Wednesday, 21 January 2015

भाजपा को किरनवेदी जी से समझौता करना ही था तो केजरीवाल क्या बुरे थे !

              किरनवेदी जी से समझौता करना ही था तो केजरीवाल क्या बुरे थे !
 सत्ता बहुत कुछ होती है किन्तु सबकुछ नहीं होती ! सत्ता के लिए इतना बड़ा बलिदान !दाँव पर लगा है दिल्ली भाजपा के वरिष्ठ नेताओं का स्वाभिमान !!ऐसे सत्ता में औना पौना हिस्सा तो केजरीवाल भी दे सकते थे! काँग्रेस मुक्त दिल्ली का अभियान तो केजरीवाल से भी पूरा किया  सकता था !!!

 
 भाजपा के कार्यकर्ताओं पर जब पार्टी ने ही भरोसा नहीं किया तो जनता को भरोसा किस मुख से दें !
    दिल्ली भाजपा का कार्यकर्ता आज भी ईमानदारी से लगा हुआ है किन्तु उसकी बातों का प्रभाव नहीं पड़ा रहा है वो करे तो क्या करे ! दिल्ली में भाजपा कार्यकर्ताओं की कोई गलती नहीं है उन्हें बदनाम किया जाना ठीक नहीं है यदि दुर्भाग्य से पार्टी पराजित भी होती है तो दोष कार्यकर्ताओं के मत्थे मढ़ना ठीक नहीं होगा ।जिस गेम में उन्हें विश्वास में  लिया  ही नहीं गया उसके लिए उनकी गलती कहाँ है !दिल्ली भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के मुरझाए मुख मंडलों पर मंडरा रही मलिनता एवं मीडिया के सामने निरुत्तर वाणी और कृत्रिम हँसी  ,मीडिया की चोचले बाजी सुनकर भाजपा से जुड़े हर आम आदमी को पीड़ा होती है !जिनके विरुद्ध पार्टी कार्यकर्ता कभी आवाज बुलंद करता रहा आज वही दूसरे दलों के लोग उन्हें सभ्यता समझा रहे हैं !ऐसे मायूस कार्यकर्ताओं की सहन शीलता की भी कोई सीमा है ।


                             काँग्रेस
काँग्रेस अपनी संभावित पराजय से सुपरिचित होते हुए भी उसने अपने कार्यकर्ताओं के स्वाभिमान के साथ समझौता नहीं किया है !



किरनवेदी जी यदि CM न भी बन सकें तो PM बना देना चाहिए !
     प्रधानमंत्री पद के लिए भी तो वो बहुत अच्छी हैं  और जनादेश अभी भी पार्टी के पास है इसके ये उन्हें चुनाव भी नहीं लड़ना पड़ेगा ! उन्हें पार्टी सीधे तौर पर बना सकती प्रधानमन्त्री !आखिर समर्थन उसके पास है !
      यदि ये फैसला पहले ही हो जाता और सौभाग्य से वो बन पातीं देश की प्रधानमंत्री तो उनकी योग्यता का लाभ पूरे देश को अब तक मिलने लगा होता क्योंकि किरनवेदी जी योग्य हैं कुशल प्रशासक की उनकी अपनी स्वच्छ छवि है यदि उनकी योग्यता का लाभ लिया ही जाना था तो प्रधानमंत्री पद को सुशोभित करके वो देश के लिए बहुत कुछ कर सकती  थीं , संपूर्ण देश उनकी क्षमताओं  से लाभान्वित होता !इस भूल सुधार की गुंजाइस तो अभी भी है। इसके बाद जब पार्टी के बड़े बड़े नेता उनके सामने बैठकर आदेश की बाट जोह रहे होंगे तब समझ पाएँगे दिल्ली में पार्टी कार्यकर्ताओं की पीड़ा !
              

ओबामा की कार देखने को भारत बेक़रार !
     ओबामा जी ! अपनी कार में बैठाकर हमारे नेताओं को भी घुमा देते एकबार !क्योंकि हमारे देश में ऐसी कारें खरीद पाना कैसे संभव है जहाँ के नेता देश के लिए नहीं अपितु केवल अपने एवं अपनों के लिए ही जीते और काम करते हों जिससे सारा पैसा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता हो !

ओबामा जैसी कार अपने यहाँ क्यों नहीं हो सकती !
  चवन्नी अठन्नी के नेता जब राजनीति में घुसते हैं उस दिन से साइकिल छोड़कर जहाज पर चलने लगते हैं बिना किसी उद्योग व्यापार के भी सारी सुख सुविधापूर्ण जीवन जीते हुए भी वही चवन्नी अठन्नी की कीमत वाले  नेता करोड़ों अरबों के हो जाते हैं ये धन आता आखिर कहाँ से है !अपनी संपत्ति बढ़ाने के लिए राजनीति करने वाले लोग देश के लिए कोई काम क्यों करेंगे !




ओबामा जैसी कारें हमारे देश में क्यों नहीं बन सकतीं !

