Monday, 25 September 2017

नेताओं अभिनेताओं और रईस लोगों की कृपा के बिना कोई आम इंसान बलात्कारी बाबा कैसे बन सकता है !ये साधना आसान होती है क्या ?

       बाबा बलात्कारी होते हैं या बनाए जाते हैं ?
   इतने बड़े बलात्कारी बाबा बनने के लिए धन चाहिए प्रचार चाहिए सुरक्षा चाहिए और सुन्दर स्त्री पुरुषों का सहयोग चाहिए !सभी के सहयोग के बिना कोई अकेला कोई साधारण सा आदमी इतना बड़ा बलात्कारी बाबा कैसे बन सकता है ?
  सेक्स सुखों के लालची सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त कुछ बासनाव्याकुल स्त्री पुरुष बदनामी के बचते हुए अपनी सेक्स इच्छाओं की पूर्ति हेतु धर्म का उपयोग करते हैं पहले तो ये अपने जैसा कामी कोई अत्यंत साधारण सा दिखने वाला बाबा पकड़ लेते हैं फिर ऐसे धनी लोग उसे इतना अधिक धन देते हैं कि उसकी साधारण सी कुटी को अपने ऐय्यासी करने लायक सब सुख सुविधाओं से पूर्ण कोठी बना लेते हैं !फिर अभिनेता लोग ऐसे बाबाओं का प्रचार प्रसार करके इन्हें पॉपुलर कर देते हैं फिर कुछ शारीरिक सेवाएँ प्रदान करने वाले कुछ स्वयं सेवी युवा आकर्षक आदि स्त्री पुरुष जोड़े जाते हैं !ये खेल कहीं पकड़ न जाए इसके लिए कुछ रसिक टाइप के नेता जोड़ लिए जाते हैं जो ऐसे पापकर्मों के लिए ढाल बने रहते हैं इनकी पूरी सुरक्षा करते हैं !
ये बलात्कारी बाबाओं के ये चारों घटक द्रव्य ऐसे आश्रमों में अक्सर चक्कर लगाते देखे जा सकते हैं ऐसे स्थलों के वीडियो चेक किए जाएं तो बड़े बड़े  प्रतिष्ठा प्राप्त लोग निकलेंगे किन्तु जब बाबा बेचारा पकड़ जाता है तो ये सारे लोग बाबा की बुराई करते हुए खुद को बचा लेते हैं और बाबा बेचारे को अकेला फँसा देते हैं ! बाबाओं के कुकृत्यों में सम्मिलित चेला चेलियाँ अपने अपने बाबाओं के पापों पर पर्दा डालते घूम रहे होते हैं ! 
   ऐसे ये खुदगर्ज लोग  एक आम इंसान को बाबा बनाते हैं पकड़ा बेचारा बाबा जाता है ये तीनों सफेदपोस लोग बाबा की बलि देकर खुद साफ सुथरे बच जाते हैं !इसके बाद तो बाबा जिन जेलों में बंद होते हैं वहाँ आरती उतारने समय से पहुँच जाते हैं लोग उन्हें बाबाओं का चेला चली या भक्त समझते हैं जबकि वे ऐय्यासी में सम्मिलित वे लोग  होते हैं जो अपनी बदनामी को दर रहे होते हैं कि बाबा कहीं हमारा नाम न कबूल दे !
    कुल मिलाकर बलात्कारी बाबाओं के पास बिलासी और भ्रष्टनेताओं का बल होता है धनवान लोगों का धन होता है शरीर दान करने वालों के शरीर होते हैं और अभिनेताओं का प्रचार बल साथ दे रहा होता है | 
    बाबाओं के घिनौने कारोबार में सम्मिलित चेला चेलियों  ने तो अपने अपने बाबाओं  को धोना पोछना शुरू कर दिया है ताकि उनके कुकर्मों का किसी को पाता  न लग जाए फिर तो चेला चेलियों का भी धंधा बंद हो जाएगा सारी पोल खुल जाएगी !इसलिए सेक्स कारोबार से जुड़े हाईटेक बाबाओं ने अपनी तारीफ करवाने के लिए महँगे महँगे  भाड़े के सुरक्षाकर्मी उतार दिए हैं सोसल साईटों पर !वो दिन भर यही लिखते बताते हैं कि उनका बाबा कितना  अच्छा है राम रहीम के चेलों की तरह उन्होंने ने भी अपने अपने बाबाओं को बाप (पिताजी) बना रखा है इसलिए वो भी अपने अपने बेटा बेटी सौंप रखे हैं बाबाओं को !ऐसे लोग बुराई कैसे करें अपनी भी इज्जत जाती है |  कुछ तो टीवी पर समय खरीदकर अपने अपने कर्मों की सफाई दे रहे हैं कुछ ने सोशल वर्क करने शुरू पर दिए हैं !कोई कोई बाबा तो रोडों का शोर शांत करता घूम रहा है !अचानक सक्रिय हो गए बाबाओं के पीछे लगाया जाए खुफिया तंत्र और उनकी सच्चाई समाज के सामने उद्घाटित करे सरकार !सरकार अपनी भी कुछ जिम्मेदारी समझे अन्यथा यदि चेला चेली आरोप लगावें तो सरकार पकड़ेगी और जो चेला चेलियों को साध कर रख पाया वो कितने भी कुकर्म करता रहे क्या उससे भोली भाली जनता को बचाना सरकार का कर्तव्य नहीं होना चाहिए !
 ऐसे कुकर्मों से धर्म और धर्म से जुड़े चरित्रवान  साधू संतों पर तो कोई फर्क नहीं पड़ा है उन्हें तो पहले से ही पता था कि किस लालच में ये सोशल कार्यों का नाटक कर रहे हैं फिर भी समाज के सामने दुविधा तो होती ही है !इसलिए बाबाओं पर अंकुश लगाया जाए ! 
      बलात्कार में पकड़ जाएं तो दोषी और न पकड़े जाएँ तो !चेला चेलियों को पटाने में जो सफल हैं वो चारित्रवान !ऐसे लोगों को पकड़ने के लिए सरकार खुपिया तंत्र विकसित करे !और पता करे कि बाबाओं के सेवा कार्यों के पीछे चल क्या क्या रहा है और उनके चेला चेली उनकी तारीफों के पुल क्यों बाँध रहे हैं !ऐसे कर्मों में ये कितना सम्मिलित हैं !सबकी जाँच की जाए  !

Tuesday, 12 September 2017

सेक्स के लिए संन्यास लेने वाले भोगी बाबाओं का संप्रदाय अलग ही क्यों न बना दिया जाए !ऐसे लोगों की संख्या कोई कम तो नहीं है !

 सारे अखाड़े एक तरफ पाखंडी बाबा एक तरफ !पाखंडियों का कोई बिगाड़ क्या लेगा ! 

    अखाड़े उन्हें भले फर्जी मानें किंतु मीडिया को जो पैसे देता है मीडिया उसे सब कुछ बना सकता है और पैसों से मीडिया का मुख वही भर सकता है जो गलत काम करके धन कमाता हो ईमानदारी से कमाकर तो जीवन चलाना मुश्किल होता है कोई मीडिया को कैसे खुश कर सकता है !पाखंडी बाबाओं ज्योतिषियों का दिया हुआ पैसा मीडिया के मुख से ऐसे बोलता है "विश्व विख्यात असली श्री श्री 1000000000008 महामंडलेश्वर ब्रह्माण्ड गुरु या विश्व विख्यात ज्योतिषाचार्य आदि कुछ भी बना देता है मीडिया !   

     सेक्स के लिए संन्यास !व्यापार करने हेतु धन माँगने के लिए संन्यास !सुख सुविधा युक्त जीवन जीने की इच्छा पूर्ति के लिए संन्यास की प्रवृत्ति का बहिष्कार किया जाना चाहिए !संन्यास लेना बहुत बड़ी बात नहीं है अपितु उसका निर्वाह करना सबसे बड़ी बात है उसी का ध्यान दिया जाना चाहिए !

   पैसा कमाने के लिए व्यापार तो जरूरी है किंतु व्यापार करने के लिए संन्यास क्यों ?  वस्तुतः व्यापार के लिए पूँजी तो चाहिए ही !समाज से पूँजी माँगने के लिए  संन्यास !व्यापार की कमाई भोगनी न होती तो  धन इकठ्ठा करने के लिए बाबा लोग तरह तरह के उत्पात आडम्बर व्यापार क्यों करते !जो बाबा अपने चेला चेलियों को जब तक पता कर रख सकता है तब तक वे लोग उनके पाप छिपाते रहेंगे बाद में सब इकट्ठे चिल्लाते हैं बाबा बलात्कारी है क्यों ?

    ऐसे लोगों से जुड़े स्त्री पुरुषों को भी इनके पापों में सम्मिलित माना जाना चाहिए !बाबाओं से जब तक इच्छा पूर्ति होती रहे तब तक गुरु के चरणों में समर्पण और बाबा जैसे ही कोई दूसरा सेक्स साथी खोज ले तो बलात्कार का आरोप !समाज को भी अब ऐसी हरकतें बंद कर देनी चाहिए क्योंकि इनसे धर्म का बहुत बड़ा नुक्सान होता है !

   वैसे भी 14 बाबाओं के बहिष्कार से क्या होगा !कुंभ में कंडोम कम पड़ गए थे उसका कारण क्या केवल यही 14बाबा लोग थे ?बाबाओं को बिगाड़ने वाली महिलाओं पर भी तो कुछ कहे अखाड़ा परिषद् !ऐसे आश्रमों और ऐसे बाबाओं  के बिना न रह पाने वाली महिलाओं की मज़बूरी क्या है ? 

   आशाराम राम रहीम जैसे लोग अपने आप बिगड़ गए क्या ?सैकड़ों हजारों महिलाओं ने इनकी ऐय्यासी में इनका साथ दिया होगा अपने घर वालों के साथ गद्दारी करके ऐसे बाबाओं को अपने बहुमूल्य शरीर सौंपे होंगे तब उनकी हिम्मती पड़ी है हर किसी महिला या बहन बेटी की इज्जत पर हाथ डालने की !पाप बढ़ चूका तो फँस गए अन्यथा न जाने कितनी मजबूर महिलाएँ और  इनकी हवस का शिकार हो जातीं !
   बाबा भक्त महिलाओं और इन्हें धन देने वाले ऐय्यास पुरुषों का बहुत बड़ा योगदान है इनकी ऐय्यासी में !ऐसे बाबाओं की टेलीफोन डायरियाँ खंगाली जाएँ और इनसे संपर्क रखने वाले स्त्री पुरुषों के नाम सार्वजनिक किए जाएँ !आखिर समाज भी तो समझे कि इनकी ऐय्याशियों में सम्मिलित कौन कौन था !
 साधू संतों में साधक चरित्रवान लोग ही होते हैं ये सच है वो आज भी हैं और हमेंशा रहेंगे जिसदिन वे नहीं होगें उस दिन धरती नहीं रहेगी !चरित्रवान स्त्रीपुरुष ही धरती को धारण करते हैं ऐसे लोगों का सदैव सम्मान रहा है और हमेंशा रहेगा ! 
    समस्या दूसरी जगह है जहाँ इस सम्मान का उपयोग सेक्सुअल सुख सुविधाओं उद्योग धंधों आदि के लिए बाबा बनकर किया जाने लगा !इसी साधू संतों के प्रति होने वाले सम्मान को देखकर इसका उपयोग ऐय्यासी करने के लिए किया जाने लगा !समाज का एक मक्कार काम चोर अवारा ऐय्यासों का एक वर्ग बिना कमाए सारे सुख सुविधाओं को भोगने की चाहत से बाबा बनने लगा !ये बाबावर्ग न धर्म कर्म को न जानता है न मानता है और न पालन करता है और न ही कुछ त्याग तपस्या चरित्र आदि से उनका कोई दूर दूर तक लेना देना होता है ये साधू संतों जैसी वेष भूषा तो बना लेता है और खान पान संबंधी बड़े बड़े कठोर नियम संयम की बातें करता है किंतु सम्पत्तिवान लोगों और सुंदरी स्त्रियों को खुश करने के लिए ये एक एक नियम छोड़ता चला जाता है उन सुंदरियों को लगता है कि देखो हम और हमारा घर इन्हें कितना पसंद है हमारे लिए इन्होंने सारे नियम धर्म छोड़ दिए तो मुझे भी इनके लिए कुछ तो कुर्बानी करनी चाहिए और वो परिवार बाबाओं के लिए बिल्कुल अपने हो जाते हैं उनकी बीबी बच्चे भी फिप्टी फिप्टी हो जाते हैं बाबाओं के साथ ! आखिर अपनी सारी आवश्यकता पूर्ति के लिए उन्होंने छोड़े होते हैं नियम संयम और जब मानते वो केवल आपको हैं और खाते केवल आपके यहाँ हैं तो अपनी स्त्री विषयक बासनात्मक इच्छाओं की पूर्ति भी तो अपनों से ही अर्थात आपके यहाँ ही करेंगे फिर हो हल्ला क्यों ? 
     ऐसे लोग ये कहने में फूले नहीं समाते हैं  कि बाबा जी कहीं नहीं जाते हैं केवल हमारे घर आते हैं और किसी का छुआ नहीं खाते हैं केवल हमारा छुआ खाते हैं !
     अरे जिसने किसी के घर न जाने का या किसी का छुआ न खाने का पवित्र व्रत लिया होगा वो आपके घर आने खाने के लिए अपना व्रत क्यों तोड़ देगा !कहीं नहीं जाएगा वो आपके यहाँ क्यों आएगा और खाएगा क्यों ?
    चरित्रवानव्रती संत अपने जैसा आपको भी बनाएगा अपने संस्कार आपको देगा या अपने छोड़कर आपसे कुछ सीखने आएगा ?जैसा आप चाहते हैं वैसा वो बनता क्यों चला जाएगा !किन्तु अपने जैसा बनता देखकर कामी  स्त्रियों पुरुषों का आकर्षण उस पाखंडी की ओर बढ़ता चला जाता है और जहाँ उसका शरीर साथ नहीं देने लायक रहता है तब उसे बलात्कारी सिद्ध कर दिया जाता है !
   चरित्रवान साधूसंतों के नियम धर्म साधना संयम तपस्या छुआछूत पवित्रता एवं एकांतवास से तंग समाज का संपन्न एक वर्ग अपने जैसे साधू संत चाहता था जो उनके घरों में भी घुसें और घरवालों को भी गले लगाएँ सबसे घुलमिल कर रहें !
   ऐसे नियमधर्म विहीन नाचने कूदने वाले बाबा हों या कथा बाचक अपने जिस सेक्सुअल स्वभाव रहन सहन मेल मिलाप के बल पर करोड़ों अरबों पति हो जाते हैं सारी सुख सुविधाएं भोगते हैं उसे छोड़ कैसे सकते हैं!यदि वे अपनी सेक्सुअल हरकतें छोड़ देंगे तो उन्हें पसंद कौन करेगा शिक्षा होती नहीं तपस्या होती नहीं चरित्र होता नहीं त्याग वैराग्य कुछ भी तो नहीं होता है आखिर लोग क्यों जुड़ेंगे ऐसे निखट्टुओं से | इनके कारण तो कुंभ मेले में कंडोम घट जाने लगे !
     भागवत कहने वाले पहले बड़े त्याग वैराग्य से रहा करते थे बड़े विद्वान हुआ करते थे बड़ा साधनात्मक जीवन होता था उनका किन्तु जब से सेक्सुअल जिगोलो लोगों की गन्दी निगाह पड़ी भागवत जैसे पवित्र ग्रन्थ पर तो "विद्यावतां भागवते परीक्षा" का सिद्धांत कहाँ चला गया पता ही नहीं चला अपने को वक्त कहने वाले भागवती जिगोलो केवल अपनी सेक्सुअल हरकतों के कारण ही पसंद किए जा रहे हैं उन्हें वो छोड़ें तो धंधा चौपट हो जाएगा !ऐसे लोगों में जब तक जवानी रहती है तब तक भोगे जाते हैं जैसे ही उम्र ढलने लगती है तो बलात्कार का आरोप लगाकर बंद करवा दिए जाए हैं अन्यथा ये अपनी भी पोल खोल देंगे !जो मन जिस बना से जुडी होती है वो नहीं चाहती है कि उसके बच्चे उन संबंधों के विषय में जानें किंतु ऐय्यास बाबा जब बहु बेटियों पर भी हाथ फेरना शुरू कर देते हैं तब लगाए जाते हैं उन पर बलात्कार के आरोप !वो भी चरित्र भय से नहीं अपितु पोल खुलने के भय से ! 
     हाईटेक आश्रमों के सेक्सुअल वातावरण से आकर्षित स्त्रीपुरुष ऐसे आश्रमों एवं आश्रमों से जुड़े लोगों के प्रति तन मन धन से समर्पित होने लगते हैं और भोगने लगते हैं उन्हीं बाबाओं के साथ मिल जल कर वही ऐय्यासी की सुख सुविधाएँ !अपने पति पत्नियों से असंतुष्ट स्त्री पुरुषों का दूसरों के साथ जोड़ा बनाया करते हैं बड़े बड़े हाईटेक आश्रमों वाले हाईटेक बाबा लोग !इसी सेकुअल कमाई से करोड़ों अरबों का टर्नओवर करने लगते हैं बड़े बड़े हाईटेक बाबा लोग !अन्यथा कमाई करने में यदि इतने ही होशिआर होते तो बाबा बनने की जरूरत क्या थी वैसे ही लगा लेते बड़े बड़े उद्योग व्यापार किसने रोका था उन्हें !किन्तु सेक्सुअल उद्योगके लिए बाबा बनना जरूरी होता है इसमें थोड़ी सेफ्टी बनी रहती है ग्राहक भी सारी सेक्सुअल सुख सुविधाएँ भोगते भी हैं किन्तु उन्हें कोई गिरी निगाह से नहीं देखता !ऐसे क्लाइंट लोग ही ऐसे बाबाओं हाईटेक आश्रमों पर लुटाया करते हैं धन दौलत !बढ़ती जाती हैं अकूत संपत्तियाँ !व्यापारी हतप्रभ होते हैं कि हम तो दिन रात खट्टे हैं हमारी नहीं बढाती हैं इनकी कैसे बढ़ती चली जाती हैं किन्तु सच्चाई ता तभी पता लगाती है जब कोई ईमानदार सरकार निष्ठां पूर्वक अपने कर्तव्य का निर्वाह करती है और न्याय पालिका अपने नाम के अर्थ को साकार करती है तब पता लगता है कि कैसे कैसे गुल खिलाए जाते रहे हैं ऐसे आश्रमों में !जब तक न पकड़े जाएं तब तक बाबा और उनके चेला चली मिलकर मनाते हैं सेक्सुअल महोत्सव !साल माल चलते हैं आयोजन योग शिविर सत्संग शिविर !ऐसे पवित्र नाम पर भीड़ इकट्ठी करने से समाज के मन में ब्यभिचार की भावना नहीं आती है !
     ऐसे बाबा गृहस्थों के घरों में बिल्कुल गृहस्थों की तरह ही मस्ती मारते हैं !लोग भी सोचते है कि इससे हमारी साधू सेवा भी पूरी हो जाएगी  और घर वालों का मन भी लगा रहेगा  |इस  वर्ग की बढ़ती डिमांड ने ही बाबाओं को बर्बाद होने पर मजबूर कर दिया ! इसकी आपूर्ति करने के लिए तैयार होने लगे मजनूँ टाइप के ऐय्यास बाबा लोग !  ऐसी बाबा प्रजाति के लोग   जिन्हें खाने को सबकुछ चाहिए भोगने को सारे सुख चाहिए !गृहस्थियों के घरों में घुस कर अपने बच्चे भी पैदा करते हैं कई बार तो पति पत्नी में फूट डलवाकर अपने आश्रमों में रख लिया करते हैं मौका पड़ता है तो उनके सलवार पहन कर नाच भी लेते हैं 
    महिलाओं को इतना तो पता होना ही चाहिए कि घर गृहस्थी की जिम्मेदारी न उठा पाने के कारण ही घरों से खदेड़े गए भगोड़े लोग बाबा बन रहे हैं फिर उनका पीछा करने की क्या जरूरत !आखिर चरित्रवती महिलाएँ उनसे चिपकने जाती क्यों हैं ऐसे हाईटेक आश्रमों की ऐय्यासी में यदि वे सम्मिलित नहीं हैं तो उनसे जुड़कर इतने दिन बिताए कैसे ? 
साधू संन्यासियों के शास्त्रीय नियम धर्म Dr.S.N.Vajpayee
शास्त्रीय साधू संन्यासियों के लिए धन संग्रह एवं सामाजिक प्रपंच अशास्त्रीय हैं जानिए कैसे ?
संन्यासियों या किसी भी प्रकार के महात्माओं को काम क्रोध लोभ मोह मद मात्सर्य आदि विकारों पर नियंत्रण तो रखना ही चाहिए यदि पूर्ण नियंत्रण न रख सके तब भी प्रयास तो पूरा होना ही चाहिए।वैराग्य की दृढ़ता दिखाने के लिए कहा गया कि स्त्री यदि लकड़ी की भी बनी हो तो भी वैराग्य व्रती उसका स्पर्श न करे!see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2013/09/drsnvajpayee.html

Sunday, 10 September 2017

Y (Copy)

