केजरीवाल जी और काँग्रेस में मुख्य विपक्षी दिखने के लिए चल रहा है कठिन कंपटीशन ! जिसका लाभ लेने के लिए बनाई जाती हैं JNU ,दादरी और  हैदराबाद जैसी परिस्थितियाँ ! 
     
JNU हो या दादरी या फिर हैदराबाद वहाँ वो गए तो वो भी चले गए उन्होंने जाकर मोदी जी की निंदा की तो उन्होंने भी वहीँ पहुँच कर मोदी जी की निंदा की !वस्तुतः ये लोग JNU जाएँ या दादरी या फिर हैदराबाद इन्हें वहाँ घटी घटनाओं या पीड़ित लोगों की संवेदनाओं से कोई लेना देना नहीं होता है और न ही उन घटनाओं के विषय में कोई होमवर्क ही किया होता है बस वहाँ पहुँचते हैं मोदी जी की निंदा करते हैं चले आते हैं काँग्रेस हों या केजरीवाल ये दोनों आपस में एक दूसरे की निंदा नहीं करते क्योंकि राजनीति में निंदा उसकी की जाती है जिसका कोई वजूद हो और जिसका वजूद ही न हो उससे टकराने से मिलेगा क्या ?इसका सीधा सा अर्थ है कि इन दोनों के मन में एक दूसरे का कोई वजूद ही नहीं है वजूद मोदी जी का है तो उन्हीं के पीछे पड़े रहते हैं दोनों !एक सतर्क शिकारी की तरह मुद्दे लूट लेने की बेचैनी इन दोनों के बयानों से साफ झलकती है उसमें समाजहित  कहीं दूर दूर तक नहीं झलकता है !काँग्रेस हों या केजरीवाल ये दोनों बुराई मोदी जी की भले करें किंतु नुक्सान एक दूसरे का ही करते हैं !क्योंकि देश की सरकार 2019 तक के लिए स्थिर है किंतु मुख्य विपक्ष बनने के लिए दोनों कर रहे हैं मारा मारी !     
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                काँग्रेस और केजरी वाल 
   काँग्रेस ने जब जब जिसे जिसे समर्थन दिया उसे पक्ष विपक्ष दोनों ही भूमिकाओं से हमेंशा हमेंशा के लिए मुक्त कर दिया वो उसके बाद किसी लायक नहीं रहा  - श्री
 चौधरी चरण सिंह जी,श्री चन्द्र शेखर जी, श्री देवगौड़ा जी   ,श्री इंद्र 
कुमार गुजराल जी काँग्रेस के समर्थन से ही प्रधान मंत्री बने थे । श्री 
देवगौड़ा जी की जगह श्री इंद्र कुमार गुजराल जी को कैसे बनाया गया था प्रधान
 मंत्री सबने देखा है ?जब संयुक्त मोर्चा की सरकार का केवल सिर बदला गया था
 !उसी काँग्रेस की कृपा से पहली बार मुख्यमंत्री बने थे  केजरीवाल !  
      काँग्रेस जिसे  समर्थन देती है वह चाहे अनचाहे उसका ग्रास बन ही जाता है 
काँग्रेस किसी दल के साथ कितना भी बुरा बर्ताव क्यों न करे किन्तु जब वह 
धर्म निरपेक्षता की मौहर बजाने लगती है तब बड़े बड़े मणियारे  बिषैले 
राजनैतिक दल फन फैला फैला कर नाचते नजर आते हैं!          
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 सम्भवतः इसीलिए आम आदमी पार्टी को काँग्रेस जैसे जैसे समर्थन, सुविधाएँ 
एवं समाधान  देती जा रही थी वैसे वैसे केजरी वाल न केवल अपनी शर्तें एवं 
शंकाएँ बढ़ाते जा रहे थे अपितु पैर एवं दायरा भी फैलाते जा रहे थे ।
     
 रामायण में एक प्रसंग आता है कि जब हनुमान जी लंका की ओर बढ़ रहे थे  उसी 
समय सर्पों की माता सुरसा आती है और हनुमान जी को अपने मुख में रखना चाहती 
है हनुमान जी जैसे जैसे अपना शरीर बढ़ाते हैं वैसे वैसे सुरसा अपना मुख 
बढ़ाते जाती है ।वही हालात आज दिल्ली की राजनीति में पैदा हो गए हैं 
काँग्रेस जैसे जैसे केजरीवाल का साथ देने और शर्तें मानने की घोषणा करती 
चली जा रही थी अरविन्द  केजरीवाल जी वैसे वैसे अपनी शर्तों का पिटारा 
खोलते  चले जा रहे थे ।
      वैसे मेरा व्यक्तिगत अनुमान है कि जब तक मोदी जी की सरकार केंद्र में रहेगी तब तक काँग्रेस और केजरीवाल जी ऐसे मुद्दे तैयार करते ही रहेंगे जिससे एक दूसरे को अपने से पीछे कर के अपने को फ्रंट पर दिखाया  सके !वैसे दिल्ली में काँग्रेस हार भले गई  हो किंतु केजरीवाल जी की उछलकूद कितने दिन चलने देगी वो !                                                                                                                                                                   जस जस सुरसा बदन बढ़ावा । 
            तासु  दून कपि रूप दिखावा ॥ 
            शत जोजन तेहि आनन कीन्हा। 
           अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा॥  

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