Friday, 15 August 2014

'जनता का विश्वास जीतने में अब तक नाकाम रहे हैं राजनैतिक दल !

    अब धीरे धीरे यह स्पष्ट हो गया है कि UPA के कुशासन से त्रस्त जनता मजबूरी में  NDA की ओर मुड़ती है और  NDA से त्रस्त UPA  की ओर !किंतु भरोसा किसी पर नहीं होता है !चूँकि जनता के पास और कोई दूसरा विकल्प ही नहीं होता है !किन्तु विजयी दलअपनी पीठ बेकार में ही थपथपाते रहते हैं और गढ़ते रहते  हैं अपनी अपनी बहादुरी के कल्पित किस्से !

    अक्सर पड़ते रहने वाले अपने छोटे छोटे कामों के लिए भ्रष्टाचार ने जनता को त्रस्त कर रखा है देशवासियों के दुखदर्द को टटोलते सब हैं बोलते सब हैं किन्तु करने के लिए कुछ भी कोई दल या नेता तैयार नहीं है!आज सरकारी स्कूलों में पढ़ाई नहीं सरकारी अस्पतालों में दवाई नहीं डाककर्मियों में  सुनवाई नहीं ,सरकारी फोन या इंटरनेट की स्थिति डामाडोल है जहाँ जहाँ  सरकारी वहाँ वहाँ ढिलाई जहाँ जहाँ प्राइवेट वहाँ वहाँ चुस्ती आखिर कारण क्या है !

  बंधुओ !राजनैतिक दलों और नेताओं से निराश देशवासियों  की स्थिति किसी बियाबान जंगल में प्यास से पीड़ित भटकते हुए किसी  प्यासे पथिक की तरह की है वो जिस तालाब के पास दौड़ कर जाता है वो तालाब सूखा निकल जाता है उसमें पानी नहीं होता है किन्तु उस पथिक को अपनी ओर दौड़ कर आता देख कर वो तालाब अपनी पीठ थपथपाने लगता है ! मित्रो ,क्या उस तालाब को  इस बात की पीड़ा  नहीं होनी चाहिए कि उस पथिक की प्यास बुझाने में हम असफल रहे हैं !

    इसी प्रकार से देश की जनता की स्थिति आज उस स्वयंवर की तरह है जिसमें कन्या वरमाला लेकर वर की खोज में भटक रही है कभी किसी राजा के  गले में डाल देती है वरमाला और कभी किसी राजा के किन्तु वो उसकी खुशी मना पावे इसके पहले वो निकाल भी लेती है उसके गले से अपनी वर माला फिर चक्कर लगाने लगती है उसी स्वयंवर सभा में इसप्रकार से जिस जिस राजा के पास पहुँचती है वो सोचने लगते हैं कि यह कन्या शायद हम पर प्रभावित होकर हमारा ही पतिरूप में वरण करना चाहती है किन्तु तब तक वो निराश कन्या आगे बढ़ जाती है आखिर क्या खोट है उन राजाओं में क्या वे पुरुष नहीं हैं आखिर क्या कमी है उनमें क्यों नहीं पा सके उस कन्या की वरमाला ? क्या अकारण अपनी पीठ थपथपाने की जगह उन्हें आत्म मंथन नहीं करना चाहिए ?       

        बंधुओ ! UPA के कुशासन से त्रस्त होकर विकल्प विहीन जनता ने NDA और भाजपा का वरण  जिस मजबूरी में किया था वो किसी से छिपी नहीं है ऐसी परिस्थिति में अपनी अपनी कल्पित कार्यकुशलता की झूठी प्रशंसा करने के बजाए उचित तो था कि विनम्रता पूर्वक चुपचाप जनता का आदेश स्वीकार करके सरकार को जन सेवा शुरू करनी चाहिए थी और मंथन इस बात  पर होना चाहिए था कि आखिर हमारे किन सेवा कार्यों से प्रभावित होकर  देश की जनता ने दिया होगा हम लोगों को वोट उन उन कार्यक्रमों को आगे बढ़ाया जाना चाहिए था ! किन्तु  उसकी जगह  NDA के लोग आपस में ही कल्पित बहादुरी के लिए थपथपाने लगे एक दूसरे की पीठ !और  NDAकी भारी विजय का श्रेय आपस में ही एक दूसरे को गिफ्ट करने लगे । यहाँ तक कि पड़ोसी देश ने उसकी सीमा में भूलवश बहकर चले गए हमारे एक सैनिको छोड़ क्या दिया यहाँ अपना एवं अपनी सरकार की जोरदारी का गुणगान किया जाने लगा उसी पड़ोसी ने जब जीना  दूभर कर दिया तो बात चीत भी बंद हो गई है आखिर कौन पूछे इनसे कि कहाँ चला गया आपका जोरदार इफेक्ट ?