      पूर्व चेतावनी प्रणाली - (Early warning system)
                              पूर्वानुमान विज्ञान !   
        इस विशाल ब्रह्मांड में हर क्षण सभी व्यक्तियों वस्तुओं स्थानों में परिवर्तन होते देखे जा रहे हैं इन बदलावों का प्रमुख आधार होता है समय और समय के साथ ही सब कुछ बदलता जा रहा है या यूँ कह लिया जाए कि जैसे जैसे समय बीतता जा रहा है वैसे वैसे इस सृष्टि में बदलाव होते जा रहे हैं |वे परिवर्तन इतने अधिक सूक्ष्म होते हैं कि सेकेंडों मिनटों घंटों दिनों महीनों वर्षों शादियों युगों आदि में वे समझ में आ पाते हैं |छोटी वस्तुओं के छोटे पर्रिवर्तन तो समय की छोटी इकाइयों में भी समझ में आने लग जाते हैं किंतु प्रकृति या खगोल आदि से संबन्धित बड़े बदलावों को समझने में तो वर्षों शादियों आदि का समय लग ही जाता है |
    समय का शक्तिशाली विशाल चक्र स्वतंत्र है वो अपनी गति से घूमता जा रहा है !उसके परिभ्रमण क्रम से युगों शदियों वर्षों ऋतुओं महीनों पक्षों दिनों घंटों मिनटों सेकेंडों आदि का निर्माण स्वतः होता जाता है और समय रूपी मस्त हाथी अपनी सहज गति से आगे बढ़ता चला जा रहा है जैसे हाथी को देखकर कुत्ते भौंकने लगते हैं किंतु हाथी अगर अपनी सहज गति से किसी दूसरी ओर मुड़ जाए तो कुत्ते सोचने लगते हैं कि हमारे भौंकने से भयभीत होकर हाथी उधर मुड़ गया है उसी क्षण यदि हाथी कुत्तों की ओर ही मुड़ आवे तो न केवल कुत्ते भाग खड़े होते हैं अपितु उनका ये भ्रम भी समाप्त हो जाता है कि हाथी उनसे डर करके इधर उधर मार्ग बदल रहा है !
      इसी प्रकार से समय का चक्र स्वतः चलता जा रहा है उसके प्रभाव से सारे चराचर संसार में परिवर्तन होते जा रहे हैं सभी ऋतुएँ सर्दी गर्मी वर्षा आदि क्रमशः अपने आप ही आती और जाती जा रही हैं जमींन में दबे पड़े बीज सारी बरसात में नहीं उगते किन्तु अपनी ऋतु अर्थात समय पाकर आश्विन (अक्टूबर) में स्वतः अंकुर देने लगते हैं वृक्ष और लताएँ समय चक्र के अनुशार ही अपनी अपनी ऋतुओं में स्वतः फूल फल देते देखे जाते हैं पृथ्वी के अंदर समुद्र के अंदर आकाश में प्रकृति में सभी जगह सभी प्रकार के बदलाव अपने आप ही होते देखे जा रहे हैं जहाँ मनुष्यकृत प्रयासों की पहुँच ही नहीं है परिवर्तन तो वहाँ भी होते देखे जा रहे हैं सूर्य चंद्र ग्रहण हो या ग्रहों की गति सब कुछ स्वतः चलता जा रहा है नदियाँ बहती जा रही हैं समुद्र में ज्वार भाँटा आते जा रहे हैं सब कुछ समय के निश्चित विधान से बँधा हुआ है हर कण में प्रत्येक क्षण में कुछ न कुछ बदलाव होते देखे जा रहे हैं  सब स्वतः स्फूर्त हैं उनके लिए कहीं कोई प्रयास करता नहीं दिख रहा है इसलिए कोई ये कहने वाला भी नहीं है कि ये बदलाव उसके प्रयास से होते जा रहे हैं !
      प्रयासवाद और समयवाद !
         सभी प्रकार की आधुनिक सुख सुविधाओं से विहीन सुदूर जंगलों में पहाड़ों में रहने वाले पशु पक्षियों मनुष्यों आदि को भी समय से भोजन मिलता है रहने का स्थान मिलता है संकट काल में सुरक्षा होती है अगर समय से रोगी हो जाते हैं तो समय से ही रोग मुक्त भी हो जाते हैं दिन रात मच्छरों के बीच रहते हैं समय के साथ बीमार होते और समय के साथ ही स्वस्थ होते देखे जाते हैं दो आदमी या पशु आपस में लड़ते हैं घायल हो जाते हैं धीरे धीरे घाव भर जाते हैं और स्वस्थ होते देखे जाते हैं जंगल में रहने वाली स्त्रियाँ भी गर्भिणी होती हैं सहज प्रसव होता है स्वस्थ बच्चे होते हैं और स्वस्थ रहते भी हैं बिना किसी प्रकार की शिक्षा के भी समय के साथ अपने जीवन यापन की सभी कलाएँ सीखते चले जाते हैं वे भी संघर्षशील तथा शक्ति शाली होते देखे जाते हैं  !सिंह आदि हिंसक जानवरों और सर्प बिच्छू आदि बिषैले जीव जंतुओं से हमेंशा जीवनांतक भय की शंका रहने के बाद भी उन्हें भी वृद्ध होते अर्थात अपनी सम्पूर्ण उम्र भोगते देखा जाता है!
     ऐसी सभी बातों घटनाओं परिस्थितियों को देख सुनकर इनके  विषय में विशेष मनन करने पर लगता है सब कुछ तो समय के अनुशार ही होता जा रहा है सारे बदलाव समय के आधीन हैं कब कहाँ कैसी परिस्थितियों में किसका जन्म होगा उसके बाद कौन स्वस्थ रहेगा और कौन अस्वस्थ कौन कितने समय तक सुखी रहेगा और कौन दुखी !किसको जीवन का कितना भाग स्वस्थ और कितना भाग अस्वस्थ रहकर बिताना होगा जीवन जीने के लिए किसे कितनी आयु मिलेगी किसकी कब मृत्यु होगी ! ऐसी सभी बातों के निर्णय समय की अदालत में ही होते देखे जाते हैं इसीलिए तो किसी के जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत अर्थात सारा जीवन ही समय के अनुशार ही बीतता जाता सबको सुख दुःख भी समय के अनुशार ही होता है !
      अत्यंत आधुनिक सुख सुविधाओं से युक्त महानगरीय जीवन हो या सुदूर जंगलों  में रहने वाले लोगों का संपूर्ण सुविधाओं से विहीन जीवन दोनों ही प्रकार के लोगों के साथ प्रायः सभी प्रकार की घटनाएँ समान रूप से घटते देखी  जाती हैं सभी सुविधाओं से युक्त जीवन हो या समस्त सुविधाओं से मुक्त जीवन हो फैसले सारे समय की अदालत में ही होने होते हैं समय के अनुशार ही होते हैं रोग दोनों जगह होते हैं स्वास्थ्य लाभ दोनों जगह होता है जन्म और मृत्यु दोनों जगहों पर होते देखी जाती है सुरक्षा और दुर्घटनाएँ सब जगह होते देखी जाती हैं फिर हमारे प्रयास कितने सार्थक होते हैं और कितने निरर्थक इसका निर्णय कैसे किया जा सकता है जब सारे फैसले समय को ही सुनाना होता है !
       केवल प्रयासों के अनुरूप परिणाम मिल रहे होते तब तो एक जैसा फैसला हो जाता अर्थात प्रयास करने वाले को ही परिणाम मिलता जो न प्रयास करते उन्हें न मिलता ! यदि ऐसा होता तो अत्याधुनिक चिकित्सा व्यवस्था से संपन्न कोई भी व्यक्ति न बीमार होता और न मरता दूसरी बात चिकित्सा व्यवस्था एवं सुरक्षा साधनों से विहीन सुदूर जंगलों में रहने वाले लोगों का जीवन बच पाना बड़ा मुश्किल होता !किंतु चूँकि फैसला समय के आधीन है इसलिए प्रयासों की परवाह किए बिना भी निर्णय सुनाए जा रहे हैं किंतु प्रयास करने वाले लोग समय के द्वारा दिए जाने वाले  विपरीत फैसलों को कुछ सह पाते हैं कुछ उनके दुष्प्रभावों को अपने प्रयासों से कम कर लिया करते हैं वर्षा होने पर छाता लगाने का प्रयास न किया जाए तब तो भीगना ही पड़ेगा और प्रयास पूर्वक छाता  साथ में रखने से बचाव हो जाता है किंतु यदि समय विपरीत ही हो तो कोई न कोई ऐसा कारण बनेगा जिससे छाता साथ होते हुए भी बचाव नहीं हो पाएगा और भीगना ही पड़ेगा !इसलिए हमेंशा अंतिम फैसला समय का ही सबसे प्रबल माना  जाता है क्योंकि परिस्थितियों का निर्माण और प्रयासों का फल समय के अनुशार ही  होता है !संसार में सभी प्रकार के सभी परिवर्तन समय के अनुशार ही होते जा रहे हैं !
       जो परिवर्तन जिनकी इच्छा के अनुकूल हो जाते हैं अर्थात जो लोग जैसा चाह रहे होते हैं या जो कुछ पाने के लिए प्रयास कर रहे होते हैं वैसा ही हो जाता है या उन्हें वो मिल जाता है तो उन्हें ऐसा लगने लगता है कि उन्हें जो कुछ मिला है वो उनके प्रयासों के कारण मिला है ऐसा समझ कर वे वैसी ही सफलता पाने के लिए किसी दूसरे को भी वैसे ही प्रयास करने की सलाह दे देते हैं किंतु उन्हें वैसा प्रयास करने पर भी उस प्रकार की सफलता नहीं मिल पाती है !कई बार किसी बीमारी से मुक्ति के लिए हम कोई औषधि लेते हैं या किसी चिकित्सक के पास जाते हैं या किसी से आपरेशन आदि करवाते हैं तो उस औषधि से चिकित्सक से हमें बहुत आराम मिल जाता है और हम बिल्कुल स्वस्थ  हो जाते हैं ऐसा समझकर हम अपने स्वस्थ होने का श्रेय उस दवा या उस चिकित्सक को ही देते हुए किसी दूसरे उसी प्रकार के रोगी को हम उसी प्रकार की बिमारी से मुक्ति के लिए वही दवा लेने या अपने वाले चिकित्सक से ही मिलने की सलाह दे देते हैं !किंतु वही औषधि या उसी चिकित्सक के द्वारा किए गए उत्तम प्रयास भी निरर्थक होते दिख रहे होते हैं और बीमारी बढ़ती चली जाती है !ऐसी परिस्थिति में वही औषधि या उसी चिकित्सक के द्वारा किए गए उत्तम प्रयास भी काम न आने का एक ही कारण है कि उस रोगी की चिकित्सा करते समय दूसरा समय था और इस रोगी की चिकित्सा काल में समय दूसरा है  रोगी एक जैसा चिकित्सक एक ही औषधि एक ही और चिकित्सक के प्रयास भी एक जैसा ही इसके बाद भी परिणामों में अंतर आने का कारण समय ही तो है !क्योंकि समय का चक्र हर समय एक जैसा नहीं रहता है वहाँ तो  हर क्षण बदलाव होते जा रहे हैं उनका कारण एक मात्र समय ही है !सारे फैसले हो ही समय के अनुशार रहे हैं इस लिए इस प्रकरण में भी समय ही फलित हो रहा है बाकी सारे प्रयास पीछे रह जाते हैं !
       इसी प्रकार से जो लोग शिक्षा परीक्षा आदि में सफल हो जाते हैं या जो लोग व्यापार आदि कार्यों में सफल हो जाते हैं जो लोग अपने तनाव को जिन विचारों से पराजित करने में सफल हो जाते हैं ऐसे सभी लोग अपनी सफलता का श्रेय अपने द्वारा किए गए उन उन प्रयासों को देने लगते हैं और वैसा  ही उपदेश सबको देने लगते हैं कई लोग तो परामर्श देने का धंधा खोल लेते हैं और सबको अपने अनुभवों से हाँके जा रहे होते हैं जिसे जहाँ जो सफलता मिल गई  उसका श्रेय तो परामर्शचिकित्सक अर्थात काउंसलर साहब खुद समेट कर बैठ जाते हैं और थोड़ा बहुत तो प्रयास करने वाले को भी दे देते हैं किंतु जो व्यक्ति उनके उपदेश से भी सफल नहीं हो पाता है उसकी सम्पूर्ण असफलता का दोष उसी व्यक्ति पर मढ़ देते हैं जबकि जो सफल हुआ है या जो असफल हो गया है दोनों के द्वारा किए जाने वाले प्रयासों में एकरूपता हो भी सकती है उसके अनुशार यदि परिणाम आते तो एक जैसे ही होते किंतु परिणामों के अलग अलग आने का कारण उन दोनों का समय अलग अलग था इसलिए परिणामों में अंतर हो जाना स्वाभाविक ही है !
      दुर्घटनाओं के घटित होने पर चाहकर भी कोई प्रयास किए ही नहीं जा सकते !यात्रियों से भरी बस किसी खाई या नदी में गिर जाती है !यात्रियों से भरी कोई नाव डूब जाती है !रेल दुर्घटना हो जाती है!भूकंप से बिल्डिंग गिर जाती है !बहुत लोग दब जाते हैं !किसी भीड़ में बम विस्फोट हो जाता है !ऐसे सभी प्रकार के आकस्मिक संकटों में अक्सर देखा जाता है कि प्रयास करने का न समय मिलता है और न उस लायक शरीर होता है न मन होता है न हिम्मत होती है न बुद्धि ही काम कर रही होती है ऐसी अवस्था में समय प्रेरित ही सभी निर्णय हो रहे होते हैं !कोई घायल होता है कोई मृत्यु को प्राप्त हो जाता है और कई लोग तो ऐसे होते हैं कि उनको खरोंच तक नहीं लगती है और वो बिल्कुल सुरक्षित बच जाते हैं !ऐसे समयों में एक जैसी दुर्घटना के शिकार बहुसंख्य लोग जहाँ प्रयास कोई किए ही नहीं जा सके फिर परिणाम एक जैसे तो नहीं हुए उसका कारण उन सभी लोगों का अपना अपना समय था इस समय संबंधी अंतर के कारण सबके परिणाम बदलते चले गए !
   किसी भी स्त्री पुरुष की सफलता या असफलता का श्रेय जब कोई व्यक्ति जब उसके द्वारा किए जाने वाले प्रयासों को देने लगता है अर्थात उस व्यक्ति को  कार्यों का कर्ता मानकर कर्तापन का भ्रम पाल कर बैठ जाता है ऐसा भ्रम तब तक बना रहता है जब तक वो किसी  अन्य कालखंड में उसी प्रकार के किसी अन्य कार्य में असफल नहीं होता है अर्थात उस कार्य को वो व्यक्ति कर नहीं पाता है या उसके द्वारा पूर्ण मनोयोग के द्वारा किए जाने पर भी वो  कार्य बिगड़  जाता है उस समय उसे होश आता है कि पुराने लोग क्यों कहा करते थे कि कभी भी किसी को किसी बात के लिए घमंड नहीं करना चाहिए क्योंकि उन्हें पता होता था कि प्रयास तो निमित्त मात्र होते हैं बाक़ी परिणाम तो समय ही देता है इसलिए आज समय अनुकूल था तो कार्य साधन हो गया कल समय अनुकूल न हुआ तो कार्य बिगड़ता तय है उस समय अपने अहं भाव  को  बहुत बड़ी चोट लगती है !इसलिए सफलता के समय भी हर किसी को भाग्य कुदरत और समय जैसी बातें याद बनी रखनी चाहिएऔर सफलता का सारा श्रेय स्वयं ही लेकर नहीं बैठ जाना चाहिए |समय ही सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण होता है इसमें किसी को संशय नहीं होना चाहिए !
    कर्मवाद की सीमाएँ और सार्थकता -
       ऐसा जीवन के सभी क्षेत्रों में होते देखा जाता है | इसलिए हमें हमेंशा याद रखना चाहिए कि सभी बदलाव समय के साथ साथ स्वयं होते जा रहे हैं हम सभी लोग दृष्टा मात्र हैं और यदि अपने को कर्ता मानें भी तो केवल इतने के लिए मान सकते हैं कि समयचक्र हर किसी के भाग्य  के अनुशार हर किसी के लिए उसके हिस्से की सुख सुविधाएँ लिए घूम रहा है जिसे पाने के लिए उचित समय पर जो लोग प्रयास कर लेते हैं उन्हें वो मिल जाता है जो नहीं कर पाते हैं उन्हें उतना नहीं मिल पाता है प्रयास न कर पाने वाली कमी तो रह जाती है इसी प्रकार से जब समय साथ दे रहा होता है उस समय जो लोग समय का सदुपयोग करते हुए प्रयास कर लेते हैं उन्हें वही समय कई गुना अधिक फल दे जाता है !इसलिए हमें भी चाहिए कि जो कुछ समय मिला है हम उस समय का उपयोग अधिक से अधिक करके अपने भाग्य को भुना सकें अर्थात  भाग्य प्रदत्त सुख सुविधाओं को प्राप्त कर सकें |
       हमारे तात्कालिक कर्मों का फल इतना होता है कि जिस विषय से संबंधित जो काम जैसा हम न केवल चाह रहे होते हैं अपितु उसके लिए परिश्रम भी करते हैं और हमारे प्रयास करने के बाद यदि वो काम वैसा हो जाता है जैसा कि हम चाह रहे होते हैं तो हम उसे अपने प्रयास का फल मान लेते हैं जबकि इससे केवल इतना लाभ होता है कि जो काम जिस गति से होना होता है हमारे प्रयासों का बल पाकर वो कार्य और अधिक शीघ्रता  से सम्पन्न हो जाता है किंतु जब कोई कार्य हमारे द्वारा किए जा रहे प्रयासों के विपरीत परिणाम देने लगता है या देने की संभावनाएँ बनते दिखने लगती हैं उस समय ये बात साफ समझ में आ जाती है कि जिस काम को जैसा करने के लिए हमने प्रयास भी नहीं किया बल्कि अपने आपसे वैसा होता जा रहा है ऐसी परिस्थितियों में समय भाग्य और कुदरत जैसी बड़ी बातों पर सोचने के लिए हर समझदार स्त्री पुरुष को मजबूर होना पड़ता है !ऐसे समय में परिस्थितियों से जूझते हुए अपने मन को इस बात के लिए तैयार कर ही लेना चाहिए कि समय प्रतिकूल होने के कारण सफलता आशा के अनुरूप नहीं मिलेगी अपितु कुछ नुकसान भी होगा किंतु संतोष इस बात को लेकर करना चाहिए कि यदि हमने प्रयास न किया होता तो परिणाम और अधिक हानिप्रद होते और नुक्सान का आंकड़ा भीइससे अधिक होता ऐसा सोचकर अपने मन में संतोष कर लेना चाहिए और यदि यही जूझने वाली प्रवृत्ति बनी रही तो जब समय अच्छा आएगा वहाँ ऐसी प्रवृत्तियाँ फलित होंगी और उस समय इसका लाभ कई गुना अधिक मिलेगा ! 
    समय शक्ति  की प्रबलता -
     वैसे भी हमें हमेंशा ऐसा सोचने का भी अभ्यास करते रहना चाहिए कि जो काम जैसा हम चाहते नहीं हैं जिसके लिए हमने कोई योजना नहीं बनाई होती है जिसके लिए हमने कोई प्रयास नहीं किया होता है फिर भी वैसा होते देखा  जाता है  यदि कर्म और प्रयास के अनुशार ही फल मिलता होता तब तो ऐसे समय में वैसा न होता जिसके लिए कोई प्रयास ही न किया गया हो कोई कर्म ही न किया गया हो ये समय की प्रबलता नहीं तो और क्या है ? 
    इसलिए जिस बदलाव के लिए हम प्रयास कर रहे होते हैं यदि वैसा हो जाता है तो उसे अपने प्रयास का फल मान लेते हैं किंतु जैसा हम चाह रहे होते हैं परिणाम यदि उसके कुछ विरुद्ध हो जाता है तब हम कुदरत समय और भाग्य को दोष देने लगते हैं ये पैमाना ठीक नहीं है ! ये अपने लिए ही दुखदायी होता है कई लोग ऐसी असफलताओं का दोष अपने सहयोगियों परिवार वालों कर्मचारियों आदि पर डाल कर उन्हें दोषी या शत्रु  या धोखा देने वाला मानने लगते हैं !लोगों को देखा जाता है कि कई बार सरकार की डाक्टरों की पार्टनर आदि की कमियाँ गिनाने लगते हैं ये सब सोच सोच कर उन्हें तनाव हो रहा होता है !लोग सोच रहे होते हैं कि मेरे अपनों ने ही मुझे इतना बड़ा धोखा दिया आदि आदि !ऐसे समयों पर उन्हें सोचना चाहिए कि समय ही विपरीत था तब परिस्थिति हमारे विरुद्ध बनी अन्यथा यदि समय ही साथ दे रहा होता तो ऐसी विपरीत परिस्थिति ही पैदा नहीं होती !   
    समय का परीक्षण कैसे किया जाए ?     
       वस्तुतः मानव जीवन से लेकर सभी जीव जंतुओं तक यहाँ  तक कि वृक्षों बनौषधियों समेत समस्त प्रकृति में घटित होने वाली अधिकाँश घटनाएँ समय के प्रभाव से प्रेरित  होती हैं| समस्त शरीरों से सम्बंधित या प्रकृति से संबंधित प्रायः प्रत्येक घटना के प्रारंभ होने का कोई न कोई समय होता है समय का वही क्षण उस घटना परिस्थिति कार्य या उत्पादन संबंधित समस्त विस्तार का अत्यंत सूक्ष्म बीज होता है !जैसे अत्यंत छोटे से बीज में बहुत बड़ा बटवृक्ष छिपा होता है किंतु ये बात पता उन्हीं को होती है जो उस बीज और वृक्ष तथा बीज से वृक्ष बनने की प्रक्रिया से सुपरिचित होते हैं !उस बीज को पहचानने वाले विशेषज्ञ  बीज को देखते ही इस बात  का पूर्वानुमान लगा लेते हैं कि यह बीज अंकुरित होकर एक दिन बहुत बड़ा बरगद का वृक्ष बनेगा उसके ऐसे पत्ते होंगे ऐसी शाखाएँ होंगी ऐसे फल होंगे उन सब में ऐसे ऐसे गुण या दोष होंगे !ऐसी सभी बातों का पूर्वानुमान उस छोटे से बीज को देख कर  जिस प्रकार से लगा लिया जाता है उसीप्रकार से समय  का  प्रत्येक 'क्षण' भी बीज के समान ही है जैसे कोई बीज अपने अंदर संपूर्ण वृक्ष का आकार समेटे हुए होता है उसी प्रकार से 'समयबीज' होता है जिसमें प्रत्येक क्षण का परीक्षण करना होता है !ऐसे समय बीजों के आधार पर रिसर्च पूर्वक प्रत्येक समय के विषय में यह जाना और समझा जा सकता है कि यह 'क्षणबीज' कैसा है !जैसा वह 'क्षण' होगा उस क्षण में किए जाने वाले या होने वाले संपूर्ण कार्य उस क्षण के स्वभाव के अनुरूप ही विकसित हो पाते हैं !किसी काम या रोग का बढ़ना या घटना सफलता या असफलता आदि सब कुछ उस क्षण के अनुरूप ही होता है !
     इस 'क्षणबीज' अध्ययन पद्धति के आधार पर जीवन से संबंधित अनेकों क्षेत्रों की कई बड़ी समस्याएँ सुलझाई जा सकती हैं जिस क्षण में जो बीज बोया जा रहा है वो  क्षण यदि अच्छा नहीं है तो वो अनेकों प्रकार से उस कार्य के परिणाम को जरूर नष्ट कर देगा !या तो उस बीज को जमने नहीं देगा या जम जाने पर भी उसमें कोई रोग लग कर उसे खराब कर देगा यदि ऐसा भी नहीं हुआ तो तैयार फसल को प्राकृतिक आपदाओं या स्वकृत निर्णयों से नष्ट कर देगा !
     इसी प्रकार से जिस 'क्षणबीज' में जो बच्चा माँ के गर्भ में आता हैं और जिस 'क्षणबीज' में उस बच्चे का जन्म होता है ये दोनों 'क्षणबीज' यद्यपि एक दूसरे से संबंधित होते हैं एक दूसरे के आधार पर ही आश्रित होते हैं यदि ऐसा तो वैसा वाले सिद्धांत के आधार पर ये दोनों एक दूसरे से जुड़े होते हैं !इसलिए इन दोनों के आधार पर जीवन संबंधी प्रत्येक परिस्थिति की व्याख्या की जा सकती है !जो व्यक्ति जिस 'क्षणबीज' में पैदा होता है उस 'क्षणबीज' पर रिसर्च करके यह समझा जा सकता है कि यह व्यक्ति कितना सुखी और कितना दुखी होगा जीवन में इसे किस किस प्रकार के रोग या कष्ट आदि किस किस उम्र में कितने दिनों महीनों या वर्षों के लिए होगा !उसके आधार पर पहले से ही परिस्थितियों  को अपने अनुकूल बनाने के प्रयास किए जा सकते हैं !हमारे कहने का अभिप्राय यह है कि भविष्य में जब जो परिस्थितियाँ  हमें रोग या दुःख पहुँचाने वाली अथवा अन्य प्रकार से तनाव देने वाली लगेंगी उनसे पहले से ही बचने का या उन्हें घटाने का प्रयास किया जाएगा !अधिक से अधिक प्रयास करके ऐसी परिस्थितियों को निष्क्रिय करने के प्रयास किए जाएँगे !इसीप्रकार से रोगकारक या अन्य प्रकार से भविष्य में आने वाली विपरीत परिस्थितियों  को सहने के लिए भी पहले से ही हम अपने मन को तैयार करते चले जाएँगे !ऐसे ही जो 'क्षणबीजजन्य' परिस्थितियाँ भविष्य में हमारे लिए सुखद विकास कारक या आरोग्यता प्रदान करने वाली लगेंगी  उनका अधिक से अधिक सदुपयोग करते हुए पूरी ताकत लगाकर उस समय का फायदा उठाने  की कोशिश करेंगे ! जैसे आग की छोटी सी चिनगारी को भी अधिक हवा देकर बहुत बड़ा रूप दिया जा सकता है उसी प्रकार से अच्छे क्षण बीजों का उपयोग हम जितना अधिक से अधिक कर सकेंगे हमारे लिए वो उतना  अधिक सहायक होगा !अच्छे क्षणों में हम जितना अधिक से अधिक विकास कर लेते हैं वो अच्छे समय में तो काम देता ही है साथ ही बुरे समय को भी  हम अच्छे समय में संचित की गई शक्ति के आधार पर आराम से पार कर लेते हैं !
    हर किसी के जीवन में अच्छा और बुरा दोनों प्रकार का समय बार बार आता है ये खंभे (पिलर्स)के समान होता है  यदि हम अच्छे समय में अच्छे काम करके अपने समय का अधिक से अधिक सदुपयोग कर लेते हैं तो दो अच्छे समयों के दो पिलर बन जाते हैं जिनके ऊपर सेतु अर्थात ब्रिज बनाकर हम दो अच्छे समयों के बल पर बुरे समय के पिलर को लाँघ जाने में समर्थ हो जाते हैं अर्थात आसानी से पार कर लिया करते हैं !जैसे किसी ने अच्छे समय में खूब धन कमा लिया हो फिर अचानक बुरा समय आ जाए तो उस बुरे समय के प्रभाव से सब काम काज बिगड़ने लगेगा ,स्वास्थ्य बिगड़ेगा ,सहयोगी साथ छोड़ने लगेंगे इन सब के माध्यम से धन का भारी अपव्यय होता चला जाएगा !यदि धन का संचय अच्छा होगा तो सब काम होते चले जाएँगे भले ही उन कामों में भी असफलता ही मिले किंतु प्रयास न कर पाने का पछतावा तो नहीं रह जाएगा !संचित धन न हो काम तो तब भी करने पड़ेंगे किंतु कर्जे पर कर्जा होगा जिससे काम न होने का तनाव कर्जा देने का तनाव तथा काम को आगे बढ़ाने के लिए और अधिक धन राशि जुटाने का तनाव आदि बढ़ता चला जाएगा !किंतु अच्छे समय में धन का संचय यदि अच्छा किया गया होगा तब आधे से अधिक समय तो पहले के संचित धन से पार हो जाएगा और थोड़ा बहुत कर्जा हो भी जाएगा तो उसकी भरपाई आगे आने वाले अच्छे समय में आसानी से करना संभव हो जाता है !
    इसी प्रकार से बुरे समय में बुरे कर्म करके जो लोग बुराई के पिलर्स खड़े करके  उन पर सेतु बना लेते हैं वे अपने अच्छे समयों को भी उन बुराइयों के पिलर्स से ढकते चले जाते हैं जिससे उन्हें बुरे समय में तो तनाव मिलता ही है अच्छे समय में भी वो प्रसन्नताके लिए तरसते रहते हैं उनके जीवन का अच्छा समय भी उसी बुराई में ही ढका हुआ निकल जाता है !
     इसलिए यदि हम समय का सदुपयोग करना सीख जाएँ तो अच्छा समय अपनी सीमा से अधिक अच्छा फल देकर जाता है और हमारा बुरा समय हमारे जीवन में अपना बुरा प्रभाव पूरी तरह  नहीं छोड़ पाता है !इस प्रकार से जीवन के सभी क्षेत्रों से संबंधित भविष्य के संभावित तनावों से बचा जा सकता है !
        'क्षणबीज' में ही  कार्यविस्तार छिपा होता है ! 
       जिस 'क्षणबीज' में हम जो भी काम प्रारंभ करते हैं उसी क्षण में उस कार्य का विस्तार छिपा होता है इसलिए उस क्षणबीज के आधार पर ही उस कार्यविस्तार का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !कई बार किसी क्षण विशेष में कोई कार्य प्रारंभ किया जाए और क्षणबीज के प्रभाव से उसका विस्तार अच्छा हो भी जाए तो भी उसका लाभ उन्हीं को मिल पाता जिनके जीवन में अपना समय अच्छा चला रहा होता है अन्यथा अच्छे समय में प्रारंभ कार्य में अच्छी सफलता मिलने के बाद भी उस कार्य से संबंधित लोगों को उतनी ही लाभ हानि मिल पाती है जितना जिसका सहयोग उसका अपना समय कर रहा होता है !चूँकि लाभ हानि का संबंध हर किसी के अपने अपने समय से होता है इसलिए उस समय उस कार्य विशेष से किसका कितना लाभ या हानि होगा ये संबंधित लोगों के समय का शोध करके उसका पहले से ही पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !संबंधित लोगों  के भी पैदा होते समय के 'क्षणबीज' पर  रिसर्च करके यह देखना होगा कि उस कार्य का परिणाम आने के समय संबंधित लोगों का अपना समय कैसा होगा एवं उस कार्य के अच्छे बुरे परिणाम के प्रति कितना सहयोगी और कितना विरोधी होगा !जिसका समय जितना और जैसा सहयोगी  या विरोधी रहेगा उस पर उस कार्य विस्तार का वैसा ही असर होगा !हर किसी व्यक्ति पर उसके लाभ या हानि का प्रभाव उसके अपने अपने क्षणबीज के आधार पर ही उन सभी लोगों पर भी पड़ेगा !
क्षणबीज का महत्त्व -       क्षणबीज रूपी बीज अपने अंदर बहुत कुछ समेटे हुए होता है इसीलिए उस क्षण में प्रारंभ होने वाले या किए जाने वाले अच्छे - बुरे, छोटे- बड़े, सजीव-निर्जीव, कृत्रिम - अकृत्रिम अर्थात प्राकृतिक आदि सभी प्रकार के कार्यों व्यवहारों आदि के विस्तार का पूर्वानुमान उसके प्रारंभ होने के समयविंदु  के आधार पर लगा लिया जाता है | समय विज्ञान के विशेषज्ञ लोग इस विधा के द्वारा एक से एक कठिन परिस्थितियों रोगों मनोरोगों एवं प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान लगा लिया करते हैं | भारत में अनंत काल से समय विज्ञान के संदर्भ में शोध होते रहे हैं जिनके द्वारा लगाए जाने वाले पूर्वानुमान उस प्राचीन काल के समय संबंधी अनुसंधानों के आज भी प्रत्यक्ष गवाह हैं |  
    जिस समय विंदु पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष जिस भी घटना की शुरुआत होती है वह क्षण ही उस घटना ,कार्य या संबंध के विस्तार की सीमाएँ निर्धारित कर चुका होता है इसलिए उसी आरंभिक क्षणबीज पर रिसर्च करके सभी विषयों से संबंधित भविष्य में होने वाले विस्तारों को बहुत पहले नापा जा सकता है किसी भी विषय से सम्बंधित पूर्वानुमान लगाने के लिए उस विषय से संबंधित क्षणबीज बहुत महत्त्वपूर्ण होता है वो क्षण उस घटना से सम्बंधित गर्भ का प्रारंभिक समयविंदु होता है ये समय ही उस घटना का मूल बीज होता है यही उस घटना का महत्त्वपूर्ण बीजारोपण काल होता है | 
     ये घटना कोई भी कैसी भी हो सकती है मनुष्यों से लेकर किसी भी जीव से संबंधित बच्चे के गर्भ प्रवेश या जन्म का समय भी हो सकता है किसी रोग के प्रारम्भ होने का क्षण हो सकता है या किसी दुर्घटना के घटित  होने का समय हो सकता है | कोई कार्य व्यापार प्रारंभ होने का समय हो या कोई जमीन खरीदने मकान बनाने या या नए घर में प्रवेश करने का समय हो सकता है | किसी के विवाह का समय हो सकता है किसी के प्रेम संबंधों की शुरुआत का समय हो सकता है |किसी यात्रा के आरंभ करने का समय हो सकता है किसी चिकित्सा आपरेशन आदि के प्रारंभ होने या करने का समय हो सकता है कुल मिलाकर ऐसे सभी प्रकार के निर्माणों से संबंधित शुरुआत का प्रथम क्षण हो सकता है | इस क्षण के आधार पर इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि ऐसे अच्छे या बुरे विस्तार से किसको किस प्रकार की कितनी आशा रखनी चाहिए और कितना सावधान रहना चाहिए !
     प्रत्येक घटना या परिस्थिति के प्रारंभ होने का समय ही उस घटना का वास्तविक गर्भकाल होता है ! 
      ऐसे सभी प्रकार के गर्भ समय स्वयं धारण करता है और उन अच्छे बुरे सभी प्रकार के गर्भों का प्रसवकाल भी सुनिश्चित होता है उसके अच्छे बुरे परिणाम भी सुनिश्चित होते हैं ऐसी सभी बातों से संबंधित भविष्य का पूर्वानुमान  उस गर्भकाल के आधार पर ही आधारित होता है !
     गर्भकाल अत्यंत  गुप्त होने पर भी अनुभवी लोग  गर्भिणी के शारीरिक मानसिक आदि परिवर्तनों के आधार पर न केवल उसके गर्भिणी होने का अनुमान लगा लेते हैं अपितु उसके  प्रसव होने का पूर्वानुमान भी लगा लिया करते हैं क्योंकि गर्भ के समय के अनुशार ही प्रसव का समय भी निश्चित होता है चूँकि गर्भ का समय हर किसी का और हर गर्भ का अलग अलग होता है इसीलिए प्रसव का समय भी एक जैसा नहीं होता है अलग अलग  होता है अतएव किसी गर्भिणी को देख कर उसके गर्भ के विषय में प्रसव का निश्चित समय भले न बताया जा  सकता  हो किन्तु अनुभवी लोग उन्हीं लक्षणों के आधार पर न केवल गर्भ के समय का संभावित पूर्वानुमान लगा लेते हैं अपितु उसके प्रसव काल का भी पूर्वानुमान लगा लिया करते हैं !समस्त जीवधारियों के गर्भ की अवधि के महीने अलग अलग होते हैं प्रसव काल का अनुमान भी उसी प्रकार से लगाना होता है |
        समस्त जीवधारियों के गर्भ काल की तरह ही उनके जीवन से संबंधित सभी प्रकार की अच्छी बुरी घटनाओं का भी गर्भ काल होता है जिसे कोई शरीर नहीं अपितु समय धारण करता है जिनका गर्भकाल पूर्ण होने पर उनका प्रसव होता है जिसके फल स्वरूप हर किसी को सुख और दुःख दोनों प्राप्त होते रहते हैं ये गर्भ प्रारंभ होने का समय अत्यंत महत्वपूर्ण होता है इसी के आधार पर तो उससे संबंधित पूर्वानुमान लगाया जा सकता है!
   मनुष्य आदि समस्त जीवधारियों की तरह ही विशाल ब्रह्मांड से संबंधित प्रत्येक प्राकृतिक घटना का अपना अपना गर्भ काल होता है उसी के अनुशार उसका प्रसव काल भी हुआ करता है वर्षा बाढ़ आँधी तूफान यहाँ तक कि भूकंप जैसी बड़ी बड़ी घटनाओं का भी गर्भ काल होता है जिसके प्रसव का  समय निश्चित भले न हो किंतु पूर्ण रूप से अनिश्चित भी नहीं होता है उसके आधार पर ऐसी प्राकृतिक घटनाओं का भी पूर्वानुमान तो लगाया जा ही सकता है |
     प्रसव हो जाने पर या प्रसव काल समीप आ जाने पर तो लक्षण बिल्कुल स्पष्ट  हो चुके होते हैं और घटनाएँ घटने लग जाती हैं जनधन की हानियाँ होने लगती हैं ऐसे समय लगाए गए पूर्वानुमान उतने लाभप्रद नहीं हो पाते हैं इन्हीं  घटनाओं के गर्भ काल का  पता होने पर इनके घटित होने के समय का पूर्वानुमान काफी पहले लगाया जा सकता था जिससे ये पूर्वानुमान मानवता की रक्षा करने में और अधिक सहायक हो सकते थे |
     जीवधारियों से लेकर प्राकृतिक घटनाओं तक से जुड़े विषयों के गर्भकाल का पता लगाने और फिर उसी के आधार पर  उनसे जुड़े दोषों को दूर करने का प्रयास प्राचीन भारत में अनंत काल से किया जाता रहा है क्योंकि किसी भी घटना का गर्भाधान एक बार हो जाने के बाद वो अच्छा हो या बुरा उसका प्रसव तो होता ही है उसके परिणाम भुगतने भी पड़ते हैं इसीलिए प्राचीन काल में राजा लोग गर्भाधान जैसे महत्त्वपूर्ण विषयों में ज्योतिष शास्त्र की मदद लिया करते थे क्योंकि समय संबंधी गणना के लिए ज्योतिष शास्त्र  अनंत काल से प्रचलन में रहा है | इस शास्त्र का मुहूर्त विज्ञान वस्तुतः समय संबंधी गर्भकाल को शुद्ध करने की ही प्रक्रिया है !
      गर्भाधान मुहूर्त ,विवाह मुहूर्त , कूप खनन मुहूर्त, भवननिर्माण मुहूर्त आदि ऐसे सभी विषयों से जुड़े गर्भाधान के समय को शुद्ध करने की प्रक्रिया मात्र है | गर्भ स्थापन ,विवाह ,कूप खनन या भवन निर्माण जैसे सभी विषय जितने शुभ मुहूर्त अर्थात  अच्छे समय में होंगे प्रसव अर्थात परिणाम के समय उनका फल भी उतना ही अच्छा होगा |
     कई बार समस्त घटनाओं से सम्बंधित गर्भाधान बिगड़ जाने पर उसे गर्भ में ही सुधार लेने की प्रक्रिया  का अनुशरण किया जाता था उसके लिए वैदिक कर्मकांड के ग्रंथों में तरह तरह की वैदिक प्रक्रियाओं का विधान देखने को मिलता है जिसका पालन करके वो सामयिक गर्भाधान जन्य दोष दूर कर लिए जाया करते थे | उस युग में वे लोग अनेकों प्रकार के प्राकृतिक लक्षणों के आधार पर अच्छी बुरी सभी प्रकार की भविष्य में घटित होने वाली प्राकृतिक घटनाओं के गर्भकाल का ज्ञान कर लिया करते थे उसके आधार पर वे उनके प्रसवकाल  का पूर्वानुमान लगा लिया करते थे !उन्हीं लक्षणों के आधार पर गर्भ काल के गुण और दोषों की गणना कर लिया करते थे उन्हीं दोषों को दूर करने के लिए वैदिकविधि पूर्वक यज्ञ आदि क्रियाओं  से समय का शोधन कर लिया करते थे ! इसीलिए उस युग में प्राकृतिक आपदाओं का स्वरूप वर्तमान समय की तरह उतना भयावह नहीं हुआ करता था !रोग, मनोरोग, तनाव, संबंध विच्छेद ,विवाह विच्छेद एवं समाज में दिखने वाले बलात्कार हत्या आत्महत्या जैसी परिस्थितियों का स्वरूप इतना भयावह नहीं होता था जितना वर्तमान समय में देखा जा रहा है | ऐसी सभी परिस्थितियों का वास्तविक  कारण समय संबंधी गर्भकाल के विज्ञान की उपेक्षा करना ही है |
    वस्तुतः कोई काम स्वयं प्रारंभ  हो या किसी के द्वारा प्रारंभ किया जाए उसके प्रारंभ  होने का समय बहुत महत्त्वपूर्ण  होता है किसी रोग के प्रारम्भ होने या किसी दुर्घटना में चोट चभेट लगने का समय उस रोग या चोट - चभेट की  सीमाओं को निर्धारित करने में बहुत सहायक होता है |किसी के शरीर में होने वाले रोग या लगने वाली चोट के बढ़ने की सीमा कितनी होगी उस  पर चिकित्सा का असर कितना होगा या नहीं होगा ! प्रारंभ में दिखाई पड़ने वाला छोटा सा रोग किसी बहुत बड़े रोग की शुरुआत तो नहीं  है !इसके साथ ही उसकी चिकित्सा में किस प्रकार की सावधानियाँ कितने दिनों तक  विशेष वर्तनी पड़ेंगी आदि बातों का पूर्वानुमान समय विज्ञान के आधार पर ही लगाया जा सकता है |
     ऐसे प्रकरणों में इन्हीं रोगियों के  रोगों  या चोट से संबंधित गंभीरता का पूर्वानुमान लगाते समय हमें इनके जन्म होने के समयजन्य परिस्थितियों का भी ध्यान रखना चाहिए  क्योंकि  उनका  असर सारे जीवन पर पड़ता है |जिस प्रकार से जिसके शरीर में जो  रोग जब  पैदा  होता है उस रोग के बढ़ने न बढ़ने या शीघ्र समाप्त होने का पूर्वानुमान उस रोग के प्रारंभ होने के समय के आधार पर किया जा सकता है उसी प्रकार से किसी का शरीर जीवन के किस वर्ष में किस प्रकार के रोग  या मनोरोग से पीड़ित होगा कितने दिनों महीनों वर्षों  तक  स्वस्थ  या अस्वस्थ रहेगा  या मृत्यु को प्राप्त होगा !ऐसी सभी घटनाएँ  जीवन की किस उम्र में घटित  होंगी | इनका पूर्वानुमान तो जन्म के समय के आधार पर ही लगाया जा सकता है !कई बार कोई रोग एक बार समाप्त होने के कुछ  दिन बाद दूसरी  तीसरी  बार आदि  फिर से होने लगता है या ऐसा रोग हो जाता है जिस पर चिकित्सा का कोई असर ही नहीं हो रहा होता है या ऐसा रोग हो जाता है जिस पर सभी प्रकार के अच्छे से  अच्छे चिकित्सकीय प्रयास करने के बाद भी  उसका कोई असर नहीं हो रहा होता है और रोग बढ़ते बढ़ते रोगी एक दिन मृत्यु को प्राप्त हो जाता है | ऐसी सभी परिस्थितियों का पूर्वानुमान केवल जन्म समय  के  आधार पर ही लगाया जा सकता है |
      मानसिक तनाव किस व्यक्ति के जीवन की किस उम्र में कितने दिनों महीनों वर्षों आदि के लिए किस विषय से संबंधित होगा इसका पूर्वानुमान भी जन्म समय के आधार ही लगाया जा सकता है | विवाह हो या किसी के साथ मित्रता के संबंध वो उन दोनों के बीच कब तक मधुर रहेंगे कब सामान्य रहेंगे और कब  कटुता पूर्ण होने लगेंगे ऐसी घटनाएँ जीवन के किस वर्ष में कितने दिनों महीनों वर्षों आदि के लिए घटित होंगी ऐसी बातों का पूर्वानुमान उन दोनों के जन्म समयों के आधार पर ही लगाया जा सकता है |
            किसी काम को प्रारंभ करते समय उसे करने के पीछे हर किसी का एक ही लक्ष्य होता है और उसी लक्ष्य की पूर्ति के लिए वो प्रयास करता है किंतु ये आवश्यक नहीं होता है कि उसके प्रयास का परिणाम उसकी इच्छा के अनुरूप ही निकले अपितु उसकी इच्छा के विरुद्ध भी जाते देखा जाता है परिणाम के प्रति समर्पित होकर प्रयास करने वाले लोग अचानक प्राप्त ऐसी विपरीत परिस्थितियों को सह नहीं  पाते  हैं और वो अवसाद अर्थात तनाव में चले जाते हैं | हत्या आत्म हत्या जैसी दुर्घटनाएँ ऐसी ही मनस्थिति की देन होती हैं ऐसी परिस्थितियों  में  परिणाम का पूर्वानुमान लगाना  बहुत आवश्यक हो जाता है |जिसके लिए उसे पहले से ही मानसिक रूप से तैयार किया जा सकता है जिससे कई बड़ी दुर्घटनाएँ टाली जा सकती हैं |   
  समयविज्ञान  और पूर्वानुमान
        चिकित्सा एवं प्राकृतिक आपदाएँ रोग मनोरोग एवं डेंगू जैसे निश्चित समय में होने वाले सामूहिकरोग !इसी प्रकार से प्रकृति संबंधी वर्षा बाढ़ आँधी तूफान और भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाओं के घटित होने का कारण होता है समय !इनसे संबंधित पूर्वानुमान लगाने के लिए या इनकी तीव्रता समझने के लिए आवश्यक  है "समय विज्ञान" चिकित्सा और प्राकृतिक आपदाओं के क्षेत्र में जितना व्यवस्था को चुस्त करना आवश्यक है उससे कई गुना अधिक आवश्यक है इन विषयों से सम्बंधित पूर्वानुमान का पता लगाना ! 
