धार्मिक बलात्कार , आर्थिक बलात्कार ,कामनात्मकबलात्कार,मोक्षात्मक बलात्कार,भाग्यबर्द्धकबलात्कार ,ज्योतिषीयबलात्कार , तंत्रमांत्रिकबलात्कार, भागवती बलात्कार ,मोहित बलात्कार ,,फैशनेबल बलात्कार,व्यापारिक बलात्कार , चमत्कारिक बलात्कार ,यौगिक बलात्कार ,प्रमोशनिक बलात्कार ,नौकरीप्रद बलात्कार ,वैवाहिक बलात्कार ,अत्याचरिक बलात्कार ,होशहीन बलात्कार ,असंतोषी बलात्कार, आक्रोशीबलात्कार
कंजूस बलात्कार- कई महिलाएँ काम के बदले पर्याप्त मजदूरी नहीं देना चाहती हैं केवल हँस मुस्कुराकर अपने आस पास के लोगों से हर प्रकार के काम करवा लिया करती हैं ऐसी महिलाएँ अन्य लोगों को अपने चक्कर में फाँसे ही रहती हैं पंडित पुजारी तांत्रिकों साधू संतों तक को अपने चंगुल में फँसा लेने की ताक में हमेंशा बनी रहती रहती हैं और जब तक वो बात मंटा रहा तब तक तो ठीक और जैसे ही इंकार किया वैसे ही बलात्कार का केस !
रिसर्चात्मक बलात्कार- रिसर्च करवाने के बदले अपनी स्कॉलर से शारीरिक संबंध बनाने वाले शिक्षकों की चर्चाएँ तो अक्सर देखी सुनी जाती हैं कई बार स्कॉलर यदि उनकी सेक्स शर्त नहीं स्वीकार करती है तो वो थीसिस को गलत बता बता कर अड़ंगा दल करते हैं ऐसे में कई छात्राएँ लोउनकी शर्त स्वीकार करके अपना काम निकाल लेती हैं और जब सब कुछ निपट जाता है तब करती है बलात्कार का केस !
राजनैतिक बलात्कार- नेताओं की शादियाँ गरीबत में होती हैं सफलता मिलने पर बड़े लोगों में उठना बैठना हो जाता है उसी के अनुरूप बीबी की वैकेंसी भरने के चक्कर में तरह तरह के लोभ देकर करते रहते हैं बलात्कार कई तो शादी भी कर लेते हैं जो शादी कर लेते हैं उन्होंने कई तरबूजे कटे होंगे तब कोई एक लाल निकला होगा !
धार्मिक बलात्कारों का अक्सर यही हश्र होता है क्यों ?
महिलाओं में सेक्स भावना पुरुषों की अपेक्षा आठ गुणा अधिक बताई गई है शास्त्रों में इस आठ गुने से ही पुराने ऋषि मुनि डरते थे महिलाओं से !तुलसी दास जी ने लिखा है -
भ्राता पिता पुत्र उरगारी । पुरुष मनोहर निरखति नारी !
होइ बिकल सक मनहि न रोकी। जिमि रबिमनि द्रव रबिहि बिलोकी॥3॥
शंकराचार्य जी ने कहा वीर उसी को कहा जा सकता है जो महिलाओं की काम दृष्टि से भी पराजित न हो !
प्राप्तो न मोहं ललना कटाक्षैः |
भागवतकार तो लिखते हैं कि -अर्थात स्त्रियों का हृदय छूरे की धार के समान तेज होता है उनकी इच्छाओं को समझा नहीं जा सकता है ।
हृदयं क्षुर-धाराभं स्त्रीणां को वेद चेष्टितम्।
ऐसी महिलाओं को भोली भाली कह देने का मतलब आखिर क्या है क्या उन्हें इंद्रिय सुख नहीं चाहिए या उनमें काम बासना नहीं होती है महाभारत में एक कथा आती है कि काम अर्थात सेक्स का सबसे अधिक आनंद नारी शरीर से ही प्राप्त किया जा सकता है ।
इसलिए भोली भाली महिलाएँ कहना कतई ठीक नहीं होगा अंतर केवल इतना हो सकता है कि पुरुष प्रत्यक्ष रूप से सेक्स भावनाएँ प्रकट कर देते हैं महिलाएँ अप्रत्यक्ष रूप से प्रकट करती हैं । पुरुष जल्दी उत्तेजित हो जाते हैं जबकि महिलाएँ देर से किंतु पुरुषों की बासना एक सामान्य लहार होती है जबकि कि महिलाओं की बासना साक्षात सुनामी होती है ।
सेक्स भावना प्रदर्शित करने के लिए ही तो फैशन के नाम पर कामोत्तेजक अंगों को हाईलाइट करने या दिखाने या उन पर ध्यान आकर्षित करने के लिए क्या क्या नहीं करती हैं महिलाएँ उनका उठाना बैठना बोलना चालना भी उन्हीं लोगों के साथ अधिक होता है जो उनके उन उत्तेजक परिधानों पर निगाहें गड़ाए रहते हैं इतने टाइट कपड़े कि शरीर की सिमटने तक दिखाई पड़ती हैं ।
महिलाएँ भी करती हैं बलात्कार
कंजूस बलात्कार- कई महिलाएँ काम के बदले पर्याप्त मजदूरी नहीं देना चाहती हैं केवल हँस मुस्कुराकर अपने आस पास के लोगों से हर प्रकार के काम करवा लिया करती हैं ऐसी महिलाएँ अन्य लोगों को अपने चक्कर में फाँसे ही रहती हैं पंडित पुजारी तांत्रिकों साधू संतों तक को अपने चंगुल में फँसा लेने की ताक में हमेंशा बनी रहती रहती हैं और जब तक वो बात मंटा रहा तब तक तो ठीक और जैसे ही इंकार किया वैसे ही बलात्कार का केस !
