महामारी है या प्रकृति की विज्ञान को चुनौती !
रोग केवल प्राकृतिक भी होते हैं |
शरीरों में होने वाले सभी रोगों का कारण आवश्यक नहीं है कि उस व्यक्ति का अपना रहन सहन खान पान आहार व्यवहार बिगड़ना आदि ही हो कई बार तो लोग बहुत संयम पूर्वक चल रहे होते हैं किसी दुर्घटना के शिकार भी नहीं होते हैं उसके बाद भी उन्हें रोगी होते देखा जाता है|
सुदूर जंगलों में रहने वाले लोगों के पास न तो स्वास्थ्य के अनुकूल शक्तिबर्द्धक उचित खान पान की व्यवस्था होती है और न ही ऋतु अनुकूल सुख सुविधा संपन्न स्वास्थ्यकर रहन सहन की व्यवस्था और न ही चिंता रहित जीवन ऐसी परिस्थिति में उनके रोगी होने पर तो यह बहुत आसानी से कह दिया जाता है कि चिकित्सासुविधाओं के अभाव में वे रोगी हो रहे हैं |
इसी प्रकार से गरीब लोग ,किसान लोग या अन्य वो लोग जो गाँवों में रहते हैं वहाँ जो चिकित्सा से संबंधित सेवाओं के साधन हैं भी आर्थिक अभाव के कारण उनका भी वे पूरी तरह से सदुपयोग नहीं कर पाते हैं स्वास्थ्य कर उत्तम खान पान रहन आदि की सुविधाओं का भी अभाव रहता है | ऐसे लोग भी अत्याधुनिक चिकित्सा सुविधाओं का लाभ उतना नहीं ले पाते हैं जितनी उनके शरीरों को आवश्यकता होती है ऐसी परिस्थिति में उनके रोगी होने पर भी यह मान लिया जाता है कि उनके रोगी होने का कारण चिकित्सा सुविधाओं का अभाव ही रहा होगा |
कई बार अत्यंत सक्षम परिवारों के वे लोग भी रोगी होते देखे जाते हैं जो जन्म से लेकर सारे जीवन शक्ति बर्द्धक पौष्टिक खानपान लेने के साथ साथ स्वास्थ्य के लिए संपूर्ण रूप से अनुकूल रहन सहन आदि अपनाते हैं | बचपन से उनके सारे टीके समय समय पर इसीलिए लगाए गए होते हैं ताकि भविष्य में होने वाले संभावित रोगों की रोकथाम हो सके|ऐसे लोग अत्यंत उन्नत चिकित्सा संपन्न संस्थानों के सुयोग्य चिकित्सकों की अपने पारिवारिक चिकित्सकों के रूप में सेवाएँ इसीलिए लगातार लेते रहते हैं उन्हीं की गहन देखरेख में ऐसे संपन्न लोगों का जीवन बीतता है जहाँ स्वास्थ्य संबंधी थोड़ी भी आशंका होने पर या वैसे भी समय समय पर उनके शरीरों की जाँचें इसीलिए करवाई जा रही होती हैं ताकि भविष्य में जो रोग होने वाला हो उसका या आगे से आगे पूर्वानुमान लगाकर उस रोग की रोकथाम के लिए उचित चिकित्सा व्यवस्था अपनाई जा सके | इतना सब होने के बाद भी ऐसे लोगों को रोगी होते देखा जाता है | एसे सतर्क लोगों के रोगी होने का कारण क्या होता है ?
दूसरी बात इतनी सघन चिकित्सकीय देखरेख में रहने के बाद भी उनका रोगी होना जितना आश्चर्य जनक है उतना ही आश्चर्य जनक यह भी है कि ऐसे लोग रोगी होते ही गहन चिकित्सा प्रक्रिया की शरण में चले जाते हैं और सर्वोत्तम चिकित्सा सुविधाओं का लाभ लेने लगते हैं इसके बाद भी कुछ रोगी ऐसे होते हैं जिन पर चिकित्सा का प्रभाव नहीं पड़ता है और उनका रोग लगातार बढ़ता चला जाता है कई बार तो उनकी भी मृत्यु तक होते देखी जाती है !यदि देखा जाए तो ऐसे लोगों पर चिकित्सा संबंधी सारे प्रयोग निष्फल होते जाते हैं इसका कारण क्या हो सकता है ये वास्तव में अनुसंधान का बिषय है |
वस्तुतः जिस व्यक्ति की आयु पूरी हो जाती है वह युवा अवस्था में हृष्ट पुष्ट स्वस्थ शरीर होने के बाद भी बिना किसी लापरवाही के बिना किसी ब्यसन के स्वस्थ जीवन जीते हुए भी समय आने पर अचानक रोगी होने लगता है उसकी शुरुआत किसी बहुत छोटे से रोग से होती है वह तुरंत अच्छी से अच्छी चिकित्सा का लाभ लेने लगता है किंतु उस पर औषधि आदि चिकित्सा प्रक्रिया का प्रभाव बिलकुल नहीं होता है और रोग दिनोंदिन बढ़ता चला जाता है |इस प्रकार से सुयोग्य चिकित्सकों के द्वारा उपलब्ध कराए गए अत्यंत सघन चिकित्सा काल में भी उस व्यक्ति की मृत्यु होते देखी जाती है |
ऐसी परिस्थिति में उस युवा अवस्था के अत्यंत स्वस्थ व्यक्ति की अचानक मृत्यु हुई जिसकी शुरुआत छोटे से रोग से प्रारंभ होकर मृत्यु तक पहुँची जिसमें चिकित्सकों को चिकित्साकर्म के लिए पर्याप्त समय साधन एवं धन उपलब्ध करवाया गया इसके बाद भी वह ऐसा कौन सा बलिष्ट कारण था जिसके कारण उसके शरीर पर चिकित्सा का प्रभाव नहीं पड़ा और उसकी मृत्यु हो गई | ऐसी परिस्थिति में उसकी मृत्यु का कारण प्रत्यक्षतौर पर तो कुछ दिखाई नहीं देता है इसलिए कुदरत समय भाग्य आदि कुछ भी मान लिया जाता है किंतु वास्तव में निश्चित कारण क्या है उसका वैज्ञानिक अनुसंधान पूर्वक पता लगाया अवश्य जाना चाहिए,अन्यथा किसी रोग और रोगी पर संभावित चिकित्सा के प्रभाव पर हुए भ्रम का निराकरण कभी नहीं हो पाएगा |
ऐसी बातों के कारण ही किसी को ऐसा लगना स्वाभाविक ही है कि जिसे जब जिस प्रकार का रोग होना होता है तो वह होता ही है कितनी भी सावधानी क्यों न बरत ली जाए और जिसके शरीर में जब तक जिस रोग को रहना होता है तब तक वह रोग रहता ही है जब उस रोग को समाप्त होना होता है तब वह रोग स्वयं ही समाप्त होता है और यदि उस रोग के साथ ही रोगी को भी समाप्त होना होता है तो रोगी भी समाप्त होता ही है |
ऐसी परिस्थिति में जिस रोगी की रोग आरंभकाल से ही अत्यंत उत्तम प्रक्रिया से चिकित्सा करके भी उसे न तो स्वस्थ किया जा सका और न ही उसे मरने से बचाया जा सका और चिकित्सा का लाभ लेने के बाद भी उसका रोग दिनोंदिन बढ़ता चला गया और उसकी मृत्यु हो गई !जिसका कारण कुदरत समय भाग्य आदि को मान लिया गया | इससे यह सिद्ध होता है कि किसी के रोगी होने या रोगी रहने या मृत्यु होने की प्रक्रिया कुदरत समय या भाग्य के द्वारा ही संचालित होती है |
इससे तो यह संदेश जाता है कि किसी के रोगी होने या किसी की मृत्यु होने में यदि कुदरत समय और भाग्य आदिकी इतनी अधिक प्रभावी भूमिका है कि उसके आगे अच्छी से अच्छी चिकित्सा प्रक्रिया ,उन्नत औषधियां सुयोग्य चिकित्सक आदि बेबश हो जाते हैं | इससे यह सिद्ध होता है कि जो लोग जब तक स्वस्थ हैं या जिन्हें रोगी होने के बाद स्वस्थ होना है उसकी पटकथा कुदरत समय और भाग्य आदि के द्वारा पहले ही लिख दी जाती है चिकित्सा कर्म के द्वारा उसका ही अनुगमन किया जाता है | चिकित्सा का उद्देश्य चूँकि रोगी को स्वस्थ करना होता है इसलिए किसी रोगी के रोगमुक्त होने पर उसकी रोग मुक्ति का श्रेय चिकित्सा को दे दिया जाता है |
रोगमुक्ति कारक चिकित्सा के प्रभाव को प्रमाणित करने के लिए ऐसा करके दिखाना आवश्यक है कि चिकित्सा का निरंतर लाभ लेने वाले व्यक्ति को अस्वस्थ नहीं होना चाहिए दूसरी बात जिस रोगी को चिकित्सा का लाभ जबसे मिलने लगता है उसके बाद उस रोगी को चिकित्सा प्रभाव से रोगमुक्ति मिलनी सुनिश्चित हो जानी चाहिए !अर्थात ये रोगी तो स्वस्थ होगा ही क्योंकि इसे समय से चिकित्सा का लाभ होने लगा है ऐसा विश्वास किया जाना चाहिए | संदिग्धता समाप्त होनी चाहिए कि रोगी यदि स्वस्थ हो जाए तो उसे चिकित्सा का पहलमान लिया जाए और यदि अस्वस्थ बना रहे या मर जाए तो उसका कारण कुदरत समय या भाग्य को मान लिया जाए !ये न तो तर्क संगत है और न ही विश्वसनीय है और न ही वैज्ञानिक विधि से विश्वास करने योग्य ही हैं |
इसलिए कोई व्यक्ति किस उम्र में रोगी होगा कितनी उम्र तक रोगी रहेगा वह स्वस्थ होगा या नहीं होगा या उसकी मृत्यु ही होगी कुदरत समय और भाग्य ही करेगा !इसलिए कोई किस आयु में अस्वस्थ होगा कितने दिन तक अस्वस्थ रहेगा इसके बाद वह स्वस्थ होगा या उसकी मृत्यु ही होगी इसका पता लगाने के लिए जीवन पर पड़ने वाले कुदरत समय और भाग्य के प्रभाव का अनुसंधान करके प्रमाणित तौर पर वैज्ञानिक प्रक्रिया से इस बात का वैज्ञानिक उत्तर खोजा जाना चाहिए कि किसी के किसी के स्वस्थ या अस्वस्थ होने की प्रक्रिया में चिकित्सा की भूमिका कितनी और किस प्रकार की होती है |
मनुष्य जीवन पर कुदरत समय या भाग्य के प्रभाव को तर्कसंगत ढंग से नकारना इतना आसान भी नहीं है क्योंकि वैज्ञानिक प्रयासों से ऊपर उसका प्रभाव हमेंशा से ही प्रमाणित होता रहा है |
कुछ सौ एक जैसे रोगी किसी चिकित्सालय में रखकर एक जैसी चिकित्साप्रक्रिया का लाभ लेते हैं उसमें से कुछ स्वस्थ होते हैं कुछ अस्वस्थ बने रहते हैं कुछ मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं एक जैसे रोगियों को एक जैसी चिकित्सा दिए जाने के बाद परिणाम तीन प्रकार के निकलने का कारण क्या है ?
कोई भूकंप बाढ़ आँधी तूफान दुर्घटना आदि का शिकार एक साथ बहुत लोग होते हैं जिससे प्रभावित भी सभी लोगों को एक जैसा ही होना चाहिए किंतु उसमें भी वही तीन प्रकार के परिणाम निकलते देखे जाते हैं कुछ की मृत्यु हो जाती है कुछ घायल हो जाते हैं और कुछ को खरोंच भी नहीं लगती है | एक जैसी दुर्घटना का शिकार होने के बाद भी इन तीन प्रकार के परिणामों के निकलने का कारण अवश्य पता लगाया जाना चाहिए |
जंगली प्रदेशों में चिकित्सा सुविधाएँ बिलकुल नहीं हैं रोगी वे भी होते हैं घाव उनके भी होते हैं रोगी होने के बाद स्वस्थ वे भी होते हैं और मृत्यु उनकी भी होती है ये सारी घटनाएँ चिकित्सा संपन्न क्षेत्रों की तरह ही घटती हैं | यदि स्वस्थ होने का श्रेय चिकित्सा को दिया जाए तो ऐसी जगहों पर स्वस्थ होने एवं जीवित बैक्सी लोगों के स्वस्थ रहने का कारण क्या है ?
