काला
धन बाबाओं के पास हो तो शुद्ध और गृहस्थों के पास हो तो अशुद्ध ?
बंधुओ !कुछ बाबाओं और कुछ नेताओं के द्वारा छल कपट एवं पवित्र भ्रष्टाचार
पूर्वक इकट्ठा किया गया अकूत धन क्यों न माना जाए कालाधन ?
संन्यास
व्रत
- यह सब कुछ त्यागने की पवित्र प्रतिज्ञा है फिर संन्यास लेने के बाद इकट्ठा की गई करोड़ों की संपत्ति को शुद्ध धन कैसे मान लिया जाए !इसे कमाई कैसे माना जा सकता है आखिर इसे क्यों न माना जाए कालाधन ?संन्यास लेने अर्थात सबकुछ त्यागने की प्रतिज्ञा कर देने के बाद बाबाओं के पास इकट्ठा किया गया सारा धन काला धन ही माना जाए ! क्योंकि वो धन उस व्यक्ति को नहीं अपितु उसके वैराग्य वेष को मिला होता है जिस वेषभूषा पर समाज की अनंत काल से आस्था है !इसलिए एक बार संन्यास की प्रतिज्ञा करके फिर धन संग्रह करने लगना या व्यापार करने लगना ये संन्यास व्रत के साथ अन्याय है !
राजनीति
समाज सेवाव्रत है -देश और समाज की सेवा का पवित्र व्रत लेकर राजनीतिक क्षेत्र में जो लोग प्रवेश करते हैं तब तक उनके पास कुछ ख़ास नहीं होता है किन्तु कुछ वर्ष बीतते ही वो करोड़ों अरबों में खेलने लगते हैं आखिर कहाँ से आ जाता है वो धन ! इस बीच वो कोई ख़ास व्यापार भी नहीं कर पाते हैं धन कमाने के लिए कोई संघर्ष या कंजूसी नहीं करते हैं फिर भी महँगे महँगे घर गाड़ियाँ मकान दुकान आदि सब कैसे बनते चले जाते हैं ये लोग जहाजों से स्वदेश से विदेश तक सब जगह स्वतन्त्र होकर घूमा भी करते हैं और अपार संपत्ति भी इकठ्ठा कर लेते हैं ऐसी संपत्ति को कालाधन क्यों न माना जाए !जिसके स्रोत प्रत्यक्ष न हों !!
आधुनिक
बाबाओं और आधुनिकनेताओं में बहुत सारी समानताएँ होती हैं -
आप स्वयं
देखिए -बिना किसी परिश्रम के सुख सुविधा पूर्ण जीवन जीने के लिए बड़ी बड़ी रैलियाँ करके धन कमाना दोनों को बहुत पसंद है रैलियों में केवल भाव विहीन भाषण होते हैं इनका वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं होता है |जैसे -
यदि आप धार्मिक भाषण दे कर समाज को ठगते हैं तो बाबा !
यदि आप राजनैतिक भाषण दे कर ठगते हैं तो नेता !!
यदि आप मंच पर प्रेम पूर्वक किसी की आलोचना करते हैं तो बाबा !
यदि आप मंच पर क्रोध पूर्वक किसी की आलोचना करते हैं तो नेता !
जो वेद शास्त्रों की दुहाई देकर जनता को झकझोरते हैं वे बाबा !
जो संबिधान की दुहाई देकर जनता को झकझोरते हैं वे नेता !
जो ईश्वर भक्ति की दुहाई देकर माँगे वे बाबा !
जो देश भक्ति की दुहाई देकर माँगे वे नेता !!
जो परलोक का भय देकर लूटें वे बाबा !
जो इस लोक का भय देकर लूटें वे नेता !
जो शिष्य बनाकर जनता को सपने बेचें वो बाबा !
जो सदस्य बनाकर जनता को सपने बेचें वो नेता !
जो लाल वर्दी पहनकर रौब जमावें वे बाबा !
