा में चाँटा मरवाकर बाद में उसके घर इस बात के लिए धन्यवाद देने  गया था कि आपके कठिन प्रयास से मीडिया कवरेज बहुत मिली !
     इससे मीडिया कवरेज पूरा मिलता है और नुक्सान कुछ भी होता नहीं है !कुलमिलाकर  जूता और स्याही फेंकने वाले होते हैं नेताओं के अक्सर अपने हमदर्द लोग !आम जनता में इतनी हिम्मत कहाँ होती है वो तो दो चांटे सहकर आ जाते हैं अपने घर !
     कानपुर का एक संस्मरण मुझे याद है बात 1995 की है मेरे परिचित एक दीक्षित जी हैं जो जिला स्तरीय राजनीति में हाथ पैर मारते मारते थक चुके थे कोई जुगत काम नहीं कर रही थी बेचारे राजनीति में कुछ बन नहीं पाए थे !मैंने एक दिन उनसे पूछ दिया कहाँ तक पहुँच पाई आपकी राजनीति ? वो बोले पहुँची तो कहीं नहीं ठहरी हुई है तो हमने कहा क्यों हाथ पैर मारो संपर्क करो लोगों से !तो उन्होंने कहा कि ये सब जितना होना था वो चुका अब तो नेता बनने का डायरेक्ट जुगाड़ करना होगा ,तो मैंने कहा कि वो कैसे होगा तो उन्होंने कहा कि धन और सोर्स है नहीं न कोई खास काबिलियत ही है अब तो राजनीति में सफल होने के लिए लीक से हट कर ही कुछ करना होगा मैंने पूछा  वो क्या ? तो उन्होंने कुछ बिंदु सुझाए - 
  • पहली बात यदि मैं ब्राह्मण न होता तो ब्राह्मणों सवर्णों को गालियाँ दे दे कर नेता बनने की सबसे लोकप्रिय विधा है जिससे बहुत लोग ऊँचे ऊँचे पदों पर पहुँच गए ! 
  • दूसरी बात बड़े बड़े मंचों पर खड़े होकर मीडिया के सामने देश के मान्य महापुरुषों प्रतीकों को गालियाँ दी जाएँ, दूसरे बड़े नेताओं पर चोरी, छिनारा ,भ्रष्टाचार आदि के आरोप लगाए जाएँ ,गालियाँ दी जाएँ महापुरुषों की मूर्तियाँ या देश के प्रतीक तोड़े जाएँ जिससे बड़ी संख्या में लोग आंदोलित हों ! 
  • तीसरी बात किसी सभा में मंच पर अपने ऊपर स्याही या जूता चप्पल आदि कोई भी हलकी फुल्की चीजें फेंकवाई जाएँ जिससे चोट  लगने की  सम्भावना भी न  हो  और प्रसिद्धि भी पूरी मिले इससे एक ही नुक्सान हो सकता है कि सारा अरेंजमेंट मैं करूँ और फेंकने वाले का निशाना चूक गया तो बगल में बैठा कार्यकर्ता नेता बन जाएगा मैं फिर बंचित रह जाऊँगा इस सौभाग्य से ! 
  •  चौथी बात अपने घर में जान से मारने की धमकी जैसे पत्र किसी से लिखवाए भिजवाए जाएँ किंतु पोल खुल गई  तो फजीहत ! 
  •   पाँचवीं बात अपने आगे पीछे  कहीं बम  वम लगवाए जाएँ जो अपने निकलने के पहले या बाद में फूटें किंतु बम लगाने वाला इतना एक्सपर्ट हो तब न !अन्यथा थोड़ी भी टाइमिंग गड़बड़ाई तो क्या होगा पता नहीं ! 