महामारियाँ आने पर भी यही तीन प्रकार की ही घटनाएँ घटित होती हैं महामारी के समय भी महामारियों से प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले कुछ लोगों की मृत्यु हो जाती है कुछ संक्रमित होने के बाद स्वस्थ हो जाते हैं और उन्हीं परिस्थितियों में रहने के बाद भी कुछ तो संक्रमित भी नहीं होते देखे जाते हैं |यहाँ भी इन तीन प्रकार के परिणामों के निकलने का कारण अवश्य खोजा जाना चाहिए |
ऐसी परिस्थिति में जीवन को सबसे अधिक प्रभावित करने वाला कुदरत का करिश्मा समय भाग्य या मृत्यु का समय जैसे बिषयों पर भी तो अनुसंधान होना चाहिए कि यदि जीवन इनसे इतना प्रभावित होता है तो इनके बिषय में भी पूर्वानुमान लगाया जाना चाहिए |
कई बार किसी व्यक्ति के संपूर्ण रूप से स्वस्थ रहते हुए भी कुदरत, समय और भाग्य जैसी शक्तियाँ उस व्यक्ति की संभावित मृत्यु की पटकथा बहुत पहले से लिख चुकी होती हैं उसी पट कथा के अनुशार उस व्यक्ति को एक निश्चित समय तक पहले किसी रोग विशेष से रोगी होना होता है रोग पीड़ित अवस्था में पूर्वनिर्धारित समय बीतने के बाद उसी पट कथा के अनुशार उस व्यक्ति की मृत्यु का समय आ जाने पर उसकी मृत्यु होनी ही होती है |
इसलिए वो रोग की आधीनता के कारण नहीं अपितु मृत्यु का समय आ जाने के कारण मृत्यु को प्राप्त हो जाता है |
उसी पटकथा के अनुशार बुरे समय से प्रभावित लोगों के रोगी होने पर उन्हें कुशल चिकित्सकों के संरक्षण में उन्हें रोगमुक्ति दिलाने के लिए अच्छे से अच्छे चिकित्सकीय प्रयास किए जाते हैं जबकि उन प्रयासों का प्रभाव ऐसे रोगियों पर बिलकुल नहीं पड़ता है बल्कि चिकित्सकीय प्रयासों के विपरीत उसी कुदरत समय या भाग्य के द्वारा पूर्वनिर्द्धारित पटकथा के अनुशार उस रोगी का रोग दिनोंदिन बढ़ता चला जाता है और चिकित्सकीय उद्देश्यों के विपरीत रोगी की मृत्यु होते देखी जाती है |
ऐसी परिस्थिति में इस कुदरत समय और भाग्य जिसके प्रभाव का मूल्यांकन किए बिना की जाने वाली चिकित्सा भी निर्थक होते देखि जाती है उसके प्रभाव के बिषय में भी तो अनुसंधान किया जाना चाहिए जीवन पर पड़ने वाले इसके प्रभाव का अध्ययन भी चिकित्सा कर्म के लिए अत्यंत आवश्यक है |
कई बार भूकंप जैसी किसी बड़ी दुर्घटना के शिकार होने के कई कई सप्ताह बाद
तक मिटटी में दबे लोगों को न केवल जीवित निकलते देखा जाता है अपितु उन्हें
कहीं कोई विशेष चोट आदि भी नहीं लगते देखा जाता है | जबकि चिकित्सा विज्ञान
की दृष्टि से ऐसी घटनाओं को असंभव सा माना जाता है
| इसके अतिरिक्त भी लोगों के साथ बहुत सारी ऐसी बड़ी घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं जिनसे पीड़ित होने के बाद उनका जीवित बचना बड़ा कठिन क्या बिलकुल असंभव सा ही माना जाता है इसके बाद भी ऐसे लोगों के जीवित बच जाने को वैज्ञानिक लोग भी कुदरत का
करिश्मा समय भाग्य या
उसकी मृत्यु का समय अभी नहीं आया था आदि बातें मान लेते हैं |
मेरे कहने का अभिप्राय मात्र इतना है कि ऐसी परिस्थितियों में भी जीवित बच जाने के लिए आधारभूत या तो कोई तर्कसंगत वैज्ञानिक कारण खोजा जाए जो केवल काल्पनिक न होकर अपितु पारदर्शी एवं सच्चाई के सर्वाधिक सन्निकट दिखता हो और यदि ऐसा करना संभव न हो तो कुदरत ,समय और भाग्य के प्रभाव का भी अनुसंधान अवश्य किया जाना चाहिए कि चिकित्सा के क्षेत्र में मनुष्यों के प्रयास की सीमा क्या है और कुदरत ,समय तथा भाग्य की शक्ति कितनी प्रभावी है | ऐसा हो जाने से चिकित्सा के क्षेत्र की सबसे बड़ी दुविधा समाप्त हो सकती है |
ऐसे तो किसी रोगी के बिषय में यह पता लगाना ही बिलकुल असंभव सा बना हुआ है कि जो व्यक्ति रोगी हुआ है उसके रोगी होने का कारण स्वास्थ्य के विपरीत कुछ खाना पीना रहन सहन आदि है या उसके रोगी होने का कारण कुदरत ,समय और भाग्य जैसी अघोषित शक्तियों का प्रभाव है | इसके बिषय में निश्चित जानकारी न होने के कारण रोगी लोग एक ओर तो रोगजनित पीड़ा से दुःख पा रहे होते हैं तो दूसरी ओर अपने को कोस रहे होते हैं कि यदि मैंने अमुक चीज खाई न होती वैसे प्राकृतिक वातावरण में गए न होते उस रोग से संक्रमित व्यक्ति को छुआ न होता तो शायद मेरा रोगी होने से बचाव हो भी सकता था |
ऐसे ही कुछ लोग कहीं जाने के बाद कुछ खाने के बाद किसी से मिलने के बाद किसी घर में नए नए रहने के बाद किसी से विवाह करने के बाद अथवा किसी संतान के होने के बाद किसी शारीरिक दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं | ऐसी परिस्थिति में जिस प्रकार की घटना के बाद उनके साथ ऐसी शारीरिक दुर्घटना घटित होती है !इसके लिए वे अक्सर उसी घटना को जिम्मेदार मानकर पछताया करते हैं | शायद वहाँ गए न होते ,वैसा भोजन न किया होता उस घर में न रहे होते उससे प्रेम संबंध या विवाह न किया होता तो शायद इस प्रकार की दुर्घटना से बचाव हो सकता था |
ऐसी परिस्थिति में लोग एक ओर तो दुर्घटना जनित पीड़ा भोग रहे होते हैं तो दूसरी ओर अपने द्वारा किए गए कुछ कार्यों के बिषय में पश्चात्ताप हो रहा होता है |क्योंकि जीवन में सभी प्रकार की परिस्थिति निर्मित होने का कारण ऐसे लोग अपने ही कुछ कर्मों को मानने लगते हैं |ऐसे लोग जीवन पर कुदरत ,समय और भाग्य के पड़ने वाले प्रभाव से अनजान होने के कारण ही ऐसा सोचने के लिए विवश होते हैं,जबकि ऐसे लोगों के जीवन में घटित होने वाली उस प्रकार की दोनों ही घटनाएँ कुदरत ,समय और भाग्य के द्वारा लिखित पटकथा के अनुशार ही घटित हो रही होती हैं | किसी को कितने समय तक रोगी रहने के बाद उसकी मृत्यु होनी है यह निश्चित होता है ऐसी परिस्थिति में यह कहना उपयुक्त नहीं होगा कि यदि रोगी न हुए होते यतो मृत्यु नहीं हुई होती |
इसलिए मृत्यु का कारण यदि कुदरत ,समय और भाग्य का प्रभाव है तो उनके रोगी होने का कारण भी कुदरत ,समय और भाग्य का प्रभाव ही होता है !किंतु इस बिषय में जानकारी न होने के कारण ऐसी आशंकाएँ होती रहती हैं |
वस्तुतः किसी रोगी की मृत्यु होने से पूर्व उसके साथ घटित हुई वे सभी घटनाएँ उसकी मृत्यु समूह की ही अंग होती हैं |कुदरत ,समय और भाग्य के द्वारा लिखित पटकथा के अनुशार जिसकी मृत्यु होने का समय समीप में आ चुका होता है वो यदि मृत्यु से पूर्व रोगी होता है तो पहले तो उस रोग की शुरुआत इतनी छिपी हुई होती है कि उसके प्रारंभ होने के समय स्थान और कारण की जानकारी नहीं होती है लक्षणों के अनुशार उस रोग का पता लगाना आसान नहीं होता है !उसके बाद उसका ऐसा चिकित्सक मिलना कठिन होता है जो उस रोग को समझ सके !ऐसी औषधि मिलनी कठिन होती है जो उस रोग से मुक्ति दिलाने में सहायक बन सके !अत्यंत प्रभावी समझकर जिस औषधि का प्रयोग किया जा रहा होता है ऐसे रोगी पर वो औषधि भी अपने स्वभाव के विपरीत असर करने लगती है | ऐसे समय बेबश चिकित्सक हाथ खड़े कर देते हैं और उस रोगी की मृत्यु होते देखी जाती है | कुलमिलाकर ऐसी जितनी भी घटनाएँ उस रोगी के साथ घटित होती हैं वे सभी उस रोगी की संभावित मृत्यु की अंगभूता ही होती हैं उनके प्रभाव पर अलग से कोई बिचार किया जाना संभव नहीं है |
ऐसी परिस्थिति में उस रोगी के बचाव के लिए अच्छे से अच्छे प्रयास कर के हार चुके अत्यंत सुयोग्य चिकित्सक सहज स्वीकार कर लेते हैं कि इसकी मृत्यु का कारण चिकित्सा में लापरवाही या चिकित्सकीय कमी नहीं रही है अपितु इसकी मृत्यु का कारण इस रोगी पर पड़ने वाला कुदरत ,समय और भाग्य का प्रभाव ही रहा है |ऐसा मानना उनकी मजबूरी होती है अन्यथा उन्हें इस प्रश्न का भी उत्तर खोजना होगा कि वे स्वयं सुयोग्य चिकित्सक थे उनके पास उस रोगी की चिकित्सा के लिए सर्वोच्च संसाधन थे रोगी समय पर उनके पास लाया भी गया था उनके द्वारा समय से चिकित्सा भी प्रारंभ कर दी गई थी उन्होंने रोगी के परिजनों को यह आश्वासन भी दिया था कि ये ठीक हो जाएगा !इसके बाद भी उस रोगी की यदि मृत्यु हो जाती है तो ऐसा होने का कारण क्या था वो उन सुयोग्य चिकित्सकों को बताना तो पड़ेगा | यदि वे उस रोगी की मृत्यु होने के वास्तविक कारण को नहीं बता पाते हैं और इतने प्रयास करने के बाद भी रोगी की मृत्यु हो जाने को कुदरत ,समय या रोगी का भाग्य मान लेते हैं तो ऐसी सर्व सक्षम कुदरत,समय और भाग्य जैसे जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों का भी अनुसंधान किया जाना चाहिए |
रोगों तथा मृत्यु के बिषय में -
प्रायः देखा जाता है कि जिन परिस्थितियों में कुछ लोगों के बीमार होने या मृत्यु होने के जो जो कारण गिना दिए जाते हैं कुछ दूसरे लोग उन्हीं परिस्थितियों में उन्हीं स्थानों रह रहे होते हैं वे न बीमार होते हैं और न ही उनकी मृत्यु ही होती है इसके कारणों की भी खोज की जानी चाहिए | इस बिषय में केवल यह कह देना उचित नहीं है कि उनकी प्रतिरोधक क्षमता (इम्युनिटी) अच्छी होने के कारण उन परिस्थितियों में रहते हुए भी उनका बचाव हो जाता है |
ऐसी परिस्थिति में प्रश्न उठता है कि धन एवं संसाधनों के अभाव में जिन नौकरों किसानों मजदूरों गरीबों आदिवासियों आदि के बचपन से खान पान रहने सोने पहनने ओढ़ने की अच्छी व्यवस्था नहीं रही !प्रदूषित कही जाने वाली बस्तियों झुग्गी झोपड़ियों में आदि में तमाम मक्खी मच्छरों के बीच रहना खाना पीना सोना जागना आदि होता रहा उनमें प्रतिरोधक क्षमता (इम्युनिटी) अच्छी बताई जाती है जिन्हें बचपन से आवश्यक चिकित्सा सुविधाएँ नहीं मिलीं समय से स्वास्थ्य के लिए हितकर टीके नहीं लगाए जा सके !शक्तिबर्द्धक बताए जाने वाले मेवा या टॉनिक आदि भी नहीं खिलाए पिलाए जा सके !ऋतु के अनुसार वातानुकूलित जीवन नहीं मिल सका फिर भी उनमें प्रतिरोधक क्षमता इतनी अच्छी होती है कि वे तमाम स्वास्थ्य विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए बड़ी बड़ी महामारियों में भी अपने को सुरक्षित बचा पाने में सफल हो जाते हैं | वे कोरोना के समय भी बिना मास्क के घूमते रहे भोजन लेने के लिए लाइनों में लगे रहे सबको छूते रहे सामूहिक शौचालय का उपयोग करते रहे घनी बस्तियों में रहते रहे ठेला रेडी पर सामान रख कर गली गली बेचते रहे !जिनके यहाँ नौकरी करते थे उनके लिए खरीददारी कर कर के उनके यहां आवश्यक सामान उपलब्ध करवाते रहे फिर भी उन्हें कोरोना नहीं हुआ !आखिर उनके शरीरों में खांन पान रहन सहन में ऐसी कौन सी विशेषता थी जिससे वे ऐसी परिस्थितियों में भी अपने को बचाने में सफल होते रहे |इसीलिए तो वे तमाम स्वास्थ्य विपरीत परिस्थितियों का सामना
करते हुए बड़ी बड़ी महामारियों में भी अपने को सुरक्षित बचा पाने में सफल हो
जाते हैं उनके जीवन यापन की शैली पर अनुसंधान किया जाना चाहिए और स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए उस पर अमल किया जाना चाहिए ताकि भविष्य में एक दिन ऐसा भी आवे जब बड़ी बड़ी महामारियों का प्रभाव मनुष्य शरीरों पर बिलकुल न हो और सारा समाज ही संपूर्ण रूप से स्वस्थ बना रहे !
