Friday, 3 June 2016

राजनीति पद प्यासों की भीड़ है और प्यास बुझाने के लिए तो पेशाब तक पीते सुने जाते हैं लोग !

हे नेताओ !राजनीति के सारे पद प्रतिष्ठा सत्ता सम्मान केवल तुम्हें और तुम्हारे घर परिवार के लोगों को ही चाहिए तो देश वासियों को मूर्ख समझते हो क्या ?आखिर वे तुम्हारे पीछे पीछे दुम हिलाते क्यों फिरें !
    राजनैतिक पार्टियों में प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री मंत्री सांसद विधायक अध्यक्ष उपाध्यक्ष आदि के सारे पद उस पार्टी के समझदार  से भरे हुए हैं अब इन नेताओं को चाहिए चुनाव जिताने के लिए मूर्खों की भीड़ !जो बिलकुल भेड़ों की तरह इनके पीछे पीछे चलें, जो ये कहें वो मानें जो ये बकें वो सुनें जो ये सपने दिखाएँ वो देखें  ! नेताओं को केवल इनके लिए भीड़ बढ़ाने वाले और चीखने चिल्लाने वाले लोग चाहिए !इन्हें वो लोग चाहिए होते हैं जो मानसिक रूप से  बिलकुल मर चुके हों अर्थात खुद की कुछ बनने की जिनकी इच्छा ही न रह गई हो ऐसे मरे मराए  लोग केवल नेताओं और नेतापुत्रों को ही सब कुछ बनते  देखना चाहते हों बस !इन्हें वो अपराधी चाहिए होते हैं जो जिनके आन आफ करने का  रिमोट नेता जी के अपने हाथ में हो सीट खतरे में देखते ही उनके हवाले कर के चैन से सोते हैं नेता जी !ईएसआई सीट जितवाने का मतलब होता है उस अपराधी के पास अपराध करने का पाँच वर्षीय लाइसेंस !सच पूछो तो शिक्षित  समझदार प्रतिभावान लोग राजनेताओं के किस काम आते हैं अपराधी तो फिर भी काम आ जाते हैं !
    राजनीति को अपराधी लोग और अपराधियों को राजनीति  इतना अधिक पसंद करते हैं कि दोनों एक दूसरे के बिना रह ही नहीं सकते हैं ! इसका अंदाजा आप इसी बात से लगाइए कि राजनीति से जुड़ने के लिए यदि कोई योग्य चरित्रवान विद्वान पहुँच जाए तो सौ रोड़े लगाए दिए जाएँगे और यदि कोई एस वैसा व्यक्ति पहुँचे तो तुरंत जोड़ लेंगे अपने साथ !सनातन संस्कारों से जुडी हुई मेरी पृष्ठ भूमि होने के कारण मैं भी अपने अनुरूप पार्टी से जुड़ना चाहता था किंतु हमसे साफ साफ कहा गया कि हम धार्मिक व्यक्ति को नहीं ले सकते जबकि उस पार्टी से मैं सन 1987  से जुड़ा हूँ !कुल मिलाकर मुझे लगा कि जिस पार्टी के नेता मुझ पर भरोसा नहीं करते मैं उन पर भरोसा क्यों कर लूँ  !
         राजनैतिक पार्टियों के नेता लोग अपने पीछे पीछे दुम हिलाने वाले लोग खोजने के लिए ही हर चुनावों से पहले  समाज का मंथन करवाने के लिए रिसर्च करवाते हैं उनका उद्देश्य  यह पता लगाना होता है कि देश में ऐसे मूर्खलोग किस प्रदेश जिले मंडल आदि में कितने हैं और उन्हें कैसे जोता जा सकता है!ऐसे मूर्खों मजबूरों को खोजने  जोड़ने बेवकूप बनाने के नुस्खे तलाशने के लिए के लिए आजकल तो बकायदा ठेके तक उठने लगे हैं बाकायदा विशेषज्ञों की सेवाएँ ली जाती हैं वो नेताओं और उनकी पार्टियों में कुछ अच्छाइयाँ और विरोधी पार्टियों में कुछ बुराइयाँ खोजते हैं इसके आधार पर वो समझाते हैं कि आपके क्या बोलने का क्या असर होगा !इसलिए ऐसा ऐसा बोल देना करना क्या है वो तुम जानो तुम्हारा काम जाने !इसका मतलब जनता को मूर्ख बनाना नहीं तो क्या है ! नेता बोलते वो हैं जो एक्सपर्ट सिखाते हैं और करते वो हैं जिससे अपना एवं अपनों का फायदा हो !इसीलिए कथनी और करनी में अंतर हो जाता है ।ऐसी चुनावी चालाकी सिखाने वाले ऐसे धूर्त लोग अपने इन दुष्कर्मों का मोटा मोटा अमाउंट लेते हैं कि तुम कहाँ क्या कैसा कैसे बोलकर देश के कितने बड़े वर्ग को बेवकूप बना सकते हो !
      अगले वर्ष UP में चुनाव है इसलिए हर पार्टी के लोग अपने अपने घोसले से निकल रहे हैं जनता को मूर्ख बनाने के लिए इसी प्रक्रिया में  मंथन होंगे सम्मेलन होंगे रैली होगी रैला होंगे मूर्खों को जातीय सुविधाओं के टुकड़े फेंके जाएँगे उन्हें उनका दुखमय अतीत झँकाया जाएगा सुखद सपने दिखाए जाएँगे !विरोधी पार्टियों की निंदा की जाएगी अपने गुण बताए जाएँगे !