   रोगों के विषय में - भविष्य में होने वाले रोगों के विषय में पूर्वानुमान लगाकर रोगी को पथ्य परहेज आदि सावधानियों का पालन करवाकर उनके शरीरों को भविष्य में रोगी होने से बचाना होता है !इसके साथ ही रोकथाम के लिए सामान्य चिकित्सा का सहारा लेना !शरीर में हो चुके रोगों की चिकित्सा जितनी आवश्यक है उससे बहुत अधिक आवश्यक है शरीर को रोगी होने से ही बचा लिया जाए ऐसा तभी संभव है जब रोगों और चिकित्सा से संबंधित पूर्वानुमान विज्ञान को विकसित किया जाए जिसके द्वारा इस बात का पूर्वानुमान किया जा सकता है कि किस व्यक्ति को जीवन के किस वर्ष में कितने समय के लिए किस प्रकार के रोग या किस प्रकार के मानसिक तवाव के लिए सतर्क रहना चाहिए !
  प्राकृतिक आपदाओं के विषय में- वर्षा बाढ़ आँधी तूफान और भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाओं के घटित होने के बाद राहत और बचाव कार्यों में जितनी तत्परता वरती जाती है उससे कम आवश्यक नहीं होता है कि ऐसी प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान लगाकर जन जागरण पूर्वक एवं पहले से सावधान किए गए लोगों को स्वसुरक्षा पूर्वक बचाने का प्रयास किया जाए !इसके माध्यम से सरकार के द्वारा चलाए जा रहे आपदा राहत के लिए किए जाने वाले प्रयासों को और अधिक प्रभावी बनाया जा सकता है !
   पूर्वानुमान की प्रक्रिया -
  रोग - स्वास्थ्य शारीरिक हो या मानसिक तनाव आदि या किसी क्षेत्र विशेष में फैलने वाली सामूहिक बीमारियाँ ही क्यों न हों यदि इनसे संबंधित कोई भी पूर्वानुमान किसी रोग के प्रारंभ होने से कुछ पहले रोग के विषय में पता लगाना संभव हो पाता तो उसकी चिकित्सा कर पाना और अधिक आसान होता !ऐसी परिस्थितियों में कुछ सावधानी भी बरती जा सकती है जिससे ऐसी बीमारियों को पैदा होने से भी रोका या कम  किया जा सकता है |
  अवसाद - मनोरोग और तनाव के क्षेत्र में भी यदि पूर्वानुमान लगाने की विधा पर विश्वास करके इस विषय को आगे बढ़ाया  जाए तो  तनाव प्रारंभ होने से पहले ही भविष्य में होने वाले तनाव का पूर्वानुमान 'समयविज्ञान' के द्वारा लगाया जा सकता है| सावधानी तथा सहनशीलता पूर्वक तनाव प्रारंभ होने वाले कारणों को दबाया और झुठलाया जा सकता है इस विधा के द्वारा पूर्वानुमान लगाकर बहुतों के जीवन में घटित होने वाली आत्महत्या जैसी दुर्घटनाओं को टाला जा सकता है तलाक जैसी घटनाओं को रोका जा सकता है और परिवारों को टूटने से बचाया जा सकता है  |   
 प्राकृतिक पूर्वानुमान -यही स्थिति प्रकृति से संबंधित विषयों की भी है वर्षा बाढ़ आँधी तूफान और भूकंप  जैसी प्राकृतिक आपदाओं के विषय में लगाए जाने वाले पूर्वानुमान यदि सही घटित होने लगें तो जन धन के मामले में होने वाली जन धन की क्षति को भारी मात्रा में घटाया जा सकता है इससे मानवता का बहुत बड़ा भला हो सकता है !कई विषयों में अनेक आधुनिकवैज्ञानिक पद्धति से शोध करने  के लिए बहुत परिश्रम किया जाता है बड़े साधनों का उपयोग होता है बहुत सारा धन खर्च किया जाता है सरकार भी उसमें बहुत रूचि लेती है इसीलिए सफलता भी मिलती है इसमें भी कोई संदेह नहीं है इसी कारण से लोगों का विश्वास विज्ञान पर बना हुआ है|  
    इसके साथ साथ हमें एक इस बात का भी ध्यान रखना आवश्यक है कि जो विषय आधुनिकविज्ञान से संबंधित हैं उसमें तो आधुनिकविज्ञान बहुत अच्छा कार्य कर ही लेता है किंतु जो विषय आधुनिकविज्ञान से संबंधित नहीं होते हैं उनमें आधुनिकविज्ञान  की कोई विशेष भूमिका नहीं होती है |मौसम आदि ऐसे प्रकरणों में भी विज्ञान के नाम पर व्यक्त किए जाने वाले पूर्वानुमान संबंधी संकेत वैज्ञानिक कम अपितु तीर तुक्के  अधिक लगते हैं  जो विज्ञान के नाम पर शोभा नहीं देते हैं क्योंकि विज्ञान सिद्धांतसूत्रों  से निबद्ध है !जहाँ दो दो मिलकर चार होते ही हैं ऐसी ही आशा मौसम संबंधी पूर्वानुमानों के संबंध में भी की जाती है किंतु इन विषयों  से विज्ञान के नाम पर की जा रही भविष्यवाणियाँ विश्वसनीय नहीं लगती हैं क्योंकि वो अक्सर सच होते नहीं देखी जाती हैं  | 
                       पूर्वानुमान विज्ञान में समय की भूमिका -
       भविष्यवाणी हो या पूर्वानुमान इनका आधार एक मात्र समय होता है क्योंकि संसार की अच्छी बुरी सभी घटनाएँ समय के अनुशार ही घटित हो रही होती हैं इन सबका एक कालक्रम बना हुआ है उसी के अनुशार सारी घटनाएँ घटती जा रही हैं !प्रकृति विधान से ये सब कुछ होना बहुत पहले से सुनिश्चित हो चुका होता है कोई माध्यम बने न बने ये उसकी इच्छा किंतु घटनाएँ तो समय के अनुशार घटेंगी ही और घटती ही रहती हैं वो मनुष्य कृत प्रयासों के आधीन नहीं होती हैं यदि ऐसा न होता तो जो मनुष्य को अच्छा लगता वैसी ही घटनाएँ घटित होतीं जो अच्छा न लगता वैसी घटनाएँ होतीं ही नहीं किंतु ऐसा न होने का कारण समय सब कुछ स्वयं करता जा रहा है उसमें से जो कुछ करने के लिए हम प्रयास कर रहे होते हैं यदि वैसा हो जाता है तो उसे हम अपने द्वारा  किया  हुआ मान लेते हैं और जो कुछ ऐसा हो जाता है जिसके लिए प्रयास हम हीं कर रहे होते हैं फिर भी वो हो जाता है उसे टालने का प्रयास करने पर भी होते देखा जाता है वो हमारे लिए हानिकरक या हमारी इच्छा के विरुद्ध हो रहा होता है वो समय प्रेरित होने के कारण टलता नहीं है !कई चिकित्सकों के द्वारा सघन चिकित्सा करने के बाद भी रोगियों की मृत्यु होते देखी जाती है ऐसे समय चिकित्सक निरुत्तर हो जाते हैं कुछ लोग तो ऐसे विपरीत परिणामों के लिए समय भाग्य कुदरत या परमात्मा को जिम्मेदार ठहराने लगते हैं जबकि यदि वैसा हो जाता जैसा वो चाह रहे थे या जिसके लिए प्रयास कर रहे थे तब तो उसके होने का संपूर्ण श्रेय (क्रेडिट)वे स्वयं ले लेते और अपने द्वारा किए जाने वाले प्रयासों की पीठ थपथपाने लग जाते !
      इसलिए अब हमें यह मान ही लेना चाहिए कि संसार में किसी के द्वारा भी किए जा रहे सम्पूर्ण प्रयास कभी सफल नहीं होते क्योंकि प्रयास करना उसका कर्तव्य होता है जबकि परिणाम समय के अनुसार मिलते हैं इसलिए अनेकों महान विद्वानों दार्शनिकों के द्वारा ये बहुत पहले  माना जा चुका है कि इस चराचर संसार में जो कुछ भी हो रहा होता है वो समय चक्र के अनुशार बहुत पहले निश्चित हो चुका होता है उसी पटकथा के आधार पर सब कुछ स्वयमेव होता चला जा रहा है !
      इसी भावना के लिए समर्पित  'अरस्तु ' 'प्लूटो' जैसे महान दार्शनिकों का तो ऐसे विषयों पर यहाँ तक मानना रहा है कि संसार में जो कुछ भी होता या क्या जाता हुआ दिख रहा होता है वो कार्य पूर्ण रूप से नवीन नहीं होता है अपितु वो दूसरी या तीसरी वार आदि किया जा रहा होता है जबकि प्रत्यक्ष रूप से वह पहली बार ही करते दिख रहा होता है !उन्होंने तो कवियों को भी कविता बनाने वाला न मान कर अपितु कविता को खोजने वाला माना है क्योंकि उनका मानना है कि इस संसार में समय के द्वारा प्रकृति में सबकुछ बहुत पहले बनाकर छोड़ा जा चुका होता है उसमें से जो जिस चीज को खोज लेता है वो अपने को उसका निर्माता मान लेता है जबकि वो उस चीज का अन्वेषक अर्थात खोज करने वाला होता है !'अरस्तु ' 'प्लूटो' जैसे महान दार्शनिकों का मानना है कि कविता लिखने वाला कवि भी उस कविता का जन्मदाता नहीं हो सकता है अपितु कवि तो उस कविता को केवल खोजने वाला ही होता है  ! बाकी उस कविता  का निर्माण तो प्रकृति में समय के द्वारा बहुत पहले किया जा चुका होता है !इसी प्रकार से  सभी कार्यों के विषय में उनके जन्मदाता वो लोग नहीं होते हैं जो प्रत्यक्ष रूप से दिखाई पड़ रहे होते हैं जबकि उनका जन्म समय के आधार पर स्वयमेव हुआ होता है समय के रहस्य को समझने वाले लोग ही इस सच्चाई को समझ पाते हैं !
      महाभारत के प्रकरण में संजय के विषय में सुना जाता है कि वो वहाँ बैठे बैठे महाभारत का सारा हाल  देख देख कर धृतराष्ट्र को बताते जा रहे थे जबकि उसकी सच्चाई कुछ इस प्रकार की थी !वस्तुतः संजय 'समयविज्ञान' के बहुत बड़े विद्वान थे उन्हें पता था कि कौन सी घटना किस समय अर्थात किस क्षण बीज में घटित होनी है उसी कालक्रम के आधार पर संजय तो समय को आधार बनाकर सब कुछ बोलते बताते जा रहे थे युद्ध स्थल में यहाँ वही सब कुछ घटित होता जा रहा था लोग समझ रहे थे कि संजय वहाँ का सारा समाचार देख देख कर धृतराष्ट्र को बताते जा रहे हैं ! 
       इसी बात को रामचरित मानस में कुछ  इस प्रकार से  से दर्शाया गया है कि भगवान् श्री राम के अवतार के पहले ही देवतागण समय को आधार मानकर ही भगवान श्री राम का अवतार होने से पूर्व ही  प्राकट्य को स्वीकार कर लिया था और स्तुति करके अपने अपने धाम को चले गए इसके बाद भगवान् श्री राम का अवतार हुआ था !यहाँ पर भी समय को ही आधार मानकर ऐसा किया गया था -
                             सो अवसर विरंचि जब जाना !चले सकल सुर साजि विमाना !!
        इसके बाद -
                                  दो.सुर समूह बिनती करि पहुँचे निज निज धाम !
                                      जग निवास प्रभु प्रकटे अखिल लोक विश्राम !!  
   इसी प्रकार समय के महत्त्व को समझाने के लिए ही तो गीता जैसे महान ग्रन्थ का प्राकट्य भगवान् श्री कृष्ण के मुखारविंद से हुआ था -
        गीता में जब अर्जुन ने भगवान् श्री कृष्ण से कहा कि हे केशव !मैं अपने गुरुजनों को पितामह को तथा बंधु बांधवों को कैसे मार सकता हूँ इसपर भगवान् श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि हे अर्जुन तुम न किसी को मार सकते हो न बचा सकते हो क्योंकि किसी को मारने या बचाने का काम तुम्हारा नहीं अपितु समय का है जिनके मरने का समय हो चुका है वो तो अपनी अपनी आयु पूर्ण होने के कारण मरेंगे उनका बध समय स्वयं करेगा !इसी क्रम में भीष्म द्रोण और कृपाचार्य जैसे अनेकों महान वीरों का समय चूँकि पूरा हो चुका है इसलिए यदि तुम नहीं भी लड़ोगे तो भी उन्हें अब मरना ही है क्योंकि मैंने अर्थात समय स्वरूप श्रीकृष्ण ने तो उन्हें पहले ही मार दिया है - "मयैवैते निहता पूर्वमेव"अतएव हे अर्जुन ! तुम केवल निमित्त बन जाओ "निमित्त मात्रं भव सव्यसाचिन "!अर्जुन ! उनसे यदि तुम युद्ध करोगे तो उन्हें जीतने का श्रेय तुम्हें मिल जाएगा और तुम्हारा इतिहास अमर हो जाएगा और इतने बड़े बड़े वीरों को पराजित करने का श्रेय तुम्हें मिल जाएगा सारा संसार ये मान लेगा कि अर्जुन ने ही इन महान वीरों को युद्ध में पराजित किया है |
      विशेष बात -भगवान् श्री कृष्ण केवल अर्जुन के सारथी ही नहीं थे और न ही केवल "समयवैज्ञानिक" ही थे अपितु वे तो समय का साक्षात स्वरूप ही थे उन्होंने स्वयं ही कहा है -
   कालोऽस्मि लोकक्षयकृत् प्रवृद्धो लोकानृ समाहर्तुमिह प्रवृत्तः
  ऋतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः।।11.32।।
      इसलिए तो श्रीकृष्ण जी समय संबंधी पूर्वानुमान के आधार पर जिस जिस वीर की आयु पूरी होती जाती थी रणस्थल में उसी के सामने रथ ले जाकर खड़े हो जाते थे संकेत समझकर अर्जुन के द्वारा युद्ध का सामान्य प्रयास किए जाने पर भी वो वीर मृत्यु को प्राप्त हो जाता था उसके वध का श्रेय अर्जुन को मिल जाता था !
     ये वही समय विज्ञान है जिसके आधार पर पूर्वानुमान लगाकर बड़े बड़े ज्ञानी गुणवान लोग छोटी बड़ी सभी प्रकार की कार्य योजनाएँ तैयार किया करते थे ! 
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साभार krishnakosh.org
     समय की शक्ति के आगे बड़े बड़े धीर वीर नतमस्तक हो जाया करते थे स्वयं भगवान् श्री राम के समान दूसरा कोई वीर नहीं था और पत्नी के अपहरण के बराबर कोई दूसरा अपमान नहीं होता है फिर भी श्री राम ने अच्छे समय का पूर्वानुमान लगाकर सारा अपमान सहते हुए भी 10 महीने तक अच्छे समय की प्रतीक्षा की वर्षा ऋतु बीत गई उसके बाद शरद ऋतु भी बीत गई तब प्रयास प्रारंभ किया इस प्रकार से धीरे धीरे सोलह महीने व्यतीत कर दिए गए चूँकि रावण आदि राक्षसों की इतनी आयु अवशेष थी  इसलिए इतना समय तो बिताना ही था अंत में लंका में पहुँच गए जिस राक्षस की आयु जैसे जैसे  पूर्ण होती जाती थी वैसे वैसे वो श्री राम जी के सामने आता जाता था और समय पूरा हो जाने के कारण वे राक्षस स्वयं प्राण छोड़ते जाते थे ! बड़े बड़े सैनिकों के समूह एक साथ युद्ध स्थल में गिरते जाते थे लोग समझते थे श्री राम लीला में ही राक्षसों का संहार करते जा रहे हैं |इसी प्रकार से आयु पूर्ण होने पर रावण की मृत्यु का समय आ गया श्री राम ने जैसे ही बाण मारा वैसे ही रावण की मृत्यु हो गई |
     'समयविज्ञान' से संबंधित ही दूसरी घटना श्री राम जी के धनुष तोड़ने की है धनुष की जब तक आयु शेष थी तब तक तो दस दस हजार राजाओं ने एक साथ प्रयास किया किंतु धनुष को हिला भी नहीं सके और जैसे ही धनुष की आयु पूर्ण हुई तो "विश्वामित्र समय शुभ जानी |" अर्थात विश्वामित्र जी ने समय को शुभ समझकर श्री रामजी से कहा -"उठहु राम भंजहु भव चापा "और आदेश पाते ही श्री राम जी के द्वारा सामान्य प्रयास करने पर ही धनुष न केवल उठ गया अपितु टूट भी गया !ये है समय का प्रभाव !
      चूँकि समय के प्रभाव से धनुष स्वयं टूट गया था इसलिए जो लोग राम जी के हाथों की ओर ही टकटकी लगाए देख रहे थे उन्हें पता ही नहीं चला कि धनुष टूट कब गया जबकि सब वहीँ खड़े रहे - "काहू न लखा रहे सब ठाढ़े" "प्राणान्मुमोच रघुनन्दन पाणितीर्थे" इसीलिए तो लक्षमण जी ने कहा था कि धनुष तो छूते ही टूट गया था -"छुअत टूट रघुपतिहि न दोषू "फिर स्वयं श्री राम ने कहा - "छुअतहि टूट पिनाक पुराना" !दोनों ने एक ही बात कही कि धनुष तो छूते ही टूट गया था किन्तु इतना मजबूत धनुष छूते ही कैसे टूट सकता था वस्तुतः समय पूर्ण हो जाने के कारण धनुष स्वयं ही टूट गया था !
      समय सबसे अधिक बलवान है और समय ही सबसे अधिक महत्वपूर्ण है जो समय की शक्ति को समझता है वही विजयी है !संसार में हर चीज समय के कारण ही बन और बिगड़ रही है हर संबंध समय के साथ जुड़ा हुआ है मनुष्य तो बहाना मात्र है|  जिस क्षण जिस वस्तु का निर्माण होता है उसी क्षण के आधार पर उस वस्तु के नष्ट होने का समय सुनिश्चित हो जाता है जिस क्षण जो संबंध बनता है उसी क्षण के आधार पर उस संबंध के टूटने का समय निश्चित हो जाता है | जिस समय जिसका जन्म होता है वही क्षण उसके मृत्यु का भी सन्देश दे रहा होता है !जिस क्षण विवाह होता है वही क्षण विवाह विच्छेद की संभावनाओं का संकेत कर रहा होता है | जिस क्षण कोई रोग प्रारम्भ होता है या चोट लगती है उसी क्षण के आधार पर उस रोग के घटने बढ़ने या समाप्त होने का समय निश्चित हो जाता है | कुलमिलाकर जो घटना जब प्रारम्भ होती है वो क्षण उसके सभी प्रकार के परिवर्तनों की सूचना भी दे रही होती है !
        भगवती सीता का हरण हुआ रावण और जटायु का युद्ध हुआ जटायु के पंख काट दिए गए घायल होकर जटायु मूर्च्छित अवस्था में गिर पड़े फिर चेतनता आई तो जब श्री राम आए तो जटायु जी ने सीता जी के विषय में उन्हें बताते हुए कहा  - "लै दक्षिण दिशि गयउ गोसाईं "अर्थात सीता जी को दक्षिण दिशा की ओर ले गया है !"श्री राम जी ने कहा - आपतो मूर्च्छित होकर गिर पड़े थे तो आपको क्या पता कि किस दिशा में ले गया है फिर आपने दक्षिण दिशा की बात कैसे कही ?इस बात पर जटायु जी कहने लगे भगवन कोई कितना भी बड़ा वीर क्यों न हो वो समय का अतिक्रमण नहीं कर सकता इसलिए सीता जी को जिस समय में ले जाया गया है उसके आधार पर विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है कि उन्हें केवल दक्षिण दिशा की ओर ही ले जाया जा सकता है-
                                                  "येन याति मुहूर्तेन सीतामादाय रावणः |"  
    समय की इतनी बड़ी महिमा है मनुष्य केवल प्रयास करता है परिणाम तो समय के अनुशार ही मिलता है |सौ रोगियों की चिकित्सा एक साथ बिल्कुल एक प्रक्रिया से की जाती है किंतु परिणाम समय के अनुशार होते हैं कोई स्वस्थ होता है कोई अस्वस्थ रहता है कोई मृत्यु को प्राप्त हो जाता है |इसलिए सभी विषयों में प्रयास कोई भी कर सकता है किंतु परिणाम समय के अनुशार ही होते हैं | 
       प्रकृति हो या मानव जीवन प्रयास कोई भी कर ले किंतु परिणाम समय ही देता है समय ही सभी प्रकार की परिस्थितियों या घटनाओं को जन्म देता है पल्लवित करता है और नष्ट कर देता हैं वर्षा बाढ़ आँधी तूफान भूकंप आदि हों या रोग मनोरोग और सामूहिक रोग आदि ऐसी सभी घटनाओं का कारण समय ही होता हैं ! 
        पूर्वानुमान -
 पूर्वानुमान तो समय के आधार पर ही लगाया जा सकता है क्योंकि घटनाएँ समय के अनुशार ही घटते देखी जाती है |'समयविज्ञान' जैसी किसी भी चीज पर आधुनिक विज्ञान भरोसा नहीं करता है समय संबंधी पूर्वानुमानों को आधुनिक वैज्ञानिक किस दृष्टि से देखेंगे मुझे नहीं पता ! किन्तु भविष्यवाणी और  पूर्वानुमान के क्षेत्र में आधुनिक विज्ञान के पास अभी तक ऐसा कोई सुदृढ़ आधार है ही नहीं जिसके बल पर दृढ़ता पूर्वक मौसम संबंधी या भूकंप संबंधी कोई पूर्वानुमान लगाया जा सके !समय वैज्ञानिक दृष्टि से मैं कह सकता हूँ कि मौसम से लेकर भूकंप तक और मानव जीवन से जुड़े समस्त विषयों पर पूर्वानुमान संबंधी विषयों में आधुनिक विज्ञान की कोई भूमिका है ही नहीं !आधार विहीन तीर तुक्कों को विज्ञान नहीं माना जा सकता है |  उपन्यासों की कहानियों से ज्यादा कल्पित होते हैं मौसमविज्ञान से संबंधित पूर्वानुमान ! 
         वस्तुतःमौसम आदि प्राकृतिक घटनाएँ एवं सभी प्रकार के शारीरिक या मानसिक रोग समय का ही विषय हैं और समय की गणना सूर्य और चंद्र की गति के आधार पर की जाती है सूर्य और चंद्र  की गति सिद्धांत गणित के सुदृढ़ सूत्रों से गुँथी हुई है जिनमें  गलती की कोई गुंजाइस ही नहीं होती है | जिस सिद्धांतपक्ष के द्वारा सूर्य और चंद्र ग्रहणों की गणित की जाती है और एक एक सेकेण्ड सही निकलती है उन्हीं से मौसम संबंधी गणित की जाए तो पूर्वानुमान बड़ी सीमा तक सटीक घटित हो सकते हैं ! उसी के आधार पर प्राचीन काल में चिकित्सा से लेकर प्राकृतिक आदि सभी परिस्थितियों का पूर्वानुमान लगाया जाता रहा है | 
   सूर्य चंद्र आदि ग्रहों के अनुसार समय चलता है वर्ष अयन ऋतुएँ महीना पक्ष तिथियाँ सर्दी गर्मी वर्षात आदि मौसम एवं मौसम संधियाँ सब सूर्य और चंद्र की गति के अनुशार ही बनती हैं इन्हीं दोनों के प्रभाव प्रदान से जल और वायु अर्थात जलवायु का निर्माण होता है ! वस्तुतः वायु वर्षा एवं भूकंप आदि के कारण तो सूर्य चंद्र ही हैं |प्रकृति में घटित होने वाली हर घटना की जड़ में सूर्य और चंद्र का प्रभाव ही होता है !समुद्र में उठने वाली लहरें ज्वार भाँटा एवं भूकंप आदि घटनाएँ सूर्य और चंद्र के प्रभाव से ही घटित हो रही हैं |
    इसलिए सूर्य और चंद्र का समय पर पड़ने वाला प्रभाव एवं समय का प्रकृति पर पड़ने वाला प्रभाव,प्रकृति का मौसम पर पड़ने वाला प्रभाव एवं मौसम का स्वास्थ्य पर पड़ने वाला प्रभाव तथा इन सभी के द्वारा मन पर पड़ने वाले संयुक्त प्रभाव को समझने के लिए  इनके पारस्परिक संबंधों एवं एक दूसरे पर पड़ने वाले असर को आधार बना कर वैदिक विद्या से शोध किया जा सकता है| सूर्य और चंद्र  की गति युति संस्कृति विकृति आदि के साथ समय एवं समय के साथ मौसम और मौसम के साथ सीधा संबंध होने के कारण सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं एवं  सभी प्रकार के रोगों के प्रमुख कारणों पर शोध होना चाहिए |सूर्य और चंद्र ही इसके प्रमुख कारण हैं | सूर्य और चंद्र के संचार का पूर्वानुमान यदि गणित के द्वारा लगाया जा सकता है तो इन्हीं के द्वारा निर्मित होने वाली प्राकृतिक घटनाओं आपदाओं और रोगों का पूर्वानुमान भी गणित के द्वारा ही लगा लिया जाए तो इसमें आश्चर्य  क्यों होना चाहिए !आकाशस्थ ग्रहणों का पूर्वानुमान भी तो सैकड़ों वर्ष पहले ही केवल गणित  के सिद्धांतों के द्वारा ही किया जाता रहा है |रोग मनोरोग सामूहिक रोग एवं मौसम और भूकंप संबंधी पूर्वानुमानों को गणित के द्वारा संबद्ध करके शोधपूर्वक समय विज्ञान के अनुशार गणित विधा से  इनका पूर्वानुमान लगाया जा सकता है इसके अलावा कोई और रास्ता नहीं है | यद्यपि बहुत आसान वो भी नहीं हैं किंतु श्रमसाध्य है और अर्थसाध्य तो है  और शोध पूर्वक वास्तविकता तक पहुँचा जा सकता है !
                              'समयविज्ञान' की विशेषता -
     'साधन' और 'समय' ये दो पहिए हैं जिन पर जीवन चलता है | जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता के दो प्रमुख माध्यम हैं एक साधन और दूसरा समय !जैसे साधन अनुकूल न हों तो काम नहीं किया जा सकता है वैसे ही समय अनुकूल न हो तो सफलता नहीं पायी जा सकती है | ऐसी परिस्थिति में साधनों की अपेक्षा समय को अधिक प्रभावी मानना चाहिए क्योंकि साधन  कुछ कम होने पर भी  यदि समय साथ  दे दे तो एक से एक गरीब लोग भी उद्योगपति बनते देखे जाते हैं और समय साथ न दे तो बड़े बड़े समझदारों को भी धूल में मिला देता है समय ! 
     कई बार ऐसा देखा जाता है कि योग्य और सभी प्रकार से सक्षम लोग भी जिस काम को करने के लिए या जो पद प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए महीनों वर्षों तक प्रयास करते रहे होते हैं और लगातार असफल होते रहते हैं फल स्वरूप वो निराश होकर चुप बैठ जाते हैं उसके कुछ समय बाद वही पद प्रतिष्ठा धन संपत्ति आदि उसे बड़ी आसानी से प्राप्त होते देखी जाती है| उस समय जिसके लिए उसने कोई विशेष प्रयास भी नहीं किया गया होता है !पहले साधन थे परिश्रम और प्रयास तो थे किंतु समय अनुकूल नहीं था इसलिए तब सफलता नहीं मिली किंतु जब समय अनुकूल आया तो कम साधनों या  कम प्रयासों से भी सफलता मिलते देखी जाती है !
       चिकित्सा के क्षेत्र में भी समय का बहुत महत्त्व होता है जिस रोगी का जितने वर्षों का अपना समय खराब होता है वो रोगी उतने महीनों वर्षों तक स्वदेश से लेकर विदेश तक एक से एक सुयोग्य चिकित्सकों के द्वारा चिकित्सा करवाकर भी आंशिक सुधार तो प्राप्त कर लेता है किन्तु स्वस्थ नहीं हो पाता है |कई बार देखा जाता है कि बहुत योग्य अनुभवी एवं समझदार चिकित्सकगण बहुत अच्छी औषधियाँ देकर भी जिस रोगी को स्वस्थ नहीं कर पाते हैं वही रोगी कुछ दिन महीने या वर्ष बीतने के बाद बिना कोई विशेष औषधि लिए हुए भी अचानक स्वस्थ होने लगता है और एक से एक असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती देखी जाती है !क्योंकि उस समय रोगी का अपना समय अनुकूल आने लगा होता है |
       चूँकि रोगी को समय वाली बात तो  पता नहीं होती है और अतीत के अनुभव के आधार पर वो ये तो सोच भी नहीं सकता है कि बिना किसी चिकित्सकीय प्रयास के वो स्वस्थ हो रहा होगा !ऐसी परिस्थिति में वो नजदीक समय में  किए गए अपने प्रयासों पर चिंतन करता है और खोजता है कि उसने कौन कौन से उपाय किए !ऐसे में उसने उस समय जो जो  प्रयास किए होते हैं उन्हें ही आपने स्वस्थ होने का श्रेय देने लगता है | ऐसे समय में उसने यदि कोई सामान्य जड़ी बूटी भी खाई होती है या किसी बाबा का आशीर्वाद लिया होता है या किसी तांत्रिक से झाड़ा लगवाया होता है या नग नगीना यंत्र तंत्र ताबीज आदि कुछ भी पहना होता है या कोई पट्टी तोड़कर चबाई होती है तो अपने स्वस्थ होने का श्रेय ऐसे ही सभी उपायों को देने लगता है और समय की महिमा को न जानने के कारण अपने द्वारा किए गए उन्हीं उपायों पर भरोसा करने लगता है | इस सच्चाई का वास्तविक ज्ञान तो तब होते देखा जाता है जब उसी रोग से पीड़ित किसी दूसरे रोगी को वो वैसे ही चिकित्सकों आदि के पास ले जाकर वैसी ही चिकित्सा आदि की पद्धति अपनाने लगता है फिर भी उसे कोई लाभ नहीं होता है समय के महत्त्व का वास्तविक ज्ञान तब होता है  | इस प्रकार से चिकित्सा के विषय में समय का बहुत बड़ा महत्त्व है हमारे कहने अभिप्राय है कि चिकित्सकों के द्वारा अपनाई जाने वाली चिकित्सा पद्धति भी पूर्णरूप से स्वतंत्र नहीं है अपितु समय के आधीन है ! 
   समयविज्ञान चिकित्सा के क्षेत्र  में तीन प्रकार से अपनी भूमिका का निर्वाह करता है पहली बात तो जब किसी का जन्म होता है दूसरा जब कोई बीमारी प्रारंभ होती है और तीसरा जब चिकित्सा प्रारम्भ की जाती है | जन्म के समय ही सारे जीवन के अच्छे और बुरे वर्षों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है दूसरा जब कोई चोट लगती या बीमारी प्रारंभ होती है| उस समय के आधार पर इस बात का पूर्वानुमान लगाया जाता है कि ये चलेगी कबतक और कितनी सतर्कता की आवश्यकता है तीसरी बात जब चिकित्सा प्रारंभ की जाती है तब इस बात का पूर्वानुमान लगाया जाता है कि इस चिकित्सा का असर कितना और कैसा होगा !इन तीनों प्रकार के पूर्वानुमानों के आधार पर  चिकित्साशास्त्र  को और अधिक सरल एवं विश्वसनीय बनाया जा सकता है ! 
    समय विज्ञान की महत्ता -
      समय साथ दे तो कम साधनों के द्वारा  की गई चिकित्सा या किए गए कार्यों के परिणाम अच्छे निकाले जा सकते हैं और समय साथ न दे तो चिकित्सा आदि के अच्छे से अच्छे साधन और बहुत सुंदर प्रयास भी  निष्फल होते देखे जाते हैं | 
      सुदूर गाँवों में या जंगलों में रहने वाले आदिवासियों के पास जहाँ आधुनिक चिकित्सा के साधन बिल्कुल नहीं होते हैं वहाँ भी जिस किसी का साथ उसका अपना समय दे देता है वो कमजोर चिकित्सा या बिना चिकित्सा के भी बड़ी से बड़ी बीमारियों पर विजय प्राप्त कर लेता है उनके बड़े बड़े घाव बिना दवा के भी भरते देखे जाते हैं और लोग स्वस्थ होते देखे जाते हैं दूसरी ओर समय जिनका साथ नहीं दे रहा होता है वे चिकित्सा संबंधी अत्याधुनिक सुविधा युक्त चिकित्सा व्यवस्था पाकर भी मरते देखे जाते हैं !इसलिए समय बहुत महत्वपूर्ण है !
  एक चिकित्सक एक समय एक जैसे 100 लोगों की चिकित्सा एक जैसी पद्धति और एक जैसी औषधियों से करना प्रारंभ करता है सबकुछ एक जैसा होने पर भी उस चिकित्सा का असर रोगियों पर अलग अलग होते देखा जाता है | इसका कारण रोगियों का अपना अपना समय होता है और परिणाम समय के ही अनुशार मिलता है जिनका समय साथ देता है वे स्वस्थ हो जाते हैं समय कम साथ देता है तो अस्वस्थ रहते हैं और समय जिनके बिल्कुल विपरीत हो जाता है वे अच्छी से अच्छी चिकित्सा पाकर भी मरते ही हैं इसलिए समय सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है !
    भूकंप ट्रेन या बस आदि की दुर्घटना में बहुत लोग एक जैसे हादसे के शिकार होते हैं किंतु परिणाम अलग अलग देखे जाते हैं उनमें से कुछ मृत कुछ घायल तो कुछ को खरोंच भी नहीं लगती है !इसी तरह कोई चिकित्सक कुछ एक जैसे रोगियों की एक जैसी चिकित्सा करता है किंतु परिणाम अलग अलग होते हैं !चिकित्सा के बाद भी कुछ अस्वस्थ तो कुछ पूरी तरह स्वस्थ हो जाते हैं और कुछ मृत हो जाते हैं!समय की प्रतिकूलता का सामना कर रहे रोगी के विषय में बड़े बड़े चिकित्सक कुछ समझ नहीं पाते हैं अच्छी से अच्छी औषधियाँ उनके लिए असरहीन हो जाती हैं कई बार तो अनुकूल चिकित्सा का प्रतिकूल असर होते देखा जाता है! ऐसी सभी परिस्थितियों का कारण सबका अपना अपना जन्मक्षण होता है !
कोई कार या बस खाई में गिर जाती है भूकंप आने पर बिल्डिंगों के मलबे में कुछ लोग दब जाते हैं बाढ़ में बह जाते हैं ट्रेनों में दुर्घटना ग्रस्त हो जाते हैं जहाँ और जिन परिस्थितियों में जीवित बचने की कोई संभावनाएँ ही नहीं बचती हैं किंतु जिनका समय अच्छा होता है वे वहाँ से भी जीवित बचते देखे जाते हैं!ये समय की महत्ता ही तो है | 
   मनोरोग और  समय -
      जिसका जब समय अच्छा होता है तो बहुत सारे लोग मित्र बन जाते हैं नए नए संबंध जुड़ने लग  जाते हैं बड़े बड़े पद प्रतिष्ठा आदि मिल जाते हैं ,विवाह हो जाता है तमाम संपत्तियाँ इकट्ठी हो जाती हैं उसी का जब समय विपरीत अर्थात खराब  होता है तो सब कुछ उल्टा होने लगता है तलाक हो जाता है और भी विपरीत दुर्घटनाएँ घटने लग जाती हैं अतएव समय सबसे अधिक बलवान होता है! 
      समय और स्वभाव -     
      समय जैसा जैसा बदलता है हमारा स्वभाव भी वैसा वैसा ही बनता जाता है !हमारे जीवन में जब समय अच्छा आता है तो हमारा स्वभाव हर जगह से अच्छाइयों का संग्रह करके प्रसन्न हो लिया करता है यहाँ तक कि किसी के बुरे वर्ताव से भी अच्छी बातें खोज कर हमें प्रसन्नता प्रदान करने लग जाता है अच्छा समय हमारा मनोबल इतना अधिक बढ़ा देता है कि हम असंभव काम को भी संभव बना लेने की ठान लेते हैं और जब हमारा बिपरीत अर्थात बुरा समय आता है तो हमारा स्वभाव हर जगह से बुरे बिचारों का संग्रह करने लगता है किसी अच्छे से अच्छे व्यक्ति की बहुत अच्छी बातों से भी हम अपनी तनाव सामग्री चुन  लिया करते हैं हमें जहाँ जहाँ जैसे जैसे जिस किसी के द्वारा दुखप्रद या मनोबल तोड़ने वाले विचार मिलते हैं हमें उस समय वही सबसे अच्छे लगने लगते हैं और हम अपने आप अपने में ही अकारण दुखी हो लिया करते हैं और वो बुरा समय हमारा मनोबल इतनी बुरी तरह से तोड़ देता है कि हमें लगने लगता है कि हम अब कुछ नहीं कर पाएँगे और हम छोटे छोटे कामों के लिए भी अपने को दूसरों के आधीन समझने लगते हैं | 
     बुरे समय का प्रवाह भीषण बाढ़ से भी अधिक भयंकर होता है !
      बुरा समय जिस किसी का भी एक बार आ जाता  है उस समय के बुरेपन का प्रवाह अर्थात बहाव इतना अधिक तीव्र होता है कि संयम के प्रायः सभी तट तोड़ता चला जाता है बुरे समय की सुनामी से ग्रसित लोग किसी भी तरफ से सहयोग और शांति नहीं पा पाते हैं !ऐसे लोगों को सभी के द्वारा मिलने वाली सभी प्रकार की मदद प्रायः ब्यर्थ होती चली जाती है |जीवन से संबंधित सभी प्रकार की सभी समस्याओं से बाहर निकालने वाले सभी प्रयास निरर्थक लगने लगते हैं !बुरे समय से ग्रस्त लोगों की पहली बात तो कोई मदद ही नहीं करता है तो उसका लाभ उस व्यक्ति तक नहीं पहुँच पाता है और यदि कोई मदद के लिए विशेष प्रयास करता भी है तो वो स्वयं उन्हीं समस्याओं में लिपटने लगता है जिनसे दूसरे को निकालने का प्रयास कर रहा था !श्री राम पर बुरा समय आया तो सीता जी उनकी मदद के लिए बन में उनके साथ सेवा सुश्रूषा के लिए गईं किंतु वहाँ से सीता हरण हो गया !श्री राम का सहयोग करने के लिए जब जटायु जी ने रावण को ललकारा और सीता जी को छुड़ाने के लिए प्रयास करने लगे तो जटायु मरण हो गया !कुल मिलाकर बुरे समय में शांत बैठना या समय के अनुशार अपनी जीवनचर्या ढाल लेना ही सर्वोत्तम उपाय होता है !
      बुरे समय से प्रभावित रोगियों के विषय में बड़े से बड़े चिकित्सकों के अच्छे से अच्छे प्रयासों के परिणाम असरहीन या फिर बिल्कुल विपरीत अर्थात उल्टे आते दिख रहे होते हैं | सभी प्रकार की चिकित्सा औषधियाँ आपरेशन आदि बुरे से बुरा परिणाम देने पर आमादा दिख रहे होते हैं | बड़े बड़े विद्वान चिकित्सक भीषण बाढ़ में बचाव कर्मियों की तरह परिणामों की परवाह किए बिना निरंतर प्रयासों में जी जान लगाए होते  हैं फिर भी जैसे भीषण बाढ़ में बचाव कर्मियों के सारे प्रयास निष्फल होते देखे जाते हैं उसी प्रकार से अत्यंत बुरे समय से संबंधित होने वाली बीमारियों में सभी प्रकार के चिकित्सकीय प्रयास असरहीन होते जाते हैं | जैसे बाढ़ सीमित हुई तो बचाव कर्मी बहुत कुछ बचा पाने में सफल भी हो जाते हैं उसी प्रकार से किसी रोगी का समय यदि अधिक बुरा  न हुआ तो कई गंभीर रोगियों के जीवन को भी चिकित्सक प्रयास पूर्वक बचा पाने में सफल हो जाया करते हैं किंतु समय की अनुकूलता तो चिकित्सकों को भी चाहिए क्योंकि अच्छे चिकित्सकों के अच्छे प्रयासों का परिणाम भी केवल उनके अपने प्रयास के आधार पर ही नहीं मिलता है अपितु रोगी का अपना अच्छा  बुरा  समय भी उन चिकित्सकीय प्रयासों को प्रभावित करता है |
    योग करने से भी वही रोगी स्वस्थ होते देखे जाते हैं जिनका समय अच्छा होता है अन्यथा रोग बढ़ता चला जाता है !अपने को योगी कहने वाले अधिकाँश लोग वस्तुतः योगी नहीं अपितु व्यायामी  होते हैं वो लोगों को योग का झाँसा देकर केवल कसरतें कराया करते हैं कसरतों से पेट तो साफ हो जाता है यदि कोई बीमारी न हो तो किंतु कोई बीमारी  कसरतों से कैसे ठीक हो सकती है जब योगी बाबा जी से किसी ने पूछा कि आपके कसरती योग से मुझे कोई लाभ नहीं हुआ है काफी दिन से कर रहा हूँ तो बाबा जी ने पूछा कि  हमारे यहाँ से दवाइयाँ लेते हो या नहीं उसने कहा नहीं तो कहने लगे दवाइयाँ भी लिया करो !उसने दवाइयाँ भी शुरू कर दीं कुछ महीने तक दवाएँ लेने के बाद भी जब कोई आराम नहीं हुआ तो वो फिर योगी बाबा के पास गया फिर वही शिकायत की तो बाबा जी ने पूछ राशन हमारे यहाँ से खरीदते हो या कहीं और से उसने कहा बाजार से तो कहने लगे तभी तुझे कोई लाभ नहीं हुआ हमारे यहाँ से ही खरीदने और खाने से लाभ होगा उसने ऐसा भी किया तब भी उसे कोई लाभ नहीं हुआ तब उसे समय की सच्चाई समझ में आई कि जब तक जिसका समय बुरा रहता है तब तक औषधियाँ स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने में सहायक तो होती हैं किंतु रोग को समाप्त नहीं कर पाती हैं !
     किसी व्यक्ति का सात वर्ष का बुरा समय आया कुछ दिन बाद वो बीमार रहने लगा पहले आसपास के अस्पपतालों में इलाज क्रय फिर दूर दूर के अस्पतालों में भी इलाज चलता रहा फिर विदेशों में चिकित्सा हुई जब कहीं से को लाभ नहीं हुआ तो वो थक हार करके वृन्दावनवास करते हुए मृत्यु की प्रतीक्षा करने लगा कुछ वर्षों बाद अचानक वो स्वस्थ होने लगा !क्योंकि तब तक उसका वो बुरा समय व्यतीत हो चुका था !ऐसे अचानक स्वस्थ होने वाले लोग यदि उस समय कोई उपाय कर रहे होते हैं तो अपने स्वस्थ होने का कारण उस उपाय को मान लिया करते हैं इसीलिए कसरती योगियों तांत्रिकों जादू टोना करने वालों की भी दुकानें चलने लगती हैं !वस्तुतः बुरा समय जीवन को बहुत प्रकार से नुक्सान पहुँचाता है !
    शराब आदि नशा लेने वालों को नशा लेने से पहले उनकी कैसी भी काउंसलिंग कर ली जाए तो हो सकता है कि उसका असर कुछ पड़ भी जाए किन्तु नशा ले लेने के बाद वो कुछ समझने की स्थिति में नहीं होता है उसी प्रकार से किसी का बुरा समय जब तक प्रारम्भ न हुआ हो तब तक उसे सब कुछ सिखाया समझाया जा सकता है उसमें से कुछ बातें वो मान भी सकता है बुरे समय में जो अच्छा परिणाम देने में सहायक भी होंगी किंतु एक बार बुरे समय से पूरी तरह प्रभावित हो चुकने के बाद रोगियों पर चिकित्सा का और मनोरोगियों पर काउंसलिंग आदि उपचारों का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है फिर भी भूकंप आने के बाद किए जाने वाले बचाव कार्यों की तरह जितना जो कुछ बचा पाने में सफल हो पाते हैं उतना ही बहुत होता है | 
  किसी के ऊपर बुरे समय का प्रभाव प्रारम्भ हो चुकने के बाद उसके मित्रों ,शुभ चिंतकों ,परिवार के सभी सगे संबंधियों , नाते रिस्तेदारों आदि के द्वारा पहुँचाई गई बड़ी से बड़ी मदद उसी प्रकार से बेकार जाती दिख रही होती है जैसे किसी नदी में भीषण बाढ़ आ जाने के बाद बनाए जाने वाले बड़े बड़े बाँध पुल आदि सब बहते चले जा  रहे होते हैं !
      बिपरीत समय से जूझ रहे लोगों के जीवन से जुड़े बड़े पुराने पुराने विश्वसनीय लोग भी उनके विषय में मदद संबंधी कोई प्रयास करते समय अपने अपने सिद्धांतों से ऐसे हिलने लग जाते हैं विश्वास टूटने लग जाता है जैसे भूकंप आने के समय बड़े बड़े पिलर्स विश्वसनीय नहीं रह जाते हैं !
     
