सरकार
नहीं सरकारों के बाप को चुनौती !सरकार के पुरखे भी उतर आवें और शिक्षा का
बजट चाहें जितना बढ़ा लें किंतु सरकारी शिक्षकों से वो पढ़वा नहीं सकते !शिक्षा व्यवस्था की हालत इतनी अधिक ख़राब है !तभी समाज में बढ़ रहे हैं अपराध !छात्र लोग संस्कार सीखें आखिर किससे ?
ये कलियुगी शिक्षक झूठ बोलते बोलते इतने एक्सपर्ट हो चुके हैं कि स्कूल न जाने या कक्षा में न पहुँचने एवं बच्चों को न पढ़ाने के इतने बहाने होते हैं इनके पास कि सरकारें उसका तोड़ नहीं निकाल सकती हैं । पढ़ाने में फिसड्डी शिक्षकों की अपनी यूनियनें हैं हड़ताल करने की पावर है बेतन बढ़वाने की बुद्धि होती है केवल पढ़ाने के लिए बीमार दुखी हैरान परेशान होती है ये प्रजाति !खरोंच को चोट और जुकाम को बीमारी बताकर ले लेते हैं छुट्टी क्या जाता है इनके बाप का !भरें भुगतेंगे बच्चे और उनके माँ बाप जिन्होंने सरकारी स्कूलों में पढने के लिए भेजे हैं अपने बच्चे !
वस्तुतः सरकारी स्कूल अनाथ होते हैं प्राइवेटस्कूलों की तरह इनका भी कोई मालिक होता तो अपने स्कूल की प्रतिष्ठा बनाने के लिए मर मिटता किंतु अभागे सरकारी इस्कूलों का ऐसा सौभाग्य कहाँ कि इन्हें भी कोई अपना मानता !प्राइवेटस्कूलों की तरह इनका भी कोई मालिक होता तो इन सरकारी शिक्षकों से कम सैलरी देकर इनसे अच्छी शिक्षा मुहैया करा देता बच्चों को और जीत लेता जनता के दिल !उसके पास न कोई अधिकारी होते हैं और न ही शिक्षकों को गैर जिम्मेदार बनाने वाली ट्रेनिंगें !केवल स्कूल के प्रति अपनापन होता है इसी भावना से चला लेता है स्कूल जबकि सरकारी शिक्षा व्यवस्था पराए हाथों में है इसलिए जनता ठोंक रही है अपने करम !
सरकारी स्कूलों में केवल पढ़ाई नहीं होती बाक़ी खाना पूर्ति सारी होती है !प्राइवेट की अपेक्षा कई गुना ज्यादा सैलरी दी जाती है कापी किताबें दी जाती हैं आफिसों के बाहर नैतिक वाक्यों के कुछ बोर्ड लगा दिए जाते हैं समय से स्कूल खोलने बंद करने वाले होते हैं कमरे कुर्सी बेंच और उससे सम्बंधित जो भी खर्चे हैं वो सब समय से केवल इसलिए होते हैं क्योंकि उसमें अप्रत्यक्ष रूप से जनता का धन लग रहा होता है किंतु जब बारी आती है शिक्षा व्यवस्था की तब साँप सूँघ जाता है !इतनी निर्लज्जता !शिक्षा व्यवस्था सुधरेगी तो मिलेगी सैलरी अन्यथा कट जाएगी यदि ऐसी शर्त होती तो भी क्या नहीं होती पढ़ाई !सरकारी स्कूल इन मंत्रियों अधिकारियों के यदि अपने होते और अपनी जेब से देनी पड़ रही होती सैलरी तो भी क्या होती इतनी ही लापरवाही !अधिकारी मंत्री स्कूलों में झाँकने तक नहीं जाते ऐसे होती है पढ़ाई !कोई फाउंटेनपेन कितना भी अच्छा हो केवल उसके निप का प्वॉइंट ख़राब हो तो उस पेन की सुंदरता से क्या लेना देना!इसी प्रकार से सरकारों में भारी भरकम शिक्षा मंत्रालय हो या शिक्षा व्यवस्था पर बोझ बने वहाँ के अधिकारी कर्मचारियों का सारा ताम झाम !इस नाटक नौटंकी का अर्थ क्या है यदि शिक्षा की जिम्मेदारी कोई निभाने को तैयार ही नहीं है । आफिसों में बैठकर केवल मीटिंगें करने और रजिस्टर रँगने के लिए ही क्या खोले गए हैं सरकारी स्कूल !स्कूलों की आफिसों में घुसे शिक्षक शिक्षिकाएँ केवल पंचायत करते रहते हैं !
