देश ,समाज और संस्कृति के प्रति समर्पित है आर .एस.एस. !
बंधुओ !विश्वास किया जाना चाहिए कि देश के प्रति स्वश्रृद्धा से समर्पित आर. एस. एस. के ये ऐसे पवित्र प्रचारक हैं जो अपने दुलारे देश के विरुद्ध कुछ करने और बोलने की बात तो दूर कुछ सोच भी नहीं
सकते, कुछ सह नहीं सकते।राष्ट्रनिष्ठा के प्रति ये इतने कट्टर लोग हैं ये
अत्यंत ऊँची राष्ट्रवादी सोच के धनी लोग हैं जो तुच्छ जिजीविषा कभी नहीं स्वीकार
करेंगे।देश और समाज के लिए जिन्होंने अपना जीवन ही दाँव पर लगा रखा है अपने देश और समाज पर कोई हमला करे वो दुर्दिन देखने के लिए ये जीवित रहना भी पसंद नहीं करेंगे मैं इनकी राष्ट्र निष्ठा से निजी तौर पर भी सुपरिचित
हूँ जहाँ तक मेरी समझ मेरा साथ देती है मैं विश्वास पूर्वक कह सकता हूँ कि ये अपने देश के विरुद्ध कुछ होते देखकर भी जीने के लिए पैदा ही नहीं हुए हैं ऐसे सज्जनों की आवश्यकता देश को है।जिस किसी को न हो तो न रहे बाक़ी देश को है ।
राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ के प्रचारकों की पवित्र एवं विरक्त जीवन शैली होती है उनका
वाणी एवं आचरण पर अद्भुत संयम देखा जाता है भारतीय समाज एवं संस्कृति के
प्रति समर्पित उनका आचार व्यवहार है देश ही उनका परिवार है।राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ के साथ साथ उसके अतिरिक्त भी समाज
के ऐसे सभी सज्जन एवं साधु चरित्र लोगों पर एवं देश की रक्षा में समर्पित
बंदनीय सैनिकों के ऊपर कोई भी टिप्पणी सात्विक शब्दों में अत्यंत सावधानी
पूर्वक की जानी चाहिए।मैं मानता हूँ कि संत वही है जिसका आचरण सदाचारी और
विरक्त हो। जाति,क्षेत्र,समुदाय,संप्रदाय वाद से ऊपर उठकर ऐसे लोगों के प्रति सम्मान भावना का संस्कार नौजवानों में डालना ही चाहिए ।
मोहन भागवत जी एक सक्षम
विचारक हैं उन्होंने अपना सारा जीवन देश और समाज के लिए समर्पित कर रखा है उनके सक्षम
संगठन के विभिन्न आयाम देश के कोने कोने में जनहित में विभिन्न प्रकार के
काम कर रहे हैं।गरीबों, बनबासियों, आदिवासियों, ग्रामों, नगरों, शहरों के
साथ साथ स्वदेश से लेकर विदेशों तक का उनका अपना अनुभव है।वो ग्रामों,
शहरों की संस्कृति से अपरिचित नहीं अपितु सुपरिचित हैं। ऐसी भी कल्पना नहीं
करनी चाहिए कि उन्हें देश के किसी पीड़ित की ब्यथा सुनकर पीड़ा नहीं अपितु
प्रसन्नता होती होगी।हो सकता है कि कई बार उनकी बात का अभिप्रायार्थ उस प्रकार से
समाज में न पहुँच सका हो जैसा कि वो पहुँचाना चाहते हों किंतु उनकी समाज
एवं देश निष्ठा पर किसी भी चरित्रवान, सात्विक एवं सज्जन व्यक्ति को संदेह नहीं होना चाहिए।श्री मोहन भागवत जी के सार गर्भित सुचिंतित वक्तव्य पर निंदा आलोचना का ये ढंग उचित नहीं कहा जा सकता है।जिस प्रकार से कुछ पद लोलुप लोग किसी पर भी विशेषकर राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ से सम्बंधित लोगों का नाम याद आते ही अकारण उनकी निंदा करने
की लत के शिकार होते जा रहे हैं इस तरह की आदत देश हित में नहीं मानी जा
सकती।
इसके अलावा भी भाजपा समेत इसके समस्त संगठनों की आलोचना जितनी निर्ममता पूर्वक विभिन्न राजनैतिक दलों या नेताओं के द्वारा की जाती है किसी लज्जावान व्यक्ति या समूह के लिए ऐसा कर पाना सम्भव नहीं है !
