Wednesday, 20 April 2016

'केजरीवाल' हैं या ' दिल्ली के देवता' ! चौराहों आफिसों स्कूलों तक में लगे हैं उनके चित्र !

स्कूलों में राजनीति !
'ऑड इवन' योजना तो कामचोर अकर्मण्य सरकारों की हर असफलता पर अपना मुख छिपानेका घोसला मात्र है !
    दिल्ली सरकार की योजनाएँ तो बहाना हैं मुख्य काम तो 'केजरीवाल जी '  के चित्र चिपकाना है योजनाओं की आड़ में  केवल बहाने खोज खोजकर लगाए जा रहे हैं केजरीवाल के चित्र ! 
   दिल्ली के स्कूलों में घुसाई जा रही है राजनीति !स्कूलों को आत्म विज्ञापन का माध्यम बनाया जा रहा है इसी प्रकार से मैंने झील बस स्टैंड के स्कूल में ऐसे ही भारी भरकम चार पोस्टर देखे उनमें जिन नेताओं के चित्र हैं क्या उन्हें शिक्षा का देवता मान लिया जाए !आखिर उनके चित्रों का शिक्षा से क्या संबंध है ?ये लोग नेता हैं क्या ये सच नहीं है नेताओं के प्रति समाज में इतना निरादर है अविश्वास है फिर भी सुकोमल मानस बच्चों के सामने उन्हीं नेताओं के चित्र परोसे जाएँ उन्हें नेता देखने के लिए मजबूर किया जाए ये शिक्षा जगत के लिए और बच्चों के भविष्य  के लिए कितना उचित है ! शिक्षा संबंधी विज्ञापनों में स्कूलों छात्रों शिक्षकों के
शिक्षा में चौधराहट ! 
शिक्षा संबंधी चित्र होते उनमें शिक्षा जगत से जुड़े कुछ प्रेरक महापुरुषों के चित्र दिए जा सकते थे शिक्षा और संस्कारों से जुड़े कुछ प्रेरक वाक्य लिखे जा सकते थे जिन्हें देखकर शिक्षा का वातावरण कुछ सुधरता किंतु वहाँ अरविंद जी और मनीष जी के चित्रों की क्या भूमिका ये दोनों न तो शिक्षक हैं और न ही  छात्र !जो हैं जहाँ हैं वहाँ उनका सम्मान है किंतु शिक्षण संस्थानों का प्रयोग अपने प्रचार के लिए करना ठीक नहीं है !सरकारी सभी योजनाओं में कुछ कमियाँ  तो रह ही जाती हैं
उसी तरह इन योजनाओं में भी रही होंगी !विपक्ष यदि उनका प्रतीकार करना चाहे तो वो भी इन्हीं जगहों पर इनका खंडन करते हुए पोस्टर लगा सकता है क्या ?यदि नहीं तो सत्ता पक्ष क्यों ?क्या वो स्कूलों या ऐसी सरकारी जगहों का  मालिक है !
     इसी प्रकार से अन्य विभागों से संबंधित विज्ञापनों में भी किया जा रहा है किंतु ये ढंग तो ठीक नहीं है कि जब आपको अपने चित्रों वाले पोस्टरों पर धूल मिट्टी लगी दिखने लगती है तो आप किसी योजना का नाम लेकर उसी के बहाने अपना उद्देश्य पूरा कर लेते हैं और अपने बैनरों पोस्टरों से पाट देते हैं सारी दिल्ली !

