Wednesday, 27 August 2014

प्रमोदसाईं एवं संजयसाईं नाथ जैसों की धर्मसभा या साईंयों से पैसे ऐंठने के लिए पाखण्ड ?

   धर्म शास्त्रीय ज्ञान विज्ञान से शून्य कुछ लोग मीडिया की मदद से अपने को धर्माचार्य कहने लगे हैं और साईं को भगवान !इन पाखंडियों का बोझ आखिर क्यों उठावे सनातन धर्म ?  

  निरर्थक रूप से दाढ़ा झोटा बढ़ाकर रहने वाले कलियुगी पीठाधीश्वर प्रमोद साईं ने विद्यालय से केवल राजनैतिक विज्ञान और इतिहास की पढ़ाई ही की है इसके अलावा संस्कृत शिक्षा में जिसका कोई अध्ययन ही न हो धर्म विषय में उसका कोई बचन प्रमाण कैसे  सकता है ! धर्म के नाम पर जिसके पास केवल दाढ़ा झोटा हो,शिक्षा के नाम पर राजनीति हो, आचरण के नाम पर केवल राजनीति हो और चिंतन के नाम पर केवल साईँ का समर्थन और धन हो ,ऐसे किसी भी धार्मिक योग्यता विहीन व्यक्ति के द्वारा समायोजित किसी भी पाखंड को धर्मसभा कैसे कहा जा सकता है ?      

   वैसे भी साईं का सनातन धर्म से लेना देना ही क्या है उनके समर्थन में धर्म सभा हो भी कैसे सकती है !दूसरी बात धर्म सभा ऐसा कोई व्यक्ति कैसे आयोजित कर सकता है जिसने  धर्म एवं धर्म शास्त्रों का अध्ययन ही न किया हो जिसने विद्यालयीय शिक्षा के रूप में केवल राजनीति पढ़ी हो और राजनीति ही करता भी हो, केवल चुनावी फंड जुटाने के लिए महात्मा बन गया हो लक्ष्य अभी भी राजनीति ही हो !

   नेतागिरी करने का शौकीन ऐसा कोई भी आदमी अचानक दाढ़ा झोटा बढ़ाकर न केवल बाबा बन जाए अपितु कलियुगी पीठाधीश्वर नाम से अपनी अलग पहचान बनाकर  शास्त्रीय साधूसंतों में घुसपैठ करने लग जाए और यहाँ की धर्म शास्त्रीय मर्यादाएँ तार तार कर रहा हो ,शास्त्रीय संतों का अपमान कर रहा हो ,अपने बोल बचनों से  सनातन धर्मियों  का अपमान करने पर तुला हो !

   बंधुओ ! प्रमोद साईं नामका ऐसा कलियुगी पीठाधीश्वर धर्मक्षेत्र में घुसपैठ करके धर्मशास्त्रों, धर्मशास्त्रीय संतों एवं धर्म संसद का अपमान कर रहा हो और सनातन धर्म पर एक नया बुड्ढा भगवान बनाकर  थोपना चाह रहा हो और ये सोचा जाए कि सनातनधर्मी यह पाप सह जाएँ किन्तु आखिर क्यों इसका लक्ष्य तो राजनीति करना हो सकता है किन्तु उनकी धर्मनिष्ठा का क्या हो जिन्होंने अपना समस्त जीवन केवल धर्म के लिए ही सौंप रखा है उन विद्वान पवित्र धर्मनिष्ठ साधू संतों महापुरुषों का दोष आखिर क्या है उनके मंदिरों में क्यों रखवा दिए गए हैं साईं नाम के पत्थर इनसे सारे मंदिरों की मर्यादाएँ नष्ट हो रही हैं ।

     सुना है कि ऐसा उपद्रवी कलियुगी प्रमोद साईं अबकी बार चुनाव भी लड़ा था जरा सोचिए कि यदि ये चुनावों में जीत गया होता तो जो दुर्दशा ये अभी धर्म की कर रहा है तब वो राजनीति की कर रहा होता ! संसद संविधान एवं राजनैतिक समाज तीनों के लिए कितना बड़ा खतरा बन गया होता ! तब तो ये  कहता कि हम  तो अपनी अलग संसद लगाएँगे ,अलग संविधान लिखवाएँगे और भी बड़े सारे अन्याय करता भ्रष्टाचारियों से पैसे ले लेकर उनके पक्ष में संसद में लाविंग करता रहता उन्हीं के पक्ष में चीखता चिल्लाता रहता किन्तु भला हो उस क्षेत्र की समझदार जनता का जिसने ऐसे अधम को समय रहते पहचान लिया और चुनावों में पराजित करके संसद को अपवित्र होने से बचा लिया इसीप्रकार से भला हो हमारे साधू संतों का जिन्होंने ऐसे लोगों को मुख न लगाकर धर्म संसद की पवित्रता को बचा लिया !

    इसीप्रकार से प्रमोद साईं जैसे अन्य धार्मिक निरक्षर लोगों को भी मीडिया ने केवल धनलोभ से ही तो मुख लगा रखा होगा अन्यथा धर्मशास्त्र के विषय में वैसे लोगों का क्या सम्बन्ध है जो धर्मशास्त्रों से विमुख हों !

