जलवायुपरिवर्तन का वैज्ञानिक आधार क्या है ?Book
भूमिका
जिस ज्ञान विज्ञान के द्वारा मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में प्रश्नों के उत्तर खोजे जा सकें ऐसी शंकाओं के समाधान किए जा सकें मौसम निर्माण करने वाली शक्तियों के स्वभाव को सही सही समझा जा सके मौसम संबंधी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सके सिद्धांत रूप में उसे ही मौसम विज्ञान के स्वरूप में स्वीकार किया जाना चाहिए |ये बात प्रत्येक विषय से संबंधित विज्ञान पर लागू होती है |
वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर कई बार किसी विषय से संबंधित ऐसे कुछ मानक प्रतीकों को चुन लिया जाता है जिनके आधार पर उन अनुसंधानों को आगे बढ़ाया जाता है और ऐसे अनुसंधान भी सफल होते देखे जाते रहे हैं ये प्रतीक आवश्यकता के अनुशार कई बार बदल बदल कर अनुसंधान को आगे बढ़ाकर लक्ष्य तक ले जाना होता है |
मौसम विज्ञान के विषय में भी समाज की अपेक्षाएँ ऐसी हैं किंतु मौसम से संबंधित कोई विज्ञान अभी तक खोजा नहीं जा सका है यही कारण है कि इससे संबंधित किसी भी प्रकार का कोई पूर्वानुमान न बताया जा सकता है और न ही जनता इस पर विश्वास ही करती है |
भूकंप वर्षा आँधी तूफ़ान आदि प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने और न होने का कारण क्या है | यहाँ तक कि वायु प्रदूषण बढ़ने और घटने का कारण क्या है इसे ही समझ पाना अभी तक असंभव सा बना हुआ है यही कारण है कि ऐसी घटनाओं से संबंधित पूर्वानुमान लगा पाना अभीतक संभव नहीं हो पाया है | वैसे भी किसी भी घटना के घटित होने के पीछे निहित कारणों का ज्ञान हुए बिना उससे संबंधित पूर्वानुमान लगा पाना संभव भी नहीं हो पाता है |
ऐसी परिस्थिति में बड़े बड़े विश्व विद्यालयों में मौसम संबंधी जिन बातों घटनाओं प्रतीकों आदि को मौसम विज्ञान मान कर उनके विषय में पढ़ा या पढ़ाया जा रहा है उसका विज्ञान सिद्ध होना भी अभी तक अवशेष है |ऐसी परिस्थिति में विज्ञान के नाम पर ऐसी काल्पनिक बातों के पठन पाठन का और उसके आधार पर पूर्वानुमान लगाने का औचित्य ही क्या बच जाता है |
अलनीनों लानीना ग्लोबल वार्मिंग या जलवायु परिवर्तन जैसी जो भी ऐसी कल्पनाएँ है जिनके विषय में माना जाता है कि ये मौसम संबंधी घटनाओं को प्रभावित करती हैं | यदि इस बात में सच्चाई होती तो इनका पता लग जाने बाद संबंधित पूर्वानुमान सही होने लगते किंतु अभी तक इनसे संबंधित पूर्वानुमान चूँकि सही नहीं हो पा रहे हैं इससे ये बात स्वयं में प्रमाणित हो जाती है कि ऐसी कल्पनाओं का मौसम संबंधी घटनाओं से कोई संबंध नहीं है |
इसी मजबूरी के कारण अक्सर मौसम भविष्यवक्ता लोग मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में भविष्यवाणियाँ करते हैं और जब वे गलत हो जाती हैं तो उनके गलत होने का कारण जलवायु परिवर्तन को बता देते हैं |
ऐसी परिस्थिति में प्रश्न उठता है कि जो भविष्यवाणियाँ उन्हें भी सही नहीं मन जाना चाहिए क्योंकि जलवायु परिवर्तन का असर तो उन पर भी पड़ता होगा और जलवायु परिवर्तन के न्यूनाधिक विषय में जब तक पूर्वानुमान लगा पाना संभव नहीं हो तब तक मौसम विज्ञान नाम की किसी भी कल्पना को विज्ञान कैसे माना जा सकता है |
ऐसे में मौसम वैज्ञानिक होने के भ्रम से ऊपर उठकर उन लोगों को चाहिए कि मौसम संबंधी विज्ञान की खोज के लिए परंपराओं से प्राप्त ज्ञान अनुभवों धार्मिक मान्यताओं परंपराओं एवं वेद विज्ञान में वर्णित मौसम विज्ञान पर भी अनुसंधान किया जाना चाहिए |
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जलवायु परिवर्तन
जलवायु परिवर्तनऔसत मौसमी दशाओं के पैटर्न में ऐतिहासिक रूप से बदलाव आने को कहते हैं। भारत में मानसून की आँख मिचौली और पूरी दुनियाँ में जलवायु का अनिश्चित व्यवहार इसके प्रमाण हैं।गर्मियाँ लंबी होती जा रही हैं, और सर्दियाँ छोटी. पूरी दुनिया में ऐसा हो रहा है. यही है जलवायु परिवर्तन | धरती का तापमान बढ़ रहा है. ऐसा और भी बहुत कुछ होने का कारण जलवायु परिवर्तन को बताया जा रहा है !
में गलत होती रहती हैं उनके लिए ग्लोबलवार्मिंग एवं जलवायुपरिवर्तन को कारण के रूप में बताया जाता रहता है किंतु यदि ऐसा है तो ये बातें तो सभी प्रकार के पूर्वानुमानों पर लागू होंगी और मौसम संबंधी सभी प्रकार की घटनाओं से संबंधित पूर्वानुमान जलवायुपरिवर्तन के प्रभाव से गलत हो सकते हैं |
ऐसी परिस्थिति में जलवायुपरिवर्तन जब मौसमसंबंधी घटनाओं पर इतना बड़ा असर डालता है तब तो जलवायुपरिवर्तन के मौसम पर पड़ने वाले प्रभाव को समझे बिना मौसम संबंधी घटनाओं का सही पूर्वानुमान लगाने की कल्पना भी कैसे की जा सकती है |
फिर पूर्वानुमान लगाने का दिखावा क्यों किया जाता है जब इसका कोई विज्ञान खोजा ही नहीं जा सका है | सही
जलवायुपरिवर्तन -
जलवायुपरिवर्तन के विषय में कुछ काल्पनिक बातों को छोड़कर यदि गंभीरता पूर्वक वैज्ञानिक तथ्य खोजे जाएँ तो कभी कोई ऐसा वैज्ञानिकशोध देखने को नहीं मिला जिसके आधार पर ये समझा जा सके कि जलवायु परिवर्तन क्या है?जलवायु परिवर्तन होना प्रारंभ कब से हुआ था |प्रकृति में ऐसा परिवर्तन अपनी निर्धारित गति से क्रमिक रूप में हमेंशा से एक जैसा ही होता चला आ रहा है या इसके होने की गति और क्रम आदि की दृष्टि से अलग अलग कालखंडों में कुछ अंतर होते देखा जा रहा है | जलवायु परिवर्तन के लक्षण क्या हैं और इसके कारण प्रकृति और जीवन में किसी एक प्रकार की घटनाएँ घटित होने की संभावना होती है या परंपरा से हटकर जो भी घटनाएँ घटित होती हैं उन सबका कारण जलवायु परिवर्तन को मान लिया जाता है | अनुभव में ऐसा देखा जाता है कि मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा जिन घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने में चूक हो जाती है और नहीं लगा पाते हैं या सही सही नहीं लगा पाते हैं या उनके द्वारा लगाए गए प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित पूर्वानुमान गलत हो जाते हैं ऐसा होने के लिए प्रकृति की जिस परिस्थिति को जिम्मेदार मान लिया जाता है प्रकृति की उस अवस्था को ही जलवायु परिवर्तन के नाम से जाना जाता है | मानव स्वभाव से ही यह जिज्ञासा होना स्वाभाविक ही है कि जलवायु परिवर्तन आखिर क्या है?
वर्तमान समय में यदि यह कहा जा रहा है कि भविष्य में इतने सौ या हजार वर्षों के बाद इस इस प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ या आपदाएँ घटित होने लगेंगी या जीवन में ऐसे ऐसे बदलाव या दुष्प्रभाव देखने को मिलेंगे तो वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर इस बात को भी बताया जाना चाहिए कि अतीत अर्थात बीते उतने ही सौ या हजार वर्ष पहले से आज तक ऐसे बदलाव हुए क्या क्या हैं जिन्हें उसी दिशा में बढ़ते हुए भविष्य में इतना भयानक होते देखा जा रहा है |
बताया जाता है कि जलवायु परिवर्तन सुदीर्घ कालखंड में घटित हुई पूर्वापर घटनाओं का अनुसंधान करने से अनुभव किया जा सकता है | ऐसी परिस्थिति में इसको समझने के लिए किसी लंबे कालखंड का इस दृष्टि से अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है |
इसके लिए प्रयोग रूप में सौ दो सौ या हजार दो हजार वर्ष के किसी निश्चित कालखंड को उदाहरण स्वरूप लिया जाए और समय के धरातल पर एक ऐसी रेखा खींची जाए जो उस कालखंड के आरंभ और अंत के विंदुओं को एक दूसरे से तो मिलाती ही हो इसके साथ ही साथ वह वर्तमान का भी स्पर्श करती जा रही हो | आरंभ अंत और वर्तमान के तीनों बिंदुओं को सामने रखकर उनके आधार पर जलवायु परिवर्तन संबंधी अध्ययन किया जा सकता है |
जलवायुपरिवर्तन के दुष्परिणाम स्वरूप भविष्य में जो बड़ी बड़ी दुर्घटनाएँ घटित होने की बात कही जा रही है उसका अनुमानित कालखंड निर्धारित किया जाए कि लगभग कितने सौ या हजार वर्ष बाद में ऐसी प्राकृतिक दुर्घटनाएँ घटित होने की संभावना है आज से उतने ही सौ या हजार वर्ष पूर्व से अब तक घटित हुई प्राकृतिक घटनाओं को भी सामने रखकर सोचा जाए कि आज के हजार वर्ष बाद में यदि ऐसी ऐसी प्राकृतिक घटनाएँ घटित होने की संभावना है तो आज के उतने ही वर्ष पूर्व की प्रकृति में ऐसा क्या क्या घटित हुआ करता था जो आज नहीं घटित हो रहा है और दूसरी बात तब ऐसा क्या क्या नहीं घटित हुआ करता था जो आज होने लगा है | यदि सुदूर अतीत से वर्तमान समय तक ऐसी कुछ घटनाओं के उदाहरण मिल जाते हैं तब तो उसके आधार पर लगाया गया भविष्य संबंधी पूर्वानुमान सही माना जाना चाहिए | यदि ऐसा नहीं होता है तो जलवायु परिवर्तन जैसी निरर्थक कल्पनाओं के भय से भयभीत होना विज्ञान सम्मत नहीं है |
इन तीनों विन्दुओं का मिलान करके देखा जाना चाहिए कि भविष्य में ऐसा क्या होने की संभावना है जो वर्तमान में नहीं हो रहा है और जो वर्तमान में हो रहा है उसमें ऐसा नया क्या है जो उतने ही वर्ष पूर्व अतीत में होते नहीं देखा जा रहा था | जीवन और प्रकृति के किस किस क्षेत्र में कितना बदलाव हुआ है कितने पहले ऐसा क्या हुआ करता था जो अब नहीं होने लगा है या फिर कितने पहले ऐसा क्या नहीं हुआ करता था जो अब होने लगा है जिसके कारण जलवायु परिवर्तन होने संबंधी आशंका होने लगी है इन परिस्थितियों को ध्यान में रखकर ही जलवायुपरिवर्तन जैसी किसी आशंका के विषय में कोई निष्कर्ष निकालना उचित होगा |
दूसरी बात जलवायु परिवर्तन प्रकृति और जीवन के लिए कितना अच्छा और कितना बुरा है या इसके परिणाम अच्छे हो ही नहीं सकते हैं केवल बुरे ही होंगे अथवा इसके दुष्परिणामों से भविष्य में प्रकृति और जीवन दोनों के ही किस किस प्रकार से कितना प्रभावित होने की संभावना है |
मौसमविज्ञान का सारांश !
मौसमपूर्वानुमान के अभाव से होने वाले नुक्सान !
वर्षा के बिना सरकारें नहीं चलती हैं देश की आयव्यय का लेखा जोखा वजट का पूरा तामझाम मौसम की मर्जी पर निर्भर करता है | विज्ञान मौसम की चाल को पढ़ने का सही एवं सटीक विज्ञान नहीं खोज पाया है जिसके कारण कृषि योजना बनाने में किसानों को कठिनाई आती है इसलिए किसानों का हर वर्ष नुक्सान होता है इसीलिए हर वर्ष सैकड़ों किसान आत्महत्या करते हैं |
वर्तमान वैज्ञानिक मानसून का तिलस्म नहीं तोड़ पाए हैं और न ही मौसम विज्ञान का मर्म ही समझ पाए हैं | कुछ वैज्ञानिकों ने घोषणा कर दी है कि मौसम की सटीक भविष्यवाणी संभव ही नहीं है |महावैज्ञानिक प्राचीन ऋषियों मुनियों ने अकाल और सुकाल सभी प्रकार का पूर्वानुमान लगाने में सफलता प्राप्त की थी !देश वासी इस पर विश्वास करते हैं किंतु सरकार इसे नहीं मानती है प्राचीन विज्ञान के हिसाब से पूर्वानुमान लगाया जाता तो हजारों किसानों की जान बच सकती थी |
आपदा प्रबंधन की दृष्टि से भी ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने की क्षमता का अभाव अत्यंत चिंतनीय है उचित होगा कि मौसम संबंधी अनुसंधानों के नाम पर अभी तक जो समय निरर्थक बीतते आया है उसके विषय में कुछ सार्थक पहल की जाए और मौसम संबंधी वास्तविक प्राकृतिक विज्ञान का अनुसंधान किया जाए !
विशेष बात यह है कि प्राकृतिक आपदाओं के विषय में आँकड़े अनुभव आदि जुटाकर पूर्वानुमान लगाने के लिए 1875 में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए की गई थी तब से लेकर अभी तक लगभग 144 वर्ष बीत चुके हैं| प्राकृतिक आपदाओं के विषय में हमारा कितना विकास हुआ है | अभी भी प्राकृतिक आपदाओं के विषय में हम या तो पूर्वानुमान नहीं लगा पाते हैं और यदि लगा पाते हैं तो गलत निकल जाते हैं |
किसी न किसी रूप में लगातार अनुसंधान चलाए जा रहे हैं इनसे संबंधित मंत्रालय संचालित किए जा रहे हैं अधिकारियों कर्मचारियों वैज्ञानिकों आदि पर एवं उनके द्वारा किए जाने वाले अनुसंधानों पर भारी भरकम धनराशि एक ही उद्देश्य की पूर्ति के लिए खर्च की जा रही है कि प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित सही और सटीक पूर्वानुमान लगाए जा सकें किंतु ऐसा नहीं हो पा रहा है |
5 अक्टूबर 1864 में कलकत्ता में आए भयंकर चक्रवात से लगभग 60,000 लोगों की मौत हो गई थी इसके अतिरिक्त 1866 एवं 1871 में अकाल पड़ा था बताया जाता है कि उसमें भी काफी जन धन की हानि हुई थी !ऐसी घटनाएँ अचानक घटित होने के कारण प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाया था इसलिए जन धन की हानि काफी अधिक हो गई थी |अब भी लगभग वही स्थिति है अभी हाल के वर्षों में जितने बार भी प्राकृतिक आपदाएँ घटित हुई हैं उनके विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाए जा सके हैं |
ऐसी परिस्थिति में वेद विज्ञान के द्वारा यदि मौसम संबंधी अनुसंधान सरकार की देख रेख में पुनः प्रारंभ किए जाएँ तो इससे मौसम संबंधी पूर्वानुमान में क्रांति लाई जा सकती है |
मेरे द्वारा किए गए कुछ पूर्वानुमान -
मैं प्रत्येक महीना प्रारंभ होने से पूर्व अगले महीने के पूर्वानुमान पहले भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के निदेशक डॉ के जे रमेश जी के जीमेल पर भेज दिया करते थे उन्होंने कहा था कि हमारे पूर्वानुमान यदि सही निकलेंगे तो वो मुझे लिखित फीडबैक देंगे !इसलिए अपने पूर्वानुमान परीक्षणार्थ मैं उन्हें भेज रहा था जो सही निकलते जा रहे थे !इसी विषय में मेरी उनसे अक्सर बात भी होती थी | इसी क्रम में अगस्त 2018 के विषय में मैंने जुलाई में ही उनके जीमेल पर पूर्वानुमान डाल दिया था जिसमें 1 से 11 और 7 से 14 अगस्त में बीच दक्षिण भारत में भीषण वर्षात होने का पूर्वानुमान लिखा था जिसमें कुछ दशकों का रिकार्ड टूटने की बात भी लिखी थी | जबकि मौसम विज्ञान विभाग ने 3 अगस्त को जो प्रेसविज्ञप्ति जारी की थी उसमें अगस्त और सितम्बर में सामान्य वर्षा होने की भविष्यवाणी की गई थी | जबकि इसी बीच केरल आदि दक्षिण भारत में बहुत अधिक वर्षा हुई थी | भारतीय मौसम विज्ञानविभाग ने 3 अगस्त को जो प्रेसविज्ञप्ति जारी की थी वो भविष्यवाणी गलत हो गई थी मेरे द्वारा अपनी भविष्यवाणी की तुलना उससे किए जाने के कारण उनसे हमारी बातचीत बंद हो गई | ये दोनों जीमेल मैं आपको भेज रहा हूँ | इसके विषय में उन्होंने जो फीडबैक दिया है भले उसमें हमारी भविष्यवाणियों को सही न स्वीकार किया गया हो किंतु मैं उन्हें आपको भेज रहा हूँ |
इसी विषय में मैं एक दिन पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तत्कालीन मंत्री जी से मिला उन्होंने मुझे सेकेटरी साहब के पास यह कहते हुए भेजा कि यदि कुछ हो सकता होगा तो वही करेंगे !मैं राजीवन जी के पास गया तो उन्होंने एडवाइजर गोपाल रमन जी से मिलाया और हमारी बात सुनने को कहा | गोपाल रमन जी ने हमसे वो तकनीक और वह प्रक्रिया लिखकर देने के लिए कहा जिसके आधार पर और जिस प्रकार से मैं पूर्वानुमान लगाता हूँ !मैंने ज्योतिष आदि गणित पक्ष को उद्धृत किया तो वहाँ ज्योतिष के कुछ पंचांग रखे हुए थे उनकी ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि अमावस्या संक्रांति के आसपास वर्षा होती है इसके अलावा मौसम का पूर्वानुमान तुम कैसे लगाते हो !इससे लगा कि वहाँ पूर्वानुमान लगाने में ज्योतिष पंचांगों का उपयोग तो किया जाता है किंतु स्वीकार नहीं किया जाता है कि यह भी विज्ञान है |
इसके अतिरिक्त स्काई मेट के वैज्ञानिक डॉ रजनीश जी को भी मैं पूर्वानुमान भेजता था !उन्होंने मेरे द्वारा किए जाने वाले पूर्वानुमानों की सच्चाई स्वीकार करते हुए आपदा प्रबंधन विभाग को एक पत्र भी लिखा था मैं वो भी संलग्न कर रहा हूँ |
मैंने वायु प्रदूषण के विषय में भी जो पूर्वानुमान लगाए हैं वे भी काफी हद तक सही निकले हैं जिससे यह बात प्रमाणित होती है कि वायु प्रदूषण बढ़ने में समय की भी बड़ी भूमिका है | मैं वो मेल भी आपको भेज रहा हूँ |
आँधी तूफानों एवं चक्रवातों के विषय में मेरे द्वारा किए जाने वाले पूर्वानुमान लगभग सच सिद्ध हो रहे हैं |
इसके अतिरिक्त मैं दिसंबर 2019 महीने के विषय में भी पूर्वानुमान आपके पास भेज रहा हूँ |
आपसे मेरा विनम्र निवेदन है कि आप इस विधा पर भी विचार करें एवं इसी विषय में मुझे मिलने के लिए समय दें !
