Monday, 9 May 2016

राजनैतिक पार्टियों के अंदर लोकतंत्र एवं चुनाव लड़ने के लिए शिक्षा अनिवार्य की जाए !

   लोकतंत्र की खाल में घुसे घूम रहे हैं काँग्रेस ,सपा बसपा राजद जैसे  गिरोहराजनैतिक पार्टियाँ हैं क्या ? कहाँ है इनमें लोकतंत्र ?
       ऐसे लोग जनता के पैसे से चलने वाली संसद का बहुमूल्य समय जनता के काम नहीं आने देते वो  औरों को बेईमान और अपने को ईमानदार सिद्ध करने में बर्बाद कर देते हैं !जबकि ये राजनेताओं और उनकी पार्टियों के अपने निजी मुद्दे हैं इससे उनका अपना हानि लाभ है जनता का नहीं तो ऐसे मुद्दों को जनता के पैसों से चलने वाली संसद में क्यों उठाया जाए फिर इनके लिए सांसद की कार्यवाही रोकने का का मतलब क्या ये नहीं होता कि इनके भ्रष्टाचार पर यदि पर्दा नहीं डाला  जाएगा तो ये संसद  नहीं चलने देंगे !संसद चलाना सरकार की मजबूरी होती है । ऐसे  भ्रष्टाचार का कोई केस खुलेगा ही नहीं ये तो सीधी सीधी ब्लैकमेलिंग है अन्यथा ऐसे मुद्दों के लिए पार्टियाँ कोर्ट जाएँ या फिर जनता को सच्चाई समझावें !
          पार्टियों में लोकतंत्र स्थापित होते ही शिक्षित,सदाचारी और समझदार लोगों को भी उनकी कार्यक्षमता के आधार पर अवसर मिलेंगे !ये शिक्षित सांसद संसद की चर्चाओं में भाग लेंगे इन्हें चर्चा  की समझ होगी दूसरे की सुनेंगे अपनी सुनाएँगे औरों के अच्छे बिचार मानेंगे अपने प्रेम पूर्वक औरों को मनाएँगे !हुल्लड़ नहीं मचाएँगे इससे संसद का बहुमूल्य समय बर्बाद नहीं जाएगा !जनता के पैसों से चलने वाली संसद का एक एक सेकेण्ड जनता के काम आएगा !जो सांसद शिक्षित नहीं होते वो अपने विचार रख नहीं पाते औरों के समझ नहीं पाते पार्टियों के सरदार लोग ऐसे लोगों का उपयोग हुल्ल्ड़ मचाने,माइकफेंकवाने ,कुर्सियाँ तोड़वाने में किया करते हैं चूँकि शिक्षित और  समझदार लोग अपना भी दिमाग लगाएँगे और पार्टी के सरदारों के कहे हुए गलत काम नहीं करेंगे इसीलिए राजनीति के स्वयंभू ठेकेदार दलितों सवर्णों ,अगड़ों पिछड़ों ,हिन्दू मुस्लिमों आदमी औरतों, गरीबों अमीरों के हिसाब से अवसर देने का राग  अलापने लगते हैं जबकि इनका दलितों पिछड़ों मुस्लिमों औरतों गरीबों से कोई लेना देना नहीं होता है अपितु इनका उद्देश्य केवल मूर्खों को अपने मातहत रखकर भाड़े पर राजनीति करवानी होती है !ऐसे भाड़े के टट्टू विधायकों सांसदों की बातो तो छोडिए यदि ऐसे लोग प्रधानमंत्री भी बन जाएँ तो भी ये पार्टी मालिकों की हाँ हुजूरी ही किया करते हैं !एक प्रधानमंत्री की मालकिन के बेटे ने उनके मंत्रिमंडल के द्वारा पास किए गए अध्यादेश के पन्ने फाड़ कर फेंकने के लिए बाकायदा मीडिया बुलाई थी केवल यह दिखाने के लिए कि केंद्र सरकार और उसके मंत्रियों की हमारे सामने क्या औकात है !यह देख जान कर भी प्रधानमंत्री समेत सारे मंत्रिमंडल को साँप सूँघ गया था जबकि लोकतंत्र में PM को सबसे ज्यादा शक्तिशाली माना जाता है किंतु इन पार्टी ठेकेदारों के सामने प्रधानमंत्री जैसे ताकतवर व्यक्ति को भी दुम दबाकर जाना होता है !

