Monday, 11 August 2014

लोकसभा चुनावों में U.P.A. हारा था या जीता था N.D.A. ? इस रहस्य को समझे बिना उचित नहीं होगा प्रांतीय चुनावों में उतरना !

    यदि N.D.A. जीता था तो N.D.A. के नेताओं  ने  ऐसा किया क्या था जिससे प्रभावित हुई होगी देश की जनता ?इसका आत्ममंथन किए बिना अपने अपने शिरों पर बाँध लिया गया जीत का शेहरा सब ठोंकने लगे अपनी अपनी पीठ ! न कुछ लोग चाणक्य कहे जाने लगे !किंतु इस बड़बोलेपन का नुक्सान भाजपा को उठाना पड़ा दिल्ली में !अब देखो क्या होता है यूपी और बिहार में !

    उन्होंने अपने मुख से तो ऐसा कुछ कहा नहीं ,हाँ,वो ईमानदारी पूर्वक देश सेवा करना चाह रहे हैं ये क्या कम है !उनके विषय में इतनी जल्दी क्यों?अभी उन्हें कुछ करने भी तो दो !!! मोदी जी ईमानदार और कर्मठ व्यक्ति तो हैं किन्तु उनकी सरकार के द्वारा बिना कुछ खास किए लहर का लोभ या प्रचार ठीक नहीं है!और कुछ करने के बाद लहर की जगह समुद्र बनकर जनता के हृदयों में हिलोर स्वयं ही मारने लगेगा ! 

   U.P.A.के विरोध की लहर को मोदी लहर कहना ठीक नहीं होगा !हाँ,मोदी जी की बातों विचारों में जनता की पीड़ाएँ जरूर झलकती हैं ,मोदी जी लोगों के हृदयों में न केवल उतरने का प्रयास करते हैं अपितु उतर भी जाते हैं किन्तु लोकहृदयी घाव देखकर लौट आते हैं उन घावों में दवा लगाने के लिए अपने जिनपार्टीजनों या सरकार या  नौकरशाह को भेजते हैं वो चटुकारिताबश हाँ तो हर काम के लिए कर लेता है किन्तु उन घावों तक या तो पहुँच नहीं पाता है और या तो पहुँचने का प्रयास ही नहीं करता है ! कुल मिलाकर अब UPA से मुक्त होकर देश NDA के चक्कर में फँसा है मोदी जी अच्छा कुछ करने को कह भी रहे हैं किन्तु  चुनावी व्यस्तताओं  के कारण उनके पास उतना समय नहीं है !अब उनकी सरकार के इस कार्यकाल के मात्र साढ़े चार  वर्ष बचे हैं किन्तु हतभाग्य जिन्हें काम में जी जान से जुटना चाहिए वे मोदी लहर पर अठखेलियाँ करना चाह रहे हैं !

   मोदी लहर आखिर होगी क्यों !मोदी जी में अतिरिक्त योग्यता आखिर थी क्या!अपने अपने प्रांतों का विकास तो हर कोई करता  ही है और जो नहीं करता है वो  जीतता ही नहीं है दूसरी बार चुनाव !किन्तु यहाँ तो कई प्रांतों में लोकप्रिय मुख्यमंत्री थे जो  दो बार  चुनाव जीते  फिर केवल मोदी लहर ही क्यों उनकी क्यों नहीं ?
   इसलिए मोदी लहर न पहले थी और न अब है और लहर जैसी कोई चीज होती भी तो क्यों ,मोदी जी ने ऐसा चमत्कार क्या किया था?वस्तुतः UPA की अकर्मण्यता एवं भ्रष्टाचार  से तंग होकर देश स्वयं ही NDAकी ओर मुड़ा है इसके अलावा देश के पास और कोई तीसरा विकल्प  था ही नहीं !
   किन्तु  मोदी लहर या भाजपा लहर या अमितशाह लहर  राजनाथ लहर आदि आदि ऐसी लहरें होती भी क्यों !क्या इन लोगों नें ऐसी लहरों के लिए कोई काम या बड़ा बलिदान किया था क्या !भाजपा ने विगत दस वर्षों में काँग्रेस सरकार के विरुद्ध कोई बड़ा आंदोलन नहीं किया फिर भी लहर की अभिलाषा !
   मोदी जी ,अमितशाह जी या राजनाथसिंह जी जैसे महापुरुष काँग्रेस के कुशासन से त्रस्त जनता के साथ पिछले दस वर्षों में प्रभावी रूप से खड़े कब हुए पिछले दस वर्षों तक थे कहाँ ये लोग !प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी होने के बाद भी मोदी जी ने मुख्यमंत्री पद नहीं छोड़ा था यदि आज जनता ने बहुमत न दिया होता तो आज भी वे सम्पूर्ण  देश के साथ न होकर संभवतः केवल गुजरात की जनता के साथ होते !ऐसी परिस्थिति में मोदी जी की लहर जैसी कल्पना ही क्यों ?


