Friday, 13 May 2016

कुंभ का गौरव घटाया है कंडोम वाले बड़े बड़े बाबाओं ने ! आखिर क्या है कुंभ और कंडोम का संबंध और कैसे होती है कमाई !

  साधक साधू संतों को ऐसी दृष्टि से न देखा जाए !तपस्वी साधू संतों की आवश्यकताएँ समाज हमेंशा से पूरी करता आ रहा है और उन्हें भी उतने में संतोष हो जाता रहा है किंतु बाबाओं का उतने में गुजारा नहीं होता वो धन संग्रह करके भारी भरकम संपत्ति जुटाकर बाबा शरीर से ही सारे भोग भोग लेना चाहते हैं ।इसलिए वो अपनी कमाई बढ़ाने के लिए हर हथकंडा अपनाते रहते हैं !जानिए कैसे !
   आश्रमों में बाबाओं के पास बिना कुछ किए धरे इतना पैसा आता कहाँ से है और इनकी सोर्स आफ इनकम के साधन होते क्या हैं !ये हर कोई जानना चाहता है किंतु यह सोचकर संतोष कर लेता है कि लोग देते होंगे किंतु  ये सच नहीं है भीख के पैसे में इतनी दम नहीं होती है कि उसके बलपर कोई गोली चला देगा !धन कमाने के शौक़ीन बाबाओं के भी अपनी आमदनी के साधन हैं वो भीख के भरोसे नहीं रहते ये सतयुगी साधू संत नहीं हैं ये तो कलियुगी बाबा हैं !
    ये केवल बाबा बनकर उतना धन इकठ्ठा कर लेते हैं जितना गृहस्थ जीवन भर परिश्रम पूर्वक कमाई करके नहीं कर पाते !कई लोग तो व्यापार करने के लिए बाबा बनकर पहले पूँजी जुटाते हैं फिर करते हैं व्यापार !ऐसे समाज को चकमा दे जाते हैं किंतु खाने वाले  दाँत ये दिखाते कभी नहीं हैं !आखिर गृहस्थ लोग बाबाओं की तरह के ऐसे धंधा व्यापार क्यों नहीं कर पाते हैं कि फटाफट रूपए छापते चले जाएँ !क्या वो प्रयास नहीं करते होंगे धन कमाने का किंतु धन कमाने में गृहस्थ लोग सफल क्यों नहीं होते और बाबा लोग असफल क्यों नहीं होते !
      किसान, मजदूर ,दुकानदार आदि घर गृहस्थी वाले लोग दिन रात मेहनत करके मुश्किल से अपने बच्चों का भरण पोषण कर पाते हैं दूसरी ओर बाबा लोग जो बिना कुछ रोजी रोजगार के  बिना किसी कामधाम के बड़ी बड़ी बिल्डिंगें आश्रम योगपीठें बनाते चले जाते हैं हजारों करोड़ के बड़े बड़े व्यापार खड़े करते चले जाते हैं उनका ये सब करना कैसे संभव हो पाता है !ये कहना सरासर झूठ है कि भगत लोग दे देते होंगे आखिर क्यों दे देंगे भगत लोग !ये कलियुग है बिना स्वार्थ के लोग जन्म देने वाले माता पिता को रोटियाँ नहीं देते वे आश्रमों पर क्यों मेहरवान होंगे और अपने खून पसीने की कमाई क्यों लुटा आएँगे बाबाओं पर कुछ तो स्वार्थ होता होगा उनका भी !
आमदनी के साधन -
