Saturday, 4 January 2014

       इसी प्रकार से और भी कई रहस्य हैं जो समय आने पर हमारे संस्थान द्वारा खोले जाएँगे तब विश्व देखेगा कि भारतीय संस्कृति में वास्तव में क्षमता क्या है आज तो शास्त्रीय लुटेरों ने शास्त्रीय ज्ञान विज्ञान की छीछालेदर मचा रखी है इस छीना झपटी में मीडिया उनका साथ दे रहा है। इन झोलाछाप लोगों पर आखिर क्यों दबाव नहीं दिया जाता है कि जिस विषय सम्बंधित ज्ञान की डिग्रियाँ उनके पास नहीं हैं उस विषय का भाषण एवं प्रैक्टिस उनसे बंद क्यों नहीं कराई  जाती?और यदि ऐसा करने में सरकार सक्षम नहीं है तो क्यों नहीं बंद करवा देती है संस्कृत विश्व विद्यालय ?आखिर वहाँ पढ़ने पढ़ाने का औचित्य ही क्या बचता  है जब वही काम झोला छाप लोग भी कर रहे हैं ?इस तरफ सरकार कोई ध्यान ही नहीं दे रही है।गैर सरकारी वा हिन्दू संगठन तो केवल शोर मचाना चाहते हैं विषय की   गम्भीरता से उन्हें कोई लेना देना नहीं होता है इन विषयों की इतनी उन्हें जानकारी ही नहीं होती है। 

      दूर दूर से कहना तो  बहुत आसान है किन्तु जब जो कोई घुसेगा ज्योतिष की अत्यंत कठिन गणित के दायरे में उसे समझ में आजाएगा कि यह कितना कठिन काम है। बिना किसी यंत्र के सहयोग के भी केवल गणित के आधार पर न केवल आकाशीय ग्रह नक्षत्रों का पता लगा लेना ,सूर्य चन्द्रमा की गति पता लगा लेना,सूर्य चन्द्रमा से सम्बंधित ग्रहणों का पता लगा लेने का गौरव एक मात्र भारत वर्ष को प्राप्त है किंतु  इस ग्रहगणित  की साधना करने वाले उन महान प्राचीन वैज्ञानिक महापुरुषों का आदर ,सम्मान एवं आजीविका का पूर्ण प्रबंध न हो पाने के कारण ज्योतिष शास्त्र के लिए समर्पित वह महान परिश्रमी वर्ग इन विधाओं से धीरे धीरे दूर होता चला जा रहा है यह सबसे अधिक चिंता की बात है !आज भी बड़े बड़े पंचांग कर्ता पंचांग बनाने में नॉटिकल की सहायता ले रहे हैं!

       अगर इसी प्रकार से अपनी उपेक्षा से आहत होकार शास्त्रीय ज्ञान विज्ञान की दृष्टि से शास्त्रीय वैज्ञानिकों का समुदाय दिवालिया होता चला गया तो भविष्य में अपने पास नारे लगाने के अलावा  बचेगा कुछ नहीं !

         आज शास्त्रीय विज्ञान पर भी बैंकिंग का वह सिद्धांत पूरी तरह लागू हो रहा है कि "फटी पुरानी ख़राब मुद्राएँ नई और अच्छी मुद्राओं  को चलन से बाहर कर देती हैं "।

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