    समय के अनुशार प्रकृति और प्रकृति  के अनुशार समाज शासन एवं सरकार -
      प्राकृतिक समय जब अच्छा होता है तो सभी ऋतुएँ उचित मात्रा में सर्दी गर्मी वर्षात के द्वारा चराचर जगत का पोषण करती हैं प्रकृति अच्छी मात्रा में पेड़ पौधे फल फूल फसलें शाक आदि उत्पन्न करने लगती  है आरोग्यता प्रदान करने वाली उत्तम वायु बहने लगती है सभी स्त्री पुरुष स्वाभाविक रूप से  प्रसन्न रहने लगते हैं सब कुछ अच्छा अच्छा होता चला जाता है! लोगों की सोच सात्विक अर्थात अच्छी बनने लगती है लोग पुराने मुद्दे निपटाने के प्रयास करने लगते हैं वर्षों की बुराइयाँ समाप्त होने लगती हैं टूटी हुए नाते रिस्तेदारियाँ समय के प्रभाव से जुड़ने लगती हैं विखरता समाज फिर से संगठित होने  लगता है परिवारों में समरसता बढ़ते देखी जाती है समाज से हिंसक प्रवृत्तियाँ समाप्त होने लगती हैं ! ऐसी सभी अच्छाइयाँ समाज में प्रत्येक 12 वर्षों में स्वाभाविक रूप से अपने शीर्ष स्तर पर होती हैं फिर 6 वर्षों तक ये सभी प्रकार की अच्छाइयाँ क्रमशः धीरे धीरे घटती चली जाती हैं उसके बाद यही अच्छाइयाँ एक एक कला बढ़ते बढ़ते क्रमशः 6 वर्षों में अपने शीर्ष स्थान अर्थात पूर्ण रूप से अच्छे प्रभाव में पहुँच जाते हैं ये क्रम अनवरत चला करता है !जैसे जैसे अच्छाइयाँ घटती जाती हैं वैसे वैसे क्रमशः बुराइयाँ बढ़ती चली जाती हैं !तब इसी समाज में उनके लक्षण अधिकता में दिखाई देने लगते हैं विपरीत होने पर आँधी तूफान सूखा बाढ़  और  भूकंप आदि प्राकृतिक उपद्रव अधिक होते देखे जाते हैं सामूहिक महामारी रोग आदि पैदा होने लगते हैं पेड़ पौधे फल फूल फसलें शाक आदि सब कुछ नष्ट होने लगते हैं !समाज में उन्माद फैलने लगता है अपराध की मात्रा बढ़ती चली जाती है फसलें धोखा देने लगती हैं सामाजिक संघर्ष कलह आदि बढ़ते  दिखाई पड़ने लगते हैं ! 
        इसी प्रकार  समय के प्रभाव से जैसे जैसे समयजन्य अच्छाइयाँ अर्थात सात्विकता धीरे धीरे घटते घटते  क्रमशः जब अपने सबसे निचले स्तर पर पहुँच जाती है वैसे वैसे बुराइयाँ बढ़ती चली जाती हैं और 6 वर्षों में वे क्रमशः अपने सबसे ऊपरी स्तर पर पहुँच चुकी होती हैं उसके बाद वे क्रमशः 6 वर्षों में घटती चली जाती हैं और अच्छाइयाँ  अपने सबसे ऊपरी स्तर पर पहुँच जाती हैं इस प्रकार से हर अच्छा और बुरा समय एक दूसरे का विरोधी होने के कारण एक दूसरे के विपरीत ही चलता जाता है !ये प्रत्येक 12 -14 वर्षों में दोनों प्रकार के समय अपना एक चक्र पूरा करके अपने पुराने स्थान पर पहुँच जाते हैं !
     समय की अच्छाई और बुराई जाँचने परखने के लिए इसके अलावा तीन प्रकार और होते हैं उसमें से एक प्रकार लगभग 30 वर्ष में अपना चक्र पूरा कर लेता है ,दूसरा प्रकार एक वर्ष में एवं तीसरा प्रकार 25 -30 दिनों में अपना चक्र पूरा कर लेता है!ऐसे सभी चक्रों में समय की दृष्टि से लगभग एक दूसरे से बिल्कुल विपरीत समय की अच्छाई और बुराई के दो ध्रुव होते हैं जो क्रमशः परस्पर विरोधी समयों में आते हैं और विरोधी प्रभाव छोड़ते चले जाते हैं !जैसे जैसे एक बढ़ता जाता है वैसे वैसे दूसरा घटता जाता है !इनका समय लगभग निश्चित होता है इसी प्रकार से कुछ अनिश्चित समय भी होते हैं किंतु पूर्वानुमान उनका भी लगाया जा सकता है !
       समय चक्र के अनुशार जब जैसे जैसे अच्छे समय का प्रभाव बढ़ता चला जाता है तो समाज में सभी प्रकार की अच्छाइयाँ विकास संतोष सात्विकता आदि बढ़ती चली जाती है बादल समय पर उचित मात्रा में जलवृष्टि करते हैं फल फूल फसलें अन्न शाक आदि भरपूर मात्रा में पैदा होने के कारण समाज में स्वाभाविक खुशहाली का वातावरण बन रहा होता है ऐसे समय में जिस दल की जो सरकारें सत्ता में होती हैं वो काम कम भी करें तो भी समाज उन पर दोषारोपण नहीं करता है अपितु अपनी व्यवस्थाओं से संतुष्ट होता है !समय अच्छा होने के कारण अधिकाँश लोग खुशहाल संतोषी एवं अच्छा अच्छा सोच जाने वाले होते हैं !उनकी खुशहाली का श्रेय सरकार ले जाती है यदि ऐसे समय कोई चुनाव हो जाए तो उसी दल की सरकार को दुबारा आने का अवसर मिल जाता है ! 
    इसी प्रकार से समय चक्र के अनुशार जब जैसे जैसे बुरे समय का प्रभाव बढ़ता चला जाता है तो समाज में सभी प्रकार की बुराइयाँ विकार असंतोष असात्विकता आदि बढ़ती चली जाती है बादल समय पर या तो बरसते नहीं हैं या फिर उचित मात्रा में जलवृष्टि नहीं करते हैं इस कारण फल फूल फसलें अन्न शाक आदि भरपूर मात्रा में नहीं पैदा हो पाते हैं इससे समाज में स्वाभाविक खुशहाली का वातावरण नहीं बन पाता है आराजकता असंतोष आपराधिक एवं उन्मादी वातावरण बनता चला जाता है !बुरे समयजन्य ऐसे सभी विकारों के लिए समाज वर्तमान सरकार को ही जिम्मेदार ठहरा लेती है ! ऐसे समय में जिस दल की जो सरकारें सत्ता में होती हैं जनता का आक्रोश उन्हीं पर निकलने लगता है उसकी अपनी व्यवस्थाएँ जो समय के कारण बिगड़ रही होती हैं उसके लिए भी वो जनता को जिम्मेदार ठहरा रहा होता है !ऐसी सरकारें काम कितना भी अच्छा और अधिक कर रही होती हैं तो भी अपनी व्यवस्थाएँ बिगड़ जाने के कारण उनके प्रति समाज के मन में आक्रोश अधिक बढ़ता चला जाता है ! समाज उन पर न केवल दोषारोपण किया करता है अपितु अपनी व्यवस्थाओं से असंतुष्ट होने के कारण सरकार को ही कटघरे में खड़ा किया करता है !
   प्राकृतिक आपदाओं का समय -
       सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ घटित होने के तीन से छै महीने पहले  बननी शुरू हो जाती हैं जिनके सूक्ष्म लक्षण प्राकृतिक परिवर्तनों में दिखने शुरू हो जाते हैं उनका निर्माण जब आधे से अधिक हो चुका होता है तब उन्हें घटित होने से रोक पाना  बहुत कठिन होता है इसलिए किसी भी रोग मनोरोग या प्राकृतिक आपदा के आने से पहले ही यदि उसके आने की आहट पता लगाई जा सके अर्थात पूर्वानुमान किया जा सके  और  उस प्राकृतिक आपदा ,रोगों या मनोरोगों के निवारण के लिए प्रिवेंटिव प्रयास किए जाएँ जो संभव है कि प्राकृतिक आपदाओं रोगों और मनोरोगों तनावों आदि के वेगों को बहुत हद तक कमजोर किया जा सकता है |
              साधन महत्त्वपूर्ण है या समय ?
    साधन और समय इन दोनों का जीवन में अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है !जीवन के किसी भी क्षेत्र में प्रयास करने के लिए हमें साधन चाहिए और उसका परिणाम समझने के लिए हमें भाग्य को समझना होगा क्योंकि जो चीज हमारे भाग्य में बदी होगी उसे ही हम प्रयास पूर्वक प्राप्त कर सकते हैं किंतु जो सुख सफलता आदि हमारे भाग्य में बदी ही नहीं होगी उसके लिए कितना भी परिश्रम पूर्वक प्रयास क्यों न किया जाए वो हमें नहीं ही मिलेगी !इस प्रकार से 'समयविज्ञान' के द्वारा पूर्वानुमान लगाकर यह जाना जा सकता है कि हमें जीवन के किस क्षेत्र में प्रयास पूर्वक कितनी सफलता मिल सकती है तथा इसका पूर्वानुमान केवल समय विज्ञान के द्वारा ही लगाया जा सकता है !
      आज विज्ञान के महान सहयोग एवं वैज्ञानिकों के अथक परिश्रम से बड़े बड़े रोगों की चिकित्सा करना तो संभव हो पाया है किंतु चिंता तब विशेष बढ़ जाती है जब सारे साधन उपलब्ध होने के बाद भी जरूरत पड़ने पर रोगियों को मिल नहीं पाते हैं| 
      कईबार अचानक भयंकर रूप ले लेने वाले प्राणांतक रोगों से पीड़ित रोगियों के लिए अस्पताल पहुँच पाना तक मुश्किल हो जाता है कई रोगी तो रास्ते में ही प्राण छोड़ देते हैं या कई बार प्रारंभ में सामान्य से दिखने वाले रोग वास्तव में बहुत भयंकर होते हैं जिनकी शुरुआत सामान्य जुकाम बुखार से होती है ऐसे रोगों को अनजान के कारण लोग सामान्य ही समझने की भूल लगातार करते रहते हैं उसी प्रकार की चिकित्सा पर भरोसा करते हैं और आगे बढ़ते जाते हैं धीरे धीरे वे रोग बहुत भयंकर रूप धारण कर लेते हैं तब तक उन्हें बचाना चिकित्सा व्यवस्था के बश की भी बात नहीं रह जाती है |ऐसे रोगों की गंभीरता के विषय में यदि पहले से ही पूर्वानुमान लगा लेना संभव हो पाता तो परिणाम कुछ और अच्छे हो सकते थे | रोगों को इतना बढ़ने से बचाने के प्रयास तो किए ही जा सकते थे परिणाम कुछ  भी होता !ऐसी परिस्थिति में चिकित्सा से संबंधित अत्यंत उत्तम अनुसंधान भी उनके काम नहीं आ पाते हैं | वैदिक  विज्ञान के आधार पर सारे जीवन से संबंधित ऐसे पूर्वानुमान जन्म के समय के आधार पर कभी भी लगाए जा सकते हैं जो साठ से सत्तर प्रतिशत तक सच भी हो सकते हैं | 
     इसी प्रकार से प्राकृतिक आपदाओं से बचाने के लिए ये सच है कि विज्ञान ने हमें अनेकों प्रकार के साधन उपलब्ध करवा दिए हैं जिससे कि बचाव कार्य बहुत आसान हो जाता है इसमें कोई संदेह नहीं है किंतु आँधी-तूफान ,वर्षा-बाढ़ और भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाओं के अचानक आक्रमण से बचाव कार्यों की व्यवस्था के लिए जो समय लग जाता है उससे जन धन की हानि को तुरंत कम कर पाना बहुत कठिन हो जाता है |ऐसी अचानक प्राप्त परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयारी करते करते  बहुत कुछ बिगड़ चुका होता है| जिससे वैज्ञानिकों के वे प्रभावी अनुसंधान उस समय समाज के उतने काम नहीं आ पाते हैं जितनी मदद उनसे ली जा सकती थी | ऐसी परिस्थिति में  रोग ,मनोरोग ,सामूहिक महामारियाँ आदि या आँधी-तूफान ,वर्षा-बाढ़ और भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाओं को रोक पाना संभव भले न हो पावे किंतु इनके विषय में पूर्वानुमान करने की क्षमता का विस्तार करना आवश्यक ही नहीं अपितु अपरिहार्य हो गया है !  विज्ञान पर भरोसा करके केवल आशा के आधार पर अब बहुत अधिक समय बिताना ठीक नहीं होगा | इसके पूर्वानुमानों के लिए केवल आधुनिक विज्ञान के आश्वासनों पर समय और  अधिक निरर्थक बिताना ठीक नहीं होगा |अचानक प्रकट होने वाले रोगों पर और प्राकृतिक आपदाओं के अचानक आक्रमण करने पर सारे संसाधन लाचार से दिख रहे होते हैं उनका लाभ जितना लिया जाना चाहिए उतना मिल ही नहीं पाता है | 
    चिकित्सा और प्राकृतिक आपदाओं के विषय में वैज्ञानिक अनुसंधानों का पूर्णतः लाभ लेने एवं पथ्य परहेज सतर्कता आदि प्रिवेंटिव प्रयोगों के द्वारा जन धन की हानि को कम करने के लिए पूर्वानुमानों की खोज किए जाने की बहुत बड़ी आवश्यकता है|जिससे रोगों और प्राकृतिक आपदाओं के प्रकट होने से पूर्व ही पथ्य परहेज सतर्कता आदि के द्वारा अधिक न बढ़ने देने के लिए प्रभावी प्रयास किए जा सकें एवं प्राकृतिक आपदाओं के विषय में समय रहते बचाव कार्यों के इंतजाम किए जा सकें |                                                                              स्वास्थ्य और समय -            प्रकृति से लेकर शरीर तक की सभी घटनाएँ समय के अनुशार घटित होती हैं इसलिए पूर्वानुमानों के विज्ञान को विकसित करने के लिए समय और परिस्थिति दोनों पर शोध होना चाहिए केवल परिस्थितियों पर नहीं | दोनों का अनुपात भी आधा आधा है इसलिए समय के प्रभाव को समझे बिना केवल  चिकित्सकीय आधार पर पूर्वानुमान लगा पाना संभव ही नहीं है सभी प्रकार की अच्छी बुरी घटनाएँ समय के गर्भ में घटित होती हैं और समय को ही भुला दिया जाए तो  घटनाओं के अनुभवों के आधार पर भावी घटनाओं का पूर्वानुमान करना सही नहीं होगा क्योंकि हो सकता है वो पहले वाली घटनाओं से अलग हों !इसलिए पूर्वानुमानों का आधार समय और परिस्थिति दोनों को बनाया जाना चाहिए | 
     पूर्वानुमानों के लिए समय का महत्त्व - 
   1. रोग -कोई कुशल चिकित्सक  कुछ रोगियों की चिकित्सा एक जैसी पद्धति से एक जैसी औषधियों से एक समय में करे तो कुछ रोगी स्वस्थ हो जाते हैं कुछ अस्वस्थ बने रहते हैं और कुछ मर जाते हैं क्यों ?तीन प्रकार के फलों का कारण यदि तीनों के समय और भाग्य को न माना जाए तो और कारण क्या हो सकता है ?चिकित्सा के बाद प्राप्त इन तीनों प्रकार के परिणामों में चिकित्सा का परिणाम किसे माना जाए !मरने वालों के लिए यदि कुदरत को जिम्मेदार मान भी लिया जाए तो जो स्वस्थ हो गए उनका श्रेय भी कुदरत को ही क्यों न दिया जाए !ऐसा कर देने पर चिकित्सा की अपनी भूमिका क्या मानी जाएगी ?
          स्वास्थ्य की दृष्टि से साधन महत्त्वपूर्ण है या समय ?
  ऋतु परिवर्तन संबंधी असर कुछ लोगों पर होता है और कुछ लोगों पर नहीं इसका कारण क्या हो सकता है ?आकस्मिक मौसम परिवर्तन सामूहिक रूप से सबके लिए हुआ होता है इसलिए ऋतुपरिवर्तनजन्य बीमारियाँ सबको समान रूप से होनी चाहिए क्योंकि ऋतु का प्रभाव तो सबपर एक जैसा ही पड़ता है,कुछ कम ज्यादा हो जाएँ तब भी बात समझ में आती है किंतु मौसम बदलने के कारण होने वाली बीमारियों में ऐसा तो नहीं ही होना चाहिए कि कुछ व्यक्ति तो खूब बीमार हो जाएँ और कुछ को जुकाम तक न हो आखिर उन पर मौसम का असर क्यों नहीं पड़ता है और वो बीमार क्यों नहीं होते हैं जबकि उनका रहन सहन भी उसी तरह का एक जैसा होता है?इसका भी कारण सबका  अपना अपना समय होता है ! 
    इसी प्रकार से कई बार अनेक लोग एक साथ किसी एक्सीडेंट या बाढ़ भूकंप आदि प्राकृतिक आपदा का शिकार होते हैं यात्रियों से लदी बस खाई में गिर जाती है किंतु ऐसे सभी प्रकरणों में हादसे का शिकार सब एक जैसे होते हैं उसमें कुछ लोग मर जाते हैं कुछ घायल हो जाते हैं और कुछ को खरोंच तक नहीं लगती है क्यों ? ये उन सबके अपने अपने समय का प्रभाव होता है ! 
  एक जैसी बीमारी से पीड़ित कुछ रोगी एक कक्ष में रखे जाते हैं एक चिकित्सक एक जैसी पद्धति से एक जैसी औषधियों से चिकित्सा करता है सबका समान रूप से ध्यान रखता है किंतु परिणाम स्वरूप कुछ स्वस्थ हो जाते हैं कुछ बीमार बने रहते हैं और कुछ मर जाते हैं क्यों ?
    सीमापर सैनिकों के समूह एक साथ लड़ने जाते हैं सब स्वस्थ और सब बहादुर होते हैं लड़ने के साधन सबके पास एक समान होते हैं सब बहादुरी से लड़ते हैं किंतु परिणाम स्वरूप कुछ लोग स्वस्थ रहते हैं कुछ घायल होते हैं और कुछ शहीद हो जाते हैं !प्रयास सारे एक जैसे तो परिणाम अलग अलग क्यों ? 
    जंगलों में रहने वाले लोगों को भी डेंगू मच्छर काटते हैं सर्पों बिच्छुओं आदि विषैले जीव जंतुओं एवं हिंसक जानवरों आदि के बीच उन्हें रहना होता है अच्छा खाने और अच्छा पहनने की व्यवस्था नहीं होती है रहने के लिए छत नहीं होती है अत्याधुनिक चिकित्सा व्यवस्था तो होती ही नहीं है बीमारियाँ उन्हें भी होती हैं घायल वो लोग भी होते हैं जंग लगा लोहा आदि उन्हें भी लगता है विषैले जीवजंतुओं एवं हिंसक जीवजंतुओं के हमले भी वो लोग झेलते हैं इतनी सारी विपरीत परिस्थितियों में रहकर भी वे लोग जिन्दा रह लेते हैं साधनों के बलपर या समय के बलपर ?साधन तो उनके पास होते नहीं हैं समय ही होता है | 
   एक कक्षा में एक शिक्षक सभी विद्यार्थियों को एक जैसी भावना से एक जैसा परिश्रम करके पढ़ाता है परिणाम में कुछ छात्र बहुत अच्छे नंबरों से पास होते हैं कुछ कम नंबरों से पास होते हैं और कुछ फेल हो जाते हैं जैसा जिसका समय वैसा उसे परिणाम मिलता है !          सामूहिक महामारी - किसी जिले जनपद या क्षेत्र में अचानक फैलने वाली  एक जैसी सामूहिक बीमारियों के होने का कारण भी समय होता है एक तो समय वो होता है जो ऋतुओं की संधि के समय जब दो प्रकार के मौसम अर्थात समय मिलने लगते हैं तब बीमारियाँ पैदा होती हैं इसमें सबसे अधिक चिंता जनक समय होता है 22 जून से 23 सितंबर तक इस समय को वैदिक विज्ञान 'यमराजकादाँत' अर्थात मृत्यु का मुख मानता है इस समय जल एवं वायु दोनों दूषित हो जाते हैं इसलिए नए नए रोग जन्म लेते हैं इससे बचने के लिए कुछ पथ्य परहेज हैं जिनकापालन करने से बीमारियों से बचाव होता है ! इन सबका समय तो निश्चित होता है ! किंतु कई बार यही ऋतु संधि वाला समय सामान्य ऋतुओं में भी कुछ दिनों के लिए आ जाता है उस  समय तरह तरह की अनेकों बीमारियाँ पनपने लग जाती हैं जो कई बार सम्पूर्ण क्षेत्र जनपद आदि में बड़े पैमाने पर फैलती  जाती हैं और महामारी जैसा बड़ा भयानक रूप ले लेती हैं !
     ऐसे समयों का पूर्वानुमान लगाने के लिए एकमात्र रास्ता होता है समय जनित संयोगों का अध्ययन एवं उन्हीं के अनुशार भावी समय का सटीक पूर्वानुमान लगाना जिनके द्वारा काफी पहले  ही ऐसे समय परिवर्तनों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि अमुक समय में ऐसी ग्रह स्थिति आएगी तब इस प्रकार का रोगोत्पादक मौसम आएगा !
           डेंगू जैसी बीमारियाँ मच्छरों के कारण होती हैं या समय के कारण ?
   डेंगू एक उष्णकटिबंधीय संक्रामक रोग बताया गया है वैसे तो डेंगू बुख़ार विषाणु जनित रोग है इस विषाणु को ही वैज्ञानिक भाषा में वॉयरस कहते हैं यह डेंगू वायरस से ग्रस्त व्यक्ति को काटते समय ही मच्छर डेंगू वायरस से संक्रमित हो जाता है फिर वो मच्छर जिसे काट लेता है उसे डेंगू हो जाता है किंतु उस मच्छर  को यदि किसी मनुष्य आदि से डेंगू वायरस न मिले तो उसके अपने पास डेंगू वायरस नहीं होता है और होगा ही नहीं तो प्रसारित कहाँ से करेगा |संक्रमित एडीस एजिप्टी मच्छर ज़ीका , डेंगू , चिकनगुनिया आदि वायरस फैलाने के लिए जिम्मेदार हैं पैदा करने के लिए नहीं !डेंगू वायरस अर्थात यह विषाणु पैदा कैसे होता है किसके द्वारा होता है ये पता नहीं है |
    आधुनिक वैज्ञानिकों को इसका पहला वर्णन 1779 में मिला बताया जाता है । डेंगू एक 'वायरस' होता है 20वीं शताब्दी के आरंभ में डेंगू को वैज्ञानिकों ने डेंगू वायरस के कारण होने वाली बीमारी माना गया था !डेंगू  का निदान और चिकित्सा निश्चित नहीं है लक्षणों के अनुशार ही चिकित्सा प्रक्रिया अपनायी जाती है |
भारत का वैदिकविज्ञान इसे अत्यंत 'प्राचीनकाल' से ही समय जनित बीमारी मानता रहा है 'समयविज्ञान' विज्ञान के द्वारा ऐसी बीमारियों का न केवल पूर्वानुमान लगाया जा सकता है अपितु प्रिवेंटिव चिकित्सा के रूप में कुछ सावधानियाँ वरत कर डेंगू जैसे रोगों के होने से अपने को बचाया जा सकता है! वैदिकविज्ञान की दृष्टि से डेंगू जैसी बीमारियों या महामारियों का मुख्यकारण समय ही होता है! 
    संभवतः इसीलिए तो अक्सर कुछ ऐसे लोगों को डेंगू होते सुना जाता है जिन्हें मच्छरों का काटना तो दूर मच्छर तो उन्हें देख भी नहीं सकते !वहीँ दूसरी ओर ग्रामीण बस्तियों में खेतों खलिहानों जंगलों में दिन रात केवल एक अँगौछा या नेकर पहन कर दिन रात काम करते हैं ऐसी परिस्थिति देश के लगभग 80 प्रतिशत लोगों के साथ है आस पास विद्यमान है और उन्हें उसी में न केवल रहना होता है अपितु काम भी करना होता है !कपड़े उतार कर उघारे शरीर रहकर करना होता है!मच्छरदानी  बिजली पंखे कूलर आदि के बिना गर्मी के कारण उघारे शरीर ही सोना पड़ता है सोते जगते मच्छरों से ही करना पड़ता है दिन रात काटते हैं फिर भी डेंगू जैसा असर उस अनुपात में वहाँ तो नहीं दिखता है वहीँ दूसरी ओर नेता अभिनेता आदि कई साधन सम्पन्न लोगों को भी डेंगू होते देखा जाता है जबकि उनका सामना मच्छरों से बहुत कम हो पाता है!  
      प्रयास और परिणामों में अंतर का कारण क्या है ?