जो सफेद वर्दी पहनकर रौब जमावें वे नेता!
जो ईश्वर भक्ति की बात करके समाज को प्रभावित करें वे बाबा !
जो देश भक्ति की बात करके समाज को प्रभावित
करें वे नेता !
सबसे पहली बड़ी समानता यह कि दोनों के हाथ पैर दुरुस्त शरीर स्वस्थ होने पर भी दोनों बिना मेहनत के दूसरे के धन के बल पर ही अपनी शौक शान पूरी करने वाले होते हैं। जैसे रैलियों के शौक़ीन दोनों होते हैं।
आधुनिक नेता हों या महात्मा दोनों को मीडिया बनाता है और मीडिया ही नष्ट कर देता है।
अक्सर जब बाबा फँसते हैं तो नेता उसकी वकालत करने लगते हैं इसीप्रकार से नेता फँसते हैं तो बाबा लोग उसकी वकालत करने लगते हैं क्योंकि दोनों की पोल दोनों के पास दबी होती है इसीप्रकार दोनों अपने अपने अनुयायी एक दूसरे के पीछे लगाए रहते हैं।दोनों के खाने से शौच जाने तक का खर्च आम जनता बहन करती है नेता इतिहास की कहानियाँ सुनाकर जनता का यह लोक ठीक करने की बात करते हैं इसीप्रकार से बाबा लोग पुराणों की कथाएँ सुनाकर जनता का पर लोक ठीक करने का सपना दिखाते हैं। नेता जब खूब धन कमा लेता है फिर एकांत में शांति में कुटिया बना लेता है ताकि इसका भी आनंद लेता रहे इसीप्रकार बाबा अपना कमाई छिपाने के लिए राजनैतिक दखल बनाने लगते हैं।बाबा जब अपने किसी पाप से भयभीत होते हैं तो राजनैतिक ताकत तैयार करते हैं । इसीप्रकार नेता अपने किसी पाप से भयभीत होते हैं अपनी धार्मिक ताकत तैयार करते हैं अर्थात संन्यास लेने की बात करते हैं ।
बाबा हों या नेता दोनों ही अपनी अच्छी बुरी कैसी भी बात को समाज पर जबरदस्ती थोपने के लिए भीड़ का सहारा लेते हैं ।भीड़ को बुलाया तो कुछ और समझा करके जाता है, भाषण किसी और बात के दिए जा रहे होते हैं, उद्देश्य कुछ और होता है,परिणाम कुछ और होता है।
इसीप्रकार रैली में सम्मिलित होने वाले लोग भी समझने कुछ और आते हैं किंतु समझकर कुछ और चले जाते हैं।जहॉं तक भीड़ की बात है। भीड़ तो पैसे देकर भी इकट्ठी की जा रही है वो समाज का प्रतिनिधित्व तो नहीं कर सकती।
जो पैसे देकर भीड़ बुलाएगा वो भीड़ से ही पैसे कमाएगा भी। तो राजनीति या धर्म में भ्रष्टाचार होगा ही। किसी भी प्रकार के आरक्षण और छूट के लालची लोग अथवा कर्जा माफ करवाने के शौकीन लोग भ्रष्ट नेताओं को जन्म देते हैं।इसी प्रकार बहुत सारा पापकरके पापों से मुक्ति चाहने वाले चतुर लोग ही भ्रष्ट बाबाओं को जन्म देते हैं।ऐसी परिस्थिति में धर्म और राजनैतिक भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार आखिर कौन ?