  •  छठी बात किसी दरोगा सिपाही से मिला जाए और उससे टाइ अप किया जाए कि वो यदि किसी चौराहे पर मुझे बेइज्जती कर करके  गिरा गिराकर कर मारे इससे मैं नेता बन जाऊँगा और उसकी तरक्की हो जायेगी !इसी प्रकार से यदि मैं किसी किसी दरोगा को मारूँ तो मैं नेता बन जाऊँगा और उसका ट्राँसफर हो जाएगा ! 
  • सातवीं बात किसी जनप्रिय विंदु को मुद्दा बनाकर खुले आम आमरण अनशन या आत्म हत्या की घोषणा की जाए किंतु कोई मनाने क्यों आएगा मेरा कोई कद तो है नहीं !
  • किसी बड़े नेता पर बलात्कार का आरोप लगाकर प्रसिद्ध हो जाए और  प्रसिद्ध होने पर राजनीति में कद बढ़ ही जाता है किंतु मैं तो ये भी नहीं कर सकता!क्योंकि मैं महिला नहीं हूँ । 
  • यदि मैं अल्प संख्यक होता तो अपने धर्म स्थल की रात बिरात कोई दीवार तोड़वा देता बाद में बनती तो बन जाती नहीं बनती तो भी क्या किंतु मैं अपने धर्म का मसीह बन बैठता लोग हमें मनाते फिरते चुनाव  लिए किंतु मैं ब्राह्मण हूँ ये भी नहीं कर सकता !

Friday, 22 April 2016

केजरीवाल जी को चुनौती है वो सिद्ध करें कि 'ऑडइवन' से दिल्ली वाले तंग कम और खुश ज्यादा हैं !

स्कूलों में राजनीति !
स्कूलोंमें नेता दर्शन
       पोस्टर देखकर ये पता लगापाना कठिन हो रहा है कि 'ऑडइवन' का प्रचार करने के लिए केजरीवाल जी की फोटो लगाई गई है या केजरीवाल जी के चित्रों का प्रचार करने के लिए 'ऑडइवन' योजना बनाई गई है ! 
    अब तो बहुत लोग  कहने भी लगे हैं कि दिल्ली सरकार में केजरीवाल जी के चित्रों को लगाने का बहाना खोजने के लिए बनाई जाती हैं 'ऑडइवन' जैसी योजनाएँ  !    
     कुल मिलाकर दिल्ली सरकार में बैठे नेता नौसिखिए हैं इन्हें केवल निंदा करना आता है इसलिए इनकी बौद्धिक मदद करने के लिए विपक्षी दलों के अनुभवी नेताओं को आगे आना चाहिए अन्यथा ये पाँच साल ऐसे ही पार कर देंगे ! विपक्ष के वो अनुभवी लोग सरकार को प्रचार प्रसार के लिए 'ऑडइवन'जैसी बहु बहुखर्चीली निरर्थक योजनाओं को रोकने के लिए बाध्य करें !जिससे 'ऑडइवन'जैसी योजनाओं के प्रचार प्रसार पर जनता के विकास के लिए जनता के द्वारा टैक्स रूप में प्राप्त धन का दुरूपयोग रोका जा सके ! जनता के धन का सदुपयोग तथा जनता के हितों की रक्षा करना और जनहित के काम करने के लिए सरकारों को बाध्य करना ये विपक्ष की अपनी भी जिम्मेदारी है !
    'ऑडइवन'में दिल्लीसरकार ने प्रशासन और जनता से लेकर मीडिया तक को उलझा रखा है इस योजना के न कोई तर्क है न कोई परिणाम !केवल ऐसी योजनाओं के प्रचार में पैसा फूँका जा रहा है !टीवी चैनलों से लेकर बैनरों पोस्टरों तक हर जगह 'ऑडइवन'का केवल प्रचार है इसमें पैसे क्या नहीं लग रहे होंगे!आखिर वो पैसे हैं तो  दिल्ली की जनता के जो दिल्ली के विकास के लिए देती है जनता !वही जनता परेशान है तो लानत है ऐसी  योजनाओं को !
