धर्मांतरण के कारण ही घटी है हिंदुओं की जनसंख्या , सम्राट 'भरत' के भारत में हिन्दू ही अल्पसंख्यक हुआ जा रहा है ! आश्चर्य !!!
सम्राट 'भरत' का देश होने के कारण यह 'भारतवर्ष' है चूँकि महाराज भरत सनातन धर्मी हिन्दू थे इसलिए भारत वर्ष को ही हिंदुस्तान भी कहा जाने लगा और महाराज भरत के प्रजाजनों को भारतवर्षी या हिंदू या हिंदुस्तानी कहा जाने लगा !
जो लोग महाराज भरत को अपना पूर्वज एवं अपने को भारत वर्ष का मूल निवासी मानते हैं वे सब हिन्दू हैं । जो लोग अपने को हिन्दू नहीं मानते हैं वे या तो भारत वर्ष के मूल निवासी नहीं हैं और या फिर हिन्दू ही हैं फिर भी जिन लोगों को विश्वास है कि वे इस देश के ही मूल निवासी हैं किन्तु आज वे किसी अन्य धर्मकर्मों का अनुशरण कर रहे हैं उनका भय या लोभवश धर्मान्तरण हुआ है और यदि यह सच है तो उनकी घर वापसी पर इतना हो हल्ला क्यों ?
आज भारत की पहचान हिंदुस्थान और भारत
वर्ष दोनों ही नामों से होती है ।चूँकि सम्राट 'भरत' के नाम से इस देश का
नाम भारतवर्ष पड़ा है इसलिए महाराज भरत के राष्ट्र की शासन व्यवस्था तो
शास्त्र प्रतिपादित थी अर्थात सभी कार्य शास्त्रों के अनुशार किए जाते थे
सनातन धर्मशास्त्रों से नियंत्रित शासन व्यवस्था जिस देश की हो वो भारत
वर्ष है।
हिंदुस्थान हो या हिन्दूराष्ट्र ये दोनों एक जैसे ही शब्द हैं हिन्दुओं के रहने का स्थान 'हिंदुस्थान'और हिंदुओं का राष्ट्र (देश) ही हिंदुस्थान या हिन्दूराष्ट्र है । इंडिया शब्द का हमारे देश की पहचान से कोई सम्बन्ध नहीं है ये तो मिला हुआ नाम है ।जिस
देश की राष्ट्र भाषाहिंदी और जिस देश का नाम हिंदुस्तान है वहाँ के रहने
वाले हिन्दू और वह देश हिंदू राष्ट्र क्यों नहीं है !और यदि नहीं है तो है और क्या ?
भारत हो या हिंदुस्थान।दोनों की हिंदू पहचान॥
अपने देश का नाम भारत होने का तो लंबा इतिहास है किन्तु इस देश का नाम इंडिया क्यों पड़ा ?इसका क्या इतिहास है ? जो भी हो किन्तु भारत वर्ष कहने से जो आत्मगौरव की अनुभूति होती है वह इंडिया से नहीं ! भारत नाम, एक प्राचीन हिन्दू सम्राट भरत जो कि मनु के वंशज ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र थे तथा जिनकी कथा श्रीमद्भागवत महापुराण में है, के नाम से लिया गया है। भारत (भा + रत) शब्द का मतलब है आन्तरिक प्रकाश । इसके अतिरिक्त भारतवर्ष को वैदिक काल से आर्यावर्त "जम्बूद्वीप" और "अजनाभदेश" के नाम से भी जाना जाता रहा है।
भारत को एक सनातन राष्ट्र माना जाता है क्योंकि यह मानव-सभ्यता का पहला राष्ट्र था। श्रीमद्भागवत के पञ्चम स्कन्ध में भारत राष्ट्र की स्थापना का वर्णन आता है। भारतीय दर्शन के अनुसार सृष्टि उत्पत्ति के पश्चात ब्रह्मा के मानस पुत्र स्वयंभू मनु ने व्यवस्था सम्भाली। इनके दो पुत्र, प्रियव्रत और उत्तानपाद थे। उत्तानपाद भक्त ध्रुव
के पिता थे। इन्हीं प्रियव्रत के दस पुत्र थे। तीन पुत्र बाल्यकाल से ही
विरक्त थे। इस कारण प्रियव्रत ने पृथ्वी को सात भागों में विभक्त कर एक-एक
भाग प्रत्येक पुत्र को सौंप दिया। इन्हीं में से एक थे आग्नीध्र जिन्हें जम्बूद्वीप
का शासन कार्य सौंपा गया। वृद्धावस्था में आग्नीध्र ने अपने नौ पुत्रों को
जम्बूद्वीप के विभिन्न नौ स्थानों का शासन दायित्व सौंपा। इन नौ पुत्रों