     जैसे  भाजपा में पार्टीअध्यक्ष बनने का सपना हर कार्यकर्ता देख सकता है वैसी सुविधा अन्य पार्टियों में क्यों  नहीं होने दे रहे हैं उन राजनैतिक पार्टियों के मालिक लोग !भ्रष्टाचार के जन्मदाता हैं ये लोग !इनके चुनाव हारने के बाद भी अधिकारी लोग इनके भ्रष्टाचार पर हाथ डालने में डरते हैं क्योंकि जब सत्ता में आएँगे तब बदला लेंगे !दूसरी राजनैतिक पार्टियाँ भ्रष्टाचार का शोर मचाकर सत्ता में तो आ जाती हैं  अलोक तांत्रिक पार्टियों के सरदारों पर भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्यवाही कैसे करें जब सत्ता में वो आएँगे तो बदला  लेंगे दूसरी बात पार्टिसरदारों को अपने लाखों कार्यकर्ताओं का समर्थन प्राप्त होता जब चाहेंगे तब आंदोलनों के नामपर देश के कानून व्यवस्था की धज्जियाँ उड़ा देंगे ईमानदार सरकारें इस गुंडागर्दी के कारण डर जाती हैं भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों से लड़ने में !इसीलिए भ्रष्टाचारी पहलीबात तो जेल जा नहीं पाते हैं और गए भी तो कानून को ठेंगा दिखाते हुए गंगा सी नहा  कर निकल आते हैं!
       
        

इसलिए लोकतांत्रिक पार्टी है भाजपा ! ही नहीं !
       सोनियाँ जी ,लालू जी ,मुलायमसिंह जी ,मायावती जी आदि लोग अपनी पार्टी के कितने योग्य समझदार व्यक्ति को अपने और अपने परिवार के नीचे ही दबा कर रखते हैं ताकि वो सिर न उठा एके और उनके सामने आँख मिलाकर बात न कर सके !इनकी यही समस्या वहाँ होती है जब चुनाव लड़ने के लिए शिक्षा अनिवार्य करने की बात आती है तो इन पार्टियों के मालिक घबड़ाजाते हैं कि नियम से तो पढ़े लिखे समझदार लोगों को टिकट देना
  जिन पार्टियों में अध्यक्ष केवल एक परिवार का ही सदस्य हो सकता है वो अपने को लोकतान्त्रिक पार्टी कैसे कह सकती हैं वो राजतांत्रिक पार्टियाँ हैं इसीलिए वो राजाओं की तरह का सलूक करती हैं अपने कार्यकर्ताओं और देश वासियों के साथ !
        जैसे अकर्मण्य चालाक और भ्रष्ट ऐय्यास राजा लोग अपनी कुर्सी कायम रखने के लिए जनता को
आपस में लड़ाया करते थे और खुद चौधराहट  बनने के लिए कोई एक व्यक्ति या परिवार निश्चित नहीं है का सपना हर कार्यकर्ता देख सकता है इसलिए 


