"अपराध बढ़ेंगे तो आमदनी बढ़ेगी ! " मित्रो !अपराध बढ़ने का कारण कहीं कुछ लोगों की इसी प्रकार की सोच तो नहीं है !
आजीविका के साधन अपराध नहीं हो सकते किन्तु कुछ लोग यदि ऐसा ही मानते हैं तो उनसे निपटने के लिए सरकार क्या कर रही है क्योंकि घूस का लेन देन निरवरोध रूप से लगभग हर जगह जारी है घूस रुके तो अपराध घटे क्योंकि आपराधिक हर कार्य घूस के सहारे ही चलता है अपराधियों का सबसे बड़ा बल घूस ही होता है ?कोई भी अपराधी अक्सर घूस के सहारे ही देते हैं अपराधों को अंजाम !अर्थात कुछ देकर बच जाएँगे ।
महिलाओं के साथ आखिर क्यों होते हैं रोज रोज हादसे ! और या फिर सरकार अपनी मजबूरी महिलाओं को सीधे क्यों नहीं बता सकती कि इससे अधिक सुरक्षा आज की परिस्थिति में हम नहीं दे सकते !आप कोई बाबा जी तो हैं नहीं जो आपकी सुरक्षा के लिए विशेष इंतजाम करना इतना ही जरूरी हो !आप महिलाएँ हैं तो क्या हुआ ! हैं तो आमआदमी ही जिनके बच्चों को पढ़ने लिए सरकारी स्कूल, चिकित्सा के लिए सरकारी अस्पताल आदि व्यवस्थाएँ हैं जहाँ की कार्यपद्धति से सारा समाज परिचित है !
सरकारी नौकरी को सेवा कहते हैं और सेवा श्रद्धा से की जाती है!सरकारी हर विभाग के कर्मचारी अपनी अपनी श्रद्धा के अनुशार सेवाएँ दे रहे हैं जो इनसे संतुष्ट नहीं है वो प्राइवेट का विकल्प चुनें !आखिर प्राइवेट वालों का विकल्प तो उन्हीं लोगों के लिए खुला है जो सरकारी सेवाओं से संतुष्ट न हों ! फिर अपराध न रुकने के लिए देश की पुलिस व्यवस्था को बार बार जिम्मेदार क्यों ठहराया जाए !
इसलिए सरकार कह दे कि महिलाएँ इससे अधिक सरकारी सुरक्षा का भरोसा छोड़ें और अपने भरोसे निकलें घर से देर सबेर न निकलें या जैसे उनको ठीक लगे वैसा वो करें ,कम से कम सरकारी सुरक्षा के भरोसे तो न रहें और न ही अपनी जान जोखिम में डालें !
अपराध रोकने की जिम्मेदारी सरकारी हाथों में है जबकि अपराध करने वाले अधिकतर लोग गैर सरकारी अर्थात प्राइवेट होते हैं और प्राइवेट लोगों से हर सरकारी विभाग पराजित है शिक्षाविभाग सँभालने की सारी जिम्मेदारी सरकारी और निगम के प्राथमिक स्कूलों ने प्राइवेट स्कूलों पर डाल रखी है , आलम यह है कि शिक्षक अपने बच्चे भी प्राइवेट स्कूलों में ही पढ़ा रहे हैं !
यही स्थिति सरकारी अस्पतालों की है उनका हौसला ही प्राइवेट अस्पतालों के सामने पस्त हैं वो अपने घर वालों को भी प्राइवेट नरसिंग होम में दिखाने जाते हैं।
यही स्थिति दूर संचार विभाग की है उसे प्राइवेट कंपनियों ने इतना ढीला कर रखा है,डॉक विभाग प्राइवेट कोरिअर के सामने अपनी इज्जत बचाने के लिए हाथ जोड़े खड़ा है ।
कहने का मतलब जब इन सब सरकारी विभागों को अपनी अपनी श्रद्धानुशार कार्य करने की छूट सभी को है तो केवल पुलिस के विरूद्ध ही इतना हो हल्ला क्यों मचाया जाता है ?
बंधुओ! सरकारी विभागों में सरकारी कर्मचारियों के काम करने की पद्धति यदि इतनी ही शिथिल है जिसे ठीक करने के लिए सरकारें आज तक कुछ नहीं कर सकी हैं ऐसे में सरकारी पुलिसविभाग में भी तो सरकारी कर्मचारी ही हैं उन पर सरकार का इतना विश्वास किस कारण है कि वो अपना काम संपूर्ण निष्ठा से कर ही रहे होंगे ?और यदि वो सरकार के इस विश्वास पर निरंतर खरे नहीं उतर पा रहे हैं और सभी प्रकार के अपराधों में दिनोंदिन बढ़ोत्तरी होती जा रही है ऐसी परिस्थिति में इन अपराधों को रोकने के लिए सरकार किसी अन्य विकल्प पर भी विचार करेगी क्या ?अथवा पुलिस विभाग में ही ऐसा क्या नया परिवर्तन करेगी जिससे अपराध घटें और देश की महिलाएँ सुरक्षित हों !