      आश्रमी  बाबा पूरे देश में घूम घूम  कर सत्संग शिविरों या योग शिविरों का आयोजन करते हैं जिनके माध्यम से  उन  लोगों को अघोषित जीवनसाथी चुनने का अवसर उपलब्ध करवाया जाता है जो अपने गृहस्थ जीवन से असंतुष्ट हैं !या अविवाहित हैं और अपने प्रेमी प्रेमिका  के साथ पति पत्नी की तरह गृहस्थी धर्म का पूर्वाभ्यास करना चाहते हैं ऐसे लोगों को आश्रम न केवल जीवन साथी उपलब्ध करवाते हैं अपितु बिछुड़े प्रेमी प्रेमिकाओं को मिलाने का काम भी करते हैं ऐसे सभी भूखे प्यासे लोगों के लिए आश्रय स्थल बनते हैं आश्रम !सत्संग शिविरों और आश्रमों के नाम पर गंदे से गंदे गलत से गलत काम करने पर भी लोग ऐसे लोगों पर शक नहीं करते हैं माता पिता भी अपने बेटा बेटियों को बेझिझक भेज देते  हैं वहाँ संस्कार सुधारने के नाम पर !
      कई ऐसे भी आश्रम देखे जाते हैं जिनमें बाबा जी साल में दो एक दिन के लिए ही आते हैं कई आश्रमों में तो कई कई वर्ष तक नहीं आते हैं किंतु ऐसे आश्रमों की भी देख रेख साफ सफाई आदि निर्माण कार्यों में करोड़ों रूपए महीने खर्च हो रहे होते हैं आश्रम चमकाए जा रहे होते हैं बाबा जी को पता भी नहीं होता है ।ऐसे आश्रमों पर धन लुटा रहा होता है यही सफेदपोस ऐय्यास वर्ग !            बाबा जी बेचारे तो फ़ोकट में बदनाम  हो रहे होते हैं जबकि बाबा जी का  फोटो उपयोग करने का सप्ताह  महीना या साल के हिसाब से बाबा जी के एकाउंटों में पहुँचा दिया   जाता है । यह सफेद पोस ऐय्यास वर्ग जब अपने अपने कार्यस्थलों से आश्रमों के लिए निकलता है तब उनके कर्मचारियों के या अपने घर वालों के या अपने मुख से यह कहने में कितना अच्छा लगता है कि साहब या बाबू जी कुटिया पर या आश्रमों  में गए हैं !इसप्रकार से शाम को तरो ताजा होकर तैयार होते हैं इन्हें गाड़ी में डालकर ड्राइवर उनके घर फेंक आता है सुबह फिर घर से उठा लाता है ।  
      ऐसे ही आश्रमों के मालिक एक बाबाजी का लड़का भी जब बाबा जी के काम में हाथ बटाने लगा अर्थात  वो भी उसी धंधे में आ गया तो वो जिस जिस शहर में जाए पूछे कि यहाँ अपने कितने आश्रम हैं चेलालोग संख्या गिनकर बता दें  उसे भी सेवा पानी का खर्च आदि  दे दें आवभगत कर दें !किंतु वो इतने से संतुष्ट न था वो उन लोगों से आश्रमों की मल्कियत के कागज़ माँगने लगा !बाबाजी की मलकीयत थी नहीं वहाँ तो हफता महीने वर्ष के हिसाब से तय था !किंतु उनके बेटे को बाबाजी  की गणित समझ में नहीं आई  कागज़ माँगने के लिए बाबाजी के रसूक की धमकियाँ देने लगा अंत में उनके भक्त साधकों ने उन्हें वहाँ पहुँचाया जहाँ जाकर वो साधना कर सकें !ऐसे लोगों को साधू संत नहीं माना जा सकता है ।
       बाबा जी के ऐय्यास भक्तों को लगा कि कहीं मुझे भी वहीँ न पहुँचा दिया जाए तो उन्होंने ने फटाफट बाबा जी के पोस्टर फाड़ डाले नाम मिटा दिया और कह दिया कि यहाँ तो उन्होंने जबर्दश्ती कब्ज़ा किया था किंतु कोई अकेला बाबा इतना बड़ा मौन आतंक कैसे फैला सकता है । ये खबर जरूर पढ़ें- see more... http://aajtak.intoday.in/crime/story/baba-had-sexually-assaulted-female-devotees-in-barabanki-of-up-porn-videos-viral-1-868793.html

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