किसी भी देश में देशवासियों के द्वारा सरकारों को दिए जाने वाले टैक्स में से किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए सरकारें जो धन सरकारी योजनाओं पर खर्च किया करती हैं उसके बदले में उससे परिणाम क्या प्राप्त हो रहे हैं यह जानने का अधिकार देशवासियों को भी होता है | पाई पाई और पल पल का हिसाब देने की प्रतिज्ञा करके सत्ता संचालन करने वाली सरकारों की जिम्मेदारी तो और भी अधिक बढ़ जाती है |
भूमिका
जिस ज्ञान विज्ञान के द्वारा मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में प्रश्नों के उत्तर खोजे जा सकें ऐसी शंकाओं के समाधान किए जा सकें मौसम निर्माण करने वाली शक्तियों के स्वभाव को सही सही समझा जा सके मौसम संबंधी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सके सिद्धांत रूप में उसे ही मौसम विज्ञान के स्वरूप में स्वीकार किया जाना चाहिए |ये बात प्रत्येक विषय से संबंधित विज्ञान पर लागू होती है |
वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर कई बार किसी विषय से संबंधित ऐसे कुछ मानक प्रतीकों को चुन लिया जाता है जिनके आधार पर उन अनुसंधानों को आगे बढ़ाया जाता है और ऐसे अनुसंधान भी सफल होते देखे जाते रहे हैं ये प्रतीक आवश्यकता के अनुशार कई बार बदल बदल कर अनुसंधान को आगे बढ़ाकर लक्ष्य तक ले जाना होता है |
मौसम विज्ञान के विषय में भी समाज की अपेक्षाएँ ऐसी हैं किंतु मौसम से संबंधित कोई विज्ञान अभी तक खोजा नहीं जा सका है यही कारण है कि इससे संबंधित किसी भी प्रकार का कोई पूर्वानुमान न बताया जा सकता है और न ही जनता इस पर विश्वास ही करती है |
भूकंप वर्षा आँधी तूफ़ान आदि प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने और न होने का कारण क्या है | यहाँ तक कि वायु प्रदूषण बढ़ने और घटने का कारण क्या है इसे ही समझ पाना अभी तक असंभव सा बना हुआ है यही कारण है कि ऐसी घटनाओं से संबंधित पूर्वानुमान लगा पाना अभीतक संभव नहीं हो पाया है | वैसे भी किसी भी घटना के घटित होने के पीछे निहित कारणों का ज्ञान हुए बिना उससे संबंधित पूर्वानुमान लगा पाना संभव भी नहीं हो पाता है |
ऐसी परिस्थिति में बड़े बड़े विश्व विद्यालयों में मौसम संबंधी जिन बातों घटनाओं प्रतीकों आदि को मौसम विज्ञान मान कर उनके विषय में पढ़ा या पढ़ाया जा रहा है उसका विज्ञान सिद्ध होना भी अभी तक अवशेष है |ऐसी परिस्थिति में विज्ञान के नाम पर ऐसी काल्पनिक बातों के पठन पाठन का और उसके आधार पर पूर्वानुमान लगाने का औचित्य ही क्या बच जाता है |
अलनीनों लानीना ग्लोबल वार्मिंग या जलवायु परिवर्तन जैसी जो भी ऐसी कल्पनाएँ है जिनके विषय में माना जाता है कि ये मौसम संबंधी घटनाओं को प्रभावित करती हैं | यदि इस बात में सच्चाई होती तो इनका पता लग जाने बाद संबंधित पूर्वानुमान सही होने लगते किंतु अभी तक इनसे संबंधित पूर्वानुमान चूँकि सही नहीं हो पा रहे हैं इससे ये बात स्वयं में प्रमाणित हो जाती है कि ऐसी कल्पनाओं का मौसम संबंधी घटनाओं से कोई संबंध नहीं है |
इसी मजबूरी के कारण अक्सर मौसम भविष्यवक्ता लोग मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में भविष्यवाणियाँ करते हैं और जब वे गलत हो जाती हैं तो उनके गलत होने का कारण जलवायु परिवर्तन को बता देते हैं |
ऐसी परिस्थिति में प्रश्न उठता है कि जो भविष्यवाणियाँ उन्हें भी सही नहीं मन जाना चाहिए क्योंकि जलवायु परिवर्तन का असर तो उन पर भी पड़ता होगा और जलवायु परिवर्तन के न्यूनाधिक विषय में जब तक पूर्वानुमान लगा पाना संभव नहीं हो तब तक मौसम विज्ञान नाम की किसी भी कल्पना को विज्ञान कैसे माना जा सकता है |
ऐसे में मौसम वैज्ञानिक होने के भ्रम से ऊपर उठकर उन लोगों को चाहिए कि मौसम संबंधी विज्ञान की खोज के लिए परंपराओं से प्राप्त ज्ञान अनुभवों धार्मिक मान्यताओं परंपराओं एवं वेद विज्ञान में वर्णित मौसम विज्ञान पर भी अनुसंधान किया जाना चाहिए |
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जलवायु परिवर्तन
जलवायु परिवर्तनऔसत मौसमी दशाओं के पैटर्न में ऐतिहासिक रूप से बदलाव आने को कहते हैं। भारत में मानसून की आँख मिचौली और पूरी दुनियाँ में जलवायु का अनिश्चित व्यवहार इसके प्रमाण हैं।गर्मियाँ लंबी होती जा रही हैं, और सर्दियाँ छोटी. पूरी दुनिया में ऐसा हो रहा है. यही है जलवायु परिवर्तन | धरती का तापमान बढ़ रहा है. ऐसा और भी बहुत कुछ होने का कारण जलवायु परिवर्तन को बताया जा रहा है !
इसके विषय में कहा जा रहा है कि जलवायु परिवर्तन का असर
मनुष्यों के साथ साथ वनस्पतियों और जीव जंतुओं
पर भी देखने को मिल सकता है. पेड़ पौधों पर फूल और फल समय से पहले लग सकते हैं
और जानवर अपने क्षेत्रों से पलायन कर दूसरी जगह जा सकते हैं.कभी कभी बर्फ
बहुत अधिक जम जाएगी तो कभी हिमखंड और
ग्लेशियर्स पिघलते देखे जाएँगे |कभी कभी वर्षा बहुत अधिक हो जाएगी तो कभी कभी
सूखा पड़ जाएगा | ये सब जलवायु परिवर्तन के प्रभाव बताए जा रहे हैं !
इस बारे में निश्चित तौर पर कुछ कहना तो मुश्किल
है. लेकिन इससे पीने के पानी की कमी हो सकती है, खाद्यान्न उत्पादन में
कमी आ सकती है, भीषण बाढ़, आँधी तूफ़ान चक्रवात , सूखा और गर्म हवाएँ चलने
की घटनाएँ बढ़ सकती
हैं | इंसानों और जीव जंतुओं की ज़िंदगी पर असर पड़ेगा. ख़ास तरह के मौसम
में रहने वाले पेड़ और जीव-जंतुओं के विलुप्त होने का ख़तरा बढ़ जाएगा |
इसको लेकर 21वीं शताब्दी का सबसे बड़ा खतरा बताया जा रहा है। यह
खतरा तृतीय विश्वयुद्ध या किसी क्षुद्रग्रह (एस्टेराॅइड) के पृथ्वी से
टकराने से भी बड़ा बताया जा रहा है।
जलवायुपरिवर्तन के कारण होने वाले दुष्प्रभावों के विषय में जो भयानक भविष्यवाणियाँ की जा रही हैं वे चिंता पैदा करने वाली हैं इसलिए इन्हें हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए किंतु ऐसे विषयों में इतनी जिम्मेदारी अवश्य निभाई जानी चाहिए कि अनुसंधान पूर्वक इस बात का पता लगाया जाना चाहिए कि उन लोगों के द्वारा ऐसी किस कालखंड में कितने प्रतिशत सच हो सकती हैं |
इस विषय में संतोष की बात केवल इतनी है कि जलवायुपरिवर्तन से संबंधित ऐसी भविष्यवाणियाँ करने वाले वही लोग हैं जो दो चार दिन पहले की मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ या तो कर नहीं पाते हैं और यदि करते भी हैं तो गलत निकल जाती हैं |वही लोग जलवायुपरिवर्तनसे संबंधित पूर्वानुमान बताते देखे जा रहे हैं
ऐसी परिस्थिति में जिनके द्वारा की जाने वाली दो चार दिन पहले की भविष्यवाणियाँ गलत हो जाती हैं वही मौसम भविष्य वक्ता लोग हीआज के सैकड़ों हजारों वर्ष बाद में घटित होने वाली घटनाओं के विषय में भविष्यवाणियाँ करते देखे जा रहे हैं |इसलिए अधिक चिंता करने की बात नहीं है |
बिचारणीय बात यह है कि जो वर्षा बाढ़ एवं आँधी तूफानों के विषय की सही एवं सटीक भविष्यवाणियाँ दो चार दिन पहले नहीं कर पाते हैं करते हैं तो कितने हिचकोले खा रहे होते हैं कितने बार उन्हें रिपीट करते हैं कितने बार उनमें संशोधन करते हैं फिर भी वे गलत निकल जाती हैं दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान सही नहीं हो पाता है ! मानसून आने जाने का पूर्वानुमान लगा पाने में असफल रहने के कारण ऐसे लोग अब मानसून आने जाने की तारीखें आगे पीछे करके प्रतिष्ठा बचाने की कोशिश करते देखे जा रहे हैं |
जलवायुपरिवर्तन के कारण होने वाले दुष्प्रभावों के विषय में जो भयानक भविष्यवाणियाँ की जा रही हैं वे चिंता पैदा करने वाली हैं इसलिए इन्हें हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए किंतु ऐसे विषयों में इतनी जिम्मेदारी अवश्य निभाई जानी चाहिए कि अनुसंधान पूर्वक इस बात का पता लगाया जाना चाहिए कि उन लोगों के द्वारा ऐसी किस कालखंड में कितने प्रतिशत सच हो सकती हैं |
इस विषय में संतोष की बात केवल इतनी है कि जलवायुपरिवर्तन से संबंधित ऐसी भविष्यवाणियाँ करने वाले वही लोग हैं जो दो चार दिन पहले की मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ या तो कर नहीं पाते हैं और यदि करते भी हैं तो गलत निकल जाती हैं |वही लोग जलवायुपरिवर्तनसे संबंधित पूर्वानुमान बताते देखे जा रहे हैं
ऐसी परिस्थिति में जिनके द्वारा की जाने वाली दो चार दिन पहले की भविष्यवाणियाँ गलत हो जाती हैं वही मौसम भविष्य वक्ता लोग हीआज के सैकड़ों हजारों वर्ष बाद में घटित होने वाली घटनाओं के विषय में भविष्यवाणियाँ करते देखे जा रहे हैं |इसलिए अधिक चिंता करने की बात नहीं है |
बिचारणीय बात यह है कि जो वर्षा बाढ़ एवं आँधी तूफानों के विषय की सही एवं सटीक भविष्यवाणियाँ दो चार दिन पहले नहीं कर पाते हैं करते हैं तो कितने हिचकोले खा रहे होते हैं कितने बार उन्हें रिपीट करते हैं कितने बार उनमें संशोधन करते हैं फिर भी वे गलत निकल जाती हैं दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान सही नहीं हो पाता है ! मानसून आने जाने का पूर्वानुमान लगा पाने में असफल रहने के कारण ऐसे लोग अब मानसून आने जाने की तारीखें आगे पीछे करके प्रतिष्ठा बचाने की कोशिश करते देखे जा रहे हैं |
ऐसे लोग
ग्लोबलवार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव बताने के नाम पर आज से सौ सौ
दो दो सौ वर्ष बाद में घटित होने वाली प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित
अफवाहें फैलाते देखे जा रहे हैं उन्हें लगता है कि तब तो हम होंगे नहीं
इसलिए तब तो हमारी जवाबदेही बिलकुल नहीं रहेगी !
कुलमिलाकर ऐसी
निरर्थक बातें बता बताकर अनुसंधान के नाम पर हम अपना समय ऊर्जा एवं संसाधन
निरर्थक बर्बाद करते जा रहे हैं ऐसी बातों पर विश्वास करने का औचित्य भी
क्या है |
सृष्टि जब से बनी है तबसे यही सब होता चला आ रहा है मौसम संबंधी ढुलमुल भविष्यवाणियों के किए जाने पर भी मौसम भविष्यवक्ताओं के लिए प्रतिष्ठा बचाने में बहुत मददगार सिद्ध होते हैं ग्लोबलवार्मिंग या जलवायुपरिवर्तन जैसे काल्पनिकशब्द !
सृष्टि जब से बनी है तबसे यही सब होता चला आ रहा है मौसम संबंधी ढुलमुल भविष्यवाणियों के किए जाने पर भी मौसम भविष्यवक्ताओं के लिए प्रतिष्ठा बचाने में बहुत मददगार सिद्ध होते हैं ग्लोबलवार्मिंग या जलवायुपरिवर्तन जैसे काल्पनिकशब्द !
जिनका कोई आस्तित्व नहीं है इनमें कोई सच्चाई नहीं है जिन्हें हम
प्रमाणित नहीं कर सकते हैं !अतिशीघ्र सच्चाई सामने आते ही ये सब बहुत
जल्दी सबको समझ में आ जाएगा ! ये आशंकाएँ हमारी निराधार थीं |
फिर
भी सूखा वर्षा बाढ़ या आँधी तूफ़ान जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने के लिए
प्रयास किए जा रहे हैं जिसे अच्छे प्रयास के रूप में देखा जाना चाहिए |
इसके लिए शहर शहर गाँव गाँव घर घर में भी मौसम संबंधी घटनाओं पर अनुसंधान
करने के नाम पर चित्र लेने के लिए उस प्रकार के यंत्र लगाए जा रहे हैं ये
भी उत्तम प्रयास है | ऐसे प्रयासों से जिन प्राकृतिक घटनाओं का निर्माण हो
चुका है वे तो देखी जा सकती हैं उनके विषय में अंदाजा भी लगाया जा सकता है
किंतु उन वर्षा बाढ़ या आँधी तूफ़ान जैसी घटनाओं का निर्माण कब तथा प्रकृति
की किस प्रकार की परिस्थतियों में होता है|वर्षा बाढ़ या आँधी तूफ़ान आदि
किस प्रकार की प्राकृतिक घटना घटित होने से पहले प्रकृति के किन किन
तत्वों में किस किस प्रकार के परिवर्तन होते देखे जाते हैं और ऐसे
परिवर्तन होने का कारण क्या होता है इस प्रकार की मौसमसंबंधी प्राकृतिक
घटनाओं का निर्माण करने वाली शक्तियों पर पर्याप्त अनुसंधान न होने के कारण
प्राकृतिकघटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगा पाना अभीतक असंभव सा ही बना
हुआ है |
ऐसी परिस्थिति में उपग्रहों रडारों के सहयोग से संभावित प्राकृतिकघटनाओं
के विषय में कुछ अंदाजा जरूर लगा लिया जाता है कुछ तीर तुक्के कभी कभी सही
भी हो जाते हैं किंतु अधिक नहीं !इसका कारण है वर्षा या आँधी तूफ़ान जैसी
घटनाएँ जब जहाँ बनती हैं उनके निर्माण के बाद उन्हें उपग्रहों रडारों आदि
से देखकर उनकी दिशा एवं गति के हिसाब से ये अंदाजा लगा लेना कि ये किस किस
दिन किस किस देश या शहर आदि में पहुँच सकती हैं यही अनुमान यदि ऐसी
घटनाओं के निर्माण से पूर्व लगा लिया जाए कि उस महीने दिनों आदि में वर्षा
बाढ़ या आँधी तूफ़ान जैसी घटनाएँ घटित हो सकती हैं तब तो इसे पूर्वानुमान
माना जा सकता है अन्यथा नहीं |
उपग्रहों रडारों आदि से देखकर उनकी दिशा एवं गति के हिसाब से लगाया गया अंदाजा के सही होने की संभावनाएँ अत्यंत कम इसलिए होती हैं क्योंकि वायु का रुख कभी स्थायी नहीं होता है वो कभी भी बदल सकता है तो प्राकृतिकघटनाओं से संबंधित अंदाजा भी गलत हो जाता है |
वर्षा या आँधी तूफ़ान जैसी प्राकृतिक घटनाओं का निर्माण कई बार समुद्र के सुदूर क्षेत्रों में होता है ऐसे समय में उपग्रहों रडारों के सहयोग से प्राप्त होने वाली जानकारी उससे होने वाली जन धन संबंधी हानि को कम कर देने में बहुत सहायक होती है क्योंकि बचाव कार्यों के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है किंतु जब ऐसी घटनाएँ समुद्र में बहुत नजदीकी क्षेत्रों में निर्मित होती हैं तब इनका अंदाजा लग पाने के बाद बचाव कार्यों के लिए समय बहुत कम बच पाता है |
मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा की जाने वाली भविष्यवाणियाँ जब जब गलत
होती हैं या कुछ कुछ प्राकृतिक घटनाएँ ऐसी अचानक घटित हो जाती हैं जिनके
पूर्वानुमान लगाने के नाम पर मौसम भविष्य वक्त लोग चूक जाते हैं और ऐसी
घटनाएँ अचानक घटित हो जाती हैं तो वे जलवायु परिवर्तन का नाम ले लिया करते
हैं !उपग्रहों रडारों आदि से देखकर उनकी दिशा एवं गति के हिसाब से लगाया गया अंदाजा के सही होने की संभावनाएँ अत्यंत कम इसलिए होती हैं क्योंकि वायु का रुख कभी स्थायी नहीं होता है वो कभी भी बदल सकता है तो प्राकृतिकघटनाओं से संबंधित अंदाजा भी गलत हो जाता है |
वर्षा या आँधी तूफ़ान जैसी प्राकृतिक घटनाओं का निर्माण कई बार समुद्र के सुदूर क्षेत्रों में होता है ऐसे समय में उपग्रहों रडारों के सहयोग से प्राप्त होने वाली जानकारी उससे होने वाली जन धन संबंधी हानि को कम कर देने में बहुत सहायक होती है क्योंकि बचाव कार्यों के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है किंतु जब ऐसी घटनाएँ समुद्र में बहुत नजदीकी क्षेत्रों में निर्मित होती हैं तब इनका अंदाजा लग पाने के बाद बचाव कार्यों के लिए समय बहुत कम बच पाता है |
में गलत होती रहती हैं उनके लिए ग्लोबलवार्मिंग एवं जलवायुपरिवर्तन को कारण के रूप में बताया जाता रहता है किंतु यदि ऐसा है तो ये बातें तो सभी प्रकार के पूर्वानुमानों पर लागू होंगी और मौसम संबंधी सभी प्रकार की घटनाओं से संबंधित पूर्वानुमान जलवायुपरिवर्तन के प्रभाव से गलत हो सकते हैं |
ऐसी परिस्थिति में जलवायुपरिवर्तन जब मौसमसंबंधी घटनाओं पर इतना बड़ा असर डालता है तब तो जलवायुपरिवर्तन के मौसम पर पड़ने वाले प्रभाव को समझे बिना मौसम संबंधी घटनाओं का सही पूर्वानुमान लगाने की कल्पना भी कैसे की जा सकती है |
फिर पूर्वानुमान लगाने का दिखावा क्यों किया जाता है जब इसका कोई विज्ञान खोजा ही नहीं जा सका है | सही
जलवायुपरिवर्तन -
जलवायुपरिवर्तन के विषय में कुछ काल्पनिक बातों को छोड़कर यदि गंभीरता पूर्वक वैज्ञानिक तथ्य खोजे जाएँ तो कभी कोई ऐसा वैज्ञानिकशोध देखने को नहीं मिला जिसके आधार पर ये समझा जा सके कि जलवायु परिवर्तन क्या है?जलवायु परिवर्तन होना प्रारंभ कब से हुआ था |प्रकृति में ऐसा परिवर्तन अपनी निर्धारित गति से क्रमिक रूप में हमेंशा से एक जैसा ही होता चला आ रहा है या इसके होने की गति और क्रम आदि की दृष्टि से अलग अलग कालखंडों में कुछ अंतर होते देखा जा रहा है | जलवायु परिवर्तन के लक्षण क्या हैं और इसके कारण प्रकृति और जीवन में किसी एक प्रकार की घटनाएँ घटित होने की संभावना होती है या परंपरा से हटकर जो भी घटनाएँ घटित होती हैं उन सबका कारण जलवायु परिवर्तन को मान लिया जाता है | अनुभव में ऐसा देखा जाता है कि मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा जिन घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने में चूक हो जाती है और नहीं लगा पाते हैं या सही सही नहीं लगा पाते हैं या उनके द्वारा लगाए गए प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित पूर्वानुमान गलत हो जाते हैं ऐसा होने के लिए प्रकृति की जिस परिस्थिति को जिम्मेदार मान लिया जाता है प्रकृति की उस अवस्था को ही जलवायु परिवर्तन के नाम से जाना जाता है | मानव स्वभाव से ही यह जिज्ञासा होना स्वाभाविक ही है कि जलवायु परिवर्तन आखिर क्या है?