राजनीति में दखल रखते हुए किसी पार्टी को पकड़ कर चलने वाले बाबाओं का भी बड़ा महत्त्व होता है बाबा लोग अपनी पार्टी के नेताओं के मुद्दे ही जोर शोर से उठाते हैं ताकि भगवा वस्त्रों पर समाज के पुरातन भरोसे को कैस किया जा सके और जब पार्टी सत्ता में आती है तब मंत्री वंत्री बनने के कारण अपने को सिक्योरिटी में मिलती ही है साथ ही अपने बाबाओं की भी सिक्योरिटी तो बनती है आखिर विरोधी पार्टियों को गाली वाली देने में उनका भी महत्वपूर्ण रोल होता है बिलकुल राजनीति की तरह ही विरोधी पार्टी के नेता जेल में डाल दिए जाते हैं फिर जब जेल वालों की महान और विरोधी पार्टी वाले बाबाओं के जेल वाले बाबाओं की पार्टी सत्ता में आती है तो वो अपनों को निकाल के विरोधी पार्टी वालों को डाल देती है ! जब जाँच होती है तो दोष तो निकल ही आते हैं कोई भी क्यों न हो कम समय में अधिक पैसे कमाने की इच्छा पाप करने के लिए प्रेरित करती ही है और जब तक जिसकी पोल ढकी रहती है तब तक वो ईमानदार होता ही है और जो किसी बड़े विरोधी नेता से पंगा न ले वो हमेंशा ही ईमानदार रहता है !
बाजार में आजकल कोई चीज शुद्ध नहीं है इसलिए कुछ बाबा शुद्ध और स्वदेशी के नाम से खाने पीने की सारी चीजें अपने आश्रम में ही बनवाते हैं और बेचते हैं चूँकि बाबा जी बनवाते हैं तो उनके स्वदेशी और शुद्धता पर तो संदेह किया ही नहीं जा सकता !अच्छी मार्किट चली है देशवासियों के इसी स्वदेशी एवं शुद्धता के प्रेम से प्रभावित होकर एक दूसरे बाबा जी स्वदेशी और शुद्ध पुलिस का निर्माण करने के लिए अपने आश्रम में ही प्रशिक्षण दिलवाने लगे किन्तु भगवान को मंजूर नहीं था आज वो वहाँ हैं जहाँ कोई नहीं जाना चाहता किन्तु किसी को क्या पता था कि सरकार बदल जायेगी !खैर , इससे उनके स्वदेशी एवं शुद्धता के अभियान को धक्का लगा है इसीलिए उनके गिरोह के सदस्य कहते हैं कि उनके सरदार के साथ अन्याय हुआ है !
इसलिए
ईश्वर को साक्ष्य करके सभी वर्ग एवं सभी प्रकार के अपराधियों को पकड़े और सुधारे बिना भ्रष्टाचार के विरुद्ध खोखले नारे लगाने, नेताओं की तथाकथित पोल खोलने से कुछ नहीं होगा।जब तक भ्रष्टाचारी संस्कृति के सबल संवाहक भ्रष्ट नेताओं और भ्रष्ट बाबाओं के विरुद्ध संयुक्त जनजागरण अभियान नहीं चलाया जाएगा।तब तक इसे मिटा पाना संभव ही नहीं है,क्योंकि बलात्कार
बंद करने के लिए कर क्या रही है सरकार ?
केवल
कठोर कानूनों से बलात्कार या अपराध बंद होने होते तो अबतक हो जाते ! अपराध सोचा मन से और किया तन से जाता है। अपराध करने पर लगाम लगाने के लिए तो कठोर कानूनोंका सहारा लिया जा सकता है किन्तु आपराधिक सोच पर लगाम लगाने के लिए धर्म एवं संस्कृति के विस्तार के लिए क्या कर रही है सरकार ?
