Sunday, 12 January 2014

आम आदमी पार्टीं एवं अरविन्द का आगे क्या होगा राजनैतिक भविष्य -ज्योतिष

आम आदमी पार्टी  क्या अपनी साख बचाने एवं बनाने में में सफल हो पाएगी ?

       आम आदमी पार्टीं में अभी तक के प्रकाश में आए नामों के अनुशार अरविंद केजरी वाल  के साथ मनीष सिसोदिया एवं योगेन्द्र यादव ये  दो लोग तो हर परिस्थिति में अरविंद केजरी वाल का सहयोग करते रहेंगे ये अपना मन दबाकर साथ नहीं दे पाएंगे जहाँ तक इनका सम्मान सुरक्षित रहता जाएगा वहाँ  तक ये किन्तु परन्तु  नहीं करेंगे इसलिए इनके साथ अरविन्द को लम्बी योजनाएँ बनानी चाहिए ।

      जहाँ तक बात प्रशांत भूषण  और  कुमार विश्वास की है इन दोनों लोगों की  राजनैतिक तथा  सामाजिक गम्भीरता के अभाव में ये अपनी  कही हुई बातों एवं अपने अलोक प्रिय  व्यवहारों के कारण  ये न तो अरविन्द जी के साथ चल पाएंगे और न ही आम आदमी पार्टी के लिए ही हितकर रहेंगे !अपितु अरविन्द केजरीवाल के लिए  समस्याएँ  ही पैदा करते रहेंगे!

   जहाँ तक बात संजय सिंह की है उनके साथ अरविन्द केजरीवाल जी का ताल मेल तभी तक चल पाएगा जब तक वो उनकी अच्छी बुरी हर बात में अपनी मोहर लगाते रहेंगे!वैसे भी ये अपना तो पूरा सम्मान चाहेंगे ही और अपनी हठवादिता का भी  पूरा सम्मान कराना चाहेंगे यही स्थिति गोपाल राय जैसे महत्वांकांक्षी लोगों की भी है इन लोगों के साथ किसी संगठन को सफलता पूर्वक चला पाना अरविन्द जी के लिए बहुत टेढ़ी खीर होगी इनके मन में असंतोष होते ही ये चुप नहीं बैठेंगे उससे जो लपटें निकलेंगी  उनसे अपने व्यक्तित्व को संवार सुधार कर सफलता पूर्वक आगे बढ़ते रहना अरविन्द जी के लिए काफी कठिन होगा विशेष संयम पूर्वक ही उस स्थिति से निपट पाना सम्भव हो पाएगा! 

    इसके बाद एक जो सबसे बड़ी समस्या आम आदमी पार्टी के लिए होगी वह है आम आदमी पार्टी एवं उसके सर्वे सर्वा श्री अरविन्द केजरीवाल जी के साथ का तालमेल  बनाना सबके साथ नहीं बन सकते हैं अरविन्द जी के ताल मेल।इसमें सबसे बड़ी कठिनाई उनसे होगी जिनका नाम अ - आ अक्षर पर है जैसे -अलका लाम्बा ,आदर्श शास्त्री ,आशुतोष  एवं और भी वे लोग जिनका नाम अ - आ  से प्रारम्भ   होता है  ये अरविन्द जी के लिए उस तरह की परेशानी पैदा करेंगे जैसी अरविन्द जी ने अन्ना हजारे जी के लिए खड़ी की थी ये भी एक एक सिद्धांत बघारते हुए कब अपनी अपनी ढपली बजाते हुए अपनी अपनी दूकान अलग अलग खोलने लगें कुछ कहा नहीं  सकता। 

      अन्ना आंदोलन के समय ही इंडियन पीस टाइम्स में मेरा एक लेख  छपा था कि इस अन्ना आंदोलन को तीन जगहों से खतरा है अर्थात इसके तीन जोड़ हैं एक तो अन्ना-अरविन्द का ,तो दूसरा  अन्ना - अग्निवेश  का, तीसरा अन्ना- अमित त्रिवेदी  का  आदि आदि! यदि देखा जाए तो अन्ना  के आंदोलन में ये तीन लोग ही विशेष चर्चित रहे और अलग हुए।अबकी बार अन्ना ने किसी अ अक्षर से प्रारम्भ नाम वाले को मुख नहीं लगाया इसीलिए वो जो लक्ष्य लेकर आगे बढे थे उसे पूरा कर पाने में कामयाब रहे !

      सम्भवतः यही कारण है कि अबकी बार अरविन्द केजरी वाल दिल्ली के चुनावों में अपने मिशन में कामयाब रहे क्योंकि उनके पास अभी तक कोई प्रभावी साथी अ अक्षर से प्रारम्भ नाम वाला नहीं था !

  अब अरविन्द केजरी वाल के लिए आवश्यक है कि यदि वो चाहते हैं कि उनके आमआदमी पार्टी आंदोलन को शाश्वत रूप से चलाया जा सके तो उन्हें भी अपने यहाँ बर्चस्व की लड़ाई नहीं पनपने देनी चाहिए साथ ही याद रखकर अपने अंदर की बातों को कम से कम चालीस प्रतिशत तक रहसय मय बनाकर रखना चाहिए जिस गैप को अपनी आध्यात्मिकता से भरने का प्रयास करते रहना चाहिए!

   वैसे भी आम आदमी पार्टी में  स्वयं अरविन्द केजरी वाल ही संतुष्ट नहीं रहेंगे कोई बड़ी बात  नहीं है कि उन्हें ही कोई और विकल्प चुनना पड़े !अभी तो यहाँ उनका मन इस कारण से भी लगा हुआ है कि  दिल्ली के चुनावों में उन्हें  सीटें अधिक मिल गईं हैं जिससे देश विदेश में  आम आदमी पार्टी एवं अरविन्द केजरी वाल  का प्रचार प्रसार हो गया है इससे आम आदमी पार्टी वालों को लगने लगा है कि हमारी साख विशेष बढ़ गई है इससे हम लोक सभा चुनावों भी बहुत कुछ करने में सफल हो जाएंगे किन्तु ये आसान नहीं होगा क्योंकि  दिल्ली में आम आदमी पार्टी अपनी योग्यता के परिणाम स्वरूप नहीं जीती है इसमें प्रमुख दो कारण हैं एक तो भ्रष्टाचार के विरुद्ध आप का अन्ना के साथ चलाया गया आंदोलन से हुआ जन जागरण दूसरा लम्बे समय से सत्ता में रही कांग्रेस से लोगों का मोह भंग होना और विपक्षी दल भाजपा का आपसी कलह में जूझने के कारण सक्षम विकल्प न बन पाना इससे नाराज होकर जनता ने अपने वोट को किसी को न देने की अपेक्षा आम आदमी पार्टी को देना अच्छा समझा है। यहाँ तक तो आम आदमी पार्टी की कोई अच्छाई दिखाई नहीं पड़ती है यदि इसके बाद भी आम आदमी पार्टी अपनी गुड़बिल बनाने एवं बचाने में सफल हो जाती है तो यह उसकी अपनी उपलब्धि होगी और उस पर खड़ा हो पाएगा उसका अपना मजबूत भविष्य !

   दिल्ली के चुनावों में जो सकारात्मक परिस्थिति आम आदमी पार्टी को मिली वो अन्य जगह मिलना सम्भव नहीं हो पाएगा इसलिए वहाँ सफलता की आशा इतनी त्वरित नहीं की जानी  चाहिए   फिर भी शुरुआत बहुत अच्छी नहीं तो अच्छी जरूर है !  लोक सभा चुनावों के बाद आम आदमी पार्टी अपनी शाख उतनी तेजी से बढ़ा एवं बचा पाएगी ऐसा मुझे नहीं लगता है । अन्य पार्टियों से आए हुए नेता लोग आम आदमी पार्टी के लिए विशेष विश्वसनीय नहीं होंगे क्योंकि उनके मन में यदि त्याग की ही भावना होती तो वहीँ जमे रहते किन्तु वहाँ उनका कोई न कोई स्वार्थ बाधित जरूर हुआ है जिस लिए उन्होंने आप से संपर्क साधा है !

