पार्टी के स्थानीय कार्यकर्त्ता अपनी स्वयं की छवि जनसेवक नेता की क्यों नहीं बना पा रहे हैं जिससे उनकी निजी पहचान भी पार्टी के विकास में सहायक हो ! योग्य ,अनुभवी ,कानून विद, भाषाविद तथा शालीन भाषा भाषी एवं पार्टी के पक्ष में तर्क पूर्ण प्रस्तुति की क्षमता रखने वाले कुशल वक्ताओं को भी पार्टी से जोड़ने की जाए अतिरिक्त पहल !
मोदी जी को ही हर जगह मोर्चा सँभालना पड़ता है आखिर क्यों ?पार्टी प्रांतों में कुछ स्थापित नेताओं के अलावा भी तो प्रतिभावान कार्यकर्ता लोग होंगे पार्टी में उन्हें भी क्यों न प्रोत्साहित किया जाए !नई भर्तियों में परिचयवाद परिवार वाद आदि भूलकर कार्यकर्ताओं के चयन में प्रतिभावाद को प्राथमिकता क्यों न दी जाए ! और उनके कंधों पर रखकर विकसित किया जाए स्थानीय नया नेतृत्व !
जनप्रिय लोकाकर्षक भावों को सौम्य भाषा में प्रकट कर पाने वाले नेता कहाँ हैं भाजपा में !आज टीवी चैनलों में भाजपा का पक्ष रखने वाले लोग घंटे घंटे भर की बहसों में कभी ये नहीं समझा पा रहे होते हैं कि आखिर वो क्या कहने को भेजे गए थे !क्या कहना चाह रहे हैं और कह क्या रहे हैं पूरी पूरी बहसों में भाजपाई प्रवक्ताओं के चेहरे से जनाकर्षक भाव गायब होते हैं सब कुछ बनावटी सा लगता है उन्हें अपने पुराने नेताओं से क्यों कुछ सीखना नहीं चाहिए !
आज भी मोदी जी अपनी बातों से जन भावनाओं के विशाल समुद्र को मथते हुए अपार भीड़ के हृदयों तक उतर जाते हैं अटल अडवाणी जोशी जी आदि और भी श्रद्धेय लोग बहस करते समय या भाषण करते समय हृदय पक्ष को भी साथ ले जाया करते थे जिससे उनकी बातें लोगों के हृदयों तक उतर जाया करती थीं तब होती थी सजीव बहस और उसका पड़ता था लोगों पर प्रभाव !आज केजरीवाल भी ऐसा करने में सफल हैं तो भाजपा की नई पीढ़ी का ध्यान आखिर है किधर ! केवल अपने से बड़े नेताओं का नाम ले लेकर चुनाव जीतने का अपरिपक्व खेल आखिर कब तक चलेगा !
दिल्ली के चुनावों में मोदी जी को यदि इसप्रकार से अड़ाया न गया होता तो कम से कम उनकी शाख बचाई जा सकती थी जिनके बल पर कार्यकर्ता आज भी उत्साहित किया जा सकता है किन्तु आज दिल्ली का भाजपाई कार्यकर्त्ता न केवल निरुत्साहित है अपितु वो सत्ता से चिपकना चाहता है उसे बचा कर रखना भाजपा के लिए बहुत जरूरी है जो केवल नैतिकता के आधार पर ही संभव है !