   दिल्ली सरकार में बैठे नेता यदि नौसिखिए हैं तो ऐसे नेताओं की बौद्धिक मदद करने के लिए विपक्षी दलों के अनुभवी नेताओं को आगे आना चाहिए और इन्हें समझाना चाहिए कि जनहितकारी योजनाओं को लागू करने का मजा ही तभी है जब जनता तंग न हो ! इतनी बड़ी मेट्रो बनी जनता दुखी नहीं हुई किंतु 'ऑडइवन'से दुखी है ऊपर से चार लफोडे टीवी चैनलों के सामने आकर बोल जाते हैं कि'ऑडइवन'से दिल्ली की जनता तो खुश है पता नहीं इस ख़ुशी के सैम्पल कहाँ से उठाते हैं ये लोग या फिर झूठ बोलते हैं । 
    'ऑडइवन' से धनी लोगों को तो कोई ख़ास दिक्कत नहीं वो गाड़ियाँ बढ़ा लेते हैं किंतु मध्यमवर्गीय लोग जिन्होंने लोन पर गाड़ियाँ ली हुई हैं जिसका ब्याज आज भी भर रहे हैं वे उन्हें बिना गाड़ी वाला बना रही गई दिल्ली सरकार   !
      विपक्ष को चाहिए कि वो सरकार को बाध्य करे कि आम आदमी पार्टी के नेता अपने प्रचार प्रसार के लिए ऐसी निरर्थक बहु बहुखर्चीली योजनाएँ रोकें !'ऑडइवन'जैसी योजनाओं के प्रचार प्रसार पर जनता के विकास के लिए जनता के द्वारा टैक्स रूप में प्राप्त धन का दुरूपयोग रोका जा सके !
      जनता के धन का सदुपयोग तथा जनता के हितों की रक्षा करना और जनहित के काम करने के लिए सरकारों को बाध्य करना ये विपक्ष की अपनी भी जिम्मेदारी है !     दिल्ली को जाम मुक्त बनाने के लिए रोडों पर से अतिक्रमण हटाना बहुत आवश्यक है कई जगह तो जितनी चौड़ी रोडें कागजों में हैं मौके पर उसकी आधी चौथाई ही बची हैं बाक़ी पर लोगों ने कब्ज़ा कर रखा  है कई जगह रोडें टूटी पड़ी हैं पूर्वी दिल्ली की कुछ बस्तियां नक्सा पास होने के बाद भी अतिक्रमण के कारण ऐसी हैं कि किसी को अचानक किसी बड़े अस्पताल की जरूरत पड़े तो समय से पहुँच पाना असम्भव होगा !इसमें उनका क्या दोष है ये तो सरकारों की लापरवाही है । 
       कई जगह चौराहों पर जाम लगता जाएगा भीड़ बढ़ती जाएगी किंतु वहाँ या तो पुलिस होती नहीं या उसे मतलब नहीं होता है  देखा करती है कई बार तो बहुत बड़े बड़े जाम के इतने छोटे छोटे कारण होते हैं कि कोई जरा से इशारा कर दे तो जाम खुल जाए किंतु इतना करने वाले लोग भी उपलब्ध नहीं हैं !पुलिस वाले सामने खड़े होते हैं । 
    ऐसी जगहों पर 'ऑडइवन' के समय जाम नहीं लगने पाता क्योंकि इन दिनों में प्रशासन सतर्क रहता है वालेंटियर अपनी सेवाएँ देते हैं मीडिया भी सतर्क रहता है इसलिए जाम लगाने वाले लोग भी चौकन्ने रहते हैं ऐसे  कारणों से यदि थोड़ा  प्रदूषण घट भी जाए तो सरकार अपनी पीठ थपथपाने लगती है जबकि 'ऑडइवन' के बिना भी रोडों पर यदि ऐसी  सतर्कता बरती जाए तो बिना 'ऑडइवन' के भी जाम एवं प्रदूषण पर 'ऑडइवन'जैसा नियंत्रण तो किया ही जा सकता है ।
    'ऑडइवन' जैसी सरकारी लीलाओं से आज हर वर्ग परेशान है जिनका संबंध प्रदूषण घटाने से कम अपनी पार्टी नेताओं के चेहरे चमकाने से ज्यादा है । दिल्ली के लोगों की व्यस्ततम जिंदगी में 'ऑडइवन'नामक एक नया बखेड़ा खड़ा कर रही है दिल्ली सरकार जिससे दिल्ली की जनता का कोई विशेष भला होते नहीं दिखता !
