कोरोना महामारी के बिषय में कुछ सुलगते सवाल !
भारतवर्ष में कोरोनामहमारी को प्रारंभ हुए एक वर्ष हो चुका है और अब धीरे धीरे समाप्त भी होती जा रही है पिछले वर्ष 17 सितंबर 2020 को कोरोना संक्रमितों संख्या क्रमिक रूप से बढ़कर लगभग एक लाख के पास पहुँच गई थी !उसके बाद यह संख्या क्रमिक रूप घटते घटते अब लगभग दस हजार के पहुँच गई है वो भी दिनों दिन कम होती जा रही है आशा है कि कुछ समय में यह बिल्कुल समाप्त भी हो जाएगी |
देश में चुनी हुई सरकार है जिसे देशवासी अपने खून पसीने की गाढ़ी कमाई से टैक्सरूप धन देते हैं उस धन को सरकार विकास कार्यों के लिए खर्च करती है उसके साथ ही उसीधन से कुछ धनराशि जनता के जीवन की कठिनाइयों को कम करने एवं जनता की आवश्यकताओं की आपूर्ति को आसान बनाने के लिए चिकित्सा मौसम आदि अनेकों प्रकार के वैज्ञानिक अनुसंधानों पर खर्च की जाती है | वैज्ञानिकों एवं वैज्ञानिक अनुसंधानों के लिए जुटाए जाने वाले संसाधनों पर हमेंशा प्रचुरधनराशि खर्च कर दी जाती है | यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि जनता बड़ीमुसीबत से यह धनराशि अर्जित करती है जो टैक्स रूप में वैज्ञानिक अनुसंधानों आदि के लिए सरकारों को देती है | यह धन सरकारें जिन चिकित्सा मौसम आदि अनेकों प्रकार के वैज्ञानिक अनुसंधानों पर खर्च किया करती हैं उन अनुसंधानों का परीक्षण कभी कभी ही हो पाता है |उस समय ही इस बात का अंदाजा लग पाता है कि सरकारों के द्वारा अनुसंधानों पर खर्च किया जाने वाला धन कितना सार्थक एवं कितना निरर्थक व्यय किया जा रहा है |
मौसमसंबंधी घटनाएँ हमेंशा से घटित होती रही हैं सर्दी में हेमंत शिशिर ऋतुओं में सर्दी ,बसंत और ग्रीष्म ऋतु में गर्मी और वर्षाऋतु में वर्षा होती ही है सर्दी गर्मी वर्षा अपनी अपनी ऋतुओं में होगी ही कभी कुछ कम होगी तो कभी कुछ अधिक होगी |एक जैसी तो कभी होती नहीं है हर जगह हरवर्ष एक जैसी वर्षा भी नहीं होती है और न ऐसा होना संभव ही है|इसलिए इतना तो जनता को भी पता होता है और इसकी तैयारी करके वो आगे से आगे चलती भी है फिर भी इनके बिषय में निश्चित पूर्वानुमान मिलता है तो जनता को उसका लाभ मिल जाता है |
अलग अलग देशों प्रदेशों में अलग अलग वर्षों में अपनी अपनी ऋतुओं में ऋतुओं का अपना प्रभाव यदि बहुत कम या बहुत अधिक होता है या एक ऋतु अपना प्रभाव अपनी ऋतु के साथ साथ दूसरी ऋतु में दिखाई पड़ता है जैसे सर्दी या गर्मी के समय में वर्षा और बाढ़ जैसी घटनाएँ होती दिखें तो इसके लिए जनता तैयार नहीं होती है इसलिए इससे जनता का अन्य सभी प्रकार का नुक्सान तो होता ही है इसके साथ ही ऐसा ऋतुविपरीत वातावरण बनने से रोगकारक हो जाता है इससे तरह तरह के रोग पैदा होते हैं |
ओलेगिरने ,बज्रपात होने या अत्यधिक बारिश एवं बाढ़ तथा हिंसक आँधी तूफानों से जनता का अधिक नुक्सान होता है इसके लिए जनता को पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है |ऐसे समय ही मौसम वैज्ञानिकों द्वारा किए जाने वाले मौसम संबंधी अनुसंधानों की परीक्षा होती है किंतु ऐसी घटनाओं के घटित होने का कारण यदि जलवायुपरिवर्तन को बताकर अपनी जिम्मेदारी से यदि पल्ला झाड़ लिया जाएगा जैसा कि अभी तक किया जाता रहा है तो मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा
किए जाने वाले मौसम संबंधी अनुसंधानों की आवश्यकता और उद्देश्य ही क्या रह
जाएगा |जिन अनुसंधानों का जनता के हित में कोई लाभ ही नहीं होगा अनुसंधानों के नाम पर किए जाने वाले निरर्थक ऐसे दिखावे की आवश्यकता ही क्या रह जाएगी |ये सरकारों और वैज्ञानिकों को तय करना है कि उनके द्वारा किए करवाए जाने वाले अनुसंधान जनता की आवश्यकताओं पर कितने खरे उतरते हैं |