   ऐसे 'ऑडइवनों' से तो हर विभाग की असफलता छिपाई जा सकती है जैसे महँगाई बढ़े तो एक एक दिन छोड़कर खाना शुरू करा दिया जाएगा !स्कूलों में बच्चों की भीड़ें कम करने के लिए बच्चों की डेट आफ बर्थ में फिट कर दिया जाएगा  'ऑडइवन' किस दिन किस बच्चे को स्कूल जाना है बता दिया जाएगा ! दिल्ली में यदि बाढ़ आ जाएगी तो दिल्ली वालों के पेशाब करने पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा क्या ?
  वस्तुतः  दिल्ली में'ऑड इवन 'योजना तो दिल्ली  सरकार के परिवहन विभाग के फेल होने की निशानी है जो दिल्ली वालों को उचित रोड मुहैया नहीं करा सकी ! ये बुद्धू लोग उसका भी उत्सव मना रहे हैं !
     दिल्ली की जनता के द्वारा दिल्ली के विकास के लिए दिए गए धन से विज्ञापन बनाने यदि इतने ही जरूरी थे पैसा इतना ही इफरात था तो उसमें जिसका पैसा लगता है या जिस विषय से संबंधित आफिस आदि होता है चित्र उसके लगने चाहिए नेताओं के क्यों ?
         आप सरकार के द्वारा चलाई जा रही 'ऑड इवेन' योजना भी तो इसी मानसिकता की प्रतीक है!इसका उद्देश्य यदि रोडों पर बाहनों की संख्या घटाना है तो स्वच्छता अभियान की तरह ही नैतिक निवेदन भी तो किया जा सकता था अन्यथा किस किस विषय में जनता पर थोपा जाएगा 'ऑड इवन" भीड़ तो हर जगह है और जन संख्या है तो भीड़ तो होगी ही इसका एक ही रास्ता है या तो संसाधन बढ़ाए जाएँ या फिर भीड़ घटाई जाए !
      'केजरीवाल जी ! 'आप तो 'ऑड इवन"योजना बनाएँगे तब प्रचार !जब लागू करेंगे तब प्रचार ! रोज बयान देंगे तब प्रचार !और बाद में योजना के सफल होने का उत्सव मनाया जाएगा तब प्रचार !कुल मिलाकर इस योजना का उद्देश्य ही आपके चित्रों का प्रचार करने के लिए बैनर पोस्टर लगाना है । यदि आपकी नियत साफ होती और आप वास्तव में दिल्ली को जाम की समस्या से मुक्ति दिलाना चाहते तो दिल्ली की रोडों पर से अतिक्रमण हटवा देते बिना विज्ञापन  दिए ही निकलने वाले लोग आपका गुण गाने लगते !
   केजरीवाल जी !अपने चित्रों के प्रचार पसार पर जो भारी भरकम धनराशि आप खर्च  करते हैं वो न आपके पिता जी की कमाई है और न ही आपकी !ये धन दिल्ली वाले दिल्ली का विकास करने के लिए सरकारों को देते हैं यदि सरकारों में बैठे लोग उस धन को उन लंबे चौड़े बड़े बड़े पोस्टरों को बनाने और चिपकाने पर खर्च करने लगें जो केवल आपके चित्रों को घर घर और जन जन तक पहुँचाने के लिए लगाए जाते हों  !
      हे केजरीवाल जी !आत्म विज्ञापनों में सरकारी नेताओं के द्वारा फूँकी जाने वाली ये दिल्ली वालों की धनराशि के विषय में क्या आपको पता है कि दिल्ली वाले कितनी मेहनत से अपना खून जलाकर और पसीना बहाकर कमाते हैं किंतु दिल्ली वालों को आप अपना नहीं समझते इसीलिए उनके पैसे के विज्ञापनों में बर्बाद होने से आपको दर्द नहीं होता है !
     केजरीवाल जी ! जरा सोचिए आपने अपने पिता जी कमाई से एक कलेंडर भी बनवाकर पहले कभी लगाया था अपने नाम और चित्र का ! आपने शिक्षा में इतनी बड़ी सफलता हासिल की थी या इतनी बड़ी पोस्ट मिली थी तब आपको इतनी ख़ुशी कभी क्यों नहीं हुई कि पोस्टर बनवाकर लगवा लेते ! तो आज दिल्ली वाले भी संतोष कर लेते कि तुम बचपन से ही पोस्टरों के शौकीन रहे हो !किंतु पहले ऐसा हुआ नहीं अब फ्री की सरकारी सम्पदा देखकर यदि इसे बर्बाद करने के लिए मन मचल ही  पड़ा है तो ये ढंग ठीक है क्या ?दिल्ली वालों के विकास का धन आज फ्री का लग रहा है आपको !
   केजरीवाल जी !यदि तब पोस्टर नहीं लगे तो नुक्सान क्या हुआ ?आज क्या लोगों को पता नहीं है कि तुम क्या हो और क्या थे ! जब बिना पोस्टरों प्रचारों के तुम्हारे विषय में सबको सबकुछ पता हो गया तो दिल्ली वालों के साथ जो भी अच्छा बुरा करोगे वो भी दुनियाँ  को पता हो ही जाएगा उसके लिए इतनी आतुरता क्यों ?माना कि दिल्ली वालों को आप अपना नहीं मानते इसलिए उनकी परेशानियों और पैसों से आपको लगाव नहीं है और पिता जी आपके अपने थे इसलिए उनके पैसे से लगाव था इसीलिए उनकी कमाई को बर्बाद नहीं किया और दिल्ली वालों की कर रहे हो !
      केजरीवाल जी !यदि आप कहें कि और लोग भी तो ऐसा करते हैं तो याद रखिए करते सब हैं किंतु इतना नहीं करते और इतने भोड़े ढंग से नहीं करते और यदि करते भी हों तो ये भी सोचिए कि इन्हीं कारणों से उनकी तुम निंदा किया करते थे तभी तो दिल्ली वाले तुमपर खुश हुए कि चलो ये सादगी पसंद ईमानदार है इसलिए ऐसा नहीं करेगा किंतु तुम भी यदि सबकुछ वैसा ही करने लगे जिसके लिए नेताओं की बुराई किया करते थे !तो इसे दिल्ली की जनता अपने साथ हुई धोखा धड़ी ही मानेगी !
      केजरीवाल जी !पोस्टरों से अच्छाई बुराई को कुछ उछाला तो जा सकता है किंतु बनाया नहीं जा सकता है !यदि ऐसा हो सकता होता तो सारे गंदे और गलत अपराधी लोग अपने विषय में अच्छी बातें लिखकर पोस्टर लगवा दिया करते और उन्हें लोग अच्छा समझने  लगते !

                       


स्कूलों में राजनीति !

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