   बिगत लोकसभा चुनावों में भाजपा एवं NDA को मिली चुनावी विजय का वास्तविक नायक आखिर था कौन ? 

   इन चुनावों में भ्रष्टाचार भगाना जनता का अपना मुद्दा था लोक सभा में भाजपा को मिली विजय का श्रेय जनता के अलावा किसी और को नहीं दिया जा सकता ! 

  बंधुओ ! पिछले कुछ वर्षों से सरकार बनाने बिगाड़ने का  काम इस देश में सत्ता धारी पार्टियाँ कर ही नहीं पा रही हैं क्योंकि इसके लिए उन्हें अच्छे काम करने पड़ेंगे उन्हीं के बल पर तो वोट माँगने होंगे और जब अच्छे काम कर नहीं पाना है तो विपक्ष की नाकामियों के भरोसे सरकारें चलती चली आ रही हैं आजकल अपने देश में जिस सरकार का जितना कमजोर विपक्ष होता है उस सरकार की उतनी ही जोरदार ताकत मानी जाती है !अबकी बार लोकसभा के चुनावों में ही देख लीजिए कि पिछले दस वर्षों की सरकारी नाकामियाँ और इसके बाद सत्ताधारी गठबंधन का राहुल गांधी जैसा प्रधान मंत्री प्रत्याशी जिसे एक मंत्रालय तक चला पाने का अनुभव भी न हो लिख लिख कर सामान्य भाषण पढ़ने पड़ते हों उनके प्रधानमंत्री बनने की कल्पना कैसे की जा सकती थी !

    दूसरी बात उनकी पार्टी के दस वर्षों तक रहे प्रधान मंत्री जी चुनावों में जिनकी जवाब देही बनती थी कि वो जनता के सामने आकर अपनी बात कहें किन्तु चुनाव प्रचार के प्रमुख समय में जनता में तो वो लगभग नहीं ही आए अपितु उनके सामान पैक करने की खबरें भी मीडिया में आने लगीं !ये सब देख सुनकर तो यही लगता था कि बिगत लोक सभा चुनावों में भाजपा और NDA सरकार में आने के लिए कुछ कर पा रहा  हो या न कर पा रहा  हो किन्तु UPA सत्ता और सरकार से भागने के लिए पूरी तरह कमर कस जरूर चुका था अर्थात NDA की सरकार में आने के लिए कोई तयारी हो या न हो किन्तु UPA ने  सत्ता से भागने की तैयारी में कहीं कोई कमी या कसर नहीं छोड़ रखी थी !

     जब UPA सरकार की प्रमुख पार्टी की ही ये दशा  रही हो तो UPA में सम्मिलित दलों का हारना और NDAमें सम्मिलित दलों का जीतना चुनावों से पहले ही लगभग निश्चित सा हो चुका था,लगभग इसलिए कि इन चुनावों में लक्ष्य NDA जिताना नहीं अपितु UPA को हराना अधिक था यदि ऐसा न होता तो जिन दलों ने UPA और NDA दोनों ही गठबंधनों से दूरी बना रखी थी उनकी विजय आखिर क्यों हुई जैसे ममता एवं जयललिता आदि ! क्योंकि लहर यदि NDA  और मोदी जी की ही होती तो विजय वहाँ भी इन्हीं की होनी चाहिए थी वस्तुतः लहर तो लहर ही होती है बाढ़ जब आती है तब केवल पानी ही पानी होता है बाकी कुछ नहीं ! 