में सबसे बड़े थे नाभि जिन्हें हिमवर्ष का भू-भाग मिला। इन्होंने हिमवर्ष को स्वयं के नाम अजनाभ से जोड़ कर अजनाभवर्ष प्रचारित किया। यह हिमवर्ष या अजनाभवर्ष ही प्राचीन भारत देश था। राजा नाभि के पुत्र थे ऋषभ। ऋषभदेव के सौ पुत्रों में भरत ज्येष्ठ एवं सबसे गुणवान थे। ऋषभदेव ने वानप्रस्थ लेने पर उन्हें राजपाट सौंप दिया। पहले भारतवर्ष का नाम ॠषभदेव के पिता नाभिराज के नाम पर अजनाभवर्ष प्रसिद्ध था। भरत के नाम से ही लोग अजनाभखण्ड को भारतवर्ष कहने लगे बहुत पहले यह देश 'सोने की चिड़िया' के रूप में जाना जाता था।
इस प्रकार भारत नामअपनी पवित्र संस्कृति एवं इतिहास की याद दिलाता है जबकि इंडिया नाम से हमारा कोई सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक सम्बन्ध नहीं सिद्ध होता है ।
इसलिए जो भारत में रहकर भारतीय परम्पराओं पर विश्वास करता है वो भारतीय है हिंदू है और जो नहीं करता है वो नहीं है !
सनातन हिन्दू धर्म में बहुत संतानों को जन्म देने की परंपरा रही है इसीप्रकार बहुत संतानें हों ऐसे आशीर्वाद भी पहले से ही दिए जाते रहे हैं।पहले जन संख्या कम थी ये तब की बातें हैं किन्तु जब देश में न केवल पर्याप्त जनसंख्या हो गई अपितु बढ़ने लगी तो हिन्दू लोगों ने राष्ट्रहित में अपनी बहुत संतानों को जन्म देने वाली परम्पराओं को रोक कर हम दो हमारे दो वाले सरकारी उद्घोष का सम्मान किया और देश हित को ध्यान में रखते हुए दो बच्चों को जन्म देने लगे !किन्तु
इसमें समस्या तब पैदा होती है जब दूसरे धर्मों को मानने वाले लोग सरकार
एवं समाज की इस चिंता में सम्मिलित नहीं दिखाई देते हैं प्रत्युत अपने धर्म का हवाला देते हुए बहुत संतानों को जन्म देने की न केवल वकालत करते हैं अपितु इसी भावना से अपने सम्प्रदाय के अनुयायिओं की संख्या बढ़ाते जा रहे हैं !ऐसी परिस्थिति में देश की जनसंख्या का ध्यान उन्हें भी क्यों नहीं रखना चाहिए !
देश की बढ़ती हुई जनसंख्या को रोक कर रखने की सारी जिम्मेदारी केवल हिंदुओं की क्यों है ? अन्य सम्प्रदाय के अनुयायिओं की क्यों नहीं ?क्या इस देश को वे अपना नहीं समझते हैं यदि नहीं तो क्यों ?और यदि हाँ तो कैसे ?यदि द्देश की जनसंख्या इस प्रकार से बढ़ेगी तो यह चिंता का विषय उनके लिए भी क्यों नहीं होना चाहिए !और यदि वो लोग नहीं मानते हैं तो हिन्दू ही क्यों मानें!और वह क्यों न दे पाँच संतानों को जन्म ?
यदि विभिन्न भाषाओं के शब्दों को समेट कर चलने वाली भाषा को हिंदीभाषा कहने और मानने में किसी को आपत्ति नहीं है ! यदि विभिन्न जातिसंप्रदाय के लोगों वाले देश को हिन्दुस्थान कहने और मानने में किसी को आपत्ति नहीं है ! विभिन्न जाति संप्रदाय वाले लोगों को राष्ट्रवाद की भावना से अपने साथ मिलाकर जो चले उसे हिंदू कहने और मानने में किसी को आपत्ति क्यों है ? इसीप्रकार से हिंदुस्थान को हिंदूराष्ट्र कहने और मान लेने में क्या समस्या है ?
पढ़िए हमारा यह लेख भी -
संघ जैसे राष्ट्र प्रहरी संगठन एवं भाजपा को लेकर क्यों किया जाता है संदेह और दुष्प्रचार ?देश ,समाज और संस्कृति के प्रति समर्पित है आर .एस.एस. ! seemore... http://samayvigyan.blogspot.com/2014/08/blog-post_13.html
No comments:
Post a Comment