   प्रयास और परिणाम इन दोनों में प्रयास तो किसी व्यक्ति के अपने आधीन है और परिणाम व्यक्ति के अपने समय अर्थात भाग्य के आधीन होता है इसीलिए तो  समय सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण होता है | प्रयास कोई कैसे भी कितने भी क्यों न कर ले किंतु परिणाम तो उसके समय के अनुशार ही मिलता है |जैसा जिसका समय वैसी ही उसे सफलता मिलती है या उसे वैसे ही संकट का सामना करना पड़ता है !

  विवाह योग्य समय आने पर शरीर में मन वैवाहिक सुखोंके लिए छटपटाने लगता है वैवाहिक अभिलाषाएँ आवश्यकताएँ बढ़ने लगती हैं जिनकी अधिक दिनों तक अनदेखी करने से शरीर और मन दोनों रोगी होने लगते हैं घबड़ाहट बेचैनी बढ़ने लगती है ऐसे समय होना तो विवाह चाहिए किन्तु धन के लोभ से या कैरियर बनाने की इच्छा से घर वालों के द्वारा या स्वयं ही लोग अपना विवाह न करने की हठ कर लेते हैं और अपनी वैवाहिक पीड़ाओं को या तो सहते रहतेहैं या फिर प्रेम प्यार नाम के समय पास खिलवाड़ करने लगते हैं ऐसे संबंधों का उद्देश्य विवाह तक का समय पास करना मात्र होता है किंतु ऐसे संबंध तो बीच में धोखा दे जाते हैं जैसे ही विवाह योग्य समय बीतता है वैसे ही वे एक दूसरे को धोखा देकर अलग हो जाते हैं किंतु उसी विवाहयोग्य समय में यदि उन दोनों का विवाह हो जाता तो संभव है कि निर्वाह होता रहता | इसीलिए ऐसे संबंधों के झाँसे फँस कर अपनी जिंदगी बिगाड़ चुके लोग इस धोखे को सह नहीं पाते हैं और उन्हें तनाव होना स्वाभाविक होता है ! 
  समाज में अक्सर देखा जाता है कि लोग सफलता का श्रेय खुद ले लेते हैं और असफलता कुदरत समय या भाग्य पर मढ़ देते हैं किंतु सच्चाई ये है कि किसी भी प्रयास की सफलता और असफलता दोनों का ही मुख्यकारण समय ही होता है| इसलिए किसी के अपने समय के आधार पर उसके सफल या असफल होने का पूर्वानुमान सफलता या असफलता की घटनाएँ घटित होने से पहले भी लगाया जा सकता है! 
   ऐसे पूर्वानुमान के द्वारा बुरे समय से जूझ रहे लोगों को तनाव या अवसाद के संकट में फँसने से बचाया जा सकता है |ऐसे समय में सैनिकों को संदिग्ध जगहों पर तैनात करने से बचा जा सकता है और बचाया जा सकता है उनका बहुमूल्य जीवन और देश का मनोबल !इसीप्रकार से जिनका समय बुरा हो उन्हें प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से संदिग्ध जगहों पर जाने से रोका जा सकता है ! बुरे समय से प्रभावित रोगियों की चिकित्सा करते समय विशेष सतर्कता बरती जा सकती है! सामान्य जीवन में भी बुरे समय से प्रभावित लोगों को कोई रिस्क लेने से रोका जा सकता है इसलिए समय संबंधी जानकारी रहना बहुत आवश्यक है |प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में बहुत बड़ी मदद कर सकता है समयविज्ञान !
                     अवसाद (तनाव) खंड- 
 मनोरोग- मस्तिष्क का हार्डवेयर तो आधुनिक चिकित्सा के हाथ में किंतु सॉफ्टवेयर अर्थात मन उनके हाथ में नहीं है वहाँ तो अलग से मन की मान्यता ही नहीं है फिर मन की जाँच कैसे की जाएगी, मन के रोगों का निर्धारण कैसे होगा और मनोरोग की औषधि क्या होगी? मनोरोग में मनोचिकित्सा और मनोचिकित्सकों की भूमिका क्या है ?इस बात को विस्तार पूर्वक स्पष्ट किया जाना चाहिए | 
काउंसलिंग- तनाव व्यक्तियों से नहीं होता परिस्थितियों से नहीं होता ! हर किसी के तनाव का मुख्य कारण समय होता है| किसी के तनाव का कारण यदि कोई स्त्री पुरुष होते तो उनसे पहले भी संबंध अच्छे थे और बाद में भी अच्छे रह सकते हैं किन्तु कुछ दिनों महीनों वर्षों में तनाव होने का कारण क्या है !इसी प्रकार से तनाव यदि परिस्थितियों से होता तो परिस्थितियाँ तो जीवन में कई बार बनती बिगड़ती रहती हैं किंतु भयंकर तनाव की परिस्थिति हर बार तो नहीं पैदा होती है|इसलिए तनाव का प्रमुख कारण होता है हर किसी का अपना बुरा समय !
  किसी का बुरा समय जब आता है तब अपने चारों तरफ की सभी अच्छी चीजें सुखद बातें स्नेही लोग एवं सुख सुविधा के साधन आदि सब बुरे लगने लगते हैं| उन चीजों में या लोगों में छोटी छोटी कमियाँ खोजकर सबको अपने से दूर कर देने का मन होने लगता है और वही जब समय अच्छा आता है तब वही बुरे लोग बुरी वस्तुएँ बुरे साधन आदि सब अच्छे लगने लगते हैं यहाँ तक कि उनके द्वारा की गई बड़ी बड़ी गलतियों को भुलाकर भी लोग उन सबको अपना और अच्छा मानने लगते हैं |  
    कुल मिलाकर तनाव का कारण हर किसी का  अपना अपना  समय होता है समय जिसका जैसा बदलता जाता है परिस्थितियाँ भी वैसे वैसे बदलती रहती हैं | जिससे पहले प्रेम था फिर विवाह हुआ फिर तलाक हो कई बार तो फिर उसी से न केवल प्रेम होने लगता है अपितु विवाह भी हो जाता है !ऐसी सभी परिस्थितियों में लोग तो बदले नहीं वही पुराने वाले ही रहे उन्हीं में प्रेम ,विवाह,तलाक आदि सब कुछ हुआ फिर उन्हीं से प्रेम और फिर विवाह हुआ | ऐसी सभी परिस्थितियोंका मुख्य कारण तो समय ही रहा समय के अलावा और क्या हो सकता है?केवल समय ही तो बदलता रहा और तो कुछ नहीं बदला |
   इसी प्रकार जो व्यक्ति जिस काम में पहले बहुत तरक्की करता रहा फिर उसी काम में उसे बड़ा नुकसान होने लगे फिर बहुत बड़ा लाभ हो जाए इसका कारण समय नहीं तो क्या हो सकता है ?ऐसे ही जो व्यक्ति जिस विषय को पढ़ने में होशिआर था फिर जीरो हो जाए और फिर बहुत अच्छा चलने लगे इसका कारण समय नहीं तो और दूसरा क्या हो सकता है ?इसके अतिरिक्त बाक़ी सब तो बहाने बनते चले जाते हैं !
  अच्छे बुरे समय की परिभाषा और पहचान आदि का आधुनिक चिकित्सा पद्धति से भले ही कोई विशेष सम्बन्ध न हो किंतु समय की पहचान कैसे की जाए एवं समय आधारित तनाव पर केवल समझा बुझा कर नियंत्रण कैसे किया जा सकता है आदि बातों का तनाव तो तब भी होता ही रहता है| 
 तनाव या अवसाद - 
    समय विज्ञान की दृष्टि से तनाव को समझना हो तो जिसका साथ जब उसका अपना समय नहीं देता है तो उसे सारा संसार सूना सूना सा लगने लगता है अपने सगे सहयोगी मित्र  संबंधी आदि सभी लोग पराए लगने लगते हैं उनका वर्ताव अप्रिय लगने लगता है उसके साथ सब कुछ उस तरह का होने लगता है जो उसे पसंद नहीं है या फिर  जिससे उसे तनाव हो ! ऐसे समय में तनाव देने वाले ही मित्र मिलेंगे ऐसे ही नाते रिश्तेदारों से नजदीकी बढ़ेगी जिनसे तनाव बढ़े !परिवार तक के सदस्यों का वर्ताव भी कुछ वैसा ही हो जाता है और कुछ वैसा लगने भी लगता है| जो अपने लोग अच्छा वर्ताव करते भी हैं उनकी भी बातें उस समय समझ में नहीं आती हैं केवल तनाव बढ़ने लायक बातें ही उस समय के प्रभाव से वो व्यक्ति ग्रहण कर पाता हैउन्हीं परिस्थितियों में समय जब उसका साथ देने लगता है तब वही लोग और उन्हीं का वर्ताव उस मनोरोगी को अच्छा लगने लगता है और वो ऐसे तनावों से मुक्त हो जाता है |समुद्र की लहरों की तरह ही समय की तरंगें  मन में ऐसी ही उथल पुथल करती रहती हैं समय की ऐसी करवटों से ही घबड़ाकर कुछ लोग तलाक हत्या आत्महत्या तक कर बैठते हैं समय की लहर निकलते ही तलाक वाले फिर एक साथ हो जाते हैं हत्या आत्महत्या करने वाले हमेंशा हमेंशा के लिए विदा हो जाते हैं !ऐसे प्रकरणों में समय विज्ञान का सबसे बड़ा लाभ ये होता है कि ऐसी तनावी तरंगों को पहचाना जा सकता है और उतने समय तक कोई निर्णय लेने से बचा जा सकता है | तो तलाक जैसी घटनाएँ रोकी जा सकती हैं और बहुतों के साथ बिगड़ने वाले संबंध बचाए जा सकते हैं | 
 वस्तुतःमानसिक तनाव तो विषय ही समय विज्ञान का है समय की सतह को समझे बिना किसी की काउंसलिंग कैसे की जा सकती है और कोई तनाव ग्रस्त व्यक्ति उनकी बातों पर भरोसा ही क्यों कर लेगा !उसे विश्वास में लिए बिना कैसे घटाया जा सकता है उसका तनाव ! तनाव ग्रस्त व्यक्ति के स्वभाव को समझे बिना वो अपनी बातें उसके दिमाग में फेंकने की निरर्थक कोशिश किया करते हैं !क्योंकि किसी का स्वभाव कब कैसा है और उसे कब कैसी बातें पसंद होंगी इसे समझने के लिए सबसे बड़ा विज्ञान है समय विज्ञान !  
   तनाव देने वाले शब्द -प्रत्येक व्यक्ति को कुछ अक्षर बहुत प्रिय होते हैं कुछ कम प्रिय होते हैं कुछ सामान्य होते हैं कुछ को सुन कर उसे गुस्सा आता है और कुछ को सुनते ही तनाव बहुत बढ़ जाता है| ये 'वर्णविज्ञान' संबंधी पूर्वानुमान का विषय है !ऐसे अक्षरों से जिनका नाम प्रारम्भ होता है उन लोगों के साथ भी वैसा ही वर्ताव स्वाभाविक रूप से करने लगते हैं लोग !घर में परिवार में समाज में संगठन में राजनैतिक दलों में व्यापारिक संस्थानों में अपनी पत्नी बच्चों के साथ भी वर्ण समस्या के कारण कई बार निरंतर तनाव रहने लगता है लोग एक दूसरे से घृणा और घोर घृणा तक करने लगते हैं !ऐसे लोगों के अच्छे अच्छे गुण कार्यशैली योग्यता आचरणों आदि में भी केवल कमियाँ खोजने लगते हैं उसकी बुराई करने लगते हैं|ऐसे लोगों की अच्छाइयों के कारण उन्हें सम्मान मिलता देख खुद तनाव में डूब जाते हैं जिसमें अपना कुछ लाभ हानि होता ही नहीं है फिर भी ऐसा स्वभाव बन जाता है| ऐसे लोगों का जब तक अपना समय  शुभ होता है तब तक तो वो फिर भी सह जाते हैं किंतु अपना समय जैसे जैसे तनाव कारक होने लगता है तब ऐसे शब्द वाले लोगों से तनाव और अधिक बढ़ता चला जाता है!ऐसे लोगों के तनाव अक्षरों का पूर्वानुमान जन्म के कुछ समय बाद ही लगा लिया जा सकता है और ऐसे लोगों को सारे जीवन के ऐसे तनाव की संभावनाओं से निकाला जा सकता है ! 
  तनाव देने वाला समय- हर स्त्री पुरुष को प्रत्येक वर्ष एक निश्चित समय में 30दिन के लिए तनाव होता ही है महीने में 5 दिन के लिए हर किसी को तनाव होता ही है प्रत्येक दिन में 4 घंटे और प्रत्येक रात्रि में 4 घंटे हर किसी को तनाव होता ही है!ऐसे समय तनाव होता है घबड़ाहट होती है स्वास्थ्य बिगड़ता है अकारण अचानक बेचैनी बढ़ने लगती है| तनाव कारक ऐसे सभी समयों का असर होता तो सब पर है किंतु जिनका अपना समय भी ख़राब होता है उन्हें ऐसे तनाव कारक समयों का अनुभव बहुत अधिक होता है और जिनका अपना समय ठीक होता है वो ऐसे समय में सामान्य बेचैनी का एहसास होते ही कहीं चले जाते हैं किसी के पास उठ बैठ जाते हैं कुछ पढ़ने लिखने लगते हैं या अपने रुचिकर कामों में अपने को व्यस्त कर लेते हैं और बीत  जाता है उनका वो तनाव कारक समय !समय विज्ञान के द्वारा ऐसे समयों का पूर्वानुमान लगाकर सावधानी बरती जा सकती है |
तनाव देने वाला स्थान- कुछ लोगों को कुछ स्थानों में विशेष तनाव होता है ये कुछ देश हो सकते हैं कुछ शहर हो सकते हैं कुछ गाँव हो सकते हैं यहाँ तक कि घरों के अंदर कोई ऐसा स्थान हो सकता है जहाँ पहुँच कर तनाव होने की विशेष संभावना रहती है!ऐसी ही परिस्थिति के शिकार लोग अकारण देश देश या शहर शहर भटकते रहते हैं| इसका प्रभाव तब और अधिक स्पष्ट रूप से दिखता है जब   दिल्ली के एक व्यक्ति की कलकत्ते में जूस की दूकान है और कलकत्ते के एक व्यक्ति की दिल्ली में जूस की दूकान है और दोनों ही दोनों जगहों पर अच्छी कमाई कर लेते हैं किंतु दोनों अपने अपने शहर में काम नहीं कर पाए क्योंकि उनका वहाँ मन नहीं लगता है !ऐसे स्थान संबंधी तनावों का भी पूर्वानुमान समयविज्ञान के द्वारा लगाया जा सकता है | 
तनाव देने वाली शिक्षा - किसी बच्चे को पढ़ने का नाम सुनते ही तनाव होने लगता है उनमें से कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जिनका कोर्स के कुछ विषयों का नाम सुनते ही तनाव होने लगता है ऐसा स्वभाव कुछ बच्चों का आजीवन रहता है और कुछ बच्चों का कुछ महीनों वर्षों आदि के लिए होता है ऐसा समय !उसके बीतने के बाद वे सामान्य हो जाते हैं जिन्हें लंबे समय तक वैसा ही रहना होता है उनके विषय में भी जाना जा सकता है |कुलमिलाकर ऐसी सभी बातों का पूर्वानुमान 'समयविज्ञान' से लगाया जा सकता है!
  तनाव देने वाले शिक्षक और चिकित्सक -किसी से शिक्षा लेते समय या किसी से चिकित्सा करवाते समय ये बात बहुत महत्त्व रखती है कि शिक्षक और विद्यार्थी का समय एवं चिकित्सक और रोगी का समय एक दूसरे के लिए अच्छा चल रहा हो तभी उन दोनों के संयोग से उन दोनों को लाभ हो पाता है अर्थात तभी ऐसे चिकित्सक की चिकित्सा से रोगी का रोग मुक्त हो जाता है और चिकित्सक की प्रतिष्ठा बढ़ती है इसी प्रकार से शिक्षक और विद्यार्थी प्रकरण में होता है शिक्षक को प्रतिष्ठा का लाभ होता है और विद्यार्थी को उसकी दी हुई विद्या से सफलता मिल जाती है | इस प्रकार से कौन चिकित्सक रोग मुक्ति दिला सकता है और कौन शिक्षक शिक्षा में सफलता दिला सकता है ऐसी बातों का पूर्वानुमान पहले से लगाकर शिक्षा और चिकित्सा संबंधी तनाव दूर किया जा सकता है | 
संतान न होने का तनाव -
   कई बार चिकित्सकीय रिपोर्ट सारी सामान्य होने के बाद भी संतान नहीं होती है ऐसे लोग सारा जीवन ही तनाव में बिता देते हैं ! 'समयविज्ञान' का मानना है कि संतान होना या न होना ये केवल दो शरीरों का ही विषय नहीं है अपितु इसमें समय की बहुत बड़ी भूमिका है !जैसे सभी वृक्षों में फल तब होते हैं जब उनका समय उस लायक अर्थात ऋतु फल देने लायक होती है बिना ऋतु के कितनी भी व्यवस्था करके किसी पेड़ से फल नहीं दिलाए जा सकते हैं उसी प्रकार से समय आने से पूर्व किसी स्त्री या पुरुष को संतान नहीं हो सकती है इसलिए समय के महत्त्व को भी समझना होता है| 
  विवाह के बाद कई बार कुछ लोग कुछ वर्षों तक संतान नहीं चाहते हैं तो गर्भ न होने के लिए औषधियाँ आदि लिया करते हैं बाद में जब संतान योग्य समय निकल जाता है तब संतान के लिए इलाज करते घूमते  हैं तब तक बुरा समय निकल कर दोबारा अच्छा समय आ जाता है और उन्हें संतान हो जाती है ऐसे में वो समझते हैं कि संतान होने में उनके द्वारा की गई चिकित्सा की भूमिका है ऐसी परिस्थिति में जिनका समय कई वर्षों तक अच्छा नहीं आता है वो बड़े बड़े चिकित्सकों एवं चिकित्सा पद्धतियों को अपनाकर भी संतान का लाभ नहीं ले पाते हैं और निराश होने लगते हैं|इसलिए समय जनित अवरोधों में चिकित्सा की कोई भूमिका नहीं होती है वो समय के सुधरने के साथ ही सुधरते हैं !
    इसलिए पति और पत्नी दोनों का संतान की दृष्टि से आरोग्य एवं उन दोनों का अच्छा समय संतान होने के लिए बहुत महत्त्व रखता है योग्य समय आने पर ही संतान होती है! कई बार पति का समय संतान योग्य होता है तब पत्नी का समय नहीं होता है और जब पत्नी का होता है तब पति का नहीं होता है ऐसी परिस्थिति में संतान होने में देरी होती चली जाती है !कई बार किसी के उच्च कोटि के पुण्यों के प्रभाव से उसके यहाँ बहुत बड़ा भाग्यशाली बच्चा होना होता है ऐसी परिस्थिति में जब तक उतना उच्चस्तरीय समय का संयोग नहीं आएगा तब तक उतनी बड़ी प्रतिभा का अवतार कैसे हो सकता है !जैसे भगवान् श्री राम को प्रकट होने के लिए  5 ग्रह उच्च के होने आवश्यक थे जो संयोग कृत्रिम रूप से नहीं बनाया जा सकता था इसलिए दशरथ जी के बुढ़ौती में बच्चे हुए क्योंकि समय का उतना उच्च योग उनके जीवन में पहली बार उसी समय आया था !यदि केवल यज्ञ से बच्चे होने होते तो यज्ञ तो वशिष्ठ जी कभी भी करवा सकते थे !दूसरा जब जैसा समय आता ही तभी वैसी इच्छाएँ जागृत होती हैं इसलिए संतान नहीं है इस बात की ग्लानि दशरथ जी को भी बुढ़ापे में ही हुई क्योंकि तब संतान होने का समय आ चुका था ! इस प्रकार से पति का समय संतान योग्य हो और पत्नी का समय संतान योग्य हो तथा संभावित संतान के भाग्य के अनुशार समय हो तब संतान होती है इसलिए समय के अनुशार संतान संबंधी तनाव का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है ! 
विवाह बिलंब से होने का तनाव -
  समयविज्ञान की दृष्टि से किसी का कभी भी किसी भी लड़की या लड़के से विवाह नहीं हो सकता  उसके लिए समयविज्ञान की दृष्टि से उन दोनों का एक दूसरे की बराबरी का होना बहुत आवश्यक  होता है इसके अलावा विवाह होने लायक उपयुक्त समय जब आता है तब विवाह होता है |विवाह योग्य समय यद्यपि कुछ वर्षों का होता है वो भी कुछ वर्ष गैप देकर थोड़े थोड़े समय के लिए आता है उसमें विवाह हो गया तो ठीक और यदि नहीं हुआ तो टल जाता है फिर कुछ समय बाद आता है ये लड़की और लड़के दोनों का एक साथ न आकर अपितु अलग अलग वर्षों में भी आता है कई बार एक साथ भी आ सकता है किंतु जब एक साथ आता है विवाह तभी होता है |1-2वर्ष के लिए यह समय आता है और फिर बीत जाता है | इसी में जो लोग दहेज़ के लालच में या कैरियर आदि बनाने के चक्कर में पहले तो विवाह को टालते जाते हैं और फिर विवाह होने नहीं लगता है तब तक विवाह योग्य समय निकल चुका होता है!ऐसी परिस्थितियों का भी समय विज्ञान के द्वारा पूर्वानुमान लगाया जा सकता है|  
प्रेम संबंधों का तनाव -