    धर्म के विषय में कोई भी निर्णय लेने के लिए संस्कृत विश्वविद्यालयों से सुशिक्षित विद्वान ही अधिकृत माने जाने चााहिए वो गृहस्थ हों या विरक्त !अन्यथा धर्मशास्त्रीय विषयों का निर्णय यदि संजयसाईंनाथ ,बाबाप्रज्ञाकुंद ,बाबाकुचक्रपाणी जैसे धर्मशास्त्रों से अनभिज्ञ अशास्त्रीय एवं अँगूठाटेक लोगों को ही लेना है तो विद्वान लोग आखिर किस काम आएँगे और क्या प्रयोजन रह जाएगा इन संस्कृत विश्वविद्यालयों का ,क्यों खर्चा कर रही है सरकार इन पर भारी भरकम धनराशि  यदि इनकी मर्यादा का अतिक्रमण ही करना है तो ?

    बात बात में संविधान और कानून की दुहाई देने वाला मीडिया साईँ समर्थक जिन धार्मिक तस्करों को अपनी तथाकथित धार्मिक बहसों में बुलाकर बैठा लेता है क्या मीडिया ने कभी उनसे पूछा  है कि आपने धर्म शास्त्रों के विषय में पढ़ा क्या है! किस संस्कृत विश्वविद्यालय से पढ़ा है! किस डिग्री तक अर्थात कितना पढ़ा है ! आप साईं के समर्थन में जो बोल रहे हैं उसके आपके पास शास्त्रीय प्रमाण क्या हैं ?आखिर उनसे क्यों नहीं पूछता है मीडिया !बिना शास्त्रों को आधार बनाए कराई  जा रही बहसों का औचित्य आखिर क्या है ऐसे तो जो जितनी जोर शोर मचा सकता हो जो जितनी गालियाँ दे सकता हो जो जितना बेशर्म हो मीडिया में तो वही उतना प्रमाणित मान लिया जाएगा !क्या ये पद्धति ठीक है !क्या ये मीडिया की जिम्मेदारी नहीं है कि जो जिस विषय का विशेषज्ञ हो उसे ही उस प्रकार की बहसों में सम्मिलित किया जाना चाहिए अन्यथा केवल चोंच लड़वाकर सनातन धर्मशास्त्रों का उपहास उड़वाने के लिए आयोजित की जाती हैं ये टी.वी. चैनलीय धर्म संसदें ! मीडिया की ऐसी ही संदिग्ध भूमिका को देखकर लगने लगता है कि इस सारे साईं षड्यंत्र में कहीं मीडिया भी सम्मिलित तो नहीं है !

     किसी अन्यधर्म में उनके आस्था पुरुष के पहनने वाले वस्त्रों की कोई नकल भर कर ले कि वहाँ मरने मारने की बात आ जाती है । तब यही मीडिया उसे गलत सिद्ध करने का साहस क्यों नहीं करता है और इन्हें अपनी अपनी आस्था और अपनी अपनी पसंद के वस्त्र पहनने की आजादी के जुमले क्यों नहीं उछालता है मीडिया तब लगाकर दिखाए ऐसी तथाकथित धर्म संसदें !

     जिन्हें धन के कारण साईं अच्छे लगते हैं अब ऐसे ही धार्मिक जगत से विस्थापित बिना पेंदी के लोटों ने धर्मसभा नाम का पाखण्ड करने का एलान किया है। साईं वालों के पैसे देखकर पागल हुए साधुवेष  में ये इतने लज्जाविहीन लोग हैं कि  इन्होंने श्री राम कृष्ण शिव दुर्गा जी के समकक्ष एक अनाम खानाबदोश बुड्ढे की मूर्तियाँ  लगाने का समर्थन किया है इसे सनातन धर्म के साथ साजिश क्यों न समझा जाए! किसी भी सच्चे सनातन धर्मी को  इन  कुकृत्यों के कारण  घृणा होने  लगी है ऐसे धार्मिक पाखंडियों से !

     जिन्होंने धर्म शास्त्रों का अध्ययन करने के लिए कभी किसी संस्कृत विश्व विद्यालय में एडमीशन तक नहीं लिया है इसके बाद भी एक मात्र बेशर्मी के बल पर इनका मनोबल इतना बढ़ चुका है कि ये बड़े बड़े विद्वान संतों की बातों को गलत सिद्ध करने के लिए धर्मसभा का पाखण्ड करने की बड़ी बड़ी बातें कर रहे हैं !धर्मशास्त्रीय  ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में इन साईं पिट्ठुओं का किसी संस्कृत विश्व विद्यालय से कभी कोई संबंध ही नहीं  रहा है इस कारण ये बेचारे धर्म शास्त्रों को पढ़ भी नहीं पाए आखिर उन्हें पढ़ना समझना कोई हँसी खेल तो है नहीं जो रास्ते चलते पढ़ लेंगे ! फिर धर्म सभा कैसी !केवल चुनावी फंड जुटाने के लिए यह पाप !धिक्कार हैं हमें ऐसे लोग सनातनधर्म को खोखला करते जा रहे हैं और हम विवश होकर सह रहे हैं अपने धर्म की छीछालेदर !क्या किसी अन्य धर्म में ऐसा संभव था !

      


 

   

 

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