     UPA एवं NDA से तटस्थ रहकर चुनाव लड़ने वाली ममता एवं जयललिता जैसों की पार्टियों की विजय इन चुनावों में NDA की लहर या भाजपा अपने बल पर चुनाव जीती है यह सिद्ध करने में बड़ी बाधा है ! NDAके पक्ष में एक बड़ी बात जरूर जाती है इन चुनावों में प्रधानमंत्री बनने और बनाने के लिए केवल भाजपा ने ही अपने प्रत्याशी के रूप में मोदी जी को ही जनता के सामने आगे किया था उनकी स्वच्छ छवि एवं सरकार चलाने का अनुभव भी उनके पास  है यद्यपि प्रधानमंत्री बनने के लिए ये कोई बहुत बड़ी योग्यता नहीं थी किन्तु 

"निरस्त पादपे देशे एरण्डोपि द्रुमायते" 

    'अर्थात जहाँ कोई पेड़ ही न हो वहाँ एरंड का पेड़ ही पेड़ कह लिया जाता है' 

     बाकी किसी दल ने या तो अपना कोई प्रत्याशी आगे किया ही नहीं था जिन्हें किया गया उन्हें राजनैतिक गलियारों में चलने में चक्कर आते थे! कुल मिलाकर NDA की लड़ाई लगभग किसी से थी ही नहीं और जब लड़ाई ही नहीं थी तो विजय किस बात की ! 

    उत्तर प्रदेश की ही बात लें जब काँग्रेस बसपा सपा तीनों UPA के घटक दल थे UPA के विरुद्ध जनता में आक्रोश था तो उसके विरुद्ध ही वोट पड़ना था वहाँ NDA में भाजपा के अलावा कोई तटस्थ पार्टियाँ तो थीं ही नहीं जिससे कुछ मैच होता दिखता और जब मैच होता तो 'मेन आफ द मैच' का पता भी लगता कि कौन था !वैसे भी नौ वर्षों तक जनता अकेले UPAसरकार की नाकामियाँ सहती रही उसमें यदि जनता के साथ खड़े होकर जनता की आवाज बने होते अमितशाह जी या कोई और फिर तो न केवल श्रेय उनको जाता अपितु उसके बल पर प्राप्त विजय मानी जा सकती थी किन्तु ऐसा हुआ ही नहीं ! इसी प्रकार से केंद्र में भी हुआ माना कि UPA सरकार लाखों गुना अधिक ख़राब थी किन्तु देखना ये है कि उन नौ वर्षों में NDA या भाजपा या मोदी जी ने UPA या काँग्रेस या मनमोहन सरकार के विरुद्ध कोई प्रभावी राष्ट्रीय मुहिम तो चलाई नहीं जिससे जनता को लगा हो कि चलो यही हमारे साथ खड़े तो हैं यहाँ तक कि यह जानते हुए भी कि देश की जनता मनमोहन सरकार से त्रस्त है फिर भी मोदी जी भी कभी देशवासियों को हिम्मत बँधाने के लिए गुजरात से बाहर निकल कर नहीं आए और चुनावों के समय जब आए तब भी देश की जनता के साथ पूरी तरह खड़े होने नहीं आए, अर्थात गुजरात सरकार से त्याग पत्र देकर नहीं आए जीत गए तो यहाँ हैं अन्यथा अब तक गुजरात में होते अनुमान यही है बाक़ी पता नहीं !रही बात चुनावों के समय के जोरदार प्रचार की तो UPA सरकार पर  जो जो आरोप NDA के नेताओं के द्वारा लगाए जा रहे थे जनता स्वयं उसकी भुक्तभोगी थी इसलिए उनकी गवाह जनता स्वयं थी ! 

    भाजपा के तत्कालीन  राष्ट्रीय अध्यक्ष जी की कार्यकुशलता को ही भाजपा की महान विजय का श्रेय यदि दिया जाए तो वो अपने गृह प्रदेश जहाँ के वो मुख्य मंत्री भी रह चुके हैं हमारे अनुमान के अनुशार वहाँ भी वे अपने बल  पर पार्टी का वजूद प्रभावी रूप से उतना बना और बढ़ा नहीं पाए जो वो अपने बल पर आत्म विश्वास के साथ उत्तर प्रदेश के विषय में किसी को कोई बचन दे सकते दूसरी बात केंद्र में इसके पहले भी वे अध्यक्ष रह चुके थे तब भी कुछ ऐसा चमत्कार नहीं हुआ तो ये कैसे मान लिया जाए कि आज अचानक उन्होंने चमत्कार कर दिया ! यहाँ तक कि वे स्वयं या उनकी अध्यक्षता में U.P.A. सरकार की अलोक प्रिय नीतियों के विरुद्ध कोई जनांदोलन या योजना बद्ध ढंग से जनहित का कोई काम ही करते या करवाते दिखाई दिए हों ऐसा भी नहीं हो पाया !    

