" शुद्धअंतःकरण या शुद्धअंतकरण "
अरविंद केजरी वाल जी के शपथ ग्रहण समारोह में उपराज्यपाल नजीब जंगसाहब ने बार बार " शुद्धअंतःकरण की जगह शुद्ध अंतकरण " बोला !जबकि अरविन्द जी ने शुद्ध बोला था ।
जहाँ बात शपथ की हो वो भी ईश्वर की वो भी मुख्य मंत्री जैसे गौरवमय पद पर आसीन होने की उसमें गलती वो भी उपराज्यपाल जी जैसे सम्माननीय लोगों से ,जिसमें पढ़नी ही चार लाइनें होती हैं सारे विश्व का मीडिया सुन रहा होता है । क्या इसका अभ्यास पहले से नहीं किया जाना चाहिए था !
बंधुओ ! अंतःकरण का अर्थ हृदय जबकि अंतकरण का अर्थ समाप्त करना होता है !
संपूर्ण वाक्य ये था -
मैं अरविंद केजरीवाल ईश्वर की शपथ लेता हूँ.……………………। इसी के आगे है "मैं मुख्यमंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों का श्रद्धा पूर्वक और शुद्ध अंतकरण से निर्वहन करूँगा ।"
एक तरफ ईश्वर की कसम खाना दूसरी ओर मुख्यमंत्री जैसे बड़े पद की शपथ दिलाना उसमें कर्तव्य निर्वाह की प्रतिज्ञा अंतकरण अर्थात समाप्त करने के अर्थ में की जा रही हो ।
बंधुओ इसे शपथ माना जाए या न माना जाए या आधी अधूरी माना जाए या गलत माना जाए !
इतने बड़े पदों के दायित्व निर्वाह के लिए ली जाने वाली शपथों में इस प्रकार की लापरवाहियाँ कहाँ तक उचित हैं !
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