वर्तमान समय में यदि यह कहा जा रहा है कि भविष्य में इतने सौ या हजार वर्षों के बाद इस इस प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ या आपदाएँ घटित होने लगेंगी या जीवन में ऐसे ऐसे बदलाव या दुष्प्रभाव देखने को मिलेंगे तो वैज्ञानिक प्रमाणों के आधार पर इस बात को भी बताया जाना चाहिए कि अतीत अर्थात बीते उतने ही सौ या हजार वर्ष पहले से आज तक ऐसे बदलाव हुए क्या क्या हैं जिन्हें उसी दिशा में बढ़ते हुए भविष्य में इतना भयानक होते देखा जा रहा है |
बताया जाता है कि जलवायु परिवर्तन सुदीर्घ कालखंड में घटित हुई पूर्वापर घटनाओं का अनुसंधान करने से अनुभव किया जा सकता है | ऐसी परिस्थिति में इसको समझने के लिए किसी लंबे कालखंड का इस दृष्टि से अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है |
इसके लिए प्रयोग रूप में सौ दो सौ या हजार दो हजार वर्ष के किसी निश्चित कालखंड को उदाहरण स्वरूप लिया जाए और समय के धरातल पर एक ऐसी रेखा खींची जाए जो उस कालखंड के आरंभ और अंत के विंदुओं को एक दूसरे से तो मिलाती ही हो इसके साथ ही साथ वह वर्तमान का भी स्पर्श करती जा रही हो | आरंभ अंत और वर्तमान के तीनों बिंदुओं को सामने रखकर उनके आधार पर जलवायु परिवर्तन संबंधी अध्ययन किया जा सकता है |
जलवायुपरिवर्तन के दुष्परिणाम स्वरूप भविष्य में जो बड़ी बड़ी दुर्घटनाएँ घटित होने की बात कही जा रही है उसका अनुमानित कालखंड निर्धारित किया जाए कि लगभग कितने सौ या हजार वर्ष बाद में ऐसी प्राकृतिक दुर्घटनाएँ घटित होने की संभावना है आज से उतने ही सौ या हजार वर्ष पूर्व से अब तक घटित हुई प्राकृतिक घटनाओं को भी सामने रखकर सोचा जाए कि आज के हजार वर्ष बाद में यदि ऐसी ऐसी प्राकृतिक घटनाएँ घटित होने की संभावना है तो आज के उतने ही वर्ष पूर्व की प्रकृति में ऐसा क्या क्या घटित हुआ करता था जो आज नहीं घटित हो रहा है और दूसरी बात तब ऐसा क्या क्या नहीं घटित हुआ करता था जो आज होने लगा है | यदि सुदूर अतीत से वर्तमान समय तक ऐसी कुछ घटनाओं के उदाहरण मिल जाते हैं तब तो उसके आधार पर लगाया गया भविष्य संबंधी पूर्वानुमान सही माना जाना चाहिए | यदि ऐसा नहीं होता है तो जलवायु परिवर्तन जैसी निरर्थक कल्पनाओं के भय से भयभीत होना विज्ञान सम्मत नहीं है |
इन तीनों विन्दुओं का मिलान करके देखा जाना चाहिए कि भविष्य में ऐसा क्या होने की संभावना है जो वर्तमान में नहीं हो रहा है और जो वर्तमान में हो रहा है उसमें ऐसा नया क्या है जो उतने ही वर्ष पूर्व अतीत में होते नहीं देखा जा रहा था | जीवन और प्रकृति के किस किस क्षेत्र में कितना बदलाव हुआ है कितने पहले ऐसा क्या हुआ करता था जो अब नहीं होने लगा है या फिर कितने पहले ऐसा क्या नहीं हुआ करता था जो अब होने लगा है जिसके कारण जलवायु परिवर्तन होने संबंधी आशंका होने लगी है इन परिस्थितियों को ध्यान में रखकर ही जलवायुपरिवर्तन जैसी किसी आशंका के विषय में कोई निष्कर्ष निकालना उचित होगा |
दूसरी बात जलवायु परिवर्तन प्रकृति और जीवन के लिए कितना अच्छा और कितना बुरा है या इसके परिणाम अच्छे हो ही नहीं सकते हैं केवल बुरे ही होंगे अथवा इसके दुष्परिणामों से भविष्य में प्रकृति और जीवन दोनों के ही किस किस प्रकार से कितना प्रभावित होने की संभावना है |
मौसमविज्ञान का सारांश !
मौसमसंबंधी पूर्वानुमान लगाने की दो प्रमुख विधाएँ हैं एक वेदविज्ञान के
आधार पर मौसम पूर्वानुमान लगाया जाता है तो दूसरा बाइबल के आधार पर
पूर्वानुमान लगाया जाता है |वेदविज्ञान मौसमसंबंधी पूर्वानुमान लगाने की
दृष्टि से अत्यंत प्राचीन प्रक्रिया है !
वेदविज्ञान के आधार पर महीनों वर्षों पहले के प्राकृतिक लक्षणों को देखकर
उसके अनुसार या फिर गणित के आधार पर पूर्वानुमान लगा लिया जाता है यह गणित
के आधार पर लगाया जाने वाला मौसम संबंधी पूर्वानुमान ग्रहण की तरह ही
सैकड़ों वर्ष
पहले भी लगाया जा सकता है जो सही एवं सटीक
निकलता है |
बाइबल में मौसमसंबंधी पूर्वानुमान लगाने का
जो वर्णन मिलता है इसके अनुशार बाइबल के ज़माने में आँखों को जो नज़र आता
था, उसी से मौसम का अनुमान लगाया जाता था। (मत्ती 16:2,3)
आधुनिक मौसम पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया बाइबल की इसी दृष्टि का अनुगमन करती है जो दिखेगा वो माना जाएगा | किसी ट्रेन की गति देखकर ये अंदाजा लगा लेना कि ये किस समय कहाँ पहुँचेगी |ऐसे ही नहर में छोड़े गए पानी या नदी में आने वाली बाढ़ के पानी को देखकर यह अंदाजा लगा लेना कि यह पानी किस दिन कहाँ पहुँचेगा उसी तरह की आधुनिक विज्ञान के द्वारा मौसम पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया है |
बाइबिल के मत से बादल आँधी तूफ़ान आदि की घटनाएँ एक जगह घटित होते देखकर उनकी गति और दिशा का अंदाजा लगा लेने मात्र को भविष्यवाणी मान लिया जाता है| बादल आँधी तूफ़ान आदि की घटनाएँ देखने के लिए यंत्रों की आवश्यकता पड़ी तो दो ढाई सौ वर्ष पूर्व ऐसे यंत्रों का निर्माण किया गया |यंत्रों से प्राप्त जानकारी सुरक्षित रखने के लिए बीसवीं शती के उत्तरार्ध में कम्प्यूटर का इस्तेमाल प्रारंभ हुआ | कुछ ज़रूरी यंत्रों से वायु दाब, तापमान, नमी और हवा को मापा जाता है।
इस समय मौसम कैसा है यह जानना काफी आसान है। लेकिन, इसकी तुलना में अगले घंटे, दिन या सप्ताह का मौसम कैसा होगा इसका अनुमान लगाना इतना आसान नहीं है।
द वर्ल्ड बुक इंसाइक्लोपीडिया कहती है, “जो फार्मूले कंप्यूटर इस्तेमाल करते हैं वे वायुमंडल की स्थिति के बारे में सिर्फ अंदाज़े हैं।”इसे वास्तविकता समझने की भूल नहीं की जानी चाहिए |
भारत का प्राचीन मौसम विज्ञान
भारत में मौसम विज्ञान का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है।उसी के आधार पर मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ सफलता पूर्वक की जाती रही हैं |इसमें प्राकृतिक लक्षणों और गणित के आधार पर भविष्यवाणियाँ की जाती थीं जो सही सटीक घटित होती थीं | वेदों उपनिषदों दार्शनिक विवेचनों में बादलों के गठन और बारिश के विषय में वर्णन मिलता है पृथ्वी सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती है ऋतुचक्र की प्रक्रिया के बारे में गंभीर चर्चा की गई है !500 ईस्वी के लगभग वाराहमिहिर द्वारा निर्मित वृहद्संहिता इस बात का सुपुष्ट प्रमाण है कि वायु मंडलीय प्रक्रियाओं का गहरा ज्ञान उस समय भी आस्तित्व में था !कहा गया है - आदित्याज्जायते वृष्टिः अर्थात सूर्य से वर्षा का निर्माण होता है | कौटिल्य के अर्थशास्त्र में देश के राजस्व और राहत कार्य के लिए वर्षा के वैज्ञानिक मापन और उसके उपयोग की सूची सम्मिलित है ! सातवीं शताब्दी के आसपास कालिदास ने अपने महाकाव्य 'मेघदूत' के माध्यम से भारत के मध्य भाग में मानसून आने के समय का संकेत किया है एवं बादलों के मार्ग का भी वर्णन किया है !1753 में महान मौसम वैज्ञानिक महाकवि 'घाघ' हुए जिनके द्वारा की गई भविष्यवाणियों से प्रभावित जन जन की जबान पर घाघ की कहावतें विद्यमान हैं |कुलमिलाकर भारत में मौसम विज्ञान की शुरुआत अत्यंत प्राचीन काल में हो गई थी |
विदेशों में भी यंत्रों के बिना ही मौसमसंबंधी पूर्वानुमान लगाए जाते थे !
उस समय विदेशी विद्वान भी बिना यंत्रों के ही मौसमसंबंधी घटनाओं का पूर्वानुमान सफलता पूर्वक लगाया करते थे | विदेशी विद्वानों में भी 350 ईसा पूर्व में अरस्तु ने मौसम विज्ञान पर लिखा था।15अक्टूबर 1987 को ब्रिटेन में एक औरत ने एक टी.वी. स्टेशन को बताया कि उसने सुना है कि तूफान आ रहा है। लेकिन मौसम का अनुमान लगानेवाले ने अपने दर्शकों को पूरा भरोसा दिलाया: “चिंता मत कीजिए। कोई तूफान नहीं आनेवाला है।” मगर उसी रात को दक्षिणी इंग्लैंड पर ऐसा भयंकर तूफान आया जिससे भारी जनधन की हानि हुई |
ब्रिटेन के मौसम-विज्ञानी लूइस रिचर्डसन ने सोचा चूँकि वायुमंडल भौतिक नियमों पर आधारित है, तो क्यों न वह मौसम का अनुमान लगाने में गणित का इस्तेमाल करे। लेकिन गणित के फार्मूले इतने पेचीदा थे और हिसाब करने में इतना समय ज़ाया होता था |इसलिए उनकी वो प्रक्रिया प्रचलन में नहीं आ सकी !किंतु गणित से मौसम पूर्वानुमान लगाया जा सकता है ऐसा वे भी मानते थे |
स्वदेश से लेकर विदेश तक जिस प्रक्रिया के द्वारा हजारों वर्षों तक मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाए जाते रहे और समाज उससे संतुष्ट भी था यदि ऐसा न होता तो मध्य भारत में घाघभंडरी की कहावतें आज जन जन की वाणी पर नहीं होतीं !वे अनुभव आज भी उनके काम आया करते हैं |वो मौसम संबंधी अत्यंत प्राचीन प्रक्रिया जो अब तक प्रचलित रही वो अचानक गलत कैसे हो गई !
कुल मिलाकर भारतवर्ष में ऋषियों मुनियों ने सदियों पहले ही वो ज्ञान अर्जित कर लिया था जिससे मौसम के बारे में सटीक भविष्यवाणी की जाती रही है जिन दिनों योरोप ने मौसम विज्ञान की ओर पहला कदम भी नहीं बढ़ाया था जब अमेरिका में विज्ञान का कोई नाम लेवा भी नहीं था तब ही घाघ जैसे मौसम वैज्ञानिक ने संसार के सर्वाधिक विश्वसनीय और प्रामाणिक वर्षा वेत्ता की ख्याति अर्जित कर ली थी वे सटीक एवं अचूक भविष्यवाणी किया करते थे |
प्राचीन ऋषियों की विशेषता एक और थी जब कोई प्राकृतिक घटना क्रम से अलग घटित होती थी तो उसका पूर्वानुमान लगाना भी वे आवश्यक समझा करते थे इसलिए उसके विषय में भी अनुसंधान पूर्वक न केवल पूर्वानुमानलगाते थे अपितु वैसा होने के पीछे के कारण खोजकर उस घटना को भी नियमबद्ध कर दिया करते थे |
प्रकृति में चंद्रमा का थोड़ा थोड़ा घटना या बढ़ना रहा हो या सूर्य चंद्र ग्रहण की घटनाएँ या फिर समुद्र में उठने वाला ज्वार भाँटा हो ये घटनाएँ प्रतिदिन नहीं घटित होती हैं कभी कभी घटित होने के बाद भी उन्होंने अनुसंधान पूर्वक इस बात की खोज कर ली कि ये कब कब किन किन तिथियों में घटित होती हैं | ज्वार भाँटा प्रत्येक अमावस्या पूर्णिमा को भले घटित होता हो किंतु ग्रहण अमावस्या पूर्णिमा में घटित होने के बाद भी प्रत्येक अमावस्या पूर्णिमा में नहीं घटित होते कभी कभी घटित होते हैं उनका पूर्वानुमान लगाने में एवं ऐसी घटनाओं को भी गणित बढ़ करने में उन्होंने अनुसंधान पूर्वक सफलता प्राप्त की थी |
आधुनिक मौसम विज्ञान में भी यदि वैज्ञानिकता का थोड़ा भी अंश होता तो भूकंपों के घटित होने के कारण और पूर्वानुमान खोजकर उन्हें भी नियमबद्ध या गणितबद्ध करने के विषय में कोई न कोई सफल अनुसंधान हो चुका होता इसके साथ ही अलनीनो ,लानीना, जलवायुपरिवर्तन ,ग्लोबल वार्मिंग एवं वायु प्रदूषण के होने न होने या बढ़ने घटने के विषय में खोज की जा चुकी होती एवं मौसम पर पड़ने वाले इनके प्रभाव के विषय में अब तक कोई न कोई सफल अनुसंधान कर लिया गया होता !कब अर्थात किस वर्ष ऐसी घटनाएँ घटित होंगी कब नहीं घटित होंगी आदि के पूर्वानुमान लगाने की विधि खोज ली गई होती उसे नियमबद्ध या गणितबद्ध कर दिया गया होता ताकि भावी पीढ़ियों को वर्तमान समय की तरह भ्रम की स्थिति से नहीं जूझना पड़ता |
आधुनिक मौसम विज्ञान की पूर्वानुमान क्षमता !
उन दिनों मौसम का पूर्वानुमान लगाने के लिए अत्याधुनिक मशीनें नहीं थीं फिर भी महाकवि घाघ ने प्रकृति के कार्य में हस्तक्षेप के बिना प्रकृति को पढ़ने की व्यवस्था खोज ली थी |इसप्रकार से अपने देश में ही मानसून की चाल को सही सही पढ़ने वाला विज्ञान विद्यमान है फिर भी भारत में इन दिनों पाश्चात्य जगत के विज्ञान का अंधानुशरण हो रहा है मानसून के मन में क्या है इसे जानने के लिए अमेरिका और ब्रिटेन में बनी मशीनों का उपयोग हो रहा है |
इसके आधार पर मूसलाधार बारिश का अनुमान लगाया जाता है तब बूंदाबांदी होकर निकलजाता है कई बार बूँदा बाँदी की भविष्यवाणी की जाती है और मूसलाधार बारिश हो जाती है | कई बार आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणी की जाती है किंतु हवा का एक झोंका भी नहीं आता है कई बार बिना किसी भविष्यवाणी के ही भीषण आँधी तूफ़ान आ जाता है |
निकट समय में घटित हुई ऐसी ही कुछ प्राकृतिक घटनाएँ -
ये भूकंप जैसी उस प्रकार की घटनाएँ नहीं हैं जिनके विषय में विश्व वैज्ञानिकों ने पहले से कह रखा है कि हम पूर्वानुमान लगाने में असमर्थ हैं अपितु ये उस प्रकार की वर्षा आँधी तूफ़ान आदि से संबंधित घटनाएँ हैं जिनके विषय में पूर्वानुमान लगा लेने का दावा किया जाता है फिर भी इनके विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका !यदि इनके विषय में कोई विज्ञान विकसित किया जा सका होता तो संभवतः ऐसा नहीं होता !आप स्वयं देखिए -
आधुनिक मौसम पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया बाइबल की इसी दृष्टि का अनुगमन करती है जो दिखेगा वो माना जाएगा | किसी ट्रेन की गति देखकर ये अंदाजा लगा लेना कि ये किस समय कहाँ पहुँचेगी |ऐसे ही नहर में छोड़े गए पानी या नदी में आने वाली बाढ़ के पानी को देखकर यह अंदाजा लगा लेना कि यह पानी किस दिन कहाँ पहुँचेगा उसी तरह की आधुनिक विज्ञान के द्वारा मौसम पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया है |
बाइबिल के मत से बादल आँधी तूफ़ान आदि की घटनाएँ एक जगह घटित होते देखकर उनकी गति और दिशा का अंदाजा लगा लेने मात्र को भविष्यवाणी मान लिया जाता है| बादल आँधी तूफ़ान आदि की घटनाएँ देखने के लिए यंत्रों की आवश्यकता पड़ी तो दो ढाई सौ वर्ष पूर्व ऐसे यंत्रों का निर्माण किया गया |यंत्रों से प्राप्त जानकारी सुरक्षित रखने के लिए बीसवीं शती के उत्तरार्ध में कम्प्यूटर का इस्तेमाल प्रारंभ हुआ | कुछ ज़रूरी यंत्रों से वायु दाब, तापमान, नमी और हवा को मापा जाता है।
इस समय मौसम कैसा है यह जानना काफी आसान है। लेकिन, इसकी तुलना में अगले घंटे, दिन या सप्ताह का मौसम कैसा होगा इसका अनुमान लगाना इतना आसान नहीं है।
द वर्ल्ड बुक इंसाइक्लोपीडिया कहती है, “जो फार्मूले कंप्यूटर इस्तेमाल करते हैं वे वायुमंडल की स्थिति के बारे में सिर्फ अंदाज़े हैं।”इसे वास्तविकता समझने की भूल नहीं की जानी चाहिए |
संभवतः इसीलिए इस बाइबल पद्धति से की जाने वाली मौसम संबंधी अधिकाँश
भविष्यवाणियाँ गलत होते देखी जाती हैं | इसीलिए प्राकृतिक आपदाओं का
पूर्वानुमान लगा पाना अभी तक असंभव बना हुआ है | वैज्ञानिक न इनके कारण बता
पाते हैं और न ही पूर्वानुमान !एक आध तीर तुक्कों को छोड़ दिया जाए तो इस
प्रक्रिया में मौसम पूर्वानुमान के लिए कुछ भी नहीं है या यूँ कह लिया जाए
कि आधुनिक मौसम विज्ञान पद्धति में विज्ञान का एक छोटा से छोटा अंश भी नहीं
है |
अब बाद वेद विज्ञान की इसके आधार पर जो मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाया जाता है इस प्रक्रिया में जो दिखाई पड़ता है उसके विषय में तो पूर्वानुमान लगाया ही जाता है जो नहीं दिखाई पड़ता है उसका भी पूर्वानुमान लगा लिया जाता है वो विशुद्ध वैज्ञानिक प्रक्रिया है वो आज भी सही एवं सटीक घटित हो रहा है | ग्रहण संबंधी सौ वर्ष पूर्व का पूर्वानुमान लगाते समय उस समय की संभावित सूर्य चंद्र पृथ्वी आदि की परिस्थिति देख पाना बिल्कुल संभव नहीं होता है इसके बाद भी इसके बाद भी ग्रहण संबंधी पूर्वानुमान सही एवं सटीक निकलते हैं |
भारत सरकार का मौसमविज्ञान विभाग वेद विज्ञान को विज्ञान मानता ही नहीं है जबकि उसकी अपनी अधिकाँश भविष्यवाणियाँ गलत निकल जाती हैं |
आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से मौसम पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया में चूँकि भविष्य झाँकने की कोई विधि ही नहीं है और किसी भी घटना का पूर्वानुमान जानने के लिए भविष्य विज्ञान एक मात्र विकल्प है !इसके बिना आधुनिक विज्ञान के द्वारा भविष्य के विषय में किसी भी घटना का पूर्वानुमान लगा पाना संभव ही नहीं है |
अभाव में मौसमसंबंधी समाचारों को ही मौसमसंबंधी भविष्यवाणी कहा जाने लगा है !