    अब बात एक बाबा जी की जिन्होंने इस विजय का श्रेय अपने शिर समेट रखा है उन्होंने अपना संकल्प पूरा होने के नाम पर खूब हवन पूजन किया एवं अपनी प्रशंसा में लोगों को बुला बुलाकर खूब भाषण करवाए  किन्तु उन्हें भी इस बात की गलत फहमी है कि शोर तो मैंने भी खूब मचाया है !उनके विषय में भाजपायी मनीषियों के मुख से  मैंने बाबा जी की तुलना  जेपी और गाँधी जी से करते सुना किन्तु यह तुलना स्वस्थ भाव से न करके स्वार्थ भाव से की गई लगती थी और स्वार्थ भाव से की गई ऐसी तुलनाओं को चाटुकारिता के अलावा कुछ भी  नहीं माना जाता है । चाटुकारिता में ही कई बार लोगों को कहते सुना जाता है कि  आप तो हमारे लिए भगवान हो !आदि आदि । 

     जहाँ तक बाबा जी के योगदान के मूल्यांकन की बात है तो ये बहुत स्पष्ट है कि बाबालोगों  के साथ जुड़ी भीड़ें कभी भी राजनैतिक आन्दोलनों में सहभागिता नहीं निभा पाती हैं ये भजन, योग, कथा और कीर्तन आदि के नाम पर इकट्ठी जरूर हो जाती हैं किन्तु ये भंडारा और भोजन या प्रसाद तक ही सीमित रहती हैं यदि ऐसा न होता तो जब बाबा जी पिछली बार औरतों के कपड़े पहनकर राम लीला मैदान से भागे थे तब उन्हें वहाँ रुकना चाहिए था और वीरता पूर्वक सरकार के विरुद्ध एक कड़ा सन्देश दिया जाना चाहिए था किन्तु समर्थकों के साथ ऐसी बहादुरी का उदाहरण पेश करने से बाबा जी चूक गए ! दूसरी बात बाबा जी के अनुयायिओं की है कि वो यदि वास्तव में कोई संकल्प लेकर अपने घर से निकले थे तो उन्हें चाहिए था कि पुलिस वालों का विरोध करते !यदि अधिक और कुछ उनके बश का नहीं था तो राम लीला मैदान से कहीं दूर हटकर धरना प्रदर्शन तो कर ही सकते थे किंतु उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया बल्कि पता ही नहीं चला कि वो सब चेला चेली कहाँ भाग गए ! इसलिए बाबा जी के आंदोलनों का समाज पर कोई प्रभाव पड़ा होगा और उससे भाजपा की इतनी प्रभावी विजय हुई है ऐसा मानना उचित ही नहीं है!यह जनता का अपना संकल्प ही फलीभूत हुआ है । 

     वैसे भी धार्मिक मामलों के अलावा बाबाओं का समाज पर कितना असर होता है इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि आशाराम जी जैसे लोगों के अनुयायी पता लगता है कि चार करोड़ हैं किन्तु जब आशाराम जी पकड़ कर जेल में डाल दिए गए और अभी तक जमानत नहीं मिल पाई है किन्तु उन चार करोड़ में से यदि एक करोड़ भी रोडों पर उतरकर आंदोलन करते तो परिणाम कुछ और ही होता किन्तु बाबाओं की भीड़ आंदोलन के लिए होती  ही नहीं है ।  

      इसलिए भाजपा की इतनी बड़ी जीत का श्रेय  अकेले किसी भी बाबा बैरागी को नहीं दिया जा सकता ! हाँ ये आम जनता का रुख है जिसमें बाबा लोग भी शामिल हैं U.P.A. सरकार को हटाने का जनता ने स्वयं निर्णय लिया था उसी के फलस्वरूप हुई है यह प्रचंड विजय ! यह कहने में संकोच नहीं होना चाहिए !