   हमारे देश के प्रतिभाशाली योग्य वैज्ञानिकों को उचित सम्मान नहीं मिल पाता कई बार उन्होंने ऊँची जातियों में जन्म लिया होता है इसलिए उनका बहिष्कार कर दिया जाता है इसलिए वो बाहर चले जाते हैं वहाँ उनकी योग्यता का सम्मान होता है !

कितनी अच्छी होगी ओबामा की वो कार !जिसकी प्रशंसा करते हमारा मीडिया थक नहीं रहा है !!!


यदि चुनाव लड़ना अपने बश का नहीं था तो भाजपा के लिए केजरीवाल क्या बुरे थे !
         किरन वेदी जी की अपेक्षा उनके पास तो सरकार चलाने का अनुभव भी है वाणी भी विनम्र है जनता से सीधे संपर्क करते हैं आँख मिलाकर बात भी करते हैं किरण जी की तरह अरविंद जी भी अन्नावादी हैं !यदि किरण जी अधिकारी रही  हैं तो अरविन्द जी भी अधिकारी रह चुके हैं किरण जी की अपेक्षा अरविन्द ने राजनीति में जाने का फैसला किरण जी से पहले कर लिया था  !किरण जी को राजनीति में औरों की इच्छा के अनुशार चलना होगा जबकि केजरीवाल अपनी पार्टी के सर्वे सर्वा हैं किरण जी उस पार्टी में हैं जहाँ एक बार असफल हो जाने के बाद दूसरी बार पार्टी अपने प्रत्याशी को मुख नहीं लगाती है ऐसे  प्रत्याशियों की लम्बी लाइन है जबकि केजरीवाल असफल होने के बाद भी डटे हैं ऐसे लोगों का आत्मबल बढ़ा रहता है ! दिल्ली वालों के लिए भी अच्छा होता कि एक चुनाव में ही सरकार बन जाती बार बार चुनाव नहीं करवाने पड़ते खर्च बचता !कांग्रेस का वजूद है ही नहीं दिल्ली में आराम से सरकार बन जाती !कार्यकर्ताओं में भी जोश होता क्योंकि केजरीवाल के अपने कार्यकर्त्ता भी थे ऐसे किरण जी के साथ अपना तो कोई नहीं आया वही खाली मूली आई हैं जबकि लोकतंत्र में शिर गिने जाते हैं ! किरण जी को दिल्ली की राजनीति में प्रमोट करने के लिए क्या भाजपा लड़ रही है चुनाव !
संघ के संस्कार अप्रासंगिक क्यों ? 
  संघ संस्कारी भाजपा को  किरन वेदी के सहारे ही यदि चुनाव लड़ना था तो अरविन्द क्या बुरे थे ! किरन वेदी हों या अरविन्द हैं तो दोनों अन्ना संस्कारी ही ,दोनों ही लोग बड़े अधिकारी रह चुके हैं दोनों ही भ्रष्टाचार भगाना चाह रहे हैं ! फिर चुनाव लड़ना यदि भाजपा के अपने बश में नहीं था तो जैसे किरण जी से समझौता किया  ही  गया वैसे अरविन्द से कर लेने में क्या बुराई थी जीवन के पैंसठ वर्ष बीत जाने के बाद किरन जी को भाजपा की याद आई और भाजपा ने उन्हें वो महत्त्व दे दिया जिसके लिए पार्टी की सेवा में जन्म जन्मान्तरों से समर्पित लोग सपने सँजोए हुए हर चुनावों में आश लगाते थे !वो लोग पार्टी को विजय दिलाने में बेशक सफल न हो पाए किंतु पार्टी के प्रति उनके समर्पण में संदेह नहीं है उनके हृदयों में भाजपा का नाम लिखा है किन्तु आज उन्हें पीछे करके जिन्हें आगे किया गया है वो अभी  तक भाजपा और काँग्रेस की राजनैतिक शैली को समान रूप से कोसती रही हैं जिनके जवाब भाजपा के समर्पित कार्यकर्ताओं को देने पड़ते रहे हैं आज किरण जी को पार्टी में लेते समय उन वरिष्ठ लोगों को विश्वास में नहीं लिया गया जिन्होंने अपना बहुमूल्य जीवन भारतीय जनता पार्टी को दिया है अब उन्हें किरण जी का अनुगमन करना होगा !किंतु यह सब किस लिए और से सीखने होंगे चुनावी हें विशवास लोगों को पीछे किया गया जो हमेंशा ,हों में आईं भाजपा और संघ संस्कारों से सुपोषित नहीं है भाजपा है दिल्ली के चुनावों में अबकी काँग्रेस विलुप्त सी हो गई है ,ऐसे में संघ संस्कारों और अन्ना संस्कारों के बीच होना था अबकी बार दिल्ली का चुनाव !किंतु ने चहरे
     संघ के संस्कारों से सुसिंचित भाजपा अन्ना संस्कारों से जुड़े अरविंद से चुनाव लड़ रही है किन्तु इसका क्या मतलब

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