मोदी जी का भाषण

आदरणीय मोदी जी आपके गोवा में दिए गए आज के भाषण के लिए आपको बहुत बहुत बधाई !

        मोदी जी !आज पहली बार आपका भाषण सुनकर लोगों को जरूर लगा होगा कि भाजपा का जिम्मेदार प्रधानमंत्री प्रत्याशी जनता के हृदय समुद्र में उतरना चाह  रहा है आज हिला दिया आपने !आज लगा कि आप आम आदमियों से एवं उनकी समस्याओं से न केवल परिचित हैं अपितु उनके समाधान के लिए चिंतित भी हैं उन्हें आज जरूर लगा होगा कि हमारी बेदना की  कसक मोदी जी के मन में भी है इसलिए इन्हें वोट देने  से हमारा भी भला होगा !अन्यथा शहजादे  या उनकी आलोचना और गुजरात की प्रशंसा करके  आप देश एवं देश वासियों को कुछ नहीं दे पा  रहे थे! आपके  प्रशंसा कर्मियों ने भले ही आपके नाम के मन्त्र तथा चालीसाएँ  बनाकर आपकी प्रशंसा के पुल बांधकर आपको हिन्दू धर्म एवं यहाँ की जनता से बड़ा सिद्ध करना प्रारम्भ कर दिया हो किन्तु सोसल मीडिया से लेकर सब जगह गाई जा रही आपकी विरुदावलि से  देश की आम जनता से आपकी दूरी बढती जा रही है मोदी जी वो दूरी इतनी अधिक होती जा रही है कि जिसमें बिना विशेष प्रयास के ही  आपके सामानांतर एक दूसरी राजनैतिक पार्टी खड़ी होती जा रही है जो भाजपा के लिए चिंता का विषय है इसलिए उस गैप को पाटने की जिम्मेदारी भी भाजपा की ही है हम  भाजपा समर्थक होने के नाते आपके अभी तक की वीर रस की रैलियों एवं बहादुरी के भाषणों से बहुत निराश थे क्योंकि जनता विनम्रता पसंद करती आज पहलीबार आपके भाषणों में जनता के दर्द का भी एहसास  दिखा अटल जी के त्याग की प्रशंसा दिखी और भी बहुत कुछ दिखा वोट फर मोदी नहीं अपितु वोट फर इण्डिया दिखा इन सभी पवित्र प्रयासों के लिए आपका बहुत बहुत आभार !

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कुमार विश्वास का अमेठी से चुनाव लड़ना बुरा हो न हो किन्तु किसी को ललकारना बहुत बुरा है !

 कुमार विश्वास को कितना  है अपनी गुडबिल का विश्वास?किस बल पर ललकार रहे हैं मोदी और राहुल को अमेठी से चुनाव लड़ने को ?क्या उन्होंने अमेठी की जनता के साथ कुछ ऐसा सहयोगात्मक काम कर रखा है या उनकी किसी मुशीबत में उनके साथ खड़े हुए हैं !अजीब छिछलापन है केवल ललकारना जीतने के लिए तुक्का लगाना आखिर चुनाव केवल मजाक हैं क्या? 

     बड़े आदमी को अपना प्रतिद्वंद्वी बना लेने का अर्थ ही बड़ा आदमी बन जाना होता है इस दृष्टि से कुमार विश्वास का राहुल गाँधी जी के सामने चुनाव लड़ना बुरा भी नहीं है ।

      सुना है कि मोदी जी को अमेठी से चुनाव लड़ने के लिए आम आदमी पार्टी के नेता ने ललकारा है।मजे की बात तो यह है कि उस नेता ने ललकारा है जिसका अपना कोई वजूद ही नहीं है यह ललकार सुनकर तो लगता है कि चुनाव उसके लिए एक मजाक से अधिक कुछ भी नहीं हैं वह किसी विश्वविख्यात नरेंद्र मोदी जी जैसे नेता को कैसे ललकार सकता है।हाँ, यदि उसे राहुल गांधी हउआ दिखाई पड़ते हैं तो लगा के देख ले एक दाँव शायद सही ही बैठ जाए अन्यथा अपना जाएगा क्या ?किन्तु मोदी जी को सोच समझकर हर निर्णय लेना पड़ता है क्योंकि उनके पास बहुत कुछ है जिसे खोने का खतरा हमेंशा रहता है !

     बचपन से संघ जैसे राष्ट्र भक्त संगठन  में पले बढ़े एवं राजनीति में तरह तरह की जिम्मेदारियों का सफलता पूर्वक निर्वहन किया है कई चुनाव अपने सेवा बल पर जीते हैं उनके किए गए विकास कार्यों की खनक विदेशों तक में सुनाई पड़ती है इस प्रकार से उनका एक गौरव है देश की एक विश्वसनीय पार्टी ने उन्हें अपना प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी बनाया है श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी जैसे महापुरुष जिस पद को सुशोभित कर चुके हैं उसके वे दावेदार माने जा रहे हैं कुल मिलाकर मोदी जी का एक गौरव है और उनके पास प्राशासनिक क्षमता भी है अगर ओ जनता को कोई बचन देते हैं तो वो पूरा भी करेंगे ऐसी उनसे आशा की जा सकती है क्योंकि उनका अनुभव भी है कुल मिलाकर राजनीति में उनकी अपनी एक शाख भी है  दूसरी ओर बेचारे कुमार !

    यहाँ देखना यह पड़ेगा कि अमेठी से चुनाव लड़ने के लिए मोदी जी को ललकारने वाले व्यक्ति का अपना वजूद क्या है यही न कि समाज को झूठा  लालच  देकर  फँसाना ही तो है फँसा लेंगे और करना क्या है यदि जनता ने उस झूठ पर भरोसा कर लिया तो शेर अन्यथा अटैची उठाकर चले आएँगे ये कौन सी बहादुरी हुई ! 

     मैं तो कहूँगा कि यदि इतनी ही हिम्मत थी तो पहले उस संसदीय क्षेत्र में जाकर सेवा कार्य करने चाहिए थे जिनसे प्रभावित होकर जनता वोट देती जनता की सेवा करने से ही तो पता लगता कि चुनाव लड़ने के लिए आप गम्भीर भी हैं। ऐसे तो आज अमेठी में जाकर ललकारने लगे कल कोई ऐरा गैरा आकर कहीं और के लिए ललकारने लगे फिर बनारस में कोई ललकारे ऐसे तो हो गया क्या किसी को ललकारना ही राजनीति है जिसने राजनीति को सेवा भावना से स्वीकार ही नहीं किया है ऐसी आम आदमी पार्टी और उसके नेता क्या चुनावों को मजाक समझते हैं और कुछ भी हो किन्तु अरविन्द केजरीवाल जी विनम्र हैं उनकी भाषायी सभ्यता की सराहना की ही जानी  चाहिए।

  ये अमेठी से  चुनाव लड़ने की इच्छा रखने वाला उनकी पार्टी का कार्यकर्त्ता जनता के द्वारा चुने जाने को केवल जुआँ समझ कर खेलना चाह रहा है क्या ये ढंग ठीक है? आखिर अमेठी की जनता के साथ उन्होंने या उनकी पार्टी ने ऐसा कौन सा अच्छा काम  कर दिया है कि जिस सेवागौरव भाव पूर्वक वहाँ से चुनाव लड़ने के लिए किसी राष्ट्रीय नेता का आह्वान कर रहे हैं वो ! सच्चाई यह है कि जिसके पास खोने को अपना कुछ है नहीं जो कुछ मिलेगा वो मिल जाएगा अन्यथा अपना जाएगा क्या ?इस जुआँड़ी प्रवृत्ति  से चुनाव लड़ना तो चुनावी परंपरा का उपहास करना है जिससे बचा जाना चाहिए । 

