Sunday, 29 May 2016

महिलाओं में हिम्मत है तो अपने शरीर को उभारने की जगह अपने गुणों को उभारें !

 खजाने से भरी खुली टोकरी गरीबों की बस्ती से लेकर क्यों गुजरना !अकाल पीड़ित भूखे लोगों को यदि रोटी देनी न हो तो  दिखानी ही क्यों । किसी भी चीज की जरूरत व्यक्ति को बेईमान बना देती है अंधा बना देती है मरने पर मजबूर कर देती है डिपेंड करता है उसके जरूरत के लेवल पर अर्थात जरूरत कैसी है और आपूर्ति कैसी है यदि आवश्यकता और आपूर्ति में अधिक अंतर होगा तो आवश्यकतावान व्यक्ति अपनी जरूरत पूरी करने के लिए किसी भी स्तर पर उतर जाएगा पानी की शार्टेज होती है तो पानी का टैंकर लूट लिया जाता है यही तो बलात्कार है अपनी जरूरत को पूर करने के लिए मरने मारने पर उतारू हो जाना !
     महिलाओं के अंग प्रदर्शन का मतलब क्या है यदि इसे फैशन कहा जाए तो ये फैशन बना कैसे और बनाया किसने और इसका उद्देश्य क्या है आखिर फैशन कहने मात्र से तो बात नहीं बन जाएगी फैशन के पीछे भी तो अपनी अपनी पसंद ही मूलकारण होती है अन्यथा हर आदमी वैसा ही घूमने लगता !हर महिला तो अंग प्रदर्शन पर विश्वास नहीं रखती आखिर क्यों ? क्योंकि जो चीज बिकाऊ नहीं है उसे क्यों दिखाना अच्छी बुरी जो भी है वो उनकी अपनी है और अपने पास है और सबसे बड़ी बात उनके पास वैकेंसी ही नहीं खाली है फिर किसी को प्रभावित करके उसे परेशान क्यों करना और जिसे हम परेशान करेंगे उससे अच्छे व्यवहार की उम्मींद कैसे की जा सकती है   

महिलाएँ अपने को केवल शरीर ही समझती हैं क्यों ?समाज को प्रभावित करने के लिए महिला शरीरों की नुमाइश क्यों ? 
      महिलाएँ शरीरों को प्रदर्शित करेंगी तो शरीरों के कस्टमर जुड़ने लगेंगे और और गुणों को प्रदर्शित करें तो गुणों के ग्राहक जुड़ेंगे ये महिलाओं को स्वयं सोचना होगा कि वो कैसे लोगों के संपर्क में रहना चाहती हैं क्योंकि हमारा रहन सहन हमारा आचार व्यवहार हमारी बोली भाषा हमारी वेष भूषा ही तो हमारा परिचय देते हैं कि हमें कैसा रहन सहन और कैसा वातावरण पसंद है आपके साथ वैसे ही लोग जुड़ते चले जाते हैं । यदि हम अपने शरीर पर मांस का लोथड़ा रखकर चलेंगे तो हमारे ऊपर गिद्ध टूटने लगेंगे वही हमें नोचने लगेंगे अपने को शुद्ध पवित्र समझने वाले लोग हमसे किनारा करने लगेंगे  ! फिर भी लोग अगर कहें कि नहीं साहब उन्हें तो गिद्ध उड़ाने चाहिए थे किंतु क्यों उन्हें अपनी जिंदगी की जिम्मेदारियाँ भूलकर दूसरों के गिद्ध उड़ाने में लग जाना चाहिए वो भी तब जबकि उन्हें ये पता हो कि ये गिद्ध उसने स्वयं पाल रखे हैं अन्यथा क्या जरूरत थी मांस का लोथड़ा शिर पर रखकर घूमने की !
      कुछ लोग तर्क देते हैं कि गिद्धों के टूटने का कारण मांस लोथड़ा सिर पर रखना नहीं है कि यदि ऐसा होता तो शरीर में भी तो मांस है उसकी ऊपर तो नहीं टूटते !ऐसे लोगों को ये कैसे समझाया जाए कि गन्ने के रस से निर्मित गुड़ चीनी बताशे मिठाइयों आदि में कितना भी उड़ाओ किंतु मक्खियाँ भिनभिनाया ही करती हैं किंतु गन्ने के पेड़ में तो नहीं लगती हैं मक्खियाँ आखिर मीठा तो वो भी होता है । 
       




        कुछ चीजों में तर्क नहीं चलते मछलियाँ केंचुए खाने की लालची होती हैं यह जानकर ही तो मच्छली पकड़ने वाले अपने काँटे में केंचुए चुभा लेते हैं ताकि केंचुए खाने के लालच में फँस जाएँगी मछलियाँ और फँस भी जाती हैं इसका सीधा सा मतलब है कि किसी को ये केंचुए वाली गणित समझ में आवे या न आवे किंतु इस गणित को मछुआरा भी समझ रहा है और मछली भी समझ रही है तभी तो वो उसे  फँसाने के लिए इतने सारे प्रयास करता है और वो फँस जाती है इसका स्पष्ट मतलब है कि तीर निशाने पर लगा है किंतु केंचुए के स्वाद में अंधी मछली काँटे का एहसास होने पर भी केंचुए के स्वाद में ही रमी रही उसने काँटे को भुला दिया इसका ये कतई मतलब नहीं है कि उसे काँटे का एहसास नहीं था । 

वैसे भी इतना मूर्ख तो उन्हें भी नहीं  समझना  चाहिए कि उन्हें इतनी भी समझ नहीं होगी कि वो इतना तो समझ ही सकते हैं कि मांस का लोथड़ा अपने शिर पर रखकर घूमने वाले को भी इतना तो पता ही होगा कि  मांस लोथड़ा गिद्धों को बहुत प्रिय है 


 उन्हें तो गिद्ध इसमें उन्हें गलत  क्या है


दूर होने   से लगाकर चाहेंगे
      गुणों को ही प्रदर्शित करें गुणों पर ही गर्व करें गुणों को ही सजाएँ सँवारें जो लोग उनके गुणों को महत्त्व दें केवल उन्हीं की बातों को महत्त्व दें बाकी सामान्य संपर्क सबसे रखें !

 महिलाएँ अपने को शरीर समझने लगीं तो लोग भी उन्हें केवल शरीर ही समझने लगे और शरीर निर्जीव होता है इसलिए पुरुषों ने महिलाओं की भावनाओं की परवाह करनी छोड़ दी शरीरों का प्रदर्शन 
से ऊपर उठकर गुणों के आधार पर जिएँ जिंदगी अभी घट जाएँगे 
जीवन का मतलब है 

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