आधुनिक विज्ञान प्रक्रिया में तो केवल मौसमसंबंधी समाचार बाचन किया जाता है | जिसमें अन्य समाचारों की तरह ही आशंकाएँ संभावनाएँ व्यक्त करते सुना जाता है जिनके गलत होने के बाद भी उनकी किसी के प्रति कोई जवाबदेही नहीं होती है |
राजनैतिक या सामाजिक समाचारों की प्रक्रिया भी तो यही है कि वहाँ ऐसा ऐसा हुआ है और यदि वहाँ ऐसा हो रहा है तो यहाँ भी ऐसा होने की संभावना या आशंका है | यहाँ सांप्रदायिक दंगा भड़का है तो ये पूरे देश में फैल सकता है | इस वर्ष महँगाई बढ़ सकती है | मद्यावधि चुनाव हो सकते हैं !इस पार्टी की सरकार बन सकती है | उस पार्टी में फूट पड़ने की आशंका है एक नया गठबंधन तैयार होने की आशंका है | आगामी सत्र में सरकार इस प्रकार का बिल ला सकती है !इस व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है |
ऐसी आशंकाओं संभावनाओं को यदि राजनीति और समाज में भविष्यवाणी नहीं माना जाता है तो मौसम के क्षेत्र में ऐसे समाचारों को भविष्यवाणी कैसे माना जा सकता है जिनका कोई आधार या अनुसंधान प्रक्रिया ही न हो किसी की जवाबदेही न हो केवल आशंकाओं संभावनाओं की भरमार हो |
इस वर्ष सर्दी ने इतने वर्ष का रिकार्ड तोड़ा गर्मी ने उतने वर्ष का और वर्षा ने इतने दशकों का तोड़ा !यहाँ इतने सेंटीमीटर बारिश हुई वहाँ इस नाम का तूफ़ान आया | तीन दिनों तक वर्षा हो सकती है उसके बाद कह दिया जाता है दो दिनों तक और वर्षा हो सकती है इसके बाद फिर कह दिया जाता है तीन दिन और वर्षा हो सकती है जैसी जय वर्षा आँधी तूफ़ान आदि होने की घटनाएँ घटित होते जाते हैं वैसी वैसी आशंकाएँ संभावनाएँ आदि व्यक्त करते जाते हैं ऐसी मौसमी भविष्यवाणियों और राजनैतिक समाचारों में क्या अंतर है |
वर्षा अधिक हो सकती है या गर्मी अधिक पड़ने की संभावना है या सर्दी कम या अधिक पड़ने की आशंका या संभावना है ऐसी भविष्यवाणियाँ करने वालों की न तो कोई जवाबदेही होती है और न ही इनके गलत हो जाने के बाद उनसे जवाब भी नहीं माँगा जा सकता कि ये गलत क्यों हो गईं !यदि जवाब माँगा भी जाए तो जवाब दिया भी क्या जाएगा जब ऐसी भविष्यवाणियों का कोई आधार ही नहीं है |यदि आधार हो तब भविष्यवाणियों के गलत होने पर त्रुटियाँ खोजी जा सकती हैं कि आखिर हमसे गलती कहाँ छूट गई है किंतु आधार विहीन भविष्यवाणियों के गलत होने पर केवल यह कह दिया जाएगा कि इसमें रिसर्च की आवश्यकता है !ऐसे समय बरका देने के अतिरिक्त और दूसरा विकल्प बचता भी क्या है ?
राजनैतिक भविष्यवाणियों में जिस प्रकार से कुछ लक्षणों संकेतों संपर्कों के आधार पर राजनीति के बनते बिगड़ते समीकरणों के विषय में आवश्यकताएँ संभावनाएँ आदि व्यक्त की जाती हैं ऐसा हो सकता है वैसा होने की आशंका है सरकार बनने की संभावना है किंतु राजनीति में कई बार कुछ घटनाएँ अचानक घटित हो जाती हैं जो क्रमिक प्रक्रिया में नहीं होती हैं इसलिए उनके विषय में किसी को कानोकान कोई खबर नहीं होती है | इसलिए ऐसी ख़बरों के विषय में कोई आशंका संभावना आदि व्यक्त करना संभव नहीं होता है | बिना किसी सुगबुगाहट के किसी सरकार के गिरने की घोषणा हो जाए या बन जाए तो राजनैतिक पत्रकारों या भविष्य वक्ताओं के पास कोई जवाब नहीं होता है वे केवल आश्चर्य प्रकट कर रहे होते हैं |
राजनैतिक भविष्यवाणियों की तरह ही मौसम के क्षेत्र में जब ऐसी कोई प्राकृतिक घटनाएँ अचानक घटित होने लगती हैं जो क्रम से अलग हटकर होती हैं इसीलिए उनके विषय में भी आशंका संभावना आदि व्यक्त करना संभव नहीं होता है तो ऐसी घटनाओं को आधुनिक मौसमविज्ञान की भाषा में अप्रत्याशित बता दिया जाता है और ऐसा होने का कारण जलवायु परिवर्तन बता दिया जाता है |
कुलमिलाकर ये राजनैतिक समाचारों की तरह ही मौसमसंबंधी समाचार ही हैं जिन्हें मौसम पूर्वानुमान या भविष्यवाणियों के नाम पर परोसा जाता है और समाज को स्वीकार करना पड़ता है |
अब बाद वेद विज्ञान की इसके आधार पर जो मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाया जाता है इस प्रक्रिया में जो दिखाई पड़ता है उसके विषय में तो पूर्वानुमान लगाया ही जाता है जो नहीं दिखाई पड़ता है उसका भी पूर्वानुमान लगा लिया जाता है वो विशुद्ध वैज्ञानिक प्रक्रिया है वो आज भी सही एवं सटीक घटित हो रहा है | ग्रहण संबंधी सौ वर्ष पूर्व का पूर्वानुमान लगाते समय उस समय की संभावित सूर्य चंद्र पृथ्वी आदि की परिस्थिति देख पाना बिल्कुल संभव नहीं होता है इसके बाद भी इसके बाद भी ग्रहण संबंधी पूर्वानुमान सही एवं सटीक निकलते हैं |
भारत सरकार का मौसमविज्ञान विभाग वेद विज्ञान को विज्ञान मानता ही नहीं है जबकि उसकी अपनी अधिकाँश भविष्यवाणियाँ गलत निकल जाती हैं |
आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से मौसम पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया में चूँकि भविष्य झाँकने की कोई विधि ही नहीं है और किसी भी घटना का पूर्वानुमान जानने के लिए भविष्य विज्ञान एक मात्र विकल्प है !इसके बिना आधुनिक विज्ञान के द्वारा भविष्य के विषय में किसी भी घटना का पूर्वानुमान लगा पाना संभव ही नहीं है |
अभाव में मौसमसंबंधी समाचारों को ही मौसमसंबंधी भविष्यवाणी कहा जाने लगा है !
आधुनिक विज्ञान प्रक्रिया में तो केवल मौसमसंबंधी समाचार बाचन किया जाता है | जिसमें अन्य समाचारों की तरह ही आशंकाएँ संभावनाएँ व्यक्त करते सुना जाता है जिनके गलत होने के बाद भी उनकी किसी के प्रति कोई जवाबदेही नहीं होती है |
राजनैतिक या सामाजिक समाचारों की प्रक्रिया भी तो यही है कि वहाँ ऐसा ऐसा हुआ है और यदि वहाँ ऐसा हो रहा है तो यहाँ भी ऐसा होने की संभावना या आशंका है | यहाँ सांप्रदायिक दंगा भड़का है तो ये पूरे देश में फैल सकता है | इस वर्ष महँगाई बढ़ सकती है | मद्यावधि चुनाव हो सकते हैं !इस पार्टी की सरकार बन सकती है | उस पार्टी में फूट पड़ने की आशंका है एक नया गठबंधन तैयार होने की आशंका है | आगामी सत्र में सरकार इस प्रकार का बिल ला सकती है !इस व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है |
ऐसी आशंकाओं संभावनाओं को यदि राजनीति और समाज में भविष्यवाणी नहीं माना जाता है तो मौसम के क्षेत्र में ऐसे समाचारों को भविष्यवाणी कैसे माना जा सकता है जिनका कोई आधार या अनुसंधान प्रक्रिया ही न हो किसी की जवाबदेही न हो केवल आशंकाओं संभावनाओं की भरमार हो |
इस वर्ष सर्दी ने इतने वर्ष का रिकार्ड तोड़ा गर्मी ने उतने वर्ष का और वर्षा ने इतने दशकों का तोड़ा !यहाँ इतने सेंटीमीटर बारिश हुई वहाँ इस नाम का तूफ़ान आया | तीन दिनों तक वर्षा हो सकती है उसके बाद कह दिया जाता है दो दिनों तक और वर्षा हो सकती है इसके बाद फिर कह दिया जाता है तीन दिन और वर्षा हो सकती है जैसी जय वर्षा आँधी तूफ़ान आदि होने की घटनाएँ घटित होते जाते हैं वैसी वैसी आशंकाएँ संभावनाएँ आदि व्यक्त करते जाते हैं ऐसी मौसमी भविष्यवाणियों और राजनैतिक समाचारों में क्या अंतर है |
वर्षा अधिक हो सकती है या गर्मी अधिक पड़ने की संभावना है या सर्दी कम या अधिक पड़ने की आशंका या संभावना है ऐसी भविष्यवाणियाँ करने वालों की न तो कोई जवाबदेही होती है और न ही इनके गलत हो जाने के बाद उनसे जवाब भी नहीं माँगा जा सकता कि ये गलत क्यों हो गईं !यदि जवाब माँगा भी जाए तो जवाब दिया भी क्या जाएगा जब ऐसी भविष्यवाणियों का कोई आधार ही नहीं है |यदि आधार हो तब भविष्यवाणियों के गलत होने पर त्रुटियाँ खोजी जा सकती हैं कि आखिर हमसे गलती कहाँ छूट गई है किंतु आधार विहीन भविष्यवाणियों के गलत होने पर केवल यह कह दिया जाएगा कि इसमें रिसर्च की आवश्यकता है !ऐसे समय बरका देने के अतिरिक्त और दूसरा विकल्प बचता भी क्या है ?
राजनैतिक भविष्यवाणियों में जिस प्रकार से कुछ लक्षणों संकेतों संपर्कों के आधार पर राजनीति के बनते बिगड़ते समीकरणों के विषय में आवश्यकताएँ संभावनाएँ आदि व्यक्त की जाती हैं ऐसा हो सकता है वैसा होने की आशंका है सरकार बनने की संभावना है किंतु राजनीति में कई बार कुछ घटनाएँ अचानक घटित हो जाती हैं जो क्रमिक प्रक्रिया में नहीं होती हैं इसलिए उनके विषय में किसी को कानोकान कोई खबर नहीं होती है | इसलिए ऐसी ख़बरों के विषय में कोई आशंका संभावना आदि व्यक्त करना संभव नहीं होता है | बिना किसी सुगबुगाहट के किसी सरकार के गिरने की घोषणा हो जाए या बन जाए तो राजनैतिक पत्रकारों या भविष्य वक्ताओं के पास कोई जवाब नहीं होता है वे केवल आश्चर्य प्रकट कर रहे होते हैं |
राजनैतिक भविष्यवाणियों की तरह ही मौसम के क्षेत्र में जब ऐसी कोई प्राकृतिक घटनाएँ अचानक घटित होने लगती हैं जो क्रम से अलग हटकर होती हैं इसीलिए उनके विषय में भी आशंका संभावना आदि व्यक्त करना संभव नहीं होता है तो ऐसी घटनाओं को आधुनिक मौसमविज्ञान की भाषा में अप्रत्याशित बता दिया जाता है और ऐसा होने का कारण जलवायु परिवर्तन बता दिया जाता है |
कुलमिलाकर ये राजनैतिक समाचारों की तरह ही मौसमसंबंधी समाचार ही हैं जिन्हें मौसम पूर्वानुमान या भविष्यवाणियों के नाम पर परोसा जाता है और समाज को स्वीकार करना पड़ता है |
भारत का प्राचीन मौसम विज्ञान
भारत में मौसम विज्ञान का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है।उसी के आधार पर मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ सफलता पूर्वक की जाती रही हैं |इसमें प्राकृतिक लक्षणों और गणित के आधार पर भविष्यवाणियाँ की जाती थीं जो सही सटीक घटित होती थीं | वेदों उपनिषदों दार्शनिक विवेचनों में बादलों के गठन और बारिश के विषय में वर्णन मिलता है पृथ्वी सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती है ऋतुचक्र की प्रक्रिया के बारे में गंभीर चर्चा की गई है !500 ईस्वी के लगभग वाराहमिहिर द्वारा निर्मित वृहद्संहिता इस बात का सुपुष्ट प्रमाण है कि वायु मंडलीय प्रक्रियाओं का गहरा ज्ञान उस समय भी आस्तित्व में था !कहा गया है - आदित्याज्जायते वृष्टिः अर्थात सूर्य से वर्षा का निर्माण होता है | कौटिल्य के अर्थशास्त्र में देश के राजस्व और राहत कार्य के लिए वर्षा के वैज्ञानिक मापन और उसके उपयोग की सूची सम्मिलित है ! सातवीं शताब्दी के आसपास कालिदास ने अपने महाकाव्य 'मेघदूत' के माध्यम से भारत के मध्य भाग में मानसून आने के समय का संकेत किया है एवं बादलों के मार्ग का भी वर्णन किया है !1753 में महान मौसम वैज्ञानिक महाकवि 'घाघ' हुए जिनके द्वारा की गई भविष्यवाणियों से प्रभावित जन जन की जबान पर घाघ की कहावतें विद्यमान हैं |कुलमिलाकर भारत में मौसम विज्ञान की शुरुआत अत्यंत प्राचीन काल में हो गई थी |
विदेशों में भी यंत्रों के बिना ही मौसमसंबंधी पूर्वानुमान लगाए जाते थे !
उस समय विदेशी विद्वान भी बिना यंत्रों के ही मौसमसंबंधी घटनाओं का पूर्वानुमान सफलता पूर्वक लगाया करते थे | विदेशी विद्वानों में भी 350 ईसा पूर्व में अरस्तु ने मौसम विज्ञान पर लिखा था।15अक्टूबर 1987 को ब्रिटेन में एक औरत ने एक टी.वी. स्टेशन को बताया कि उसने सुना है कि तूफान आ रहा है। लेकिन मौसम का अनुमान लगानेवाले ने अपने दर्शकों को पूरा भरोसा दिलाया: “चिंता मत कीजिए। कोई तूफान नहीं आनेवाला है।” मगर उसी रात को दक्षिणी इंग्लैंड पर ऐसा भयंकर तूफान आया जिससे भारी जनधन की हानि हुई |
ब्रिटेन के मौसम-विज्ञानी लूइस रिचर्डसन ने सोचा चूँकि वायुमंडल भौतिक नियमों पर आधारित है, तो क्यों न वह मौसम का अनुमान लगाने में गणित का इस्तेमाल करे। लेकिन गणित के फार्मूले इतने पेचीदा थे और हिसाब करने में इतना समय ज़ाया होता था |इसलिए उनकी वो प्रक्रिया प्रचलन में नहीं आ सकी !किंतु गणित से मौसम पूर्वानुमान लगाया जा सकता है ऐसा वे भी मानते थे |
स्वदेश से लेकर विदेश तक जिस प्रक्रिया के द्वारा हजारों वर्षों तक मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाए जाते रहे और समाज उससे संतुष्ट भी था यदि ऐसा न होता तो मध्य भारत में घाघभंडरी की कहावतें आज जन जन की वाणी पर नहीं होतीं !वे अनुभव आज भी उनके काम आया करते हैं |वो मौसम संबंधी अत्यंत प्राचीन प्रक्रिया जो अब तक प्रचलित रही वो अचानक गलत कैसे हो गई !
कुल मिलाकर भारतवर्ष में ऋषियों मुनियों ने सदियों पहले ही वो ज्ञान अर्जित कर लिया था जिससे मौसम के बारे में सटीक भविष्यवाणी की जाती रही है जिन दिनों योरोप ने मौसम विज्ञान की ओर पहला कदम भी नहीं बढ़ाया था जब अमेरिका में विज्ञान का कोई नाम लेवा भी नहीं था तब ही घाघ जैसे मौसम वैज्ञानिक ने संसार के सर्वाधिक विश्वसनीय और प्रामाणिक वर्षा वेत्ता की ख्याति अर्जित कर ली थी वे सटीक एवं अचूक भविष्यवाणी किया करते थे |
प्राचीन ऋषियों की विशेषता एक और थी जब कोई प्राकृतिक घटना क्रम से अलग घटित होती थी तो उसका पूर्वानुमान लगाना भी वे आवश्यक समझा करते थे इसलिए उसके विषय में भी अनुसंधान पूर्वक न केवल पूर्वानुमानलगाते थे अपितु वैसा होने के पीछे के कारण खोजकर उस घटना को भी नियमबद्ध कर दिया करते थे |
प्रकृति में चंद्रमा का थोड़ा थोड़ा घटना या बढ़ना रहा हो या सूर्य चंद्र ग्रहण की घटनाएँ या फिर समुद्र में उठने वाला ज्वार भाँटा हो ये घटनाएँ प्रतिदिन नहीं घटित होती हैं कभी कभी घटित होने के बाद भी उन्होंने अनुसंधान पूर्वक इस बात की खोज कर ली कि ये कब कब किन किन तिथियों में घटित होती हैं | ज्वार भाँटा प्रत्येक अमावस्या पूर्णिमा को भले घटित होता हो किंतु ग्रहण अमावस्या पूर्णिमा में घटित होने के बाद भी प्रत्येक अमावस्या पूर्णिमा में नहीं घटित होते कभी कभी घटित होते हैं उनका पूर्वानुमान लगाने में एवं ऐसी घटनाओं को भी गणित बढ़ करने में उन्होंने अनुसंधान पूर्वक सफलता प्राप्त की थी |
आधुनिक मौसम विज्ञान में भी यदि वैज्ञानिकता का थोड़ा भी अंश होता तो भूकंपों के घटित होने के कारण और पूर्वानुमान खोजकर उन्हें भी नियमबद्ध या गणितबद्ध करने के विषय में कोई न कोई सफल अनुसंधान हो चुका होता इसके साथ ही अलनीनो ,लानीना, जलवायुपरिवर्तन ,ग्लोबल वार्मिंग एवं वायु प्रदूषण के होने न होने या बढ़ने घटने के विषय में खोज की जा चुकी होती एवं मौसम पर पड़ने वाले इनके प्रभाव के विषय में अब तक कोई न कोई सफल अनुसंधान कर लिया गया होता !कब अर्थात किस वर्ष ऐसी घटनाएँ घटित होंगी कब नहीं घटित होंगी आदि के पूर्वानुमान लगाने की विधि खोज ली गई होती उसे नियमबद्ध या गणितबद्ध कर दिया गया होता ताकि भावी पीढ़ियों को वर्तमान समय की तरह भ्रम की स्थिति से नहीं जूझना पड़ता |
आधुनिक मौसम विज्ञान की पूर्वानुमान क्षमता !
उन दिनों मौसम का पूर्वानुमान लगाने के लिए अत्याधुनिक मशीनें नहीं थीं फिर भी महाकवि घाघ ने प्रकृति के कार्य में हस्तक्षेप के बिना प्रकृति को पढ़ने की व्यवस्था खोज ली थी |इसप्रकार से अपने देश में ही मानसून की चाल को सही सही पढ़ने वाला विज्ञान विद्यमान है फिर भी भारत में इन दिनों पाश्चात्य जगत के विज्ञान का अंधानुशरण हो रहा है मानसून के मन में क्या है इसे जानने के लिए अमेरिका और ब्रिटेन में बनी मशीनों का उपयोग हो रहा है |
इसके आधार पर मूसलाधार बारिश का अनुमान लगाया जाता है तब बूंदाबांदी होकर निकलजाता है कई बार बूँदा बाँदी की भविष्यवाणी की जाती है और मूसलाधार बारिश हो जाती है | कई बार आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणी की जाती है किंतु हवा का एक झोंका भी नहीं आता है कई बार बिना किसी भविष्यवाणी के ही भीषण आँधी तूफ़ान आ जाता है |
निकट समय में घटित हुई ऐसी ही कुछ प्राकृतिक घटनाएँ -
ये भूकंप जैसी उस प्रकार की घटनाएँ नहीं हैं जिनके विषय में विश्व वैज्ञानिकों ने पहले से कह रखा है कि हम पूर्वानुमान लगाने में असमर्थ हैं अपितु ये उस प्रकार की वर्षा आँधी तूफ़ान आदि से संबंधित घटनाएँ हैं जिनके विषय में पूर्वानुमान लगा लेने का दावा किया जाता है फिर भी इनके विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका !यदि इनके विषय में कोई विज्ञान विकसित किया जा सका होता तो संभवतः ऐसा नहीं होता !आप स्वयं देखिए -
- केदारनाथ जी में 16 जून 2013 में केदारनाथ जी में भीषण वर्षा का सैलाव आया हजारों लोग मारे गए किंतु इसका पूर्वानुमान पहले से बताया गया होता तो जनधन की हानि को कम किया जा सकता था किंतु ऐसा नहीं हो सका !
- 21अप्रैल 2015 की रात्रि में बिहार में काफी बड़ा तूफ़ान आया था जिससे भारत के बिहार आदि प्रांतों में जन धन की बहुत हानि हुई थी जिसके विषय में कोई भविष्यवाणी नहीं की गई थी !
- बनारस में 28 जून 2015 को एवं 16 जुलाई 2015 को भीषण बारिश हुई जिसके कारण बनारस में संभावित तत्कालीन प्रधानमंत्री जी की सभाएँ लगातार दो करनी थीं किंतु वर्षा अधिक होने के कारण दोनों सभाएँ रद्द कर देनी पड़ी थीं जिसके विषय में पहले कोई पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका था |
- सन2015 के नवंबर महीने में मद्रास में कई दिनों तक लगातार भीषण बारिश हुई थी जिसके कारण मद्रास में भीषण बाढ़ से त्राहि त्राहि मची हुई थी किंतु इसका भी पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका था !