काँग्रेस क्या ख़ाक बचाएगी लोकतंत्र ! लोकतंत्र की समझ नहीं है तो भाजपा से सीख ले या फिर PK से पूछ ले !क्या होता है लोकतंत्र !जानिए कैसे ?
   काँग्रेस अपना अध्यक्ष चुनती है क्या ?मनमोहन सिंह जी को PM जनता की रूचि से बनाया गया था क्या ?मनमोहन सिंह जी किस लोक सभाक्षेत्र से जीते थे चुनाव !काँग्रेस बताएगी क्या ?लोकतंत्र के स्वयंभू मसीहा बने फिरते हैं लोकतंत्र बचाओ रैली निकालते !अपनी अकल इंद्रिय खराब है तो कम से कम PK से ही पूछ लिया होता रैली निकालने से पहले कि  इससे भद्द तो नहीं पिटेगी !
    लोकतंत्र  है भाजपा में जहाँ पार्टी अध्यक्ष और PM प्रत्याशी के चयन में देखी जाती है पार्टी कार्यकर्ताओं की रूचि !रही बात प्रधानमंत्री बनाने की तो अपने PM प्रत्याशी के गले में बँधा पार्टीबंधन खोलकर स्वतंत्र छोड़ देती है पार्टी जनता का भरोसा जीतने के लिए !यदि उसके समर्थन में देश की जनता मोहर मारती है तब बाद में पार्टी मारती है मोहर ! जाओ तुमने पार्टी के अनुशासित सिपाही के नाते जनता का विश्वास जीतकर प्रधानमंत्री बनने की पात्रता सिद्ध की है इसलिए बनो प्रधानमंत्री !
      भाजपा के अलावा देश की लगभग अन्य सभी पार्टियों में लोकतंत्र का तो बस नाम भर है बाक़ी एक परिवार की ही मलकीयत चलती है और जिन पार्टियों के मालिक  फिक्स हैं उन पार्टियों को लोकतांत्रिक कैसे कहा जा सकता है ! जो काँग्रेस पार्टी अपना अध्यक्ष चुनने के लिए  सदस्यों की परवाह न करती हो देश का प्रधानमंत्री बनाने के लिए देश की जनता की इच्छा जानने की जरूरत ही न समझती हो वो बचाने निकली है लोकतंत्र !बारे लोकतंत्र के स्वयंभू मसीहा लोगो  !
     मनमोहन सिंह एक लोकसभा क्षेत्र के मतदाताओं का मन नहीं जीत सके वे देश के प्रधानमंत्री बनाए गए केवल पार्टी की मालकिन की इच्छा पर और हमेंशा  उसी प्रकार का व्यवहार भी करते रहे !मनमोहन सिंह जी की पार्टी की मालकिन के लड़के ने उनके मंत्रिमंडल के द्वारा पास कराया गया अध्यादेश फाड़ने के लिए बकायदा प्रेसकांफ्रेंस की थी ! यदि वो पार्टी की मालकिन के लड़के सहमत नहीं थे तो एकांत में बात भी की जा सकती थी मनमोहन सिंह जी से वे विद्वान हैं वयोवृद्ध हैं हैं शिष्ट शालीन अनुभवी आदि और भी बहुत कुछ हैं उनसे इस विषय में बात कर लेने में कौन सी बेइज्जती हो जाती या वो कौन  इनकार कर देते और यदि कर देते तो कितने घंटे रह पाते कृपा पूर्वक प्राप्त उस कुर्सी पर !ये तो दुनियाँ जानती है फिर भी दुनियाँ को दिखाकर अध्यादेश की कापी फाड़ने को मनमोहन सिंह जी की सरकार के लिए चुनौती क्यों न माना जाए लोकतंत्र कैसे मान लिया जाए ! 
    इसीप्रकार से मनमोहन सिंह जी की सरकार की मालकिन के लड़के को प्रमोट करने के लिए गैस सिलेंडरों की संख्या घटाकर पहले 9 की गई थी फिर मालकिन के लड़के से एक सभा में कहलवाया गया कि अब 12 कर दो सुनते ही पेट्रोलियम मंत्री एम वीरप्पा मोइली ने कहा -"सब्सिडी वाले सस्ते रसोई गैस सिलेंडरों का सालाना कोटा नौ से बढ़ाकर 12 किया जाएगा।" मालकिन के लड़के को प्रमोट करने के लिए जनता को ऐसे तंग किया जाता रहा इसे लोकतंत्र मान लिया जाए क्या ?
          इसप्रकार से सपा बसपा राजद आदि सभी पार्टियों में अध्यक्ष नहीं अपितु मालिक हैं इसीलिए भारतीय जनता पार्टी काँग्रेस समेत सभी पार्टियों को सिखा सकती है कि क्या होता है लोकतंत्र ! क्योंकि भाजपा "लोकतंत्र बचाओ" के नारे नहीं लगाती अपितु देश के लोकतंत्र के लिए साक्षात संजीवनी है ! लोकतंत्र  बचाने वाली एकमात्र पार्टी है भाजपा जिसमें अध्यक्ष बनने या प्रधानमंत्री बनने का सपना पार्टी का कोई भी कार्यकर्ता देख सकता है बशर्ते उसे पार्टी कार्यकर्ताओं और जनता का विश्वास जीतना होता है इसे कहते हैं लोकतंत्र !जो लोक इच्छा  से बनता है ।बाकी पार्टियों में लोकतांत्रिक दृष्टि से  अध्यक्ष चुनने के नाम पर  लोकतंत्र को केवल ठेंगा दिखाया जाता है ! जिस पार्टी में अध्यक्ष चुनने की जगह एक परिवार की मलकियत चलती हो !वे  सोनियाँ जी और मनमोहन जी क्या बचाएँगे लोकतंत्र !

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