जितना ध्यान स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए समय से दिए जाने वाले टीकों टानिकों स्वास्थ्य रक्षक ड्राप्स आदि पिलाने पर दिया जाता है ऋतु
के अनुसार वातानुकूलित जीवन उपलब्ध करवाया जाता है पारिवारिक चिकित्सकों की स्वास्थ्य रक्षक सेवाएँ ली जाती हैं स्वास्थ्य के अनुकूल इतनी व्यवस्थाएँ इसीलिए की जाती हैं ताकि शरीर स्वस्थ निरोग बने रहें किंतु यदि ऐसा नहीं हो सका इतना सब करने के बाद भी कोरोना महामारी के समय में समस्त सुख सुविधा भोगी वर्ग को डर के साए में समय बिताना पड़ा है घर के अंदर एकांत कमरों में पड़े रहे नौकर जो लाकर दे देते रहे उसी में काम चला लेते रहे इसके बाद भी घर के अंदर पड़े रहे निकल कर कहीं नहीं गए इसके बाद भी उनमें से बहुतों को कोरोना हो गया जबकि उन्होंने किसी को छुआ भी नहीं संपर्क में भी नहीं आए |
आखिर इतनी सारी सुख सुविधाएँ स्वास्थ्य सुरक्षक व्यवस्थाओं का उपभोग करने के बाद भी यदि उनके शरीरों में प्रतिरोधक क्षमता उन गरीबों से भी कम रही तो उन टीकों टॉनिकों से उनके शरीरों को प्रत्यक्ष तौर पर क्या लाभ हुआ | जिन्हें स्वास्थ्य सुरक्षा की दृष्टि से आवश्यक मानकर सरकार जन जन तक पहुँचाती है |
विशेष बात एक यह है कि प्रतिरोधक क्षमता की भी जाँच की व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि ऐसे समय में जाँच करके यह सुनिश्चित किया जा सके कि ऐसी महामारियों से किसको कितना खतरा है |
प्रतिरोधक क्षमता यदि गरीबों मजदूरों श्रमिकों किसानों ग्रामवासियों में ही अधिक होती है उसका कारण आधुनिक चिकित्सा सेवाओं से उनका दूर रहना ही तो नहीं है क्योंकि उनमें से अधिकाँश लोग जीवन के लिए आवश्यक माने जाने वाले टीकों टॉनिकों एवं अनावश्यक औषधि सेवन से बचे हुए हैं उनमें प्रतिरोधक क्षमता अधिक होने का कारण यही तो नहीं है |
इस वर्ष कोरोनाकाल में अनावश्यक चिकित्सा सेवाओं से हृदयरोगियों ने भयवश दूरी बनाई डर के कारण अस्पतालों में नहीं गए अपने चिकित्सकों को मिले नहीं किंतु उन्हें हार्ट संबंधी ऐसी कोई अतिरिक्त परेशानी भी नहीं हुई कि चिकित्सा के अभाव में हृदयरोगियों बहुत ज्यादा हार्टअटैक होने लगे हों और न ही बहुत अधिक संख्या में हृदयरोगियों की मृत्यु ही होते देखी गई थी जबकि सामान्य रूप से तो हृदयरोगियों सांस लेने में थोड़ी भी दिक्कत होती है तो उन्हें आनन फानन में बड़े बड़े चिकित्सालयों तक पहुँचाना मुश्किल हो जाता है और वहाँ पहुँचते ही जाँच पड़ताल करके तुरंत सर्जरी आदि करने बाद परिजनों को यही सुनने को मिला करता है कि अस्पताल पहुँचने में दोचार मिनट और देरी हो गई होती तो बचा पाना बहुत कठिन हो जाता किंतु कोरोना काल में तो ऐसी मारा मारी देखने को कहीं नहीं मिली ईश्वर कृपा से सबकुछ सामान्य रूप से ही चलता रहा जबकि मानसिक तनाव को भी हार्टअटैक होने में सहायक माना जाता है और इस समय मानसिक तनाव भी बहुत अधिक रहा रोजी रोजगार से लोग विहीन थे आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिए चिंतित होना स्वाभाविक ही था | भविष्य की दृष्टि से भारी असमंजस बना हुआ था इसके बाद भी हार्टअटैक होने वाले रोगियों की संख्या नहीं बढ़ी | कोरोना संक्रमण के समय में हार्टअटैक के रोगियों को अधिक खतरा माना जा रहा था किंतु ऐसा कुछ तो नहीं हुआ सब कुछ सामान्य ही चलता रहा | ऐसी परिस्थितियाँ पैदा होने के कारणों का अनुसंधान अवश्य होना चाहिए |
कोरोनाकाल में प्रसव प्रायः घरों में हुए जिनके लिए अक्सर सुना जाता था कि बच्चा फँसा हुआ है ऐसे ही और बहुत सारे कारण बताए जाते थे कि ऐसी परिस्थिति में यदि जल्दी से जल्दी सर्जरी नहीं की गई तो गर्भिणी एवं गर्भस्थ शिशु दोनों के जीवन संकट हो सकता है और तुरंत आपरेशन करके उन दोनों को बचा लिया जाता था | कोरोना काल में प्रायः प्रसव घरों में हुए प्रायः सर्जरी नहीं की गई इसके बाद भी गर्भिणी एवं गर्भस्थ शिशु दोनों के ही जीवन को पहले की तरह ही सुरक्षित देखा गया |
इसी प्रकार से भूकंप सुनामी बाढ़ तूफान बज्रपात महामारी आदि जितने भी प्रकार की प्राकृतिक या मनुष्यकृत आपदाएँ घटित होती हैं प्रत्यक्ष में तो वे बड़ी भयानक लग रही होती हैं लगता है कि सबकुछ नष्ट कर देंगी किंतु उसप्रकार की भीषण घटनाएँ भी डराती सबको हैं किंतु चोट केवल उन्हीं को पहुँचाती हैं जिसे कुदरत ,समय और भाग्य के प्रभाव से चोट पहुँचनी होती है बाक़ी लोग बिलकुल सुरक्षित बच जाते हैं यहाँ तक कि कई लोग तो कई कई सप्ताह बाद भी जीवित पाए जाते हैं जिसे किसी बड़े आश्चर्य की दृष्टि से देखा भले जाता है किंतु वो सब कुछ कुदरत ,समय और भाग्य के द्वारा लिखित पटकथा के अनुशार ही घटित हो रहा होता है |
कुलमिलाकर स्वास्थ्य की दृष्टि से रोगों के होने
या न होने के लिए जिम्मेदार केवल वे कारण ही नहीं होते हैं जो हमें
प्रत्यक्षतौर पर दिखाई दे रहे होते हैं अपितु बहुत सारे वे कारण भी होते
हैं जो प्रत्यक्षतौर पर भले ही दिखाई नहीं देते किंतु केवल अनुभव ही किए जा सकते हैं क्योंकि उनका भी जीवन पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ते देखा जाता है |उन्हें सम्मिलित किए बिना प्रकृति और जीवन में घटित होने वाली कुछ घटनाओं को सही सही समझ पाना संभव नहीं है |
महामारियों में भी यही तो होता है।
महामारियाँ हों या भूकंप आदि प्राकृतिक दुर्घटनाएँ ये देखने में बड़ी भयानक लगती हैं इनसे प्रभावित वही होता है जिन्हें कुदरत ,समय और भाग्य के द्वारा लिखित पटकथा के अनुशार प्रभावित होना होता है और उतना ही प्रभावित होता है जितना प्रभावित होना होता है अन्यथा किसी एक दुर्घटना में एक कार की दो सीटों पर समान अवस्था में बैठे दो लोगों में एक के शरीर के चीथड़े उड़ जाते हैं जबकि दूसरे को खरोंच भी नहीं आती है | कुदरत ,समय और भाग्य के द्वारा लिखित पटकथा के अनुशार ही ऐसी घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं |यही प्रकृति का स्वभाव है |
सभीप्रकार की महामारियाँ भी प्राकृतिक ही होती हैं सभी घटनाओं का अपना अपना प्राकृतिक चक्र होता है जो समय के संचार के साथ बँधा होता है जिस प्रकार से सूर्यादि ग्रहण अपने हर बार अलग अलग महीनों में अलग अलग समयों पर अलग अलग मात्रा में भले ही घटित होते हैं किंतु इसका मतलब यह भी नहीं होता है कि ये कभी भी कैसे भी कितने भी घटित हो सकते हैं अपितु ये समय शक्ति के द्वारा नियंत्रित हैं और समय के संचार के साथ साथ ही ऐसी प्राकृतिक घटनाओं की प्रक्रिया भी उसी के अनुशार गतिशील रहती है |
इसी के अनुशार जो सूर्य चंद्र आदि से संबंधित ग्रहण इस समय घटित होते दिखाई पड़ रहे होते हैं उनका निश्चय अभी या अभी से सौ दो सौ वर्ष पहले नहीं हुआ है अपितु इस सृष्टि के साथ ही हुआ होगा !क्योंकि प्रकृति प्रकरण के अनुशार हमेंशा सही घटित होने वाले गणितीय सिद्धांत के आधार पर इस बात का परीक्षण करना संभव है कि यह आदिकाल से ही सुनिश्चित है जो समयक्रम के अनुशार घटित होता है और समय संचार के आधार पर गणित के द्वारा भविष्य में पड़ने वाले ग्रहणों का हजारों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |
ग्रहण की तरह ही संपूर्ण प्राकृतिक घटनाएँ अपने अपने समयक्रम के अनुशार घटित होती जा रही हैं सबका अपना अपना समयक्रम होता है उसी के अनुशार सभी अनादिकाल से आती एवं जाती रही हैं |एक वर्ष प्रारंभ होता है समाप्त हो जाता है ग्रीष्म वर्षा शरद हेमंत शिशिर बसंत आदि ऋतुएँ अपने अपने समय चक्र से बँधी हुई हैं ऋतुएँ अपने आप से आती हैं और चली जाती हैं |सबका क्रम निश्चित है समय निश्चित है स्वभाव और प्रभाव निश्चित है |
समय क्रम से पेड़ पौधों में कोमल कोपलें लगती हैं फूल लगते हैं फल लगते हैं फल पकते और झड़ जाते हैं फिर समय से पतझड़ होता है फिर नई कोपलें निकलती हैंप्रकृति का यह क्रम हमेंशा से बना हुआ है जो समय संचार के साथ ही साथ पतझड़ एवं बसंत जैसी प्रक्रियाएँ संचालित होती रहती हैं |
जिस प्रकार से सूर्यास्त के बाद सूर्योदय भी होता है रात के बाद दिन भी आता है पतझड़ के बाद बसंत भी आता है !भूकंप आँधीतूफ़ान वर्षाबाढ़ आदि घटनाएँ अपने आप से आरंभ होती हैं और अपने आप से ही समाप्त हो जाती हैं कुलमिलाकर सृष्टि की सभी घटनाओं का स्वयमेव बार बार पुनरावर्तन होता रहता है इसमें मनुष्यकृत किसी का कोई कुछ विशेष योगदान नहीं होता है| इसीप्रकार से समयप्रेरित महामारियाँ भी प्राकृतिक होती हैं उनके आने जाने का भी समय सुनिश्चित होता है वे भी अपने आप से आती हैं और अपने आप से ही समाप्त हो जाती हैं| जिस प्रकार से किसी औषधि ,वैक्सीन या और सभी प्रकार के मनुष्यकृत प्रयासों के द्वारा जिस प्रकार से प्राकृतिक घटनाओं को घटित होने से नहीं रोका जा सकता है उसी प्रकार से महामारियों को भी घटित होने से कैसे रोका जा सकता है |जिस प्रकार से पतझड़ होते समय किसी वृक्ष को कोई औषधि या वैक्सीन आदि देकर पतझड़ होने को नहीं रोका जा सकता है उसी प्रकार किसी को कोई औषधि या वैक्सीन आदि देकर महामारी को कैसे रोका जा सकता है आखिर महामारी भी तो प्राकृतिक घटना ही है | ये भी अपने समय से प्रारंभ होती है और अपने समय से ही समाप्त होते देखी जाती है |
