Saturday, 19 December 2015

काँग्रेस और केजरीवाल भ्रष्टाचार विरोधी जो जाँच नहीं सह सके उसे आम जनता क्यों सहे ? इज्जत तो आखिर उसकी भी होती है !

जाँच में इतनी घबड़ाहट तो दुर्भाग्य से कहीं यदि दंड की नौबत आई तो ये तो जीने नहीं देंगे देशवासियों को !
    राजनीति में घुसते समय दो दो पैसे के लिए परेशान नेता लोग आज करोड़ों अरबों के ढेरों पर आसन जमाए बैठे हैं उन्होंने व्यापार कोई किया नहीं नौकरी करते नहीं हैं फिर भी संपत्ति करोड़ों अरबों की बनती जा रही है ये आई कहाँ से !जाँच में इसके स्रोत तो बताने होंगे वो पता नहीं हैं क्योंकि वो तो ऑटोमैटिक होते हैं जो बताए नहीं जा सकते केवल अनुभव करने होते हैं । ये दुनियाँ जानती है कि जिम्मेंदारी से जाँच हुई तो भ्रष्टाचारियों को फँसने से बचाया नहीं जा सकता तो घबड़ाहट तो होती ही है किंतु उन्हें ये प्रूफ कैसे करें !
    यदि ऐसा न होता तो पढ़ने वाले विद्यार्थी परीक्षाओं से कहाँ डरते हैं बौखलाहट तो तब होती है जब मन में पाप होता है अफसर पर आरोप लगते ही मुख्यमंत्री की त्योरियाँ ऐसी चढ़ीं ऐसे ऊलजुलूल बकने लगे और कोसने लगे प्रधान मंत्री जी को उनकी घबड़ाहट देख कर लग रहा था कि जैसे भ्रष्टाचार की आत्मा ही प्रवेश कर गई हो मुख्यमंत्री में !बारे  ईमानदार राजनीति के पुरोधा !
    काँग्रेस को अपने नेता पर और केजरीवाल को अपने अफसर पर विश्वास रखते हुए जाँच का सामना करना चाहिए था !
     जाँच ईमानदारी की एक परीक्षा है  इसलिए जाँच होने से बेईमानों का गौरव घटता है ईमानदारों का सम्मान बढ़ता भी है  केजरीवाल जी हों या काँग्रेस जाँच का नाम सुनते ही जब दोनों पगला उठे तो आम जनता क्यों करावे अपनी जाँच ?क्या उसकी कोई इज्जत नहीं होती !  जाँच का नाम सुनते ही दोनों डर गए बौखलाहट इतनी कि PMको भी बोलने लगे ऊट पटाँग ! लालच ये कि हे भगवान PM साहब जाँच रुकवा दें ! क्या यही है कानून का सम्मान ?
 केजरीवाल जी !CM शीला दीक्षित जी को या उनकी सरकार को अपशब्द बोलकर आप CM बन गए कहीं इसी नियत से तो PM को अपशब्द नहीं बक रहे हैं आप ! केजरीवाल हों या काँग्रेस !मैं दोनों से पूछना चाहता हूँ कि नरेंद्र मोदी जी का समर्थन जनता ने करके उनकी सरकार बनवाई तो इसमें मोदी जी का अपराध क्या है ?
 नेता हों या नेताओं के पिट्ठू अफसर ऐसे  तो कितना भी बड़ा अपराध करें किंतु उनकी जाँच नहींं की जा सकती !प्रधानमन्त्री के अंडर में लगभग सारी जाँच एजेंसियाँ आती होंगी मतलब क्या किसी पर भी अपराध या भ्रष्टाचार के आरोप लगें तो वो अपने को सत्यवादी ईमानदार आदि सिद्ध करने के लिए देश की बड़ी से बड़ी जाँच एजेंसी को कटघरे में खड़ा कर दे या देश के प्रधान मंत्री को कटघरे में खड़ा कर दे कितनी ओछी हरकत है ये !यदि देश की कानूनी प्रक्रिया की कार्य पद्धति पर संशय भी हो तो भी  न्यायालयों पर भरोसा तो रखना ही चाहिए यदि लोकतंत्र की प्रक्रिया जीवित रखनी है तो !