कोई
भयंकर शराबी शराब पीकर इतनी स्पीड में गालियाँ भी नहीं बक सकता है जितनी
स्पीड में टी.वी. चैनलों पर बैठकर लोग आज राशिफल नाम का झूठ बोलते हैं।
इसी
प्रकार से और भी कई रहस्य हैं जो समय आने पर हमारे संस्थान द्वारा खोले
जाएँगे तब विश्व देखेगा कि भारतीय संस्कृति में वास्तव में क्षमता क्या है
आज तो शास्त्रीय लुटेरों ने शास्त्रीय ज्ञान विज्ञान की छीछालेदर मचा रखी
है इस छीना झपटी में मीडिया उनका साथ दे रहा है। इन झोलाछाप लोगों पर आखिर
क्यों दबाव नहीं दिया जाता है कि जिस विषय सम्बंधित ज्ञान की डिग्रियाँ
उनके पास नहीं हैं उस विषय का भाषण एवं प्रैक्टिस उनसे बंद क्यों नहीं
कराई जाती?और यदि ऐसा करने में सरकार सक्षम नहीं है तो क्यों नहीं बंद
करवा देती है संस्कृत विश्व विद्यालय ?आखिर वहाँ पढ़ने पढ़ाने का औचित्य ही
क्या बचता है जब वही काम झोला छाप लोग भी कर रहे हैं ?इस तरफ सरकार कोई
ध्यान ही नहीं दे रही है।गैर सरकारी वा हिन्दू संगठन तो केवल शोर मचाना
चाहते हैं विषय की गम्भीरता से उन्हें कोई लेना देना नहीं होता है इन
विषयों की इतनी उन्हें जानकारी ही नहीं होती है।
दूर दूर से कहना तो बहुत आसान है किन्तु जब जो कोई घुसेगा ज्योतिष विज्ञान की अत्यंत कठिन गणित के दायरे में तो उसे समझ में आजाएगा कि यह कितना कठिन एवं वैज्ञानिक विषय
है। बिना किसी यंत्र के सहयोग के भी केवल गणित के आधार पर न केवल आकाशीय
ग्रह नक्षत्रों का पता लगा लेना ,सूर्य चन्द्रमा की गति पता लगा लेना,सूर्य
चन्द्रमा से सम्बंधित ग्रहणों का पता लगा लेने का गौरव एक मात्र भारत वर्ष
को प्राप्त है किंतु इस ग्रहगणित की साधना करने वाले उन महान प्राचीन
वैज्ञानिक महापुरुषों का आदर ,सम्मान एवं आजीविका का पूर्ण प्रबंध न हो
पाने के कारण ज्योतिष शास्त्र के लिए समर्पित वह महान परिश्रमी वर्ग इन
विधाओं से धीरे धीरे दूर होता चला जा रहा है यह सबसे अधिक चिंता की बात है
!आज भी बड़े बड़े पंचांग कर्ता पंचांग बनाने में नॉटिकल की सहायता ले रहे
हैं!
अगर इसी प्रकार से अपनी
उपेक्षा से आहत होकार शास्त्रीय ज्ञान विज्ञान की दृष्टि से शास्त्रीय
वैज्ञानिकों का समुदाय दिवालिया होता चला गया तो भविष्य में अपने पास
नारे लगाने के अलावा बचेगा कुछ नहीं !
आज शास्त्रीय विज्ञान पर
भी बैंकिंग का वह सिद्धांत पूरी तरह लागू हो रहा है कि "फटी पुरानी ख़राब
मुद्राएँ नई और अच्छी मुद्राओं को चलन से बाहर कर देती हैं "।
वही स्थिति आज धर्म एवं
धर्मशास्त्रीय ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में है जब से बिना पढ़े लिखे तरह
तरह के स्वरूप धारण करने वाले बड़े बड़े बाबा जोगी भूतप्रेतों यक्षिणियों
जोगिनियों ने उठाया है शास्त्रीय ज्ञान विज्ञान के सत्यानाश का बीड़ा तब से
यह विश्वास भी होने लगा है कि ये जंगली जीव जंतु धर्मशास्त्रीय ज्ञान
विज्ञान के क्षेत्र में बचने अब कुछ नहीं देंगे !
