Thursday, 21 July 2016

वेश्याएँ शरीर बेचती हैं चरित्र और सिद्धांत नहीं ! वेश्याओं को भी यदि चरित्र की चिंता न होती तो वो भी नेता बन सकती थीं !!

   वेश्याओं से नेताओं की तुलना नहीं की जा सकती !जिस डर से वेश्याएँ बेचारी सारी मुसीबतें सह लेती हैं !आर्थिक परिस्थितियों के कारण शरीर बेचती हैं किंतु अपना चरित्र बचा लेती हैं उन पर गर्व किया जा सकता है किन्तु नेताओं पर नहीं !ये तो कभी भी किसी के गले लग जाते हैं और कभी भी तलाक कर देते हैं ! 
    वेश्याओं को भी पता होता है कि राजनीति सबसे अधिक कमाऊ धंधा है नेताओं की कमाई के आगे वेश्याओं की कमाई फीकी है !किंतु चरित्रवती वेश्याएँ सोचती हैं कि कमाई के लालच में राजनीति करनी शुरू की तो चरित्र चला जाएगा !चरित्र की चिंता में बेचारी सारी दुर्दशा सहती हैं किंतु नेता कहलाना पसंद नहीं करती हैं । 
    वेश्याओं को लगता है कि राजनीति में कमाई भले ही कितनी भी क्यों न हो किंतु वो हुई कैसे इस बात का नेता के पास कोई जवाब नहीं होता है ।गरीब से गरीब लोग जिनकी जेब में किराया नहीं हुआ करता था राजनीति में आने के बाद वो अरबों खरबों के मालिक हो गए आखिर ये चमत्कार हुआ कैसे !व्यापार कोई किया नहीं पुस्तैनी संपत्ति इतनी थी नहीं और यदि  गरीबों अल्प संख्यकों का हक़ नहीं हड़पा तो अपने आयस्रोत बताइए !जनता स्वयं जाँच कर लेगी कि कितने कमाऊ और कितने इज्जतदार हैं नेता लोग !चले वेश्याओं को नीची निगाह से देखने !जिनके काम में पारदर्शिता है राजनेताओं के काम में कोई पारदर्शिता  नहीं है !वेश्याएँ अपने शरीर की कमाई खाती हैं किंतु नेता लोग दूसरों के हक़ हड़पते हैं ।
     महिलाओं के हकों के लिए लड़ने का नाटक करने वाले नेता महिलाओं के लिए पास किया गया फंड खुद खा जाते हैं इस ही अल्पसंख्यकों के हितैषी नेता खा जाते हैं अलप संख्यकों के हक़ !दलितों के नाम पर राजनीति चमकाने वाले नेता नीतियाँ दलितों के हक़ हड़प जाते हैं ।दूसरों के हक़ हड़पकर सुख सुविधाएँ भोगते घूम रहे अकर्मण्य लोग! चले वेश्याओं का सम्मान घटाने !
     वेश्याएँ भी किसी की माँ बहन बेटियाँ होती हैं वो इस देश की  सम्मानित नारियाँ हैं वो हमसबकी तरह ही देश की नागरिक हैं !उनमें सभी धर्मों और सभी जातियों की महिलाएँ होती हैं !वो नहीं चाहती हैं कि राजनीति में आवें उनके भी घपले घोटाले उजागर हों उनकी अकर्मण्यता के कारण उनके नाते रिश्तेदारों सगे संबंधियों को आँखें झुकानी पढ़ें !ये वेश्याओं का अपना गौरव है । 
    वेश्याएँ सेक्स करती हैं ये बुरा होता है या जो ग्राहक ज्यादा पैसे दिखाए उसके पीछे भाग खड़ी होती हैं ये बुरा है !आखिर वेश्याओं में बुराई क्या है सेक्स तो सभी करते हैं एक से अधिक लोगों से सेक्स करना बुरा है तो प्रेमी जोड़े नाम के सेक्स व्यापारी भी तो अधिक  स्त्री पुरुषों से सेक्स करते हैं वो नहीं बुरे इसका मतलब वेश्याएँ अधिक लोगों से सेक्स के कारण बदनाम नहीं हैं अपितु बदनाम इसलिए हैं कि जो ज्यादा पैसे दिखाए उसकी हो जाती हैं । वेश्याएँ यदि केवल इस दोष के कारण दोषी होती हैं तो राजनीति में तो ये खूब हो रहा है प्रत्याशियों  का चयन करते समय अधिकाँश तो पैसा ही देखा जाता है बाकी  शिक्षा  चरित्र सदाचरण आदि सबकुछ तो गौण होता है एक से एक चरित्रवान विद्वान् कार्यकर्ता पैसे न होने के कारण पीछे कर दिए जाते हैं और पैसे वाले एक से  एक खूसट जिन्हें ये भी नहीं पता होता है कि किससे कैसे क्या बोलना है क्या नहीं या हम जो बोल रहे हैं उसका अर्थ क्या निकलेगा फिर भी उनका पैसा देखकर पार्टियाँ उन्हें न केवल उन्हें अपना प्रत्याशी बनती हैं अपितु अपनी पार्टी और संगठन के जिम्मेदार पदों पर भी ऐसे ही लोगों को बैठा देती हैं फिर उन पैसे वालों का जो मन आता है वो उसे बोल देते हैं और उन पार्टियों का लालची केंद्रीय नेतृत्व पीछे पीछे खेद प्रकट करते माफी माँगते चलता है !ये राजनैतिक वैश्यावृत्ति नहीं तो है क्या ?