     
   दिल्ली के स्कूलों में घुसाई जा रही है राजनीति !स्कूलों को आत्म विज्ञापन का माध्यम बनाया जा रहा है एक स्कूल में भारी भरकम चार पोस्टर देखे उनमें जिन नेताओं के चित्र हैं क्या उन्हें शिक्षा का देवता मान लिया जाए !आखिर उनके चित्रों का शिक्षा से क्या संबंध है ?ये लोग नेता हैं क्या ये सच नहीं है नेताओं के प्रति समाज में इतना निरादर है अविश्वास है फिर भी सुकोमल मानस बच्चों के सामने उन्हीं नेताओं के चित्र परोसे जाएँ उन्हें नेता देखने के लिए मजबूर किया जाए ये शिक्षा जगत के लिए और बच्चों के भविष्य  के लिए कितना उचित है ! शिक्षा संबंधी विज्ञापनों में स्कूलों छात्रों शिक्षकों के
शिक्षा में चौधराहट ! 
शिक्षा संबंधी चित्र होते उनमें शिक्षा जगत से जुड़े कुछ प्रेरक महापुरुषों के चित्र दिए जा सकते थे शिक्षा और संस्कारों से जुड़े कुछ प्रेरक वाक्य लिखे जा सकते थे जिन्हें देखकर शिक्षा का वातावरण कुछ सुधरता किंतु वहाँ अरविंद जी और मनीष जी के चित्रों की क्या भूमिका ये दोनों न तो शिक्षक हैं और न ही  छात्र !जो हैं जहाँ हैं वहाँ उनका सम्मान है किंतु शिक्षण संस्थानों का प्रयोग अपने प्रचार के लिए करना ठीक नहीं है !सरकारी सभी योजनाओं में कुछ कमियाँ  तो रह ही जाती हैं उसी तरह इन योजनाओं में भी रही होंगी !विपक्ष यदि उनका उसी तरह प्रतीकार करना चाहे तो वो भी इन्हीं जगहों पर इनका खंडन करते हुए पोस्टर लगा सकता है क्या ?यदि नहीं तो सत्ता पक्ष क्यों ?क्या वो स्कूलों या ऐसी सरकारी जगहों का  मालिक है !
     इसी प्रकार से अन्य विभागों से संबंधित विज्ञापनों में भी किया जा रहा है किंतु ये ढंग तो ठीक नहीं है कि जब आपको अपने चित्रों वाले पोस्टरों पर धूल मिट्टी लगी दिखने लगती है तो आप किसी योजना का नाम लेकर उसी के बहाने अपना उद्देश्य पूरा कर लेते हैं और अपने बैनरों पोस्टरों से पाट देते हैं सारी दिल्ली !

   ऐसे 'ऑडइवनों' से तो हर विभाग की असफलता छिपाई जा सकती है जैसे महँगाई बढ़े तो एक एक दिन छोड़कर खाना शुरू करा दिया जाएगा !स्कूलों में बच्चों की भीड़ें कम करने के लिए बच्चों की डेट आफ बर्थ में फिट कर दिया जाएगा  'ऑडइवन' किस दिन किस बच्चे को स्कूल जाना है बता दिया जाएगा ! दिल्ली में यदि बाढ़ आ जाएगी तो दिल्ली वालों के पेशाब करने पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा क्या ?