भूकंपों के बिषय में आज तक जो भी अनुसंधान किए गए हों जितने भी आँकड़े अंदाजे आदि लगाए गए हों उनसे भूकंपों के बिषय में ऐसी कोई जानकारी नहीं जुटाई जा सकी है जिससे भूकंपों के पूर्वानुमान से लेकर भूकंपों के कारण तक कुछ भी पता लगाए जा सके हों |
प्रायः सभी देशों प्रदेशों में सरकारें अपने वैज्ञानिकों द्वारा बताई जाने वाली अधिकाँश बातों को विज्ञान सम्मत मान कर उन पर न केवल स्वयं विश्वास करती हैं अपितु उन पर विश्वास करके उन्हें मानने के लिए जनता को भी बाध्य किया करती हैं | उस प्रकार के शक्त शक्त नियम कानून बना दिए जाते हैं जिन्हें न पालन करने पर उन पर भारी भरकम आर्थिक दंड लगाया जाता है | जिससे कम से कम नुक्सान हो इससे सरकारी तंत्र के आर्थिक पूजन की पृथा का प्रचलन बढ़ता है | ऐसे अधूरे अनुसंधानों के कारण भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है |
वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर ऐसी धार विहीन अवैज्ञानिक सलाहों के कारण जनता जहाँ एक ओर वायु प्रदूषण महामारी या अन्य सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रही होती है वहीँ दूसरी ओर अनुशासन के नाम पर सरकारी उत्पीड़न का शिकार हो रही होती है |
वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा वायुप्रदूषण बढ़ने का निश्चित कारण न पता होने पर भी वायु प्रदूषण बढ़ाने के कारण खोजने के नाम पर कुछ अवैज्ञानिक कल्पितकारण गढ़ लिए जाते हैं उन्हें ही सच मानकर उन्हें मानने के लिए जनता को बाध्य किया जाता है |जनता भी एक ओर तो वायु प्रदूषण से जूझ रही होती है तो दूसरी ओर उसी का चालान करके उससे पैसे वसूले जा रहे होते हैं |
परालीजलाना ,वाहनचलाना ,उद्योगधंधे चलाना ,ईंटभट्ठा चलाने जैसे कार्यों से बहुत बड़े वर्ग की आजीविका जुड़ी होती है उसे अचानक रोक पाना उन लोगों के लिए संभव नहीं होता क्योंकि कार्य संचालन के लिए निकलने वाला खर्च ,अपना खर्च एवं कर्मचारियों की सैलरी आदि सब कुछ उसी से निकालना होता है |वो अपनाखर्च किसी तरह रोक भी लें तो बाक़ी पैसों का इंतिजाम करना भी तो आसान नहीं होता है | इसलिए उन्हें ऐसा करने में कठिनाई होती है |
ऐसे कार्यों से संबंधित लोग तो अपनी मजबूरी कारण ऐसे कठोर सरकारी नियमों का पालन नहीं कर पा रहे होते हैं सरकारें अनुशासनभंग करने के लिए दोषी मानकर उन्हें आर्थिक आदि दृष्टि से दंडित किया करती हैं |
ऐसे अवैज्ञानिक सुझाव देने वाले वैज्ञानिकों ,उनकी सलाह मानकर ऐसे नियम बनाने वाले सरकारों में सम्मिलित लोगों एवं इनके पालन की जिम्मेदारी निभाने वाले अधिकारियों कर्मचारियों की सैलरी समेत सुख सुविधा के समस्त खर्चे उनके परिवारों का आर्थिक बोझ जनता उठाती है | इसी लिए वे जनता का कामकाज रोककर कहीं खड़े हो जाते हैं उन्हें लगता है कि जनता उनकी बात नहीं मानती है इसलिए वे जनता पर आर्थिक दंड लगाने लगते हैं जबकि उनकी बात न मानना जनता की मजबूरी होती है जनता की इस अवस्था का अनुभव उन्हें इसलिए नहीं होता है क्योंकि उन्हें जनता की तरह उन समस्याओं से नहीं जूझना पड़ता है |
जनता की आय निश्चित नहीं होती है उसे परिश्रम पूर्वक उसी काम से होने वाली अपनी कमाई से ऐसे सरकारी लोगों के जीवन का बोझ ढोना पड़ता है इसके साथ ही अपना एवं अपनी घर गृहस्थी तथा कार्यक्षेत्र के आश्रितों का बोझ उठाना पड़ता है | अपनी इस जिम्मेदारी को ईमानदारी पूर्वक उठाने के लिए अचानक काम रोकना उनके लिए इतना आसान नहीं होता है सरकारी नियम निर्धारकों के द्वारा अपनी सैलरी सुख सुविधाओं आदि की तरह ही यदि ऐसे लोगोंकी सैलरी आदि भी सरकारी धन से देना निश्चय किया होता तो उन्हें भी कोई दिक्कत नहीं होती !
