Saturday, 25 June 2016

'योग' सिखाने के लिए लगाए जाएँ गरीबों मजदूरों और किसानों के बच्चे ! सच्चे कर्मयोगी हैं वे !!उनकी उपेक्षा क्यों ?

   खेतों खलिहानों में उलटे खड़े हो हो कर दिन भर रिकार्ड तोड़ते हैं गरीबों के बच्चे !इसी उलटे खड़े होने की शरारतों के कारण दिन में कई कई बार पिट जाते हैं बेचारे !शहरों में वही हरकतें शीर्षासन कही जाती हैं जिनके बल पर लोग कहते  हैं कि हमने रिकार्ड तोड़ दिए हैं !    
     कैसे कैसे बेवकूप बनाते हैं लोग !वास्तव में मूर्ख बनाने का धंधा बना लिया है कुछ लोगों ने !और कहते हैं हम तो योगी हैं ऐसे तथा कथित योगगुरु गाँव में जाएँ न योग सिखाने देखो कैसे खदेड़े जाते हैं ।ऐसे लोगों के पास भीड़ अन्य कारणों से भले इकट्ठी हो जाए वो लोग जैसे बंदरों का नाच देखने के लिए इकट्ठे हो जाते हैं वैसे ही इन्हें देख देख कर भी हँस लेंगे थोड़ी देर उनका भी मनोरंजन हो जाएगा ! किंतु इस योग के कारण  तो नहीं ही होगी भीड़ !
   गरीबों मजदूरों और किसानों के बच्चे जब काम करते करते थक जाते हैं तो थोड़ी देर मस्ती मारने के नाम पर खेलने कूदने लग जाते हैं वे ऊँचे ऊँचे पेड़ों पर चढ़ लेते हैं बड़ी बड़ी ऊँचाई से कूद लेते हैं तेजधार नदियों में तैर लेते हैं भारी बोझा उठा लेते हैं दिन दिन भर लगातार परिश्रम कर लेते हैं !भैंसों की पीठ पर बैठ कर दौड़ा लेते हैं !उस बढ़ी स्पीड में कूद जाते हैं उसके ऊपर से !ताजा जुता हुआ खेत देख कर दौड़ने कूदने और सिर के भल खड़े होने का किसका मन नहीं करता है ये मस्ती वही समझ सकते हैं जिन्होंने  ग्रामीण जीवन के स्वर्ग को भोगा  हो !अब शहर के लोग उसे योग कहने लगें तो कहें !योग के नाम पर की जाने वाली इन पाखंडियों की हरकतों का जब ग्रामीण जीवन से मिलान करते हैं तो वहाँ का तो सुबह उठने से लेकर रात्रि में सोने तक का  हर काम ही योग है । चार चार पाँच पाँच सौ
हजार हजार बोरे आलू मीलों में कई कई कई मंजिल तक उठाकर ले जाते हैं पल्लेदार !यदि यही सबकुछ करना योग है तो वो पल्लेदार कर्म योगी क्यों नहीं ये कामचोर हाथ पैर हिलाने डुलाने वाले योग गुरु कैसे !
     रस्सी बाल्टी से कुएँ से पानी निकालना !फरूहे से खेतों की गुड़ाई करना,कई कई गट्ठे चारा काटना ये सब सार्थक काम 'योग' क्यों नहीं हो सकते ! किसान हैं इसलिए उन्हें योगी नहीं कहा जा सकता वो भी निरर्थक बैठ कर हाथ पैर हिला रहे होते तो बेचारे वो किसान लोग भी योगी कहे जाते !
     घरेलू कामों से भी मुख चुराने वाले नौकरों के आधीन जिंदगी जीने वाले लोगों के पेट बड़े बड़े हो गए हैं वो चाहें तो घरेलू काम कर लें घर की साफ सफाई कर लें बाहरी लोगों को घरेलू काम के लिए नौकर न रखें! इससे घर की प्राइवेसी भंग नहीं होगी बाहरी लोगों का घर गृहस्थी में प्रवेश बंद होगा !इससे घरों में घरेलू नौकरों के द्वारा घटित होने वाले तमाम प्रकार के अपराध रुकेंगे !
    अपने घर में पोछा लगाना,कपड़े धोना,बैठकर बर्तन माँजना , रसोई बाथ रूम की टाइल साफ करना !बैठकर परिश्रम पूर्वक आटा गूँथना !बैठकर रोटी बनाना !ऐसे परिश्रम पूर्वक  सार्थक शारीरिक कार्यों में लगे स्त्रीपुरुषों के कर्मयोगी होने का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है !
     शहरों में जिनके पेट निकले हैं उसे अंदर कराने के लिए जिस योग की आवश्यकता है वो कला  ग्रामीणों किसानों मजदूरों के बच्चे बच्चे को आती है उसके लिए योग को बदनाम करना ठीक नहीं है !ये कल सिखाने के लिए योगाटीचर का उत्तम रोल प्ले कर सकते हैं वो बच्चे ! पेड़ों से कूदने लभ्भा लैया खेलने वाले।,नदियों में तैरने नहाने वाले,खेतों खलिहानों में परिश्रम करने वाले,
 योग या उद्योग !या सत्ता का दुरुपयोग !!गरीबों का पेट भरना ज्यादा जरूरी है या अमीरों का पेट खाली करना ! !
    हमें ये सीधी सी बात समझनी होगी कि बिना शारीरिक श्रम किए यदि हम पूरा भोजन करते हैं तो हमारे लिए हानिकारक है उसे पचाने के लिए हमें हर हाल में पसीना बहाना होगा कोई काम करके या फिर बदरों की तरह निरर्थक  उछल कूद कर !
      किसानों ,मजदूरों या घरों में काम करने वाली महिलाओं के कभी पेट निकलते देखे हैं क्या ? सीधी बात वो काम करते हैं इसीलिए  तो !इसलिए उन्हीं से सीख लीजिए कर्म योग अन्यथा बाबाओं से सीखोगे तो ये तुम्हें हाथ पैर हिलाना डुलाना बताकर कोई न कोई अपना प्रोडक्ट बेच देंगे आपको !ऊपर से कहते हैं चैरिटी करते हैं चैरिटी में कहीं कमाई होती है क्या !करोड़ों रूपए के विज्ञापन ये चैरिटी है क्या !आजकल लोग इतना अधिक झूठ बोलने लगे हैं ।

 'योग' मुट्ठी भर आलसी लोगों के लिए है जबकि भुखमरी गरीबी का शिकार देश का बहुत बड़ा वर्ग है ! कर्ज पीड़ित आत्महत्या करते किसान !महँगाई की मार !दाल सब्जी पेट भरने के लिए नहीं मिल पा रही है ग़रीबों के बच्चों को !सरकार के लिए पहले जरूरी क्या है ये सरकार सोचे !समाज में जिन लोगों ने ग़रीबों के हिस्से का भोजन खुद खा लिया है और उसे पचाने के लिए परिश्रम नहीं किया है उस पाप से पेट निकल आए हैं !  विश्व के उन मुट्ठी भर लोगों के लिए इतना बड़ा आडम्बर और इतना भारी खर्च दूसरी ओर वो बहुत बड़ा वर्ग है जिसे दोनों समय भोजन नहीं मिल पा रहा है दाल सब्जी खाए बिना महीनों बीत जाते हैं दूध घी का पता नहीं उन बच्चों के लिए क्या है ?         
    राहु केतु शनि और वास्तु जैसे शास्त्रीय विषयों की निंदाकरने वाले बाबाओं को शास्त्रार्थ की चुनौती !see more...http://samayvigyan.blogspot.in/2016/06/blog-post_23.html

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