आप स्वयं देखिए कि गुजरात की जनता मोदी जी के विषय में चिल्ला चिल्लाकर न केवल यह कहती रही कि मोदी जी अच्छी सरकार चला रहे हैं अपितु उनका समर्थन भी बार बार करती रही तभी तो उनकी सरकार हर बार बनती रही फिर भी गुजरात में चुनावों के समय दिल्ली से नेता लाद लाद कर गुजरात की जनता को यह समझाने के लिए भेजे जा रहे थे कि मोदी जी गलत हैं या मोदी जी धर्म विशेष के लोगों के लिए खतरा हैं आखिर इसे झगड़ा भड़काने की साजिश क्यों न समझा जाए ! जो गुजरात की जनता को नहीं पता था वो स्वप्न इन्होंने कैसे देख लिया होगा उसके आधार इनके पास क्या थे ! फिर भी इन्हें लग रहा था कि हम्हीं समझदार हैं किन्तु जनता इन्हें बार बार इस बात का एहसास करवाती रही कि वास्तव में समझदार कौन है !यही हाल अबकी पूरे देश की जनता ने किया फिर भी इन्हें समझ में नहीं आ रहा है !इन्हें इस बात का भी अनुमान नहीं है कि अब आर.एस.एस. या भाजपा को तालिबानी कहने का अर्थ सम्पूर्ण भारत वर्ष की जनता को चुनौती देना है क्योंकि सत्ता तो उन्हें देश की जनता ने सौंपी है एक राजनैतिक दल की हैसियत सुरक्षित रखने की दृष्टि से भी किसी दल के लिए आर. एस. एस. या भाजपा की निराधार आलोचना करना इसलिए भी ठीक नहीं है क्योंकि इस समय जनता उनके साथ उन्हें अच्छा समझ कर ही खड़ी हुई है और लोकतंत्र में जनता से बड़ा कोई होता नहीं है !
किसी भी राजनैतिक सामाजिक संगठन को चाहिए कि वो आर. एस. एस.जैसे संगठनों में सम्मिलित होकर इनकी गतिविधियाँ देखे एवं इनकी सामाजिक सांस्कृतिक साधना की सराहना करें इन्हें प्रोत्साहित करें इनका सहयोग करें और कहीं शंका लगती है तो उस पर चर्चा करें या शंका समाधान करें ,किन्तु ऐसा बिना कुछ किए ही बिना किसी आधार प्रमाण के इनके विषय में कुछ अनर्गल बोलते रहना ठीक पद्धति नहीं है !
आज आर .एस.एस. की तुलना कोई तालिबान से कर रहा है तो कोई भगवा आतंकवाद बता रहा है कोई देश और समाज को तोड़ने वाला बता रहा है वो भी वो लोग जो देश की सरकार में अभी तक रह चुके हों फिर प्रश्न तो उठता है कि यदि ये गलत हैं तो ऐसे लोगों के विरुद्ध इन्होंने कोई जाँच क्यों नहीं करवाई !
एक बार एक राष्ट्रीय राजनैतिक दल के मंथन शिविर में भाजपा को आर.एस.एस.की कठपुतली बताया
गया और भाजपा का रिमोट आर.एस.एस. के हाथ में बताया गया आखिर क्यों ?और यदि
ऐसा है भी तो संघ जैसे चरित्र प्रहरी संगठन के प्रति इतनी आशंकाएँ क्यों
हैं आखिर क्या भूल हुई है उससे ! केवल यही न कि देश की गौरव रक्षा हेतु वो
मर मिटने के लिए तैयार है! वो स्वदेशियों को स्वाभिमानी बनाना चाहता है आर. एस. एस.की
सोच में ही नहीं है कि कोई राष्ट्रवादी भारतीय किसी विदेशी के सामने गिड़गिड़ाकर
राजनैतिक या गैर राजनैतिक पद प्रतिष्ठा पाने के लिए दुम हिलाए या भीख माँगे !