    वेश्याओं के भी कुछ तो तो जीवन मूल्य होते होंगे ही किंतु राजनेताओं के तो वो भी नहीं रहे !उन्हें तो केवल कमाई दिखाई पड़ती है ! जो लोग दबे कुचले लोगों के हकों के लिए दम्भ भरते हैं उन्हें कुछ कह दिया जाए  तो इतनाबुरा लगता है किंतु वही शब्द किसी और को बोल दिया जाए तो बुरा क्यों नहीं लगता !
    अरे !दबे कुचलों के हिमायती ड्रामेवाजो !ये क्यों नहीं सोचते कि जो शब्द हमें कह दिया जाए तो इतना बुरा लग जाता है जिन महिलाओं की पहचान ही वही शब्द हो उन्हें कितना बुरा लगता होगा उनकी दशा सुधारने के लिए कितने आंदोलन किए अपने !दबे कुचलों के नाम पर सरकारी खजाना लूटकर अपना घर भर लेने वालो !यदि कर्म इतने ही अच्छे होते तो CBI का नाम सुनते ही पसीना क्यों छूटने लगता है !इसके पहले वाली सरकार तो जब जिस मुद्दे पर हामी भरवाना चाहती थी छोड़ देती थी CBI सारे घोटालेवाजों को जब जहाँ चाहती थी तब तहाँ मुर्गा बना दिया करती थी !
    वेश्याओं को राजनेता  इतनी गिरी दृष्टि से देखते हैं जिनके अपने कोई जीवन मूल्य नहीं होते !वेश्याओं का चरित्र राजनेताओं से ज्यादा गिरा होता है क्या ?वेश्याओं को इतनी गंदी दृष्टि से देखते हैं नेता लोग !
   वेश्याएँ भी चाहें तो और कुछ कर पावें न कर पावें किंतु वेश्यावृत्ति को छोड़कर राजनीति तो वो भी कर सकती हैं क्योंकि राजनीति के लिए किसी योग्यता की आवश्यकता नहीं होती है और शिक्षा भी जरूरी नहीं होती !सदनों की चर्चा में हुल्लड़ अक्सर मचता ही इसीलिए है कि लोगों को एक दूसरे की कही हुई बात समझ में ही नहीं आती है तब हुल्लड़ मचाना उनकी मजबूरी हो जाती है आखिर उनके भी तो ससुराल वाले पूछते हैं कि "जीजाजी" तुम्हें सदनों में कभी बोलते नहीं देखा आपकी आवाज तो कभी नहीं सुनाई पड़ी !तो वो बेचारे कह तो पाते हैं कि हुल्लड़ तो हम्हीं ने मचाया था आपने सुना नहीं था क्या ?सुनाई पड़ता न पड़ता किंतु मुख बगारे तो अपने पड़ोसियों को दिखा ही सकते थे !हमें बोलना आता नहीं है वहाँ की बातें अपने सिर के ऊपर से निकल जाती हैं मोबाईल पर वीडियो कब तक देखकर समय पास करें ?कब तक सीटों पर सो कर निकालें अपना समय !थोड़ा बहुत इधर उधर घूम फिर के काट लेते हैं अपना समय !