   इसी प्रकार से सत्तासीन दल के एक जिम्मेदार व्यक्ति के गैर जिम्मेदार बयान को जनता कैसे स्वीकार कर ले जिन्होंने अपने अतिप्रिय कल्पित चाणक्य बाबा जी का उत्साह बर्द्धन करते हुए उन्हें कृष्ण बता दिया , हो सकता है कि उन्होंने लोकसभा के चुनाव 2014 की भारी विजय का अपने को अर्जुन भी मान लिया हो !  

     यदि ऐसा हुआ भी हो तो क्या यह जरूरी नहीं था कि इस विजय के कारणों को खोजने के लिए देखा जाता आत्मदर्पण में एक बार अपना भी मुख और फिर बनते बनाते चुनावी  महाभारत के कल्पितकृष्ण और अर्जुन !किन्तु जिन्हें अच्छी प्रकार से पता है कि पिछले दस वर्षों में हम जनता के किसी काम नहीं आ सके फिर भी जनता ने हम पर भरोसा किया है तो अभी ही परिश्रम पूर्वक उसके विश्वास पर खरे उतर जाएँ !

   बधुओ! सरकार में सम्मिलत किसी विभाग के प्रमुख ने अपने किसी विश्वास पात्र से अपनी मनोदशा बताते हुए कहा होगा कि हमने तो निश्चय कर लिया है कि सरकार में सम्मिलित रहना है तो हाँ जी हाँ जी कहना है रही बात काम करने की तो काम करेंगे तो कुछ गलतियाँ भी हो सकती हैं किन्तु काम न करने से पहली बात तो गलतियाँ नहीं  होंगी और दूसरी बात ईमानदार और स्वच्छ छवि बनी रहेगी !ऐसी बेदाग़ छवि का राजनैतिक जीवन में बड़ा लाभ होता है अपनी अकर्मण्यता के कारण अपने अपने प्रदेशों में पार्टी की लोटिया डुबा चुके कई धुरंधर केंद्र में पा जाते हैं अच्छे अच्छे पद ! राजनीति में ऐसे उदाहरण कई बार मिल जाते हैं । खैर ,क्या करना हमलोगों को !

    बंधुओ ! विगत लोकसभा चुनावों में भाजपा की विजय का श्रेय भाजपा एवं उसके नेताओं की कर्मठता को नहीं दिया जा सकता !  हमारी इस बात से यदि किसी को आपत्ति हो तो मैं पूछना चाहता हूँ  कि यदि पिछले दस वर्षों तक UPA के कुशासन से जनता त्रस्त थी तो NDA या विशेषकर भाजपा के नेताओं ने जनता का दुख दर्द बाँटने का क्या प्रयास किया था ?

   UPA सरकार की जन विरोधी नीतियाँ ,घोटाले, भ्रष्टाचार आदि से जनता अकेले जूझती रही किन्तु UPA सरकार के बीते 9 वर्षों तक NDA या विशेषकर भाजपा जनता की सशक्त आवाज तक नहीं बन सकी,कोई  जनांदोलन भी नहीं खड़ा कर सकी ,जनता ने स्वयं आंदोलन किए समाज सेवियों ने आंदोलन किए किन्तु NDA और भाजपा की ओर से क्यों नहीं किया गया कोई सशक्त जनांदोलन ! केवल इतना कहते  रहने से बात नहीं बन जाती कि मनमोहन सिंह जी अबतक के सबसे कमजोर प्रधान मंत्री रहे हैं और यदि ऐसा मान भी लिया जाए तो भी NDA और भाजपा के नेताओं को ही जवाब देना चाहिए कि जब इतने कमजोर प्रधानमन्त्री को आप लोग दस वर्ष तक हिला भी नहीं सके तो यदि कोई सशक्त प्रधानमंत्री होता तो आप क्या कर लेते ?अर्थात भाजपा और NDA की अपनी स्थिति मनमोहन सिंह जी जैसे कमजोर प्रधानमंत्री से भी कमजोर थी !

मित्रो ! इसी विषय में आप लोग पढ़ें हमारा यह  लेख भी -  ……… 

  बिगत लोकसभा चुनावों में भाजपा एवं NDA को मिली चुनावी विजय का वास्तविक नायक कौन ? 

   इन चुनावों में भ्रष्टाचार भगाना जनता का अपना मुद्दा था लोक सभा में भाजपा को मिली विजय का श्रेय जनता के अलावा किसी और को नहीं दिया जा सकता !  बंधुओ ! पिछले कुछ वर्षों से सरकार बनाने बिगाड़ने का  काम see more...http://samayvigyan.blogspot.in/2014/08/blog-post_11.html

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