एक दिन ज्योतिष के विषय में
टेलीविजन पर धारा प्रवाह बकते एक शनैश्चरासुर को देखा क्या स्पीड थी
ज्योतिष के विषय में उसके झूठ बोलने की! उसकी वाणी का क्या प्रवाह था कोई
भयंकर शराबी शराब पीकर इतनी स्पीड में गालियाँ भी नहीं दे सकता है जितनी
स्पीड में वह राशिफल बकता है बाप रे बाप !इसी प्रकार एक दिन टेलीविजन पर ही
देखा एक ज्योतिषासुर को! क्या स्वरूप रचना थी उसकी अद्भुत बिलकुल अद्भुत
!मैं सोच के दंग था कि किसी पढ़े लिखे शर्मवान व्यक्ति के ज्योतिष बकने की
ये स्पीड हो सकती है क्या ? किन्तु माननी पड़ेगी कि उसकी स्पीड थी!!! ऐसे और
भी बिना पढ़े लिखे तरह तरह के स्वरूप धारण करने वाले बड़े बड़े ज्योतिषीय
भूतप्रेतों यक्षिणियों जोगिनियों को टेलीविजन पर ज्योतिष समझाते पढ़ाते
परेशान लोगों के भाग्यों के भीतर की लुकी छिपी परतें तक नोचते देखता हूँ
क्या किसी ढोर को नोचता होगा कोई कुशल गृद्ध जैसे वो नोचते हैं लोगों के
भाग्य ! उनका स्वरूप होता है बिलकुल विलक्षण ,क्या भाषा होती है बिलकुल शुभ
चिंतकों जैसी और उनकी नोचाई तो वास्तव में बहुत अद्भुत होती है । धन्य
हैं वे लोग जो ज्योतिष को नष्ट करने के लिए इतना परिश्रम कर रहे हैं अपनी
जान जोखिम में डालकर कितना झूठ बोल रहे हैं मानना पड़ेगा बड़े हिम्मती हैं
वे लोग !
कोई कुंडली देखकर
भविष्य बताते हैं तो कोई हाथ पैर मुख नाक कान मल मूत्र नाक थूक सब देखकर
बकते हैं भविष्य कुछ शीशे में मुख देखकर कुछ चड्ढी बनियान देखकर तो कोई
जुराबें देखकर बकते हैं भविष्य ! कोई कोई तो अपनी चप्पलें देखकर दूसरों का
भविष्य बकने लगते हैं!
कई बार सोचता हूँ कि अच्छा
किया कि जैमिनि पराशर जैसे प्राचीन ऋषिगण पहले ही चले गए ये धरा धाम छोड़ कर
अन्यथा अब उन्हें आत्महत्या जरूर करनी पड़ती !धन्य मृताः ते नराः!!!
इन
पाखंडियों के उपाय भी अद्भुत होते हैं ज्योतिष न जानने के कारण कंप्यूटर रख
लेते हैं और गृह शांति के वेदमंत्र न जानने के कारण उपायों के नाम पर
मन्त्रों को छोड़कर जो मुख में आ जाता है सो सब कुछ बकते हैं ये तो सुनने
वाले की जिम्मेदारी होती है कि वह स्वयं समझे कि उसे क्या क्या पहनना ओढ़ना
बिछाना खाना खिलाना लेना देना रखना उठाना बहाना फेंकना गाढ़ना खोदना है!
ये
सब देख सुनकर लगता है कि क्यों न माने लोग ज्योतष को बकवास जब यहीं से हो
रहा है सत्यानाश !न कहीं लिखे हैं ऐसे बकवासी उपाय और न ही होता है इनका
कोई असर !
राशिफल की तो कला ही बिलकुल अद्भुत है दिन में अलग अलग चैनलों पर अलग अलग
टाइम पर अलग अलग लोग अलग फलादेश एक ही व्यक्ति के एक ही दिन के बारे में
बताते हैं क्या इनके बेबकूप बनाने की इस प्रक्रिया को समझा नहीं जाना चाहिए
और क्यों नहीं की जानी चाहिए इन पर कोई कठोर कार्यवाही ?केवल इसलिए नहीं
कि ये ऐसा क्यों करते हैं अपितु इनसे इसके प्रमाण भी पूछे जाने चाहिए कि जब
प्रतिदिन कोई ग्रह नहीं बदलता है तो आपका राशिफल कैसे बदलता है प्रतिदिन ?
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