प्रेम संबंधों में तनाव का कारण -
   प्रायः प्रेम प्यार के चक्कर में फँसे लोगों के लिए सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि जब किसी जोड़े का विवाह योग्य समय आता है तो लड़का या लड़की किसी के साथ जोड़ा बनाकर पति पत्नीवत मिलने जुलने लगते हैं एवं वैवाहिक सुख भोगने लगते हैं किंतु जैसे ही विवाह योग्य समय बीत जाता है तो दोनों एक दूसरे से दूर भागने लगते हैं और ऐसे सम्बन्ध छूटने लगते हैं उन दोनों में से विवाह सुख लायक समय जिसका पहले बीत जाता है वो पहले छोड़कर भाग जाता है और जिसका बाद में बीतता है वो उतने दिन तक तनाव में रहता है या वो उतने दिन के लिए वो किसी और को अपना प्रेमी या प्रेमिका बना लेता है उसके साथ वैवाहिक सुखों को प्राप्त करता है उसका जब अपना भी समय बीत जाता है तो वो भी अपने साथी को छोड़कर चल देता है फिर उसने जिसे फँसाया था वो तड़पता रहता है फिर वो अपना वैवाहिक समय बिताने के लिए किसी दूसरे को फाँसता है इस प्रकार से दूसरों को धोखा देते और धोखा खाते ही प्रेम संबंधों के तनाव पूर्ण जीवन को बिताना पड़ता है,इसीलिए तो प्रेम संबंध प्रायः तनाव देने वाले ही होते हैं !
    इसी बीच प्रेमीजोड़ों के जीवन में एक और घटना और घटने लग जाती है कि विवाह योग्य समय आने पर विवाह न करके प्रेम संबंधों से वैवाहिक सुख पाकर वो समय तो पास कर लेते हैं किन्तु प्रेम संबंधों के नाम पर ऐसे लोग शारीरिक सम्बन्ध  बना लेते हैं जिसके कारण उनका विवाह योग कट जाता है क्योंकि विवाह का मतलव तो शारीरिक सम्बन्ध ही होता है ! ऐसे सुख विवाह करके मिलें या बिना विवाह किए ही मिलें ! विवाह योग कटने का मतलब होता है कि उसके बाद विवाह होने में कठिनाइयाँ आने लगती हैं तनाव बढ़ने लगता है | 
    ऐसे लोगों का जब तक विवाह योग्य समय रहता है तब तक तो उनके पीछे विवाह करने वालों या प्रेम करने वालों की बड़ी संख्या लगी रहती है किंतु समय बीतने के बाद उन्हें विवाह लायक कोई समझता ही नहीं है और न प्रेम संबंधों के लिए ही उनसे कोई जुड़ना चाहता है!ऐसे लोग अपने पुराने दिनों को याद कर कर के तनाव किया करते हैं ऐसे लोगों के विषय में भी समयविज्ञान की दृष्टि से पूर्वानुमान करके विवाह संबंधी सभी उलझनों को शांत किया जा सकता है और जीवन सुख शान्ति पूर्ण बनाया जा सकता है !
किस पुरुष या स्त्री का विवाह किस स्त्री या पुरुष के साथ करने से तनाव नहीं होगा?
    जीवन में कौन स्त्री या पुरुष किस प्रकार के सुख कितने प्रतिशत भोग पाएगा !हर किसी के भाग्य में निश्चित होता है ऐसी परिस्थिति में जिसके भाग्य में  40 प्रतिशत वैवाहिक सुख बदा होता है यदि उसका विवाह किसी ऐसे स्त्री पुरुष से कर दिया जाए जिसके भाग्य में वैवाहिक सुख 70 प्रतिशत बदा हो ऐसे लोगों का आपस में एक दूसरे से विवाह होना कठिन होता है किन्तु  संपत्तिलोभ या किसी पद प्रतिष्ठा के लालच में यदि उन दोनों का विवाह हो भी जाए तो तनाव पूर्ण ही रहेगा एवं जो 70-40 प्रतिशत में30 प्रतिशत कमी रह जाती है जीवन साथी को ऐसी कमी को सहकर या तो तनाव में अपना समय व्यतीत करना होता है या फिर ऐसे लोगों को विवाहेतर संबंधों से ये कमी पूरी करनी पड़ती है | इससे जीवन साथी को तनाव होना स्वाभाविक होता है या फिर उतने के लिए तनाव सहना पड़ता है !
    इसलिए समय विज्ञान के द्वारा विवाह प्रेमविवाह या बलात्कारों से संबंद्धित सभी प्रकार के संभावित तनावों का पूर्वानुमान जन्म के साथ ही लगा लिया जाना चाहिए !भले वो युवा अवस्था में ही घटित होने वाली घटनाएँ क्यों न हों !
प्रेम एवं प्रेम विवाहों के टूटने संबंधी तनाव का पूर्वानुमान -  
      समय के अलग अलग स्वरूपों का अलग अलग स्वभाव होता है जो हर किसी के जीवन में बदल बदलकर आया करता है ऐसे परिवर्तनशील समय के खंड कुछ दिनों महीनों या वर्षों के होते हैं ऐसे समयखण्डों के स्वभाव के अनुशार एक ही व्यक्ति के जीवन में उसकी रूचि कुछ अलग अलग प्रकारों में बदलती रहती है उसी क्रम में उसे एक समय में कुछ अच्छा लगता है तो दूसरे समय खण्ड में कुछ दूसरा अच्छा लगने लगता है! खाने पीने पहनने ओढ़ने आदि हर क्षेत्र में रूचि बदलती रहती है ये बदलाव कई बार एक दूसरे के बिल्कुल विरोधी होते देखे जाते हैं जिसे पहले कभी मीठा खाना अच्छा लगा करता था उसे ही दूसरे समय में खट्टा तीखा आदि कुछ दूसरा अच्छा लगने लगता है इसीप्रकार से स्त्री पुरुषों की पसंद भी दूसरे स्त्री पुरुषों के प्रति बदलती रहती है| जिससे अभी बहुत स्नेह करते हैं दूसरे समय खंड में उसी से बहुत कम स्नेह रह जाता है तीसरे समय खंड में उससे बिल्कुल घृणा हो जाती है! ऐसी स्थिति का सामना वैवाहिक जीवन में भी स्त्री पुरुष आदि दोनों ही पक्षों को करना पड़ता है दोनों का समय बदलते बदलते जब एक दूसरे के अनुकूल आ जाता है तो एक दूसरे से प्रेम होता है प्रेम विवाह होता है या अरेंज विवाह हो जाता है किंतु यही समय खंड जब एक दूसरे के विपरीत आ जाता है तो वैवाहिक जीवन में कलह लड़ाई झगड़ा यहाँ तक कि विवाह विच्छेद अर्थात तलाक भी हो जाता है !
   विशेष बात ये है कि ये समयखंड कुछ दिनों महीनों या वर्षों के होते हैं उतने दिन यदि शांत रहकर या एक दूसरे की बात सहकर पार कर लिए जाएँ तो वो आपसी तनाव कारक समय बीतते ही उन दोनों का आपस में फिर बहुत अच्छा स्नेह हो जाता है !ऐसे सभी प्रकार के तनाव या अवसाद कारक समयखण्डों को चिन्हित करके जन्म के बाद कभी भी सारे जीवन के तनावकारक समयों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है| 
    दूसरी बात जो दो लोग आपस में प्रेम या विवाह करने जा रहे हों उन दोनों के तनाव कारक समय खण्डों का पूर्वानुमान लगाकर उन्हें इस बात के लिए सावधान किया जा सकता है कि वे यदि एक दूसरे के साथ सम्पूर्ण जीवन व्यतीत करना चाहते हैं तो उन्हें जीवन के किस वर्ष में एक दूसरे के साथ क्या क्या सावधानियाँ वरतनी चाहिए जिससे उन दोनों का जीवन तनाव पूर्ण परिस्थितियों से बच सकता है और तलाक जैसी दुर्घटनाएँ रोकी जा सकती हैं |  
   बलात्कार भावना का पूर्वानुमान - 
    किसी के जीवन में किसी समय विवाह योग यदि अत्यंत प्रबल आ जाता है कि परम्पराओं के हिसाब से उसकी उम्र विवाह योग्य नहीं मानी जाती या लोभवश विवाह रोक कर रखा जाता है तो ऐसे लड़के या लड़कियाँ वैवाहिक सुख प्राप्त करने के लिए बलात्कार से भी नहीं हिचकते हैं क्योंकि उनका लक्ष्य वैवाहिक सुख प्राप्त करना होता है वो प्यार से मिले या बलात्कार से या विवाह से किंतु वे उसके बिना नहीं रह सकते !कई बार विवाहित लोग भी बलात्कार जैसे जघन्य अपराध करते देखे जाते हैं !उसका कारण उसके जीवन साथी के अपने भाग्य में वैवाहिक सुख प्राप्त करने का योग अत्यंत कमजोर होना होता है जबकि उसका अपना बहुत बलवान होता है इसलिए वो अपने जीवन साथी के द्वारा प्रदत्त वैवाहिक सुखों से संतुष्ट नहीं हो पाता है|ऐसे असंतुष्ट लोग जो सक्षम होते हैं वे विवाहेतर संबंध बना लेते है और अक्षम लोग या तो कुंठित रहने लगते हैं या फिर बलात्कार जैसी दुर्भावनाओं में प्रवृत्त हो जाते हैं !ऐसी सभी परिस्थितियाँ समय के आधीन होती हैं और इनसे होने वाले तनाव भी समय के साथ ही घटित होते हैं ! 
  पार्टनर के साथ होने वाले तनाव का पूर्वानुमान  
   जो दो लोग आपस में एक दूसरे के साथ किसी वस्तु का व्यापार करना चाहते हैं ऐसे दोनों लोगों के तनावकारक समय खण्डों का पूर्वानुमान लगाकर उन्हें इस बात के लिए सावधान किया जा सकता है कि उन दोनों के आपसी संबंधों को सुरक्षित बनाए रखने के लिए दोनों को जीवन के किस किस वर्ष में किस किस प्रकार से क्या क्या सावधानियाँ वर्तनी होंगी !इसीप्रकार से सभी संबंधों एवं सम्बन्धियों के कारण होने वाले तनाव का भी पूर्वानुमान किया जा सकता है वो भले मालिक और नौकर के बीच के ही आपसी संबंध क्यों न हों !यदि वो इन बातों पर विचार नहीं करते हैं तो तनाव होगा ही !इसलिए तनाव को टालने के लिए 'समयविज्ञान' संबंधी पूर्वानुमान विधा का उपयोग किया जाना चाहिए !
कार्य और व्यापार से होने वाला तनाव-
  समय विज्ञान के आधार पर इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि व्यापार के लिए कौन सा क्षेत्र चुना जाए और उससे सम्बंधित कार्यव्यापार होने पर भी ऐसे कामों के लिए जीवन में किस किस वर्ष में क्या क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए !
 संतान या माता पिता भाई बहन आदि से होने वाला तनाव -
    'समयविज्ञान' का मानना है कि हमारे खून से जुड़े सभी सीधे रिस्तों में से हमें किस रिश्ते से कितना सुख मिलेगा और किस रिश्ते से कितना दुःख मिलेगा !साथ ही ये सुख या दुःख जीवन के किस वर्ष में मिलेगा ये उन दोनों के जन्म के समय ही निश्चित हो जाता है जिन दोनों के विषय में जानना होता है! उस संभावित दुःख को टालने के लिए अपने द्वारा क्या क्या सावधानी बरती जानी चाहिए !ऐसी सभी बातों का पूर्वानुमान बचपन से लेकर जीवन में कभी भी लगाया जा सकता है! 
  अपराधों के आरोप झेल रहे लोगों को तनाव- 
    समय विज्ञान की दृष्टि से आपराधिक मनोवृत्ति दो प्रकार की होती है एक स्थायी और एक अस्थायी !स्थायी आपराधिक मनोवृत्ति वाले लोग आजीवन आपराधिक मनोवृत्ति से ही ग्रसित रहते हैं और वो मौका पाते ही आपराधिक कार्यों को अंजाम दे देते हैं इसलिए ऐसे लोगों को तो सारे जीवन ही नियंत्रण में रखना पड़ता है |
   दूसरे प्रकार के अपराधी वे होते हैं जिनमें एक दो तीन वर्ष के लिए आपराधिक समय आता है जिसमें उनके बिगड़ने की सम्भावना होती है इसके बाद वे हमेंशा हमेंशा के लिए सुधर सकते हैं क्योंकि उसके बाद उनकी मनोवृत्ति आपराधिक नहीं रह जाती है|ऐसे लोग चाहकर भी सुधर नहीं पाते हैं उन पर से समाज एवं कानून का भरोसा उठ चुका होता है इसलिए कोई उनकी बात नहीं मानता है | अच्छा समय आने के बाद भी अपराधियों की संगति में बने रहने के कारण वे  सुधर नहीं पाते हैं और अपराधियों के साथ रहकर अपराधियों की श्रेणी में ही बने रहते हैं और अपराधियों की संख्या बढ़ाया करते हैं| इसप्रकार से देश , समाज एवं उनके परिवारों के काम आने वाला उनका बहुमूल्य जीवन यूँ ही ब्यर्थ बीतता जा रहा होता है|
    ऐसे लोगों का एक बार आपराधिक जीवन से नाम जुड़ जाने के कारण कुछ सफेदपोश लोग इन्हें डरा धमका कर इनसे दिहाड़ी पर अपने लिए अपराध करवाकर कमाई करते देखे जाते हैं अन्यथा फँसा देने की धमकी देकर ऐसे सुधर सकने लायक लोगों को भी आपराधिक गर्त में धकेले रहते हैं !'समयविज्ञान' की दृष्टि से ऐसे लोगों की मनोवृत्ति का पूर्वानुमान जन्म के समय ही लगाकर सावधानीपूर्वक मानसिक मदद करते हुए इन्हें आपराधिक जीवन में जाने से रोका जा सकता है यदि चले भी गए हों तो इन्हें अपराध के दल दल से निकाल कर समाज में अपराधियों की संख्या घटाई जा सकती है| 
  रोग और तनाव का पूर्वानुमान- किसी व्यक्ति के जन्म समय के आधार पर जन्म समय या जीवन में कभी भी ये  निश्चय किया जा सकता है कि इसके जीवन में अच्छा और बुरा समय कब कब आएगा और उस अच्छे समय में स्वास्थ्य आदि किन किन अच्छाइयों का लाभ हो सकता है और बुरे समय में किन किन प्रतिकूलताओं का सामना करना पड़ा सकता है बुरे समय में स्वास्थ्य संबंधी किस किस प्रकार की परेशानियाँ हो सकती हैं वो किस सन महीने या वर्ष में घटित हो सकती हैं और वो रहेंगी कितने वर्ष महीने दिन आदि तक !उसमें किस किस प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ बढ़ने की संभावना रहेगी !किन विषयों से कितना सावधान रहना होगा! वो शरीर सम्बन्धी रोग होगा या मन संबधी अथवा शरीर और मन दोनों से सम्बन्धित रोग होगा ! मनोरोग का कारण क्या बनने  सम्भावना होगी साथ ही उस समय उसे किस प्रकार की बातें सुनना पसंद होगा इसप्रकार से  किसी के जन्म समय का समयविज्ञान की दृष्टि से अध्ययन करके भविष्य संबंधी स्वभाव का एवं भविष्य में उस समय होने वाले स्वभाव संबंधी बदलाव का आज ही पूर्वानुमान लगाया जा सकता है तथा भविष्य में उस समय उसकी होने वाली पसंद ना पसंद का पूर्वानुमान आज ही लगाया जा सकता है उसी के अनुशार  उसकी आज से ही प्रीकाउंसलिंग  शुरू की जा सकती है जिसका असर भविष्य में इतना अधिक होते देखा जाता है कि कई बार वो बहुत तनाव कारक समय सावधानी संयम पूर्वक बहुत आसानी से बिता लिया जाता है क्योंकि पीड़ित को भी तब तक भरोसा हो चुका होता है कि यह तनाव केवल इतने ही समय के लिए है इस आशा से धैर्य पूर्वक सब  कुछ सहकर बड़ी तनाव कारक परिस्थितियों को भी हिम्मत पूर्वक लाँघते चला जाता है |पहले की काउंसलिंग का उसपर इतना अच्छा असर होता है जितना उस समय की काउंसलिंग का नहीं होता है जब उस तरह का उसका समय प्रारम्भ हो चुका होता है !तनाव का समय प्रारंभ हो चुकने के बाद उसे कोई अच्छी बात पसंद ही नहीं आती है |इसलिए तनाव होने और न होने का कारण समय को मानते हुए ही तनाव पर विजय पाने के लिए समय विज्ञान की पद्धति को विकसित किया  जाना चाहिए |
   बुरे समय से प्रभावित लोगों को उतने समय के लिए किसी विवाद से बचने की सलाह देकर बुरे समय के प्रभाव से घरों में चल रहे कलह रोके जा सकते हैं विवाह टूटने से बचाए जा सकते हैं परिवार बिखरने से रोके जा सकते हैं तनाव बढ़ने से रोका जा सकता है | बुरे समय से प्रभावित छात्रों पर बिना अधिक दबाव दिए हुए उनके साथ विशेष सहयोगात्मक रुख अपना कर उनके जीवन को मानसिक तनाव की ओर बढ़ने से बचाया जा सकता है !
      वस्तुतः इस संसार में सभी आनंद रूपी अमृत का समुद्र भरा हुआ है जिससे उस अमृत रूपी दूध को लेकर ब्रह्मांड व्यवस्था रूपी गाय अपने स्तनों में भरे घूम रही है उसे पन्हवाने के लिए भाग्य रूपी बछड़े की आवश्यकता होती है|बछड़े को जब भूख लगती है तो गाय के स्तनों में स्वयं ही दूध उतर आता है उसी प्रकार से भाग्यरूपी बछड़ा हर किसी का अपना अपना पालतू होता है जो उचित समय पर गाय को पेन्हावाकर अपने मालिक को दूध निकालने के लिए सौंप देता है और मालिक दूध निकाल लेता है !जैसे हजारों गउओं के झुंड में खड़ी गाय को उसका बछड़ा खोज लेता है उसी प्रकार से हजारों बछड़ों के झुण्ड में खड़े अपने बछड़े को गाय खोज लेती है उसी प्रकार से हर किसी का भाग्य हर किसी को खोज लेता है वह कहीं भी क्यों न हो | जैसे किसी दूसरी गाय के बछड़े को कोई गाय दूध नहीं पिलाती है उसी प्रकार से किसी व्यक्ति का स्वयं निर्मित भाग्य किसी दूसरे के लिए फलित नहीं होता है | "अवश्य में भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभं "जिसके पास बछड़ा न हो ऐसे मालिक के लिए गाय से दूध निकाल पाना जितना कठिन होता है उससे अधिक कठिन होता है भाग्य हीन  व्यक्ति का सुखी होना | उसे बहुत प्रयास करने पर जैसे थोड़ा बहुतदूध मिल जाता है उसी प्रकार से भाग्यहीन व्यक्ति बहुत प्रयास करके भी प्रायः अधिक सफल होते नहीं देखे जाते हैं  |         
                    -प्रकृतिखंड- 
      प्राकृतिक पूर्वानुमान -
      आँधी तूफान सूखा वर्षा अति वर्षा भूकंप आदि सभी  के लिए समय और लौकिक परिस्थितियाँ दोनों जिम्मेदार होती हैं केवल परिस्थितियों के आधार पर इन विषयों से संबंधित सटीक पूर्वानुमान लगा पाना संभव ही नहीं है | जो तूफान जहाँ उठा या वर्षा कारक जो मानसून जहाँ बनते दिखाई दिया फिर वो जिस दिशा की ओर जितने किलोमीटर की गति से चलने लगा उस दिशा और उसकी गति की गणना  के आधार पर उसी अनुमान से उस दिशा के शहरों  देशों की प्रायः मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ कर दी जाती हैं किंतु ऐसे पूर्वानुमान वस्तुतः एक जुगाड़ होते हैं ऐसे तीर तुक्का लग भी जाता है और कभी नहीं भी लगता है|विपरीत दिशा से हवाएँ चलने पर मानसून उधर मुड़ जाता है और भविष्यवाणियाँ नाम के जुगाड़ फेल हो जाते हैं|मौसम संबंधी भविष्यवाणियों के सही होने की अपेक्षा गलत होने का अनुपात इसीलिए अधिक है क्योंकि मेरी जानकारी के अनुशार आज भी मौसम संबंधी सटीक भविष्य वाणी करने लायक मौसम विचारकों के पास कोई मजबूत आधार नहीं है |
     मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा अभी तक ऐसी किसी प्रणाली को विकसित नहीं किया जा सका है जिसके द्वारा महीने दो महीने पहले वर्षा विषयक पूर्वानुमान की घोषणा की जा सके !उनके द्वारा जो आधार गिनाए जाते हैं वो प्रायः निराधार एवं कल्पनाप्रसूत हैं !इसलिए ऐसे तीर तुक्कों पर विश्वास करके किसानों को कृषि के अनुकूल वातावरण नहीं दिया जा सकता है क्योंकि किसानों को फसलों के बोने के संबंध में 4-6 महीने पहले योजना बनानी पड़ती है रवि की फ़सल के समय मार्च अप्रैल  में ही उन्हें आनाज एवं पशुओं के लिए भूसा आदि का संग्रह वर्ष भर के लिए करके रखना होता है बाक़ी बेच देना होता है | 
   मौसम विभाग किसानों को ऐसे पूर्वानुमान उपलब्ध नहीं करवा पाता है या फिर इनके द्वारा लगाए गए तीर तुक्के जितने प्रतिशत गलत हो जाते हैं उसकी कीमत किसानों को जान देकर चुकानी पड़ती है  और भविष्यवाणियाँ सच कितने प्रतिशत होती हैं इसके लिए मौसमीभविष्यवाणियों का पिछला रिकार्ड चेक किया जा सकता है !किसानों की बढ़ती आत्महत्याओं के कारणों को समझने में सुविधा  हो सकती है | 
        भूकंप विज्ञान - 
     वस्तुतःभूकंप से संबंधित पूर्वानुमान के विषय में  विश्वास पूर्वक अभी तक कुछ भी कहना संभव नहीं है !रही बात धरती के अंदर संचित गैसों के दबाव से अन्तस् प्लैटों में आने वाले विकारों कि तब तक तीर एतुक्का ही माना जाएगाजब तक इसे प्रमाणित करने वाले कोई मजबूत आधार न प्रस्तुत  किए जा सकें !
       भूकंप आने का वास्तविक कारण पहले जमीन  के अंदर के ज्वाला मुखियों को बताया जाता था !किंतु फिर प्रश्न उठने लगा कि जहाँ ज्वालामुखी नही हैं वहाँ भूकंप क्यों आता है ?इसका जवाब नहीं दिया जा सका!इसके बाद महाराष्ट्र कोयना के कृत्रिम जलाशय में जब पानी भरा गया उसके बाद से वहाँ भूकंप आने लगे तो आम लोगों को लगा कि पहले यहाँ भूकंप नहीं आते थे जलाशय बनने के बाद आने लगे हैं इसका मतलब भूकंपों के आने का कारण यह कृत्रिम जलाशय ही है !इन आम लोगों के आकलन में ही वैज्ञानिकों ने अपनी आवाज मिला दी और कहा जाने लगा कि भूकम्पों के आने का कारण कृत्रिम जलाशय ही हैं  किंतु फिर प्रश्न उठा कि धरती के जिन भागों में कृत्रिमजलाशयों का निर्माण नहीं हुआ है वहाँ भूकंप क्यों आते हैं दूसरी बात जहाँ जहाँ कृत्रिम जलाशयों का निर्माण हुआ है उन सभी जगहों पर भूकंप क्यों नहीं आते हैं उनमें से कुछ जगहों पर ही क्यों आते हैं !इस बात को भी अनुत्तरित छोड़कर इसके बाद धरती के अंदर की गैसों के बढ़ते दबाव से अंतस  प्लेटों में विकार आने के कारण भूकंप आते हैं !इस बात के आधार भूत प्रमाण प्रस्तुत किए बिना हिमालय के नीचे के गैसों के भारी भंडारण का जिक्र किया जाने लगा और उसके आधार पर हिमालयी क्षेत्रों में किसी बहुत बड़े भूकंप के आने की भविष्यवाणियाँ भी परोसी जाने लगीं !इतना ही नहीं जमीन के अंदर गहरे गड्ढे खोदकर उनमें परीक्षण की प्रक्रिया प्रारम्भ कर दी गई जबकि जो देश पहले भी काफी गहरे गड्ढे खोद चुके हैं किन्तु क्या मिला !इसलिए बहुखर्चीली ऐसी परियोजनाओं को प्रारम्भ करने से पूर्व जानकारियों की दृष्टि से जो आधार भूत  मुख्यबिंदु  होते हैं वो इतने कमजोर होते हैं क्या कि उन विषयों में अपने व्यक्त विचारों से इतनी जल्दी पीछे हट जाना कितना उचित है ? स्थिति यदि यही रही तो आज जो गड्ढे खोदे जा रहे हैं कल वही मिट्टी से भर दिए जाएँगे फिर और कुछ नए विचारों पर काम शुरू कर दिया जाएगा !
     भारत का प्राचीन 'समयविज्ञान' (वैदिक विज्ञान )अर्थात ऐसे विषयों के रहस्यों को उद्घाटित करने में प्राण प्रण से लगा हुआ है जिससे प्राप्त अनुभवों के आधार पर  संभावनाएँ ये भी हैं कि भूकंप आने का कारण वहाँ मिले ही नहीं जहाँ खोज रही हैं वैज्ञानिक शक्तियाँ !अभी जो विषय रिसर्च के आधीन है उसके विषय में कोई बात इतने विश्वास पूर्वक कैसे कही जा सकती है जिससे समाज में भय का वातावरण बनने की संभावनाएँ हों !
                   पर्यावरण  और भूकंप खंड - 
        पर्यावरण  वैज्ञानिकों को अक्सर कहते सुना जाता है कि पर्यावरण बिगड़ने के कारण घटित होती हैं वर्षा बाढ़ आँधी चक्रवात और  भूकंप जैसी सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ ! इसी प्रकार से रोग मनोरोग सामूहिक रोग आदि परिस्थितियों का कारण भी प्रदूषण के मत्थे मढ़ दिया जाता है और प्रदूषण के लिए जनता को वाहनों को फैक्ट्रियों को एवं नालों के प्रदूषित पानी आदि को जिम्मेदार मान लिया जाता है | 
    हो सकता है कि सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ घटित भी प्रदूषण के कारण ही होती हों और सभी प्रकार के रोगों के होने का कारण भी हो सकता है कि प्रदूषण ही हो !संभावना ऐसी भी है कि कुछ प्रकार के प्रदूषण रोकना बहुत कठिन हों और कुछ प्रकार के प्रदूषण जिन उत्पादों के उद्योंगों से निकलते हों कि उनका रोका जाना आसान न हो !किंतु जिन प्रदूषणों को बंद किया जा सकता है या जिन्हें थोड़ी परेशानी उठाकर भी समाज मिलजुलकर बंद कर सकता है और वो बंद करना भी चाहता है बशर्ते उसे ये पता तो लगे कि ऐसा करने से वैसा लाभ होगा या उसमें सुधार होगा !
      अभी तक तो समाज वैज्ञानिकों की इस बात पर ही भरोसा नहीं कर सका है कि प्रदूषण संबंधी कथा कहानी में कुछ सच्चाई भी होगी अन्यथा समाज इसमें अमल करना अबतक प्रारम्भ कर चुका होता| सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ और सभी प्रकार के रोग प्रदूषण से होते हैं यदि ये बात मान भी ली जाए तो यह भी तो बताया जाना चाहिए कि किस प्रकार के प्रदूषण से किस प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं का जन्म होता है साथ ही उसके कुछ उदाहरण भी दिए जाने चाहिए और बताया जाना  चाहिए कि किस ईस्वी के किस महीने में किन किन  क्षेत्रों में किस किस प्रकार का कितना प्रदूषण बढ़ने से किस प्रकार की प्राकृतिक आपदा घटित हुई  या किस क्षेत्र के किस सन या महीने में  कौन सी बीमारी महामारी आदि किस प्रकार के प्रदूषण के कारण घटित हुई |
      इसके साथ ही समाज को यह भी बताया जाना चाहिए कि किस प्रकार की प्राकृतिक आपदा या बीमारी आदि को रोकने के लिए व्यक्तिगत तौर पर प्रत्येक व्यक्ति को अपने अपने आचरण में क्या क्या सुधार किस प्रकार से करने चाहिए जिससे उस प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं के घटित होने में कमी आने की संभावना है ! ऐसे विषयों से सम्बंधित कुछ अतीत के उद्धरण भी प्रस्तुत किए जाएँ कि अमुक समय अमुक क्षेत्र में ऐसा प्रदूषण फैला था इस कारण ये ये नुक्सान हुए थे इसलिए यदि ऐसे नुकसानों से बचना है तो इस प्रकार से प्रदूषण को रोकने में आम जनता भी सहभागिता निभा सकती है !
      इस प्रकार से जनता पर जिम्मेदारी डालने से जनता के मन में भरोसा बढ़ेगा और वो उस पर अमल भी करेगी अन्यथा पर्यावरण विभाग बोलता रहा है और जनता सुनती रहती है | 
  आयुर्वेद और समयविज्ञान -
     द्वितीय खंड -
         समयविज्ञान में वातपित्त और कफ महत्त्व -
 व्यक्ति से ब्रह्मांड तक के निर्माण की प्रक्रिया बिल्कुल एक जैसी है क्षिति जल पावक गगन समीर ये पाँच तत्व हैं इन्हीं से  व्यक्ति बना है और पंचतत्वों से ब्रह्मांड की रचना होती है| इनमें पृथ्वी और आकाश ये दोनों तो स्थिर हैं शेष तीन वायु अग्नि और जल ये तीनों अत्यंत सक्रिय हैं इन्हीं के उचित अनुपात में बने रहने से व्यक्ति और ब्रह्मांड स्वस्थ सुखी और सानंद रहते हैं तथा ब्रह्मांड अर्थात प्रकृति उत्पात मुक्त एवं सुखद बने रहते हैं | इन तीनों का पारस्परिक अनुपात यदि शरीर में बिगड़ जाए तो शरीर रोगी हो जाता है और यदि प्रकृति में बिगड़ जाए तो प्राकृतिक आपदाओं का संकट खड़ा हो जाता है इसीलिए सम्पूर्ण आयुर्वेद ही इसी वातपित्त और कफ के सुदृढ़ सिद्धांतों पर टिका हुआ है |वातपित्त और कफ  का उचित अनुपात बिगड़ते ही शरीर रोगी होने लगता है तथा उसके अनुपात को संतुलित बनाए रखने के लिए आयुर्वेदोक्त औषधियाँ हैं जिन्हें लेने से तीनों जैसे जैसे उचित अनुपात में होते जाते हैं वैसे वैसे शरीर रोगमुक्त होता जाता है |इसी प्रकार से प्राकृतिक विषयों में वातपित्त और कफ का अनुपात जब तक संतुलित रहता है तब तक वर्षा वायु आदि सब कुछ हितकर और आनंददायी होते हैं समय पर आवश्यकता के अनुशार बादल बरसते हैं प्रकृति अन्न फूल फल आदि सभी आवश्यकताओं की आपूर्ति करती है स्वच्छ जल स्वच्छ वायु एवं सभी प्राणियों को रोग रहित जीवन देती है न कहीं बाढ़ न सूखा न आँधी तूफान जैसा वायुप्रकोप और न ही भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं की आशंका ही रहती है  होते जाता है वैसे वैसे बाढ़ भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाओं की आशंका समाप्त होने लगती है सभी प्राणी प्रसन्न एवं प्रकृति हरी भरी सस्य श्यामला होती है| 

वातपित्त और कफ   



  रहते हैं यही कारण है कि मनुष्य आदि समस्त जीवों को स्वस्थ रहने के लिए 

प्रकृति में भी वातपित्त और कफ की मात्रा घटती बढ़ती रहती है इन तीनों में विषमता बढ़ते ही घटित होने लगती हैं प्रकृति में भी कई प्रकार की दुर्घटनाएँ ! प्रकृति का जब वात बिगड़ता है तब वायु संबंधी दुर्घटनाएँ देखने को मिलती हैं आँधी चक्रवात या फिर प्रदूषित वायु का मिलना या वायु की अल्पता के कारण घुटन !इसी प्रकार से पित्त की मात्रा बिगड़ने पर पित्त संबंधी स्वास्थ्य विकार और समाज में आग सम्बन्धी दुर्घटनाएँ एवं प्रकृति में सूर्य सम्बन्धी दुर्घटनाएँ या प्राकृतिक घटनाएँ देखने सुनने को मिलने लगती हैं | ऐसे ही जब कफ की मात्रा घटती या बढ़ती है तब जल,शीत एवं कफ सम्बन्धी स्वास्थ्य विकार होते देखे जाते हैं समाज या किसी क्षेत्र अथवा ऋतु विशेष में ऐसा होने पर सामूहिक रूप से ऐसी बीमारियाँ फैलने लगती हैं इसी प्रकार से प्रकृति में ऐसा होने पर प्रकृति में संतुलन बिगड़ता है अर्थात इसका प्रभाव घटने से सूखा आदि समस्याएँ होने लगती हैं और इसके बढ़ने से वर्षा बाढ़ जैसे प्राकृतिक घटनाएँ देखने सुनने को मिलती हैं !

     वात पित्त और कफ ये तीनों के बढ़ने घटने का संबंध परस्पर एक दूसरे के बढ़ने घटने से भी होता है ! गर्मी बढ़ेगी तो ठंडी घटेगी ही इसी प्रकार से इसके विपरीत ठंडी घटेगी तो गर्मी बढ़ेगी ही !वायु तो गर्म और और ठंडी दोनों प्रकार की होती है और दोनों में ही विद्यमान रहती है |


     इसीलिए तो स्वास्थ्य सम्बन्धी प्रक्रिया हो या प्राकृतिक घटनाएँ ये केवल एक तत्व के बढ़ने घटने से नहीं घटित होती हैं इसमें दोनों के सहयोग की एक दूसरे को आवश्यकता पड़ती ही है अन्यथा एक की मात्रा जब बहुत बढ़ जाती है तो उससे संबंधित विकार बढ़ने लगते हैं | जैसे सूर्य का प्रभाव बहुत अधिक बढ़ जाने से गर्मी बढ़ जाती है और गर्मी बढ़ते ही  वायु  हल्की होने लग जाती है वो इतनी हल्की कि शरीर में उसके स्पर्श का आभाष ही नहीं होता है !इसीलिए तो गर्मी की ऋतु में लोग अक्सर यह कहते सुने जाते हैं कि इतनी तेज हवा चल रही है या पंखा चल रहा है किंतु शरीर में लगने का आभास ही नहीं होता है इसका कारण वायु का हल्का हो जाना होता है !यही वायु वर्षा या शीतऋतु में उससे काफी धीरे चलती हो तो भी उसके  स्पर्श का आभाष होता है पंखा चलाने पर वायु काटने की आवाज आती है और हवा का स्पर्श भी अधिक समझ में आता है |  


        सूर्य का प्रभाव अकेले अधिक बढ़ जाने से हवा तो तेज चलती है किंतु पानी नहीं बरसता है इसी प्रकार से चंद्र का प्रभाव अधिक बढ़ जाने से बादल तो  अधिक छा जाते हैं किंतु वर्षा नहीं होती है वर्षा के लिए तो दोनों का समान अनुपात में बढ़ना आवश्यक होता है जब इन दोनों की समानवृद्धि असाधारण हो जाती है तब होती है अतिवृष्टि और घटित होने लगती हैं भीषण बाढ़ जैसी समस्याएँ !


      शास्त्रों में सूर्य की पुरुष प्रवृत्ति मानी गई है और चंद्र की स्त्री प्रवृत्ति होती है| स्त्री और पुरुष के सम्मिलन से जैसे एक दूसरे के प्रति उत्तेजना  बढ़ती है उसी प्रकार से सूर्य और चंद्र के संयुक्त प्रभाव से मौसमी वायु चलने लगती है इसी कर्म में दोनों परिस्थितियाँ आगे बढ़ती चली जाती हैं और जैसे स्त्री पुरुष के मिलने से संतान का जन्म होता है उसी प्रकार से सूर्य और चंद्र के सम्मिलन  से वर्षा होती है !


       प्रकृति में भी होता है गर्भधारण प्रसव भी होता है - 


      सामान्य अर्थ तो सजीव अर्थात मनुष्यों पशुओं पक्षियों आदि समस्त जीव जंतुओं में ही गर्भ धारण की प्राकृतिक प्रक्रिया होती है किंतु इसके विशेष अभिप्रायार्थ में पहुँचने पर एक गूढ़ अर्थ भी प्रकट हो जाता है जो बहुत उपयोगी है विशेषकर स्वास्थ्य संबंधी घटनाएँ हों या प्राकृतिक घटनाएँ ये अच्छी हों या बुरी हर घटना घटने से कुछ घंटे दिन महीने एवं वर्ष आदि पहले उसका गर्भधारण काल होता है उसी गर्भधारण समय का गहन अध्ययन करके उसके प्रसव अर्थात उस घटना के घटित होने का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है ! किंतु ऐसा तभी संभव है जब किसी भी घटना से संबंधित  गर्भधारण काल का ज्ञान हो तब तो प्रसव काल का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है किन्तु यदि गर्भधारण काल ही न पता हो तो प्रसव के विषय में कल्पना कैसे की जा सकती है फिर तो जैसे जैसे लक्षण दिखाई पड़ते जाएँगे वैसा वैसा पता लगता जाएगा किंतु इसे पूर्वानुमान नहीं कहा जा सकता है !मौसम विज्ञान भी तो ऐसे ही भविष्यवाणियाँ करता है इसीलिए उनके पूर्वानुमान तीर तुक्का ही साबित होते हैं क्योंकि बिना गर्भकाल के ज्ञान के पूर्वानुमान संभव ही नहीं है !किसी महिला के गर्भिणी होने का ज्ञान हो तो उसके प्रसवकाल का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है किंतु बिना गर्भ काल जाने प्रसवकाल का पूर्वानुमान लगाना कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी होता है | 


    गर्भधारण काल कहने से हमारा आशय है किसी भी घटना के घटने का ऐसा कारण बनना जिसके कारण  भविष्य में कोई दूसरी घटना का घटित होना संभव हो ! जैसे यदि किसी ने "विष खा लिया है तो उसकी मृत्यु होगी " इस घटना में संभावित मृत्यु का पूर्वानुमान विष खाने के साथ ही लगाया जा सकता है इसलिए ऐसी मृत्यु का गर्भधारण काल वही समय है जब उसने विषभक्षण किया था !


   इस प्रकार से प्रकृति से लेकर समस्त चराचर जगत से जुड़ी अधिकाँश घटनाओं का अपना अपना गर्भकाल होता है किसका कितने दिन गर्भकाल हर किसी का गुप्त होता है निरंतर शोध प्रक्रिया से गुजरने वाले विशेषज्ञों  को इसका अनुभव होता है इसी के आधार पर वो लोग उससे संबंधित घटनाओं के भविष्य में घटित होने का पूर्वानुमान लगा लिया करते हैं |जैसे हर गर्भ से संतान होना निश्चित नहीं होता है कुछ गर्भस्राव के शिकार हो जाते हैं और कुछ गर्भपात के और कुछ तो गर्भ होते ही नहीं हैं केवल गर्भ जैसे लगने के कारण उन्हें भी अनुभव के अभाव में गर्भ जैसा मान लिया जाता है किंतु उनका प्रसव प्रसव काल में न होकर जब कभी जहाँ कहीं भी हो जाता है ! यदि ऐसा न होता तो गर्भस्राव या गर्भपात आदि घटनाएँ क्यों घटित होतीं यहाँ तक कि आम के पेड़ों में बसंत ऋतु में लगने वाली मंजरी के सभी फूलों में तो फल नहीं लग जाते कुछ फूल झूठे निकल जाते  फल बीच में ही  खंडित हो जाते हैं | इसी प्रकार से प्रकृति एवं स्वास्थ्य से संबंधित प्रत्येक घटना के विषय में जानना चाहिए कि पूर्वानुमान अनुमान मात्र होते हैं इन्हें शतप्रतिशत सच नहीं माना जा सकता है किंतु ये तीर तुक्के नहीं होते हैं और न ही अधिकाँश जगह गलत हो सकते हैं अपितु  अनुभव के आधार पर इन्हें प्रयासपूर्वक सत्यता के काफी नजदीक तक ले जाया जा सकता है |  |    


     भूकंपों की गर्भप्रक्रिया - 


    जैसे स्त्री पुरुष के संसर्ग से हुए गर्भ का प्रसव 9-10 महीने में होता है उसी प्रकार से सूर्य और चंद्र के प्रभाव के समागम से होने वाले गर्भ का प्रसव 6-7 महीने के बीच उचित लक्षण प्राप्त होने पर होता है !इसी प्रकार से शारीरिक एवं प्राकृतिक हर घटना का पहले गर्भ होता है और बाद में प्रसव होता है हर प्रकार की घटना का प्रसवकाल उसके गर्भकाल के अनुशार ही होता है इसलिए प्रसवकाल अर्थात घटना घटित होने के समय का पूर्वानुमान लगाने के लिए उस घटना के गर्भकाल अर्थात प्रारंभिक काल की जानकारी होनी बहुत आवश्यक होती है क्योंकि पूर्वानुमान लगाने के लिए वही आधारभूत मेरुदंड होता है |अलग अलग घटनाओं के हिसाब से गर्भधारण और प्रसवकाल का अंतर भी अलग अलग होता है| यह घंटे दिन महीने एवं वर्ष आदि  कुछ भी हो सकते हैं जो शास्त्रीय स्वाध्याय एवं दीर्घकालीन अनुभव से जाने जा सकते हैं ! 


     प्रकृति की  अच्छी बुरी सभी घटनाओं की तरह ही भूकंपों का भी गर्भकाल होता है जिसकी अधिकतम अवधि 180 दिनों की होती है जैसे महिलाओं के गर्भकाल के प्रारंभिक कुछ महीने बाद तक गर्भ के लक्षण दिखाई नहीं पड़ते किंतु प्रसव के कुछ पूर्व से वो लक्षण प्रकट रूप में दिखाई पड़ने लगते हैं इसी प्रकार से प्रकृति में भी भूकंप निर्माण होते समय तो कुछ समझ नहीं आता है किंतु भूकंप आने के समय के कुछ  पहले से ही प्रकट होने लग जाती हैं जिनका अनुभव बहुत जीव जंतुओं को होने लगता है ऐसा वर्षा आदि घटनाओं में भी होते देखा जाता है !ऐसे गर्भों में वात पित्त और कफ की  बड़ी भूमिका होती है | 


वात पित्त और कफ -


       वात का अर्थ है वायु एवं पित्त तो साक्षात् सूर्य का ही स्वरूप है एवं कफ चंद्र का प्रतिनिधित्व करता है !कुल मिलाकर सूर्य चंद्र और वायु की न्यूनाधिकता से ही इस चराचर विश्व का संचालन होता हैसृष्टि के सभी सजीव व निर्जीव पदार्थ आदि  का सृजन पालन और संहार के कारक यही वातपित्त और कफ हैं इनके अनुचित रूप से घटने और बढ़ने से ही रोग होते हैं एवं उचित अनुपात में रहने से स्वास्थ्य रक्षा होती रहती है कुल मिलाकर सृजन से संहार तक सब कुछ इसी वात पित्त और कफ  से ही संभव होता है  | 


     अलग अलग ऋतुओं के हिसाब से इन्हीं वात पित्त और कफ  आदि  तीनों का भिन्न भिन्न  अनुपात में संतुलन बना हुआ है इन्हीं तीनों के उसी संतुलन के हिसाब से सृष्टि के सभी परिवर्तन गुँथे हुए हैं !इन्हीं अलग अलग अनुपातों के हिसाब से सारी सृष्टि का संचालन अनंत काल से होता चला आ रहा है इन्हीं तीनों के एक निश्चित अनुपात के आधार पर ये सुनिश्चित है कि किस पेड़ में कौन सा फल या फूल वात पित्त और कफ के किस अनुपात में होने पर फूलेगा या फलेगा !इसीलिए तो जो वृक्ष पूरे वर्ष खड़े रहते हैं किंतु वात पित्त और कफ अपने ले प्रकृति के द्वारा सुनिश्चित किया गया अनुपात पाते ही फूलने फलने लगते हैं ऐसा अनुकूल अवसर यदि अधिक दिन के लिए मिल गया तब तो आम आदि की  बहुत अच्छी हो जाती है और यदि कम दिनों के लिए मिला तो कमजोर रह जाती है !इसी प्रकार से कुछ बीज खेतों में पूरे वर्ष  पड़े रहते हैं किंतु वात पित्त और कफ  आदि  तीनों का प्रकृति द्वारा सुनिश्चित अनुपात जिस ऋतु में मिलने लगता है उस ऋतु में उग जाते हैं !