धर्म
तो धार्मिक लोगों के आधीन एवं कानून नेताओं के आधीन हो गया है। ऐसे में किसी एक पर लगाम लगाने पर भी अपराध पर अधूरा नियंत्रण हो पाएगा जो उचित नहीं है।
कलियुगी नेताओं और तथाकथित बाबाओं में बहुत सारी समानताएँ होती हैं इन बाबाओं के पास ईश्वर भक्ति नहीं होती है। इन नेताओं में देश भक्ति नहीं होती है।दोंनों अपने अनुयायिओं की भीड़ के बल पर फूलते हैं। भीड़ देखकर दोनों ही पागल हो जाते हैं चाहें वह किराए की ही हो।अनाप सनाप कुछ भी बोलने बकने लगते हैं।दोनों को लगता है कि सारा देश उनके पीछे ही खड़ा है।दोनों की गिद्धदृष्टि पराई संपत्ति सहित पराई सारी चीजों को भोगने की होती है।दोनों वेष भूषा का पूरा ध्यान रखते हैं एक राष्ट्र भक्त नेताओं की तरह दिखने की दूसरे ईश्वरभक्त विरक्त महात्माओं की तरह दिखने की पूरी कोशिश करते हैं । दोनों रैलियॉं करने के आदी होते हैं।दोनों मीडिया प्रेमी होते हैं इसलिए पैसे देकर भी दोनों टी.वी.टूबी पर खूब बोलते हैं।बातों में दम हो न हो पैसे का दम जरूर दिखता है पैसे के ही बल पर बोलते हैं। नेता जब भ्रष्ट होता है तो कहता कि यदि ये आरोप सही साबित हुए तो संन्यास ले लूँ गा।जैसे उसे पता हो कि भ्रष्ट लोग ही संन्यासी होते हैं।मजे की बात यह है कि संन्यासी चुप करके सुना करते हैं कोई विरोध दिखाई सुनाई नहीं पड़ता।मानो पोलखुलने के भय से संन्यासी भयभीत हों कि कहीं कोई पोल न खुल जाए।इसी प्रकार कोई संन्यास भ्रष्टहोता है तो नेता बन जाता है।क्योंकि बिना पैसे ,बिना परिश्रम और बिना जिम्मेदारी के उत्तमोत्तम सुख सुविधाओं का भोग इन्हीं दो जगहों पर संभव है।
कलियुगी नेताओं और तथाकथित बाबाओं में बहुत सारी समानताएँ होती हैं इन बाबाओं के पास ईश्वर भक्ति नहीं होती है। इन नेताओं में देश भक्ति नहीं होती है।दोंनों अपने अनुयायिओं की भीड़ के बल पर फूलते हैं। भीड़ देखकर दोनों ही पागल हो जाते हैं चाहें वह किराए की ही हो।अनाप सनाप कुछ भी बोलने बकने लगते हैं।दोनों को लगता है कि सारा देश उनके पीछे ही खड़ा है।दोनों की गिद्धदृष्टि पराई संपत्ति सहित पराई सारी चीजों को भोगने की होती है।दोनों वेष भूषा का पूरा ध्यान रखते हैं एक राष्ट्र भक्त नेताओं की तरह दिखने की दूसरे ईश्वरभक्त विरक्त महात्माओं की तरह दिखने की पूरी कोशिश करते हैं । दोनों रैलियॉं करने के आदी होते हैं।दोनों मीडिया प्रेमी होते हैं इसलिए पैसे देकर भी दोनों टी.वी.टूबी पर खूब बोलते हैं।बातों में दम हो न हो पैसे का दम जरूर दिखता है पैसे के ही बल पर बोलते हैं। नेता जब भ्रष्ट होता है तो कहता कि यदि ये आरोप सही साबित हुए तो संन्यास ले लूँ गा।जैसे उसे पता हो कि भ्रष्ट लोग ही संन्यासी होते हैं।मजे की बात यह है कि संन्यासी चुप करके सुना करते हैं कोई विरोध दिखाई सुनाई नहीं पड़ता।मानो पोलखुलने के भय से संन्यासी भयभीत हों कि कहीं कोई पोल न खुल जाए।इसी प्रकार कोई संन्यास भ्रष्टहोता है तो नेता बन जाता है।क्योंकि बिना पैसे ,बिना परिश्रम और बिना जिम्मेदारी के उत्तमोत्तम सुख सुविधाओं का भोग इन्हीं दो जगहों पर संभव है।
इसप्रकार