जिस प्रकार से पतझड़ होते समय पतझड़ रोकने के लिए किसी वृक्ष को कोई औषधि या वैक्सीन आदि दे दी जाए और पतझड़ होने के बाद उसी वृक्ष में से जब नई नई कोपलें प्रकृतिक्रम से निकलने लगें तो उसे मनुष्यकृत औषधि या वैक्सीन आदि के प्रयासों का परिणाम मान लिया जाए तो यह सच नहीं होगा उसी प्रकार से महामारियों को रोकने के लिए किए जाने वाले औषधि या वैक्सीन आदि प्रयोग विशेष प्रभावी नहीं होते क्योंकि ये भी तो एक प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ ही हैं |
पतझड़ के बाद नई नई कोपलें आने की तरह ही प्राकृतिकक्रम में प्लेग चेचक पोलियो जैसी अनेकों महामारियाँ अपने अपने समय से आती और जाती रही हैं इनसे मुक्ति दिलाने के लिए सरकारें अपनी अपनी परिस्थिति के अनुशार प्रभावी प्रयास भी करती रही होंगी किंतु ऐसी महामारियों से मुक्ति मिलने पर उसे अपने प्रयासों का परिणाम मान लिया जाता रहा किंतु हमारे प्रयासों के परिणाम स्वरूप यदि थोड़ा भी सुधार हुआ होता तो उसे क्रमिक रूप से बढ़ना चाहिए था किंतु ऐसा तो नहीं हुआ !1720,1820,1920,2020 के आस पास लगभग सौ वर्षों में प्रत्येक बार महामारी आई तो उस चिकित्सकीय प्रयासों से कोई विशेष मदद नहीं मिल सकी चिकित्सकीय अनुसंधान महामारी के स्वभाव को समझने में या उसके बढ़ते प्रभाव को रोकने में 1720 में जहाँ खड़े थे 2020 के कोरोनाकाल में वहीँ पर खड़े मिले | पहले की महामारियों के बिषय में कुछ भी पता नहीं था और इस महामारी के बिषय में भी कुछ पता नहीं था | न तब महामारी को रोकने के लिए कोई दवा बनाई जा सकी थी और न ही अब !न तब महामारी के विस्तार का पता लगाया जा सका था और न ही अब !न तब महामारी के प्रसार माध्यम का अनुमान लगाया जा सका था और न ही अब !महामारी पर मौसम का क्या असर होता है न तब पता था और न ही अब पता है |
परिवर्तन हुआ लेना उन्मूलन
जिस प्रकार से ग्रीष्म वर्षा शरद हेमंत शिशिर बसंत आदि ऋतुएँ अपने अपने समय चक्र से बँधी हुई हैं सबका अपना अपना स्वभाव और प्रभाव है सबके अपने अपने गुण और दुर्गुण होते हैं | ऋतुओं के स्वभाव के अनुशार जब उनका प्रभाव अपने निश्चित समय पर उचित मात्रा में पड़ता है तो महामारी जैसी घटनाएँ घटित होते नहीं देखी जाती हैं |
इनके समय और प्रभाव में व्यतिक्रम होते ही
चेचक पोलियो जैसी महामारियाँ अपने
ऐसी परिस्थिति में चिकित्सा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानेवाले कुदरत ,समय और भाग्य जैसे महत्वपूर्ण विदुओं के पजीवन पर पड़ने वाले प्रभाव का पता लगाने के लिए भी अनुसंधान किया जाना चाहिए |
कोरोना महामारी के समय भी इस प्रकार का भ्रम प्रायः सभी जगहों पर देखा गया था | पहले कहा गया कि कोरोना महामारी से सबसे अधिक खतरा हृदयरोगियों को है बादमें कहा गया कोरोना काल में सबसे कम हार्टअटैक के मामले आए !इसका कारण बताते हुए बाद में कहा गया कि लॉकडाउन खुलने के बाद अस्पतालों में हृदयरोगियों की भीड़ बढ़ेगी किंतु ऐसा भी नहीं हुआ तब कहा गया कि संक्रमण भयवश हृदयरोगी अस्पतालों में नहीं आए | माना जाता है कि हृदय रोग जैसी समस्याओं में यदि तुरंत चिकित्सा न मिले तो कभी कोई भी घटना घटित हो सकती है | ऐसी परिस्थिति में उनका घरों में रहना कैसे संभव था |
फिर प्रश्न उठा अस्पतालों
के बिषय में भी अनुसन्धान
रहे लोगों के इस बिषय की गंभीरता को न समझने के कारण ऐसे उन्हें
मर जाता है
चिकित्सकों को हुई थी होने के कारण के बिषय में
इसके बाद भी ऐसे लोग रोगी होते देखे जाते हैं |
सन 2020 में महामारी आई है जो कोरोना महामारी |के नाम से प्रचारित है यह मानव निर्मित है या प्राकृतिक है इस पर अभी तक संशय बना हुआ है | इस बिषय में वैज्ञानिक रूप से किसी मजबूत साक्ष्य के आधार पर कोई प्रमाणित उत्तर नहीं दिया जा सका है |
ऐसी परिस्थिति में वेदवैज्ञानिक दृष्टि से महामारियों को प्राकृतिक ही माना गया है इसके बिषय में कुछ तर्कों पर ध्यान दिया जाए तो जिस प्रकार से किसी की मृत्यु प्राकृतिक होती है उसी प्रकार से महामारी भी प्राकृतिक ही हो सकती है क्योंकि महामारी का मतलब भी तो किसी एक प्रकार के रोग विशेष से होने वाली बहुत लोगों की मृत्यु है ऐसे रोग जिनपर किसी औषधि का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है |
वस्तुतः सभी प्रकार के रोगों का निर्माण शरीरों के सृजन के साथ ही हुआ था !संसार में जो कुछ भी बना है वो एक दिन बिगड़ेगा अवश्य आज बिगड़े या कुछ वर्ष बाद बिगड़े उसकी आयु कुछ भी हो सकती है किंतु उसका नष्ट होना निश्चित है |
कोई नई से नई वस्तु भी तीन प्रकार से नष्ट होती है पहली बात तो समय के साथ साथ पुरानी होती जाती है इसलिए बिगड़ती है दूसरी बात किसी के द्वारा उसे खराब किया जाता है तो बिगड़ती है | कई बार नई वस्तु भी बिगड़ते देखी जाती है जिसमें मनुष्यकृत कोई भूमिका नहीं होती है |इसके अतिरिक्त किसी बिगड़ी हुई सुधारने का प्रयास बार बार करने पर भी वह न सुधरे इसके लिए लोग समय भाग्य कुदरत नेचर आदि किसी को भी जिम्मेदार मान लिया करते हैं |
शरीरों के बिषय में भी प्रायः इसी प्रकार परिस्थिति देखी जाती है गलत आहार व्यवहार रहन सहन सोने जागने या अन्य प्रकार से शरीर स्वभाव के विपरीत आचरण करने से बहुत लोग रोगी होते देखे जाते हैं कुछ लोग उम्र के प्रभाव से धीरे धीरे रोगी होते चले जाते हैं | ऐसा होते हमेंशा से देखा जा रहा है इसमें कोई विशेष बात नहीं है |
विशेषबात यह है कि कई बार युवा अवस्था में ही अत्यंत सुदृढ़ शरीर रोग वाले लोग भी किसी रोग विशेष से पीड़ित होने लगते हैं |जिसमें उनके आहार व्यवहार रहन सहन सोने जागने आदि की प्रक्रिया में कोई स्वास्थ्य के लिए विपरीत व्यवहार नहीं देखा जा रहा होता है |उनके साथ कोई उस प्रकार की दुर्घटना भी घटित होते नहीं दिखाई दे रही होती है इसके बाद भी उनको उस प्रकार के रोगों से पीड़ित होते देखा जाता है जिन्हें उनके शरीर में पहले कभी नहीं देखा गया था |
या लोग मृत्यु को प्राप्त होने लगता है
ए बिना किसी प्रयास के अपने
साथ ही रोगों का भी सृजन हुआ था सभी प्रकार के रोग हमेंशा से ही होते आए
दिए गए हैं क्योंकि हो सकती हैं इसी बिचार को दृढ़ता मिलती है|उसका कारण यह है कि महामारियाँ
इसके सौ वर्ष पूर्वस्पैनिश फ्लू तथा उसके सौ वर्ष पूर्व हैजा एवं उसके सौ वर्ष पहले हैजा तथा उसके सौ वर्ष पूर्व प्लेग स्पैनिश फ्लू ने 1918 से 1919
:इससे 100 वर्ष पूर्व स्पैनिश फ्लू ने 1918 से 1919
के बीच में कहर मचाया था। इस महामारी से दुनिया भर में करीब 50 करोड़ लोग
संक्रमित हुए थे, जबकि करीब 5 करोड़ लोगों ने अपनी जान गंवाई थी। यद्यपि इस
महामारी की शुरुआत स्पेन से नहीं हुई थी, फिर भी स्पेन एक ऐसा देश था, जिसने इस महामारी के फैलने की
खबर को दबाया नहीं और पूरी ईमानदारी से सबके सामने रखा था ।इसलिए इसका नाम स्पैनिश फ्लू रखा
गया।
इससे लगभग 100 वर्ष पहले सन् 1817 में कोलकाता में हैजा फैलना शुरू हुआ था ।
हैजा धीरे धीरे संपूर्ण एशियाई देशों में फैलता चला गया था उसमें भी
एक लाख से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई थी |
उससे 100 वर्ष पहले सन् 1720 में पूरी दुनिया में प्लेग फैला था।
1720 की शुरुआत
में साउदर्न फ्रांस में करीब 1.26 लाख लोग प्लेग की वजह से अपनी जान गंवा
बैठे थे। प्लेग का कहर 1720 से 1722 के बीच पूरी दुनियाँ में देखने को मिला था। इसे ग्रेट
प्लेग ऑफ मार्सिले कहा जाता है|
इससे पहले भी ऐसा होता रहा होगा क्योंकि समय विज्ञान की दृष्टि से ऐसा
विपरीत समय प्रत्येक सौ वर्ष में लौटकर मनुष्यों के स्वच्छंद आचरण में
अंकुश लगाया करता है फिर धीरे धीरे 100 वर्षों में मानव मन विकृतियों का
शिकार होता है फिर समय किसी न किसी महामारी से दण्डित करके मनुष्यों को
धर्मकर्म संयम सदाचरण सद्भावना परोपकार आदि भावों से आप्लावित किया करता है
|
महामारी समेत समस्त प्राकृतिक घटनाएँ समय रूपी धागे में माला की तरह पिरोई हुई होती हैं
समय बीतता जाता है घटनाएँ घटित होती जाती हैं|जिसप्रकार से सर्दी गर्मी और
वर्षा आदि ऋतुएँ समय जनित घटनाएँ हैं इसीलिए इन ऋतुओं के आने और जाने में
मनुष्यकृत प्रयासों की कोई भूमिका नहीं होती है समय बीतता जाता है और
घटनाएँ घटित होती जाती हैं | समय समाप्त होते ही ऋतुओं का प्रभाव स्वतः
समाप्त होने लगता है | समय बीतते ही सर्दी की ऋतु समाप्त हो जाती है उसके
साथ ही साथ सर्दी का प्रभाव भी स्वतः समाप्त हो जाता है | उसके बाद बिना
किसी प्रयास के स्वतः ही गर्मी की ऋतु प्रारंभ हो जाती है और अपने समय पर
गर्मी की ऋतु स्वतः समाप्त हो जाती है तो गर्मी का प्रभाव भी स्वतः समाप्त
होता जाता है इसके बाद बिना किसी मनुष्यकृत प्रयास के वर्षा ऋतु प्रारंभ हो
जाती है |इसीप्रकार से महामारियाँ भी अपने अपने समय से आती जाती रहती हैं
|
इतिहास और घटनाएँ !