हम लोगों को तो अपने गिरोह के सरदार के इशारे का इन्तजार होता है पार्टी के मालिक लोग या घराने ही निर्णय लेते हैं कि हमें सदनों में कैसा रोल प्ले करना है क्या करना है हमें तोउन्हीं के द्वारा लिखी हुई स्क्रिप्ट पर चलना होता है!इसलिए उन्हीं के इशारों पर नाचना हम लोगों की मजबूरी होती है नहीं तो निकाल देंगे अपने गिरोह से फिर भटकना पड़ेगा !जिस भी पार्टी में जाएंगे हमें मिलनी मजदूरी ही है इसलिए यहीं सही !अन्यथा वो किसी  को भर्ती कर लेंगे मेरी जगह !इसीलिए तो किसी दिमागदार सजीवलोगों को पार्टियों के गिरोह मालिक अपने आस पास तक नहीं फटकने देते हैं जिस पर थोड़ा भी शक होता है कि इसके पास अपना दिमाग और ये उसका उपयोग भी कर सकता है !जिसके पास अपनी योग्यता भी है और अपने निर्णय खुद ले भी सकता है ऐसे कुछ लोग गिरोहों में दरवान बनाकर रखलिए जाते हैं जो हर घपले घोटाले पर लीपा पोती किया करते हैं कानूनी मंचों पर  भ्रष्टाचारियों  ईमानदार सिद्ध करने का काम उन्हें सौंप दिया जाता है !कुछ बोलने वाले रख लिए जाते हैं कुछ रणनीति बनाने वाले कुछ टीवीचैनलों पर अपने अपने गिरोहों की  तरफ से चोंच लड़ाने के लिए टीवी चैनलों पर बहस के लिए जाने से पहले इन्हें समझा दिया जाता है कि वहाँ जाकर कुछ बोलना मत जो चर्चा में फँस जाओ !क्योंकि चर्चा के लिए उस तरह का दिमाग चाहिए होता है तुम केवल इतना करना कि वहाँ अपनी पार्टी और पार्टी के मालिक का नाम ले लेकर ऐसा शोर मचाते रहना कि कोई दूसरा अपनी बात बोल न पाए !टीवी चैनल भी ऐसे ही लोगों को पसंद करते हैं ताकि कह सकें कि गरमागरम बहस हो रही है एक घंटे हुल्ल्ड मचवाने के बाद चैनल वाले खुद धक्का देकर बाहर फेंकवा  देते हैं !
      साली ने पूछा -जीजा जी वहाँ पहुँचकर लोग गालियाँ क्यों देते हैं माइक ऐसे तरह तरह के उपद्रव क्यों करते हैं !तो नेता जी ने समझा कि वो इतना बड़ा मंच है वहाँ पहुँचकर अपनी प्रतिभा का  नहीं करना चाहता है |जिसने जीवन भर  पहलवानी की हो वो वहां पर जाकर भी दो दो हाथ करना चाहेगा  स्वाभाविक है गाली देते रहने वाले गाली देंगे ही !इसीलिए तो राजनीति में योग्यता को अनिवार्य नहीं बनाया गया !
   साली ने फिर कहा कि जीजा जी !राजनीति में योग्यता अनिवार्य हो न हो किंतु शिक्षा का अपना महत्त्व है इससे इंकार नहीं किया जा सकता है !इस पर साली को समझाते हुए नेता जी ने कहा कि शिक्षा का क्या महत्त्व है ख़ाक !
