जिन्होंने फेस बुक सुविधा हमें और आपको दी है
जरा सोचो तो उनके भी विषय में कल्पना करके ,
उन्होंने तो निभा डाला जो था दायित्व उन सबका
हम सब लोग भी दायित्व क्या अपना निभा पाए !
लिखी खूब प्रेम की गाथा किसी के लाल गालों पर ,
किसी की मस्त मुसुकाहट सुनहरे रंग के बालों पर !
बढ़े यूँ प्यार आपस में ख़ुशी संसार हो सारा ,
क्या ऐसे संस्कारों पर कभी कुछ 'शेष' लिख पाए !!
लेखक -डॉ.शेष नारायण वाजपेयी
कहो किस हेतु 'साईं ' को कहूँ भगवान हो मेरे,
क्या सीताराम राधेश्याम शिव से आस्था टूटी !
अगर ऐसा नहीं है तो सनातन धर्म के लोगो
कहो साईं के चमचों से कि मंदिर से निकल जाओ !!
लेखक -डॉ.शेष नारायण वाजपेयी
शान्ति का क्षण एक भी मिल तो नहीं पाता कभी मुझको
कभी साईं कभी भगवान दिनभर याद आते हैं
अगर साईं को भूलूँ भी ये सोचूँ ब्यर्थ था बुड्ढा ,
तो पाखंडी सनातन धर्म के सोने नहीं देते !
-लेखक -डॉ.शेष नारायण वाजपेयी
बताते टेलिवीजन पे जो अक्सर ज्योतिषी बातें,
पता क्या अनपढ़ों को उन किताबों में लिखा क्या है !
अगर कुछ ज्ञान ही होता तो बताते क्यों पता फिरते,
वो छिपके भी न छिप पाते पता उनका लगा लेते !!
-लेखक -डॉ.शेष नारायण वाजपेयी
दो. आजम ने सरकार की मिट्टी करी पलीत ।
चित्त मुलायम के चढ़ी तब अमरसिंह की पीति ॥
जरा सोचो तो उनके भी विषय में कल्पना करके ,
उन्होंने तो निभा डाला जो था दायित्व उन सबका
हम सब लोग भी दायित्व क्या अपना निभा पाए !
लिखी खूब प्रेम की गाथा किसी के लाल गालों पर ,
किसी की मस्त मुसुकाहट सुनहरे रंग के बालों पर !
बढ़े यूँ प्यार आपस में ख़ुशी संसार हो सारा ,
क्या ऐसे संस्कारों पर कभी कुछ 'शेष' लिख पाए !!
लेखक -डॉ.शेष नारायण वाजपेयी
कहो किस हेतु 'साईं ' को कहूँ भगवान हो मेरे,
क्या सीताराम राधेश्याम शिव से आस्था टूटी !
अगर ऐसा नहीं है तो सनातन धर्म के लोगो
कहो साईं के चमचों से कि मंदिर से निकल जाओ !!
लेखक -डॉ.शेष नारायण वाजपेयी
शान्ति का क्षण एक भी मिल तो नहीं पाता कभी मुझको
कभी साईं कभी भगवान दिनभर याद आते हैं
अगर साईं को भूलूँ भी ये सोचूँ ब्यर्थ था बुड्ढा ,
तो पाखंडी सनातन धर्म के सोने नहीं देते !
-लेखक -डॉ.शेष नारायण वाजपेयी
बताते टेलिवीजन पे जो अक्सर ज्योतिषी बातें,
पता क्या अनपढ़ों को उन किताबों में लिखा क्या है !
अगर कुछ ज्ञान ही होता तो बताते क्यों पता फिरते,
वो छिपके भी न छिप पाते पता उनका लगा लेते !!
-लेखक -डॉ.शेष नारायण वाजपेयी
चित्त मुलायम के चढ़ी तब अमरसिंह की पीति ॥
- अजीब है न हमारे देश का संविधान ! गीता पर हाथरखकर कसम खिलायी जाती है सच बोलने के
- यूँ तो गलत नही होते अंदाज चेहरों के…
- ****वक्त भी सिखाता है*******टीचर भी सिखाता है*********फरक सिरफ *****इतना है*****टीचर पढा के****इम्तहान लेता है****वक्त इम्तहान लेकर पढाता है
- कागज की पतंग भी चलती हवाओं में
ही उड़ा करती है---
वर्ना...हालात साथ ना दे तो हुनर बे-मौत मारे जाते है--- !!
- कुछ ना कर सकोगे मेरा मुझसे दुश्मनी करके,मोहब्बत कर लो मुझसे अगर मुझेमिटाना ही चाहते हो तो…
मौन-घायल वृक्ष अब किसको क्या समझाए?
फल जिसके ज्यादा वो ज्यादा पत्थर खाए।
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