Saturday, 2 May 2020

कोरोना समाप्ति का वैदिक पूर्वानुमान !
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संविधान निर्माता बनने के लिए आरक्षण के अतिरिक्त भी किसी योग्यता की आवश्यकता होती है क्या ?
जिस देश का संविधान बनाने का श्रेय जिन भी लोगों को दिया जाता है उनमें ऐसा विशेष क्या होता है जो दूसरों में नहीं होता है | ऐसी अतिरिक्त योग्यता प्रतिभा कृतित्व आदि योग्यताओं का नाम क्या हैं जो उनमें पाए जाते हैं दूसरों में नहीं ?

वेदविज्ञान और ब्राह्मणों का वैज्ञानिक योगदान !


        वैज्ञानिक अनुसंधानों से समाज को लाभ पहुँचाते रहने के कारण ब्राह्मणों को सम्मान मिला करता था पीढ़ियों की पीढ़ियाँ पूजी जाती रहीं हैं अब जिन ब्राह्मणों में वैसी योग्यता का अभाव है वे भी उसी दुर्दशा को भोगने पर विवश हैं जो अन्य जातियों के अयोग्य लोग भोगते आ रहे हैं | 
    इसलिए केवल जातियों से जुड़ी अज्ञानता पूर्ण बातों के कहने सुनने के लिए अब बहुत थोड़ा समय बचा है सरकारों ने अपनी बुद्धिमती वैज्ञानिक एजेंसियों को इसके परीक्षण के लिए लगा रखा है जिसे नकारपाना उन वैज्ञानिकों के लिए मुश्किल हो रहा है जो सरकारी प्रक्रिया के तहत अभी तक वैज्ञानिक कहलाकर ऐसे विषयों की निंदा करने में गर्व किया करते थे आज इस वेद विज्ञान के आगे उनका भी सर चकरा रहा है आज उन्हें कोई जवाब नहीं सूझ रहा है फेस बुक पर चोंच लड़ा लेना और बात होती है जब सच्चाई से सामना होता है तब कुछ लिखकर देने में बड़ों बड़ों के हाथ की कलम काँपने लगती है | उस स्थिति का सामना आज कुछ बड़े पदों पर बैठे लोगों को करना पड़ रहा है अपने वेदवैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा यह परिस्थिति पैदा करने के लिए जिम्मेदार जो व्यक्ति है  भी संयोग से ब्राह्मण जाति में ही हुआ है किंतु यह परिक्षण जातियों के आधार पर नहीं अपितु अनुसंधानों के आधार पर हो रहा है |  इसलिए रही बात ब्राह्मणों की तो ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में जातियों को लाना ठीक नहीं आधुनिक विज्ञान का उदय अभी हुआ है प्राचीन विज्ञान के उपासक तो हमेंशा से ब्राह्मण रहे हैं उसका सम्मान उन्हें हमेंशा से मिलता रहा है उसे मिटाया भी नहीं जा सकता | आज कुछ लोग उन्हीं प्राचीन ब्राह्मण वैज्ञानिकों की निंदा आलोचना केवल इस लिए करना चाहते हैं क्योंकि उनके पुरखे ऐसा कोई योगदान दे नहीं पाए यदि उन्होंने ऐसा किया होता तो हो सकता है ब्राह्मणों से अधिक सम्मान भी उन्हें मिलता क्योंकि सम्मान तो ब्राह्मण का नहीं अपितु उनकी योग्यता का होता है | ब्राह्मणों में भी अयोग्य लोग हैं जो आज भी दर दर की ठोकरें खाते घूम रहे हैं और अन्य जातियों के भी योग्य लोग अब स्वाभिमान से जीना प्रारंभ कर चुके हैं इसलिए जातियों के बल पर जीवन जीना अब दिनों दिन दूभर होता जा रहा है वह ब्राह्मण हो या किसी अन्य जाति का हो | जातिगत आरक्षण के बल पर जीवन जीने वालों का कितना सम्मान बन पाया है कितना स्वाभिमान बना है कितनी संपत्तियाँ जोड़ी जा सकी हैं | बिना योग्यता के किसी को कोई सम्मान नहीं मिलता केवल जातियों के आधार पर भीख तो मिल सकती है किंतु सम्मान मिलता उनके प्रति शृद्धा नहीं बन सकती है | एक आरक्षण भोगी
     ऐसी मूर्खता पूर्ण बातें अब अप्रासंगिक हो चुकी हैं | किसी गाँव में कोई हाथी घुस आता है तो उससे डर कर कुछ कुत्ते भौंकते हुए उससे दूर भागने लग जाते हैं वे चाहें तो अन्य पशुओं की तरह वे भी जहाँ जैसे हैं वैसे बने रहें हाथी से उन्हें भी कोई खतरा नहीं है वे किंतु वे हाथी को देखकर भागते भी हैं और भौंकते भी हैं और भौंकते उसी की ओर देखदेख कर हैं | अपना वजूद बचाकर रखने के लिए उन्हें ऐसा करना पड़ता है हाथी तो गाँव में कुछ देर के लिए आते हैं कुत्ते तो गाँव में ही रहते हैं गाँव ही उनके लिए एक तरह की फेसबुक होता है जहाँ उनका भौंक पाना संभव होता है जंगलों में जाकर हाथी को चुनौती देना उनके बश की बात भी नहीं होती | इसी तरह उनके पिता पितामह आदि भी यही करते चले गए वे अपना स्वभाव छोड़ ही नहीं पाए यही आगे की भी पीढ़ियाँ करती रहेंगी जबकि उनके अतिरिक्त कुछ गंभीर जीव जंतु पशु पक्षी आदि भी होते हैं हाथी के आने पर भी वे न भौंकते हैं न डरते हैं और न ही हाथी के पास जाते हैं अपितु उस ओर ध्यान ही नहीं देते हैं हाथी आया तो उनकी बला से | इससे उनका कुछ बिगड़ता भी नहीं है | 
