सधुअई एक खोज !आखिर सधुअई है क्या और साधू बनना जरूरी है क्यों ?
हाईटेक बाबाओं ने समाज को भ्रमित किया है !इनका कोई नियम धर्म ही नहीं होता है जो मन आता है सो बकने बयाने या करने लगते हैं उसी को धर्म बता देते हैं !
किसी लड़की को छेड़ा तो बोले कृष्ण जी भी तो यही करते थे । अपने हर प्रकार के पाप साबित करने के लिए पुराणों की कथाओं को अपने अपने अनुशार फिट करने के लिए गढ़ छोल कर तैयार कर रखा है जहाँ जब जरूरत पड़ती तहाँ तब फिट कर देते हैं ।
नाचें गावें , व्यापार करें ,कुश्ती लड़ें ,चुनाव लड़ें किसी को मारें गरियावें आदि वो भी सबकुछ करें जो नहीं करना चाहिए !झूठ बोलने से लेकर ऐसा कोई पाप नहीं जिसे करने में ये भय मानते हों फिर भी साधू हैं इनकी नजर में सधुअई आखिर है क्या ?
आधुनिक बाबाओं के विषय में समाज कन्फ्यूज्ड है कि आखिर उन्हें क्या माने !और क्यों मानें ?और न ही ये पता लगता है कि इन बेचारे बाबाओं की ऐसी मजबूरी आखिर क्या थी क्यों बनाना पड़ा इन्हें बाबा!ऐसे बाबाओं को साधू संत मानने का दंड न जाने क्यों भोग रहा है सनातन धर्मी समाज !
आधुनिक बाबाओं के किसी भी आचरण में धर्म कर्म के लक्षणों के नाम पर केवल वेषभूषा ही दिखाई पड़ती है बाक़ी सारे लक्षण एक मजे हुए राजनेता की तरह ,व्यापारी की तरह,हीरो की तरह ,गायक की तरह पहलवान की तरह आदि सब तरह के होते हैं किन्तु इनके किसी आचरण से ईश्वर भक्त साधुओं की सी सुगंध नहीं आती है किन्तु बातें उन्हीं की तरह की करते हैं ।
शेर की खाल ओढ़ कर रहने वाला कोई गधा जैसे अपने गधों की टोली देखता है तो चींपों चींपों करने लग जाता है क्योंकि किसी का स्वभाव बदलता तो है नहीं इसीलिए ऐसे हाईटेक लोग भी वैसे तो साधुओं जैसे वस्त्रों में अपने शरीरों को लिपेट कर रखते हैं किन्तु चुनाव पास देखते ही कहीं किसी नेता के साथ चिपक जाते हैं तो कहीं किसी पार्टी के साथ बस उसी के लिए चींपों चींपों करने लग जाते हैं ।
बंधुओ ! जो विरक्त साधू संत होते हैं उन्हें न सत्ता की जरूरत और न ही संम्पति की वो तो स्वयं में राजा होते हैं किन्तु आधुनिक बाबा चुनाव देखते ही औकात से उतरने लगते हैं बाबाओं का मानना होता है कि सरकारों के साथ चिपकना ही ठीक रहेगा उसी के संरक्षण में रहने में भलाई है इससे किसी भी परिस्थिति में कानून से भय नहीं रहेगा ,कैसा भी व्यापार कारोबार करो कोई जाँच पड़ताल नहीं होगी ,कुछ भी करो किसी को कुछ भी बको सिक्योरिटी की जिम्मेदारी तो सरकार उठाएगी ही ऊपर से सरकार में दखलंदाजी भी बनी रहेगी जिससे चेलाही में बढ़ोत्तरी होगी !
इनके अनुयायी चेला चेलियों की संख्या देखकर लगता है कि महँगाई के इस युग में ईमानदारी पूर्वक रोजी रोटी कमाने वालों के पास इतना समय कहाँ होता है कि वे ऐसे किसी के पीछे भीड़ बढ़ाते घूमें !इनका सारा समय अपना घरगृहस्थी ही सँवारते सुधारते बच्चों का पालन पोषण करते बीत जाता है हाँ जिन्होंने अपनी गृहस्थी न बनाई हो या बनाकर विसर्जित कर दी हो ऐसे लोगों की तो बात ही और है बाक़ी भले लोग कहीं सत्संग सुनने जाते हैं सुनकर अपने घर आते हैं वो बाबाओं से राजनीति की सलाह लेने तो नहीं ही जाते हैं किन्तु वे आदत से मजबूर हैं जो दे रहे हैं !
खैर, जो भी हो किन्तु धर्म क्षेत्र के इन घुसपैठियों ने अपने प्रयासों से अब धर्म को धर्म कहलाने का हकदार तो नहीं ही छोड़ा है बाक़ी जिम्मेदारी शास्त्रीय साधू संतों पर है कि वे अपने धर्म के शास्त्रीय मूल्यों को कितना और कैसे बचा पाते हैं !
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