- सन 2016 के अप्रैल मई आदि में भारत में अधिक गर्मी पड़ने की घटना घटित हुई थी नदी कुएँ तालाब आदि तेजी से सूखते चले जा रहे थे ट्रैन से कुछ स्थानों पर पानी भेजा गया था |इसी समय में आग लगने की घटनाएँ बहुत अधिक संख्या में घटित हुई थीं इसलिए विहार सरकार की ओर से दिन में हवन न करने एवं चूल्हा न जलाने की सलाह दी गई थी ,किंतु समाज यदि जानना चाहे कि ऐसा इस वर्ष हुआ क्यों?इसका कारण क्या था तथा ऐसा कब तक होता रहेगा ? इनविषयों में कभी कुछ भी नहीं बताया जा सका था |
- 2 मई 2018 को पूर्वी भारत में भीषण आँधी तूफान आया उसके बाद भी उसी मई में कुछ बड़े आँधी तूफ़ान और भी आए जिनमें बड़ी संख्या में जनधन की हानि हुई किंतु उसके विषय में कभी कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकी थी |
- 7 और 8 मई 2018 को बड़े आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणी की भी गई थी जिस कारण दिल्ली और उसके आसपास के स्कूल कालेज बंद करा दिए गए थे किंतु उस दिन कोई तूफ़ान क्या आँधी भी नहीं आई ऐसा कई बार हुआ क्यों ?
- केरल की भीषण बाढ़ - 7 से 15 अगस्त 2018 तक केरल में भीषण बरसात हुई जिससे केरल वासियों को भारी नुक्सान उठाना पड़ा था जबकि 3 अगस्त 2018 को सरकारी मौसम विभाग के द्वारा अगस्त सितंबर में सामान्य बारिश होने की भविष्यवाणी की गई थी जो गलत साबित हुई |बाद में भी इसके विषय में कोई स्पष्ट पूर्वानुमान नहीं दिया जा सका था ऐसा वहाँ के मुख्यमंत्री ने भी अपने वक्तव्य में स्वीकार किया था |
- 17 अप्रैल 2019 को मध्यभारत में अचानक भीषण बारिश आँधी तूफ़ान आदि आया बिजली गिरने की घटनाएँ हुईं जिसमें लाखों बोरी गेहूँ भीग गया और लाखों एकड़ में खड़ी हुई तैयार फसल बर्बाद हो गई !इस घटना के विषय में भी पहले कभी कोई पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका था !
- सितंबर 2019 के अंतिम सप्ताह में बिहार में भीषण बारिश और बाढ़ की घटना घटित हुई जिसके विषय में कोई स्पष्ट पूर्वानुमान नहीं दिया गया था ऐसा वहाँ के मुख्यमंत्री ने भी अपने वक्तव्य में स्वीकार किया है | इस भीषण बारिस का पूर्वानुमान एवं ऐसा होने का विश्वसनीय कारण मौसम विभाग के द्वारा न बता पाने एवं ढुलमुल भविष्यवाणियों से निराश मुख्यमंत्री एवं केंद्र के एक राज्यमंत्री ने ऐसी भीषण बारिश होने का कारण हथिया नक्षत्र को बताया था !
ऐसी और भी कुछ बड़ी प्राकृतिक घटनाएँ घटित हुई हैं जिनके विषय में
पूर्वानुमान बताया नहीं जा सका है |उनमें भी जनधन की हानि हुई है उनके विषय
में यदि पूर्वानुमान पता होते तो उनके द्वारा हुई जन धन संबंधी हानि की
मात्रा को कुछ कम किया जा सकता था |
मानसून आने जाने की तारीखें एक आध बार छोड़कर कभी सच नहीं हुईं अब कहा जा रहा है मौसम चक्र बदल गया है इसलिए मानसून आने जाने की तारीखों में बदलाव किया जाएगा | ऐसा ही सभी जगह किया जाता है |
मानसून आने जाने की तारीखें एक आध बार छोड़कर कभी सच नहीं हुईं अब कहा जा रहा है मौसम चक्र बदल गया है इसलिए मानसून आने जाने की तारीखों में बदलाव किया जाएगा | ऐसा ही सभी जगह किया जाता है |
मौसमपूर्वानुमान के अभाव से होने वाले नुक्सान !
वर्षा के बिना सरकारें नहीं चलती हैं देश की आयव्यय का लेखा जोखा वजट का पूरा तामझाम मौसम की मर्जी पर निर्भर करता है | विज्ञान मौसम की चाल को पढ़ने का सही एवं सटीक विज्ञान नहीं खोज पाया है जिसके कारण कृषि योजना बनाने में किसानों को कठिनाई आती है इसलिए किसानों का हर वर्ष नुक्सान होता है इसीलिए हर वर्ष सैकड़ों किसान आत्महत्या करते हैं |
वर्तमान वैज्ञानिक मानसून का तिलस्म नहीं तोड़ पाए हैं और न ही मौसम विज्ञान का मर्म ही समझ पाए हैं | कुछ वैज्ञानिकों ने घोषणा कर दी है कि मौसम की सटीक भविष्यवाणी संभव ही नहीं है |महावैज्ञानिक प्राचीन ऋषियों मुनियों ने अकाल और सुकाल सभी प्रकार का पूर्वानुमान लगाने में सफलता प्राप्त की थी !देश वासी इस पर विश्वास करते हैं किंतु सरकार इसे नहीं मानती है प्राचीन विज्ञान के हिसाब से पूर्वानुमान लगाया जाता तो हजारों किसानों की जान बच सकती थी |
आपदा प्रबंधन की दृष्टि से भी ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने की क्षमता का अभाव अत्यंत चिंतनीय है उचित होगा कि मौसम संबंधी अनुसंधानों के नाम पर अभी तक जो समय निरर्थक बीतते आया है उसके विषय में कुछ सार्थक पहल की जाए और मौसम संबंधी वास्तविक प्राकृतिक विज्ञान का अनुसंधान किया जाए !
विशेष बात यह है कि प्राकृतिक आपदाओं के विषय में आँकड़े अनुभव आदि जुटाकर पूर्वानुमान लगाने के लिए 1875 में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए की गई थी तब से लेकर अभी तक लगभग 144 वर्ष बीत चुके हैं| प्राकृतिक आपदाओं के विषय में हमारा कितना विकास हुआ है | अभी भी प्राकृतिक आपदाओं के विषय में हम या तो पूर्वानुमान नहीं लगा पाते हैं और यदि लगा पाते हैं तो गलत निकल जाते हैं |
किसी न किसी रूप में लगातार अनुसंधान चलाए जा रहे हैं इनसे संबंधित मंत्रालय संचालित किए जा रहे हैं अधिकारियों कर्मचारियों वैज्ञानिकों आदि पर एवं उनके द्वारा किए जाने वाले अनुसंधानों पर भारी भरकम धनराशि एक ही उद्देश्य की पूर्ति के लिए खर्च की जा रही है कि प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित सही और सटीक पूर्वानुमान लगाए जा सकें किंतु ऐसा नहीं हो पा रहा है |
5 अक्टूबर 1864 में कलकत्ता में आए भयंकर चक्रवात से लगभग 60,000 लोगों की मौत हो गई थी इसके अतिरिक्त 1866 एवं 1871 में अकाल पड़ा था बताया जाता है कि उसमें भी काफी जन धन की हानि हुई थी !ऐसी घटनाएँ अचानक घटित होने के कारण प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाया था इसलिए जन धन की हानि काफी अधिक हो गई थी |अब भी लगभग वही स्थिति है अभी हाल के वर्षों में जितने बार भी प्राकृतिक आपदाएँ घटित हुई हैं उनके विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाए जा सके हैं |
ऐसी परिस्थिति में वेद विज्ञान के द्वारा यदि मौसम संबंधी अनुसंधान सरकार की देख रेख में पुनः प्रारंभ किए जाएँ तो इससे मौसम संबंधी पूर्वानुमान में क्रांति लाई जा सकती है |
मेरे द्वारा किए गए कुछ पूर्वानुमान -
मैं प्रत्येक महीना प्रारंभ होने से पूर्व अगले महीने के पूर्वानुमान पहले भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के निदेशक डॉ के जे रमेश जी के जीमेल पर भेज दिया करते थे उन्होंने कहा था कि हमारे पूर्वानुमान यदि सही निकलेंगे तो वो मुझे लिखित फीडबैक देंगे !इसलिए अपने पूर्वानुमान परीक्षणार्थ मैं उन्हें भेज रहा था जो सही निकलते जा रहे थे !इसी विषय में मेरी उनसे अक्सर बात भी होती थी | इसी क्रम में अगस्त 2018 के विषय में मैंने जुलाई में ही उनके जीमेल पर पूर्वानुमान डाल दिया था जिसमें 1 से 11 और 7 से 14 अगस्त में बीच दक्षिण भारत में भीषण वर्षात होने का पूर्वानुमान लिखा था जिसमें कुछ दशकों का रिकार्ड टूटने की बात भी लिखी थी | जबकि मौसम विज्ञान विभाग ने 3 अगस्त को जो प्रेसविज्ञप्ति जारी की थी उसमें अगस्त और सितम्बर में सामान्य वर्षा होने की भविष्यवाणी की गई थी | जबकि इसी बीच केरल आदि दक्षिण भारत में बहुत अधिक वर्षा हुई थी | भारतीय मौसम विज्ञानविभाग ने 3 अगस्त को जो प्रेसविज्ञप्ति जारी की थी वो भविष्यवाणी गलत हो गई थी मेरे द्वारा अपनी भविष्यवाणी की तुलना उससे किए जाने के कारण उनसे हमारी बातचीत बंद हो गई | ये दोनों जीमेल मैं आपको भेज रहा हूँ | इसके विषय में उन्होंने जो फीडबैक दिया है भले उसमें हमारी भविष्यवाणियों को सही न स्वीकार किया गया हो किंतु मैं उन्हें आपको भेज रहा हूँ |
इसी विषय में मैं एक दिन पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तत्कालीन मंत्री जी से मिला उन्होंने मुझे सेकेटरी साहब के पास यह कहते हुए भेजा कि यदि कुछ हो सकता होगा तो वही करेंगे !मैं राजीवन जी के पास गया तो उन्होंने एडवाइजर गोपाल रमन जी से मिलाया और हमारी बात सुनने को कहा | गोपाल रमन जी ने हमसे वो तकनीक और वह प्रक्रिया लिखकर देने के लिए कहा जिसके आधार पर और जिस प्रकार से मैं पूर्वानुमान लगाता हूँ !मैंने ज्योतिष आदि गणित पक्ष को उद्धृत किया तो वहाँ ज्योतिष के कुछ पंचांग रखे हुए थे उनकी ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि अमावस्या संक्रांति के आसपास वर्षा होती है इसके अलावा मौसम का पूर्वानुमान तुम कैसे लगाते हो !इससे लगा कि वहाँ पूर्वानुमान लगाने में ज्योतिष पंचांगों का उपयोग तो किया जाता है किंतु स्वीकार नहीं किया जाता है कि यह भी विज्ञान है |
इसके अतिरिक्त स्काई मेट के वैज्ञानिक डॉ रजनीश जी को भी मैं पूर्वानुमान भेजता था !उन्होंने मेरे द्वारा किए जाने वाले पूर्वानुमानों की सच्चाई स्वीकार करते हुए आपदा प्रबंधन विभाग को एक पत्र भी लिखा था मैं वो भी संलग्न कर रहा हूँ |
मैंने वायु प्रदूषण के विषय में भी जो पूर्वानुमान लगाए हैं वे भी काफी हद तक सही निकले हैं जिससे यह बात प्रमाणित होती है कि वायु प्रदूषण बढ़ने में समय की भी बड़ी भूमिका है | मैं वो मेल भी आपको भेज रहा हूँ |
आँधी तूफानों एवं चक्रवातों के विषय में मेरे द्वारा किए जाने वाले पूर्वानुमान लगभग सच सिद्ध हो रहे हैं |
इसके अतिरिक्त मैं दिसंबर 2019 महीने के विषय में भी पूर्वानुमान आपके पास भेज रहा हूँ |
आपसे मेरा विनम्र निवेदन है कि आप इस विधा पर भी विचार करें एवं इसी विषय में मुझे मिलने के लिए समय दें !
किसी भी देश में देशवासियों के द्वारा सरकारों को दिए जाने वाले टैक्स में से किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए सरकारें जो धन सरकारी योजनाओं पर खर्च किया करती हैं उसके बदले में उससे परिणाम क्या प्राप्त हो रहे हैं यह जानने का अधिकार देशवासियों को भी होता है | पाई पाई और पल पल का हिसाब देने की प्रतिज्ञा करके सत्ता संचालन करने वाली सरकारों की जिम्मेदारी तो और भी अधिक बढ़ जाती है |
ऐसी परिस्थिति में भूकंपविज्ञान मौसमविज्ञान एवं पर्यावरणविज्ञान से संबंधित मंत्रालयों को संचालित
करने में उनसे संबंधित अधिकारियों कर्मचारियों वैज्ञानिकों आदि को सैलरी आदि सुख सुविधाओं के
लिए जो धन खर्च किया जाता है उनके द्वारा किए जाने वाले अनुसंधानों पर जो
धन खर्च किया जाता है और वो जिस उद्देश्य से खर्च किया जाता है उस उद्देश्य
की पूर्ति जितने प्रतिशत भी हो पा रही है क्या सरकार और समाज उससे संतुष्ट है ?
ऐसे अनुसंधानों से अभी तक केवल कुछ वाक्य या वाक्यांश ही मिल पाए हैं जिनसे जनता के लाभहानि का कोई नाता भले ही न हो किंतु इसी काल्पनिक वैज्ञानिकता के सहारे समय जरूर पास होता जा रहा है | वस्तुतः यह तो अनिश्चित कालीन समय तक चलने वाला परिणाम विहीन रिसर्च है |
- भूकंप -
भूकंप कब आते हैं क्यों आते हैं और प्रकृति की किन परिस्थितियों में आते हैं वे परिस्थितियाँ कब कब बनती हैं उनकी पहचान क्या है जिनके आधार पर भूकंपों के विषय में पूर्वानुमान लगाए जा सकें किसी भी रिसर्च के लिए ऐसे प्रश्नों के उत्तर खोजे जाना अति आवश्यक माना जाता है |
भूकंपों के विषय में जो अनुसंधान हुए हैं उनके परिणाम स्वरूप अभी तक ऐसे प्रश्नों के उत्तर मिल नहीं पाए हैं |यही कारण है कि भूकंपों के विषय में पूर्वानुमान अभी तक खोजे नहीं जा सके हैं | इसके विषय में अधिकृत लोगों के द्वारा केवल इतना बताया जा रहा है कि भूकंप पृथ्वी के अंदर संचित गैसों के दबाव के कारण आते हैं या फिर पृथ्वी के गर्भ में निहित लावा पर तैर रही प्लेटों के आपस में टकराने से भूकंप आते हैं |
कुछ रिसर्चरों के हवाले से यह बताया जा रहा है कि हिमालय में गैसों का बहुत बड़ा भण्डार है | इसलिए हिमालय के आस पास अधिक तीव्रता का कोई बड़ा भूकंप आने वाला है जिसकी तीव्रता 9. 0 के लगभग होगी | ऐसा पिछले कई वर्षों से बताया जा रहा है किंतु वह भूकंप आएगा कब ये किसी को नहीं पता | बताया ये भी जा रहा है कि यह बात भी रिसर्च से पता लगी है |
इस विषय में मेरा निवेदन मात्र इतना है कि जिस वैज्ञानिक प्रक्रिया से भूकंप आने का कारण खोज लिया गया है और उस कारण की सच्चाई पर यदि दृढ़ विश्वास है कि गैसों का दबाव बढ़ने से भूकंप आते हैं तो जिस वैज्ञानिक प्रक्रिया से गैसों के दबाव का अंदाजा लगाया गया है सिद्धांततः उसी प्रक्रिया से इस बात का भी अंदाजा लगा लिया जाना चाहिए कि गैसों के कितने दबाव पर भूकंप आने की संभावना होती है एवं किस प्रकार के कितने दबाव से कितनी तीव्रता का भूकंप आ सकता है |
यदि ऐसा किया जाए तो मुझे विश्वास है कि ऐसा होते ही भूकंपों से संबंधित पूर्वानुमान इसी प्रक्रिया के द्वारा लगाया जा सकता है | क्योंकि सबसे बड़ी बात किसी भी घटना के घटित होने के पीछे का कारण खोजना होता है कारण यदि पता लग ही गया है तो उसके विषय में पूर्वानुमान खोजना काफी आसान हो जाता है |
इसी प्रकार से पृथ्वी के गर्भ में निहित लावा पर तैर रही प्लेटों के आपस में टकराने से भूकंप आते हैं | यदि इस बात को मान लिया जाए कि प्लेटों के आपस में टकराने से भूकंप आते हैं | इससे एक बात तो सिद्ध हो जाती है कि हमें प्लेटों के गति करने की बात का पता लगाने में सफलता मिल चुकी है ऐसी परिस्थिति में उसी पद्धति से प्लेटों के एक दूसरे की ओर बढ़ने संबंधी हलचल का भी अंदाजा लगाया जा सकता है | इसी आधार पर इस बात का पूर्वानुमान भी लगा लिया जाना चाहिए कि प्लेटों में कब हलचल होने वाली है तथा कब वे प्लेटें एक दूसरे की ओर बढ़ने वाली हैं उनकी गति और दिशा देखकर ही इस बात का भी पता लगाया जा सकता है कि दोनों का आपस में टकराव लगभग कब संभावित है | उस टकराहट के आधार पर ही आगामी भूकंपों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है किंतु भूकंपों के विषय में अभी तक पूर्वानुमान लगा पाना संभव नहीं हो पाया है जो भूकंपों के विषय में चलाए जा रहे अनुसंधानों के अधूरेपन का संकेत देता है |
गैसों का दबाव और प्लेटों के टकराने जैसी बातों में कितनी सच्चाई है और कितनी कल्पना है | इसका परीक्षण तो तभी हो पाता जब इसके आधार पर भूकंप संबंधी कुछ पूर्वानुमान लगाए और बताए जाते तथा वे सच निकलते !किंतु अभी तक ऐसा कुछ होना संभव नहीं हो पाया है |
यहाँ सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि भूकंपों के आने में भूमिगत प्लेटों या गैसों के दबावों की बात ही कितनी सच है यह भी अभी तक सिद्ध नहीं हो पाया है ऐसी परिस्थिति में उसके आधार पर हिमालय के आस पास अधिक तीव्रता का कोई बड़ा भूकंप आने के विषय में की गई कल्पना का सच्चाई से कोई संबंध है भी या नहीं यह सिद्ध होना भी अभीतक बाक़ी है |इसीलिए हिमालय में बहुत बड़ा भूकंप आने की भविष्यवाणी जो पिछले कुछ दशकों से की जाती रही है वह भी दिनोंदिन आगे घसिटती चली जा रही है | जहाँ तक बात भूकंप आने की है तो ऐसे तो कभी भी कहीं भी कितना भी बड़ा भूकंप आ सकता है हिमालय में भी आ सकता है किंतु ऐसे किसी कभी भी घटित हो जाने वाले भूकंपों का ऐसी समय विहीन भविष्यवाणियों से कोई संबंध कैसे माना जा सकता है |
मौसमविज्ञान -
मौसमसंबंधी पूर्वानुमान लगाने में भी अलनीनों लानीना तथा जलवायुपरिवर्तन जैसी न जाने कितनी ऐसी बाते हैं मौसम संबंधी घटनाओं पर उनका असर पड़ता है ऐसा बताया जाता है| ऐसी बातें सुनकर कई बार लगता है कि हो न हो ऐसी बातों में भी कुछ सच्चाई हो किंतु ऐसे काल्पनिक आधार पर जो मौसमसंबंधी भविष्यवाणियाँ की जाती हैं उनमें से अधिकाँश भविष्यवाणियाँ गलत हो जाती हैं इसलिए ऐसी कल्पनाओं पर विश्वास करना कठिन हो जाता है |
बताया जाता है कि अलनीनों लानीना तथा जलवायुपरिवर्तन जैसी बातों या परिस्थितियों का असर मौसम संबंधी वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान आदि घटनाओं पर पड़ता है जो लोग ऐसा कहते हैं उनकी ये जिम्मेदारी भी बनती है कि ऐसी कल्पनाओं के आधार पर वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान आदि प्राकृतिक घटनाओं की सही सही भविष्यवाणियाँ करके ऐसी बातों को प्रमाणित सिद्ध किया जाना चाहिए कि ऐसी बातों में भी कुछ सच्चाई है ,जबकि ऐसा होते तो नहीं दिखता है |
दीर्घावधि अर्थात कुछ समय पहले के मौसमसंबंधी पूर्वानुमान लगाने की कोई वैज्ञानिक प्रक्रिया ही नहीं है और ऐसा करने के लिए जिस प्रक्रिया की परिकल्पना की भी गई है उसके आधार पर पिछले 13 वर्षों के विषय में लगाए गए मौसम संबंधी पूर्वानुमानों में से यदि केवल 5 वर्षों के पूर्वनुमान ही सही होते हैं | ऐसी परिस्थिति में इन्हें विज्ञान सम्मत पूर्वानुमानों की श्रेणी में रखा जाना कैसे उचित माना जा सकता है |
इसी प्रकार से मानसून के आने जाने की बात है मानसून से संबंधित पूर्वानुमान की दृष्टि से मानसून के आने जाने के विषय में अभी तक जो भी तारीखें बताई जाती रही हैं वे लगभग गलत होती रही हैं कभी कभार एक आध बार सही होने के यदि तीर तुक्के लग भी गए हों तो उसे विज्ञान सम्मत पूर्वानुमान कैसे माना जा सकता है !क्योंकि पूर्वानुमान जैसा वैज्ञानिक कसौटी पर कसा जाने लायक उसमें कुछ ऐसा नहीं होता है जिसे वैज्ञानिक कसौटी पर कसा जा सके !