आर.एस.एस.एक स्वतंत्र संगठन है राष्ट्रभक्ति की
भावना से कार्य करने की उनकी अपनी शैली है।सत्ता सुख की ईच्छा छोड़कर देश के
लाखों लोग उनके साथ जुड़कर समाज सुधार के विभिन्न कार्यों में लगे रहते
हैं ।वे मंत्री मुन्त्री पद के लोभ में किसी अभारतीय का चरण चुम्बन नहीं
करना चाहते हैं तो इसमें उनका दोष क्या है?वो भारतीयता पर गर्व करते हैं
इसमें किसी को बुरा क्यों लगे और लगे तो लगे।आखिर उन्हें अनावश्यक रूप से क्यों कोसा जाता है ?
आर .एस.एस. की विचार धारा में स्वदेश के प्राचीन पवित्र संस्कारों
के आधार पर जीना सिखाया जाता है। जिसमें न तो आधुनिक लव है और न ही लव
मैरिज।ऐसे लव लबाते लोग किसी पवित्र संगठन में सड़ांध पैदा करें इससे अच्छा
है कि ऐसे लोग दूर ही रहें और उन्हें उनकी शैली में काम करने दें। आखिर
बलात्कार,
भ्रष्टाचार,महँगाई से लुटे पिटे बचे खुचे देश का पुनर्निमाण करने के
लिए जिन देश भक्त स्वयं सेवकों की जरूरत देश को है उनके
निर्माण कार्य में ऐसे संगठन निरंतर प्रशंसनीय कार्य करते चले आ रहे
हैं।अपने आकाओं को प्रसन्न करने एवं सत्ता पाने के लालच में आर .एस.एस. की
आलोचना कितनी न्यायोचित है ?ये अकारण निंदा करने की परंपरा ठीक नहीं है ।
अब बात यहाँ संस्कारों की है लव मैरिज के लालच में लोग पहले लव करते
हैं फिर लव मैरिज ।लव में असफल होने पर बलात्कार करते हैं उसके बाद हत्या
करते हैं जो आज देश की सबसे बड़ी समस्या बनती जा रही है!ऐसा
होने पर बलात्कारी नवजवानों को फाँसी की सजा की माँग उठती है ।यदि फाँसी
की सजा हो जाए तो फाँसी के फंदे पर लटकने वाला भारतीय नवजवान ही होगा।जिसकी
ऊर्जा कभी देश हित में काम आ सकती थी उसे प्रेम प्यार के चक्कर में पड़कर
मनोरंजन के लिए जिंदगी गँवानी पड़ी।
इस प्रेम प्यार के चक्कर में पड़कर मरने और मारने वाले दोनों युवक
युवतियाँ भारतीय ही तो हैं इसलिए संस्कारों के अभाव में यह नुकसान देश को
उठाना पड़ता है इसलिए यह चिंतन भी
होना चाहिए कि ऐसा क्या किया जाए जिससे भारतीय युवा वर्ग लव वब के चक्कर
में न पड़े और अपने प्राचीन संस्कारों पर न केवल गर्व करें अपितु उन्हें
अपने आचरण में भी उतारें । इससे जब लव मैरिज का लालच ही नहीं होगा तो लोग
लव वब के चक्कर में पड़ेंगे ही क्यों ?और जब इस चक्कर में ही नहीं पड़ेंगे
तो उन्हें प्रेम पंथ में असफल होने का दुःख ही क्यों होगा ?इसलिए वो
बलात्कार जैसा जघन्य अपराध नहीं करेंगे तो
किसी की हत्या करने की आवश्यकता ही क्यों पड़ेगी ? जब बलात्कार ही नहीं
होगा तो नवजवानों को फाँसी की सजा नहीं होगी यदि फाँसी की
सजा न हुई तो बलात्कार से पीड़ित एवं बलात्कारी दोनों युवा सुसंस्कारित हो
कर देश के काम आ सकेंगे ये ही भारत के प्राचीन संस्कार हैं इन्हें हर
भारतीय प्रचारित करे तो इससे किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए, और आर.एस.एस.