    इसलिए भाजपा के लिए बहुत जरूरी है इस बात का आत्म मंथन का लेना  कि लोक सभा चुनावों में भाजपा की विजय आखिर हुई किसके बल पर !अन्यथा अभी तो ठीक ठीक है किन्तु यह गलत फहमी भाजपा के भविष्य एवं आगामी चुनावों के लिए घातक हो सकती है यद्यपि UPA के विरोध का रुख जनता में अभी भी है तो इसका लाभ UPAशासित राज्यों में NDA को अभी भी मिलेगा किन्तु अधिक नहीं क्योंकि मोदी सरकार से जनता ने जो अपेक्षाएँ की थीं या जनता को जो उनसे जो आश्वासन मिले थे उनके अनुशार अभी तक कुछ भी नहीं हो पाया है फिर भी जनता के पास और कोई विकल्प न होने के कारण अभी भी जनता NDA को ही पसंद करेगी किन्तु जिन जिन प्रदेशों में NDA और UPA के अतिरिक्त कोई और प्रभावी विकल्प है वहाँ जनता की स्वाभाविक पसंद वो तीसरा विकल्प होगा न कि NDA ,फिर भी वहाँ भी यदि NDA ही जीतता है तो ये भाजपा की वास्तविक विजय होगी !

     इसलिए विजय के इस प्रश्न पर सावधानी से काम लेना चाहिए अन्यथा इस विषय पर अपनी या अपनों की पीठ थपथपाने का मतलब आम जनता को चुनौती देना माना जाता है !क्योंकि भाजपा की इस विजय का कोई एक व्यक्ति या पार्टी "मेन आफ द मैच "हो ही नहीं सकता उसके अनेकों कारण हैं !

    भाजपा की अपनी क्षमता तो यह थी कि सबसे कमजोर मानी जाने वाली मनमोहन सरकार भी दस वर्षों तक भाजपा के हिलाए नहीं हिली जबकि बलात्कार भ्रष्टाचार से लेकर हर प्रकार की सरकारी विफलताओं के मुद्दों का ढेर विपक्ष की थाल में परोसकर मनमोहन सरकार ने पहले ही रख दिए थे किन्तु भाजपा की अपनी हालत  उस लुढ़कती हुई सरकार से भी अधिक कमजोर थी तभी तो चल पाई दस वर्ष तक मनमोहन सरकार । 

   पिछले दस वर्षों तक भाजपा जन समस्याओं के विरुद्ध कहीं प्रभावी रूप से खड़ी नहीं दिखी U.P.A.सरकार के भ्रष्टाचार के विरुद्ध कोई आंदोलन राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का नेतृत्व खड़ा ही नहीं करा सका ।

    भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनता जरूर आंदोलित थी जनता के मूड को भाँप कर ही रामदेव ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध नारा दिया जनता इस नारे के साथ जरूर थी किन्तु  रामदेव के साथ नहीं थी यदि साथ होती तो साथ देती किन्तु ऐसा नहीं हो सका !        

     मुझे भय है कि श्रेयापहरण के चक्कर में कहीं ऐसा न हो कि भाजपायी अपनी पीठ ही थपथपाते रह जाएँ और जनता के संकल्प एवं निर्णय को  भुला दिया जाए ! दूसरी बात जिस जनता की जगह अभी तक भाजपा और मोदी जी को श्रेय दिया जा रहा है किन्तु मुझे ध्यान रखना होगा कि सत्ता परिवर्तन का यह निर्णय जनता का है और जनता के आवश्यक संकल्प को पूरा करने की उसकी अपनी सहनशीलता एवं समय सीमा है इसलिए उसे भी ध्यान में रखकर चला जाना चाहिए ,क्योंकि जनता कभी किसी को अधिक दिनों तक अनावश्यक रूप से क्षमा नहीं कर पाती है।

     इस विषय को हमारे चिंतन के अनुशार और अधिक समझने के लिए हमारा दूसरा लेख भी पढ़ सकते हैं -

भाजपा को मिली प्रचंड विजय में किसका कितना योगदान ?और किसकी कितनी कृपा ? 
   भाजपा विजय की श्रेय समस्या का समाधान आखिर क्या है किसके परिश्रम या प्रयास से मिला भाजपा को प्रचंड बहुमत ?
     बंधुओं ! हारी हुई पार्टियों see more... http://snvajpayee.blogspot.in/2014/05/blog-post_19.html 

 

 

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