  वस्तुतः  दिल्ली में'ऑड इवन 'योजना तो दिल्ली  सरकार के परिवहन विभाग के फेल होने की निशानी है जो दिल्ली वालों को उचित रोड मुहैया नहीं करा सकी ! ये बुद्धू लोग उसका भी उत्सव मना रहे हैं !
     दिल्ली की जनता के द्वारा दिल्ली के विकास के लिए दिए गए धन से विज्ञापन बनाने यदि इतने ही जरूरी थे पैसा इतना ही इफरात था तो उसमें जिसका पैसा लगता है या जिस विषय से संबंधित आफिस आदि होता है चित्र उसके लगने चाहिए नेताओं के क्यों ?
         आप सरकार के द्वारा चलाई जा रही 'ऑड इवेन' योजना भी तो इसी मानसिकता की प्रतीक है!इसका उद्देश्य यदि रोडों पर बाहनों की संख्या घटाना है तो स्वच्छता अभियान की तरह ही नैतिक निवेदन भी तो किया जा सकता था अन्यथा किस किस विषय में जनता पर थोपा जाएगा 'ऑड इवन" भीड़ तो हर जगह है और जन संख्या है तो भीड़ तो होगी ही इसका एक ही रास्ता है या तो संसाधन बढ़ाए जाएँ या फिर भीड़ घटाई जाए !
    केजरीवाल जी !अपने चित्रों के प्रचार पसार पर जो भारी भरकम धनराशि आप खर्च  करते हैं वो न आपके पिता जी की कमाई है और न ही आपकी !ये धन दिल्ली वाले दिल्ली का विकास करने के लिए सरकारों को देते हैं यदि सरकारों में बैठे लोग उस धन को उन लंबे चौड़े बड़े बड़े पोस्टरों को बनाने और चिपकाने पर खर्च करने लगें जो केवल आपके चित्रों को घर घर और जन जन तक पहुँचाने के लिए लगाए जाते हों  !
      हे केजरीवाल जी !आत्म विज्ञापनों में सरकारी नेताओं के द्वारा फूँकी जाने वाली ये दिल्ली वालों की धनराशि के विषय में क्या आपको पता है कि दिल्ली वाले कितनी मेहनत से अपना खून जलाकर और पसीना बहाकर कमाते हैं किंतु दिल्ली वालों को आप अपना नहीं समझते इसीलिए उनके पैसे के विज्ञापनों में बर्बाद होने से आपको दर्द नहीं होता है !
     केजरीवाल जी ! जरा सोचिए आपने अपने पिता जी कमाई से एक कलेंडर भी बनवाकर पहले कभी लगाया था अपने नाम और चित्र का ! आपने शिक्षा में इतनी बड़ी सफलता हासिल की थी या इतनी बड़ी पोस्ट मिली थी तब आपको इतनी ख़ुशी कभी क्यों नहीं हुई कि पोस्टर बनवाकर लगवा लेते ! तो आज दिल्ली वाले भी संतोष कर लेते कि तुम बचपन से ही पोस्टरों के शौकीन रहे हो !किंतु पहले ऐसा हुआ नहीं अब फ्री की सरकारी सम्पदा देखकर यदि इसे बर्बाद करने के लिए मन मचल ही  पड़ा है तो ये ढंग ठीक है क्या ?दिल्ली वालों के विकास का धन आज फ्री का लग रहा है आपको !
   केजरीवाल जी !यदि तब पोस्टर नहीं लगे तो नुक्सान क्या हुआ ?आज क्या लोगों को पता नहीं है कि तुम क्या हो और क्या थे ! जब बिना पोस्टरों प्रचारों के तुम्हारे विषय में सबको सबकुछ पता हो गया तो दिल्ली वालों के साथ जो भी अच्छा बुरा करोगे वो भी दुनियाँ  को पता हो ही जाएगा उसके लिए इतनी आतुरता क्यों ?माना कि दिल्ली वालों को आप अपना नहीं मानते इसलिए उनकी परेशानियों और पैसों से आपको लगाव नहीं है और पिता जी आपके अपने थे इसलिए उनके पैसे से लगाव था इसीलिए उनकी कमाई को बर्बाद नहीं किया और दिल्ली वालों की कर रहे हो !