की विचारधारा में स्वदेश के
प्राचीन पवित्र संस्कारों के आधार पर ही यदि जीना सिखाया जाता है तो और
अच्छी बात है यदि इससे देश की एक बड़ी पार्टी भाजपा भी जुड़ी है तो यह सबसे
अच्छी बात है।इससे किसी को तकलीफ क्यों होनी चाहिए?हाँ जिन पार्टियों में
भारतीय संस्कारों की कमी के कारण उनके वरिष्ठ लोग ही लव और लव मैरिज में जब
रूचि ले रहे हों तो वो किसी और को कैसे रोक सकेंगे ?और उन्हें आर.एस.एस. बुरा तो लगेगा ही जहाँ तक आर.एस.एस. की विचार धारा की कठपुतली जैसी
शब्दावली भाजपा के लिए यदि कोई प्रयोग करता है तो वह हीन भावना से ग्रस्त
ही माना जाएगा ।
आर.एस.एस. राष्ट्रवाद की बात
करता है भारतीयों के प्राचीन संस्कारों एवं प्राचीन विद्याओं की बात करता
है।अपने दुलारे भारतवर्ष को सबल सक्षम समृद्ध एवं संस्कारी बनाने का सपना
लिए ऋषि तुल्य हजारों विरक्त, तपस्वी, पवित्र, प्रचारकों ने अविवाहित रहकर
अपना जीवन देश लिए समर्पित कर रखा है।वे लोग देश के कोने कोने के
गाँव गाँव में जन जन से मिलकर प्राचीन राष्ट्र भक्तों का बताया हुआ सन्देश
प्रचारित करते हैं।उनका सादा जीवन एवं सहज रहन सहन होता है।
इसलिए जो लोग आर.एस.एस.की कठपुतली कहकर भाजपा की निंदा करना चाहते हैं
उन्हें यह भी जानना चाहिए कि उनसे निंदा नहीं अपितु भाजपा के संस्कारों की
प्रशंसा हो रही है ।
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान की अपील
यदि
किसी को
केवल रामायण ही नहीं अपितु ज्योतिष वास्तु धर्मशास्त्र आदि समस्त भारतीय
प्राचीन
विद्याओं सहित शास्त्र के किसी भी नीतिगत पक्ष पर संदेह या शंका हो या कोई
जानकारी लेना चाह रहे हों।शास्त्रीय विषय में यदि किसी प्रकार के सामाजिक
भ्रम के शिकार हों तो हमारा संस्थान आपके प्रश्नों का स्वागत करता है ।
यदि ऐसे किसी भी प्रश्न का आप
शास्त्र प्रमाणित उत्तर जानना चाहते हों या हमारे विचारों से सहमत हों या
धार्मिक जगत से अंध विश्वास हटाना चाहते हों या राजनैतिक जगत से धार्मिक
अंध विश्वास हटाना चाहते हों तथा धार्मिक अपराधों से मुक्त भारत बनाने एवं
स्वस्थ समाज बनाने के लिए
हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोध संस्थान के
कार्यक्रमों में सहभागी बनना चाहते हों तो हमारा संस्थान आपके
सभी शास्त्रीय प्रश्नोंका स्वागत करता है एवं आपका तन , मन, धन आदि सभी
प्रकार से संस्थान के साथ जुड़ने का आह्वान करता है।
सामान्य रूप से जिसके लिए हमारे संस्थान की सदस्यता लेने का प्रावधान है।
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