 अधिकाँश शिक्षित लोगों को राजनीति में कोई मुख लगाता नहीं है वहाँ तो बार बार कह कर अपनी बात से मुकरना होता है उसमें शिक्षा का क्या काम !नीति का नाम ले लेकर अनीति करना ही तो राजनीति कही जाती है !वैसे भी शिक्षा की जरूरत जीवन में पड़ती ही कहाँ है राजनीति से भ्रष्टाचार पूर्वक कमाई करो फिर एक से एक पढ़े लिखे लोगों को भाड़े पर रख लो अपने यहाँ काम करने को सब सर सर कहेंगे और दिनरात हाजिरी देंगे नेताओं के यहाँ !नौकरी भी नेताओं के सोर्स से ही मिलती है शिक्षा से नहीं बड़े बड़े पढ़े लिखे लोग मारे घूम रहे हैं कौन पूछता है उन्हें !एक से एक अनपढ़ लोगों को फर्जी कागज़ बनवा कर नेताओं ने घुसा रखा है सरकारी नौकरियों में ले रहे हैं लाखों में सैलरी !नेताओं ने सोर्स लगाकर ऐसे ऐसे लोगों को शिक्षक  रीडर प्रोफेसर आदि बनवा दिया है ऐसे लोगों को आज है स्कूल इंटर की परीक्षाओं में बैठा दिया जाए तो 50 प्रतिशत भी पास हो जाएँ तो भी बड़ी बात होगी !तभी तो जैसी शिक्षा वैसे संस्कार !समाज में अपराध बढ़ते ही नेताओं के सोर्स सिफारिस के कारण हैं | शिक्षित सभ्य सदाचारी लोगों को न तो नौकरी मिलती है न प्रमोशन न कोई राजनीति में पूछता है जो किसी तीर तुक्के से एक बार घुस भी गए उन्हें भी नेता लोग उनकी औकात में बाँध कर रखते हैं उन्हेंकेवळ मंच संचालन की जिम्मेदारी दी जाती है और कोई कुछ बने तो वो बधाई देने जा सकते हैं बस !केवल उनके हंसने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होता है !
    कुल मिलाकर राजनीति ही इस जीवन का सच है !देखो डॉ.एस.एन.वाजपेयी को इतने विषयों से MA किया इतनी किताबें लिखीं तो उन्हें क्या मिला ! ब्राह्मण होने के नाते नौकरी माँग नहीं सकते थेसोर्स था नहीं घूस देने के लिए पैसे नहीं थे तो शिक्षित होने का क्या लाभ राजनीति पढ़े लिखे लोगों को पूछती  नहीं है आपस्वयंदेखिए-http://snvajpayee.blogspot.in/2012/10/drshesh-narayan-vajpayeedrsnvajpayee.html-क्योंकि ब्राह्मणोंका इस देश की राजनीति अघोषित रूप से बहिष्कार करती है इनके नाम पर कोई विकास योजना नहीं बनती है उसे भय है ये दिमागदार लोग अपने नाम पर घपलेघोटाले नहीं करने देंगे दलितों के नाम पर योजनाएं बनाकर अपने घर भर लिया करते हैं नेता लोग!ऐसा ब्राह्मणों के साथ थोड़ा कर पाएँगे !इसीलिएतो इन्हें लाभ पहुँचाने के लिए कुछ नहीं किया जाता है !
 नौकरी दी ही उन्हें न जाती हैं जो न कुछ जानते हों न कुछ पढ़े हों और अपने मुख से ये कहने में शर्म न करते हों कि हम बिना आरक्षण के अपने बल पर तरक्की नहीं कर सकते !फिर भी लोग उन्हें नौकरी दे देते हैं यह जानते हुए भीकि जब अपने बल पर घर की रसोई नहीं चला सकते तो नौकरी के साथ न्याय कैसे कर सकेंगे !इसीलिए लिएतो सरकार के किसी विभाग में काम कर सकने और काम करने वाले लोग बहुत काम पहुँचपाते हैं लोगों के काम नहीं हो पते हैं तो नेताओं के यहां जमावड़ा लगा रहता है वोसिफारिशी  चिट्ठी लिख लिख कर दिया करते हैं काम चिट्ठियाँ तो करेंगी नहीं उसके लिए तो अकल चाहिए और अकल ही होती तो आरक्षण क्यों माँगते !
कुल मिलाकर राजनीति सभी प्रकार के अपराधों की सबसे बड़ी मंडी है !राजनीति में तो बहस ही इन्हीं बातों पर होती है कि दूसरी पार्टियाँ हमसे ज्यादा खराब हैं हम अच्छे हैं ऐसा कहने की तो कोई नेता हिम्मत भी नहीं कर पाता है !
   इसीलिए तो राजनीति में जाकर वेश्याएँ भी  कर सकती हैं अनाप शनाप कमाईवो चुनाव भी आसानी से जीत सकती हैंवो नेताओं से अधिक मनोरंजन करा सकती हैं किंतु उन्हें अपना चरित्र प्याराहोता  हैइसलिए  वो शरीर बेच लेती हैं किंतु चरित्र बचा लेती हैं ।    
  इसलिए  वेश्याकी तुलना नेताओंसे  कर देनाठीक नहीं होगा !

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