      केजरीवाल जी !यदि आप कहें कि और लोग भी तो ऐसा करते हैं तो याद रखिए करते सब हैं किंतु इतना नहीं करते और इतने भोड़े ढंग से नहीं करते और यदि करते भी हों तो ये भी सोचिए कि इन्हीं कारणों से उनकी तुम निंदा किया करते थे तभी तो दिल्ली वाले तुमपर खुश हुए कि चलो ये सादगी पसंद ईमानदार है इसलिए ऐसा नहीं करेगा किंतु तुम भी यदि सबकुछ वैसा ही करने लगे जिसके लिए नेताओं की बुराई किया करते थे !तो इसे दिल्ली की जनता अपने साथ हुई धोखा धड़ी ही मानेगी !
      केजरीवाल जी !पोस्टरों से अच्छाई बुराई को कुछ उछाला तो जा सकता है किंतु बनाया नहीं जा सकता है !यदि ऐसा हो सकता होता तो सारे गंदे और गलत अपराधी लोग अपने विषय में अच्छी बातें लिखकर पोस्टर लगवा दिया करते और उन्हें लोग अच्छा समझने  लगते !

                       


स्कूलों में राजनीति !

Wednesday, 20 April 2016

'केजरीवाल' हैं या ' दिल्ली के देवता' ! चौराहों आफिसों स्कूलों तक में लगे हैं उनके चित्र !

स्कूलों में राजनीति !
'ऑड इवन' योजना तो कामचोर अकर्मण्य सरकारों की हर असफलता पर अपना मुख छिपानेका घोसला मात्र है !
    दिल्ली सरकार की योजनाएँ तो बहाना हैं मुख्य काम तो 'केजरीवाल जी '  के चित्र चिपकाना है योजनाओं की आड़ में  केवल बहाने खोज खोजकर लगाए जा रहे हैं केजरीवाल के चित्र ! 
   दिल्ली के स्कूलों में घुसाई जा रही है राजनीति !स्कूलों को आत्म विज्ञापन का माध्यम बनाया जा रहा है इसी प्रकार से मैंने झील बस स्टैंड के स्कूल में ऐसे ही भारी भरकम चार पोस्टर देखे उनमें जिन नेताओं के चित्र हैं क्या उन्हें शिक्षा का देवता मान लिया जाए !आखिर उनके चित्रों का शिक्षा से क्या संबंध है ?ये लोग नेता हैं क्या ये सच नहीं है नेताओं के प्रति समाज में इतना निरादर है अविश्वास है फिर भी सुकोमल मानस बच्चों के सामने उन्हीं नेताओं के चित्र परोसे जाएँ उन्हें नेता देखने के लिए मजबूर किया जाए ये शिक्षा जगत के लिए और बच्चों के भविष्य  के लिए कितना उचित है ! शिक्षा संबंधी विज्ञापनों में स्कूलों छात्रों शिक्षकों के
शिक्षा में चौधराहट ! 
शिक्षा संबंधी चित्र होते उनमें शिक्षा जगत से जुड़े कुछ प्रेरक महापुरुषों के चित्र दिए जा सकते थे शिक्षा और संस्कारों से जुड़े कुछ प्रेरक वाक्य लिखे जा सकते थे जिन्हें देखकर शिक्षा का वातावरण कुछ सुधरता किंतु वहाँ अरविंद जी और मनीष जी के चित्रों की क्या भूमिका ये दोनों न तो शिक्षक हैं और न ही  छात्र !जो हैं जहाँ हैं वहाँ उनका सम्मान है किंतु शिक्षण संस्थानों का प्रयोग अपने प्रचार के लिए करना ठीक नहीं है !सरकारी सभी योजनाओं में कुछ कमियाँ  तो रह ही जाती हैं
उसी तरह इन योजनाओं में भी रही होंगी !विपक्ष यदि उनका प्रतीकार करना चाहे तो वो भी इन्हीं जगहों पर इनका खंडन करते हुए पोस्टर लगा सकता है क्या ?यदि नहीं तो सत्ता पक्ष क्यों ?क्या वो स्कूलों या ऐसी सरकारी जगहों का  मालिक है !