     जहाँ तक दिल्ली चुनावों में आम आदमी पार्टी की जीत की बात है यहाँ अन्ना हजारे की प्रसिद्धि का प्रभाव रहा है किरण वेदी जी की कुशल प्राशासनिक क्षमता से प्राप्त की गई प्रसिद्धि का लाभ मिला है यदि कहा जाए कि इन लोगों ने चुनावों में बिलकुल साथ ही नहीं दिया है किन्तु विरोध भी तो नहीं किया है इसलिए जनता ने इसे मौन समर्थन माना है।अरविन्द जी की प्रसिद्धि इस आंदोलन से पहले बिलकुल न के बराबर थी किन्तु सरकारी नौकरी में बड़ी पोस्ट पर होने के बाद जिसे त्याग कर जन सेवा के लिए उतरे हैं उसे जानने के बाद जनता का विश्वास उनके प्रति बढ़ा है जो उचित भी है किन्तु ललकार वो लोग रहे हैं जिन्हें राजनैतिक रैम्प पर चलने में चक्कर आते हों!अरे यदि इतनी ही हिम्मत थी तो दिल्ली के चुनावों क्यों नहीं कूदे !आज इसलिए बड़ी बड़ी बातें करना क्योंकि सत्ता तक दिल्ली में पहुँच गए हैं,किन्तु यह भुलाया नहीं जाना चाहिए कि यहाँ भी भाजपा से आम आदमी पराजित हुई है अर्थात भाजपा से उसकी सीटें दिल्ली में भी कम ही हैं। 

      दिल्ली में 28 सीटें पाने वाली आम आदमी पार्टी अपने को ईमानदारी का मसीहा मान रही है तो 32 सीटें पाने वाली भाजपा क्या उन्हें बेईमान लगती है भाजपा कि तीन प्रदेशों में हुई विजय एवं दिल्ली में भी सभी पार्टियों से अधिक सीटें पाने वाली भाजपा अपने को क्या बेईमान माने?आखिर क्यों हो रहा है आम आदमी पार्टी के बड़बोले शेरों  का दिमाग ख़राब?

    आखिर आमआदमी पार्टी वाले यह कैसे सोचते हैं कि उन्हें जो वोट मिले हैं वो उनकी ईमानदारी के कारण मिले हैं किंतु भाजपा को जो वोट मिले हैं वो उसकी बेईमानी के लिए मिले हैं!भाजपा को वोट देनेवाले आम आदमी के प्रति उनकी इतनी घटिया सोच क्यों है? आखिर भाजपा शासित राज्यों की आम जनता के विषय में आम आदमी पार्टी के ऐसे राजनेताओं की इतनी घटिहा सोच क्यों है यदि ऐसा न होता तो उनमें किसी राष्ट्रीय स्तर के नेता को ललकारने का दुस्साहस ही न होता ! 

        केवल आम आदमी पार्टी के कहने से भाजपा को भ्रष्ट कैसे कह दिया जाए जबकि  ईमानदारी में भाजपा अरविन्द से कहीं पीछे तो है ही नहीं यह माना जा सकता है कि आज भाजपा के कुछ वर्त्तमान नेता लोग काँग्रेसी कुटिल मानसिकता के शिकार हो रहे हैं जिन्हें सुधरने की  आवश्यकता है।

         ईमानदारी में भाजपा अरविन्द से कहीं पीछे नहीं है अपितु चार कदम आगे है यदि ऐसा न होता तो एक वोट से अटल सरकार गिरी न होती और दूसरी बात दिल्ली को छोड़कर शेष तीन प्रदेशों की विजय भी भाजपा की ईमानदारी के ज्वलंत उदहारण हैं जिसमें राजस्थान और मध्यप्रदेश में भाजपा की बड़ी विजय हुई है !

  एक और बड़ी बात यह है कि भाजपा के मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में भाजपा की सरकारें पहले से ही थीं किन्तु एंटी इन्कम्बेंसी को धता बताते हुए भाजपा की बड़ी विजय आम आदमी के विश्वास पर खरा उतरने के कारण ही हुई है जबकि दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने अभी तक केवल दूसरों के दोष ही दिखाए हैं उसके पास अपना दिखाने के लिए बातों के अलावा कुछ भी नहीं था यह दुर्भाग्य ही है !क्या बिना सरकार में आए कुछ किया ही नहीं जा सकता है इसका मतलब हर किसी को कुछ करने के लिए उसकी अपनी सरकार होनी जरूरी होगी!

    भाजपा न केवल ईमानदारी पर भरोसा करती है अपितु उसके द्वारा किए गए विकास कार्यों से जनता  संतुष्ट भी है उसे किसी आम आदमी से ईमानदारी की सर्टिफिकेट की आवश्यकता नहीं है!

संन्यास से सत्यानाश की ओर..बढ़ते बाबा लोग ... !

ऐसे बाबा बबाइनों का विश्वास ही क्यों किया जाए जो स्वयं ही धर्म भ्रष्ट हों !

 

धर्म के क्षेत्र में धार्मिक आचार संहिता का पालन कड़ाई से क्यों नहीं किया या कराया जाता है ?शास्त्रीय  का विशवास ने बर्बाद किया धर्म विश्वास खोते जा रहे हैं 

       बड़े बड़े व्यापारों,कथा कीर्तनों एवं और भी सभी प्रकार के सांसारिक प्रपंचों में फँसे बाबाओं पर अब कितना और कैसे भरोसा किया जाए? हो सकता है कि ये लोग दोषी न हों किन्तु बिना आग के धुआँ नहीं उठता  यह भी सच है आखिर संदेह होने की गुंजाइस ही क्यों दी गई ? वैसे भी इनके रहन सहन आचार व्यवहार में कहीं तो वैराग्य झलकता !वास्तव में असंतुष्ट इंद्रियों की संस्तुष्टि के लिए क्या केवल बाबा बनना ही एक मात्र विकल्प बचा है ? यदि यही करना था तो कुछ और काम कर लेते कम से कम सनातन धर्म की प्रतिष्ठा तो बच जाती ।इन बाप बेटों को टी.वी.पर नाचते गाते देखा गया है शर्म आती है देखने में यही इनका  बाबात्व था क्या ?

    इसी प्रकारकथा कीर्तनों के नाम पर नाचते गाते फिरने वाले और भी लोग हैं वो भी इनसे अलग नहीं होंगें अन्यथा कल कल के पैदा बच्चे बच्चियों को लीप पोत कर लाल पीले कपड़े  पहनाकर बैठा दिया जाता है कथा कहानियाँ बकने को और नहीं तो क्या भागवत जैसे  कठिन ग्रन्थ में क्या है इनके कहने समझने लायक? बेचारों की अभी पढ़ने लिखने खेलने कूदने की उम्र होती है किन्तु दिहाड़ी के मजदूर बनाकर बैठा दिए जाते हैं  इनके पीछे बड़े बड़े गिरोह सक्रिय होते हैं जो इनके पीछे रहकर अपना उल्लू सीधा किया करते हैं ये बाल मजदूरी के तहत दंडनीय माना जाना चाहिए वैसे भी ऐसी जगहों पर जो कुछ भी होता है उसमें जयकारे केवल धर्म के लगाए  जाते हैं वो भी दिखाने के लिए बाकी आशारामी संस्कृति वहाँ भी खूब फल फूल रही होती है किन्तु जो पकड़ा जाए सो अपराधी अन्यथा धर्मराज !

         इस लिए हमारा विरोध किसी बाबा विशेष का विरोध नहीं हैं हमारा उद्देश्य तो धार्मिक समुदाय को शास्त्रीय जीवन पद्धति अपनाने का है अर्थात विरक्तों से वैराग्य युक्त जीवन जीने की अपेक्षा करना है अन्यथा इस प्रकार के आरोप धर्म का बहुत बड़ा नुकसान कर रहे हैं । जिसका दंड सारे सनातन धर्मी समाज को भोगना पड़  रहा है।

डॉ.शेष नारायण वाजपेयी

संस्थापक -राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान

भाजपा का स्वयंभू मसीहा !

