Tuesday, 19 April 2016

काँग्रेस पार्टी अब PK की शरण में ! उधार की समझदारी से लड़ें जाएँगे चुनाव ! इतनी पुरानी पार्टी में समझदारी का टोटा !!

   पार्टी के द्वारा PK को इम्पोर्ट करने का मतलब है पार्टी में या तो समझदार नेता अब नहीं रहे और या फिर उनकी समझदारी पर पार्टी को संदेह हो गया है या फिर उन पर भरोसा नहीं रहा है !

     पार्टी का शीर्ष नेतृत्व फैसला लेने की तो छोड़िए अपनी बुद्धि से अपना भाषण देने की स्थिति में नहीं है !वो तो कोई लिख देता है तो पढ़ आते हैं ।चुनाव जितवाने के लिए PK , और PM बनने के लिए मनमोहन सिंह जी को रखा गया है !दस वर्षों तक सरकार चलाते रहे राहुल गाँधी जी और जनता की गालियाँ खाते रहे मन मोहन सिंह जी !

      देश की सबसे पुरानी पार्टी जिसने इतने लम्बे समय तक देश पर शासन किया हो ऐसी पार्टी समझदारीक्षय की बीमारी एवं विश्वनीय नेतृत्व क्षमता के अभाव से जूझ रही है !
      समझ के अभाव में केंद्र निर्मित योजनाओं व काम काज में विपक्षोचित कमियाँ मुद्दे आदि न खोज पाने के कारण दूसरों के बनाए मुद्दे हड़पने के लिए जहाँ तहाँ दौड़ा फिर रहा है पार्टी का शीर्ष नेतृत्व ।अखलाक की दुखद मौत हो या रोहित की मौत या फिर कन्हैया के प्रति हमदर्दी का मतलब इन लोगों के प्रति कोई समर्पण था ये बात नहीं है अपितु इन्हें किसी समझदार PK की तलाश थी जो अधियाँ बटाई पर पार्टी चला ले कुछ खुद कमा  ले कुछ हमें कमा  दे !  
    राहुलगाँधी जी समझदार राजनेता होते तो  मनमोहन सरकार को जैसे  अपनी अँगुलियों पर नचा सकते थे तो उनसे विकास कार्य भी करवा सकते थे, महँगाई भी रोक  सकते थे, महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार भी रोक सकते थे और उनके मंत्रियों के द्वारा किया जाने वाला भ्रष्टाचार तो रोक ही सकते थे ! 
    इसका सीधा सा मतलब है कि राहुलगाँधी जी समझदार राजनेता नहीं हैं और जब वो उपयुक्त राजनेता ही नहीं बन सके तो उपयुक्त प्रधानमंत्री कैसे बन सकेंगे !यदि वो प्रधानमंत्री बन भी जाएँ तो क्या ?जब वो मेकर ऑफ़ प्रधान मंत्री बनकर कुछ नहीं कर सके तो प्रधान मंत्री बन कर कौन सा तीर मार देंगे ! 
जब योग्य अनुभववान  बयोवृद्ध सम्मान्नित कांग्रेसी पदाधिकारी गण राहुल जी! राहुल जी! कह कर पीछे पीछे चले जा रहे थे ,यहाँ तक कि जब राहुल ने बिल फाड़ने की बात की थी वो भी मीडिया के सामने  तब किसी का साहस विरोध करने का क्यों नहीं हुआ!किसी ने ये नहीं पूछा कि इसे फाड़ क्यों रहे हो पहले बता तो दो कि ये गलत है इसलिए फाड़ रहे हो या समझ में नहीं आया है इसलिए ..... !
     समझदारी वाली बात तो जब PK लाए गए तब खुली है । वैसे काँग्रेस में अभी भी सक्षम और समझदार राज नेता हैं जिनके होते हुए पार्टी में बौद्धिक शक्तिबर्द्धक इंजेक्सन PK से क्यों लगवाना पड़ा ! 
    मोदी जी ये चुनाव केवल जीते ही  नहीं अपितु काँग्रेस की कमजोर समझदारी के कारण प्रधानमंत्री निर्विरोध  चुने गए हैं !वैसे भी ऐसे कहीं चुनाव होते हैं जहाँ कोई टक्कर देने वाला ही न हो !भला हो अमेठी और राय बरेली के मतदाताओं का जिन्होंने यशस्वी पूर्वजों का मुख देखकर इनसे सांसद कहलाने का हक़ नहीं जाने दिया अन्यथा तब क्या होता जब ये परिवार संसद से बाहर रहकर संसद में आज क्या हुआ ये अखवार पढ़कर जान पाता !

       विगत चुनावों में U.P.A. ने जिस गैर जिम्मेदारी से  एक नौसिखिया व्यक्ति को डायरेक्ट प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी बनाया था उसका समर्थन जनता आखिर कैसे कर सकती थी !

    उधर तत्कालीन प्रधानमंत्री जी ने चुनावों से पहले ही अपना सामान  बांधना प्रारम्भ कर दिया था आखिर इतनी भी जल्दी क्या थी इससे भी समाज में ठीक सन्देश नहीं गया !जिसने दस वर्ष शासन किया हो उसे जनता की आँखों में आँखें डालकर बात तो करनी ही चाहिए थी मुख छिपकर भागना क्यों ? जनता को सफाई तो देनी ही चाहिए थी कि आखिर उनसे चूक कहाँ हुई है किन्तु जो समय पूरे देश में घूम घूम कर चुनावी सभाओं के माध्यम से समाज के सामने सफाई प्रस्तुत करने का था उस समय वो अपने जाने की तैयारी कर रहे थे !इन सब आचरणों को देखकर तो ऐसा लग रहा था कि विरोधी पार्टियाँ तो काँग्रेस को मात्र प्रधान मंत्री पद से हटाना चाह रही थी किन्तु काँग्रेस पार्टी स्वयं ही  प्रधानमंत्री पद छोड़कर भागने को तैयार बैठी थी ऐसे कहीं लड़े जाते हैं चुनाव !

        आप स्वयं देखिए - काँग्रेस ने अपने प्रति जनता के आक्रोश के कारण अपनी पराजय जानते हुए भी कल्पित पी.एम.प्रत्याशी के रूप में राहुल गांधी को प्रचारित कर रखा था ! किन्तु जनता का सोचना यह था कि यदि राहुल कुछ करने लायक ही होते तो अभी तक U.P.A. के कार्यकाल में वो बहुत कुछ करके दिखा सकते थे और जब वो तब कुछ नहीं कर पाए तो उन्हें अब वोट क्यों देना!जो कभी मंत्री न रहा हो मुख्यमंत्री  भी न रहा हो  ऐसे अनुभव विहीन बिलकुल कोरे नौसिखिया व्यक्ति को U.P.A.डायरेक्ट प्रधानमंत्री बनाने के लिए तैयार कैसे हो गया ?ये तो जन भावनाओं एवं प्रधानमंत्री पद की गरिमा के साथ खिलवाड़ है !इस प्रकार से राहुल के प्रति जनता के मन में आक्रोश होना स्वाभाविक था !अपनी इसी जिद्द में जनता ने U.P.A. को बहुत बुरी तरह से हराया था !कुल मिला कर समझदारी के अभाव में बिगाड़ा सारा  खेल !

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