सरकार इतना खर्च करती है किंतु क्यों नहीं लगाती है स्कूलों में कैमरे !कम से कम सरकारों को अपने काम की औकात तो पता लगे कि कितने काबिल होते हैं ये लोग !मीडिया वालों के सामने शिक्षा सुधार के नाम पर गाल बजाने वाले अकर्मण्य लोग कितने बार जाते हैं स्कूलों में कब अभिभावकों से पूछते हैं उनकी परेशानियाँ !कब मिलते हैं बच्चों से !
सरकार नहीं सरकारों के बाप को चुनौती !सरकार के पुरखे भी उतर आवें और शिक्षा का बजट चाहें जितना बढ़ा लें किंतु सरकारी शिक्षकों से वो पढ़वा नहीं सकते !ये कलियुगी शिक्षक झूठ बोलते बोलते इतने एक्सपर्ट हो चुके हैं कि स्कूल न जाने या कक्षा में न पहुँचने एवं बच्चों को न पढ़ाने के इतने बहाने होते हैं इनके पास कि सरकारें उसका तोड़ नहीं निकाल सकती हैं और सरकारें निकालें भी क्यों वो अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाते ही नहीं हैं केवल गरीबों के बच्चे बर्बाद करने के लिए चलाए जा रहे हैं सरकारी स्कूल !इन शिक्षकों की कामचोरी,मक्कारी और झूठ बोलने के कुसंस्कार बच्चों में यदि थोड़े भी आ गए यह सोच कर सिहर उठता है मन !फिर वो बच्चे मेहनत करके तो नहीं ही कमा खा सकते हैं !कल्पना कीजिए कि यदि वो बच्चे किसी सरकारी स्कूल में शिक्षक न बन पाए तो क्या होगा उनका !ऐसे बच्चे या तो भूखों मरेंगे या अपराध करेंगे और बढ़ते अपराधों पर अंकुश लगाना जब आज इतना कठिन हो रहा है तो आगे क्या होगा !भगवान बचाए ऐसे शिक्षकों से देश और समाज को !
अधिकांश एम.सी.डी. व सरकारी प्राथमिक स्कूलों में प्रातः आठ से साढ़े आठ बजे के बीच शिक्षक लोग स्कूल पहुँचते
हैं, नौ से सवा नौ बजे तक वो एक दूसरे के हाल चाल लेते हैं इसके बाद लंच
हो जाता है जो साढ़े दस बजे तक चलता है, इसके बाद सप्ताह में कम से कम एक एक
दिन एक एक शिक्षक बीमार होता ही रहता है, एक शिक्षक को जरूरी काम लगा करता है ,किसी किसी को दवा लेने जरूरी जाना होता है। एक शिक्षक के विशाल सर्कल में किसी न किसी के साथ कोई न कोई दुर्घटना घटती रहती है, इसलिए उसे स्कूल समय में ही वहाँ देखने जाना जरूरी होता है, एक शिक्षक को स्कूली काम से जरूरी कहीं जाना पड़ा करता है, एक शिक्षक को आवश्यक मीटिंग में जाना ही होता है । किसी किसी को अपने बच्चे के बर्थ डे की तैयारी करनी होती है, किसी के यहाँ गेस्ट आ रहे होते हैं ऐसी सभी समस्याओं के बीच अभिभावकों
को पहले से ही कहा गया होता है कि छुट्टी के पाँच मिनट बाद भी आपके बच्चे
की हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी इस वाक्य से भयभीत बिचारे अभिभावक अपने
बच्चे को लेने के लिए छुट्टी से आधा एक घंटा पहले ही स्कूल आने लगते हैं और
ले जाने लगते हैं अपने अपने बच्चे! इस प्रकार से एम.सी.डी. व सरकारी
स्कूलों में छुट्टी होने से पहले ही हो जाती है छुट्टी !