  एजेंडे के खींच तान में उलझा भाजपा हाईकमान !

    बात बस इतनी है कि काले धन का मुद्दा किसका है,इसी प्रकार से भ्रष्टाचार एवं  टैक्स मुक्ति आदि से जुड़े मुद्दे भाजपा के हैं या किसी और के ?और यदि किसी और के हैं तो क्या भाजपा उनके लिए उस और की मदद कर रही है !और यदि यह सच है तो भाजपा क्या इतने दिन में अपने चुनावी मुद्दे भी नहीं बना पाई है क्या?यदि यह सच है तो उसकी अपनी चुनावी तैयारियाँ  क्या हैं और यदि उसे दूसरों के एजेंडे पर ही चुनाव लड़ना होगा तो मुख्य विपक्षी दल होने के नाते उसकी अपनी योग्यता  क्या है?

  कल का कौतूहल-

    देश की मुख्य विपक्षी पार्टी के  समर्थक एक बाबा जी ने आजकल बीते कुछ दिनों से अपने स्वर कुछ बदल दिए हैं हमने तो टेलीवीजन चैनलों पर ही सुना है कि अब वे अपना समर्थन देने के लिए कोई शर्त भी रख रहे हैं कि यदि ऐसा तो वैसा अर्थात भाजपा यदि मेरी शर्त मानेगी तो मैं उसका समर्थन करूँगा। अभी तक पानी पी पीकर भाजपा का समर्थन करने की कसमें खाने वाले बाबा जी का अचानक बदला हुआ रुख देखकर हर कोई हैरान था कि आखिर क्या कुछ घटित हुआ जो बाबा जी को अचानक करवट बदलनी पड़ी !खैर ये बात तो लोगों की  है किन्तु बाबा जी देखने में परेशान से  लग रहे थे और वे हों भी क्यों न !संभवतः वे सोच रहे होंगे कि लोकपाल का श्रेय तो अन्ना हजारे ले गए अरविन्द केजरीवाल को  दिल्ली की सरकार मिल गई !शोर हमने भी खूब मचाया किन्तु हमारे हाथ तो कुछ भी नहीं लगा!यदि विदेश से काला धन लाने का और टैक्स मुक्ति का मुद्दा ही हमारा बन जाए अर्थात ये हो जाए कि बाबा जी के दबाव में आकर ही काला धन विदेश से लाने पर मुख्य विपक्षी पार्टी तैयार हुई है यही स्थिति टैक्स मुक्ति मुद्दे की हो जाए जिससे किसी तरह इन सफलताओं के हीरो बाबा जी माने जाएँ !भारतीय धर्मनीति, योगनीति, आयुर्वेद नीति ,साधुनीति, व्यापार नीति के बाद  राजनीति के हीरो भी बाबा जी ही मानें जाएँ !और हर क्षेत्र में मजबूत सिक्का उन्हीं का चले!

     राजनैतिक वार्ता के लिए दिल्ली की कुछ बात ही और है इस चक्कर में अबकी बार अपने वार्षिकोत्सव के साथ साथ अपना सारा आश्रम ही उठाकर बाबा जी  दिल्ली ले आए और फिर बुलाकर बैठाए  गए देश की मुख्य विपक्षी पार्टी के बड़े बड़े नेतात्रय और उनके सामने बाबा जी ने फेंका अपना एजेंडा ,किन्तु भला हो राज्य सभा में नेता प्रतिपक्ष का जिन्होंने इतनी सफाई से पानी फेरा आखिर वकील साहब जो ठहरे उन्होंने बाबा जी की और उनके आयोजन की और उनकी देश भक्ति की प्रशंसा करते हुए साफ कह दिया कि भ्रष्टाचार समाप्त करने का प्रमुख मुद्दा तो हमारी पार्टी का है ही साथ  ही कालाधन वापस लाने के लिए भी हमारी पार्टी निरंतर संघर्ष करती रही है! इसके लिए ही तो  हमारे बयोवृद्ध नेता ने चार साल पहले रथ यात्रा भी निकाली थी इसीलिए यह तो हमारी पार्टी का  प्रमुख मुद्दा पहले से रहा है आज भी है इसमें  कहने की कोई बात ही नहीं है !इसके बाद  बोलने की बारी आई पार्टी अध्यक्ष जी की उन्होंने भी बड़ी सफाई से कालाधन वापस लाने वाला मुद्दा अपनी पार्टी के पास ही रखा! फिर पार्टी के पी.एम.प्रत्याशी जी का नंबर आया उन्होंने गम्भीरता पूर्वक अपना एवं अपनी पार्टी का पक्ष रखते हुए बाबा जी को प्रणाम एवं उनकी प्रशंसा आदि खूब कर दी पर कालाधन वापस लाने से लेकर भ्रष्टाचार मुक्ति, किसान हित, टैक्स मुक्ति आदि सारे मुद्दे अपनी पार्टी के एजेंडे के रूप में ही बड़े जतन से सँभालकर अपनी पार्टी के पास ही रखे और भाषण पूरा कर दिया! इस बात से बाबा जी की आत्मा संतुष्ट नहीं हुई आखिर वे जो कहलाना चाह रहे थे वह बात तो सामने आई ही नहीं इसके बाद बाबा जी  स्वयं माइक लेकर खड़े हुए और फिर से उसी एजेंडे पर बोलने के लिए लगाया पी.एम. इन वेटिंग के मुख में माइक शायद उन्हें आशा रही होगी कि धोखे से भी कोई ऐसा शब्द निकल जाए जिससे लगने लगे कि काले धन वाले बाबा जी के मुद्दे को हम लोग एवं हमारी पार्टी गम्भीरता से लेगी ऐसा कुछ भी उनके मुख से निकलवाने पर पूरी तरह अमादा लग रहे थे बाबा जी! सोचते होंगे कि यदि ऐसा कुछ हुआ तो  ले उड़ेंगे किन्तु वे भी मजे खिलाड़ी हैं आखिर पी.एम.प्रत्याशी ऐसे ही थोड़े बनाए गए हैं उन्होंने अपनी पहले कही हुई बातें ही दोहरा  दीं इससे बाबाजी की बेचैनी घटी नहीं !अब निराश हताश बाबा जी ने माइक उठाकर पार्टी अध्यक्ष जी के मुख में लगाकर उन्हें एजेंडे पर बोलने को बाध्य किया किन्तु वे भी पार्टी अध्यक्ष जो ठहरे उन्होंने भी सारे एजेंडे फिर से अपनी पार्टी के पास ही रखते हुए अपनी पहले कही हुई बात ही दोबारा कह दी!सारा खेल बिगड़ गया अब बाबा जी ने स्वयं अपने हाथ में माइक पकड़ कर उन दोनों लोगों के सामने रखने लगे घुमा घुमाकर अपने एजेंडे और उन दोनों लोगों से हाँ कराना चाह रहे थे किन्तु जब उससे कोई रस नहीं निकला तो बाबा जी स्वयं अपने एजेंडे बोलते गए और पब्लिक को समझाते गए कि ये लोग सब कुछ ठीक ही करेंगे किन्तु उन दोनों  नेताओं के मुख से कुछ नहीं निकलने पर निराश हताश बाबा जी की बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी कि ये तो जा रहे हैं कुछ हल भी नहीं निकला ये तो सारा भाँगड़ा ही बेकार जा रहा है! फिर जाते जाते उन्होंने अंतिम दाँव मारने की कोशिश की और समाज से कहने लगे कि आप लोगों की जो उचित,सच्चाई युक्त और न्यायसंगत योजनाएँ होंगी उसमें ये लोग आप लोगों का साथ अवश्य देंगे!इन्हीं अमृत बचनों के साथ उन्होंने अपनी हारी थकी बाणी  को बिश्राम दिया, भगवान् उनकी  आत्मा को शांति दे !दूसरी ओर वो अध्यक्ष जी और भावी प्रधान मंत्री जी किसी तरह से पीछा छुड़ाकर अपने अपने लोकों  को गए !भाजपा के कर्मठ एवं निष्ठावान कार्यकर्ताओं के लिए हमारे जैसे हैरान परेशान लोगों ने भी चैन की साँस ली !कि चलो बच गई पार्टी एवं पार्टी के असंख्य कार्यकर्ताओं की श्रम साधना!और जो उपलब्धि होगी उसका  श्रेय अब उन्हीं को मिलेगा जो उसके वास्तविक हक़दार हैं। दूसरा कोई अपने वाक्चातुर्य से पार्टी को मिलने योग्य उसका  श्रेय उससे लेकर अब अपने हक़ में नहीं कर पाएगा !