मौसमपूर्वानुमान की भाषा में जिसे दीर्घावधिपूर्वानुमान के नाम पर जाना जाता है वस्तुतः पूर्वानुमान होते वही हैं वे बाकी ऐसे पूर्वानुमान लगाने के लिए अभी तक कोई तकनीक विकसित नहीं की जा सकी है ये और बात है | वैसे भी आज कल परसों के विषय में बताए जाने वाले पूर्वानुमानों को पूर्वानुमान इसलिए नहीं माना जा सकता है क्योंकि पूर्वानुमान बताने के समय तक उस तरह की घटना के लक्षण कहीं न कहीं तो प्रकट हो ही चुके होते हैं भले वे सुदूर समुद्र में ही क्यों न हुए हों | जो लक्षण एक स्थान पर प्रकट हो चुके हों उन्हें देखकर उनकी गति दिशा आदि के अनुशार अंदाजा या अनुमान तो लगाया जा सकता है किंतु इसे पूर्वानुमान नहीं माना जा सकता है |
प्रायः कृषिकार्यों के आदि के लिए दीर्घावधिपूर्वानुमानों की ही आवश्यकता होती है क्योंकि किसानों को कोई फसल बोने से काटने या उसकी सिंचाई करने के लिए उन्हें महीनों पहले के मौसम संबंधी पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है क्योंकि किसानों को महीनों पहले फसलयोजना बनानी पड़ती है वो वर्षा होने की संभावित मात्रा के अनुसार ही ऊँची और नीची जमीनों पर उसके अनुरूप ही फसलें बोनी होती हैं |
इसलिए किसानों की आवश्यकता के अनुसार उन्हें मौसमसंबंधी दीर्घावधि पूर्वानुमान चाहिए होते हैं,किंतु मौसम विज्ञान की किसी भी विधा या प्रक्रिया के द्वारा मौसम संबंधी दीर्घावधि पूर्वानुमान निकालपाना अभीतक संभव नहीं हो पाया है | जिन लोगों के द्वारा दीर्घावधि मौसमपूर्वानुमानों से संबंधित भविष्यवाणियाँ की भी जाती हैं उनमें सच होने वाली भविष्यवाणियों की संख्या काफी कम होती है इससे अधिक तो वे अंदाजे सही निकल जाते हैं जो किसान लोग स्वयं पारंपरिक ज्ञान और अनुभवों के आधार लगा लिया करते हैं |
मौसमवैज्ञानिकों के द्वारा वर्षा संबंधी जो भविष्यवाणियाँ की जाती हैं उनमें भविष्यविज्ञान के नाम पर तो कुछ विशेष होता नहीं है अपितु कुछ द्वयर्थी शब्दों का जाल मात्र होता है ! कोई स्पष्ट भविष्यवाणी की ही नहीं जाती है जब जैसी घटनाएँ घटित होने लगती हैं तब तैसी भविष्यवाणियाँ की जाने लगती हैं |
मौसमविज्ञान की प्रक्रिया में जो काम विज्ञान से होने की बात होती है अक्सर उसमें तर्क संगत वैज्ञानिक तथ्य घटित नहीं होते हैं अपितु केवल आँधी तूफानों बादलों आदि की जासूसी मात्र करनी होती है |बादल या आँधी तूफ़ान कब कहाँ से उठे किधर को जा रहे हैं ये उपग्रहों रडारों से देखकर उनके जाने की गति कितनी है उसी हिसाब से इतने दिन में इस देश प्रदेश या शहर आदि में पहुँच जाएँगे| इस प्रक्रिया में विज्ञान के दर्शन नहीं होते |
ये सबकुछ देखकर लगता है कि उपग्रहों रडारों का सहयोग लेकर कभी कभी काम तो चला लिया जाता है किंतु ये काम चलाऊ प्रक्रिया मात्र है जिसके द्वारा लगाए जाने वाले अंदाजे बहुत कम सच होते देखे जाते हैं |ऐसी परिस्थिति में मौसमविज्ञान में विज्ञान क्या है उस वैज्ञानिक पक्ष की भी खोज की जानी चाहिए जिसके द्वारा दीर्घावधि कहे जाने वाले वर्षासंबंधी पूर्वानुमानों को भी सच बनाया जा सके |
आँधीतूफान -
वर्तमान समय में आँधी तूफ़ान संबंधी पूर्वानुमान लगाने के लिए उपग्रहों रडारों की भूमिका बहुत अहम होती है क्योंकि आँधी तूफ़ान बन जाने के बाद जब किसी एक दिशा में उड़कर जाते देखे जाते हैं उस समय उनकी जो गति होती है और उस समय जिस दिशा में जा रहे होते हैं उस गति और दिशा के हिसाब से इस बात का अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये किस देश प्रदेश शहर आदि में कब कितने वेग से पहुँच सकते हैं |
ऐसी परिस्थिति में आँधी तूफ़ान निर्मित होने के बाद तो अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये कब कहाँ पहुँचेंगे किंतु आँधी तूफ़ान दिखाई देने से पहले जब उनका बनना भी प्रारंभ न हुआ हो उस समय ही यदि इस बात का पूर्वानुमान लगा लिया जाए कि किसी आँधी तूफ़ान या चक्रवात आदि का निर्माण होने वाला है तो ऐसे समय में प्राकृतिक वातावरण की विशेष सतर्कता पूर्वक निगरानी रखी जा सकती है इस प्रक्रिया से बचाव कार्यों के लिए समय कुछ अधिक मिल जाता है जिससे जनधन की हानि कम से कम होती है |
यदि आँधी तूफ़ान आने के विषय में बहुत पहले पूर्वानुमान लगा पाना संभव हो सके तो आपदा प्रबंधन संबंधी कार्यों की दृष्टि से बहुत सुविधा हो सकती है |
कई बार एक साथ कई कई तूफ़ान लगातार आते रहते हैं और ये क्रम महीनों चला करता है एक श्रृंखला (चैन) सी बनती चली जाती है | इनमें बार बार जनधन की हानि होते देखी जाती है | ऐसी आपदाओं से समाज में भय का वातावरण बनने लगता है लोगों को चिंता सताने लगती है कि आखिर ऐसे ये तूफ़ान कितने समय तक और आते रहेंगे ऐसा इस वर्ष क्यों हो हो रहा है |इसका किसी के पास कोई उत्तर नहीं होता है | ऐसी परिस्थिति में उपग्रहों रडारों आदि से केवल इतनी मदद मिल पाती है कि जैसे जैसे जितने भी तूफ़ान आते जाते हैं वैसे वैसे वे देख लिए जाते हैं और उसी हिसाब से अंदाजा लगा लिया जाता है कि जो तूफ़ान इस समय जहाँ दिखाई पड़ रहा है वो कल कहाँ पहुँच सकता है किंतु अगला तूफ़ान कब आएगा इस बात का किसी के पास कोई पूर्वानुमान नहीं होता है जबकि उस समय हर कोई इस बात को जानना चाहता है कि आखिर ये तूफ़ान इसी प्रकार से बार बार कब तक आते रहेंगे !
कुल मिलाकर आँधी तूफ़ान चक्रवात आदि शुरू होने के बाद तो उपग्रहों रडारों की मदद से इस बात का अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये कब कहाँ पहुँचेंगे किंतु इनके प्रारंभ होने से पूर्व जब इनके किसी प्रकार के सूक्ष्म लक्षण भी न दिखाई पड़ रहे हों उस समय इनके विषय में पूर्वानुमान लगा पाना केवल कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी होता है |
इसी से संबंधित कुछ परिस्थितियाँ और होती हैं जिनके विषय में जानने की न केवल उत्सुकता होती है अपितु पूर्वानुमान लगाने के लिए भी जानना आवश्यक होता है कि आँधीतूफान और चक्रवात आदि से संबंधित घटनाएँ किन किन परिस्थितियों में घटित होती हैं ? उस समय प्राकृतिक वातावरण में किस प्रकार के लक्षण प्रकट होने लगते हैं जिन्हें देखकर इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि यहाँ कोई आँधी तूफ़ान आदि निर्मित होने की संभावना है |
ऐसे विषयों में इस बात का भी अनुसंधान आवश्यक होता है कि आँधीतूफान और चक्रवात आदि बनने की परिस्थितियाँ निर्मित कब अर्थात कैसे समय में होती हैं क्यों होती हैं अर्थात उनके निर्मित होने का कारण क्या है ?वह जो भी कारण है वह प्राकृतिक है या मनुष्यकृत ? यदि प्राकृतिक है तो उसमें कुछ कमी लाने के लिए किस प्रकार के प्रयास किए जाने चाहिए और यदि मनुष्यकृत है तो उसे कम करने के लिए मनुष्यों को ऐसा क्या करना चाहिए और क्या छोड़ देना चाहिए ?
यही कारण है कि सन 2018 मई महीने में भारत के पूर्वी प्रदेशों में कई बार हिंसक आँधी तूफ़ान आए जिनका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था और मौसम भविष्यवक्ताओं ने जिन जिन तारीखों में आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणियाँ कीं भी वे गलत होती चली गईं | एक नहीं कई बार ऐसा हुआ ,यहाँ तक कि ऐसे मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा 7 और 8 मई को भीषण आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणी की गई जिसके कारण दिल्ली के आसपास के स्कूल कालेज बंद कर दिए गए किंतु उस दिन आँधी तूफ़ान तो दूर हवा का एक झोंका भी नहीं आया !ऐसा और भी कई बार हुआ जब मौसमभविष्यवक्ताओं के द्वारा आँधी तूफ़ान जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका जो लगाया गया वो गलत सिद्ध हुआ ,जबकि उपग्रहों रडारों आदि से मौसमसंबंधी चित्र तो प्राप्त होते ही रहे होंगे उनकी मॉनीटरिंग भी की जाती रही होगी इसके बाद भी मई 2018 में आए आँधी तूफानों के विषय में न केवल पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका अपितु यह भी नहीं खोजा सा सका कि इस वर्ष ही मई और जून के महीने में ऐसी घटनाएँ घटित क्यों हो रही हैं ?यद्यपि उस समय कहा गया था कि ऐसा इस वर्ष ही क्यों हुआ इस विषय में रिसर्च किया जाएगा किंतु ऐसा लगभग हर बड़ी घटना के बाद बोल दिया जाता है यदि रिसर्च किया भी जाता होगा तो उसका परिणाम कुछ सामने आ नहीं पाता है |
कई बार कुछ आँधी तूफ़ान या चक्रवात आदि समय रहते उपग्रहों रडारों आदि से देख लिए जाते हैं तो उनकी दिशा और गति के हिसाब से अंदाजा लगा लिया जाता है जिससे आपदा प्रबंधन में बड़ी मदद मिलजाती है और उससे होने वाली संभावित जनधन की हानि को कम कर लिया जाता है किंतु यह लाभप्रद होने के बाद भी इसे विज्ञान नहीं माना जा सकता है ये तो आँधी तूफ़ानों या चक्रवातों आदि का अंदाजा लगाने के लिए किया गया एक जुगाड़ मात्र है इसका विज्ञान खोजा जाना अभी तक बाकी है |
वैसे भी जिसका कोई विज्ञान ही नहीं खोजा सका है तो रिसर्च किस आधार पर किया जाएगा | रिसर्च के लिए भी कोई तो वैज्ञानिक आधार चाहिए | इसीलिए ऐसे विषयों में रिसर्च करने की बात कह तो दी जाती है किंतु ऐसा कुछ होते दिखता नहीं है और न ही उसके परिणाम दिखाई पड़ते हैं | ऐसे आँधी तूफानों आदि के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए यदि कोई विज्ञान खोजा जा सका होता तो संभवतः ये परिस्थिति पैदा ही न होती |
प्राकृतिक घटनाएँ और उनके पूर्वानुमान -
सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं का प्रभाव उनकी अपनी अपनी ऋतुओं में भी घटते या बढ़ते देखा जाता है वर्षा ऋतु में वर्षा ही होगी भले कुछ कम हो या कुछ अधिक !इसके अलावा तो कुछ होने की संभावना नहीं होती है | ऐसे ही प्रत्येक ऋतु का कुछ कम या अधिक प्रभाव उस ऋतु में दिखाई पड़ता है यह तो किसी न किसी रूप में लगभग प्रत्येक वर्ष में घटित होने वाली घटनाएँ हैं |यही कारण है कि इसमें ढुलमुल भविष्यवाणियाँ चल जाती हैं क्योंकि इसमें गलत होने की संभावना बहुत कम रहती है |
पूर्वानुमानों की परीक्षा तो तब होती है जब कुछ ऐसी उग्र प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती हैं जिनमें अचानक किसी हिंसक प्राकृतिक घटना से भारी जन धन की हानि होने लगती है जिसके विषय में पूर्वानुमान लगाना तो दूर किसी को आशंका भी नहीं होती है कि ऐसी हिंसक घटना घट भी सकती है और उसी समय ऐसी घटना घटित हो जाए इन्हें प्राकृतिक आपदाओं की श्रेणी में रखा जाता है | ऐसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने में सफलता मिल जाए तब तो मौसम विज्ञान वो परीक्षा पास हो सकता है |
वस्तुतः प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने की अभी तक कोई विधा खोजी ही नहीं जा सकी है फिर भी सामान्य आँधी वर्षा सर्दी आदि से संबंधित प्राकृतिक घटनाएँ अपनी अपनी ऋतुओं में घटित होती रहती हैं इसलिए उनके विषय में अंदाजा भी रहता है ,किंतु आकस्मिक घटित होने वाली हिंसक प्राकृतिक घटनाओं के लिए कोई ऋतु निर्धारित नहीं होती है इसीलिए इनके विषय में पूर्वानुमान के नामपर ढुलमुल भविष्यवाणियाँ नहीं चल पाती हैं इसीलिए ऐसी घटनाओं का पूर्वानुमान न लगा पाने वाले मौसमवैज्ञानिक लोग ऐसी घटनाओं को घटित होने का कारण ग्लोबलवार्मिंग या जलवायु परिवर्तन आदि कुछ भी बता देते हैं या फिर इनके विषय में रिसर्च की आवश्यकता है ऐसा कहकर टाल जाते हैं | ग्लोबलवार्मिंग या जलवायु परिवर्तन आदि का पूर्वानुमान लगाया नहीं जा सकता इसलिए प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान कैसे लगा लिया जाएगा ये हर कोई समझ ही लेता है |
प्राकृतिक आपदाओं की तरह ही भूकंप भी अचानक घटित होने वाली घटना है इसकी भी कोई ऋतु नहीं होती है कभी भी घटित हो सकता है इसमें रडारों उपग्रहों के द्वारा छायाचित्र नहीं लिए जा सकते हैं | इसलिए इसके विषय में संबंधित वैज्ञानिकों के द्वारा सच्चाई स्वीकार कर ली गई है कि भूकंपों के विषय में पूर्वानुमान लगाने की कोई विधि खोजी नहीं जा सकी है |
यद्यपि प्राकृतिक आपदाओं के विषय में भी स्पष्टरूप से यही कहकर भ्रम निवारण कर दिया जाना चाहिए कि इसके विषय में पूर्वानुमान लगाने की कोई विधि खोजी नहीं जा सकी है किंतु इसमें अभी हिचकिचाहट है | कुलमिलाकर मौसम भविष्य बताने वालों के द्वारा ऐसी ऋतुजन्य घटनाओं का जो पूर्वानुमान बताया भी जाता है वो सब इतना अधिक ढुलमुल और द्वयर्थी होता है कि उनका स्पष्ट अभिप्राय संभवतः उन्हें भी कम ही समझ में आता होगा जो बता रहे होते हैं |इसलिए ऐसी भविष्यवाणियों का समुचित परीक्षण नहीं हो पाता है और न ही इनसे किसानों को कोई लाभ ही पहुँच पाता है |
ऋतुओं का प्रभाव कभी कम और कभी अधिक होते रहना तो प्रकृति का अपना सहज स्वभाव है जो सृष्टि संरक्षण के लिए होता है संहार के लिए नहीं ,किंतु कभी कभी प्राकृतिक घटनाएँ अपने स्वभाव और उद्देश्य के विरुद्ध हिंसक हो जाती हैं | इसीलिए कई बार वर्षा सर्दी गर्मी आदि किसी भी ऋतु में घटित होने वाली घटनाओं का प्रभाव इतना कम या अधिक हो जाता है कि उससे जनधन की हानि होने लग जाती है इसी कारण से ऐसी घटनाओं को प्राकृतिक आपदाओं की श्रेणी में रखा जाता है | इनके विषय में माना जाता है कि ये प्रकृति का सहज स्वभाव नहीं अपितु प्रकृति का प्रकोप है | ऐसी घटनाओं से कई बार जनधन की बड़ी हानि होते देखी जाती है |
ऐसी प्राकृतिक आपदाओं के विषय में पूर्वानुमान पता लगाया जा सके तो इनके कारण होने वाली जनधन की हानि की मात्रा को कम किया जा सकता है |इसीलिए ऐसे समय में जनता संबंधित वैज्ञानिकों से ये अपेक्षा करती है कि ऐसी घटनाओं के घटित होने का पूर्वानुमान वैज्ञानिक उन्हें बता पाते तो जन धन के हानि की मात्रा घटाई जा सकती थी किंतु बहुत कम ही ऐसा हो पाता है |
कई बार अपनी अपनी ऋतुओं के अलावा दूसरी ऋतुओं के समय में भी प्राकृतिक घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं जैसे गरमी या सर्दी की ऋतु में वर्षा होने लगना आदि |ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमानों के नाम पर तीर तुक्के नहीं चल पाते हैं, क्योंकि ऐसी घटनाएँ लीक से हटकर घटित होने लग जाती हैं |इसीलिए ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में किए जाने वाले पूर्वानुमानों का सही परीक्षण भी ऐसी ही परिस्थिति में किया जा सकता है|