सरकारों ने वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा वायु प्रदूषण बढ़ने का वास्तविक कारण खोजने की जिनको जिम्मेदारी सौंपी है इसी काम के लिए सरकारें उन्हें सैलरी आदि समस्त सुख सुविधाएँ देती हैं फिर भी वे वास्तविक कारण न खोज पाएँ इसके लिए उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है किंतु जो वे `
डेंगू प्रारंभ होने का कारण उसके लक्षण उसकी औषधि आदि खोजने की जिम्मेदारी जिन्हें सौंपी गई थी वे उस दिशा में भले कुछ भी न कर पाए हों किंतु उनके बताए हुए काल्पनिक कारणों को न माने तो जनता का चालान कर दिया जाता है |एक निश्चित समय के बाद कूलर गमले आदि में कहीं पानी मिले तो चालान आखिर क्यों ?जब तक इस बात का निश्चय नहीं होता है कि डेंगू फैलने का वास्तविक कारण वास्तव में क्या है |
इसीप्रकार से कोरोना महामारी के समय लॉकडाउन सोशल डिस्टेंसिंग मास्कधारण सैनिटाइजर आदि के प्रयोग से कोरोना संक्रमण को रोकने में कोई मदद मिलती है भी है या नहीं क्योंकि ऐसी चीजों का अनुपालन जहाँ या जिन्होंने नहीं किया उन्हें खतरे से जूझना पड़ा हो ऐसे कोई विशेष उदाहरण नहीं मिलते हैं दूसरी ओर ऐसे नियमों का जिन्होंने कड़ाई से पालन किया था उनका कोई विशेष बचाव हो गया हो ऐसा भी व्यवहार में नहीं देखा गया है | इसके बाद भी सच्चाई प्रमाणित हुए बिना ही ऐसी काल्पनिक बातें निर्ममता पूर्वक जनता पर थोपने का उचित आधार क्या था |किस अनुसंधान या ट्रायल आधार पर जनता के चालान काटे गए |
भारत में कोरोना समाप्त होने का वास्तविक कारण क्या था ?
कोरोना महामारी को समझने में असफल रहे वैज्ञानिक ! केवल तीर तुक्के लगाए जाते रहे !
सरकारों के महामारी के विशेषज्ञों को यह तो समझ में आया ही नहीं कि कोरोना प्रारंभ कब कहाँ कैसे हुआ इसका विस्तार क्षेत्र कितना है इसका प्रसार माध्यम क्या है मौसम का इस पर क्या असर पड़ता है ये हवा में है या नहीं बिना मास्क बिना सैनिटाइजेशन और बिना शोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने वाले मजदूरों आंदोलनरत किसानों पर कोरोना का प्रभाव क्यों नहीं पड़ा ?
महामारी को ठीक तरह से समझे बिना महामारीसे मुक्ति दिलाने के लिए
कोई प्रभावी औषधि कैसे बनाई जा सकती है ?
वे मेलें -
वैज्ञानिकों के लिए सबसे बड़ी चुनौती :भारत में सितंबर से महामारी अचानक घटी कैसे ?