कुल मिलाकर बुरे समय के प्रभाव से महामारियाँ
पैदा होती हैं प्रकृति बिप्लव होने लगता है भूकंप तूफ़ान चक्रवात बज्रपात
एवं भीषण बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएँ बार बार घटित होने लगती हैं |ऋतुध्वंस
होने लगता है इससे सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ अपना अपना प्रभाव दूसरी
ऋतुओं में प्रकट करने लगती हैं या उनके स्वभाव के विरुद्ध घटनाएँ घटित होने
लगती हैं| बुरे समय के प्रभाव से
प्राकृतिक उथल पुथल दिखाई देने लगता है | चिंतन तामसी होने लगता है मन में
उन्माद आदि का भाव प्रबल होने लगता है इससे चिंतन दूषित होने लगता है लोग
एक दूसरे से लड़ने भिड़ने को उतारू हो जाते हैं इसी कारण परिवारों में समुदायों में देशों में बाहर भीतर दोनों ही तरफ से तनाव बढ़ते देखा जाता है | इसीलिए सामाजिक मानसिक आदि तनाव बहुत अधिक बढ़ने लग जाता है वस्तुतः बुरे समय का प्रभाव संपूर्ण चराचर जगत पर एक जैसा पड़ते देखा जाता है |
1918 से 1920 के बीच में महामारी रही थी !
इससे लगभग 100 वर्ष पहले महामारी हुई ही थी उसके बाद फिर से धीरे
धीरे समय बिगड़ता जा रहा था ! महामारी के कुछ वर्ष पूर्व से ही उसका प्रभाव
दिखाई पड़ने लग जाता है ऐसा हर बार होता होगा किंतु समय अधिक बीत जाने के
कारण उनके बिषय में जानकारी जुटा पाना मेरी लिए कठिन है यद्यपि पिछली महामारी से पहले भी भी बहुत तनाव पूर्ण वातावरण रहा था | प्रथम विश्वयुद्ध हो या जलियावाले बाग़ तक की घटनाएँ उस समय में बढ़े सामाजिक तनाव के ही उद्धरण हैं |
प्रथम विश्व युद्ध: यूरोप में होने वाला यह एक वैश्विक युद्ध था जो 28 जुलाई 1914 से 11 नवंबर 1918 तक चला था। इस
युद्ध ने 6 करोड़ यूरोपीय व्यक्तियों (गोरों) सहित 7 करोड़ से अधिक सैन्य
कर्मियों को एकत्र करने का नेतृत्व किया |
जलियाँवाला बाग़ नरसंहार: 13 अप्रैल 1919 को जलियाँवाला बाग़ नरसंहारकांड हुआ था |
इस प्रकार से हर सदी में महामारियों हमला होता है क्यों सब कुछ होते हुए भी इन महामारियों के सामने
बेबस हो जाता है इंसान. पिछली चार सदियों से हर सौ साल पर अलग-अलग
महामारियों ने दुनिया पर हमला किया. और हर बार लाखों लोगों को बेमौत मार
गईं ये महामारियाँ और हर बार हमने इन महामारियों का इलाज ढूँढने में इतनी
देर कर दी कि बहुत देर हो गई |
चौरी चौरा कांड 4 फरवरी 1922 को ब्रिटिश भारत में संयुक्त राज्य के गोरखपुर जिले के चौरी चौरा में हुई थी, जब असहयोग आंदोलन
में भाग लेने वाले प्रदर्शनकारियों का एक बड़ा समूह पुलिस के साथ भिड़ गया
था। जवाबी कार्रवाई में प्रदर्शनकारियों ने हमला किया और एक पुलिस स्टेशन
में आग लगा दी थी, जिससे उनके सभी कब्जेधारी मारे गए। इस घटना के कारण तीन
नागरिकों और 22 पुलिसकर्मियों की मौत हुई थी।
2020 -21 के कोरोना काल में भी यही हो रहा है भारत में सरकार के विरुद्ध किसानों का इतना लंबा आंदोलन चल रहा है !यहाँ तक कि लालकिला में सभी किसान घुस आए थे |रोहिग्यां मुसलमानों का तनाव दिल्ली दंगे आदि | अमेरिका में ट्रंप सरकार जाने के साथ साथ सत्ता हस्तांतरण में भारी विवाद हुआ | नेपाल के प्रधानमंत्री ने इस्तीफा देकर संसद भंग दी थी |राष्ट्रपति कार्यालय ने संसद भंग करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है.| नेपाल में मधेशियों का आंदोलन तेज होने से चढ़ा सियासी पारा! म्यांमार में तख्तापलट करके सेना ने सत्ता को अपने हाथ में ले लिया है!चीन के हांगकांग विशेष प्रशासनिक क्षेत्र (एचकेएसएआर) में चल रहा विरोध प्रदर्शन जून 2019 में
प्रत्यर्पण बिल के विरोध के रूप में शुरू हुआ था। अगस्त तक इसने लोकतंत्र
समर्थक आंदोलन का रूप ले लिया था। यह पत्र इस परिवर्तन के कारणों का
विश्लेषण करने की कोशिश करता है और 2019 के विरोध प्रदर्शनों की तुलना पूर्व में हो चुके विरोध प्रदर्शनों से करता है।
ईरान ने इराक में अमेरिकी और गठबंधन सेना के ठिकानों पर दर्जन भर से ज्यादा मिसाइलों से हमला किया है. अमेरिका ने ड्रोन हमले में शुक्रवार को जनरल कासिम सुलेमानी को मार गिराया था. ये हमला उसी का बदला माना जा रहा है |अज़रबैजान आर्मीनिया की जंग | आदि
महामारी के बिषय में की जाने वाली वैज्ञानिक कल्पनाएँ
कुछ इस प्रकार की देखी जाती हैं जिनमें बताया जाता है कि महामारियाँ पूरी
दुनिया में एक साथ नहीं फैलती हैं . यह किसी एक देश से शुरू होती हैं फिर
वहां से दूसरे देश में लोग जाते हैं वहां संक्रमण होता है. फिर वहां से
तीसरे देश में लोग जाते हैं वहां संक्रमण होता है और यह कई चरणों में पूरी
दुनियाँ में फैलता है !
महामारी से
साल 1918 में दुनियाभर के 5० करोड़ से ज्यादा लोग संक्रमित हुए थे और करीब
2-5 करोड़ लोगों की जान चली गई थी चूंकि न तो स्पेनिश फ्लू का कोई इलाज था न
टीका, जैसा कि अभी कोरोना वायरस
संक्रमण के समय है, इसलिए यह बीमारी बड़े पैमाने पर फैलती चली गई.1918 की
महामारी से कोई देश अछूता नहीं था.
स्पेनिश फ्लू 1918 के बसंत काल में अमेरिका से शुरू हुआ था,साइंटिस्ट्स, डॉक्टर्स और हेल्थ वर्कर्स के लिए इस बीमारी को पहचानना
मुश्किल हो गया था। ये इतनी तेज से गहरा असर कर रही थी कि इसे काबू करना
संभव नहीं था। उस दौर में इस महामारी के इलाज के लिए न तो कोई सटीक दवा थी
और न ही कोई वैक्सीन।
- खगोलविज्ञान -
चिकित्सावैज्ञानिकों
के अनुसंधानों से अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि कोरोनावायरस
मनुष्यकृत है या प्राकृतिक है !यदि यह वायरस मनुष्यकृत है तब तो इस बात का
पता लगाना मानवीय प्रयासों से भी
संभव हो सकता था कि कोरोना महामारी का जन्म कब हुआ कहाँ हुआ किस प्रकार से
हुआ इसमें संक्रमकता कितनी है इसका प्रसार माध्यम क्या है ! इसका विस्तार
कहाँ तक है इस संक्रमण के बढ़ने घटने पर मौसम का प्रभाव कितना है !इस वायरस
का प्रभाव लगभग कितने दिनों तक रहता है !कैसे वातावरण में रहने से, क्या खाने पीने से या कैसे रहने से कोरोना वायरस से संक्रमित होने या संक्रमितलोगों में संक्रमण बढ़ने का खतरा अधिक रहता है | क्या खाने पीने से कैसे रहने से संक्रमण का खतरा कम रहता है | ऐसी और भी कोरोना वायरस से संबंधित सभी आवश्यक जानकारियाँ जुटाई जा सकती थीं किंतु ऐसा नहीं किया जा सका इसका मतलब है कि कोरोना वायरस मनुष्यकृत नहीं अपितु प्राकृतिक था |
कोरोना वायरस यदि वास्तव में प्राकृतिक
ही है तब तो इसका अनुसंधान भी यंत्रों की अपेक्षा प्राकृतिक परिवर्तनों का
अनुसंधान करके ही किया जाना चाहिए | प्रकृति में हमेंशा होते रहने वाले
परिवर्तन समय के आधीन होते हैं जब जैसा समय होता है तब तैसे बदलाव होते
हैं | समय में होने वाले अच्छे और बुरे परिवर्तनों को पता लगाने एवं इनका
पूर्वानुमान जानने के लिए खगोलीय परिवर्तनों का अनुसंधान करना होता है
क्योंकि खगोलीय ग्रहगति को समझे बिना अच्छे या बुरे समय के संचार को समझना
केवल कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी होता है |
बुरे समय का प्रभाव प्रकृति पर पड़ने से
प्रकृतिविप्लव अर्थात ऋतुध्वंस होने लगता है| गर्मी की ऋतु में वर्षा और
वर्षा ऋतु में बिलकुल सूखा या फिर बहुत अधिक वर्षा तथा सर्दी की ऋतु में या
तो बहुत कम सर्दी या फिर बहुत अधिक सर्दी होने लगती है | हिंसक आँधी तूफ़ान
बार
बार आने लगते हैं बुरे समय के ही प्रभाव से कुछ क्षेत्रों में भीषण गर्मी
के कारण सूखा ही सूखा दिखाई देता है तो कुछ क्षेत्रों में हिंसक भीषण
वर्षा बाढ़ बर्फबारी जैसी घटनाऍं बार बार घटित होते देखी जाने लगती हैं |
बुरे समय के प्रभाव से ही कुछ क्षेत्रों में वायु प्रदूषण का स्तर दिनोंदिन बढ़ता चला जाता है|कुछ
देशों प्रदेशों में भूकंप एवं
बज्रपात जैसी हिंसक दुर्घटनाएँ बार बार घटित होने लगती हैं |मनुष्यों से
लेकर पशु पक्षी तक सभी के स्वभावों में तामसी बदलाव आने के कारण सभी अपने
अपने स्वभावजन्य गुण छोड़ने एवं दूसरे के गुणों को ग्रहण करने लगते हैं
|
बुरे समय का प्रभाव पाताल की गहराई से लेकर आकाश की ऊँचाई तक विद्यमान
रहता है | कुऍं नदी तालाबों झीलों तथा नदियों का जल महामारियों के प्रभाव
से प्रभावित होने के कारण बिषैला हो जाता है बिषैली हवाएँ चलने लगती हैं
हवा और पानी के बिषैला हो जाने से संपूर्ण प्रकृति पेड़पौधे बनौषधियाँ
फलफूल शाक सब्जियाँ आदि सभी खाने पीने के पदार्थ संपूर्ण रूप से बिषैले हो
जाते हैं जिन्हें खाने पीने से एवं ऐसे प्रदूषित वातावरण में रहने के
कारण महामारी जनित संक्रमण का प्रभाव प्रायः सभी लोगों पर एक समान पड़ता है |
इसके बाद भी उनका विशेष अधिक दुष्प्रभाव उन्हीं लोगों में दिखाई पड़ता है
जिनकी शारीरिक मानसिक एवं आत्मिक प्रतिरोधक क्षमता विशेष दुर्बल होती है |
जिनका अपना समय विशेष अच्छा चल होता है जो भोजन लेते समय पथ्य परहेज का
सेवन करते हैं जो नशे के सेवन से अपने शरीरों मन आदि को दूषित नहीं होने
देते हैं | जो सदाचरण एवं ब्रह्मचर्य आदि संयम धारण करते हैं जो ईश्वराधन
में रूचि का पालन करते हैं जो ईमानदारी पूर्वक धनार्जन करते हैं और अपने
खून पसीने की कमाई से परिश्रम पूर्वक अर्जित धन से अपना एवं अपने परिवारों
का भरण पोषण करते हैं जो अमर्यादित यौनाचार से दूर रहते हैं !ऐसे प्रतिरोधक
क्षमता संपन्न लोग महामारी काल में भी महामारी से प्रभावित लोगों के बीच
में रहने पर भी एवं महामारी से संक्रमितों का स्पर्श होने पर भी स्वस्थ
जीवन व्यतीत किया करते हैं |
इसके बिपरीत प्रतिरोधक क्षमता से विहीन बहुत लोग नशे का सेवन करते हैं अमर्यादित
यौनाचार में संलिप्त रहते हैं भ्रष्टाचार पूर्वक धनार्जन करके उसी से अपने
पत्नी बच्चों एवं प्रिय परिवारों का भरण पोषण करते हैं ईश्वराराधन से
विमुख सदाचरण विहीन जीवन जीते हैं | ऐसे साधन संपन्न एवं प्रतिरोधक क्षमता विहीन लोग
कितने भी चिकित्सकों के संपर्क में रहकर कितने भी शक्तिबर्द्धक खानपान रस