   भाजपा का समर्पित चिंतक होने के नाते मेरा निवेदन तो यही है कि अब भाजपा को किसी की शर्त के सामने घुटने नहीं टेकने चाहिए और अपने बल पर चुनाव लड़ना चाहिए। वैसे भी जिस देश में राष्ट्रीय पार्टियाँ दो ही हों कोई यदि एक से दुश्मनी कर ही ले तो अपना साम्राज्य सुरक्षित  रखने के लिए किसी दल से तो जुड़ना ही पड़ेगा अन्यथा दलों वाले लोगों के द्वारा दल दल में फँसा देने का भय तो उसे भी हमेंशा ही रहेगा !इसलिए किसी के शर्त के सामने घुटने नहीं टेकने चाहिए !

      वैसे भी कुछ हो न हो किन्तु भाजपा को एक बात तो समाज के सामने स्पष्ट कर ही देनी  चाहिए कि उसे आम समाज के सहारे चलना है या साधू समाज के ?       जो चरित्रवान विरक्त तपस्वी एवं शास्त्रीय स्वाध्यायी संत हैं उनके धर्म एवं वैदुष्य में सेवा भावना से सहायक होकर विनम्रता से साधुओं का आशीर्वाद लेना एवं उनकी समाज सुधार की शास्त्रीय बातों विचारों के समर्थन में सहयोग देना ये और बात है! सच्चे साधू संत भी अपने धर्म कर्म में सहयोगी दलों नेताओं व्यक्तियों कार्यक्रमों में साथ देते ही  हैं किन्तु उसके लिए कोई शर्त रखे और वो मानी जाए ये परंपरा ही ठीक नहीं है ! 

        विदेश से कालाधन लाने जैसी भ्रष्टाचार निरोधक लोकप्रिय योजनाओं के लिए भाजपा को स्वयं अपने कार्यक्रम न केवल बनाने अपितु घोषित भी करने चाहिए ताकि ऐसी योजनाओं का श्रेय केवल भाजपा और उसके लिए दिन रात कार्य करने वाले उसके परिश्रमी कार्यकर्ताओं को मिले।वो भाजपा की पहचान में सम्मिलित हो जिन्हें लेकर दुबारा समाज में जाने लायक  कार्यकर्ता बनें उनका मनोबल बढ़े !अन्यथा कुछ योजनाओं का श्रेय नाम देव ले जाएँगे कुछ का कामदेव और भाजपा के पास अपने लिए एवं अपने कार्यकर्ताओं के लिए बचेगा क्या ? ऐसे तो दस लोग और मिल जाएँगे वो भी अपने अपने मुद्दे भाजपा को पकड़ा कर चले जाएँगे भाजपा उन्हें ढोती फिरे श्रेय वो लोग लेते रहें ।

      इसलिए भाजपा को मुद्दे अपने बनाने चाहिए उनके आधार पर समर्थन माँगना चाहिए । अब यह समाज ढुलममुल भाजपा का साथ छोड़कर अपितु सशक्त भाजपा का साथ देना चाहता है। 

        जो ऐसी शर्तें रखते हैं ऐसे लोगों के अपने समर्थक कितने हैं और वो उनका कितना साथ देते हैं यह उनके आन्दोलनों  में देखा जा चुका है किसी ने पुलिस के विरोध में एक दिन धरना प्रदर्शन भी नहीं किया था सब भाग गए थे । 

        दूसरी बात संदिग्ध साधुओं की विरक्तता पर अब सवाल उठने लगे हैं अब  लोग किसी बाबा की अविरक्तता  सहने को तैयार नहीं हैं किसी भी व्यापारी या ब्याभिचारी बाबा से अधिक संपर्क इस समय लोग नहीं बना  रहे  हैं सम्भवतः इसीलिए कथा कीर्तन भी घटते जा रहे हैं ।

       इसलिए भाजपा समर्थकों का भाजपा से निवेदन है कि वो अपने मुद्दों पर ही समाज से समर्थन माँगे तो बेहतर होगा !




Saturday, 11 January 2014

क्या अब टोपियों के सहारे ही भाजपा भी करेगी राजनीति ?

केजरीवाल की सफलता का राज क्या उनकी टोपियों में छिपा है आज सपा की हरी टोपी भाजपा की भगवा  बसपा चाहेगी तो वो भी नीली पहनेगी और आम आदमी पार्टी तो इस युग में साक्षात टोपी जनक ही है!

        भाजपा  की टोपियाँ देखकर लगभग हर किसी ने कहा या सोचा कि भाजपा केजरी वाल की नक़ल कर रही है मीडिया ने भी इस बात को इसी ढंग से लिया है इन तर्कों का खंडन करने के लिए भाजपा के पास कुछ भी नहीं था क्योंकि सम्भवतः भाजपा ने  यही सोचकर भाजपा ने टोपी कार्यक्रम चलाया ही होगा किन्तु क्यों ?खैर;न जाने क्यों और कब तक भाजपा  अपनी भद्द यों ही पिटवाती रहेगी !क्या इससे केजरीवाल के उस बयान  को बल नहीं मिला है जिसमे उन्होंने  कहा था कि इन नेताओं को राजनीति करना हम सिखाएँगे तब तो ये छोटे मुख बड़ी बात लग रही थी किन्तु भाजपा के टोपी कार्यक्रम ने केजरी वाल के उस बयान  को सच करके दिखा दिया है !

     इसमें एक बात और सामने आई है कि भाजपा को संघ ने नसीहत दी है कि आम आदमी पार्टी को  गम्भीरता से लिया जाना चाहिए !यदि ऐसा हुआ भी हो तो इसका मतलब क्या है कि आम आदमी पार्टी की देखा देखी टोपी लगानी शुरू कर दी जाएँ ! आखिर जनता को क्या समझ रही है भाजपा ?क्या उसे ऐसा लग रहा है कि जनता केजरी वाल की टोपी पर फिदा होकर उसका समर्थन करती चली जा रही है! यदि ऐसा है तो वास्तव में भाजपा वालों के साथ साथ हमारे जैसे उसके समर्थकों का प्रबल दुर्भाग्य है कि  उसकी आशा की किरण भाजपाके नेता लोग अब कल के नेता केजरीवाल से टोपियाँ  लगाना सीख रहे हैं !यदि टोपियाँ  लगाकर ऐसा ही कोई राजनैतिक ड्रामा करना था तो जनता के बीच जाना था राजघाट जाने का आखिर औचित्य क्या था? यदि कोई कार्यक्रम ही देना था आखिर चुनावों का समय है इसमें हर कार्यक्रम जनता से जुड़ा होना चाहिए टोपियाँ लगाने एवं राजघाट पर बैठ कर क्या सिद्ध करना चाहती थी भाजपा ?