पिछले साल सितंबर तक भारत में कोरोना वायरस के रोजाना करीब एक लाख मामले सामने आ रहे थे. ये वो समय था जब भारत कोविड-19 की सबसे ज्यादा मार झेलने वाले अमेरिका से आगे निकलने की राह पर था. मरीजों से अस्पताल भरे पड़े थे जनवरी 2021 में 10 हजार मरीज आ रहे हैं इतनी संख्या अचानक घटने का कारण क्या है ?
वैज्ञानिकों द्वारा इस बिषय में लगाए जाने वाले तीर तुक्के -https://www.aajtak.in/lifestyle/news/photo/covid-19-how-corona-virus-daily-cases-declined-in-india-scientists-say-its-a-mystery-tlif-1204595-2021-02-08-1
महामारी को समझपाने में क्या सफल हो पाया है विज्ञान !
चिकित्सा करने से पूर्व उस रोग को समझने के लिए पहले रोगी की जाँच की जाती है जाँच रिपोर्ट को अच्छी प्रकार से समझकर ही रोगी की चिकित्सा प्रारंभ की जाती है| जाँच के लिए जब मशीनें नहीं थीं तब भी वैद्य लोग नाड़ी देखकर अथवा लक्षणों के आधार पर रोग निदान किया करते थे | उसके आधार पर औषधियों का निर्माण करके किसी रोगी को रोग मुक्ति दिलाना संभव हो पाता था | ऐसा किसी भी सामान्य रोग में किया जाता था |
महामारी जैसे महारोग चूँकि सामूहिक रूप से बहुत बड़े वर्ग को प्रभावित करते हैं इसलिए ऐसे सामूहिक रोगों के परीक्षण के लिए प्रकृति परिवर्तनों के आधार पर प्राकृतिक वातावरण में विद्यमान रोगाणुओं की पहचान की जाती थी | उसके आधार पर किसी महारोग के स्वभाव ,लक्षण,संक्रमकता, विस्तार ,प्रसारमाध्यम एवं उस पर पड़ने वाले मौसम आदि के प्रभाव का अनुसंधान करके उस महारोग के बिषय में जो अनुमान लगाए जाते थे वे जितने प्रतिशत सच निकलते थे उतने प्रतिशत उस महारोग के परीक्षण को सही मान लिया जाता था | यद्यपि इस प्रक्रिया में थोड़ा समय लग जाता था | पहले महामारी फैलती थी फिर उसके लक्षणों आदि के बिषय में अनुमान लगाया जाता था फिर उन अनुमानों का विद्यमान परिस्थितियों के साथ मिलान किया जाता था जैसे जैसे और परिस्थितियों में एकरूपता बनती जाती थी वैसे वैसे महामारी के परीक्षण को सफल मानकर उस महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए औषधियों का निर्माण प्रारंभ किया जाता था | इस प्रक्रिया का पालन करने बहुत लंबा समय लग जाया करता था तब महामारी का संक्रमण काफी अधिक बढ़ जाता था |
इससे बचने के लिए उस युग में महामारियों (महारोगों)का पूर्वानुमान लगाने की परंपरा थी जिसके आधार पर भविष्य में होने वाली महामारियों का एवं उनके स्वभाव ,लक्षण,संक्रमकता, विस्तार ,प्रसारमाध्यम तथा उस पर पड़ने वाले मौसम आदि के प्रभाव का पूर्वानुमान महामारी प्रारंभ होने के बहुत पहले लगा लिया जाता था |यहाँ तक कि उससे मुक्ति दिलाने के लिए औषधियों का भी निर्माण भी महामारी प्रारंभ होने के बहुत पहले कर लिया जाता था |जिससे महामारी को प्रारंभ नियंत्रित कर लिया जाता था |इससे महामारियों के प्रकोप से जनधन की अधिक हानि होने बचाव हो जाया करता था |
इस पद्धति से ही मैं जो जो पूर्वानुमान कोरोना महामारी के बिषय में लगाकर प्रधान मंत्री जी की मेल पर भेजता रहा हूँ वे सब सही निकलते रहे हैं | प्रमाण रूप में वे मेलें अभी भी विद्यमान हैं जिनकी कॉपी इसी पुस्तक में आगे प्रकाशित की जा रही है | उन पूर्वानुमानों पर कितना ध्यान दिया गया मुझे नहीं पता किंतु ध्यान देने से कुछ मदद अवश्य मिल सकती थी ऐसा विश्वास पूर्वक कहा जा सकता है |