रसायनों का सेवन करके भी महामारी से प्रभावित होते देखे जाते हैं | ऐसे प्रतिरोधक क्षमता विहीन लोग कितनी भी शुद्ध पवित्र जगहों पर कितने भी संक्रमण मुक्त वातावरण में रहते हुए कैसे भी एकांत का सेवन करते रहें कितना भी किसी के स्पर्श से बचते रहें इसके बाद भी महामारी से संक्रमित होते देखे जाते हैं क्योंकि ऐसे ही प्रतिरोधक क्षमता विहीन
लोगों का आश्रय लेकर महामारियाँ अपने प्रभाव का विस्तार करती हैं इसलिए
ऐसे लोगों को संक्रमित होने के लिए किसी के स्पर्श की आवश्यकता ही नहीं
होती है अपितु ये लोग स्वयं ही महामारियों के आश्रय स्थल होते हैं |महामारी से संक्रमित ऐसे लोगों पर औषधियों का प्रभाव विशेष अधिक नहीं पड़ता है |
जिन लोगों का समय कुछ अच्छा और कुछ बुरा होता है ऐसे मध्यमस्तरीय
प्रतिरोधक क्षमता से संपन्न लोग महामारियों से संक्रमित होकर भी स्वस्थ और
सुखी जीवन जीने में सफल होते देखे जाते हैं |
कुल मिलाकर बुरे समय के प्रभाव से महामारियाँ जन्म लेती हैं और बुरे समय
का प्रभाव रहता है तब तक ऐसी महामारियों का संक्रमण बढ़ता चला जाता है और
जैसे ही बुरा समय समाप्त होने लगता है वैसे ही महामारियाँ स्वतः समाप्त
होने लग जाती हैं महामारी के समाप्त होने में किसी चिकित्सकीय प्रयास की
कोई भूमिका नहीं होती है|
औषधियाँ हमेंशा रोगों से मुक्ति लिए ही बनाई जा सकती है महारोगों में औषधियों की कोई विशेष भूमिका नहीं होती है | महारोगों पर भी यदि औषधियों का अच्छा प्रभाव पड़ने ही लगे तो महारोग किस बात के !फिर तो वे भी रोगों की ही श्रेणी में आ जाएँगे|वस्तुतः
महारोग या महामारी की श्रेणी में केवल वही रोग आते हैं जिनके न तो लक्षण
निश्चित होते हैं और न ही औषधियाँ !बुरे समय के प्रभाव से होने वाली
महामारियाँ समय का वेग अधिक होने के कारण हर पल अपना स्वरूप बदलती रहती
हैं | इसीप्रकार से समय के प्रभाव के कारण ही औषधियाँ अपनी विशेषताओं को
खोकर निर्वीर्य हो जाती हैं | इसलिए गुणहीन औषधियों के प्रयोग से कोई लाभ नहीं होने पाता है | महामारियाँ समाप्त होने का अंदाजा तभी लग पाता है जब चिकित्सकीय प्रयास रोगों पर अंकुश लगाने में सफल होने लगते हैं और हमेंशा चली जाती हैं तथा अच्छे समय के प्रभाव से महामारियाँ स्वतः समाप्त होने लग जाती हैं |
महामारी प्रारंभ होने के कुछ वर्ष पहले से लोगों
के स्वभाव तामसी होने लगते हैं | ब्यभिचार घूसखोरी नशाखोरी उन्माद पागलपन
हिंसा की भावना प्रबल होने लग जाती है| लोग कलह प्रिय क्रोध
प्रिय बिलासी होने लग जाते हैं| छोटे छोटे कारणों से हत्या एवं
आत्महत्या जैसी घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं |इसी उन्माद के कारण लोग अपने ही देश के शासकों के विरुद्ध बिना किसी विशेष कारण के ही आंदोलन संघर्ष षड्यंत्र आदि करने
लगते हैं | देशों की सीमाओं पर तनाव बढ़ने लगता है | कुछ देशों में अकारण ही आपसी तनाव पैदा हो जाता है इसलिए वे आपस में लड़ने के
लिए उतावले हो उठते हैं |
महामारी के प्रसार में सहायक मच्छरों, मक्खियों, चूहों, चमगादडों, टिड्डियों और पक्षियों का प्रजनन अधिक होने से इनकी पैदावार बहुत अधिक
बढ़ने लग जाती है और जब तक महामारी रहती है तब तक बढ़ती चली जाती है|महामारी
के प्रभाव से अधिक मात्रा में पैदा हुए हुए मच्छरों, मक्खियों, चूहों, चमगादडों, टिड्डियों और पक्षियों का विशाल समूह महामारी समाप्त होने के साथ ही साथ स्वतः नष्ट होते देखे जाते हैं |
कुल मिलाकर महामारी प्रारंभ होने के कुछ वर्ष पहले से लोग
धीरे धीरे अपने अपने धर्म कर्म छोड़कर सदाचरण विहीन होने लगते हैं
केवल कर्म को ही प्रधान मानकर ईश्वरीय शक्तियों को नकारने लगते हैं परिहास
करने लगते हैं उन्हें
लगने लगता है कि ईश्वर नाम की अवधारणा ही गलत है !उनका मानना होता है कि
केवल कर्म के द्वारा ही अपनी इच्छा के अनुशार चिकित्सा समेत सभी कार्यों
में सफलता पाई जा सकती है | चिकित्सकीय प्रयासों के द्वारा सभी रोगों से
मुक्ति पाई जा सकती है आयुरक्षा की जा सकती है स्वास्थ्य रक्षा के लिए
चिकित्सा ही सब कुछ है | विपरीत समय के प्रभाव से लोगों के मन में इस
प्रकार की भावना आने लग जाती है |यह भ्रम तभी टूटता है जब समय प्रभाव से
प्रकट हुई महामारियाँ अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए चिकित्सा
व्यवस्था को निष्प्रभावी करके हुए संपूर्ण विश्व को अपने आधीन कर लेती है|
ऐसी परिस्थिति में समय प्रभाव से ही संपूर्ण रोग लक्षणों की नियमावली एवं
औषधियों के गुणधर्म कुछ समय के लिए शून्य कर दिए जाते हैं |
जिससे लक्षणों को देखकर रोगों की पहचान कर पाना कठिन होता है और इसके बिना
चिकित्सा करना भी संभव नहीं हो पाता है | इसके साथ ही समय प्रभाव से
गुणरहित हुई औषधियॉँ भी महामारी में होने वाले रोगों पर निष्प्रभावी होती
हैं |ऐसे कठिन समय में एक मात्र ईश्वरीय शक्तियाँ ही संसार के सभी
प्राणियों का सहारा बनती हैं |भारत वर्ष के मनीषियों ने इसीलिए चेचक जैसी
महामारियों को भी माता कहकर संबोधित किया है |
महामारियाँ मौसम और तनाव !
भूकंप आदि प्राकृतिक घटनाओं की तरह ही महामारियाँ भी प्राकृतिक रूप से ही
घटित होती हैं इसलिए इसके अध्ययन अनुसंधान आदि की प्रक्रिया भी प्राकृतिक
रूप से ही चलाई जानी चाहिए !इसका अनुसंधान भी प्रकृति और प्राकृतिक घटनाओं
को सम्मिलित करके ही किया जाना चाहिए तभी तो महामारी से संबंधित किसी
निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है |
इसी उद्देश्य से मैंने पिछले कुछ वर्षों से घटित हो रही कुछ बड़ी
प्राकृतिक घटनाओं का डेटा संग्रह करना प्रारंभ कर दिया !क्योंकि कोरोना
महामारी के बिषय में अध्ययन अनुसंधान आदि करने के लिए हमें पिछले कुछ
वर्षों में घटित होती रही वैश्विक प्राकृतिक घटनाओं की जानकारी होनी चाहिए
थी वे जिस समय घटित हुईं उनके बिषय में जानकारी होनी चाहिए थी उसी समय के
आधार पर ही तो इस अनुसंधान को आगे बढ़ाया जाना था |
सीमित संसाधनों के कारण सूचना के स्रोत भी हमारे पास अत्यंत सीमित ही हैं इसलिए कोरोना महामारी के बिषय में वैश्विक
प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में समयबद्ध जानकारी जुटा पाना हमारे लिए संभव
नहीं था |इसलिए मुझे लगा कि भारतवर्ष को ही केंद्र में रखकर यदि अनुसंधान
किया जाए तो भारतवर्ष एवं उसके आस पास के देशों में पिछले कुछ वर्षों में
घटित प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में अनुसंधान करना चाहिए |
पिछले कुछ वर्षों से संपूर्ण प्रकृति में ही उथल पुथल मची हुई है !भारत के विभिन्न प्रदेशों में भूकंप की घटनाएँ बार बार घटित होती देखी जा रही हैं |कोरोनाकाल में भूकंप के झटके जब
जब लगते रहे तब तब संक्रमितों की संख्या अचानक बढ़ जाती रही !इसका भी कोई
कारण तो होगा !कोरोना वर्ष में मई के महीने तक वर्षा होती रही ऐसा हमेंशा
तो नहीं होता था | बार बार हिंसक बज्रपात होते रहे जिसमें बहुत सारे लोग मारे गए |ऐसी घटनाएँ हमेंशा तो नहीं घटित होती रही हैं | वैसे भी विगत
कुछ वर्षों से हिंसक आँधी तूफान एवं चक्रवात जैसी घटनाएँ घटित होते देखी
जा रही हैं | हिंसक वर्षा एवं बाढ़ जैसी घटनाएँ घटित होती देखी जा रही हैं
|पिछले कुछ वर्षों से वायुप्रदूषण गंभीर स्तर तक बढ़ते देखा जा रहा है | ऐसी
और भी बहुत सारी प्राकृतिक सामाजिक आदि घटनाएँ पिछले छै सात वर्षों से
ज्यादा घटित होते देखी जाती रही हैं वैसे सामान्य रूप से ऐसी घटनाएँ घटित होते नहीं दिखाई पड़ती हैं |
ऐसी परिस्थिति में मौसम विज्ञान संबंधी अनुसंधानों में वैज्ञानिकता
होती तो ऐसी मौसम संबंधी घटनाओं के घटित होने के आधार पर कोरोना जैसी
महामारी के आने के पहले ही महामारी के प्रारंभ होने से पहले ही महामारी के
बिषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है ऐसी मौसम संबंधी घटनाओं
के आधार पर ही इस बात पूर्वानुमान भी लगाया जा सकता था कि कोरोना
महामारी से संबंधित संक्रमण घटने बढ़ने का समय कब कब होगा एवं इसके हमेंशा
हमेंशा के लिए समाप्त होने के बिषय में उचित अनुमानित समय क्या होगा ?यह
संक्रमण बढ़ने का कारण क्या है आदि और भी बहुत सारी महामारी से संबंधी बातों
का अनुमान मौसम संबंधी घटनाओं को देखकर लगाया जा सकता था किंतु मौसम
संबंधी विज्ञान इतना सक्षम नहीं है कि वो मौसम संबंधी घटनाओं के बिषय में
पूर्वानुमान ही लगा सके ऐसी परिस्थिति में मौसम वैज्ञानिकों से यह अपेक्षा
करना कतई ठीक नहीं होगा कि वे वर्षा जैसी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने के
आधार भूत कारण खोज सकें !वैसे भी उपग्रहों रडारों के द्वारा आँधी तूफानों
एवं बादलों की जासूसी करके उनके बढ़ने की गति और दिशा के आधार पर कहाँ कब
किस प्रकार की घटनाएँ घटित हो सकती हैं उसका अंदाजा लगा लिया जाता है | ऐसी
परिस्थिति में मौसम संबंधी ऐसे तीर तुक्के लगाने से महामारी जैसी घटनाओं
के बिषय में कोई जानकारी या पूर्वानुमान कैसे प्राप्त किया जा सकता है
|इसके लिए तो मौसम संबंधी वास्तविक विज्ञान चाहिए जो मौसम संबंधी घटनाओं का
पूर्वानुमानलगाने के साथ साथ मौसम बिगड़ने के कारण होने वाले रोगों के बिषय में भी जानकारी प्राप्त की जा सके |
यही स्थिति भूकंपविज्ञान संबंधी अनुसंधानों की भी है जब भूकंपों
के बिषय में अभी तक कोई विज्ञान ही नहीं खोजा जा सका है इसीलिए तो भूकंप
आने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारणों की खोज अभी तक नहीं की जा सकी है और
उन कारणों की बिना भूकंपों से प्रभावित होने वाली महामारियों के बिषय में
कोई जानकारी कैसे जुटाई जा सकती है इसके लिए पहले तो भूकंप संबंधी जानकारी
जुटाई जानी आवश्यक है |
वायुप्रदूषण बढ़ने के प्रभाव से कोरोना संक्रमण बढ़ जाता है ऐसा समय समय पर
वैज्ञानिक भी स्वीकार करते रहे हैं !ऐसी परिस्थिति में कोरोना संक्रमण घटने
बढ़ने का पूर्वानुमान लगाने के लिए सबसे पहले आवश्यक हो जाता है कि
वायुप्रदूषण बढ़ने के आधारभूत जिम्मेदार वास्तविक कारण खोजे जाएँ जिनके कारण
वायुप्रदूषण बढ़ता है उसके आधार पर वायु प्रदूषण बढ़ने के बिषय में पूर्वानुमान लगाया जाए यदि
ऐसा कर पाने में सफलता मिल जाती है तो इसके आधार पर कोरोना संक्रमण बढ़ने