रिसर्चात्मक बलात्कार- रिसर्च करवाने के बदले अपनी स्कॉलर से शारीरिक संबंध बनाने वाले शिक्षकों की चर्चाएँ तो अक्सर देखी सुनी जाती हैं कई बार स्कॉलर यदि उनकी सेक्स शर्त नहीं स्वीकार करती है तो वो थीसिस को गलत बता बता कर अड़ंगा दल करते हैं ऐसे में कई छात्राएँ लोउनकी शर्त स्वीकार करके अपना काम निकाल लेती हैं और जब सब कुछ निपट जाता है तब करती है बलात्कार का केस !
राजनैतिक बलात्कार- नेताओं की शादियाँ गरीबत में होती हैं सफलता मिलने पर बड़े लोगों में उठना बैठना हो जाता है उसी के अनुरूप बीबी की वैकेंसी भरने के चक्कर में तरह तरह के लोभ देकर करते रहते हैं बलात्कार कई तो शादी भी कर लेते हैं जो शादी कर लेते हैं उन्होंने कई तरबूजे कटे होंगे तब कोई एक लाल निकला होगा !
धार्मिक बलात्कारों का अक्सर यही हश्र होता है क्यों ?
महिलाओं में सेक्स भावना पुरुषों की अपेक्षा आठ गुणा अधिक बताई गई है शास्त्रों में इस आठ गुने से ही पुराने ऋषि मुनि डरते थे महिलाओं से !तुलसी दास जी ने लिखा है -
भ्राता पिता पुत्र उरगारी । पुरुष मनोहर निरखति नारी !
होइ बिकल सक मनहि न रोकी। जिमि रबिमनि द्रव रबिहि बिलोकी॥3॥
भावार्थ : (काकभुशुण्डिजी
कहते हैं-) हे गरुड़जी! स्त्री मनोहर पुरुष को देखकर, चाहे वह भाई, पिता, पुत्र ही हो,
विकल हो जाती है और मन को नहीं रोक सकती। जैसे सूर्यकान्तमणि सूर्य को
देखकर द्रवित हो जाती है
कहने का आशय कि सुंदर पुरुष देखकर भाई पिता पुत्र जैसे संबंधों को भी भूल जाती हैं महिलाएँ !शंकराचार्य जी ने कहा वीर उसी को कहा जा सकता है जो महिलाओं की काम दृष्टि से भी पराजित न हो !
प्राप्तो न मोहं ललना कटाक्षैः |
भागवतकार तो लिखते हैं कि -अर्थात स्त्रियों का हृदय छूरे की धार के समान तेज होता है उनकी इच्छाओं को समझा नहीं जा सकता है ।
हृदयं क्षुर-धाराभं स्त्रीणां को वेद चेष्टितम्।
ऐसी महिलाओं को भोली भाली कह देने का मतलब आखिर क्या है क्या उन्हें इंद्रिय सुख नहीं चाहिए या उनमें काम बासना नहीं होती है महाभारत में एक कथा आती है कि काम अर्थात सेक्स का सबसे अधिक आनंद नारी शरीर से ही प्राप्त किया जा सकता है ।
इसलिए भोली भाली महिलाएँ कहना कतई ठीक नहीं होगा अंतर केवल इतना हो सकता है कि पुरुष प्रत्यक्ष रूप से सेक्स भावनाएँ प्रकट कर देते हैं महिलाएँ अप्रत्यक्ष रूप से प्रकट करती हैं । पुरुष जल्दी उत्तेजित हो जाते हैं जबकि महिलाएँ देर से किंतु पुरुषों की बासना एक सामान्य लहार होती है जबकि कि महिलाओं की बासना साक्षात सुनामी होती है ।
सेक्स भावना प्रदर्शित करने के लिए ही तो फैशन के नाम पर कामोत्तेजक अंगों को हाईलाइट करने या दिखाने या उन पर ध्यान आकर्षित करने के लिए क्या क्या नहीं करती हैं महिलाएँ उनका उठाना बैठना बोलना चालना भी उन्हीं लोगों के साथ अधिक होता है जो उनके उन उत्तेजक परिधानों पर निगाहें गड़ाए रहते हैं इतने टाइट कपड़े कि शरीर की सिमटने तक दिखाई पड़ती हैं ।
महिलाएँ भी करती हैं बलात्कार
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