-: जय श्री राम :-
'गौ गंगा गायत्री गीता एवं समस्त सनातन शास्त्रों की गौरव रक्षा हेतु '
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान (रजि.)
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान (रजि.)
- संसद और विधान सभाओं की कार्यवाही का उद्देश्य जनहित तथा देशहित से जुड़े गंभीर विषयों पर चर्चा करना होता है किंतु चर्चा तो वही करेगा जिसे जिस विषय की जानकारी या अनुभव होगा । चर्चा करने और समझने की योग्यता के लिए शिक्षित होना आवश्यक है ।जो माननीय सदस्य शिक्षित नहीं होते हैं वो अपनी अपनी कुर्सियों पर बैठे बैठे ऊभते या सोते रहते हैं ऐसी परिस्थिति में वैसे भी वो या तो चुप बैठे रहें या फिर उन लोगों का साथ दें जो लोग केवल शोर शराबा करने की ही ताक में बैठे होते हैं । चर्चा करने या समझने की आवश्यक योग्यता के अभाव में ऐसे जन प्रतिनिधियों के सदन की कार्यवाही में भाग लेते समय उनके शांत बैठे रहने से या शोर शराबा करने से सदन की कार्यवाही का उद्देश्य पूरा हो जाता है क्या यदि नहीं तो सदन की चर्चा में उनकी सहभागिता कैसे सुनिश्चित मानी जाती है ?
- सम्माननीय सदनों में जनहित और राष्ट्रहित की गंभीर चर्चा करने वालों की संख्या की अपेक्षा चर्चा से ऊभ रहे हुल्लड़ मचाने वालों की संख्या काफी अधिक होती है । इस संख्या के अनुपात में ही सदन के बहुमूल्य समय का अधिक भाग शोर शराबा में और कम भाग चर्चा में जाता है । ऐसे शोर शराबे का जनहित या राष्ट्रहित से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं होता है जबकि सदन की चर्चा का उद्देश्य जनहित और राष्ट्रहित होता है सम्माननीय सदस्यों की शैक्षणिक अयोग्यता के कारण यदि चर्चा के लिए आहूत सत्र शोर शराबे की भेंट चढ़ जाते हैं तो निकट भविष्य में इसे रोकने के लिए कोई प्रयास किए जा रहे हैं क्या ?
- संसद लोकतंत्र का महान मंदिर होता है इस मंदिर का देवता संविधान होता है जनहित और राष्ट्रहित से जुड़ी संवैधानिक चर्चाएँ ही इसके महान मंत्र होते हैं और यहाँ की संवैधानिक मर्यादाओं का पालन ही पवित्र पूजा पाठ है । सदन के सम्माननीय सदस्य ही इस मंदिर के पुजारी होते हैं संविधान की सीमा में रहकर देशहित और जनहित के विषय में चर्चा करना ही इनका कर्तव्य होता है इनके सदाचरण और भाषाई पवित्रता से देश और समाज की शाख जुड़ी होती है इनके आचार व्यवहार के साथ देश और जनता का न केवल लौकिकहित अपितु सम्मान स्वाभिमान भी जुड़ा होता है ऐसी परिस्थिति में जिन जन प्रतिनिधियों के संसदीय आचार व्यवहार से जनता को ठेस लगती हो उसका विरोध करने के लिए आम जनता के पास भी क्या कोई अधिकार हैं यदि हाँ तो क्या ?
- अपने देश की प्रचलित प्रायः प्रत्येक राजनैतिक पार्टी का मालिक कोई एक परिवार होता है और सब चाहते हैं कि उनकी पार्टी की मल्कियत हमेंशा उनके और उनके परिवार के ही हाथ में रहे इसके लिए आवश्यक होता है कि अपनी पार्टी में अपने से अधिक ज्ञानी गुणी समझदार या सजीव विचार वाले व्यक्ति को पार्टी में या तो घुसने न दिया जाए और यदि घुसाना ही पड़े तो उन्हें निर्णायक भूमिका में न पहुँचने दिया जाए । ऐसे पार्टीमालिक लोग अशिक्षित लोगों को विधायक सांसद बनाकर अपनी अँगुलियों पर नचाया करते हैं ये अपनी पार्टी मालिकों का इशारा पाते ही सदन के बाहर या भीतर हुल्लड़ हंगामा धरना प्रदर्शन आदि सब कुछ करने लगते हैं ऐसी परिस्थिति में देश के राजनैतिक क्षितिज से शिक्षित ,समझदार एवं सजीव बिचार वाले लोग दिनोंदिन गायब होते जा रहे हैं परिस्थिति यदि ऐसी ही चलती रही तो शिक्षित लोगों का राजनैतिक क्षेत्र में कोई काम ही नहीं रह जाएगा !ऐसी परिस्थिति में सदनों की गरिमा तथा गुणवत्ता बनाए एवं बचाए रखने के लिए जनप्रतिनिधियों के लिए भी उच्च शिक्षा को अनिवार्य करने की किसी योजना पर विचार किया जाएगा क्या और यदि नहीं तो क्यों ?
: भवदीय :
आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी
एम.
ए.(व्याकरणाचार्य) ,एम. ए.(ज्योतिषाचार्य)-संपूर्णानंद संस्कृत
विश्वविद्यालय वाराणसी
एम. ए.हिंदी -कानपुर विश्वविद्यालय \ PGD पत्रकारिता
-उदय प्रताप कालेज वाराणसी
पीएच.डी हिंदी (ज्योतिष)-बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU )वाराणसीsee more … http:// jyotishvigyananusandhan. blogspot.in/p/blog-page_7811. html
K -71 ,छाछी बिल्डिंग, कृष्णा नगर, दिल्ली -110051
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