         यह चुनावी समय है भाजपा को जनता से जुड़े मुद्दे उठा कर जनता में फैलाने चाहिए साथ ही यह वह समय है जिसमें भाजपा को अपने कार्यक्रम जन जन तक पहुँचाने चाहिए कि यदि वह सत्ता में आई तो दूसरी पार्टियों की अपेक्षा क्या और अधिक उत्तम कार्यक्रम जनता को देगी अर्थात भाजपा जनता को वह सेवा सुख देगी जो  अन्य दल नहीं दे सकते! किन्तु यह इसलिए आसान नहीं होगा क्योंकि उस सेवा की पुष्टि उसे अपने पिछले शासन काल से करनी होगी अन्यथा प्रश्न उठने लगेंगे कि जब आप पहले सत्ता में थे तब ऐसा क्यों नहीं किया था उसके जवाब भी ढूंढने होंगे जो परिश्रम पूर्वक ही किया जा सकेगा जिसका अभ्यास अब भाजपा को बिलकुल नहीं रहा है क्योंकि भाजपा वालों ने जनता की ओर दिमाग लगाना ही वर्षों पहले छोड़ दिया था । किसी वार्षिक मेले की धार्मिक मूर्तियों की तरह ही चुनावों के समय  अपनी पार्टी को धो पोछकर चुनावों में उतार देती है भाजपा  जनता के बीच । जनता को जो समझ में आता है वह भी कुछ वोट भाजपा की झोली में भी अपनी श्रद्धानुशार डाल देती है उसी में संतोष कर के शांत होकर अगले चुनावों की आशा में बैठ जाती है भाजपा । इसके आलावा जनता से सीधे जुड़ने का कोई कार्यक्रम नहीं दिखाई पड़ा है।  भाजपा के द्वारा बिगत कुछ वर्षों से कभी कोई आंदोलन  प्रभावी रूप से नहीं चलाया जा सका है ।भाजपा की रणनीति  इतनी कमजोर  होती है कि  जनता के बीच जाने से पहले  ही हर मुद्दे की पोल खुल जाती है और समाज यह समझ कर करने लगता है उपहास कि भाजपा का यह चुनावी हथकंडा है क्योंकि दुर्भाग्य से भाजपा जनता के दुखते घावों को सहलाने का कोई विश्वसनीय कार्यक्रम बना ही नहीं पा रही है !

      श्रद्धेय अटल जी के कार्यक्रमों में झलकती थी लोक पीड़ा! उनकी बोली भाषा भाषणों  आचरणों में झलका करती थी लोक सेवा की भावना !आखिर आज भी उनसे सम्बंधित खबरें कितनी श्रद्धा से सुनते हैं लोग !आखिर क्या सुगंध है उस महापुरुष के व्यवहार में कि गैर राजनैतिक लोग भी उनकी उन से हुई मुलाकातों बातों भाषणों की याद कर कर के अभी भी आँखे भर लेते हैं!  मैं विश्वास से कह सकता हूँ कि हर किसी को अटल जी के जीवनादर्शों में कुछ न कुछ मिला जरूर है उसी याद को सँजोए हुए राजनीति में या विशेषकर भाजपा में आदर्श ढूँढ रहे हैं लोग!संघ और भाजपा में और भी ऐसे अनेक महामनीषी हुए हैं जिनकी आवाज में सुनाई पड़ती थी जन पीड़ा ! मैं क्षमा याचना के साथ कहना चाहता हूँ कि इन्हीं कारणों से आज भाजपा जनता से दूर होती जा रही है । एक और बड़ी बात कि जिसके पास अटल जी जैसे जनता से जुड़े नेताओं के आचरण शैली की  विराट सम्पदा हो वह उसे भूलकर केजरीवाल की देखा दूनी टोपी लगाते घूम रहे हैं क्या इसे जनता से जुड़े मुद्दों के आभाव में अथवा घबड़ाहट में किया गया आचरण नहीं माना  जाना चाहिए ?

        भाजपा अभी तक  जनता से जुड़े कोई मुद्दे नहीं उठा पाई है ऐसी कोई बात जनता के सामने नहीं रख पा रही है जो जनता के हृदय से जुड़ी  हो जिसे जनता सीधे स्वीकार कर सके अर्थात जो सीधे जनता के हृदयों तक उतर जाए, जैसे भाजपा के बयोवृद्ध नेताओं की बातें उतरती रही हैं उसी प्रकार से वही शैली आज केजरी वाल ने अपना रखी है किन्तु  भाजपा उस शैली की खोज में तो है नहीं अपितु टोपी पहनती घूम रही है कितना हल्का बच्चों जैसा आदर्श है यह !

          भाजपा ने राष्ट्रीय स्तर पर आज जिसे अपनी नैया का खेवन हर बना रखा है भाजपा के उस  महान मनीषी के भाषणों को सुनकर जनता के हृदयों में उतरने की कभी कोई गम्भीर कोशिश दिखाई ही नहीं दे रही है । उनके भाषणों में भारी भ्रम है कि वो प्रधान मंत्री का चुनाव लड़ रहे हैं या कि मुख्य मंत्री का !यदि वो अपने को वास्तव में भाजपा का प्रधानमंत्री का प्रत्याशी मानते हैं तो उन्हें हम और हमारे प्रदेश के भाषणों से बाहर निकलना होगा अपितु अपनी पार्टी के  आदर्श  प्रधानमंत्री अटल जी केआदर्शों योजनाओं कार्यक्रमों को लेकर समाज में जाना होगा जिनसे समाज सुपरिचित है उन्हें वह जानता भी है मानता भी है उनसे  वह प्रभावित भी रहा है वही वो आज सुनना   भी चाह रहा है जिसकी पर्याप्त आपूर्ति नहीं की जा पा रही है भाजपा के द्वारा !जो कर रहे हैं केजरीवाल वो  भाजपा के विकास के लिए भी अत्यंत  आवश्यक है !जिसे भाजपा भी अपने प्रारंभिक काल में अपनाती रही है वह सादगी चाहिए जनता को !उसमें दिखता है देशवासियों को अपनापन।  इसलिए पार्टी के पी.एम.प्रत्याशी जी को चाहिए कि  आप भले ही किसी प्रदेश के मुख्य मंत्री भी हैं जो नहीं होना चाहिए था किन्तु यदि हैं ही तो अपने प्रदेश के विकास की चर्चा करते समय आपकी पार्टी से शासित अन्य प्रदेशों को भी वही प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए जिसका नितांत अभाव रहता है आपके भाषणों में । अपने और अपने प्रदेश की चर्चा के अलावा सारी  चर्चाएं खानापूर्ति मात्र होती हैं । दूसरी बात आपके  भाषणों में प्रहार भ्रष्टाचार पर होना चाहिए और जनता के हृदयों तक उतरने वाले मुद्दे उठाए जाने चाहिए किन्तु प्रहार राहुल गाँधी  पर क्यों वो हैं क्या ?यदि पारिवारिक पृष्ठभूमि उनकी इस प्रकार की न होती तो उनकी निजी क्षमता क्या है किन्तु आपने अपने को अपने त्याग और परिश्रम से बुना है इसलिए आपके सामने उनका व्यक्तित्व कहीं ठहरता भी नहीं है फिर आप अपनी वाणी का विषय उन्हें क्यों बनाते हैं ?निजी तौर पर जिनका सामाजिक या राजनैतिक कोई वजूद ही नहीं दिखता है!

     जहाँ तक बात राहुल की है यदि वो अपने पैतृक व्यवसाय को आगे बढ़ा रहे हैं तो इसमें गलत क्या है उन्हें जनता का समर्थन मिल रहा है जब नहीं मिलेगा तो कुछ और धंधा सोचेंगे इसी प्रकार सोनियां गांधी जी को क्यों केंद्रित करना? वो जिनकी पत्नी हैं  उनका जो व्यापार होता उसे संभालतीं चूँकि उनका व्यवसाय ही राजनीति है तो वो उसे न संभालें तो करें क्या ?लोक तंत्र में जनता ही मालिक होती है उसने उन्हें लगाम सौंपी है इसलिए उनकी आलोचना करने का मतलब जनता के निर्णय को चुनौती देना है इसलिए उनकी आलोचना न करके उनके किए गए भ्रष्टाचारी कार्यों की ही आलोचना की जानी चाहिए और अपने भावी कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाने चाहिए आगे का निर्णय जनता का है !