बिहार में एकबार फिर दाँव पर लगाया जा रहा है मोदी जी के उसी व्यक्तित्व को !स्थानीय नेतृत्व के निष्प्रभावी होने से मोदी जी का प्रभावी व्यक्तित्व भी उतना असर नहीं छोड़ पाता है जितना होना चाहिए ! बंधुओ !भाजपा की दिल्ली पराजय का कारण 'आप' न होकर अपितु भाजपा का अपना उदासीन
नेतृत्व था !जिसकी कमजोरी के कारण ही दिल्ली भाजपा भाजपा पहले भी लगातार कई चुनाव हार
चुकी थी ।
अब भी कई ऐसे ही प्रांतों में प्रतिभावान लोगों को प्रस्तुत ही नहीं होने
दिया जाता और प्रभावी रूप से कुछ परोस पाने की उनकी अपनी क्षमता नहीं होती है! इसीलिए अनावश्यक रूप से बारबार लेना पड़ता है मोदी जी का नाम !जिसकी वहाँ जरूरत ही नहीं होती है ।
भारतीय जनता पार्टी में भी आज कार्यकर्ताओं की भर्ती का आधार परिवारवाद परिचयवाद नेतासमूहवाद चाटुकारितावाद आज हावी होते देखा जा रहा है ऐसी परिस्थिति में योग्य विद्वान अनुभवी सम्बद्ध विषयों की जानकारी रखने वाले अपनी बात को समझाने की क्षमता रखने वाले कार्यकर्ताओं का नितांत अभाव होता जा रहा है पार्टी की विचारधारा को समाज की स्वीकरणीय शैली में परोसने की शैली ही समाप्त होती जा रही है जो भाजपा की मुख्य पहचान रही है । नेताओं के पास अपनी बातों के समर्थन में न कोई ऐतिहासिक उदाहरण होते हैं न कोई गद्य गरिमा न कोई भाषा का लालित्य न कोई हाव भाव ! आजकल टीवी चैनलों पर घंटों चलने वाली बहसों में भाजपा का पक्ष रखने वाले लोगों की भाषा में जनता को परोसा जाने वाला साधारणीकरण बिलकुल गायब होता जा रहा है, बहसों में व्यक्तिवैचित्र्यवाद के आधार पर केवल समय पार किया जाता है वही कुछ कानूनी आँकड़े बार बार पढ़कर रिपीट किए जा रहे होते हैं कई बार तो एंकर पूछ कुछ रहा होता है उत्तर कहीं और का होता है कई बार तो उत्तर देने के लिए उद्धृत किया जाने वाला उदाहरण इतना विस्तारित एवं अरुचिकर होता है कि मूलबात से उसका कोई सम्बन्ध ही नहीं रह जाता है इससे मूल बात एवं उदाहरण दोनों भटक जाते हैं इस घालमेल से जनता तक कुछ पहुँच ही नहीं पाता है ।
श्रोताओं में अगर कुछ पढ़े लिखे लोग समझ भी पा रहे होंगे तो उनकी बातों से वो सहमत नहीं होते पत्रकार हों या विपक्ष के लोग वो आपकी सही बात भी क्यों टिकने देंगे और आम जनता आपकी बात समझ नहीं पा रही होती है इसलिए आम जनता के हृदयों तक पहुँचने के लिए भाजपा को हर जगह मोदी जी की जरूरत पड़ती है किंतु मोदी जी अब केवल मोदी जी ही नहीं हैं अपितु वो देश के प्रधानमन्त्री भी हैं और सत्ता में होने के कारण उनसे दस काम अच्छे होंगे तो एक बिगड़ भी सकता है जिसे विपक्ष के लोग जनता के सामने परोसने लगते हैं उसको दबाने के लिए जितना समय प्रांतों में मोदी जी को देना जरूरी होता है अब उतना वो वहाँ दे नहीं सकते उनकी तमाम मजबूरियाँ हैं इसीलिए भाजपा दिल्ली चुनावों में सहल नहीं हो पाई !
जिन प्रदेशों में वहाँ के प्रांतीय नेता बिना मोदी जी के भी अपनी क्षमता के आधार पर जनता से हृदय के सम्बन्ध बना पाते हैं वहाँ वो अपने पुरुषार्थ से पार्टी की पहचान बनाने में सफल होते हैं ! वहाँ पार्टी की स्वाभाविक विजय होती है किंतु कुछ बाहरी नेता या अभिनेताओं के बलपर नहीं जीते जा सकते चुनाव अब हर किसी को विकास और विकास के लिए उसकी बातों पर विश्वास चाहिए । इसलिए जनता से अच्छे लोगों को लेकर उनके समर्पण ज्ञान गुण गौरव अनुभव आदि का भी उपयोग किया जाना चाहिए !
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