धार्मिक लोगों की गतिविधियों को भी शास्त्रीय संविधान की सीमाओं के दायरे में बॉंधकर रखने की भी कोई तो सीमा रेखा होनी ही चाहिए। बाबा जी रैलियॉं कर रहे हैं, आज बाबा जी साड़ी बॉंट रहे हैं।बाबा जी स्वदेशी के नाम पर सब कुछ भी बेच रहे हैं , बाबा जी उद्योग धंधे लगा रहे हैं, बाबा जी चुनाव लड़ रहे हैं, बाबा जी मंत्री भी हैं।ऐसे लोगों के पर्दे के पीछे के भी बहुत सारे अच्छे बुरे आचरण देखने सुनने को मिलते हैं।ये सब गंभीर चिंता के बिषय हैं ।
इनकी
दृष्टि में क्या सारे पापों का कारण पत्नी ही होती है?केवल विवाहिता पत्नी का परित्याग करके या अविवाहित रह कर हर कुछ कर सकने का परमिट मिल जाता है इन्हें ?वो कितना भी बड़ा पाप ही क्यों न हो? मन पर नियंत्रण न करने पर कैसे विरक्तता संभव है? साधुत्व के अपने अत्यंत कठोर नियम होते हैं जिन्हें आज भी तीर्थक्षेत्रों में या अन्य जगहों पर संयमशील पूज्य साधूसंत जन निर्वाह कर रहे हैं संन्यास व्रत के अत्यंत कठोर नियमों को हर परिस्थिति में नहीं निभाया जा सकता है जबकि राजनीति हर परिस्थिति में निभानी पड़ती है। अपने सदाचारी तपस्वी संयमी जीवन से सारी समाज को ठीक रखने की जिम्मेदारी संतों की ही है।ऐसे में शास्त्रों एवं संतों की गरिमा रक्षा के लिए शास्त्रीय विरक्त संतों को ही आगे आकर यह शुद्धीकरण करना होगा। साथ ही तथाकथित बाबाओं पर लगाम कैसे लगे?यह पूज्य शास्त्रीय संतों को ही सोचना होगा।जो धार्मिक व्यवसायी लोग कहते हैं कि हमारा गुरुमंत्र जपो सारे पाप नष्ट हो जाएँगे इसका मतलब क्या यह नहीं निकाला जा सकता है कि ये पाप करने का परमिट बाँट रहे हैं ?कितना अभद्र है यह बयान
?
जैसे किसी बाबा जी के किसी प्रवचन में एक पति पत्नी सतसंग करने गए थे पैसे पास नहीं थे काम धाम चलता नहीं था।सोचा चलो सतसंग से ही शांति मिलेगी। वहॉं जाकर देखा कि मिठाई की दूकान की तरह सजे धजे मजनूँ टाइप के बाबा को मुख मटका मटका कर नाचते गाते बजाते या तथा कथित प्रवंचन करते देखा, बहुत सारा सोना पहने बाबाजी और बहुत सारा ताम झाम देखकर उसने सोचा बाबाजी का भी कोई उद्योग धंधा तो है नहीं ,बाबा जी ने समझदारी से काम लिया है।इस देश की जनता धर्म केवल सुनना चाहती है सुनाओ दिखाओ अच्छा अच्छा करो चाहे कुछ भी! जो इस देश की जनता को पहचान सका उसने पेट हिलाकर पैसे बना लिए कौन पूछता है कि बाबाजी योग के विषय में आप खुद क्या जानते हैं?बाबाजी को धर्म की बात बताना आता है करते चाहें जो कुछ भी हों इस पर जनता का ध्यान नहीं जाता है। जब बाबाजी का भी कोई उद्योग धंधा तो है नहीं तो बाबा जी ने भी कुछ किया नहीं तो धन आया कहॉं से?आखिर जनता को भी पता है।वैसे भी जो लोग हमारा पेमेंट नहीं देते वो बाबा जी को फ्री में क्यों दे देगें?अब मैं भी वही करूँगा और उसने भी बाबा बनने की ठानी इसप्रकार वह भी अच्छा खासा धनवान बाबा बन गया।क्योंकि अब उसका लक्ष्य धन कमाना ही हो गया था।इसी प्रकार तथाकथित सतसंगों के कई और भी कुसंग होते हैं। इसी जगह यदि किसी चरित्रवान संत का संग होता है तो कई जन्म के कुसंगों का दोष नष्ट भी हो जाता है किन्तु ऐसे कुसंगों के कारण ही बसों में बलात्कार हो रहे हैं।यदि इन्हें सत्संग माना जाए तो बढ़ रही सतसंगों की भीड़ें आखिर सतसंगों से सीख क्या रही हैं ?अपराधों का ग्राफ दिनों दिन बढ़ता जा रहा है इसका कारण आखिर क्या है ?