अब तो लोग कहने भी लगे हैं कि अपराध रोकना ही कौन चाहता है आज कुछ जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग तो अपराध को ही अपनी आजीविका तक मान बैठे हैं अन्यथा यदि कोई अपराधी किसी वारदात को अंजाम देना चाहता है तो लगभग देता ही है कोई उसे रोक नहीं पाता इसीप्रकार से अपराध को रोकने की जिम्मेदारी जिनपर है वो यदि उतनी ही निष्ठा से अपराध रोकने का संकल्प करें तो क्यों नहीं रोके जा सकते हैं अपराध !
अपराध करने वाले जितनी निष्ठा से अपराध करते हैं अपराध रोकने के लिए जिम्मेदार लोग उतनी निष्ठा से अपराध रोकने का प्रयास ही नहीं करते अपराध रुकें तो कैसे !सरकारी सुरक्षाकर्मियों की शिथिल कार्यशैली शैली देखकर तो लगता है कि अपराधियों की जगह यदि बम विस्फोट करने की जिम्मेदारी कहीं इनकी होती तो इनके लगाए बम तो आधे भी नहीं फूटते वो बीच में ही फुस्स हो जाते !पहली बात तो ये लगा ही नहीं पाते ,लगाते ठीक जगह नहीं लगाते या इधर उधर लगा देते अथवा लगाने से पहले ही ये पकड़ जाते या फिर इनके डरके मारे काँपते हाथों से वो बम बीच में ही छूट कर फूट जाते !ये ठहरे सरकारी कर्मचारी इनमें अपराधियों जैसी कार्यनिष्ठा कहाँ होती है ! फिर अपराधियों का मुकाबला ये कर सकेंगे ऐसा भरोसा ही सरकार कैसे कर रही है ! सरकार को या तो खुद सुधरना होगा या इन्हें सुधारना होगा या नियमों में सुधार करना होगा अन्यथा सभी प्रकार के अपराध यों ही घटित होते रहेंगे !
सरकार यदि वास्तव में अपराध रोकना ही चाहती है तो जारी करे अपने विश्वसनीय एवं आत्मीय हेल्प लाइन नंबर !अपराधों की सूचनाएँ सरकार तक समाज स्वयं पहुँचाएगा किन्तु सरकार उनपर ईमानदारी से कार्यवाही करे और सूचना देने वाले की सुरक्षा में सहयोग करे !और यदि भूल बश कभी सूचना गलत भी तो उस निर्दोष स्वयं सेवक को कटघरे में न खड़ा किया जाए !
राजनेता लोग राजनीति में जब आते हैं तब गरीब और सामान्य होते हैं किन्तु राजनीति में घुसते ही करोड़ों अरबों में खेलने लगते हैं ये संपत्ति जुटाने के लिए उन्हें कोई खास उद्योग नहीं करना होता है कोई कंजूसी नहीं करते हैं पूरी ऐस आराम करते हुए अरबों रूपए बन जाते हैं नामी बेनामी संपत्तियाँ बन जाती हैं आखिर कैसे ?
सरकार के कई बदनाम विभाग हैं उनमें काम होता ही पैसे देकर है और पैसे वही दे पाता है जो अपराध को व्यापार मानकर चलता है जिसने किसी की जमीन पर कब्जा किया दस लाख का लालच है तो लाख पचास हजार खर्च कर दिए तब शासन उसका साथ इस हद तक देने लगता है कि जमीनदार उस इज्जतदार और ईमानदार निर्दोष आदमी से एक अपराधी के सामने घुटने टिकाए जाते हैं और उसे टेकने पड़ते हैं और उस अपराधी को आगे करके उस ईमानदार और निर्दोष आदमी से धन लेने के लिए वो हाथ आगे बढ़ते हैं जिन्हें सरकार अपराध रोकने के लिए जनता की गाढ़ी कमाई के टैक्स से सैलरी देती है उस सैलरी के बदले वो घूस लेकर सरकार को देते हैं कुल मिलाकर दोनों दोनों का ध्यान रखते हैं !
किसी भी घूस लेने वाले अधिकारी कर्मचारी से पूछो कि घूस का ये पैसा सब तुम्हें मिलता है ! तो वो कहते हैं कि नहीं ये तो ऊपर तक जाता है ऊपर कहाँ तक अर्थात सरकार तक ! दूसरी तरफ सरकार ने समाज को ऐसा कोई विश्वसनीय एवं आत्मीय संपर्क सूत्र नहीं दे रखा है जिस पर समाज ये बात निडरता पूर्वक पूछ या बता सके !
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पुलिस विभाग की आँखों में ईमानदारी का अंजन आँजते ही दिखने लगेंगे अपराधियों के चेहरे !पुलिस पर पॉलिस की जरूरत ! see more...http://samayvigyan.blogspot.in/2014/11/blog-post_29.html
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