एम.सी.डी. वा सरकारी स्कूलों में जिन बच्चों को पढ़ाने के नाम पर चालीस
पचास हजार सैलरी लेने वाले एम.सी.डी. व सरकारी स्कूलों के शिक्षकों से
लेकर मोटी मोटी सैलरी लेने वाले अधिकारी तक अपने बच्चों को उन प्राइवेट
स्कूलों में पढ़ाने में गर्व करते हैं जहाँ दस पाँच हजार रूपए महीने की
सैलरी लेने वाले प्राइवेट स्कूलों वाले शिक्षक पढ़ा रहे होते हैं कितना
आश्चर्य है !
पढ़ाई के नाम पर बहुत सारी योजनाएँ बनती बिलीन होती रहती हैं विज्ञापनों
पर खूब खर्च किया जाता है, शिक्षा के लिए बड़े बड़े उत्सव धूम धाम से मनाए
जाते हैं, शिक्षा की तरक्की के नाम पर झूठ बोलवाने वा झूठे झूठे सपने
दिखाने के लिए अच्छे अच्छे कपड़े पहना पहना कर अच्छे अच्छे लोग बोलाए जाते
हैं, उनके साथ चिपक चिपक कर चित्र खिंचा खिंचा कर आफिस में लगाए लटकाए
जाते हैं ! स्कूल की दीवारों पर स्वास्थ्य रक्षक प्रेरणा देने वाले वाक्य
लिखे या लिखवाए गए होते हैं किन्तु जिन बच्चों के भविष्य सुधारने के लिए ये
सब किया जा रहा होता है बेचारे उन बच्चों को पता तक नहीं होता है कि उनके
भविष्य को सुधारने के लिए ये सब किया जा रहा है उन्हें आभाष ही नहीं
कराया जाता है कि उनकी चिंता भी किसी को है ! एम.सी.डी. व सरकारी स्कूलों
का सम्मान समाज में आज इतना अधिक गिर चुका है कि जो माता पिता अपने बच्चों
को यहाँ पढ़ाते हैं वे इतनी हीन भावना से ग्रस्त होते हैं कि उनमें इतनी
हिम्मत कहाँ होती है कि वो अपने बच्चे के शिक्षक से बात कर सकें ?वो और दस
बातें सुना देंगे ! जब ये स्थिति राष्ट्रीय राजधानी की है तो सारे देश के
दूर दराज क्षेत्रों का हाल क्या होगा!
यदि ऐसी शिक्षा व्यवस्था को सुधारने में आप भी कोई जिम्मेदारी निभा सकते
हैं तो अवश्य निभाइए यह सबसे पवित्र कार्य होगा क्योंकि बच्चे देश का
भविष्य होते हैं देश का भविष्य बिगड़ने मत दीजिए। गरीब लोग एक बार भोजन कर के रह लेंगे पुराने धुराने आधे अधूरे कपड़े पहन कर रह लेंगे अपने बच्चे रख लेंगे और
समाज की उपेक्षा अपमान सह लेंगे किन्तु एक आशा पर कि उनके बच्चों का
भविष्य सुधर जाएगा कभी तो हो पाएँगे इस समाज में सम्मान पूर्वक सर उठाकर
चलने लायक !
अरे! सम्माननीय शिक्षकों ,अधिकारियों, काँग्रेसियों,भाजपाइयों सहित सभी
पार्टियों के नेताओं,सभी अखवारों टी. वी.चैनलों के सम्माननीय पत्रकार
बंधुओं समेत इस विश्व गुरु भारत के सभी प्रबुद्ध नागरिकों आप सबसे
प्रार्थना है याचना है कि बचा लीजिए गरीबों के बच्चों का भविष्य ! ये
वर्त्तमान समाज पर आपका बहुत बड़ा उपकार होगा!
बलात्कार भ्रष्टाचार आदि अपराधों पर नियंत्रण करने के लिए बहुत
आवश्यक है कि सुधरें शिक्षा और संस्कार !सरकार के साथ साथ शिक्षा सुधार हम
सबका भी कर्तव्य है ।अतः आप सबसे भी प्रार्थना है कि अपने अत्यंत व्यस्त
समय में से थोड़ा सा समय निकालकर एक बार जरूर देख लिया कीजिए कि आपके पड़ोस
के स्कूल पढ़ाई में लापरवाही तो नहीं हो रही है इतनी जिम्मेदारी आप भी
निभाइए !अन्यथा -
"जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी इतिहास"
निवेदक -
डॉ.शेष नारायण वाजपेयी
संस्थापक -राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान
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