Friday, 26 June 2015

सांसदों के साथ अन्याय क्यों ?

4 रुपये में सांसदों को मिल रही फ्राइड दाल !..-एक खबर
  बंधुओ ! मैं तो कहूँगा कि सांसदों का शोषण आखिर क्यों किया जा रहा है ?जानिए कैसे !
      साधुओं के आश्रमों में लंगर चला करता है वहाँ तो खाओ और चले आओ अर्थात कोई पैसा नहीं लगता है फिर सांसदों को पापी पेट के लिए दाल के चार रूपए चुकाने पड़ते हैं आखिर क्यों ?देश सेवा तो वो भी करते हैं अपना घर परिवार छोड़े दिन भर संसद में पड़े रहते हैं क्या संसद उनको भोजन भी निशुल्क नहीं दे सकती !
   सांसद हों या आधुनिक हाईटेक संत ये दोनों समाज में बराबर माने जाते हैं ये दोनों भिक्षाव्रती हैं एक वोट माँगते दूसरे नोट माँगते हैं काम दोनों माँगकर ही चलाते हैं वैसे वोट भी बाद में नोट में कन्वर्ट हो ही जाता है । 
       इन  दोनों के पास कोई रोजी रोजगार नहीं होता है हो भी तो करें कब समय कहाँ होता है और फिर जरूरत क्या है ! एक को नेतागीरी से फुर्सत नहीं होती तो दूसरे को सधुअई से ! और कोई काम करने की इन्हें जरूरत भी नहीं होती है क्योंकि देश के जो भी लोग धंधा व्यापार आदि कुछ भी करते हैं उसके प्रॉफिट पर ये दोनों अपना स्वाभाविक हक़ मानते हैं !
    नेता इस लोक को सँवारने की बात करते  हैँ साधू उस लोक की !नेतासंविधान की बात करते हैं साधू शास्त्रों की किंतु न ये संविधान जानते हैं न वे शास्त्र !एक कानून का भय देकर मांगता है तो दूसरा पाप का भय देकर! दोनों को सारे भोग और भोजन सामग्री समाज से ही चाहिए होती है मांगने के लिए नेता रैली करता है तो साधू सत्संग !भाषण की लत दोनों को होती है एक लाल कपडे पहनता  है तो दूसरा सफेद !दोनों भीड़ के साथ चलते हैं  नेता भ्रष्ट होते हैं तो कहते हैं आरोप साबित हुए तो संन्यास ले लूँगा इसी प्रकार साधू राज नीति करने लगते हैं । नेता साधू के साथ फोटो इसलिए बनाते हैं कि लोग उन्हें ईमानदार समझें और साधू लोग नेता के साथ इस लिए दाँत निपोर रहे होते हैं ताकि लोग उन्हें सोर्स फुल समझें और उनके दवा दारू के व्यापार में अधिकारी रोड़ा न लगावें !   दोनों की औकात उनके फालोवर्स से आँकी जाती है ।
    कुल मिलकर दोनों की दोनों से हर जगह तो बराबरी है फिर साधुओं के आश्रमों में लंगर चला करता है वहाँ तो खाओ और चले आओ अर्थात कोई पैसा नहीं लगता है फिर सांसदों को पापी पेट के लिए दाल के चार रूपए चुकाने पड़ते हैं आखिर क्यों ?देश सेवा तो वो भी करते हैं अपना घर परिवार छोड़े दिन भर संसद में पड़े रहते हैं क्या संसद उनको भोजन भी निशुल्क नहीं दे सकती !

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