     इसी प्रकार से अन्य विभागों से संबंधित विज्ञापनों में भी किया जा रहा है किंतु ये ढंग तो ठीक नहीं है कि जब आपको अपने चित्रों वाले पोस्टरों पर धूल मिट्टी लगी दिखने लगती है तो आप किसी योजना का नाम लेकर उसी के बहाने अपना उद्देश्य पूरा कर लेते हैं और अपने बैनरों पोस्टरों से पाट देते हैं सारी दिल्ली !

   ऐसे 'ऑडइवनों' से तो हर विभाग की असफलता छिपाई जा सकती है जैसे महँगाई बढ़े तो एक एक दिन छोड़कर खाना शुरू करा दिया जाएगा !स्कूलों में बच्चों की भीड़ें कम करने के लिए बच्चों की डेट आफ बर्थ में फिट कर दिया जाएगा  'ऑडइवन' किस दिन किस बच्चे को स्कूल जाना है बता दिया जाएगा ! दिल्ली में यदि बाढ़ आ जाएगी तो दिल्ली वालों के पेशाब करने पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा क्या ?
  वस्तुतः  दिल्ली में'ऑड इवन 'योजना तो दिल्ली  सरकार के परिवहन विभाग के फेल होने की निशानी है जो दिल्ली वालों को उचित रोड मुहैया नहीं करा सकी ! ये बुद्धू लोग उसका भी उत्सव मना रहे हैं !
     दिल्ली की जनता के द्वारा दिल्ली के विकास के लिए दिए गए धन से विज्ञापन बनाने यदि इतने ही जरूरी थे पैसा इतना ही इफरात था तो उसमें जिसका पैसा लगता है या जिस विषय से संबंधित आफिस आदि होता है चित्र उसके लगने चाहिए नेताओं के क्यों ?
         आप सरकार के द्वारा चलाई जा रही 'ऑड इवेन' योजना भी तो इसी मानसिकता की प्रतीक है!इसका उद्देश्य यदि रोडों पर बाहनों की संख्या घटाना है तो स्वच्छता अभियान की तरह ही नैतिक निवेदन भी तो किया जा सकता था अन्यथा किस किस विषय में जनता पर थोपा जाएगा 'ऑड इवन" भीड़ तो हर जगह है और जन संख्या है तो भीड़ तो होगी ही इसका एक ही रास्ता है या तो संसाधन बढ़ाए जाएँ या फिर भीड़ घटाई जाए !
      'केजरीवाल जी ! 'आप तो 'ऑड इवन"योजना बनाएँगे तब प्रचार !जब लागू करेंगे तब प्रचार ! रोज बयान देंगे तब प्रचार !और बाद में योजना के सफल होने का उत्सव मनाया जाएगा तब प्रचार !कुल मिलाकर इस योजना का उद्देश्य ही आपके चित्रों का प्रचार करने के लिए बैनर पोस्टर लगाना है । यदि आपकी नियत साफ होती और आप वास्तव में दिल्ली को जाम की समस्या से मुक्ति दिलाना चाहते तो दिल्ली की रोडों पर से अतिक्रमण हटवा देते बिना विज्ञापन  दिए ही निकलने वाले लोग आपका गुण गाने लगते !