वर्तमान समय में कोरोना महामारी के स्वभाव ,लक्षण,संक्रमकता, विस्तार ,प्रसारमाध्यम एवं उस पर पड़ने वाले मौसम आदि के प्रभाव के बिषय में वैज्ञानिक विशेषज्ञों के द्वारा पूर्वानुमान तो नहीं ही लगाए जा सके अपितु जितने प्रकार के अनुमान भी लगाए गए वे या तो गलत होते चले गए या फिर वैज्ञानिक विशेषज्ञों के अनुमान परस्पर विरोधाभासी निकले जिससे उनकी विश्वसनीय सच्चाई सामने नहीं आ सकी |कुछ तो अवैज्ञानिक तीरतुक्के मात्र थे जैसा होते देखा गया वैसी ही आगे के लिए कल्पना कर ली गई |
कुलमिलाकर महामारी के बिषय में जिन वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर जो अनुमान किए गए वे ही गलत निकल जाने का मतलब था कि किए गए अनुसंधानों से महामारी को समझा नहीं जा सका ऐसी परिस्थिति में महामारी को समझे बिना महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए कोई भी औषधि या वैक्सीन आदि कैसे बनाई जा सकती है | सामान्य पेट दर्द सर्दी जुकाम बुखार में तो रोग की प्रकृति का सही सही परीक्षण किए बिना औषधि नहीं बनाई जाती है और न ही चिकित्सा प्रारंभ की जाती है तो इतनी बड़ी कोरोना जैसी महामारी को ठीक ठीक समझे बिना उसकी वैक्सीन कैसे बनाई जा सकती है फिर भी जब मैंने सुना कि महामारी को ठीक तरह से समझे बिना वैक्सीन बना ली गई है तो मुझे आश्चर्य अवश्य हुआ |
महामारी पर मौसम का प्रभाव !
महामारी पर मौसम का प्रभाव कितना पड़ता है या नहीं पड़ता है इस पर विभिन्न वैज्ञानिकों के बिचारों में मतभेद रहने पर भी अधिकाँश विशेषज्ञ वैज्ञानिकों की यह मान्यता रही है कि कोरोना पर मौसमी गतिविधियों का प्रभाव पड़ता है | इसीलिए तो किसी वैज्ञानिक ने कहा कि ग्रीष्म (गर्मी)ऋतु आने पर तापमान बढ़ने से कोरोना संक्रमण समाप्त हो जाएगा | कुछ वैज्ञानिकों ने कहा कि वर्षा ऋतु आने पर तापमान बढ़ने से कोरोना संक्रमण कम हो जाएगा कुछ ने कहा वर्षाऋतु के प्रभाव से कोरोना संक्रमण बढ़ जाएगा !कुछ वैज्ञानिकों का मानना था कि हेमंत और शिशिर(सर्दी) ऋतु में कोरोना संक्रमण बहुत अधिक बढ़ जाएगा | कुछ वैज्ञानिकों का मानना था कि वायु प्रदूषण बढ़ने का प्रभाव भी कोरोना संक्रमण को बढ़ाता है |
ऐसे ही मौसम के बिषय में और भी बहुत सारे मत प्रस्तुत किए गए जिनसे कोरोना संक्रमण बढ़ने की आशंका व्यक्त की गई थी !ऐसी परिस्थिति में कोरोना संक्रमण को ठीक तरह समझने के लिए मौसम को ठीक ठीक प्रकार से समझना होगा और उसके बाद मौसम संबंधी विद्वान् वैज्ञानिकों की विशेषज्ञता का उपयोग करते हुए चिकित्सा वैज्ञानिकों एवं मौसमवैज्ञानिकों का संयुक्त अनुसंधान किया जाना चाहिए था |
ऐसी परिस्थिति में मौसम को समझने का ही यदि कोई विश्वसनीय विज्ञान नहीं खोजा जा सका है तो यदि यदि महामारी होने या महामारी से संबंधित संक्रमण बढ़ने का कारण मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाएँ हों भी तो उसका पता लगाया कैसे जाएगा और जब तक मौसम में होने वाले परिवर्तनों की प्रकृति को सही सही नहीं समझा जा सकेगा तब तक महामारी पर पड़ने वाले मौसमसंबंधी प्रभाव का अध्ययन करना कैसे संभव हो सकता है |
1864 में कलकत्ता में एक विनाशकारी उष्णकटिबंधीय चक्रवात आया और इसके बाद 1866 और 1871 में मानसून की बारिश नहीं हुई। वर्ष 1875 मेंभारत सरकार ने भारत मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना की थी । भारतीय
मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुए 144 वर्ष बीत गए किंतु आज तक वैज्ञानिक
अनुसंधानों के द्वारा उस लक्ष्य की ओर बढ़ने से संबंधित कुछ भी तो नहीं
किया जा सका मौसमविज्ञान
के नाम से प्रसिद्ध वर्तमान जुगाड़ू तीर तुक्कों को मौसम का विज्ञान कहना
विज्ञान भावना का अपमान है |क्योंकि इनसे प्रकृति के स्वभाव को समझने की
कल्पना ही नहीं की जा सकती है|
किसी गाँव के एक तरफ जंगल था जंगल से निकल कर हाथी उस गाँव में घुस कर खूब उत्पात मचाया करते थे जब तक गाँव वाले एकत्रित होकर उन हाथियों को भगा पाते तब तक गाँववालों का काफी नुक्सान हो चुका होता था !परेशान होकर गाँव वालों ने गाँव के बाहर कैमरे लगवा लिए !अब तो जंगल से गाँव की ओर आने वाले हाथी दूर से ही हाथी दिख जाया करते थे गाँव वाले लाठी डंडे लेकर उन्हें बाहर के बाहर ही खदेड़ आया करते थे | इससे हाथियों के द्वारा गाँव वालों का होने वाला नुक्सान तो बच जाता था किंतु इस जुगाड़ को हाथीविज्ञान मान लेना ठीक नहीं है क्योंकि इस जुगाड़ से हाथियों के स्वभाव को समझना संभव नहीं है |
इसी प्रकार से वर्तमान मौसमी जुगाड़ से उपग्रहों रडारों के द्वारा चक्रवातों की जासूसी कर के उनसे होने वाला संभावित नुक्सान बचा लिया जाता है जुगाड़ से जनधन की सुरक्षा भी कई बार हो जाती है इसके बाद भी इसे चक्रवातों का विज्ञान इसलिए नहीं माना जा सकता है क्योंकि इन दिनों में चक्रवात उठ सकता है ऐसा पूर्वानुमान पहले से लगा पाना संभव न होने के कारण ऐसे तीर तुक्कों को वैज्ञानिक अनुसंधानों की श्रेणी में सम्मिलित करना ठीक नहीं होगा |
कुलमिलाकर प्रकृति के स्वभाव को समझने वाले मौसमसंबंधी वास्तविक वैज्ञानिकों को इस दायित्व को संभालना होगा क्योंकि वर्तमान समय में मौसमविज्ञान की जगह मौसमी घटनाओं की जासूसी लेती जा रही है जिसके द्वारा कोरोना महामारी के स्वभाव को ठीक ठीक से समझपाना संभव नहीं होगा |मौसमी घटनाओं की जासूसी से हमारा अभिप्राय आँधी तूफ़ान या बादल वर्षा या वायु प्रदूषण से संबंधित घटनाओं को किसी एक स्थान पर घटित होते रडारों उपग्रहों आदि की मदद से देखकर उनकी गति और दिशा के आधार पर तीर तुक्का लगा लेना मौसम विज्ञान नहीं हो सकता अपितु मौसम विज्ञान का मतलब है जो घटनाएँ जब किसी भी स्थान पर किसी भी रूप में प्रत्यक्षतौर पर दिखाई ही न पड़ रही हों वैसी घटनाओं के के बिषय में भी जिस विज्ञान के द्वारा पूर्वानुमान लगा लिया जाए वह वास्तविक मौसम विज्ञान है | उसके आधार पर प्रकृति को समझना संभव हो पाता है |
महामारी पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव !
कोरोना वायरस की उत्पत्ति और प्रकोप में जलवायु परिवर्तन की भूमिका बताई जा रही है वैज्ञानिकों के एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि जलवायु परिवर्तन और वायरसों की उत्पत्ति के बीच संबंध हो सकता है। कोरोना प्रकोप के साथ ही 2002-03 में सार्स महामारी पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव हो सकता है।
ऐसी परिस्थिति में जलवायु परिवर्तन और वायरसों की उत्पत्ति के बीच
संबंध को ठीक ठीक समझे बिना जलवायु परिवर्तन से महामारी संबंधित अध्ययनों अनुसंधानों को कैसे सफल बनाया जा सकता है |
जलवायुपरिवर्तन जैसी कल्पनाएँ यदि सही हों भी तो महामारी के बिषय में अनुसंधान करने से पहले