      एक और बात है कि अपनी विनम्र शैली से जनता के सामने अपनी योजनाएं प्रस्तुत की जानी चाहिए  किन्तु ऐसा नहीं हो पा रहा है, कैसे कैसे वीर रस के नाम रखे जाते हैं रैलियों के !हुंकार रैली, ललकार रैली, दुदकार रैली फुंकार रैली,शंख नाद रैली आदि आदि बारे नाम! कितने कर्णप्रिय हैं ये शब्द कितना सुन्दर है इनमें सन्देश ? क्या यही हैं संघ के संस्कार! किन्तु ये सारी चुनौतियाँ किसको दी जा रहीं हैं जनता को या विरोधी पार्टियों को? अजीब सी बात है कि केजरीवाल जहाँ विनम्रता का प्रयोग कर रहे हैं भाजपा वहाँ वीर रस का प्रयोग करे और टोपी पहनकर बराबरी करने से भाजपा का कुछ लाभ हो पाएगा क्या ? केजरी वाल हाथ जोड़े घूम रहे हैं जनता पर असर उनका अधिक होना स्वाभाविक है ।

      भाजपा वाले बताते घूम रहे हैं कि हमें 272 + सीटें लेनी हैं जैसे जबरजस्ती लेनी हैं! जनता को बताते घूम रहे हैं कि प्रधानमंत्री भाजपा का बन रहा है एक बड़बोले स्वयंभू जोगी एवं स्वयंभू प्रवक्ता अपनी चुलबुलाहट रोक नहीं सके और छत्तीसगड़ में बता आए कि भाजपा को तीन सौ सीटें मिल रही हैं !जनता भी सोच लेगी कि जब इन्हें तीन सौ सीटें मिल ही रही हैं तो हम अपना वोट बर्बाद क्यों करें हम किसी और को दे देंगे !इसलिए आखिर समाज में काल्पनिक चुनावी परिणाम बताते घूमने की जल्द बाजी क्यों है ?दूसरी ओर केजरी वाल अपने कार्यक्रमों को परोस रहे हैं और हाथजोड़ कर जनता से सहयोग  मांग रहे हैं जनता उनकी इस शैली को पसंद कर रही है वोट जनता से ही मिलना है। पैसे के बल पर भाड़े के प्रशंसा कर्मी कितने भी रख लिए जाएं और कराइ जाए अपनी जय जय कार किन्तु वो वोट तो नहीं पैदा कर देंगे !वोट तो जनता ही देगी । 

    आज केजरीवाल ने अपनी हालत ऐसी बना रखी है कि "रावण रथी विरथ रघुवीरा " अर्थात रणस्थल में रावण के पास रथ है किन्तु राम जी के पास नहीं है जनता का स्नेह श्री राम जी को उनकी सादगी के कारण मिला मिला रावण पराजित हुआ इसी आर्थिक अहंकार से केजरीवाल अपने को अलग रखते दिखाई पडने का प्रयास कर रहे हैं  जबकि भाजपा आर्थिक अहंकार की ओर बढ़ती  हुई दिख रही है। 

       भाजपा के जिन कार्यकर्ताओं के लिए आवश्यक है कि वो अपने वोटर से संपर्क करें उसके सुख दुःख सुनें उसका सहयोग भी करें किन्तु दुर्भाग्य से वो टिकट पाने के लिए कुछ टिकट माँगने लायक बनने के लिए प्रयास किया करते हैं हमेंशा जोड़ तोड़ में लगे रहते हैं कभी केंद्रीय नेताओं के पास तो कभी प्रांतीय नेताओं के पास भाग दौड़ में लगे रहते हैं कौन जाए जनता के पास या जनता के दुःख दर्द टटोलने समय कहाँ होता है कभी कोई क्षेत्रीय कार्यकर्ता  मिल भी गया तो उसे बता दिया कि अबकी अपनी सरकार बनने जा रही है। जिससे वोट माँगने हैं उसे चुनाव परिणाम बताने जाते हैं जबकि अरविन्द केजरीवाल अपने कार्यकर्ताओं को जनता की समस्याओं के समाधान के लिए जनता से जुड़ने के लिए प्रेरित करते हैं ऐसी परिस्थिति में भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को आम जनता के दुःख दर्द टटोलने के लिए क्यों नहीं प्रेरित करती है !

           कार्यकर्ता अपने अपने क्षेत्र में अपने अपने समर्थकों सहित आम जनता के विश्वास को जीतने का प्रय़ास क्यों नहीं करते हैं उनके साथ घुलमिलकर रहने में अपना अपमान क्यों समझते हैं कुछ भाजपा के कार्यकर्ताओं में मानवता का क्षरण इतनी तेजी से हो रहा है कि आम जनता से वे स्वयं तो संपर्क करते ही नहीं हैं अपितु जो लोग स्वयं जुड़ने आते हैं उनसे मिलते नहीं हैं यदि मिले तो उनकी बात नहीं सुनते हैं यदि बात सुनी तो उनकी मदद तो नहीं  ही करते हैं अपितु उसकी समस्याओं के समाधान के लिए काम न करना पड़े इसलिए उस प्रकरण में उसी व्यक्ति की इतनी गलतियां निकाल देंगे कि जिससे वह मदद माँगने लायक ही न रह जाए !

    कुछ बड़े बड़े भाजपाइयों को शिष्टाचार का भी अपमान करते देखा जाता है वो इतने नमस्ते चोर हो गए हैं कि अपने बराबर वालों को तो छोड़िए अपने से बड़े बुजुर्गों के नमस्ते का भी जवाब नहीं देते हैं शिर तक नहीं हिलाते हैं दिल्ली में ही भाजपा के जिन बड़े कार्यकर्ताओं को साफ सुथरी छवि के नाम से पार्टी पर  प्रोत्साहन  मिलता है उन बड़ों में यह शिष्टाचार नहीं होता है कि उनके पैर छूने वाले अपने कार्यकर्ताओं  या आम लोगों के लिए दो शब्द ही प्रेम से बोल दें लोगों से हंसकर बात करने में तो मानों अपनी बेइज्जती ही समझते हैं ऐसे स्वच्छ पवित्र नेताओं को अबकी बार दिल्ली के विधान सभा के चुनाओं के बाद केजरीवाल से लिपट चिपट कर मिलते एवं हंस हंसकर बातें करते देखा गया तब उनके अपने विश्वसनीय कई लोगों के फोन भी मेरे पास आए उन लोगों ने बड़ा आश्चर्य जताया कि यार अपने विधायक जी भी तो हंस बोल लेते हैं हो सकता है कि हमें इस लायक ही न समझते हों !इसलिए  क्या भाजपा को अपनी दिल्ली पराजय से कुछ  सीखने की भी जरूरत है? यद्यपि जिन प्रदेशों में भाजपा की विजय हुई है वहाँ कार्यकर्ताओं की भावनाओं के सम्मान करने की परंपरा भी  होगी अन्यथा जनता का इतना अपार स्नेह उनको कैसे मिल पाता ?ऐसी जगहों पर भाजपा के पैर हिला पाना बहुत कठिन होगा वो अरविन्द केजरीवाल ही क्यों न हों !