इसी प्रकार नेताओं की एक बार की चुनावी विजय के बाद हजारों रूपए के नेता करोड़ों अरबों में खेलने लगते हैं।इन्हें देखकर भी लोग सतसंगी लोगों की तरह ही बहुत बड़ी संख्या में प्रेरित होते हैं।ईश्वर भक्त संतों एवं देश भक्त नेताओं के दर्शन दिनों दिन दुर्लभ होते जा रहे हैं।बाकी राजनेताओं की बिना किसी बड़े व्यवसाय के दिनदूनी रात चैगुनी बढ़ती संपत्ति सहित सब सुख सुविधाएँ बढ़ते अपराधों की ओर मुड़ते युवकों के लिए संजीवनी साबित हो रही हैं ।
जैसे किसी बाबा जी के किसी प्रवचन में एक पति पत्नी सतसंग करने गए थे पैसे पास नहीं थे काम धाम चलता नहीं था।सोचा चलो सतसंग से ही शांति मिलेगी। वहॉं जाकर देखा कि मिठाई की दूकान की तरह सजे धजे मजनूँ टाइप के बाबा को मुख मटका मटका कर नाचते गाते बजाते या तथा कथित प्रवंचन करते देखा, बहुत सारा सोना पहने बाबाजी और बहुत सारा ताम झाम देखकर उसने सोचा बाबाजी का भी कोई उद्योग धंधा तो है नहीं ,बाबा जी ने समझदारी से काम लिया है।इस देश की जनता धर्म केवल सुनना चाहती है सुनाओ दिखाओ अच्छा अच्छा करो चाहे कुछ भी! जो इस देश की जनता को पहचान सका उसने पेट हिलाकर पैसे बना लिए कौन पूछता है कि बाबाजी योग के विषय में आप खुद क्या जानते हैं?बाबाजी को धर्म की बात बताना आता है करते चाहें जो कुछ भी हों इस पर जनता का ध्यान नहीं जाता है। जब बाबाजी का भी कोई उद्योग धंधा तो है नहीं तो बाबा जी ने भी कुछ किया नहीं तो धन आया कहॉं से?आखिर जनता को भी पता है।वैसे भी जो लोग हमारा पेमेंट नहीं देते वो बाबा जी को फ्री में क्यों दे देगें?अब मैं भी वही करूँगा और उसने भी बाबा बनने की ठानी इसप्रकार वह भी अच्छा खासा धनवान बाबा बन गया।क्योंकि अब उसका लक्ष्य धन कमाना ही हो गया था।इसी प्रकार तथाकथित सतसंगों के कई और भी कुसंग होते हैं। इसी जगह यदि किसी चरित्रवान संत का संग होता है तो कई जन्म के कुसंगों का दोष नष्ट भी हो जाता है किन्तु ऐसे कुसंगों के कारण ही बसों में बलात्कार हो रहे हैं।यदि इन्हें सत्संग माना जाए तो बढ़ रही सतसंगों की भीड़ें आखिर सतसंगों से सीख क्या रही हैं ?अपराधों का ग्राफ दिनों दिन बढ़ता जा रहा है इसका कारण आखिर क्या है ?
