ऐसे निर्जीव राजनैतिक वातावरण
ने समाज को कितना संवेदना शून्य बना दिया है राजनीति अब तो घरों में घुसी घूम रही है हर कोई डिप्लोमेटिक होता जा रहा है !फिर भी नेता हैं कि सुधरने को तैयार ही नहीं हैं !
आज अपराधी मर्डर अपहरण जैसा अपराध करने से पहले भी हिसाब किताब लगाने लगे हैं कि ये करने के लिए पुलिस को क्या देना पड़ेगा ,नेता जी के पार्टी फंड में क्या जमा करना पड़ेगा केस लड़ने में क्या लगेगा आदि पूरा स्टीमेट बनाकर तब करते हैं अपराध !
आज हर कोई किसी और को अपने चक्रव्यूह में फाँसने के लिए झूठ बोलने लगा है बाद
में मुकर जाता है अपना स्वार्थ साधने के लिए आश्वासन देता है बाद में
मजबूरियाँ गिनाने लगता है कोई किसी को कितनी भी गहरी चोट देता है और बाद
में सॉरी बोलकर निकल जाता है !ऐसे राजनैतिक वातावरण
ने समाज को कितना संवेदना शून्य बना दिया है !इसका कुछ उपाय तो खोजा
जाना चाहिए और देश के सभी चुनाव एक साथ कराने की पद्धति पर विचार किया जाना
चाहिए जिससे पाँच वर्षों में एक बार होली दीपावली के त्यौहार की तरह
चुनावी त्यौहार भी हो जाए इसके बाद फुरसत में मीडिया से
लेकर सभी राजनैतिक दल एवं सत्तासीन दल और लोग देश एवं समाज के लिए भी कुछ
सोचें और कुछ करें भी । ऐसे देश देश में हमेंशा चुनावी वातावरण ही बना
रहता है अपना अपना काम छोड़ कर हर कोई चुनावी चिंतन चर्चा जोड़ तोड़ आदि में
बेमतलब में ब्यस्त रहता है ये चुनाव के लिए अच्छा हो सकता है किन्तु
इसका दुष्प्रभाव आम जनता के बात व्यवहार में घुसकर परिवारों एवं समाज के
मधुर संबंधों को जहरीला बनाता जा रहा है ।
श्रीमान जी,देश की स्थिति पर आप सभी की तरह ही मैं भी चिंतित हूँ,किन्तु
परिस्थितियाँ दिनों दिन अनियंत्रित होती जा रही हैं।राजनैतिक बात ब्यवहारों
ने देश, समाज एवं परिवारों की समरसता को छिन्न भिन्न सा कर दिया है। घर
घर एवं जन जन के मन में ऐसी राजनीति समाई हुई है कि लोग अपनों से परायों
जैसा कूट नैतिक वर्ताव करने लगे हैं। हर किसी के पास प्रकट बोलने के लिए कुछ
नहीं है लोग सब कुछ छिपाना चाहते हैं,न जाने कितना और किस बात का भय
समाया हुआ है लोगों में !इसीप्रकार मोबाईल पास में है किन्तु बात किससे
करें?उन्हें भय है कि कहीं कुछ छिपा हुआ खुल न जाए !इस डर से मन की बात
किसी से कहना नहीं चाहते! परेशान होकर भड़भड़ाते हैं तो किसी किसी को फोन
मिला लिया करते हैं किन्तु इधर उधर की बातें करके रख देते हैं फोन!इसीप्रकार कई
कई गाड़ियाँ दरवाजे पर खड़ी हैं किन्तु जाएँ किसके घर !कहीं शांति नहीं है।