के बिषय में पूर्वानुमान लगाना संभव हो सकता है ,किंतु अभी तक वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारण को ही नहीं खोजा जा सका है |
वायुप्रदूषण बढ़ने का कारण क्या है यह जानने के लिए अभी तक कोई प्रभावी वैज्ञानिक अनुसंधान नहीं है | वैज्ञानिकअनुसंधानों के अभाव में दशहरा
आया तो रावण के जलने को दीवाली आई तो पटाखे फोड़ने को ,होली आई तो होली
जलने को ,सर्दी आई तो एयरलॉक होने को, गर्मी आई तो तेज हवाओं के साथ धूल
उड़ने को, धानकाटने के समय पराली जलाने को वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए
जिम्मेदार मान लिया जाता है | इनमें से कोई कारण नहीं मिलने पर कुछ
हमेंशा विद्यमान रहने वाले कारणों का चयन कर लिया जाता है क्योंकि ये
हमेंशा ही चला करते हैं | निर्माणकार्यों वाहनों उद्योगों ईंट भट्ठों एवं
हुक्का पीने वालों के मुख से निकलने वाले धुएँ को वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण मानकर काम चला लिया जाता है | यहाँ तक कि
महिलाओं के द्वारा किए जाने वाले स्प्रे एवं धूप अगरबत्ती हवन या चूल्हा
जलाए जाने जैसी और न जाने कितनी गतिविधियों को वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए
जिम्मेदार बता दिया जाता है | ऐसी परिस्थिति में सक्षम वैज्ञानिकअनुसंधानों के अभाव में सरकारों केलिए इस बात का निर्णय करना असंभव सा बना हुआ है कि वायु प्रदूषण को कम करने के लिए उन्हें ऐसा क्या क्या बंद कर देना चाहिए जो वास्तव में वायु प्रदूषण बढ़ने के कारण हों जिन्हें बंद कर देने से वायु प्रदूषण वास्तव में मुक्ति मिले |
ऐसी परिस्थिति में वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए
बहुत सारे कारणों को जिम्मेदार बता दिया गया है इसलिए वायु
प्रदूषण बढ़ने के बिषय में पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है और
उसके बिना उसके प्रभाव से बढ़ने वाले कोरोना जैसे संक्रमण के बढ़ने के बिषय
में पूर्वानुमान लगा पाना कैसे संभव हो सकता है |
वैज्ञानिकों का मानना था कि कोरोना वायरस जैसे बिषाणु गर्मी की ऋतु में
तापमान के बढ़ने से मर जाते हैं और तापमान घटने से बढ़ जाते हैं | इसीलिए
वैज्ञानिकों के द्वारा कहा गया था कि गर्मी बढ़ने पर कोरोना समाप्त हो जाएगा
और सर्दी प्रारंभ होने से पहले यह भी कहा गया था कि सर्दी बढ़ने पर कोरोना
संक्रमण बहुत अधिक बढ़ जाएगा !किंतु न तो गर्मी बढ़ने से कोरोना संक्रमण कम
हुआ और न ही सर्दी बढ़ने पर कोरोना संक्रमण बढ़ा दोनों अनुमान गलत निकल गए
!किंतु यदि ऐसा होता भी तो दूसरी बड़ी समस्या यह थी कि तापमान बढ़ने घटने
के बिषय में सही सटीक पूर्वानुमान लगाने के लिए अभी तक कोई वैज्ञानिक
अनुसंधान सफल ही नहीं हो सके हैं एवं सर्दी की ऋतु में तापमान घटने के लिए
पूर्वानुमान व्यक्त कर दिए जाते हैं यह प्रायः सही भी निकल जाता है और इसके
लिए वैज्ञानिक अनुसंधानों या पूर्वानुमानों की आवश्यकता भी नहीं होती है क्योंकि यही तो प्रकृति क्रम है इसलिए ऐसा तो होगा ही किंतु पूर्वानुमानों की आवश्यकता तो तब होती है जब
सर्दी की ऋतु में भी सर्दी बहुत कम या बहुत अधिक हो इसी प्रकार गरमी की
ऋतु में भी जब गर्मी बहुत अधिक या बहुत कम हो या गर्मी की ऋतु में वर्षा
होने लगे ऐसी परिस्थिति को ही सही सही समझने के लिए ही तो वैज्ञानिक
अनुसंधानों की आवश्यकता होती है |क्योंकि ऐसा वातावरण रोगों की उत्पत्ति
एवं महामारी का संक्रमण बढ़ने में सहायक माना गया है इसलिए ऐसे ऋतुध्वंस को
आगे से आगे समझने के लिए वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर लगाए गए सही एवं सटीक पूर्वानुमानों
कीआवश्यकता होती है | उसी के आधार पर महामारी आदि से संबंधित पूर्वानुमान
लगाने में मदद मिलती है किंतु दुर्भाग्य से मौसम संबंधी ऐसी परिस्थितियों
का पूर्वानुमान लगाने के लिए अभी तक कोई सही एवं सटीक वैज्ञानिक अनुसंधान
विकसित ही नहीं किए जा सके हैं इसलिए प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान
लगाने के लिए वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर जो मौसम संबंधी जो तीरतुक्के
जिम्मेदार लोगों के द्वारा लगाए भी जाते हैं वे गलत निकल जाते हैं ऐसा होने
के लिए वे लोग या तो आश्चर्य व्यक्त कर देते हैं या रिसर्च की आवश्यकता
बता देते हैं या फिर जलवायुपरिवर्तन जैसे काल्पनिक बड़े नामों का सहारा लेकर
पूर्वानुमान गलत होने के लिए उन्हें ही जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है | यही
कारण है कि प्रकृतिक्रम के अनुशार कोरोना वर्ष (2020) की गर्मी
की ऋतु में तापमान बढ़ना निश्चित था ही किंतु मई महीने तक वर्षा होती रही
ऐसी परिस्थिति में अपेक्षित तापमान बढ़ना संभव ही नहीं हो पाया !ऐसी
परिस्थिति में तापमान घटने और बढ़ने के लिए जिम्मेदार कारणों को चिन्हित
करके यदि अनुसंधान पूर्वक उनके बिषय में पूर्वानुमान लगाने का विज्ञान
विकसित किया जा सका होता तभी तो तापमान बढ़ने और घटने के बिषय में
पूर्वानुमान लगा पाना संभव था !इसी तापमान से संबंधित पूर्वानुमान के आधार पर ही तो महामारी से संबंधित संक्रमण घटने बढ़ने के बिषय में पूर्वानुमान लगाया जाना था |
वर्तमान समय में आपराधिक घटनाएँ बढ़ने का कारण भी मौसम संबंधी
व्यतिक्रम ही था !प्रकृति के साथ साथ ही जीवन भी चलता है इसीलिए प्रकृति की
तरह ही जीवन में भी पिछले कुछ वर्षों से उथल
पुथल मची हुई देखी जा रही थी लोगों के स्वभाव तामसी होते जा रहे हैं
इसीलिए समाज में वैमनस्य बढ़ाने वाली घटनाएँ अधिक घटित होते देखी जा रही हैं
!देश की सभी सीमाओं पर तनाव हिंसा घुसपैठ विस्फोटकों की बाढ़ एवं आतंकी घटनाएँ बार बार घटित होती देखी जाती रही हैं |
चीन पाकिस्तान आदि दोनों तरफ से तनाव तैयार करने के लिए प्रयास संपूर्ण
कोरोना काल में किए जाते रहे हैं |मौसम संबंधी पूर्वानुमान का अंदाजा न
होने के कारण इस बात का पूर्वानुमान लगाना कठिन हो जाता है कि किस देश या
स्थान पर किस समय किस प्रकार के अपराध संभावित हो सकते हैं |
भारत समेत पाकिस्तान अफगानिस्तान बाँगलादेश चीन नेपाल यहाँ तक कि अमेरिका आदि देशों में भी स्थापित अपनी ही सरकारों को अस्थिर करने के प्रयास किए जाते रहे हैं सरकारों के विरुद्ध हिंसकआंदोलन दंगे पत्थरबाजी एवं छोटी
छोटी बातों पर होती हत्या आत्महत्या जैसी हिंसक घटनाएँ प्राकृतिक विक्षोभ
की सूचना महामारी प्रारंभ होने के कई वर्ष पहले से देने लगी थीं |
इतना ही नहीं अपितु महामारी आने के कुछ वर्ष पहले से प्राकृतिकपरिवर्तनों के बुरे
प्रभाव से समाज का चिंतन दिनोंदिन दूषित होता जा रहा था !इसीलिए महिलाओं
के साथ दुर्व्यवहार ,ब्यभिचार ,बाबाओं ,शिक्षकों नेताओं अफसरों की
ब्यभिचारिक घटनाओं में संलिप्तता की घटनाएँ दिनोंदिन बढ़ती जा रही थीं | नेताओं और अधिकारियों की बढ़ती घूसखोरी भ्रष्टाचार चोरी डकैती अपहरण हत्या फिरौती वसूली मिलावट खोरी जैसे जघन्य अपराधों में संलिप्तता जैसी घटनाएँ अक्सर घटित होने लगी थीं |
माता पिता जैसे ज्येष्ठ श्रेष्ठ लोगों का अपमान अवमानना तिरस्कार गोहत्या भ्रूण हत्या जैसी अप्रिय घटनाएँ नास्तिकता,विश्वासघात,असहनशीलता के कारण बिखरते परिवार एवं टूटतेविवाह तथा स्वजनों से बिगड़ते संबंध !ब्यभिचार प्रधान वेषभूषा ,अनियंत्रित खानपान रहन सहन तथा जीवन
के सभी क्षेत्रों में संयम के टूटते तटबंध समाज के सभी वर्गों में एवं
जीवन के सभी क्षेत्रों में होता पतन इस बात के संकेत दे रहा था कि प्रकृति
में तामसी प्रवृत्ति सीमा से अधिक बढ़ चुकी है और प्राकृतिक वातावरण
दिनोंदिन बिषैला होता जा रहा है |
ऐसा सबकुछ सामान्य रूप से तो हमेंशा ही घटित होता रहता है किंतु ऐसी
घटनाओं की जब अधिकता होने लगती है तो महामारी जैसी घटनाओं की संभावना अधिक
बनते देखी जाती है |
ऐसा प्रायः हमेंशा से होता चला आ रहा है जिसमें प्रत्येक लगभग 80 वर्षों
के बाद क्रमशः समय बिगड़ने लगता है समय का प्रभाव प्राकृतिक वातावरण पर पड़ता
है जिससे मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाएँ ऋतु मर्यादा का अतिक्रमण करने
लगती हैं बार बार ऋतुध्वंस होने लगता है सर्दी गर्मी बर्षा आदि का प्रभाव
अपनी अपनी ऋतुओं में बहुत कम या बहुत अधिक होने लगता है और सभी ऋतुएँ अपना
अपना प्रभाव दूसरी ऋतुओं में प्रकट करने लगती हैं |
प्राकृतिक वातावरण बिगड़ने से हवा और जल दूषित होने लगते हैं इसका
दुष्प्रभाव वृक्षों बनस्पतियों अन्न आदि की फसलों शाक सब्जियों पर पड़ता है
जिससे खान पान की समस्त वस्तुएँ प्रदूषित होने लगती हैं जिसे खाने पीने का
वैसा ही प्रभाव मन बुद्धि बिचारों चिंतन आदि पर पड़ता है | प्रकृति से लेकर
जीवन तक घटित होने वाली ऐसी घटनाएँ भविष्य में संभावित महामारियों समेत
समस्त प्राकृतिक आपदाओं की सूचना दे रही होती हैं |
महामारियाँ घटित होने के बाद प्रकृति से लेकर जीवन तक के समस्त पक्षों में
क्रमिक सुधार प्रारंभ होता है जो लगभग 50 वर्षों तक इसी निरंतरता में आगे
बढ़ता जाता है उसके बाद पुनः क्षरण प्रारंभ होता है और इसी अनुपात में
क्रमशः क्षरण होता चला जाता है |धीरे धीरे पुनः
मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाएँ ऋतु मर्यादा का अतिक्रमण करने लगती हैं बार
बार ऋतुध्वंस होने लगता है सर्दी गर्मी बर्षा आदि का प्रभाव अपनी अपनी
ऋतुओं में बहुत कम या बहुत अधिक होने लगता है और सभी ऋतुएँ अपना अपना
प्रभाव दूसरी ऋतुओं में प्रकट करने लगती हैं | उससे
चिंतन दिनोंदिन दूषित होता चला जाता है और प्रत्येक 90 से 110 वर्ष के बीच
महामारियाँ बार बार आती जाती रहती हैं यह प्रकृति का चक्र है जो हमेंशा एक
जैसा चला करता है |
किसी महामारी के फैलने की जांच जासूसी पड़ताल जैसी ही होती है। किसी जासूसी
जांच में सबूतों के गायब होने से पहले अपराध की जगह पर पहुंचना होता है,
प्रत्यक्षदर्शियों से बात करनी होती है। इसके बाद जांच की शुरुआत होती है।
सबूतों की कड़ियों को जोड़ते हुए महामारी को खोजना होगा !