      किसी व्यक्ति को कोई रोग हो या फिर कोई प्राकृतिक आपदा घटित हो सब कुछ इन्हीं तीनों के अनुचित अनुपात के सम्मिश्रण से ही संभव हो पाता है इस सृष्टि में ये तीनों हर जगह पर हर समय विद्यमान रहते हैं इन्हीं तीनों के विषम अनुपात में होने से गठित होती हैं प्राकृतिक आपदाएँ इसीलिए रोगों तथा प्राकृतिक आपदाओं पर कोई भी शोधकार्य इन तीनों के अध्ययन के बिना अधूरा  ही रहेगा | 


       इन्हीं वात पित्त और कफ के अलग अलग अनुपात का सुनियोजित निर्धारण करती हैं ऋतुएँ !ऋतुओं का नाम लेते ही पता लग जाता है कि इस ऋतु में इन तीनों का अनुपात कैसा रहेगा !इसी प्रकार से दिन के तीन भाग होते हैं रात्रि के भी तीन भाग होते हैं उन तीनों भागों में तीनों का अनुपात भिन्न भिन्न अर्थात तीन प्रकार का होता है !ऋतुएँ समय के अनुशार बदलती हैं और ऋतुओं के अनुशार बदलते रहते हैं  वात पित्त और कफ के अनुपात ! 


वायु विशेष बलवान होता है -


      वायु तो सूर्य -चंद्र ,सर्दी-गर्मी तथा कफ और पित्त दोनों का सहयोगी है इसीलिए तो शीतऋतु की हवा शीतलहरी और गर्मी की हवा को  'लू' कहा जाता है इसलिए वायु को स्वतंत्र माना गया है !आयुर्वेद में वायु को नेता कहा गया है यथा -


                                                             धातु दोष मलादीनां नेता शीघ्रं समीरणः |  


       वायु शरीर और संसार दोनों को ही धारण करता है इसीप्रकार से आयुर्वेद में महर्षि चरक ने कहा है कि वायु ही इस भूमण्डल को धारण करता है यही वायु सूर्य चंद्र समेत समस्त ग्रहों नक्षत्रों आदि को निरंतर नियम पूर्वक गति में रखता है यही वायु बादलों को बनाता है वर्षा करता है नदी आदि के स्रोतों को संचालित करता है !चारों समुद्रों के जलों को धारण करता है ! इसी बात को महाभारत में भी कहा गया है | महाभारत में वायु के 7भेद बताए गए हैं उसमें 'उद्वह' नामक वायु समुद्र के जल को धारण करती है -


                       "यश्चतुर्भ्यः समुद्रेभ्यो वायुर्धारयते जलम् "-महाभारत 


     इसी वायु के द्वारा  पृथ्वी के अंदर से वृक्षों के अंकुर निकलना ,फल और फूलों को उत्पन्न करना,ऋतुओं का विभाग करना,बीजों में अंकुर उत्पन्न करने की शक्ति पैदा करना !अनाज को कम या अधिक उत्पन्न करना  उसे सड़ने न देना आदि वायु के ही सहज गुण हैं !


         कुपित वायु के गुण  - 


    यही वायु जब कुपित हो जाती है तब पर्वतों की चोटियों को तोड़ती है वृक्षों को उखाड़ती है समुद्रों को उत्पीड़ित करती है अर्थात ऊँची ऊँची तरंगें उत्पन्न करके उसे क्षुब्ध कर देती है तालाब नदियों आदि में जल को उछालकर तटों से बाहर बहने के लिए प्रेरित करना !नदियों के प्रवाह को परिवर्तित कर देना ,भूमि को कँपाना अर्थात भूकंप लाना ,बादलों का गंभीर गर्जन करवाने वाला है !इसी वायु के प्रकोप से पला पड़ता है आकाश से धूल बालू रेत मछली मेंढक सर्प राख रक्त छोटे छोटे पत्थर  आकाश से गिरते देखे जाते हैं | इसी वायु के प्रकोप से आकाश से बिजली गिरती है ऋतुओं का विभाजन एवं प्रभाव परिवर्तन होता है अर्थात ऋतुओं का अयोग अतियोग मिथ्यायोग आदि करता है परिमाण से अधिक अन्न उत्पन्न होना आदि !प्राणियों की मृत्यु तथा  पृथ्वी वायु जल अग्नि एवं आकाश आदि से सम्बंधित उपद्रव की कारक प्रकुपित वायु ही है महाप्रलय लाने के लिए वाले बादल सूर्य वायु एवं अग्नि आदि का सृजन करना प्रकुपित वायु का ही कार्य है !


        विशेष बात ये है कि चरक संहिता आयुर्वेद का ग्रन्थ है उसमें इन सब प्राकृतिक घटनाओं की चर्चा करने का औचित्य सामान्य रूप से तो दिखता नहीं है फिर यहाँ इसकी चर्चा  की आवश्यकता क्या थी ?इस पर महर्षि ने कहा कि शरीरस्थ वायु तो किसी एक का स्वास्थ्य बिगाड़ सकती है जबकि शरीर के अलावा प्रकृति में विद्यमान  बहिश्चर प्रकुपित वायु जनपदोध्वंस अर्थात सम्पूर्ण नगर शहर क्षेत्र आदि में रहने वाले अधिकाँश लोगों को एक जैसे रोग की लपेट में ले लेती है वही प्रकुपित वायु ऐसी प्राकृतिक घटनाओं का भी कारण  होता है अर्थात सामूहिक बीमारियाँ और प्राकृतिक घटनाएँ एक जैसे वातावरण में घटित होती हैं |अर्थात उस तरह की प्राकृतिक  घटनाएँ देखकर प्रकुपित वायुजन्य रोगों का पूर्वानुमान लगाकर उनसे सतर्क रहकर अग्रिम उपाय किए जा सकते हैं  |


      वायु ,सूर्य और चंद्र आदि का महत्त्व !


  इस ब्रह्मांड में जो कुछ भी बन या बिगड़ रहा है उसका कारण सूर्यचंद्र और वायु ही हैं शरीर संबंधी किसी विकार के उत्पन्न होने पर इन्हीं तीन को वात पित्त और कफ के रूप में पहचाना जाता है !वात अर्थात 'वायु' और पित्त अर्थात 'सूर्य' एवं कफ अर्थात 'चंद्र' |आयुर्वेद में  भी यही कहा गया है यथा -


              विसर्गादान विक्षेपैः सोमसूर्यानिलास्तथा !   


           धारयन्ति जगद्देहं  कफपित्तानिलस्तथा || 


अर्थात चंद्र अपनी किरणों से अमृत वरसाता है सूर्य रसों का शोषण करता है और वायु इस संसार को धारण करता है आयुर्वेद की भाषा में चंद्र विसर्ग कारक ,सूर्य आदान कारक एवं वायु विक्षेप कारक होता है ! इससे अभिप्राय यह है कि चंद्र के कारण शीत (सर्दी),सूर्य के कारण उष्ण(गर्मी)होती है और वायु इन दोनों गुणों को प्रेरित करती है अर्थात इनके प्रभाव को घटाती बढ़ाती है वायु !


    अर्थात  प्रकृति में कोई अच्छी बुरी घटना घटे या स्वास्थ्य संबंधी घटना का निर्माण हो सब कुछ इन्हीं तीनों का अनुपात बनने या बिगड़ने से होता है आयुर्वेद तो टिका ही इन्हीं तीन पर है इन्हीं वात पित्त और कफ की कमी या अधिकता अर्थात उचित अनुपात में न होने से स्वास्थ्य बिगड़ जाता है और उसे संतुलन में ले आने से स्वास्थ्य ठीक हो जाता है रोगों को दूर करने वाली औषधियाँ इन्हीं तीनों के बिगड़े हुए अनुपात को उचित मात्रा में कर लेती हैं स्वास्थ्य अपने आप से ठीक हो जाता है |कुल मिलाकर यही वात पित्त और कफ  आदि जैसे शरीर को धारण करते हैं उसी प्रकार से यही तीनों सारे संसार को धारण करते हैं |शरीर और प्रकृति से संबंधित अच्छी बुरी सभी घटनाएँ वात पित्त और कफ के प्रवाह से ही घटित होती हैं | जबकि भूकंप जैसी घटनाएँ  प्रकुपित वायु की  अधिकता से घटित होती हैं |

    भूकंप कैसे और क्यों ?

         इस विषय में विश्व वैज्ञानिक समुदाय अभी तक इस पूर्वाग्रह से बाहर नहीं निकल पाया है कि भूकंप का कारण पृथ्वी के अंदर भरी गैसें हैं उनके दबाव से भूमिगत प्लेटों में आने वाले विकारों के कारण आते हैं भूकंप संभवतः उन्हें लगता है कि भूकंप पृथ्वी की समस्या है इसलिए इसके विषय में हमें कोई भी जानकारी केवल पृथ्वी ही दे सकती है इसलिए भूकंपों के आने का कारण केवल पृथ्वी के ही अंदर खोजा जाना चाहिए यहीं निकलेगा हमारी भूकंपीय शंका का समाधान !इस विषय में पृथ्वी के अलावा कहीं और ताकने झाँकने की बिल्कुल आवश्यकता नहीं है !इसी भावना से उनका अभी तक का विचार तो यही लगता है कि पृथ्वी के अंदर बढ़ते गैस भंडार से धरती के नीचे की प्लेटों पर बढ़ते गैसों के दबावों  के कारण आता है भूकंप !उनके द्वारा दूसरे संकेत कोयना जैसे जलाशयों के निर्माण एवं उसमें जल भरने की ओर दिए गए हैं संभवतः उन्हें लगता है कि इनके भार से आता है भूकंप !कुल मिलाकर पृथ्वी के ऊपर से पड़ने वाले वजन का दबाव हो या पृथ्वी के  अंदर से बढ़ते गैसों का दबाव ऐसे दबावों के कारण भूमिगत प्लेटों में आते विकार उसी से आता है भूकंप !


         इसी भावना से भावित होकर भूकंपों के आने के कारण पृथ्वी के अंदर खोजे जाने लगे धरती के अंदर गहरे गहरे छिद्र किए जाने लगे जिसमें कुछ विचारकों ने तो यहाँ तक कहा है कि पृथ्वी की ऊपरी सतह से अंदर अधिक गहराई तक यदि कुछ गहरे छेद कर दिए जाएँ तो  धरती के अंदर की गैसें उन्हीं से बाहर निकलती रहेंगी तो पृथ्वी के अंदर का दबाव घटता रहेगा और यदि ये विधा काम आई तो वहाँ हमेंशा हमेंशा के लिए भूकंपों का भय समाप्त हो सकता है और ऐसे क्षेत्रों को भूकंप मुक्त क्षेत्र  घोषित किया जा सकता है !ऐसे दावों  में सच्चाई कितनी होगी मुझे ये तो पता नहीं है किन्तु ऐसे विचारों से मुझे भी इतना लालच अवश्य लगा कि यदि किसी भी प्रकार से ऐसा कर पाना संभव  हो सके तो जो बहुत दिनों से मैं भी सुनता आ रहा हूँ  "हिमालय के नीचे गैसों का बहुत बड़ा भंडार है जिसके कारण कभी कोई भीषण भूकंप आ सकता है !" तो ऐसे स्थलों की गैसों को निकालने का प्रबंध यथाशीघ्र किया जाना चाहिए !


         निजी तौर पर इस विषय में मुझे जो जानकारी है वो कितनी प्रमाणित है यह कह पाना अभी मेरे लिए कठिन है किंतु मैं यहाँ  उद्धृत करना चाहता हूँ कि संभवतः इसी भावना से कुछ क्षेत्रों में ऐसे प्रयास किए भी गए  किंतु उनके परिणाम स्वरूप उससे क्या अनुभव मिले और उससे भूकंपों के संदर्भ में चलाए जा रहे शोध कार्यों  में क्या कोई नई कड़ी जोड़ी जा सकी या नहीं मुझे इसकी कोई जानकारी नहीं है इतना अनुमान अवश्य है कि खोदे गए उन गहरे गड्ढों से यदि भूकंपों का रहस्य सुलझने की थोड़ी भी उम्मींद बँधी होती तो भूकम्पों के शोध में लगे विश्व वैज्ञानिक उसी दिशा में विश्वास पूर्वक बढ़ चले होते !किसी कारण यदि ऐसा न भी संभव हो पाता तो भूकंपीयशोध क्षेत्र में कम से कम उन देशों ने तो ऐसा कोई कीर्तिमान स्थापित किया ही होता !जैसा कि अभी तक तो कुछ दिखाई सुनाई नहीं दिया है यथा - 


       "कोला प्रायद्वीप पर सोवियत संघ की एक वैज्ञानिक वेधन परियोजना के अंतर्गत पृथ्वी की पर्पटी पर किया गया उस समय का सबसे गहरा वेधन था। एक केंद्रीय छेद से शुरु करके उसके चारों ओर उसकी शाखाओं के रूप में कई छिद्र वेधे गये।जिसकी गहराई 12262 मीटर अर्थात 40230 फुट थी !बताया जाता है कि पृथ्वी पर मानववेधित ये सबसे गहरा छिद्र था।2008 में कतर में तेल कूप बना जिसकी गहराई 12,289 मीटर अर्थात 40.318 फुट थी |  2011 में रूसी द्वीप सखालिन में अपतटीय वेधन द्वारा निर्मित 12,345 मीटर अर्थात 40.502 फुट गहराई तक वेधन किया गया !"


     ऐसे गंभीर भूवेधित छिद्रों को करने का उद्देश्य क्या रहा होगा वो तो वही जानें उन्हें उस गड्ढे को इतनी गहराई तक ले जाने में क्या कुछ अनुभव हुए वो उन्हें ही पता होंगे किंतु ये बात सबको पता है कि उन गड्ढों के अंदर कहीं कुछ पता लगा क्या ?


        बताया जाता  है कि भूकंपों का अध्ययन करने के लिए कुछ अन्य देश भी पृथ्वी की पर्पटी पर गंभीर वेधन करना प्रारंभ कर चुके हैं या करने जा रहे हैं किंतु अनेकों अनुभवों से ऐसा कहा जा सकता है कि ऐसी प्रक्रिया का सहारा लेना कहीं कुछ न करने की अपेक्षा कुछ करते हुए दिखना तो नहीं है !यदि ऐसा नहीं है तो ऐसी परियोजनाओं को प्रारम्भ  करने के आधारभूत मिले कारणों को भी सार्वजनिक किया जाना चाहिए कि पृथ्वी के अंदर ऐसे छिद्र करने की प्रेरणा उनके मन में कैसे पैदा हुई इसके लिए आधार भूत जानकारी उनके पास क्या थी जिसके कारण उन्हें ऐसे भारी भरकम कदम उठाने के लिए विवश होना पड़ा !


    


  भूकंपों का अध्ययन वैदिक विज्ञान की दृष्टि से -


    समुद्र में उठने वाली लहरों का कारण - समुद्र की लहरें उठने का कारण जल का स्वभाव है या वायु का प्रभाव है समुद्र जल का कमाल है या फिर सूर्य चंद्र के आकर्षण के कारण या कुछ और !यदि ये केवल जल और चंद्र के आपसी गुरुत्वाकर्षण के कारण हैं तो इस आकर्षण का असर पृथ्वी पर स्थित अन्य जलाशयों में भी होना चाहिए था !छोटे जलाशयों में न सही तो बड़े में तो अवश्य होना ही चाहिए था अधिक न होता तो थोड़ा तो होता बहुत बड़ी लहरें नहीं तो उसके अनुपात में छोटी होतीं !यदि ऐसा केवल समुद्र जल में ही हो सकता है तो समुद्र से निकालकर वो जल कहीं और भरा जाए तो उसमें तो नहीं होता है अधिक नहीं थोड़ा भरा जाए तो कुछ प्रतिक्रिया तो दिखाई देनी चाहिए ! तटीय वायु का स्पर्श पाकर यदि लहरें बनती हैं वायु एक जैसी तो कभी नहीं चलती और ये भी निश्चित नहीं है कि वायु हमेंशा चलती ही रहती हो ,वायु कभी कभी तो बिल्कुल शांत हो जाती है लेकिन लहरें तो हमेंशा ही बनती रहती हैं ! वायु का स्वभाव स्थिर नहीं होता है कभी अधिक चलने लगती है और कभी कम और बिल्कुल नहीं किंतु ज्वार भाटा का समय तो निश्चित होता ही है कभी कभी तो बिलकुल तो ऐसा तब संभव है श अब बात वायु की मैंने सुना 



छोटी छोटी टन चंद्र का कमाल होता तो पृथ्वी पर जहाँ जहाँ जल संग्रह होता वहाँ वहाँ समुद्र जल का ही अष्टमी पूर्णिमा अमावस्या जैसी तिथियों के आस पास मैंने सुना है कि ये लहरें और तीव्र हो जाती हैं जिससे इन लहरों का संबंध चन्द्रमा से जोड़ा गया किंतु यदि इसका कारण वास्तव में चंद्र ही है या जल में ही कोई ऐसा चमत्कार है तो क्या  उसी समुद्र जल को वहीँ पर किसी बड़े पात्र में भर कर रख दिया जाए तो क्या उसमें भी लहरें उठने लगेंगी !क्योंकि स्थान वही है जल वही है और चन्द्रमा वही है फिर तो लहरें उस पात्र के जल में भी उठनी चाहिए !इन लहरों का कारण न समुद्रजल है न चंद्र है और न ही वो स्थान ही है ! 


       वस्तुतः जल की प्रकृति अर्थात स्वभाव तो शांत होता है उस शांत समुद्र जल में लहरें उठा संभव ही नहीं है किंतु समुद्रस्थ वायु का संयोग मिलते ही समुद्र जल लहरों का रूप ले लेता है अर्थात ऊँची ऊँची लहरें उठने लगती हैं वायु के अलग होते ही वो ऊँची ऊँची लहरें पुनः शांत हो जाती हैं ज्वार भाँटा जैसे प्राकृतिक घटनाएँ भी वायु संचरण से ही निर्मित होती और शांत होती रहती हैं | लहरें हमेंशा वायु से ही बनती हैं इसमें जल की भूमिका कितनी होती है दूसरी बात लहरों के जल का परीक्षण करके या लहरों के अधोभाग में कोई यंत्र स्थापित करके लहरों के विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है !वायु जनित लहरों के बनने की प्रक्रिया देखते समय वहाँ भी वायु तो कहीं नहीं दिखाई पड़ता है फिर भी समुद्र जल में दिखाई पड़ने वाली लहरें वायु जनित ही होती हैं यह निश्चित है | 


          इसी प्रकार से चक्रवात आदि तो सीधे सीधे वायु जनित क्या साक्षात वायु स्वरूप ही हैं किन्तु इसी शांत वायु मंडल में बनते हैं और इसी में भयंकर रूप लेते हैं और फिर इसी में मिलकर शांत हो जाते हैं किंतु इनके बनने की प्रक्रिया तो किसी को नहीं दिखाई पड़ती है | कई बार गर्मी की ऋतु में देखा जाता है कि हवा बिल्कुल नहीं चल रही होती है इसी बीच सबके देखते देखते अचानक चक्रवात बन जाता है और सीमित दायरे में घूमने लगती हैं हवाएँ उसके साथ तृण धूल पत्तियाँ आदि भी अचानक उड़ती हुई वायु के साथ ही गोल गोल घूमने लग जाती हैं इसी बीच अचानक वहीँ पर सबके देखते देखते चक्रवात समाप्त हो जाता है और तृण धूल पत्तियाँ आदि भी जहाँ की तहाँ गिर जाती हैं ऐसी परिस्थिति में उन तृण आदि का परीक्षण करके चक्रवात का पूर्वानुमान तो नहीं लगाया जा सकता है !


     यदि समुद्र में उठने  वाली ऊँची ऊँची पानी की लहरें उठने का कारण समुद्र जल नहीं अपितु वायु हो सकती है !इसी प्रकार से चक्रवात प्रकरण में तृण धूल पत्तियों आदि के अचानक उड़ते हुए घूमने का कारण वो तृण आदि न होकर अपितु वायु हो सकती है !तो पृथ्वी के काँपने  अर्थात भूकंप आने का कारण इसी वायु मंडल में विद्यमान वही वायु क्यों नहीं हो सकती है !


   समुद्र में उठने वाली लहरों में जल की लहरें ही दिखाई पड़ती हैं वायु कहीं नहीं दीखती है इसी प्रकार से चक्रवात में वायु के आश्रय से उड़ने वाली  तृण धूल पत्तियाँ आदि ही दिखाई पड़ती हैं वायु कहीं नहीं दिखाई पड़ती है इसी प्रकार से वायु के संयोग से काँपने वाली पृथ्वी के प्रकरण में भूकंप के समय केवल काँपती हुई पृथ्वी ही दिखाई पड़ती है वायु कहीं नहीं दिखाई पड़ती है जबकि ये निश्चित है कि वो कंपन वायु से हो रहा होता है |  


    ऐसे में समुद्र की लहरें हों या चक्रवात में उड़ती हुई धूल पत्तियाँ आदि हों या भूकंप के समय काँपती हुई पृथ्वी हो इन तीनों का ही कारण वायु होती है जो दिखाई नहीं पड़ती है इसलिए इनके विषय में पूर्वानुमान करते समय केवल वायु से संबंधित अध्ययन ही पूर्वानुमान लगाने में सहायक हो सकता है इसके अलावा समुद्र जल और चक्रवात में उड़ती हुई धूल पत्तियाँ आदि  या फिर भूकंप के समय काँपती हुई पृथ्वी को अध्ययन का आधार बनाकर न समुद्र की लहरों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है और न ही चक्रवात में उड़ती हुई धूल पत्तियों आदि के अचानक गोल गोल घूमते हुए उड़ने आदि का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है एवं इतनी विशाल पृथ्वी के काँपने का कारण भी पृथ्वी का अध्ययन करके नहीं अपितु वायु का अध्ययन करके ही लगाया जा सकता है | 


      पृथ्वी में छेद करके या गहरा गड्ढा खोद कर  पृथ्वी की आतंरिक गैसों का अध्ययन करके पृथ्वी के कंपन का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है जैसे सर्दी की ऋतु में ठंडी हवाएँ लगने से काँपने वाले व्यक्ति के काँपने का कारण खोजने के लिए उस व्यक्ति के पेट में छेद करके उसके पेट में भरी गैसों का अध्ययन करके उसके काँपने के लिए उस पेट और उसके पेट में भरी हुई गैसों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है और न ही ये कहा जा सकता है कि इसके पेट में भरे वायु के कारण इसकी हड्डियों पर दबाव पड़ने के कारण अस्थि भ्रंसन से कंपन होने लगता है या कौन कौन सी हड्डी शारीर के किस किस भाग में कितनी लंबी गई हुई है और शरीर के लिए कितनी महत्वपूर्ण है और शरीर के किस किस भाग में ऐसी महत्त्व पूर्ण अस्थियाँ हैं जिनमें भ्रंसन होने से कंपन होने की संभावना बनी रहती है इसलिए उन्हें डेंजरजोन घोषित कर दिया जाए !साथ ही शरीर में  वायु संचित होने वाले  कुछ स्थानों को पकड़ कर ये कहने लगना कि यहाँ गैसें बहुत संचित हैं इसलिए उन गैसों के कारण कभी भी यहाँ भीषण कंपन होने लग सकता है आदि !


     इसी प्रकार से प्रकृति के ज्वालामुखी और शरीर के पित्ताशय की गर्मी को शरीर के कंपन होने का कारण नहीं माना जा सकता है ! 


     कृत्रिम जलाशयों के कारण कंपन होने की बात को नकारा तो नहीं जा  सकता है किंतु सच्चाई इसमें भी नहीं है कि जलाशयों के वजन के कारण भूमिगत प्लेटें हिलने लगती हैं !वस्तुतः ये उसी तरह की बात है जैसे किसी काँपते हुए व्यक्ति के शिर पर रखे पानी के घड़े को देखकर ये कह दिया जाए कि इस घड़े के वजन से ही वह व्यक्ति काँप रहा है जबकि वास्तविकता ये हो कि ऋतु सर्दी की हो, प्रातः काल हो ,ठंडी हवा चल रही हो और घड़े से कुछ पानी छलक कर शरीर पर पड़ता जाता हो इन सभी कारणों के एक साथ एकत्रित हो जाने से जो ठंड लगती है उस ठण्ड लगने के कारण शरीर में होने  लगता  है कंपन !कुलमिलाकर इस कंपन का मूल कारण सिर   पर घड़े का रखा हुआ होना नहीं है अपितु ठंड लगना है ठंड के लगने के कारणों को खोजने पर पता लगता है कि शीत बढ़ाने वाले कई कारणों का एक समय पर एक स्थान पर इकट्ठा होना है | 


       ऐसे कम्पनों का अध्ययन करते समय केवल ये सोच लेना कि जब से इसने पानी भरा हुआ घड़ा सिर पर रखा है तभी से ये काँपने लगा है इसका मतलब सिर पर पानी भरा घड़ा रखने से कंपन होने ही लगता है !ये सिद्धांत बना दिया गया किंतु इसके कुछ समय बाद किसी दूसरे व्यक्ति को सिर पर पानी भरा घड़ा लाते हुए देखा गया तो पूर्वानुमान लगा लिया गया कि ये जरूर काँपता होगा क्योंकि ऐसी ही स्थिति में पहले जो देखा गया था वो काँप रहा था किंतु जब उसे देखा गया तो वो नहीं काँप रहा था तो रिसर्चर ये सोच कर मायूस हो गए कि ये दाँव भी खाली चला गया !फिर बीच का रास्ता निकालते हुए कह दिया गया कि चूँकि सिर पर पानी का घड़ा रखकर जाने वाले उस व्यक्ति के शरीर में कम्पन हो रहा था इसलिए इसके शरीर में भी कम्पन होना चाहिए !यदि अभी नहीं होता है तो बाद में होगा लेकिन जब होगा तब बहुत भयंकर होगा !रिसर्चर का वास्तविकता तक पहुँचने के लिए यह तर्क और तुलना ठीक नहीं है | किसी भी पूर्वाग्रह से बँध कर किसी शोध को उसके लक्ष्य तक नहीं पहुँचाया जा सकता है | 


      सिर पर पानी का घड़ा रखकर जा रहे दोनों व्यक्तियों की प्रत्यक्ष एक जैसी स्थिति देखकर उन अप्रत्यक्ष कारणों पर भी विचार करना था कि दूसरे के साथ संभवतः पहले वाले के जैसे उतने कारण न रहे हों !हो सकता है उसके घड़े से छलक कर पानी शरीर पर न गिरता हो ,हो सकता है सर्दी की ऋतु न रही हो,प्रातः काल न होकर दोपहर रही हो,ठंडी हवा न चलकर सामान्य अथवा  गर्म हवा चल रही हो ऐसी परिस्थिति में दोनों घड़ा धारकों में प्रत्यक्ष दिखने वाली बहुत सारी समानताओं के बाद भी संबंधित परिस्थितियों में आकाश पाताल जैसा बिल्कुल विपरीत अंतर भी हो सकता है यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए !इसी दृष्टि से कोयना जैसे जलाशयों के निर्माण के बाद उस क्षेत्र में आने वाले भूकम्पों की तुलना उन जलाशयों से नहीं कर देनी चाहिए जिन जलाशयों के निर्माण के बाद भी जहाँ भूकंप नहीं आते हैं !वहाँ जलाशय भले एक जैसे हों किंतु जलवायु जनित अन्य परिस्थितियों में पर्याप्त अंतर होगा जिसके सर्वांग शोध की आवश्यकता  समझी जानी चाहिए  


    शीतऋतु के समय ठंडी हवा के लगने से घड़े का पानी शरीर पर छलकने आदि कुछ कारणों के एक साथ एकत्रित हो जाने से शरीर में  कंपन होने लगता है !किंतु इस प्रकरण में विस्तृत अध्ययन की आवश्यकता इस बात की है कि उन सभी एकत्रित कारणों पर अलग अलग शोध कार्य किया जाए |इस प्रकरण में घड़े से शरीर पर गिरने वाले जल का तो दोनों व्यक्तियों और घड़ों को देखकर संभव है कि अंदाजा लगाने का प्रयास ठीक से  कर भी लिया जाए किंतु बाकी सभी कारणों के विषय में अक्सर ध्यान नहीं दिया जाता है जबकि वे कम महत्वपूर्ण नहीं होते हैं ! इस प्रकरण में प्रातः काल है ,ठंडी हवा है, शीत ऋतु है इनका भी उतना ही महत्त्व है जितना कि सिर पर रखे हुए घड़े से शरीर पर जल गिरने का है किंतु हवा ऋतु और समय को तो हम प्रकृति समझ लेते हैं उसे सबके लिए एक जैसी मान लेते हैं इसलिए उस व्यक्ति के काँपने में इनकी कोई भूमिका होगी भी इधर हमारा ध्यान ही नहीं जाता है और जिस घड़े के हम पीछे पड़े होते हैं कि सिर पर घड़ा रखने के कारण उसके वजन से उस व्यक्ति के शरीर में कम्पन हो रहा है क्योंकि जब से घड़ा रखा तभी से कम्पन हुआ इसलिए स्वाभाविक लगेगा इस कम्पन का कारण घड़ा ही होगा किंतु वास्तविकता ये है कि इस कम्पन से घड़े भार का कोई संबंध ही नहीं है जबकि हमारा रिसर्च घड़े के बोझ से हड्डियों पर पड़ने वाले दबाव को लेकर ही चल रहा होता है | 


     इस कंपन प्रकरण में अध्ययन करने के लिए आवश्यक बहुमूल्य 4 विंदु मिले पहला शीतऋतु  दूसरा प्रातः काल तीसरा शीतल हवाएँ और चौथा घड़े से शरीर पर गिरने वाला जल | इसके लिए इन चारों का अलग अलग अध्ययन करना होगा शीतऋतु के लिए ये समय चक्र का अध्ययन करना होगा ,प्रातः काल के लिए सूर्य के उदय से अस्त के बीच भ्रमण की स्थिति का एवं ठंडी हवाओं के लिए वायु का एवं जल गिरने के लिए घड़े का अध्ययन करना होगा !ये चारों एक दूसरे से अलग अलग विषय हैं इसलिए इन चारों के अलग अलग विशेषज्ञ होना स्वाभाविक है वे अलग अलग इन विषयों का अध्ययन करें इसके बाद उनका एक जगह सामूहिक पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन हो तभी निष्कर्ष तक पहुँचा जा सकता है क्योंकि संभावना ऐसी भी है कि इनके अलग अलग असर डालने पर संभव है कि कम्पन न भी हो !इसलिए सामूहिक  प्रभाव पर ही अध्ययन करना होगा !


      हमसे गलती उस जगह हो रही होती है जब हम कांपने वाले व्यक्ति के पेट में छेद करके उसके पेट में बनने वाली गैसों को ही कंपन के लिए जिम्मेदार ठहरा देते हैं जबकि वास्तविकता तो ये है कि उस काँपने वाले व्यक्ति के कम्पन में उसके पेट की और पेट की गैसों की कोई भूमिका ही नहीं होती है उसके शरीर  की भूमिका भी केवल इतनी होती है कि कम्पन उसके शरीर में होता हुआ दिखाई दे रहा होता है इसके अलावा उस कम्पन में उसके शरीर की भी कोई अधिक भूमिका नहीं होती है फिर भी उसके काँपने का दोष यदि हम उसके शरीर और शरीर के अंदर की गैसों पर ही मढ़ते रहेंगे तो लक्ष्य तक पहुँच पाना  कैसे संभव हो सकता है |रही बात गैसों की तो पेट में हो या पृथ्वी में गैसें तो हमेंशा भरी ही रहती हैं किन्तु कम्पन हमेंशा तो नहीं होता रहता है | 


   विशेष बात ये है कि जिन गैसों और प्लेटों को भूकंप के लिए हम हमेंशा से जिम्मेदार ठहराते हुए चले आ रहे हैं उनके विषय में हमें ये भी सोचना होगा कि पेट के अंदर की गैसें हों या पृथ्वी के अंदर की ये तो शरीर और पृथ्वी की संरचना का अभिन्न हिस्सा होती हैं उनका निर्माण वहाँ आवश्यकता के अनुशार ही होता है वो कभी अतिरिक्त और बोझिल कर देने वाली होती ही नहीं हैं वो तो  साक्षात शरीर और पृथ्वी का स्वरूप ही हैं दोनों का निर्माण पंचतत्वों से हुआ है वायु उसी पाँच में से एक है ! जो शरीर में पेट के आंतरिक प्रदूषण से निर्मित होती है और कब्ज समाप्त होते ही समाप्त हो जाती है यही स्थिति पृथ्वी की भी होती है इसलिए उसके कारण कम्पन होना संभव ही नहीं है | 


      भूकंप आने से कुछ सप्ताह पहले से पशुओं पक्षियों या प्रकृति में दिखने वाले बदलावों पर सूक्ष्म दृष्टि रखनी होगी लक्षणों का मिलान करना होगा !क्योंकि प्रकृति में प्रतिपल परिवर्तन हो रहे हैं ऐसे परिवर्तनों का प्रभाव चराचर जगत में झलकने लगता है वस्तुतः सारा प्राकृतिक वातावरण ही एक दूसरे पर आश्रित होता है यदि ऐसा तो वैसा के सिद्धांतों से सब कुछ एक दूसरे से बँधा हुआ है !इनके अन्योन्याश्रय की निबद्धता के कारण ही तो इनकी आपसी इतनी एक रूपता होती है कि ये समझना पड़ता है कि सूर्य उगते हैं तो कमल खिलते हैं या कम खिलते हैं तो सूर्य उगता है ऐसे और भी कई प्राकृतिक उदाहरण हैं | प्रकृति के समीप जंगलों में रहने वाले ऋषि मुनि आदि इनका अत्यंत सूक्ष्म अध्ययन किया करते थे ! 