पार्कों, राहों, चौराहों, बाजारों में अपरिचित या अल्प परिचित लोगों से कभी कभी हो जाती हैं कुछ बातें!उसमें भी कुशल डिप्लोमेटिक लोगों की तरह एक सीमा रेखा खींच कर बात करनी होती है।उनके एजेंडे के हिसाब से कुछ विषय निश्चित होते हैं,जैसे- राजनैतिक या हवा पानी के प्रदूषण की बातें,महँगाई एवं सामाजिक क्राइम सम्बन्धी चर्चाएँ,स्वास्थ्य तथा खाने पीने की बातें करते कराते बीत रही हैं जिंदगी की बहुमूल्य स्वाँसें,किन्तु मन किसी से नहीं खोला जा रहा है। समाज के मन में यह अघोषित सा भय व्याप्त है कैसे निकाला जाए इसे ! इसी अर्द्ध चेतनता के घुटन भरे वातावरण में हो रहे हैं सब प्रकार के अपराध ! अनिच्छा से ही सही जबर्दश्ती घुट घुट कर जीते जा रहे हैं लोग!हँसने के लिए एक्सरसाइज करनी पड़ रही है।आज अपनों के बीच बैठकर हँसने मुस्कुराने की हिम्मत ही नहीं पड़ रही है।लोग अपनों से मिलते ही कहना शुरू कर देते हैं आओ कभी घर खाना खूना खाओ,चाय पानी सानी पियो!इसी प्रकार कभी कोई घर आ जाए तो आते ही और गरम लोगे या ठंडा ?इसप्रकार खिला पिलाकर बिना कुछ बात चीत किए ही उसे यह कहकर बिदा कर देते हैं कि अच्छा ठीक है फिर कभी आना,बस इतना कहकर जोड़ देते हैं दोनों हाथ ! इस प्रकार भगा दिया जाता है आगंतुक अतिथि नातेरिश्तेदार !अतिथि पूजन वाले देश में क्या यही अतिथि सत्कार है!ऐसा क्यों समझा गया कि वह केवल खाने पीने के लिए ही यहाँ आया था।हो सकता है कि वह भी अपने मन की कोई बात ही आप से कहकर अपना मन ही हल्का करने आया हो !
पार्कों, राहों, चौराहों, बाजारों में अपरिचित या अल्प परिचित लोगों से कभी कभी हो जाती हैं कुछ बातें!उसमें भी कुशल डिप्लोमेटिक लोगों की तरह एक सीमा रेखा खींच कर बात करनी होती है।उनके एजेंडे के हिसाब से कुछ विषय निश्चित होते हैं,जैसे- राजनैतिक या हवा पानी के प्रदूषण की बातें,महँगाई एवं सामाजिक क्राइम सम्बन्धी चर्चाएँ,स्वास्थ्य तथा खाने पीने की बातें करते कराते बीत रही हैं जिंदगी की बहुमूल्य स्वाँसें,किन्तु मन किसी से नहीं खोला जा रहा है। समाज के मन में यह अघोषित सा भय व्याप्त है कैसे निकाला जाए इसे ! इसी अर्द्ध चेतनता के घुटन भरे वातावरण में हो रहे हैं सब प्रकार के अपराध ! अनिच्छा से ही सही जबर्दश्ती घुट घुट कर जीते जा रहे हैं लोग!हँसने के लिए एक्सरसाइज करनी पड़ रही है।आज अपनों के बीच बैठकर हँसने मुस्कुराने की हिम्मत ही नहीं पड़ रही है।लोग अपनों से मिलते ही कहना शुरू कर देते हैं आओ कभी घर खाना खूना खाओ,चाय पानी सानी पियो!इसी प्रकार कभी कोई घर आ जाए तो आते ही और गरम लोगे या ठंडा ?इसप्रकार खिला पिलाकर बिना कुछ बात चीत किए ही उसे यह कहकर बिदा कर देते हैं कि अच्छा ठीक है फिर कभी आना,बस इतना कहकर जोड़ देते हैं दोनों हाथ ! इस प्रकार भगा दिया जाता है आगंतुक अतिथि नातेरिश्तेदार !अतिथि पूजन वाले देश में क्या यही अतिथि सत्कार है!ऐसा क्यों समझा गया कि वह केवल खाने पीने के लिए ही यहाँ आया था।हो सकता है कि वह भी अपने मन की कोई बात ही आप से कहकर अपना मन ही हल्का करने आया हो !
इसी प्रकार तिथि त्योहारों में भी यही मनहूसियत छाई हुई है ।शादी
विवाहों के कार्यक्रम आयोजित करने वाले लोग पैसा तो अपनी औकात से अधिक लगा
रहे होते हैं शादी में ! लेकिन जरा जरा सी बात पर ऐसे चिड़ चिड़ाने लगते हैं।मानों खिलापिलाकर समाज का ऋण उतार रहे हों !