    इस प्रक्रिया का पालन यहाँ भी किया जा सकता है ब्राह्मणों के बिषय में ध्यान ही क्यों देना उनकी योग्यता अयोग्यता पर ध्यान होना चाहिए उन्हें देखकर या उनके विषय में सोचकर भौंकना क्यों ?हमें अपनी योग्यता के आधार पर उनसे बड़ी रेखा खींच लेनी चाहिए दुनियाँ जिस योग्यता के आधार पर कभी उन्हें पूजती रही है आज उन्हें कोई दूसरा दिखेगा तो वे उसे पूजने लगेंगे समाज किसी की जाती नहीं अपितु योग्यता से जुड़ा होता है यह सच्चाई जिन्हें समझ में जितनी जलती आ जाती है वे उतनी जल्दी इंसान बन जाते हैं अन्यथा किसी हाथी के आते ही उसके सामने अपना वजूद सिद्धकरने की मजबूरी उन्हें आजीवन ढोनी पड़ती है |  
     जो जो कुछ है उसे कुछ और नहीं नहीं बनाया जा सकता किसी घड़े को कुछ और कैसे बनाया जा सकता है वस्तुतः जो जो कुछ होता है उसे उसी बात से होती है क्योंकि वो उसका दंड भोग रहा होता है !एक बिहार के व्यक्ति किसी दूसरे को बिहारी कह कर गालियाँ दे रहे थे !मैंने उनसे पूछा आप भी तो बिहारी हैं तो उन्होंने कहा तुम चुप रहो यदि मैं इसे बिहारी नहीं कहूँगा तो ये मुझे बिहारी बना देगा !इसलिए ये कहना हमारी अपनी मज़बूरी है क्योंकि काफी लोगों को मैं बता चुका हूँ कि मैं बिहारी नहीं हूँ !इसीप्रकार  कुछ लोगों को लगता है कि उन्हें कोई दूसरा मूर्ख बना रहा है जबकि वे जन्म से ही ऐसे होते हैं किंतु कोई उनकी इस सच्चाई को समझ न जाए इसलिए वे दूसरों को सावधान किया करते हैं कि मूर्ख क्यों बना रहे हो जबकि दोषी वे स्वयं होते हैं जिसे छिपाने के लिए उन्हें खुद को ज्ञानवान होने का आडंबर करना पड़ता है अन्यथा किसी दूसरे में इतनी हिम्मत कहाँ होती है कि वो किसी बुद्धिमान व्यक्ति को मूर्ख बनाकर  दिखा दे यदि ऐसा हो सकता होता तो ब्राह्मण अब तक ब्राह्मण नहीं रहे होते और न ही दलित वर्ग के लोग दलित रहे होते अपितु वे वही बन जाते सरकारें तथा समाज उन्हें जो कुछ बनाना चाहता है किंतु बनाने से कुछ नहीं होता जो जो  है वो वही रहता है | 
      आज तक किसी को नहीं पता है कि संविधान निर्माता बनने के लिए किस योग्यता की आवश्यकता होती है ?
देश के संविधान निर्माता जिन्हें बताया गया उनमें ऐसी कौन सी अतिरिक्त योग्यता थी जो दूसरों में नहीं थी या ऐसे बड़े पद उस समय भी आरक्षण के आधीन हुआ करते थे ?या ऐसे बड़े पद उन्हें देना अनिवार्य हुआ करता था जातीय आधार पर जो बड़े वर्ग को प्रभावित करने में सक्षम होते थे | उन्हें भय से किसी विशेष योग्यता की अपेक्षा किए बिना भी ऐसे लोगों को इस पद के योग्य समझ लिया जाता था !या फिर सवर्णों अर्थात ऊँची जाति वालों को बुरा बताकर उन पर दलितों के शोषण का झूठा आरोप लगाकर उनकी निंदा करके उन्हें गालियाँ देकर जिस प्रकार से आज लोग नेता विधायकी  सांसदी  मंत्री मुख्यमंत्री आदि सर्वोच्च पदों तक पहुँचने में सफल हो जाते जाते हैं कहीं यहाँ भी उसी प्रक्रिया का पालन तो नहीं हुआ है ?क्योंकि उस समय भी एक से एक लक्षणों से तो ऐसा ही लगता है |
    वैसे भी जिसको  जिस ब्राह्मण जाति के विद्वान् से केवल विद्या ही नहीं अपितु भोजन भी पाकर बचपन बिताना पड़ा हो !उसी ब्राह्मण जाति की स्त्री के हाथों की बनी रोटियाँ खाकर जवानी बितानी पड़ी हो उसी ब्राह्मणी ने मृत्यु पर्यन्त जिसका साथ दिया हो वो आजीवन उन्हीं ब्राह्मणों की आलोचना करता रहा हो ये बड़ी हिम्मत की बात है !इसके बाद ऐसे व्यक्ति के अनुयायी  उन्हीं ब्राह्मणों की निंदा करने लगते हों  उन्हें अपने हृदय पर हाथ रखकर देखना चाहिए कि उस स्त्री के साथ उसने कैसा व्यवहार किया इसके बाद क्या उस वर्ग में अन्य स्त्रियाँ नहीं थीं जिनसे पुनः विवाह कर लिया जाता किंतु उसने वैसा नहीं किया अपितु आजीवन उस वर्ग से दूरी बनाए रखी जिसके साथ खड़े होने की दुहाई देता रहा और विवाह करना था तो उस  वर्ग की स्त्री से किया जिसकी आलोचना करता रहा |