     इस लिए मेरा निवेदन है कि भाजपा को घबड़ाहट में टोपी पहनकर अपना उपहास कराने की  जरूरत नहीं है अपितु आवश्यकता इस बात की है कि भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को भी प्रेरित करे कि वे लोग सभी वर्गों के मान सम्मान की सुरक्षा के लिए सेवा पूरी भावना के साथ उनसे जुड़ें ।यदि ऐसा कर पाना  किसी भी प्रकार से सम्भव हुआ तो कहा जा सकता है कि भारत का अगला प्रधान मंत्री भाजपा से ही होगा!




















































































































































भाड़े जब आप अपने आखिर अपने भाषणों भाषणों में कितना जनता से केवल शब्द कौतुक

 या की यह गम्भीर चिंता का विषय है इसे उनका अभी भाजपा किन्तु  तरह को करना होगा आसान नहीं होगा कि सेवा किस प्रकार से करेगी



Sunday, 5 January 2014

केजरीवाल जी की कहाँ गई नैतिकता और कहाँ गया आम आदमियत्व ?

आम आदमी पार्टी  बहुमत सिद्ध करने में तो सफल हुई किन्तु जनता का विश्वास खो दिया! केवल लाल बत्तियाँ आप को पसंद नहीं थीं इसलिए सरकार बदल दी गई !आश्चर्य !!!   

       आम आदमी पार्टी का सारा भांगड़ा देखने के बाद धीरे धीरे समाज को अब एक बात तो समझ में आने लगी है कि नैतिकता, सिद्धांतवाद, सत्यवादिता एवं सेवा भावना आदि  से कोसों  दूर जाती जा रही आमआदमी पार्टी अब धीरे धीरे काँग्रेस पार्टी के अनुरूप ही काम करने लगी है।महँगाई से लेकर सब कुछ वही बिल्कुल वही !आमआदमी पार्टी सरकार में अंतर केवल इतना हुआ है कि गाड़ियों की टोपियाँ अर्थात लाल बत्तियाँ उतारी गई हैं और आम आदमियों के शिर पर लगा दी गई हैं। केवल लाल बत्तियाँ "आप" को पसंद नहीं थीं इसलिए सरकार बदल दी गई!धन्य है आमआदमी पार्टी!!!

       दिल्ली वासियों की जो समस्या जहाँ थी वो वहीँ पर है सत्ता में जैसे लोग तब थे वैसे लोग अब हैं पहले जो लोग थे वो भी केवल अपने को ईमानदार बताते थे आमआदमी पार्टी वाले भी केवल अपने को ईमानदार बताते हैं! 

     यदि इनमें नैतिकता थी तो जिन पार्टियों  को ये लोग भ्रष्ट कहते रहे दलाल कहते रहे उनकी कृपा पर आश्रित होकर इन्हें सरकार नहीं चलानी चाहिए थी !इन्हें जल्दी क्या थी ।

      यदि इन्होंने सुरक्षा न लेने का सिद्धांत बनाया ही था तो उसका पालन करना चाहिए था अन्यथा ऐसे आडम्बर कहने की आवश्यकता ही क्या थी!पहले तो सादगी के चक्कर में मेट्रो के अंदर मीडिया घुसा ले जाना फिर कार पर चढ़े घूमना ये कैसा सिद्धांत ?

     पहले तो काँग्रेस को गाली देना फिर उसी के समर्थन से सरकार चलाना ये कैसा सिद्धांत ?

      सरकारी गाड़ी न लेने की बात कहकर फिर सरकारी गाड़ियों पर चढ़े घूमना ये कैसा सिद्धांत ?

       सादगी से रहने की बात कहकर फिर सरकारी हाईटेक आवास में रहने के लिए टूट पड़ना वो तो भला हो समाजा  और  मीडिया का जिन्होंने आम आदमी पार्टी की स्वार्थान्ध आत्मा को झकझोरा कि आप तो त्यागी विरागी हैं आपकी आत्मा का इस तरह डोलना ठीक नहीं है तब जाकर किसी तरह त्याग के सिद्धांतों पर टिकी आम आदमी पार्टी की आत्मा किन्तु जिन्हें जो समझना था उन्होंने मन की भावना तो समझ ही ली है कि आप और आप वाले चाहते क्या हैं आप ही सोचिए कि ये कैसा  सिद्धांत?

     केजरीवाल जी न जाने क्या सोचकर उनके समर्थन से मुख्यमंत्री केजरीवाल बने हैं ऐसी भी क्या जल्दी थी ?चूँकि काँग्रेस और भाजपा को वो भ्रष्ट पार्टियाँ मानते हैं इसलिए  इन पार्टियों का समर्थन लेना उनके जैसे स्वच्छ पवित्र नेता को दो कारणों से शोभा नहीं देता है पहला तो उन्होंने ऐसा कह रखा है इसलिए दूसरी बात कि उन्होंने ही जिन दलों को भ्रष्ट माना है उनसे आशा कैसी और क्यों ?

          जनता से सलाह लेकर सरकार बनाने की बात एक मजाक से अधिक कुछ भी नहीं हैं अपनी बातों और सिद्धांतों पर कायम रहना आपको जनता नहीं सिखाएगी आपको अपने बनाए मानकों का पालन स्वयं करना चाहिए था ऐसे तो जनता की   आड़ में छिप कर बड़ा से बड़ा पाप कोई भी करता रहेगा और कह  देगा कि हमने तो जनता से राय ले  ली थी । सच्चाई यह है कि यदि जनता सलाह देने की ही स्थिति में होती तो ये सारी  दुर्दशा अब तक क्यों भोगती ?

          सबसे महत्त्व पूर्ण बात यह है कि क्या ये सच नहीं है कि जो जनता काँग्रेस को गलत मानती थी उसने केजरी वाल को वोट दिया है और जो जनता केजरीवाल की बातों पर भरोसा नहीं करती थी उसने काँग्रेस को साथ दिया है तो परस्पर विरोधी विचारधारा के वोट से बने विधायकों के समर्थन से बनी सरकार को नैतिक कैसे कहा जा सकता है ?क्योंकि काँग्रेस को वोट देने वाले लोग जिन केजरीवाल जी को पसंद नहीं करते हैं तब तो उन्होंने काँग्रेस को वोट दिया है फिर यदि काँग्रेस समर्थन के बहाने उस वोट से केजरीवाल का समर्थन करती है जो वोट केजरीवाल को पसंद नहीं करता है या यूँ कह लें कि केजरीवाल की बातों पर भरोसा नहीं करता है।  उस वोटर की ताकत काँग्रेस पार्टी  केजरीवाल को कैसे दे सकती है और केजरीवाल को लेना ही क्यों चाहिए क्या काँग्रेस ने अपने उस वोटर से सलाह लेकर केजरी वाल का समर्थन किया है जिसने ऐसी मुशीबत में भी काँग्रेस के प्रति समर्पित होकर उसके आठ विधायक जितवाए हैं! आखिर लोकतांत्रिक प्रक्रिया में उन विधायकों एवं वोटरों को बंधुआ मजदूर तो नहीं माना जा सकता है इस समर्थन में उस वोटर की भावना का सम्मान होते नहीं दिख रहा है इस लिए काँग्रेस और केजरी वाल दोनों से लोकतांत्रिक भावना के पालन में चूक हुई है! 

     अरविन्द जी इसी लिए कहा गया है कि जिस चीज को खाना होता है उसके प्रति घृणा  नहीं पैदा की जाती है। आप चाहते तो दूसरों को भ्रष्ट और बेईमान कहने के बजाए अपनी ईमानदारी आगे बढ़ा सकते थे हो सकता है कि उससे वोट इतनी जल्दी न मिलते और सरकार न बन पाती किन्तु आपकी ईमानदारी के सिद्धांत बचाए जा सकते थे जिनके लिए व्यक्ति सारे जीवन प्रयास करता है आखिर सरकार बनाने की इतनी भी क्या जल्दी थी । 

      जिन्हें आपने भ्रष्ट कहा था आज उनके गले लगना  ठीक नहीं लगा! फिर भी आपकी अभिलाषा पूरी हुई आप मुख्यमंत्री बन कर प्रसन्न हैं आपकी समाज साधना  सफल हुई इसके लिए आपको पुनः बधाई !धन्यवाद !!!