जिसके भरोसे अपना काम आगे भी चलना होता है या जिसके पास अधिक पैसा होता है या नेता ख़ूँटा, अथवा अधिकारी टाइप का कोई भारी भरकम आदमी, जिसे शादी पर बुलाने के लिए बाप बेटों ने औकात लगा रखी होती है बस उसकी प्रतीक्षा हो रही होती है उसी को फोन पर फोन हो रहे होते हैं उसी के विषय में चर्चा हो रही होती है उसी के साथ केवल मोबाईल पर बात हो रही होती है,पिता पुत्र मिला रहे होते हैं बस उसी को फोन!!!उसे ही रास्ता बताया जा रहा होता है कि आपको कहाँ से कैसे कैसे आना है!उसके आने पर ही सारा प्रोग्राम प्रारंभ होता है बस उसी के साथ फोटो खिंचवाई जाती हैं।उसके अतिथि सत्कार को देखकर वर बिचारा मन ही मन परेशान होता है वह मन ही मन सोच रहा होता है कि शादी हमारी और स्वागत इनका !!!खैर, उसी बलिपशु से वर बधू को आशीर्वाद दिलवाया जाता है, जब किसी शादी समारोह में ऐसे किसी बलिपशु के पीछे पीछे घर के सारे सदस्यों को घूमते देखा जाता है तो लोग समझ ही लेते हैं कि ये तो कँगले हैं इसी बलिपशु की कमाई के सहारे जीते हैं ये लोग! शादी के बाद भी इन्हीं के गले पड़ेंगे ये सारे पिता पुत्र आदि सारा परिवार !!!इसलिए इधर उस बलिपशु के तलवे चाटने में पूरा कुनवा लगा है उधर आए हुए बाकी व्यवहारियों से मिलने वाला घर का वहाँ कोई होता नहीं है तो व्यवहारी लोग आपस में ही मिल जुल कर लिफाफा पकड़ाते और चले जाते हैं खाएँ न खाएँ कहाँ कोई है कोई पूछने वाला?आज हम लोग इतने स्वार्थी हो गए हैं।
जिसके भरोसे अपना काम आगे भी चलना होता है या जिसके पास अधिक पैसा होता है या नेता ख़ूँटा, अथवा अधिकारी टाइप का कोई भारी भरकम आदमी, जिसे शादी पर बुलाने के लिए बाप बेटों ने औकात लगा रखी होती है बस उसकी प्रतीक्षा हो रही होती है उसी को फोन पर फोन हो रहे होते हैं उसी के विषय में चर्चा हो रही होती है उसी के साथ केवल मोबाईल पर बात हो रही होती है,पिता पुत्र मिला रहे होते हैं बस उसी को फोन!!!उसे ही रास्ता बताया जा रहा होता है कि आपको कहाँ से कैसे कैसे आना है!उसके आने पर ही सारा प्रोग्राम प्रारंभ होता है बस उसी के साथ फोटो खिंचवाई जाती हैं।उसके अतिथि सत्कार को देखकर वर बिचारा मन ही मन परेशान होता है वह मन ही मन सोच रहा होता है कि शादी हमारी और स्वागत इनका !!!खैर, उसी बलिपशु से वर बधू को आशीर्वाद दिलवाया जाता है, जब किसी शादी समारोह में ऐसे किसी बलिपशु के पीछे पीछे घर के सारे सदस्यों को घूमते देखा जाता है तो लोग समझ ही लेते हैं कि ये तो कँगले हैं इसी बलिपशु की कमाई के सहारे जीते हैं ये लोग! शादी के बाद भी इन्हीं के गले पड़ेंगे ये सारे पिता पुत्र आदि सारा परिवार !!!इसलिए इधर उस बलिपशु के तलवे चाटने में पूरा कुनवा लगा है उधर आए हुए बाकी व्यवहारियों से मिलने वाला घर का वहाँ कोई होता नहीं है तो व्यवहारी लोग आपस में ही मिल जुल कर लिफाफा पकड़ाते और चले जाते हैं खाएँ न खाएँ कहाँ कोई है कोई पूछने वाला?आज हम लोग इतने स्वार्थी हो गए हैं।
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