वर्तमान समय में पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया जो प्रचलन में है उसमें विज्ञान न होने के कारण लीक से हटकर घटित होने वाली घटनाओं का पूर्वानुमान नहीं लगपाता है | इसीलिए जब ऐसी बड़ी घटनाएँ घटित होने लगती हैं वहीँ से वे पूर्वानुमान गलत होने शुरू हो जाते हैं जो यह प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त होता है कि हमारे पास मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाने के विषय में अभी तक कोई सटीक वैज्ञानिक अनुसंधान करने की प्रक्रिया विकसित नहीं की जा सकी है क्योंकि यदि ऐसा हो पाया होता तो कोई भी प्राकृतिक घटना अपनी ऋतु में घटित हो या दूसरी ऋतु में अर्थात कभी भी घटित हो और कैसी भी घटित हो तो उसका स्पष्ट पूर्वानुमान पहले से लगा लिया जाना चाहिए जो नहीं हो पाता है |
ऐसे अनुसंधानों से अभी तक केवल कुछ वाक्य या वाक्यांश ही मिल पाए हैं जिनसे जनता के लाभहानि का कोई नाता भले ही न हो किंतु इसी काल्पनिक वैज्ञानिकता के सहारे समय जरूर पास होता जा रहा है | वस्तुतः यह तो अनिश्चित कालीन समय तक चलने वाला परिणाम विहीन रिसर्च है |
- भूकंप -
भूकंप कब आते हैं क्यों आते हैं और प्रकृति की किन परिस्थितियों में आते हैं वे परिस्थितियाँ कब कब बनती हैं उनकी पहचान क्या है जिनके आधार पर भूकंपों के विषय में पूर्वानुमान लगाए जा सकें किसी भी रिसर्च के लिए ऐसे प्रश्नों के उत्तर खोजे जाना अति आवश्यक माना जाता है |
भूकंपों के विषय में जो अनुसंधान हुए हैं उनके परिणाम स्वरूप अभी तक ऐसे प्रश्नों के उत्तर मिल नहीं पाए हैं |यही कारण है कि भूकंपों के विषय में पूर्वानुमान अभी तक खोजे नहीं जा सके हैं | इसके विषय में अधिकृत लोगों के द्वारा केवल इतना बताया जा रहा है कि भूकंप पृथ्वी के अंदर संचित गैसों के दबाव के कारण आते हैं या फिर पृथ्वी के गर्भ में निहित लावा पर तैर रही प्लेटों के आपस में टकराने से भूकंप आते हैं |
कुछ रिसर्चरों के हवाले से यह बताया जा रहा है कि हिमालय में गैसों का बहुत बड़ा भण्डार है | इसलिए हिमालय के आस पास अधिक तीव्रता का कोई बड़ा भूकंप आने वाला है जिसकी तीव्रता 9. 0 के लगभग होगी | ऐसा पिछले कई वर्षों से बताया जा रहा है किंतु वह भूकंप आएगा कब ये किसी को नहीं पता | बताया ये भी जा रहा है कि यह बात भी रिसर्च से पता लगी है |
इस विषय में मेरा निवेदन मात्र इतना है कि जिस वैज्ञानिक प्रक्रिया से भूकंप आने का कारण खोज लिया गया है और उस कारण की सच्चाई पर यदि दृढ़ विश्वास है कि गैसों का दबाव बढ़ने से भूकंप आते हैं तो जिस वैज्ञानिक प्रक्रिया से गैसों के दबाव का अंदाजा लगाया गया है सिद्धांततः उसी प्रक्रिया से इस बात का भी अंदाजा लगा लिया जाना चाहिए कि गैसों के कितने दबाव पर भूकंप आने की संभावना होती है एवं किस प्रकार के कितने दबाव से कितनी तीव्रता का भूकंप आ सकता है |
यदि ऐसा किया जाए तो मुझे विश्वास है कि ऐसा होते ही भूकंपों से संबंधित पूर्वानुमान इसी प्रक्रिया के द्वारा लगाया जा सकता है | क्योंकि सबसे बड़ी बात किसी भी घटना के घटित होने के पीछे का कारण खोजना होता है कारण यदि पता लग ही गया है तो उसके विषय में पूर्वानुमान खोजना काफी आसान हो जाता है |
इसी प्रकार से पृथ्वी के गर्भ में निहित लावा पर तैर रही प्लेटों के आपस में टकराने से भूकंप आते हैं | यदि इस बात को मान लिया जाए कि प्लेटों के आपस में टकराने से भूकंप आते हैं | इससे एक बात तो सिद्ध हो जाती है कि हमें प्लेटों के गति करने की बात का पता लगाने में सफलता मिल चुकी है ऐसी परिस्थिति में उसी पद्धति से प्लेटों के एक दूसरे की ओर बढ़ने संबंधी हलचल का भी अंदाजा लगाया जा सकता है | इसी आधार पर इस बात का पूर्वानुमान भी लगा लिया जाना चाहिए कि प्लेटों में कब हलचल होने वाली है तथा कब वे प्लेटें एक दूसरे की ओर बढ़ने वाली हैं उनकी गति और दिशा देखकर ही इस बात का भी पता लगाया जा सकता है कि दोनों का आपस में टकराव लगभग कब संभावित है | उस टकराहट के आधार पर ही आगामी भूकंपों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है किंतु भूकंपों के विषय में अभी तक पूर्वानुमान लगा पाना संभव नहीं हो पाया है जो भूकंपों के विषय में चलाए जा रहे अनुसंधानों के अधूरेपन का संकेत देता है |
गैसों का दबाव और प्लेटों के टकराने जैसी बातों में कितनी सच्चाई है और कितनी कल्पना है | इसका परीक्षण तो तभी हो पाता जब इसके आधार पर भूकंप संबंधी कुछ पूर्वानुमान लगाए और बताए जाते तथा वे सच निकलते !किंतु अभी तक ऐसा कुछ होना संभव नहीं हो पाया है |
यहाँ सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह है कि भूकंपों के आने में भूमिगत प्लेटों या गैसों के दबावों की बात ही कितनी सच है यह भी अभी तक सिद्ध नहीं हो पाया है ऐसी परिस्थिति में उसके आधार पर हिमालय के आस पास अधिक तीव्रता का कोई बड़ा भूकंप आने के विषय में की गई कल्पना का सच्चाई से कोई संबंध है भी या नहीं यह सिद्ध होना भी अभीतक बाक़ी है |इसीलिए हिमालय में बहुत बड़ा भूकंप आने की भविष्यवाणी जो पिछले कुछ दशकों से की जाती रही है वह भी दिनोंदिन आगे घसिटती चली जा रही है | जहाँ तक बात भूकंप आने की है तो ऐसे तो कभी भी कहीं भी कितना भी बड़ा भूकंप आ सकता है हिमालय में भी आ सकता है किंतु ऐसे किसी कभी भी घटित हो जाने वाले भूकंपों का ऐसी समय विहीन भविष्यवाणियों से कोई संबंध कैसे माना जा सकता है |
मौसमविज्ञान -
मौसमसंबंधी पूर्वानुमान लगाने में भी अलनीनों लानीना तथा जलवायुपरिवर्तन जैसी न जाने कितनी ऐसी बाते हैं मौसम संबंधी घटनाओं पर उनका असर पड़ता है ऐसा बताया जाता है| ऐसी बातें सुनकर कई बार लगता है कि हो न हो ऐसी बातों में भी कुछ सच्चाई हो किंतु ऐसे काल्पनिक आधार पर जो मौसमसंबंधी भविष्यवाणियाँ की जाती हैं उनमें से अधिकाँश भविष्यवाणियाँ गलत हो जाती हैं इसलिए ऐसी कल्पनाओं पर विश्वास करना कठिन हो जाता है |
बताया जाता है कि अलनीनों लानीना तथा जलवायुपरिवर्तन जैसी बातों या परिस्थितियों का असर मौसम संबंधी वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान आदि घटनाओं पर पड़ता है जो लोग ऐसा कहते हैं उनकी ये जिम्मेदारी भी बनती है कि ऐसी कल्पनाओं के आधार पर वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान आदि प्राकृतिक घटनाओं की सही सही भविष्यवाणियाँ करके ऐसी बातों को प्रमाणित सिद्ध किया जाना चाहिए कि ऐसी बातों में भी कुछ सच्चाई है ,जबकि ऐसा होते तो नहीं दिखता है |
दीर्घावधि अर्थात कुछ समय पहले के मौसमसंबंधी पूर्वानुमान लगाने की कोई वैज्ञानिक प्रक्रिया ही नहीं है और ऐसा करने के लिए जिस प्रक्रिया की परिकल्पना की भी गई है उसके आधार पर पिछले 13 वर्षों के विषय में लगाए गए मौसम संबंधी पूर्वानुमानों में से यदि केवल 5 वर्षों के पूर्वनुमान ही सही होते हैं | ऐसी परिस्थिति में इन्हें विज्ञान सम्मत पूर्वानुमानों की श्रेणी में रखा जाना कैसे उचित माना जा सकता है |
इसी प्रकार से मानसून के आने जाने की बात है मानसून से संबंधित पूर्वानुमान की दृष्टि से मानसून के आने जाने के विषय में अभी तक जो भी तारीखें बताई जाती रही हैं वे लगभग गलत होती रही हैं कभी कभार एक आध बार सही होने के यदि तीर तुक्के लग भी गए हों तो उसे विज्ञान सम्मत पूर्वानुमान कैसे माना जा सकता है !क्योंकि पूर्वानुमान जैसा वैज्ञानिक कसौटी पर कसा जाने लायक उसमें कुछ ऐसा नहीं होता है जिसे वैज्ञानिक कसौटी पर कसा जा सके !
मौसमपूर्वानुमान की भाषा में जिसे दीर्घावधिपूर्वानुमान के नाम पर जाना जाता है वस्तुतः पूर्वानुमान होते वही हैं वे बाकी ऐसे पूर्वानुमान लगाने के लिए अभी तक कोई तकनीक विकसित नहीं की जा सकी है ये और बात है | वैसे भी आज कल परसों के विषय में बताए जाने वाले पूर्वानुमानों को पूर्वानुमान इसलिए नहीं माना जा सकता है क्योंकि पूर्वानुमान बताने के समय तक उस तरह की घटना के लक्षण कहीं न कहीं तो प्रकट हो ही चुके होते हैं भले वे सुदूर समुद्र में ही क्यों न हुए हों | जो लक्षण एक स्थान पर प्रकट हो चुके हों उन्हें देखकर उनकी गति दिशा आदि के अनुशार अंदाजा या अनुमान तो लगाया जा सकता है किंतु इसे पूर्वानुमान नहीं माना जा सकता है |
प्रायः कृषिकार्यों के आदि के लिए दीर्घावधिपूर्वानुमानों की ही आवश्यकता होती है क्योंकि किसानों को कोई फसल बोने से काटने या उसकी सिंचाई करने के लिए उन्हें महीनों पहले के मौसम संबंधी पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है क्योंकि किसानों को महीनों पहले फसलयोजना बनानी पड़ती है वो वर्षा होने की संभावित मात्रा के अनुसार ही ऊँची और नीची जमीनों पर उसके अनुरूप ही फसलें बोनी होती हैं |
इसलिए किसानों की आवश्यकता के अनुसार उन्हें मौसमसंबंधी दीर्घावधि पूर्वानुमान चाहिए होते हैं,किंतु मौसम विज्ञान की किसी भी विधा या प्रक्रिया के द्वारा मौसम संबंधी दीर्घावधि पूर्वानुमान निकालपाना अभीतक संभव नहीं हो पाया है | जिन लोगों के द्वारा दीर्घावधि मौसमपूर्वानुमानों से संबंधित भविष्यवाणियाँ की भी जाती हैं उनमें सच होने वाली भविष्यवाणियों की संख्या काफी कम होती है इससे अधिक तो वे अंदाजे सही निकल जाते हैं जो किसान लोग स्वयं पारंपरिक ज्ञान और अनुभवों के आधार लगा लिया करते हैं |
मौसमवैज्ञानिकों के द्वारा वर्षा संबंधी जो भविष्यवाणियाँ की जाती हैं उनमें भविष्यविज्ञान के नाम पर तो कुछ विशेष होता नहीं है अपितु कुछ द्वयर्थी शब्दों का जाल मात्र होता है ! कोई स्पष्ट भविष्यवाणी की ही नहीं जाती है जब जैसी घटनाएँ घटित होने लगती हैं तब तैसी भविष्यवाणियाँ की जाने लगती हैं |
मौसमविज्ञान की प्रक्रिया में जो काम विज्ञान से होने की बात होती है अक्सर उसमें तर्क संगत वैज्ञानिक तथ्य घटित नहीं होते हैं अपितु केवल आँधी तूफानों बादलों आदि की जासूसी मात्र करनी होती है |बादल या आँधी तूफ़ान कब कहाँ से उठे किधर को जा रहे हैं ये उपग्रहों रडारों से देखकर उनके जाने की गति कितनी है उसी हिसाब से इतने दिन में इस देश प्रदेश या शहर आदि में पहुँच जाएँगे| इस प्रक्रिया में विज्ञान के दर्शन नहीं होते |
ये सबकुछ देखकर लगता है कि उपग्रहों रडारों का सहयोग लेकर कभी कभी काम तो चला लिया जाता है किंतु ये काम चलाऊ प्रक्रिया मात्र है जिसके द्वारा लगाए जाने वाले अंदाजे बहुत कम सच होते देखे जाते हैं |ऐसी परिस्थिति में मौसमविज्ञान में विज्ञान क्या है उस वैज्ञानिक पक्ष की भी खोज की जानी चाहिए जिसके द्वारा दीर्घावधि कहे जाने वाले वर्षासंबंधी पूर्वानुमानों को भी सच बनाया जा सके |
आँधीतूफान -
वर्तमान समय में आँधी तूफ़ान संबंधी पूर्वानुमान लगाने के लिए उपग्रहों रडारों की भूमिका बहुत अहम होती है क्योंकि आँधी तूफ़ान बन जाने के बाद जब किसी एक दिशा में उड़कर जाते देखे जाते हैं उस समय उनकी जो गति होती है और उस समय जिस दिशा में जा रहे होते हैं उस गति और दिशा के हिसाब से इस बात का अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये किस देश प्रदेश शहर आदि में कब कितने वेग से पहुँच सकते हैं |
ऐसी परिस्थिति में आँधी तूफ़ान निर्मित होने के बाद तो अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये कब कहाँ पहुँचेंगे किंतु आँधी तूफ़ान दिखाई देने से पहले जब उनका बनना भी प्रारंभ न हुआ हो उस समय ही यदि इस बात का पूर्वानुमान लगा लिया जाए कि किसी आँधी तूफ़ान या चक्रवात आदि का निर्माण होने वाला है तो ऐसे समय में प्राकृतिक वातावरण की विशेष सतर्कता पूर्वक निगरानी रखी जा सकती है इस प्रक्रिया से बचाव कार्यों के लिए समय कुछ अधिक मिल जाता है जिससे जनधन की हानि कम से कम होती है |
यदि आँधी तूफ़ान आने के विषय में बहुत पहले पूर्वानुमान लगा पाना संभव हो सके तो आपदा प्रबंधन संबंधी कार्यों की दृष्टि से बहुत सुविधा हो सकती है |
कई बार एक साथ कई कई तूफ़ान लगातार आते रहते हैं और ये क्रम महीनों चला करता है एक श्रृंखला (चैन) सी बनती चली जाती है | इनमें बार बार जनधन की हानि होते देखी जाती है | ऐसी आपदाओं से समाज में भय का वातावरण बनने लगता है लोगों को चिंता सताने लगती है कि आखिर ऐसे ये तूफ़ान कितने समय तक और आते रहेंगे ऐसा इस वर्ष क्यों हो हो रहा है |इसका किसी के पास कोई उत्तर नहीं होता है | ऐसी परिस्थिति में उपग्रहों रडारों आदि से केवल इतनी मदद मिल पाती है कि जैसे जैसे जितने भी तूफ़ान आते जाते हैं वैसे वैसे वे देख लिए जाते हैं और उसी हिसाब से अंदाजा लगा लिया जाता है कि जो तूफ़ान इस समय जहाँ दिखाई पड़ रहा है वो कल कहाँ पहुँच सकता है किंतु अगला तूफ़ान कब आएगा इस बात का किसी के पास कोई पूर्वानुमान नहीं होता है जबकि उस समय हर कोई इस बात को जानना चाहता है कि आखिर ये तूफ़ान इसी प्रकार से बार बार कब तक आते रहेंगे !
कुल मिलाकर आँधी तूफ़ान चक्रवात आदि शुरू होने के बाद तो उपग्रहों रडारों की मदद से इस बात का अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये कब कहाँ पहुँचेंगे किंतु इनके प्रारंभ होने से पूर्व जब इनके किसी प्रकार के सूक्ष्म लक्षण भी न दिखाई पड़ रहे हों उस समय इनके विषय में पूर्वानुमान लगा पाना केवल कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी होता है |
इसी से संबंधित कुछ परिस्थितियाँ और होती हैं जिनके विषय में जानने की न केवल उत्सुकता होती है अपितु पूर्वानुमान लगाने के लिए भी जानना आवश्यक होता है कि आँधीतूफान और चक्रवात आदि से संबंधित घटनाएँ किन किन परिस्थितियों में घटित होती हैं ? उस समय प्राकृतिक वातावरण में किस प्रकार के लक्षण प्रकट होने लगते हैं जिन्हें देखकर इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि यहाँ कोई आँधी तूफ़ान आदि निर्मित होने की संभावना है |
ऐसे विषयों में इस बात का भी अनुसंधान आवश्यक होता है कि आँधीतूफान और चक्रवात आदि बनने की परिस्थितियाँ निर्मित कब अर्थात कैसे समय में होती हैं क्यों होती हैं अर्थात उनके निर्मित होने का कारण क्या है ?वह जो भी कारण है वह प्राकृतिक है या मनुष्यकृत ? यदि प्राकृतिक है तो उसमें कुछ कमी लाने के लिए किस प्रकार के प्रयास किए जाने चाहिए और यदि मनुष्यकृत है तो उसे कम करने के लिए मनुष्यों को ऐसा क्या करना चाहिए और क्या छोड़ देना चाहिए ?