अन्यथा अपने विरुद्ध किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार का आरोप लगते ही सीधे प्रधान मंत्री को धमकी देने लगना उन पर ऊटपटाँग आरोप मढ़ने लगना वो भी तब जब ऐसा पहले भी किया जा चुका हो जिसमें अपने विधायक पर फर्जी डिग्री के आरोप प्रमाणित भी हुए हों जबकि उस समय भी केंद्र सरकार पर ऐसे ही आरोप लगाए गए थे जो गलत सिद्ध हुए !ऐसी परिस्थिति में धमकी किसी को भी किसी भी प्रकार से दी जाए जिससे ये संकेत जाते हों कि सम्बंधित व्यक्ति पर भ्रष्टाचार के संशय का निराकरण करने में तकलीफ हो रही है तो ये देश के कानून के साथ बगावत मानी जानी चाहिए !
       देश के आम लोगों के साथ भी तो ऐसी परिस्थिति पैदा होती होगी कई बार वो भी तो झूठ फँसाए जा रहे होते होंगे इसका मतलब क्या उन्हें भी सम्बंधित लोगों पर पक्षपात का आरोप लगाकर प्रधानमंत्री को गाली देने लगना चाहिए !आप लोग यदि समझ सकें तो समझें कि वर्तमान समय में प्रधानमंत्री पद की प्रतिष्ठा के साथ जितना खिलवाड़ विपक्ष कर रहा है वो अनुचित है बात बात में प्रधान मंत्री पर आरोप लगाने लगना वो भी तब जब प्रधान मंत्री जी उन आरोपों पर कुछ बोल न रहे हों उचित नहीं है पराजित विपक्ष का भी लोकतंत्र की रक्षा का उतना ही दायित्व होता है जितना सत्तापक्ष का !प्रतिपक्ष ऐसा क्यों सोचता है कि संसद में वो कितना भी गलत व्यवहार करे किंतु दोष सत्ता पक्ष का ही माना जाएगा !इसलिए ये सोच ही गलत है !
     आम जनता पर अपराध के झूठे आरोप भी लगें तो भी किसी शातिर अपराधी के श्रेणी में रखकर पूछ ताछ के नाम पर अपराध कबुलवाने के लिए हर हथकंडा अपनाया जाता है उनपर और भरसक कोशिश होती है कि उसे अपराधी सिद्ध कर दिया जाए !उनके माता पिता आदि अभिभावक अपने निरपराध सदस्य को दी जा रही यातनाओं को न सह पाने के कारण ये सदमा झेल नहीं पाते कई बार मर जाते हैं कई बार आत्महत्या तक कर लेते हैं और बाद में जब फैसला आता है तब निरपराध सिद्ध होने के कारण वो बाइज्जत बरी कर दिया जाता है किंतु तब तक उसे इतना बड़ा दंड मिल चुका होता है जिसकी भरपाई इस जन्म में की ही नहीं जा सकती !       
    मेरे कहने का आशय है कि भ्रष्टाचारी  नेता और सक्षम अफसर पकड़े जाएँ तो बदले की भावना से की गई कार्यवाही का आरोप लगाकर या उसे सरकार प्रेरित बताते हुए  आरोपी नेताओं के द्वारा तुरंत आंदोलन छेड़ने की धमकी देकर जाँच एजेंसियों पर दबाव बनाया जाए जाँच प्रक्रिया से जुड़े अफसरों को भयभीत किया जाए ! दूसरी ओर ये कहना कि कानून का हम सम्मान करते हैं न्याय प्रक्रिया पर हमें भरोसा है इसी कानून का सम्मान करना कैसे माना जा सकता है !आखिर ये सुविधा किसी आम नागरिक को क्यों नहीं है
   अफसरों के भ्रष्टाचार पर कानूनी शिकंजा कसे तो बदले की भावना का आरोप लगाकर हवा में उड़ा दिया जाए ये  उचित है क्या ? नेताओं पर अपराध के आरोप लगें तो  बदले की कार्यवाही और आम लोगों पर लगें तो अपराधी!आम लोगों पर अपराध का आरोप झूठा भी लगे तो भी अपराधी ! और नेता अफसर निरपराध !

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