इसी प्रकार नेताओं की एक बार की चुनावी विजय के बाद हजारों रूपए के नेता करोड़ों अरबों में खेलने लगते हैं।इन्हें देखकर भी लोग सतसंगी लोगों की तरह ही बहुत बड़ी संख्या में प्रेरित होते हैं।ईश्वर भक्त संतों एवं देश भक्त नेताओं के दर्शन दिनों दिन दुर्लभ होते जा रहे हैं।बाकी राजनेताओं की बिना किसी बड़े व्यवसाय के दिनदूनी रात चैगुनी बढ़ती संपत्ति सहित सब सुख सुविधाएँ बढ़ते अपराधों की ओर मुड़ते युवकों के लिए संजीवनी साबित हो रही हैं ।
जनसेवा
व्रती कुछ सरकारी अफसरों के पास कैसे हो जाती है सैकड़ों करोड़ की संपत्ति -अफसरों के पास संपत्ति संग्रह के कितने सहज साधन होते हैं इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि कई अधिकारी पकड़े गए तो उनके पास सैकड़ों करोड़ की संपत्ति निकल रही है इसका सीधा सा अर्थ है कि सरकारी आफीसरों के पद कैसे कामधेनु बने हुए हैं जो पकड़ गए उनका हो हल्ला और जो ठीक से मैनेज करने में सफल हो गए उनके सैकड़ों हजारों करोड़ की संपत्ति इकठ्ठा होते कितनी देर लगती है और किसे इतनी गरज पड़ी है जो भ्रष्टाचार का पता लगाता घूमे और पकड़े भ्रष्टाचारियों को ! और यदि कोई पकड़ने वाला ही होता तो किसी एक अफसर के पास सैकड़ों करोड़ होते कैसे चले जाते हैं ?इसे रोकने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों ने पहले क्यों नहीं पकड़ा और अभी क्या गारंटी कि यहीं इति श्री है इसके अलावा भ्रष्टाचारी नहीं होंगे !किन्तु पकड़े कौन ?कई विभाग हैं जहाँ खुली घूस चलती है कौन पकड़ता है उन्हें ?
विपक्ष
में रहने वाले नेता और पार्टियाँ ऐसे घूस और भ्रष्टाचार पर बड़ा बड़ा शोर मचाया करते हैं किन्तु सत्ता में आते ही उन्हें भी हिस्सा मिलने लगता है और वो भी शांत हो जाते हैं !
ईमानदारी
की बड़ी बड़ी बातें करके केंद्र में सत्ता परिवर्तन हुआ था किन्तु राष्ट्रिय राजधानी में जब अभी तक भ्रष्टाचार के विरुद्ध कोई ऐसी मुहिम नहीं चलाई जा सकी है जहाँ बिना घूस के काम करने में सहायता मिले !सरकार ने कम्प्लेन करने के लिए जो संपर्क सूत्र दिए भी हैं वहाँ कम्प्लेन करने की व्यवस्था तो है किन्तु उसपर कोई कार्यवाही नहीं होती है कम से कम मेरा अनुभव तो यही कहता है मेरी भी दो एप्लीकेशन पड़ी हैं दूसरी ओर उन विभागों के लोग सुविधा शुल्क लेकर काम करने को तैयार हैं !!खैर हमारे कहने का मतलब केवल इतना है कि जनता को बरगलाकर अन्याय पूर्वक संग्रहीत किया गया धन और बनाई गई संपत्ति कालाधन क्यों नहीं है !
यदि ऐसे स्वदेशी
कालेधन से किसी को कोई आपत्ति नहीं है तो विदेश में पड़े काले धन के पीछे क्यों पड़े हैं लोग !यदि वो यहाँ आ भी जाएगा तो क्या आम जनता तक पहुँच पाएगा !
ऐसे कालेधन
रूपी माया मृग के पीछे जनता को आखिर क्यों दौड़ाया जा रहा है ! विदेश में पड़े काले धन पर इतना शोर शराबा और आखिर स्वदेश वाले के प्रति कृपा भावना क्यों ?
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