   केजरीवाल जी !अपने चित्रों के प्रचार पसार पर जो भारी भरकम धनराशि आप खर्च  करते हैं वो न आपके पिता जी की कमाई है और न ही आपकी !ये धन दिल्ली वाले दिल्ली का विकास करने के लिए सरकारों को देते हैं यदि सरकारों में बैठे लोग उस धन को उन लंबे चौड़े बड़े बड़े पोस्टरों को बनाने और चिपकाने पर खर्च करने लगें जो केवल आपके चित्रों को घर घर और जन जन तक पहुँचाने के लिए लगाए जाते हों  !
      हे केजरीवाल जी !आत्म विज्ञापनों में सरकारी नेताओं के द्वारा फूँकी जाने वाली ये दिल्ली वालों की धनराशि के विषय में क्या आपको पता है कि दिल्ली वाले कितनी मेहनत से अपना खून जलाकर और पसीना बहाकर कमाते हैं किंतु दिल्ली वालों को आप अपना नहीं समझते इसीलिए उनके पैसे के विज्ञापनों में बर्बाद होने से आपको दर्द नहीं होता है !
     केजरीवाल जी ! जरा सोचिए आपने अपने पिता जी कमाई से एक कलेंडर भी बनवाकर पहले कभी लगाया था अपने नाम और चित्र का ! आपने शिक्षा में इतनी बड़ी सफलता हासिल की थी या इतनी बड़ी पोस्ट मिली थी तब आपको इतनी ख़ुशी कभी क्यों नहीं हुई कि पोस्टर बनवाकर लगवा लेते ! तो आज दिल्ली वाले भी संतोष कर लेते कि तुम बचपन से ही पोस्टरों के शौकीन रहे हो !किंतु पहले ऐसा हुआ नहीं अब फ्री की सरकारी सम्पदा देखकर यदि इसे बर्बाद करने के लिए मन मचल ही  पड़ा है तो ये ढंग ठीक है क्या ?दिल्ली वालों के विकास का धन आज फ्री का लग रहा है आपको !
   केजरीवाल जी !यदि तब पोस्टर नहीं लगे तो नुक्सान क्या हुआ ?आज क्या लोगों को पता नहीं है कि तुम क्या हो और क्या थे ! जब बिना पोस्टरों प्रचारों के तुम्हारे विषय में सबको सबकुछ पता हो गया तो दिल्ली वालों के साथ जो भी अच्छा बुरा करोगे वो भी दुनियाँ  को पता हो ही जाएगा उसके लिए इतनी आतुरता क्यों ?माना कि दिल्ली वालों को आप अपना नहीं मानते इसलिए उनकी परेशानियों और पैसों से आपको लगाव नहीं है और पिता जी आपके अपने थे इसलिए उनके पैसे से लगाव था इसीलिए उनकी कमाई को बर्बाद नहीं किया और दिल्ली वालों की कर रहे हो !
      केजरीवाल जी !यदि आप कहें कि और लोग भी तो ऐसा करते हैं तो याद रखिए करते सब हैं किंतु इतना नहीं करते और इतने भोड़े ढंग से नहीं करते और यदि करते भी हों तो ये भी सोचिए कि इन्हीं कारणों से उनकी तुम निंदा किया करते थे तभी तो दिल्ली वाले तुमपर खुश हुए कि चलो ये सादगी पसंद ईमानदार है इसलिए ऐसा नहीं करेगा किंतु तुम भी यदि सबकुछ वैसा ही करने लगे जिसके लिए नेताओं की बुराई किया करते थे !तो इसे दिल्ली की जनता अपने साथ हुई धोखा धड़ी ही मानेगी !
      केजरीवाल जी !पोस्टरों से अच्छाई बुराई को कुछ उछाला तो जा सकता है किंतु बनाया नहीं जा सकता है !यदि ऐसा हो सकता होता तो सारे गंदे और गलत अपराधी लोग अपने विषय में अच्छी बातें लिखकर पोस्टर लगवा दिया करते और उन्हें लोग अच्छा समझने  लगते !

                       


स्कूलों में राजनीति !