यही कारण है कि सन 2018 मई महीने में भारत के पूर्वी प्रदेशों में कई बार हिंसक आँधी तूफ़ान आए जिनका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था और मौसम भविष्यवक्ताओं ने जिन जिन तारीखों में आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणियाँ कीं भी वे गलत होती चली गईं | एक नहीं कई बार ऐसा हुआ ,यहाँ तक कि ऐसे मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा 7 और 8 मई को भीषण आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणी की गई जिसके कारण दिल्ली के आसपास के स्कूल कालेज बंद कर दिए गए किंतु उस दिन आँधी तूफ़ान तो दूर हवा का एक झोंका भी नहीं आया !ऐसा और भी कई बार हुआ जब मौसमभविष्यवक्ताओं के द्वारा आँधी तूफ़ान जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका जो लगाया गया वो गलत सिद्ध हुआ ,जबकि उपग्रहों रडारों आदि से मौसमसंबंधी चित्र तो प्राप्त होते ही रहे होंगे उनकी मॉनीटरिंग भी की जाती रही होगी इसके बाद भी मई 2018 में आए आँधी तूफानों के विषय में न केवल पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका अपितु यह भी नहीं खोजा सा सका कि इस वर्ष ही मई और जून के महीने में ऐसी घटनाएँ घटित क्यों हो रही हैं ?यद्यपि उस समय कहा गया था कि ऐसा इस वर्ष ही क्यों हुआ इस विषय में रिसर्च किया जाएगा किंतु ऐसा लगभग हर बड़ी घटना के बाद बोल दिया जाता है यदि रिसर्च किया भी जाता होगा तो उसका परिणाम कुछ सामने आ नहीं पाता है |
कई बार कुछ आँधी तूफ़ान या चक्रवात आदि समय रहते उपग्रहों रडारों आदि से देख लिए जाते हैं तो उनकी दिशा और गति के हिसाब से अंदाजा लगा लिया जाता है जिससे आपदा प्रबंधन में बड़ी मदद मिलजाती है और उससे होने वाली संभावित जनधन की हानि को कम कर लिया जाता है किंतु यह लाभप्रद होने के बाद भी इसे विज्ञान नहीं माना जा सकता है ये तो आँधी तूफ़ानों या चक्रवातों आदि का अंदाजा लगाने के लिए किया गया एक जुगाड़ मात्र है इसका विज्ञान खोजा जाना अभी तक बाकी है |
वैसे भी जिसका कोई विज्ञान ही नहीं खोजा सका है तो रिसर्च किस आधार पर किया जाएगा | रिसर्च के लिए भी कोई तो वैज्ञानिक आधार चाहिए | इसीलिए ऐसे विषयों में रिसर्च करने की बात कह तो दी जाती है किंतु ऐसा कुछ होते दिखता नहीं है और न ही उसके परिणाम दिखाई पड़ते हैं | ऐसे आँधी तूफानों आदि के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए यदि कोई विज्ञान खोजा जा सका होता तो संभवतः ये परिस्थिति पैदा ही न होती |
प्राकृतिक घटनाएँ और उनके पूर्वानुमान -
सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं का प्रभाव उनकी अपनी अपनी ऋतुओं में भी घटते या बढ़ते देखा जाता है वर्षा ऋतु में वर्षा ही होगी भले कुछ कम हो या कुछ अधिक !इसके अलावा तो कुछ होने की संभावना नहीं होती है | ऐसे ही प्रत्येक ऋतु का कुछ कम या अधिक प्रभाव उस ऋतु में दिखाई पड़ता है यह तो किसी न किसी रूप में लगभग प्रत्येक वर्ष में घटित होने वाली घटनाएँ हैं |यही कारण है कि इसमें ढुलमुल भविष्यवाणियाँ चल जाती हैं क्योंकि इसमें गलत होने की संभावना बहुत कम रहती है |
पूर्वानुमानों की परीक्षा तो तब होती है जब कुछ ऐसी उग्र प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती हैं जिनमें अचानक किसी हिंसक प्राकृतिक घटना से भारी जन धन की हानि होने लगती है जिसके विषय में पूर्वानुमान लगाना तो दूर किसी को आशंका भी नहीं होती है कि ऐसी हिंसक घटना घट भी सकती है और उसी समय ऐसी घटना घटित हो जाए इन्हें प्राकृतिक आपदाओं की श्रेणी में रखा जाता है | ऐसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने में सफलता मिल जाए तब तो मौसम विज्ञान वो परीक्षा पास हो सकता है |
वस्तुतः प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने की अभी तक कोई विधा खोजी ही नहीं जा सकी है फिर भी सामान्य आँधी वर्षा सर्दी आदि से संबंधित प्राकृतिक घटनाएँ अपनी अपनी ऋतुओं में घटित होती रहती हैं इसलिए उनके विषय में अंदाजा भी रहता है ,किंतु आकस्मिक घटित होने वाली हिंसक प्राकृतिक घटनाओं के लिए कोई ऋतु निर्धारित नहीं होती है इसीलिए इनके विषय में पूर्वानुमान के नामपर ढुलमुल भविष्यवाणियाँ नहीं चल पाती हैं इसीलिए ऐसी घटनाओं का पूर्वानुमान न लगा पाने वाले मौसमवैज्ञानिक लोग ऐसी घटनाओं को घटित होने का कारण ग्लोबलवार्मिंग या जलवायु परिवर्तन आदि कुछ भी बता देते हैं या फिर इनके विषय में रिसर्च की आवश्यकता है ऐसा कहकर टाल जाते हैं | ग्लोबलवार्मिंग या जलवायु परिवर्तन आदि का पूर्वानुमान लगाया नहीं जा सकता इसलिए प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान कैसे लगा लिया जाएगा ये हर कोई समझ ही लेता है |
प्राकृतिक आपदाओं की तरह ही भूकंप भी अचानक घटित होने वाली घटना है इसकी भी कोई ऋतु नहीं होती है कभी भी घटित हो सकता है इसमें रडारों उपग्रहों के द्वारा छायाचित्र नहीं लिए जा सकते हैं | इसलिए इसके विषय में संबंधित वैज्ञानिकों के द्वारा सच्चाई स्वीकार कर ली गई है कि भूकंपों के विषय में पूर्वानुमान लगाने की कोई विधि खोजी नहीं जा सकी है |
यद्यपि प्राकृतिक आपदाओं के विषय में भी स्पष्टरूप से यही कहकर भ्रम निवारण कर दिया जाना चाहिए कि इसके विषय में पूर्वानुमान लगाने की कोई विधि खोजी नहीं जा सकी है किंतु इसमें अभी हिचकिचाहट है | कुलमिलाकर मौसम भविष्य बताने वालों के द्वारा ऐसी ऋतुजन्य घटनाओं का जो पूर्वानुमान बताया भी जाता है वो सब इतना अधिक ढुलमुल और द्वयर्थी होता है कि उनका स्पष्ट अभिप्राय संभवतः उन्हें भी कम ही समझ में आता होगा जो बता रहे होते हैं |इसलिए ऐसी भविष्यवाणियों का समुचित परीक्षण नहीं हो पाता है और न ही इनसे किसानों को कोई लाभ ही पहुँच पाता है |
ऋतुओं का प्रभाव कभी कम और कभी अधिक होते रहना तो प्रकृति का अपना सहज स्वभाव है जो सृष्टि संरक्षण के लिए होता है संहार के लिए नहीं ,किंतु कभी कभी प्राकृतिक घटनाएँ अपने स्वभाव और उद्देश्य के विरुद्ध हिंसक हो जाती हैं | इसीलिए कई बार वर्षा सर्दी गर्मी आदि किसी भी ऋतु में घटित होने वाली घटनाओं का प्रभाव इतना कम या अधिक हो जाता है कि उससे जनधन की हानि होने लग जाती है इसी कारण से ऐसी घटनाओं को प्राकृतिक आपदाओं की श्रेणी में रखा जाता है | इनके विषय में माना जाता है कि ये प्रकृति का सहज स्वभाव नहीं अपितु प्रकृति का प्रकोप है | ऐसी घटनाओं से कई बार जनधन की बड़ी हानि होते देखी जाती है |
ऐसी प्राकृतिक आपदाओं के विषय में पूर्वानुमान पता लगाया जा सके तो इनके कारण होने वाली जनधन की हानि की मात्रा को कम किया जा सकता है |इसीलिए ऐसे समय में जनता संबंधित वैज्ञानिकों से ये अपेक्षा करती है कि ऐसी घटनाओं के घटित होने का पूर्वानुमान वैज्ञानिक उन्हें बता पाते तो जन धन के हानि की मात्रा घटाई जा सकती थी किंतु बहुत कम ही ऐसा हो पाता है |
कई बार अपनी अपनी ऋतुओं के अलावा दूसरी ऋतुओं के समय में भी प्राकृतिक घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं जैसे गरमी या सर्दी की ऋतु में वर्षा होने लगना आदि |ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमानों के नाम पर तीर तुक्के नहीं चल पाते हैं, क्योंकि ऐसी घटनाएँ लीक से हटकर घटित होने लग जाती हैं |इसीलिए ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में किए जाने वाले पूर्वानुमानों का सही परीक्षण भी ऐसी ही परिस्थिति में किया जा सकता है|
वर्तमान समय में पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया जो प्रचलन में है उसमें विज्ञान न होने के कारण लीक से हटकर घटित होने वाली घटनाओं का पूर्वानुमान नहीं लगपाता है | इसीलिए जब ऐसी बड़ी घटनाएँ घटित होने लगती हैं वहीँ से वे पूर्वानुमान गलत होने शुरू हो जाते हैं जो यह प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त होता है कि हमारे पास मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाने के विषय में अभी तक कोई सटीक वैज्ञानिक अनुसंधान करने की प्रक्रिया विकसित नहीं की जा सकी है क्योंकि यदि ऐसा हो पाया होता तो कोई भी प्राकृतिक घटना अपनी ऋतु में घटित हो या दूसरी ऋतु में अर्थात कभी भी घटित हो और कैसी भी घटित हो तो उसका स्पष्ट पूर्वानुमान पहले से लगा लिया जाना चाहिए जो नहीं हो पाता है |
ऐसी प्राकृतिक घटनाएँ -
जहाँ एक ओर सन 2019 में दो चक्रवात ऐसे आए जिनके विषय में अंदाजा कुछ पहले से लगाया जा सका था उस प्रयास से संभावित जनधन की हानि को कुछ कम किया जा सका है किंतु इसके अतिरिक्त निकट के वर्षों में कई ऐसी प्राकृतिक घटनाएँ भी घटित हुई हैं जिनके विषय में पहले से पूर्वानुमान नहीं बताए जा सके हैं और न ही ये बताया जा सका है कि ऐसी घटनाओं के अचानक घटित होने के कारण क्या था ?इसलिए उनमें होने वाली जनधन की संभावित हानि को कम नहीं किया जा सका है | ऐसी परिस्थितियों में वैज्ञानिक अनुसंधान का अभाव हमेंशा खटकता रहता है |
उदाहरण स्वरूप में विगत कुछ वर्षों में घटित बड़ी घटनाओं और उनके विषय में किए गए पूर्वानुमानों को यदि ध्यान से देखा जाए तो कई ऐसी बड़ी प्राकृतिक घटनाएँ घटित हुई हैं जिनका कोई पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका और कई बार तो जो बताया गया वो गलत निकल गया जबकि वैज्ञानिक अनुसंधानों में ऐसा होते कम देखा जाता है वे किसी न किसी प्रमाणित और मजबूत आधार पर टिके होते हैं उतनी मजबूती मानसून से संबंधित पूर्वानुमानों में दिखाई नहीं देती है |
- केदारनाथ जी में 16 जून 2013 में केदारनाथ जी में भीषण वर्षा का सैलाव आया हजारों लोग मारे गए किंतु इसका पूर्वानुमान पहले से बताया गया होता तो जनधन की हानि को कम किया जा सकता था किंतु ऐसा नहीं हो सका !
- 21अप्रैल 2015 की रात्रि में बिहार में काफी बड़ा तूफ़ान आया था जिससे भारत के बिहार आदि प्रांतों में जन धन की बहुत हानि हुई थी जिसके विषय में कोई भविष्यवाणी नहीं की गई थी !
- बनारस में अधिक वर्षा के विषय में - 28 जून 2015 को एवं 16 जुलाई 2015 को बनारस में लगातार दो सभाएँ प्रधानमंत्री जी को करनी थीं किंतु वर्षा अधिक होने के कारण दोनों सभाएँ रद्द कर देनी पड़ी थीं जिसके विषय में कोई पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका था |
- मद्रास में भीषण बाढ़ - सन2015 के नवंबर महीने में मद्रास में हुई भीषण बारिश और बाढ़ के कारण त्राहि त्राहि मची हुई थी किंतु इसका भी पूर्वानुमान नहीं बताया गया था !
- सन 2016 के अप्रैल मई आदि में भारत में अधिक गर्मी पड़ने बहुत अधिक घटित हुई थीं नदी कुएँ तालाब आदि तेजी से सूखते चले जा रहे थे ट्रैन से कुछ स्थानों पर पानी भेजा गया था |इसी समय में आग लगने की घटनाएँ बहुत अधिक संख्या में घटित हुई थीं इसलिए विहार सरकार की ओर से दिन में हवन न करने एवं चूल्हा न जलाने की सलाह दी गई थी ,किंतु समाज यदि जानना चाहे कि ऐसा हुआ क्यों और इसका कारण क्या था तथा ऐसा कब तक होता रहेगा ? इनविषयों में कभी कुछ भी नहींबताया जा सका |
- 2 मई 2018 को पूर्वी भारत में भीषण आँधी तूफान आया उसके बाद भी उसी मई में कुछ बड़े आँधी तूफ़ान और भी आए जिनमें बड़ी संख्या में जनधन की हानि हुई किंतु उसके विषय में कभी कोई भविष्यवाणी नहीं की गई थी |
- 8 मई 2018 को बड़े आँधी तूफ़ान आने की जो भविष्यवाणी की भी गई थी जिस कारण दिल्ली और उसके आसपास के स्कूल कालेज बंद करा दिए गए किंतु उस दिन कोई तूफ़ान क्या आँधी भी नहीं आई ऐसा कई बार हुआ क्यों ?
- केरल की भीषण बाढ़ - 7 से 14 अगस्त 2018 तक केरल में भीषण बरसात शुरू हुई जिससे केरल वासियों को भारी नुक्सान उठाना पड़ा था जबकि 3 अगस्त 2018 को सरकारी मौसम विभाग के द्वारा अगस्त सितंबर में सामान्य बारिश होने की भविष्यवाणी की गई थी जो गलत साबित हुई |
- 17 अप्रैल 2019 को मध्यभारत में अचानक भीषण बारिश आँधी तूफ़ान आदि आया बिजली गिरने की घटनाएँ हुईं जिसमें लाखों बोरी गेहूँ भीग गया और लाखों एकड़ में खड़ी हुई तैयार फसल बर्बाद हो गई !इस घटना के विषय में भी पहले कभी कोई पूर्वानुमान नहीं बताया गया था |
ऐसी और भी कुछ बड़ी प्राकृतिक घटनाएँ घटित हुई हैं जिनके विषय में पूर्वानुमान बताया नहीं जा सका है |उनमें भी जनधन की हानि हुई है उनके विषय में यदि पूर्वानुमान पता होते तो उनके द्वारा हुई जन धन संबंधी हानि की मात्रा को कुछ कम किया जा सकता था |
मौसम पूर्वानुमान -
इस प्रकार से सच्चाई तो यही है कि मौसम संबंधी घटनाओं का पूर्वानुमान लगा पाना अभी भी कठिन लग रहा है जैसा कि कई घटनाओं और उनके विषय में लगाए जाने वाले पूर्वानुमानों को देखकर लग जाता है इसका कारण क्या है और पूर्वानुमान लगाने की हमारी सीमाएँ क्या हैं और इस विषय में हमारी सतर्कता कितनी है अनुभव कैसे हैं !आदि आदि !! इस विषय में हम जो कुछ भी कह पाएँगे वो हमारा व्यक्तिगत अनुभव होगा जबकि ऐसी घटनाओं के विषय में सामूहिक रूप से विचार किया जाना चाहिए |
उपग्रहों रडारों के द्वारा कभी कभी एक आध घटना के विषय में जो पता लगा लिया जाता है उसका आधार वास्तव में विज्ञान है या वह केवल एक जुगाड़ है उसमें न तो कोई विज्ञान है | अक्सर देखा जाता है कि प्रकृति में जो घटना किसी एक स्थान पर घटित हो रही होती है उसी घटना को उपग्रहों रडारों की मदद से देखकर उसकी गति और दिशा के आधार पर इस बात का अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये घटना कब किस देश प्रदेश शहर आदि में पहुँच सकती है |इस जुगाड़ से लाभ तभी लिया जा सकता है जब प्राकृतिक घटनाएँ समुद्र में या किसी अन्य स्थान में अत्यंत दूरी पर घटित होनी प्रारंभ होती हैं तब तो उपग्रहों रडारों के आधार पर लगाया गया अंदाजा काम आ जाता है किंतु जब ऐसी घटनाएँ समुद्र के निकटवर्ती क्षेत्रों में घटित होते दिखाई पड़ती हैं तब इससे प्राप्त अनुमानों से उतना लाभ नहीं हो पाता है |
इसीप्रकार से भूकंपों का पूर्वानुमान न लगा पाने के विषय में अक्सर कहा जाता है कि भूकंपों के विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है वस्तुतः भूकंपों की कोई ऋतु नहीं होती है इसलिए भूकंपों का पूर्वानुमान लगाने के विषय में वर्षाऋतु आदि की तरह अंदाजा लगाने की किसी सामान्य प्रक्रिया से काम चल नहीं सकता है चल नहीं सकता है |
वर्षा ऋतु में चार ही प्राकृतिक परिस्थितियाँ बनती हैं या तो वर्षा होती है या नहीं होती है इसके अतिरिक्त कम या अधिक होती है |इसलिए इस विषय में कोई भी अंदाजा लगाकर बता दिया जाता है तो वो इन चार परिस्थितियों में किसी न किसी से मेल खा जाता है जिससे उस अंदाजे को भविष्यवाणी बताकर चला लिया जाता है | यह सुविधा सर्दी गर्मी आदि अन्य ऋतुओं के साथ भी है इसलिए ऐसे अंदाजे वहाँ भी चला लिए जाते हैं किंतु भूकंपों के विषय में ऐसी कोई ऋतुसुविधा नहीं है भूकंप तो कभी भी आ सकता है इसलिए उसमें भूकंप आने और न आने संबंधी दो परिस्थितियाँ ही बन पाती हैं | ऐसी परिस्थिति में भूकंप आने की भविष्यवाणी यदि की जाएगी तो वो सही तभी मानी जाएगी जब भूकंप आएगा अन्यथा गलत मान ली जाएगी ! संभवतः यही कारण है कि भूकंपों के विषय में भविष्यवाणी करने के नाम पर किसी को कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं पड़ती है | इसी प्रकार से वर्षा सर्दी गर्मी आदि में भी ऋतु सुविधा न होती तो इनके विषय में भी भविष्यवाणियाँ करने में लोग डरा करते |
मौसमविज्ञान जहाँ से चला था वहीं खड़ा है या कुछ आगे भी बढ़ा है !
मौसमसबंधी घटनाओं के अनुसंधान के लिए एक मंत्रालय विभाग आदि बनाया गया है उसकी संपूर्ण व्यवस्था संचालन का खर्च देशवासियों के द्वारा दिए जाने वाले टैक्स के पैसे से किया जाता है | अधिकारियों कर्मचारियों एवं इससे संबंधित वैज्ञानिकों की सैलरी समेत संपूर्ण सुख सुविधाओं पर होने वाला आर्थिक खर्च देशवासी वहन करते हैं| इससे संबंधित अनुसंधानों पर होने वाला खर्च भी देशवासी वहन करते हैं| ऐसा सभी कुछ देशवासी जिस उद्देश्य से करते हैं उस उद्देश्य की पूर्ति कितने प्रतिशत हो पाती है इसका चिंतन भी होना ही चाहिए |
ऐसी परिस्थिति में बहुत पहले की बात तो नहीं है किंतु निकट के पिछले 6 वर्षों में घटित हुई बड़ी प्राकृतिक घटनाओं को यदि लिया जाए लगता है कि मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा किए जाने वाले बड़े बड़े अनुसंधानों के बाद मौसम पूर्वानुमान के क्षेत्र में जो कुछ मिला क्या वह पर्याप्त है ?जिस उद्देश्य से मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना की गई थी उस लक्ष्य को हासिल करने में कितने प्रतिशत सफलता प्राप्त की जा सकी है |
5 अक्टूबर 1864 में कलकत्ता में आए भयंकर चक्रवात से लगभग 60,000 लोगों की मौत हो गई थी इसके अतिरिक्त 1866 एवं 1871 में अकाल पड़ा था बताया जाता है कि उसमें भी काफी जन धन की हानि हुई थी !ऐसी घटनाएँ अचानक घटित होने के कारण प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाया था इसलिए जन धन की हानि काफी अधिक हो गई थी |
इस विषय में उचित तो यह है कि मौसम संबंधी इसीप्रकार से भूकंपों का पूर्वानुमान न लगा पाने के विषय में अक्सर कहा जाता है कि भूकंपों के विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है वस्तुतः भूकंपों की कोई ऋतु नहीं होती है इसलिए भूकंपों का पूर्वानुमान लगाने के विषय में वर्षाऋतु आदि की तरह अंदाजा लगाने की किसी सामान्य प्रक्रिया से काम चल नहीं सकता है चल नहीं सकता है |
वर्षा ऋतु में चार ही प्राकृतिक परिस्थितियाँ बनती हैं या तो वर्षा होती है या नहीं होती है इसके अतिरिक्त कम या अधिक होती है |इसलिए इस विषय में कोई भी अंदाजा लगाकर बता दिया जाता है तो वो इन चार परिस्थितियों में किसी न किसी से मेल खा जाता है जिससे उस अंदाजे को भविष्यवाणी बताकर चला लिया जाता है | यह सुविधा सर्दी गर्मी आदि अन्य ऋतुओं के साथ भी है इसलिए ऐसे अंदाजे वहाँ भी चला लिए जाते हैं किंतु भूकंपों के विषय में ऐसी कोई ऋतुसुविधा नहीं है भूकंप तो कभी भी आ सकता है इसलिए उसमें भूकंप आने और न आने संबंधी दो परिस्थितियाँ ही बन पाती हैं | ऐसी परिस्थिति में भूकंप आने की भविष्यवाणी यदि की जाएगी तो वो सही तभी मानी जाएगी जब भूकंप आएगा अन्यथा गलत मान ली जाएगी ! संभवतः यही कारण है कि भूकंपों के विषय में भविष्यवाणी करने के नाम पर किसी को कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं पड़ती है | इसी प्रकार से वर्षा सर्दी गर्मी आदि में भी ऋतु सुविधा न होती तो इनके विषय में भी भविष्यवाणियाँ करने में लोग डरा करते |
मौसमविज्ञान जहाँ से चला था वहीं खड़ा है या कुछ आगे भी बढ़ा है !
मौसमसबंधी घटनाओं के अनुसंधान के लिए एक मंत्रालय विभाग आदि बनाया गया है उसकी संपूर्ण व्यवस्था संचालन का खर्च देशवासियों के द्वारा दिए जाने वाले टैक्स के पैसे से किया जाता है | अधिकारियों कर्मचारियों एवं इससे संबंधित वैज्ञानिकों की सैलरी समेत संपूर्ण सुख सुविधाओं पर होने वाला आर्थिक खर्च देशवासी वहन करते हैं| इससे संबंधित अनुसंधानों पर होने वाला खर्च भी देशवासी वहन करते हैं| ऐसा सभी कुछ देशवासी जिस उद्देश्य से करते हैं उस उद्देश्य की पूर्ति कितने प्रतिशत हो पाती है इसका चिंतन भी होना ही चाहिए |
ऐसी परिस्थिति में बहुत पहले की बात तो नहीं है किंतु निकट के पिछले 6 वर्षों में घटित हुई बड़ी प्राकृतिक घटनाओं को यदि लिया जाए लगता है कि मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा किए जाने वाले बड़े बड़े अनुसंधानों के बाद मौसम पूर्वानुमान के क्षेत्र में जो कुछ मिला क्या वह पर्याप्त है ?जिस उद्देश्य से मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना की गई थी उस लक्ष्य को हासिल करने में कितने प्रतिशत सफलता प्राप्त की जा सकी है |
5 अक्टूबर 1864 में कलकत्ता में आए भयंकर चक्रवात से लगभग 60,000 लोगों की मौत हो गई थी इसके अतिरिक्त 1866 एवं 1871 में अकाल पड़ा था बताया जाता है कि उसमें भी काफी जन धन की हानि हुई थी !ऐसी घटनाएँ अचानक घटित होने के कारण प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाया था इसलिए जन धन की हानि काफी अधिक हो गई थी |
ऐसी
परिस्थिति में प्राकृतिक आपदाओं के विषय में आँकड़े अनुभव आदि जुटाकर
पूर्वानुमान लगाने के लिए 1875 में भारतीय मौसम
विज्ञान
विभाग की स्थापना की गई थी | इस समय सन 2019 चल रहा है।तब से लेकर अभी तक
लगभग 144 वर्ष बीत
चुके हैं|किसी न किसी रूप में लगातार अनुसंधान चलाए जा रहे हैं इनसे
संबंधित मंत्रालय संचालित किए जा रहे हैं अधिकारियों कर्मचारियों
वैज्ञानिकों आदि पर एवं उनके द्वारा किए जाने वाले अनुसंधानों पर भारी भरकम
धनराशि एक ही उद्देश्य की पूर्ति के लिए खर्च की जा रही है कि प्राकृतिक
घटनाओं से संबंधित सही और सटीक पूर्वानुमान लगाए जा सकें | ऐसी परिस्थिति
में इस बात की समीक्षा तो होनी ही चाहिए कि इतने लंबे समय से चले आ रहे
अनुसंधानों द्वारा प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान
लगा लेने में भारत की क्षमता में कितना विकास हुआ है ?ऐसा आत्ममंथन भी किया
जाना चाहिए |
मौसम संबंधी पूर्वानुमानों का सच !
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