Saturday, 23 August 2014

सनातन धर्म को खोखला करने वाले कलियुगी पीठाधीश्वर प्रमोद साईं ने तोड़ी नीचता की सारी सीमाएँ !

        साईं ने और कुछ किया हो न किया हो किन्तु संतों जैसे वेष धारी  सनातन धर्म के  घुसपैठिये कालनेमियों की पहचान तो करवा ही दी है दुनियाँ ने देखा है कि सनातन धर्म के ये बिकाऊ चेहरे सनातन धर्मी साधू संतों के वस्त्रों में अपने घृणित कलेवर को लिपेटकर किस तरह ढो रहे हैं अपनी अधम काया का निंदनीय बोझ ! इनका रहना तो सनातन धर्मियों के वेष  में ,माँगना खाना सनातन धर्मियों के यहाँ  और बफादारी सनातनधर्म द्रोहियों की !और गद्दारी सनातन धर्म के साथ ! आश्चर्य !!     

     इन्होंने आज एक निजी टी. वी. चैनल पर बैठकर यह कहते हुए सनातन धर्म को शर्मसार किया है कि धर्मसंसद में साईं के विरुद्ध कोई निर्णय हुआ तो मैं जान पर खेल जाऊँगा !इस साईं संतान की जान यदि  साईं के लिए इतनी ही समर्पित है तो सनातन धर्म में ये कर क्या रहे हैं !

" रे ! रे ! जम्बुक मुंच मुंच सहसा नीचं सुनिंद्यम् वपुः |"

      साईं को संत और भगवंत मानने का तो सवाल ही नहीं है क्योंकि दोनों लक्षणों पर वो खरे नहीं उतरते किन्तु  सनातनधर्मी साधू संतों जैसा वेष  धारण करने वाले कलियुगी पीठाधीश्वर नेताबाबा प्रमोदकुमार एवं कुचक्रपाणी जैसे कालनेमियों को पहचनवाने में मदद जरूर की है ! 

     उनका विवादित बयान इस बात की पुष्टि करता है कि इन कालनेमियों ने पैसे के लोभ में अपनी जान की ,अपने धर्म वेष  की एवं अपने धर्म की कितनी दुर्दशा करवा रखी है यदि पैसे की इन्हें इतनी ही भूख थी तो साईंयों के हाथ बिकने से अच्छा था कहीं बैठकर भीख माँग लेते किन्तु सनातन धर्म के साथ गद्दारी तो नहीं  ही करनी चाहिए थी ।सनातन धर्म ने उनका बिगाड़ा आखिर क्या था !

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