    कुलमिलाकर पिछले चुनावों के समय राजनैतिक शुद्धीकरण की कुछ आशा जगी भी थी कि राजनीति में आम जनता की सहभागिता के लिए भी दरवाजे खोले जाएँगे समाज के योग्य प्रबुद्ध जीवित लोगों की भी प्रतिभाओं का जन सेवा की दृष्टि से सदुपयोग किया जाएगा राजनैतिक पार्टियों में भले और समझदार लोगों को भी उनकी प्रतिभा के अनुसार पद प्रतिष्ठा प्रदान की जाएगी !किंतु ये तो उनसे भी अधिक लड़खड़ाते  दिख रहे हैं !जो इनके पहले सत्ता संचालन कर रहे थे !पार्टियों में बढ़ते भ्रष्टाचार भाई भतीजावाद पक्षपात चाटुकारिता आदि रोकने एवं प्रतिभाओं का सम्मान करने के जिन्होंने सपने दिखाए थे देश को उनसे कुछ आशा बँधी थी किंतु ये तो उनसे भी ज्यादा गिरने को तैयार दिखते हैं उनसे भी अधिक चालाकी करने पर आमादा दिखते हैं ! ये जनता को इतना मूर्ख समझते हैं कि जनता कुछ सोच ही नहीं पाएगी!अरे !
       राजनीति सबसे कठिन व्रत है !राजनीति के साधकों को अपनी की हुई वोमिटिंग चाटने का अभ्यास करना पड़ता है !  हाँ ,सरकर बनाने के लिए श्री राम मंदिर कुर्वान किया जा सकता है क्यों ? से राजनीति का क्या लेना देना ! हाँ राजनीति के लिए बाबा विश्वनाथ जी को भी चबूतरे पर बैठा सकते हैं हम !!सरकार के लिए श्री राम प्रभु को कुर्वान किया जा सकता है । सरकार बनाने के लिए शर्दी गर्मी वर्षा सह रहे हैं प्रभु श्री राम !
      बुरा से बुरा व्यवहार करके लीपापोती करने एवं बड़ी से बड़ी गाली ठीक ठाक शब्दों में देने का अभ्यास हो तो राजनीति करे !केवल अपने और अपनों के स्वार्थ साधन के लिए मन मजबूत हो तो राजनीति करे !अपनी कही हुई बात पर पलट जाने की क्षमता हो तो राजनीति करे !शिक्षित न हो तो ठीक और हो तो अशिक्षितों जैसा आचरण कर सकता हो तो राजनीति करे !चाटुकारिताकर सकता हो तो ठीक और न कर सकता हो तो करने का अभ्यास करने की दम हो तो राजनीति करे !
     मंदिर बनाने या तोड़ने का महत्त्व नहीं है !जो करने से वोट मिलेगा वो किया जाएगा !मंदिर की बात करने से वोट मिलता है तो मंदिर बनाने की बात की जाएगी और मंदिर गिराने की बात करने से बात बनती है तो मंदिर गिराने की बात की जाएगी !ये राजनीति हैं !
श्री राममंदिरनिर्माण के लिए सरकारें नहीं गिराई जा सकतीं !हाँ सरकार बनाने के लिए गिराया जा सकता है श्री राम जी का घर ! तब सर्दी गर्मी वर्षा का बचाव तो होता था किंतु आज .... !
जिनको प्रधानमंत्री बनाने के लिए श्री राम जी बेघर हुए वे सारी दुनियाँ घूम आते हैं किंतु श्री रामलला जी से आँखें मिलाने जाने की हिम्मत नहीं कर पाते आखिर क्यों ?किस काम की सारी बहादुरी क्या किसी देश का प्रधानमंत्री अपने धर्मस्थलों में जाने से ऐसे डरता है क्या ?आखिर क्या भय है अयोध्या जाने में !मंदिर बनाओ न बनाओ आपके दर्शन करके ही संतोष कर लेंगे श्री राम लला !एकबार जाओ तो सही अयोध्या घूम कर तो आओ !
  भ्रष्टाचार की निंदा करने वाले एक सच्चे राजनैतिक साधक को उसी भ्रष्टाचार के समुद्र में ख़ुशी ख़ुशी जीना पड़ता है !
        कोई नेता न स्त्री होता है न पुरुष न हिंदू होता है न मुसलमान और न दलित होता है न सवर्ण ! संन्यास लेने से पहले पिंडदान कर लेने के बाद जैसे संन्यासी का कोई अपना जाति धर्म नहीं रह जाता है दूसरों की कमाई और दूसरों की लुगाई पर आश्रित रहकर जीना  होता है यही स्थिति नेताओं जाति क्षेत्र समुदायों सम्प्रदायों में उलझा मतदाता अपने प्रशासकों की पहचान ही खो चुका है !
       सरकारों में सम्मिलित नेताओं  एवं सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की घूस जैसी गलत कमाई करते देखकर अब जनता भी गलत काम करने का मन बना चुकी है अब उसकी तमन्ना केवल इतनी है कि यदि नेताओं को  गलत कमाई करने के लिए वोट देकर हम उनकी मदद करते हैं तो उन्हेंभी  गलत कमाई करने में हमारी  मदद करनी चाहिए!इसीलिए जनता भी ऐसे गलत लोगों को चुनने लगी है जिनका न कोई चित्र होता है न तो चरित्र !

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