Thursday, 19 February 2015

शास्त्रीय ग्रन्थ संस्कृत भाषा में हैं इसलिए उन्हें समझने के लिए संस्कृत जानना बहुत जरूरी है !

 किसी भाषा के ग्रन्थ का किसी भाषा में अनुवाद उपलब्ध होना बहुत अच्छी बात है किन्तु उस ग्रंथ की मूल भाषा यदि पता हो तो उसे समझने का स्वाद ही और होता है इसलिए संस्कृत समझने के लिए संस्कृत भाषा का ज्ञान होना भी बहुत आवश्यक है !

     बाजार में खाना पीना से लेकर आजकल लगभग सभी कुछ उपलब्ध होने का मतलब ये तो कतई नहीं है कि उसी पर आश्रित होकर जीवन जिया जाए,बाजारू खाना कभी कभी स्वादिष्ट लग सकता है किन्तु पेट तो घर के खाने से ही भरता है इसी प्रकार से भारतीय संस्कृति में परिवारों की अवधारणा है अन्यथा पाश्चात्य देशों में तो बहुत लोग विवाह जैसे पवित्र बंधन को उतना महत्त्व कहाँ देते हैं जबकि भारतवर्ष की संस्कृति में जैसे जिंदगी को बाजार के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है उसी प्रकार से कोई सनातन धर्मी विद्वान केवल अनूदित ग्रंथों को पढ़कर संतुष्ट कैसे हो सकता है !

    यद्यपि असंस्कृत विद्वानों के लिए बहुत ग्रंथों का अनुवाद विभिन्न भाषाओँ में श्रद्धेय विद्वानों के द्वारा  उपलब्ध कराया जा चुका है किन्तु भाषा ज्ञान के बाद शास्त्रों को अपनी दृष्टि से समझने का स्वाद ही और होता है जिसका अनुभव सुशिक्षित लोगों को होता है !

     हम सनातन धर्म की शास्त्रीय संस्कृति के लिए समर्पित होकर काम कर रहे हैं धार्मिक पाखंडों के विरुद्ध आवाज उठाना अपराध नहीं मान रहे हैं लोगों को संस्कृत पढ़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं हमारे विचारों से जरूरी नहीं कि सब लोग सहमत हों उस पर वो अपने विद्या बुद्धि के अनुशार प्रतिक्रिया करने के लिए स्वंतत्र हैं ये उनका अधिकार है किन्तु  जो संस्कृत को पढ़े हैं या पढ़ना चाहते हैं उन्हें तो आनंद लेने दें रास्ता रोककर खड़े होने की आदत ठीक नहीं है संस्कृत पढ़ना कठिन है मानता हूँ इसलिए जिनके बश का नहीं है उन्हें संस्कृत के प्रचार प्रसार में परेशानी होना स्वाभाविक है उन्हें हमारी बातें बुरी लग सकती हैं किन्तु जो संस्कृत  जानते हैं उन्हें पता है कि संस्कृत के मूल ग्रंथों को समझने के लिए संस्कृत का ज्ञान कितना आवश्यक है !और सनातन धर्म के आकर ग्रंथों का अध्ययन किए बिना धर्म के मर्म तक पहुँच पाना संभव ही नहीं है । वैसे भी कोई व्यक्ति कितना भी प्रयास करे किन्तु सृष्टि में विभिन्न प्रकार  की मानसिकता रखने वाले सभी लोगों को एक साथ एक बात से खुश नहीं किया जा सकता इसलिए अपने लेखन में हम विभिन्न विषय सम्मिलित करते चले आ रहे हैं उसी श्रृंखला में संस्कृत भाषा के ज्ञान सम्बन्धी विचार हमने संस्कृत विद्वानों या विद्यार्थियों के लिए लिखे हैं । जब हमें संस्कृत विद्वानों और असंस्कृत विद्वानों में एक पक्ष  को ही चुनना है तो किसी लेख में संस्कृत विद्वानों विद्यार्थियों और शास्त्र का पक्ष लेने में क्या बुराई है !जिससे  बाकी लोगों को जो लगे सो लगे शास्त्रीय विद्वान तो प्रसन्न होते ही हैं !बाकी समाज में जो जिस स्तर के लोग हैं उन्हें उस स्तर के लोगों का साथ मिल ही जाता है इस धरती पर विद्वानों की कमी नहीं है !एक से एक बड़े विद्वान इस भूमण्डल पर विराजते हैं । 

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