समय प्रभाव से जब जब संक्रमितों की संख्या
घटने लगती है तब तब वैक्सीन बनाने वाले अपने ट्रायल को सफल बताने लगते हैं
और समय प्रभाव से ही जब जब संक्रमितों की संख्या बढ़ने लगती है तब तब
ट्रायल को असफल बताने लग जाते हैं | इसीक्रम में जब संक्रमितों
की संख्या स्थायी रूप से घटने लगती है और रिकवरी स्थायी रूप से बढ़ने लगती
है उस समय जिस वैक्सीन का ट्रायल चल रहा होता है उसे सफल मान लिया जाता है |
ऐसी परिस्थिति में जिन्हें वैक्सीन दी जा रही होती है जितने प्रतिशत वे
स्वस्थ हो रहे होते हैं उतने ही प्रतिशत वे लोग भी स्वस्थ हो रहे होते हैं
जो वैक्सीन नहीं ले रहे होते हैं ऐसी परिस्थिति में इसका परीक्षण करना संभव
नहीं हो पाता है कि स्वस्थ होने वाले रोगी वैक्सीन के प्रभाव से स्वस्थ हो
रहे हैं या अपने आपसे !
भारत में अबकी बार भी यही हुआ जैसे ही 18 सितंबर के बाद समयप्रभाव से कोरोना संक्रमितों की संख्या तेजी से कम होने लगी और रिकवरी बढ़ती चली गई तो बहुत लोगों ने अपनी अपनी दवाओं वैक्सीनों को कोरोना से मुक्ति दिलाने हेतु सफल मान लिया |
यही हमेंशा से होता रहा है भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ आदि अन्य प्राकृतिक
आपदाओं की तरह ही महामारियाँ भी हमेंशा टिकने के लिए नहीं आती हैं वे भी
अपने समय से आती और समय से ही जाती रही हैं |
आज कुछ लोगों को लगता है कि पोलियो चेचक जैसे रोगों को वैक्सीन बनाकर
ही भगाया जा सका अन्यथा वे हमेंशा ही यहीं बनी रहतीं !उन्हें चिंतन करना
चाहिए कि ऐसा तो पहले भी नहीं था कि हमेंशा से ही सभी लोग पोलियो चेचक जैसे रोगों से ग्रस्त रहे हों वैक्सीन बनने के बाद ही उन्हें ऐसे रोगों से मुक्ति मिली हो !
सच्चाई तो यह है कि जो लोग कोरोना वैक्सीन या महामारियों से मुक्ति दिलाने
वाली दवा या वैक्सीन बनाने का दावा करते हैं उन्हें ही यह नहीं पता होता
है कि ऐसे रोग अचानक पैदा होने का कारण क्या है इनके लक्षण क्या हैं आदि
आदि !
संयोग ही इसे कहा जाएगा जब जिस महारोग के समाप्त होने का समय आ चुका
होता है उस समय उसे समाप्त होना ही होता है ऐसे समय जो वैक्सीन बनकर ट्रायल
पर चल रही होती हैं उन्हें ही ऐसे रोगों की वैक्सीन मान लिया जाता है ये
मजबूरी भी है क्योंकि महामारी के समाप्त होने के बाद उस औषधि या वैक्सीन
आदि का परीक्षण कर पाना संभव भी नहीं होता है |
16- 6-2020 को चेन्नई के भारतीय वैज्ञानिक न्यूक्लियर और अर्थ साइंटिस्ट डॉ.
के एल सुंदर कृष्णाने दावा किया है कि कोविड-19 महामारी किसी तरह पिछले साल 26 दिसंबर 2019 को हुए एक सूर्य ग्रहण
से जुड़ी हुई है. डॉ. के एल सुंदर कृष्ण ने एएनआई को बताया
कि उनका मानना है कि 26 दिसंबर को हुए ग्रहण ने सौर मंडल में ग्रह विन्यास
को बदल दिया.है कृष्णा का कहना है कि कोरोना वायरस के प्रकोप और सूर्य
ग्रहण के बीच सीधा कनेक्शन है जो 26 दिसंबर 2019 को हुआ था. उनका दावा है
कि आने वाले 21 जून के सूर्यग्रहण के दिन कोरोना वायरस खत्म हो जाएगा.| डॉ. कृष्णा के मुताबिक, ग्रहों के बीच ऊर्जा में बदलाव
के कारण यह वायरस ऊपरी वायुमंडल से उत्पन्न हुआ है। इसी बदलाव के कारण धरती
पर उचित वातावरण बना। ये न्यूट्रॉन सूर्य की सबसे अधिक विखंडन ऊर्जा से
निकल रहे हैं। न्यूक्लियर फॉर्मेशन की यह प्रक्रिया बाहरी मटेरियल के कारण
शुरू हुई होगी, जो ऊपरी वायुमंडल में बायो मॉलिक्यूल और बायो न्यूक्लियर के
संपर्क में आने से हो सकता है। बायो मॉलिक्यूल संरचना (प्रोटीन) का
म्यूटेशन इस वायरस का एक संभावित स्रोत हो सकता है। सौर मंडल में ग्रहों की
स्थिति में बदलाव हुआ है।
विशेष बात:डॉ.
के एल सुंदर कृष्णाजी की बातों से यह सिद्ध होता है कि खगोलीय घटनाओं का
प्रभाव प्राकृतिक घटनाओं के साथसाथ महामारियों आदि पर भी पड़ता हैइसीलिए
उससे प्रकृति एवं जीवन दोनोंही प्रभावित होते हैं |
मैं पिछले 25 वर्षों से खगोलविज्ञान और मौसम एवं मौसम और महामारीसे
संबंधित बिषयों में खगोलविज्ञान और आयुर्वेद के संयुक्त अध्ययन के अनुशार
अनुसंधान करता आ रहा हूँ !खगोलीय परिवर्तनों का प्रभाव मौसम पर पड़ता है और
मौसम का प्रभाव स्वास्थ्य पर पड़ता है | इसी क्रम में खगोलीय बड़े
परिवर्तनों का प्रभाव बड़ी संख्या में लोगों पर पड़ता है उससे महामारी जैसी
घटनाएँ घटित होती हैं |
इसीलिए आयुर्वेद के शीर्षग्रंथ 'चरकसंहिता' में वर्णित प्रक्रिया के आधार
पर मैंने महामारी के बिषय में अनुसंधान प्रारंभ किया था उसके आधार पर
महामारी के बिषय में जो सच्चाई पता लगी वो मैनें प्रधानमंत्री जी की मेल पर
19 मार्च 2020 को भेज दी थी | जिसमें लिखा था "महामारी प्राकृतिक है ,हवा
में व्याप्त है,इसके लक्षण खोज पाना असंभव होगा एवं इसकी औषधि नहीं बनाई
जा सकेगी !प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने से बचाव हो सकेगा और 6 मई से इस
महामारी का प्रथम चरण समाप्त हो जाएगा !"
महामारी के दूसरे चरण के बिषय में प्रधानमंत्री जी को दूसरी मेल मैंने 16
जून 2020 को भेजी थी !उसमें लिखा था कि यह कोरोना महामारी 8 अगस्त 2020 से
पुनः बढ़नी प्रारंभ होगी जो क्रमशः बढ़ते बढ़ते 24 सितंबर 2020 तक शिखर पर
पहुँचेगी और बिना किसी दवा या वैक्सीन के ही 25 सितंबर 2020 से यह महामारी
स्वतः समाप्त होनी प्रारंभ होगी जो 16 नवंबर तक क्रमशः हमेंशा हमेंशा के
लिए समाप्त होती चली जाएगी | "
वैक्सीन के बिषय में मैंने 7 नवंबर को प्रधानमंत्री जी को जो मेल भेजी
थी उसमें लिखा है -"कोरोना 25 सितंबर से समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा !
ऐसी परिस्थिति में 25 सितंबर के बाद बनी किसी भी औषधि या वैक्सीन के
प्रभाव का परीक्षण होना संभव न हो पाने के कारण उसे कोरोना की औषधि या
वैक्सीन के रूप में मान्यता दिया जाना न्याय संगत नहीं होगा |"
हमारे द्वारा महामारी के बिषय में लगाए गए ये सभी पूर्वानुमान अभी तक
सही होते देखे जा रहे हैं ऐसी परिस्थिति में 16 नवंबर के बाद संपूर्ण वायु
मंडल कोरोना मुक्त हो चुका है उसी का प्रभाव है कि कोरोना संक्रमितों की
संख्या दिनों दिन कम होती जा रही है | विशेष कर भारत में तो अब ढाई लाख से
भी कम कोरोना संक्रमितों की संख्या बची है वो भी दिनों दिन घटती जा रही है
परिस्थिति में वैक्सीन लगाए जाने से उसका कोई प्रभाव पड़ता भी है या नहीं
इसका परीक्षण कैसे किया जा सकेगा ?
ऐसी परिस्थिति में वैक्सीन जो लगवाएंगे और जो नहीं लगवाएँगे उन
दोनों के स्वास्थ्य में किस प्रकार से कितना अंतर दिखाई देगा उसका अनुमान
क्या है ?महामारियों और उसके बिषय में बनाई जाने जाने वाली औषधियों
वैक्सीनों आदि के बिषय में इस भ्रम निवारण प्रायः कभी नहीं हो पाता है
किंतु सच्चाई तो सामने लाई ही जानी चाहिए यह आवश्यक भी है|
खगोलविज्ञान
की दृष्टि से देखा जाए तो महामारी भी भूकंप ,आँधी तूफानों आदि की तरह की
ही प्राकृतिक
आपदा है जिस प्रकार से आँधी तूफानों भूकंपों को घटित होने को किसी वैक्सीन
से नहीं रोका जा सकता है उसी प्रकार से किसी भी महामारी को किसी वैक्सीन से
होने वाला नुक्सान इसलिए इसका मतलब यह भी नहीं कि जब तक कोरोना महामारी
का प्रकोप रहा तब तक जो लोग
प्रधानमंत्री जी को भेजी गई मेलें देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें !01 May 2020 को प्रकाशित :अमेरिका ने अब माना, 'मानवनिर्मित' नहीं है कोविड-19 वायरस,
इंटेलिजेंस कम्युनिटी (आईसी) भी वैज्ञानिकों
की व्यापक सहमति के साथ बिन्दु पर पहुंची है कि कोविड-19 मानव निर्मित
नहीं है और न ही यह अनुवांशिक तौर पर संशोधित है।
किसी महामारी के फैलने की जांच जासूसी पड़ताल जैसी ही होती है। किसी जासूसी
जांच में सबूतों के गायब होने से पहले अपराध की जगह पर पहुंचना होता है,
प्रत्यक्षदर्शियों से बात करनी होती है। इसके बाद जांच की शुरुआत होती है।
सबूतों की कड़ियों को जोड़ते हुए महामारी को खोजना होगा !
पहली मेल में व्यक्त पूर्वानुमान !
01
Apr 2020 अब सवाल यहउठता है कि कोरोना वायरस के इलाज के लिए अब तक कोई
दवा दुनिया के किसी देश के पास उपलब्ध नहीं है तो फिर लोग ठीक कैसे हो रहे
हैं? विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि अब तक इसकी कोई दवा उपबल्ध नहीं
है। दवा बनाने के लिए बहुत से देश लगातार कोशिश कर रहे हैं !जहाँ एक ओर
कोरोना अनियंत्रित होता जा रहा है उसके रोग लक्षण स्वभाव विस्तार प्रसार
माध्यम आदि किसी को पता ही नहीं लग रहा है चिकित्सक देखते रह जा रहे हैं
सघन चिकित्सा कक्ष में भी लोग मरते जा रहे हैं कोई दवा कोई वैक्सीन आदि कुछ
भी बचाव के लिए नहीं है इसके बाद भी कुछ लोग स्वयं भी स्वस्थ होते जा रहे हैं !
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महामारी और जीवन
महामारी का संक्रमण बढ़ने में स्थान ,समय, व्यक्ति और उसका समय ,व्यक्ति और उसके सदाचरण की बहुत बड़ी भूमिका होती है
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