        ऋतुओं से निबद्ध प्रकृति ऋतु के अनुशार ही चलती है किंतु कई बार किसी ऋतु विशेष में वात पित्त और कफ आदि का प्रभाव अचानक बढ़ने  या घटने लगता है जिससे कि वातावरण में दो ऋतुओं के मिलावटी लक्षण प्रकट होने लगते हैं !ऐसे अवसरों पर ही ऋतुओं की सीमाओं का अतिक्रमण करके वृक्ष बनौषधियाँ आदि दूसरी ऋतुओं में भी फूलते फलते देखे जाते हैं !वो उस समय के प्राकृतिक बदलावों को प्रकट कर रहे होते हैं !कुल मिलाकर लता पत्रों वृक्षों बनौषधियों पर ऐसे बड़े बदलावों के  चिन्ह झलकने लगते हैं | 


     इसी प्रकार से प्राकृतिक जीवन जीने वाले जीवजंतुओं में प्रकृति के लक्षणों की बहुत बारीक पहचान होती है क्योंकि वे प्रकृति के अनुशार ही जीवन जीते देखे जाते हैं इसलिए प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों को जीव जंतु भी बहुत आसानी से महसूस कर लेते हैं और वैसा ही अचार व्यवहार बदलने लगते हैं !एक बार दिन के दो बजे दिन में खग्रास सूर्य ग्रहण पड़ने पर उस समय सूर्यास्त होने जैसे वातावरण का अनुभव करके दिन के दो बजे भी पक्षी वापस घोसलों में लौटते देखे गए थे | इसके अलावा कुछ पक्षी किसी ऋतु विशेष में किसी क्षेत्र विशेष में प्रतिवर्ष एकत्रित होते हैं और एक निश्चित समय तक रहकर वहाँ से चले जाते हैं उनके पास कोई पंचांग या कलेण्डर तो नहीं होता है और न ही उन्हें कोई बताने ही जाता है कोयलें समय से कूकने लगती हैं मुर्गा प्रातः काल  समय पर बोलते देखा जाता है इनके पास घड़ी  तो नहीं होती है | ऐसे सभी जीव जंतुओं में प्रकृति को पहचानने की अद्भुत क्षमता होती है |    


      भूकंपों के लक्षणों का परीक्षण किया जाना चाहिए !


         सभी भूकंपों के लक्षण अलग अलग होते हैं उनके परिणाम भी एक जैसे नहीं होते उनका असर भी एक जैसा नहीं होता है किसी में आफ्टर शॉक्स  आते हैं किसी में नहीं आते हैं किसी भूकंप के आने के समय आवाज होती है किसी में नहीं होती है किसी भूकंप के समय आग लग जाती है किसी में नहीं लगती !किसी भूकंप के समय लोगों को चक्कर आने लगते हैं साँसफूलने लगती है उल्टी होने या लगने लगती है पेट दर्द होता है घबड़ाहट होती है पागलपन छाने लगता है किसी में एक दूसरे के प्रति अच्छे भाव बनने लगते हैं !किसी भूकंप आने के कुछ महीने पहले से कुछ विशेष फसलें नष्ट होने लगती हैं पौधों में कोई विशेष प्रकार का कीड़ा लगने या रोग फैलने लगता है |बड़े वृक्षों के पत्तों फूलों फलों में कोई एक जैसा रोग होने लगे या रंग से लेकर आकार प्रकार आदि में कुछ अजीब सा परिवर्तन लगने लगे तो ये निकट भविष्य के कुछ दिनों सप्ताहों महीनों आदि में आने वाली भूकंप जैसी किसी प्राकृतिक आपदा का संकेत दे रहे होते हैं !कई बार किसी क्षेत्र विशेष में कोई विशेष प्रकार की बीमारी अचानक सामूहिक रूप से फैलने लगती है ये भी भूकंप जैसी आपदा के ही संकेत समझ कर उनका परीक्षण किया जाना चाहिए !


      कुछ भूकम्पों के आने के कुछ दिनों सप्ताहों महीनों पहले से वहाँ ऋतुओं का स्वभाव लाँघकर वहाँ गर्मी ,सर्दी वर्षा आदि लगातार होने लगती है तेज हवा लगातार चलने लगती है या कोई बड़ा आँधी तूफान बाढ़ आदि का प्रकोप बढ़ने लगता है |बार बार आग लगने लगती है नदी कुआँ तालाब आदि तेजी से सूखने लगते हैं किसी पहाड़ गाँव आदि को दूर से देखने से उसका रंग बदला हुआ दिखाई देने लगे तो  ऐसे लक्षणों को भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं के संकेत समझकर इनका परीक्षण किया जाना चाहिए !


     कई बार किसी क्षेत्र में लोगों को एक दूसरे पर अचानक अकारण क्रोध आने लगे लोग एक दूसरे को मरने मारने पर उतारू होने लगें घरों में समाज में कलह का वातावरण अचानक और अकारण बनने लगे सीधे साधे शिक्षित ,समझदार और शांति पसंद लोग भी अचानक ही उन्माद और क्रोध की भाषा बोलने लगें ,अकारण ही चारों ओर उत्तेजना का वातावरण बनता दिखाई देने लगे तो निकट भविष्य में किसी भूकंप के आने का संकेत होता है ऐसा समझ कर उसके लक्षणों का परीक्षण किया जाना चाहिए | 


     कई बार कुछ वर्ग विशेष के पशु पक्षी आदि जीव जंतुओं के आचार व्यवहार स्वभाव आदि में अचानक कुछ इस प्रकार के परिवर्तन अचानक दिखने लगें जो उनके स्वभाव में पहले न देखे जाते रहे हों इन्हें भूकंप जैसी किसी आगामी आपदा का संकेत समझकर उसी प्रकार से ही परीक्षण किए जाने चाहिए !


कई बार किसी एक ही क्षेत्र में बार बार बिजली गिरने लगती है आकाश से धूल की वर्षा होने लगती है या आकाश में धुआँ धुआँ सा छाया हुआ दिखने लगता है ,आकाश का रंग कुछ अलग सा या बदला बदला हुआ सा दिखने लगता है सूर्य और चंद्र मंडलों में कुछ विशेष प्रकार के चिन्ह दिखाई पड़ने लगते हैं आकाश में कोई विशेष प्रकार की आकृति दिखाई देने लगती है तो ये भी निकट भविष्य में आने वाले भूकंप के संकेत हो सकते हैं | 


     कई बार किन्हीं दो देशों के पहले से चले आ रहे आपसी संबंधों में उनके स्वभावों के विरूद्ध जाकर एक दूसरे के प्रति अचानक और अकारण कोई मित्र या शत्रु भावना पनपती दिखने लगे तो इसे उन दोनों देशों में आने वाले भूकंप संकेतों को समझकर परीक्षण किया जाना चाहिए !


    यदि किसी क्षेत्र के आकाश में अतिविशाल पर्वतों के समान भौंरों के सामान काले  काले विकराल बादल दिखने लगें और थोड़ी बहुत वर्षा भी होती दिख रही हो !चिकित्सकों के पास पतले दस्त वाले रोगियों , कंठरोगियों मुखरोगियों कफरोगियों जैसी एक प्रकार की बढ़ती सामूहिक बीमारियों के लक्षण प्रकट होने लगें तो निकट भविष्य में आने वाले भूकम्पों की सूचना दे रहे होते हैं उसी दृष्टि से उनका परीक्षण किया जाना चाहिए !


      इसी प्रकार से सभी प्रकार के भूकंपों की गर्भधारण प्रक्रिया भूकंप प्रसव होने अर्थात भूकंपों के आने के  6 महीने पहले से प्रारंभ होती है आरंभिककाल में तो इनके लक्षण उतने स्पष्ट नहीं दिखाई पड़ते हैं किंतु जैसे जैसे समय समीप आने लगता है वैसे वैसे लक्षण स्पष्ट होने लगते हैं फिर भी सूक्ष्म एवं बारीकी से अनुभव किए जाने योग्य ही होते हैं |उस क्षेत्र के मनुष्यों से लेकर पशुओं पक्षियों समेत सभी जीवों की बेचैनी बढ़ने लगती है वृक्षों लताओं बनौषधियों एवं फसलों से संबंधित पौधों आदि के आकारों प्रकारों एवं स्वभाव आदि में उन लक्षणों को अनुभव के द्वारा पहचाना जा सकता है |इसके लिए लम्बे समय तक अभ्यास और अनुभव किए जाने की आवश्यकता होती है |    


  


पंच तत्वों से ही निकले हैं 'वात', 'पित्त' और 'कफ'-


      पृथ्वी वायु सूर्य चंद्र और आकाश ये पंचतत्व हैं इन्हीं में पृथ्वी और आकाश को स्थिर मानते हुए उन्हें इस प्रक्रिया से अलग करके वायु सूर्य और चंद्र तीन को क्रमशः  'वात', 'पित्त' और 'कफ' मान लिया गया | सारा आयुर्वेद इन्हीं तीनों पर टिका हुआ है | 


    बीमारियाँ तीन प्रकार की होती है और भूकंप भी तीन प्रकार के ही होते हैं -'वातज', 'पित्तज' और 'कफज' 


     बात पित्त कफ की पद्धति से यदि बीमारियों को पहचाना जा सकता है और उनकी चिकित्सा की जा सकती है तो भूकम्पों की पहचान क्यों नहीं हो सकती है और उन्हें रोकने के उपाय क्यों नहीं सोचे जा सकते !और यदि बीमारियाँ रोकी जा सकती हैं तो  भूकंप क्यों नहीं ! प्रयास तो किए ही जा सकते हैं !


     शास्त्र की मान्यता है कि इस संपूर्ण ब्रह्माण्ड का निर्माण पंचतत्वों से हुआ है सृष्टि के सभी पदार्थों का निर्माण पंचतत्वों से हुआ है समुद्रों का निर्माण पंचतत्वों से हुआ है इसीलिए समुद्र में 'बाढ़व' नामकी अग्नि भी होती है | पृथ्वी का निर्माण पंचतत्वों से हुआ है मनुष्य समेत सभी जीवों का निर्माण पंचतात्विक पद्धति से ही हुआ है | पंचतत्वों में पृथ्वी अग्नि वायु जल आकाश होते हैं सभी पदार्थों में  ये पाँचों तत्व उपस्थित रहते हैं | 


पुराणों में 12 सूर्य एवं 49 प्रकार के वायु का वर्णन मिलता है!जिनमें 7 प्रकार के वायु प्रमुख वायु माने गए हैं उनके नाम आवह, प्रवह,संवह ,उद्वह,विवह,परिवह,परावह आदि 7 हैं ये सातो ब्रह्मलोक , इन्द्रलोक ,अंतरिक्ष , भूलोक की पूर्व दिशा , भूलोक की पश्चिम दिशा , भूलोक की उत्तर दिशा और भूलोक की दक्षिण दिशा में विचरण करते हैं |


     ऐसी परिस्थिति में जब संस्कार का प्रत्येक पदार्थ पंचतात्विक पद्धति से निर्मित है इसीलिए  'वात', 'पित्त' और 'कफ' की प्रमुखता सभी में है हवा आग जल आदि तो सब में विद्यमान हैं 


   






     'वातज' अर्थात वायुमंडल में बनने वाले भूकंप ! 'पित्तज'अर्थात सूर्य किरणों से निर्मित होने वाले भूकंप ! 'कफज' अर्थात चंद्र की किरणों के द्वारा निर्मित होने वाले भूकंप '  के द्वारा होने वाला भूकंप ! 'वातज' अर्थात वायु के द्वारा बनने वाले भूकंप, 'पित्तज' या 'अग्निज'अर्थात 'सूर्य' से होने वाले भूकंप ! तीसरा 'जलज'  या 'कफज' अर्थात चंद्र'  के द्वारा होने वाले भूकंप !


      इसके अलावा भी एक भूकंप होता है जिसमें सभी भूकम्पों के लक्षण मिले हुए होते हैं ऐसे परिस्थिति  में ये समझ पाना बहुत कठिन होता है | ये भूकंप किस दोष से आया है  अतः ऐसे भूकम्पों को 'सन्निपातज' या सभी लक्षणों  से मिला जुला भूकंप मानना चाहिए !


     वात पित्तादि भेदों से भूकंपों के तीन प्रकार हो जाने के कारण ये जो त्रिकोण तैयार होता है वो तीनों कोने  स्वभावों लक्षणों चिन्हों फलों एवं संकेतों की दृष्टि से एक दूसरे से बिल्कुल अलग अलग या फिर बिल्कुल विपरीत हैं ऐसी परिस्थिति में उनके पारस्परिक लक्षणों चिन्हों आदि का एक दूसरे के साथ मिलान कर पाना कैसे संभव है !सूर्य के प्रभाव से आने वाले भूकंप मछलियों मेढकों आदि जल में रहने वाले या गर्मी में अधिक बेचैनी का अनुभव करने वाले भैंस  हाथी आदि जीव पशुओं के स्वभावों में बेचैनी पैदा करने लगता है जबकि चंद्रज भूकंपों में ये सब बड़ा आनंदित बने रहते हैं  ऐसी परिस्थिति में भूकंपों के विषय में शोधकार्य करने वाले जो विद्वान शोधार्थी एक जैसे लक्षणों को मिलाने के पक्ष में रहते हैं वो निराश हो जाते हैं उन्हें लगता है कि जब पिछले भूकंप से पहले मेढक बेचैन होकर तालाब छोड़कर चले गए थे किंतु अबकी बार वाले भूकंप में तो ऐसा कुछ दिखाई नहीं दिया इसका मतलब ये लक्षण गलत हैं , इसी प्रकार कोयना में जलाशय बना तो वहाँ पानी भरने के बाद भूकंप आने लगे किंतु टिहरी वाले जलाशय में तो ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला !मतलब साफ है कि भूकम्पों के भेद को न समझ पाने के कारण ऐसी जगहों पर आधार विहीन झूठ बोला जाने लगा अर्थात कहा जाने लगा कि टिहरी जैसे जिन जलाशयों में अभी भूकंप नहीं आया है वहाँ किसी दिन बहुत भारी भूकंप आएगा !ऐसा कहने के पीछे का आधार यह है कि कोयना जलाशय बनने के बाद जब वहाँ भूकंप आने लगे तब उसका सूक्ष्म परीक्षण किए बिना बोल दिया गया कि जलाशयों के कारण भूकंप आते ही हैं इसके बाद टिहरी के जलाशय में भूकंप न आने का कारण बताने के लिए एक आधार विहीन झूठ गढ़ना पड़ा !


    इसी प्रकार से हिमालय के नीचे बहुत गैसों के संचित होने वाली बात है भारत ही नहीं विश्व के कई देशों के भूकंप वैज्ञानिकों के रिसर्च निष्कर्ष पढ़ने सुनने को मिले कि" हिमालय के नीचे तो गैसों का बहुत बड़ा भंडार संचित हो चुका है इसलिए यहाँ किसी समय यहाँ बहुत बड़ा भूकंप आएगा !" ऐसी परिस्थिति में जैसे सारी पृथ्वी पर कभी भी कहीं भी भूकंप आ जाता है उसी क्रम में यदि एक बार हिमालय पर कोई बड़ा भूकंप आ जाए तो ये मान लिया जाएगा कि उन्हीं गैसों के कारण आया है !ऐसी परिस्थिति में यदि छोटा भूकंप भी आ जाए तो भी मान लिया जाएगा कि आया उन्हीं गैसों के कारण है किंतु बहुत थोड़ी गैसें पास हुई हैं भविष्य में आएगा बहुत बड़ा भूकंप !" आदि बातों के सहारे गैसों वाली उन बातों को ज़िंदा बनाए रखा जाएगा !इस विषय में हमारा कहना मात्र इतना है कि माना कि जो कहा जा रहा है वही सही हो किंतु आधार और तर्क तो मजबूत दिए जाने चाहिए थे और ऐसे किसी दावे की जब तक पुष्टि न हो तक ऐसी किसी बात को इतने विश्वास से कहना युक्ति युक्त नहीं है | 


     भूकंपों के विषय में विशेष बात - भूकंप कोई सामान्य घटना नहीं है ये प्रकृति के द्वारा निर्मित बहुत बड़ी घटना होती है इसमें प्रकृति के पाँचों तत्व आंदोलित हो रहे होते हैं |भूकंप पृथ्वी में घटित होता है इसका मतलब ये कतई नहीं है कि इससे केवल पृथ्वी ही प्रभावित होती है अपितु इसमें पाँचों तत्व सम्मिलित भूमिका अदा कर रहे होते हैं अधिकता किसी एक की होती है !भूकंप आने के लगभग 6 महीने पहले से ही पंचतत्वों के आपसी अनुपात की मात्रा विषमता धारण करने लगती है इससे पंचतत्वों का संतुलन बिगड़ने लगता है इसी समय  भूकंपगर्भ  प्रारंभ होता है | जैसे किसी  स्त्री को गर्भाधान से लेकर प्रसव पर्यन्त लगभग 9 महीने लगते हैं उसी स्त्री को प्रसव के बाद पुनः सामान्य रूप में लौटने के लिए 9 महीने और लगते हैं |  इसी प्रकार से किसी भूकंप गर्भ को आरंभ से भूकंप घटित होने तक लगभग साढ़े 6 महीने लगते हैं तो वहाँ की पञ्चतात्विक  प्राकृतिक स्थिति को सामान्य होने में भी लगभग  साढ़े 6 महीने लग ही जाते हैं |विशेष बात ये है कि भूकंप जिस किसी एक तत्व से प्रभावित होता है उस तत्व की प्रबलता उस सम्पूर्ण वर्ष ही रहती है | 


      इसके विषय से सम्बंधित शोधकार्य भी उसी स्तर से किए जाने चाहिए !साथ ही इस धारणा को मन से बिल्कुल निकाल दिया जाना चाहिए कि भूकंप में चूँकि पृथ्वी काँपती है इसलिए भूकंपों के आने का कारण केवल पृथ्वी में ही खोजा जाए !!किसी चार पाई के एक पावे को पकड़कर यदि खींचा जाए तो उसके शेष तीन पावे खींचने नहीं पड़ते हैं अपितु स्वतःखिंचे चले आते हैं ऐसे ही पंचतत्वों के सामूहिक योगदान के बिना अच्छी बुरी कोई भी घटना घट ही नहीं सकती है | 


        


-'वातज', 'पित्तज' और 'कफज' 


     बात पित्त कफ की पद्धति से यदि बीमारियों को पहचाना जा सकता है और उनकी चिकित्सा की जा सकती है तो भूकम्पों की पहचान क्यों नहीं हो सकती है और उन्हें रोकने के उपाय क्यों नहीं सोचे जा सकते !और यदि बीमारियाँ रोकी जा सकती हैं तो  भूकंप क्यों नहीं ! प्रयास तो किए ही जा सकते हैं !


     शास्त्र की मान्यता है कि इस संपूर्ण ब्रह्माण्ड का निर्माण पंचतत्वों से हुआ है सृष्टि के सभी पदार्थों का निर्माण पंचतत्वों से हुआ है समुद्रों का निर्माण पंचतत्वों से हुआ है इसीलिए समुद्र में 'बाढ़व' नामकी अग्नि भी होती है | पृथ्वी का निर्माण पंचतत्वों से हुआ है मनुष्य समेत सभी जीवों का निर्माण पंचतात्विक पद्धति से ही हुआ है | पंचतत्वों में पृथ्वी अग्नि वायु जल आकाश होते हैं सभी पदार्थों में  ये पाँचों तत्व उपस्थित रहते हैं | 


पुराणों में 12 सूर्य एवं 49 प्रकार के वायु का वर्णन मिलता है!जिनमें 7 प्रकार के वायु प्रमुख वायु माने गए हैं उनके नाम आवह, प्रवह,संवह ,उद्वह,विवह,परिवह,परावह आदि 7 हैं ये सातो ब्रह्मलोक , इन्द्रलोक ,अंतरिक्ष , भूलोक की पूर्व दिशा , भूलोक की पश्चिम दिशा , भूलोक की उत्तर दिशा और भूलोक की दक्षिण दिशा में विचरण करते हैं |







 'वातज' भूकंपों के लक्षण (वायु से होने वाले भूकंप )


       वात प्रकृति के भूकंपों  से प्रभावित क्षेत्र के आकाश में धुआँ धुँआ सा दिखाई पड़ने लगता है  तेज हवाएँ  आँधी तूफान का प्रकोप भी बढ़ सकता है ! सूर्य की किरणें धूमिल दिखने लगती हैं !अनाज, जल और औषधियों की कमी होने लगाती है फसलों का नुक्सान होने लगता है ! शरीरों में सूजन ,दमा एवं खाँसी से उत्पन्न पीड़ा बढ़ने  लगती है ।समाज में ज्वर रोग तथा  पागलपन की परेशानियाँ बढ़ने लगती हैं| अच्छे खासे शिक्षित और समझदार लोग भी न केवल पागलों जैसी दलीलें देते दिखने लगते हैं अपितु उपद्रवी गतिविधियों में सम्मिलित होते देखे जाने लगते हैं | डॉक्टरों ,सैनिकों, महिलाओं ,फिल्मी कलाकारों एवं कारीगरों और व्यापारियों को अकारण अचानक नुक्सान होने लगता है जिससे ये वर्ग बहुत बेचैन रहने लगता है  |ऐसे भूकंप संभावित  क्षेत्र के लोगों को दिमागी चक्कर आने की बीमारियाँ बढ़ने लगती हैं अचानक ऐसा गुस्सा आता है कि मरने मारने को उतारू हो जाते हैं इस भूकंप से प्रभावित क्षेत्रों के लोग !साँस फूलने संबंधी बीमारियाँ बढ़ने लग जाती हैं | ऐसे लक्षणों के मिलने पर ऐसी संभावना बनने लगती है कि यहाँ के वायु मंडल में 'वातज' भूकंप घटित होने की संभावना बनते दिख रही है इसी भावना से प्रकृति लक्षणों की परीक्षा भूकंप की दृष्टि से प्रारंभ कर देनी चाहिए !



'पित्तज'भूकंपों के लक्षण - 


   भूकंप से प्रभावित क्षेत्र के वायुमण्डल में भूकंप आने के 6 महीने पहले से सूर्य की उष्ण उत्तेजक किरणें वायु मंडल में अपना प्रभाव बढ़ाने लगती हैं जिससे में व्याप्त है अग्नि !इसलिए अग्नि से सामान्य वायु भी इस समय ज्वलन शील गैस जैसे गुणों से युक्त होकर विचरण कर रही है इसलिए कभी भी कहीं भी आग लगने की दुर्घटनाएँ घट सकती हैं कुएँ तालाब नदियाँ आदि बहुत जल्दी सूखने लगेंगी !वर्षा की संभावनाएँ अत्यंत कमजोर हो जाएंगी भूकंप से प्रभावित क्षेत्र में अगले 50 दिनों तक वर्षा की संभावनाएँ बिलकुल न के बराबर होंगी !      गर्मी से संबंधित रोग विशेष रूप से पनपेंगे  इसके अलावा इस समय दिशाओं में जलन, तारे टूटना ,उल्कापात होने जैसी घटनाएँ भी देखने सुनने को मिल सकती हैं ।      इस भूकंप के कारण ही नदियाँ कुएँ तालाब आदि का जलस्तर तेजी से घटेगा !पित्त अर्थात गर्मी से संबंधित रोगों से सतर्क रहना चाहिए !      यहीं से शुरू होकर रोहतक में लोगों के आपसी सम्बन्ध दिनोंदिन तनाव पूर्ण होते चले जाएँगे लोग एक दूसरे मरने पर उतारू हो जाएंगे निकट भविष्य में अशांति संभव है लोगों के आपसी सम्बन्धों में कटुता बढ़ती चली जाएगी !    इतना ही नहीं अपितु इस भूकंप के दुष्प्रभाव से शरीर में जलन की बीमारियाँ बढ़ेंगी, तरह तरह के ज्वर फैलेंगे बिचर्चिका और बिसर्पिका जैसी त्वचा सम्बन्धी बीमारियाँ एवं पीलिया रोग निकट भविष्य में बढ़ने की सम्भावना है !


 'कफज' भूकंपों के लक्षण-


प्राचीन विज्ञान के हिसाब से इन दोनों भूकंपों के केंद्र जल से संबंधित हैं अतः जम्मू-कश्मीर में नदियों तालाबों के किनारे और ऐसे जल के संपर्क में अधिक रहने वाले लोग जल जनित बड़ी बीमारियों के शिकार होंगे !इन क्षेत्रों में तालाब आदि के संपर्क में रहने वाले लोग या गंदे जल का सेवन करने वाले लोग हों या गंदे जल में नहाने वाले लोग इस समय कई बड़ी बीमारियों के शिकार हो सकते हैं कुल मिलाकर पानी के प्रदूषण से प्रदूषित वायु का स्पर्श होने से भी हो सकती हैं उल्टी दस्त एवं ज्वर जैसी अधिक दिनों तक चलने वाली कई बड़ी बीमारियाँ सरकार इनसे बचाव के लिए समय रहते यदि सचेत नहीं हो सकी तो इस वर्ष ये बीमारियाँ सरकार के नियंत्रण से बाहर भी जा सकती हैं पानी के किनारे रहने वाली जनता इन्हींबीमारियों से  भीषण त्राहित्राहि कर उठेगी ।      इस भूकंप  से नदी के किनारे बसने वाले लोगों की बहुत बड़ी क्षति होगी । जल जनित बीमारियों जैसी बड़ी बाधाएँ निकट भविष्य में बहुत अधिक होना संभव हैं ।इस भूकंप  से नदी के किनारे बसने वाले लोगों की बहुत बड़ी क्षति होगी । जल जनित बीमारियों से बचने के लिए नदी तालाब आदि के जलों के संपर्क में रहने से अधिक से अधिक बचने का प्रयास करें !




       


जम्मू-कश्मीर -



जम्मू-कश्मीर में भूकंप :28-2- 2017 को रात 8 बजे तीव्रता 5.5 का 'कफज 'भूकंप ! 


        जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले में मंगलवार को रात करीब 8 बजे भूकंप के तेज झटके लगे हैं. भूकंप के झटकों की तीव्रता रियेक्टर पैमाने पर 5.5 बताई जा रही है. इस भूकंप का केंद्र तजाकिस्तान में पाया गया है.


      जम्मू-कश्मीर में आए भूकंप की शास्त्र वर्णित विशेषताएँ!  


   ऐसे 'कफज' या 'चन्द्रज' भूकंप 


     प्राचीन विज्ञान के हिसाब से इन दोनों भूकंपों के केंद्र जल से संबंधित हैं अतः जम्मू-कश्मीर में नदियों तालाबों के किनारे और ऐसे जल के संपर्क में अधिक रहने वाले लोग जल जनित बड़ी बीमारियों के शिकार होंगे !इन क्षेत्रों में तालाब आदि के संपर्क में रहने वाले लोग या गंदे जल का सेवन करने वाले लोग हों या गंदे जल में नहाने वाले लोग इस समय कई बड़ी बीमारियों के शिकार हो सकते हैं कुल मिलाकर पानी के प्रदूषण से प्रदूषित वायु का स्पर्श होने से भी हो सकती हैं उल्टी दस्त एवं ज्वर जैसी अधिक दिनों तक चलने वाली कई बड़ी बीमारियाँ सरकार इनसे बचाव के लिए समय रहते यदि सचेत नहीं हो सकी तो इस वर्ष ये बीमारियाँ सरकार के नियंत्रण से बाहर भी जा सकती हैं पानी के किनारे रहने वाली जनता इन्हींबीमारियों से  भीषण त्राहित्राहि कर उठेगी ।      इस भूकंप  से नदी के किनारे बसने वाले लोगों की बहुत बड़ी क्षति होगी । जल जनित बीमारियों जैसी बड़ी बाधाएँ निकट भविष्य में बहुत अधिक होना संभव हैं । इस भूकंप का फल 15-2-2017तक विशेष रहेगा !       प्राचीन विज्ञान के हिसाब से ऐसे भूकंप का केंद्र जल से संबंधित होता है !जम्मू-कश्मीर के क्षेत्र में जलजनित गैसों के प्रकोप से ये भूकम्प आया  है और उन्हीं गैसों के प्रकोप से ज्वर आदि बीमारियाँ अचानक बढ़ती चली जाएँगी !इस भूकंप का असर 15-2-2017तक विशेष रहेगा उसके बाद धीरे धीरे सामान्य होता चला जाएगा और बीमारियाँ भी समय के साथ साथ धीरे धीरे घटती चली जाएँगी !


     इस भूकंप  से नदी के किनारे बसने वाले लोगों की बहुत बड़ी क्षति होगी । जल जनित बीमारियों से बचने के लिए नदी तालाब आदि के जलों के संपर्क में रहने से अधिक से अधिक बचने का प्रयास करें !



भूकंप (कफज )18-4-2017जम्मू-कश्मीर में



जम्मू-कश्मीर में हिली धरती, किश्तवाड़ में 5 की तीव्रता का भूकंपइस्लामाबाद सहित कई शहरों में भूकंप के झटके       पाकिस्तान के कई शहरों में मंगलवार सुबह भूकंप के झटके महसूस किए गए। रिक्टर पैमाने पर इनकी तीव्रता 5.0 मापी गई। भूकंप के झटके इस्लामाबाद और लाहौर सहित विभिन्न शहरों में महसूस किए गए।


हालांकि अब तक किसी प्रकार के जान माल के नुकसान की कोई खबर नहीं हैं। भूकंप का केंद्र अफगानिस्तान का हिंदू कुश क्षेत्र बताया जा रहा है।


भूकंप का फल -प्राचीन विज्ञान के हिसाब से इस भूकंप का केंद्र जल से संबंधित हैं जम्मू-कश्मीर में नदियों तालाबों के किनारे और ऐसे जल के संपर्क में अधिक रहने वाले लोग जल जनित बड़ी बीमारियों के शिकार होंगे !इन क्षेत्रों में तालाब आदि के संपर्क में रहने वाले लोग या गंदे जल का सेवन करने वाले लोग हों या गंदे जल में नहाने वाले लोग इस समय कई बड़ी बीमारियों के शिकार हो सकते हैं कुल मिलाकर पानी के प्रदूषण से प्रदूषित वायु का स्पर्श होने से भी हो सकती हैं उल्टी दस्त एवं ज्वर जैसी अधिक दिनों तक चलने वाली कई बड़ी बीमारियाँ सरकार इनसे बचाव के लिए समय रहते यदि सचेत नहीं हो सकी तो इस वर्ष ये बीमारियाँ सरकार के नियंत्रण से बाहर भी जा सकती हैं पानी के किनारे रहने वाली जनता इन्हींबीमारियों से  भीषण त्राहित्राहि कर उठेगी ।वर्षा का प्रकोप होगा !


     इस भूकंप  से नदी के किनारे बसने वाले लोगों की बहुत बड़ी क्षति होगी । जल जनित बीमारियों जैसी बड़ी बाधाएँ निकट भविष्य में बहुत अधिक होना संभव हैं ।


       प्राचीन विज्ञान के हिसाब से ऐसे भूकंप का केंद्र जल से संबंधित होता है !जम्मू-कश्मीर के क्षेत्र में जलजनित गैसों के प्रकोप से ये भूकम्प आया  है इस भूकंप  से नदी के किनारे बसने वाले लोगों की बहुत बड़ी क्षति होगी । जल जनित बीमारियों से बचने के लिए नदी तालाब आदि के जलों के संपर्क में रहने से अधिक से अधिक बचने का प्रयास करें!


      भूकंप का दिखा असर -भूकंप आने के कुछ  पहले से ही ये क्षेत्र भीषण वर्षा और बाढ़  शिकार हुआ इसी का असर उत्तर क्षेत्र  में 6 महीने तक दिखने की संभावना है |  



  भूकंप भारत पाक सीमा पर 8 -7- 2017 \15.43 बजे तीव्रता 5.2 'चन्द्रज' भूकंपइस भूकंप का फल -      इस समय भूकंप की सूचना के अनुशार भारत पकिस्तान के बीच लम्बे समय से चलते आ रहे संघर्ष  को घटाने के प्रभावी प्रयास किए जा सकते हैं जिनमें सफलता मिलने की संभावना विशेष अधिक होगी !भारत और पाकिस्तान की सीमा में रहने वाले लोगों की मानसिकता बदलने का संकेत देता है भूकंप |फिर भी भारत विरोधी लक्ष्य लेकर जीने वाले आतंकवादियों से तो सतर्कता बरती जानी ही चाहिए किंतु स्थानीय लोगों  में इस समय उन्माद की मात्रा अत्यंत घटती चलीजाएगी | आतंकवादियों को इस समय यहाँ के लोगों का पत्थरबाजी और पागलपन जैसा बिल्कुल सहयोग नहीं मिलेगा जिससे निराश हताश आतंकी कोई चोट देने में भले सफल हो  जाएँ बाकी सामान्य रूप से अगले 6 महीनों तक यहाँ का वातावरण शांतिप्रिय बना रहेगा ! जम्मू कश्मीर में फैले उन्माद की शांति की घोषणा करती भूकंपीय शक्तियाँ !भारत और पकिस्तान के आपसी संबंध सुधारने की मानसिकता बनाने की घोषणा !प्राचीन विज्ञान के हिसाब से चंद्र किरणों के प्रभाव से यह भूकंप प्रकट हुआ है 'चन्द्रज' भूकंप होने के कारण इसमें वर्षा और बाढ़ से सतर्कता बरती जानी चाहिए भारत पाक सीमा में पड़ने वाले नदी सरोवरों में जल की अत्यधिक वृद्धि होगी नदी सरोवरों के आस पास रहने वाले लोगों में जल जनित बीमारियों का खतरा बहुत अधिक बढ़ जाएगा ! भूकंप का केंद्र चंद्र से संबंधित है इसलिए जम्मू-कश्मीर एवं उससे जुड़ी हुई पाक सीमा में पड़ने वाले नदियों तालाबों के किनारे और ऐसे जल के संपर्क में अधिक रहने वाले लोग जल जनित बड़ी बीमारियों के शिकार होंगे !   इन क्षेत्रों में तालाब आदि के संपर्क में रहने वाले लोग नहाने धोने एवं पीने के पानी का भी विशेष सतर्कता से प्रयोग करें क्योंकि उसका असर विपरीत होने की अधिक संभावनाएँ रहेंगी !सीमा पर तैनात सैनिकों के स्वास्थ्य को लेकर विशेष सावधानी बरती जानी चाहिए |पत्थरवाजों से निरंतर जूझते सेना के जवानों को सतर्कता तो बरतनी ही पड़ेगी किंतु इस 'चन्द्रज'भूकंप के बाद इस क्षेत्र में उत्तेजना फैलाने वाले वर्ग को भी सद्बुद्धि आएगी !30 -8-2017 तक के लिए वातावरण शांत हो जाएगा ! भारत पाक सीमा पर ये शांति20-12-2017 तक रहेगी !इसी समय तक जलजनित कई बड़ी बीमारियों के शिकार हो सकते हैं यहाँ रहने वाले लोग ! कुल मिलाकर पानी के प्रदूषण से प्रदूषित वायु का स्पर्श होने से भी हो सकती हैं उल्टी दस्त एवं ज्वर जैसी अधिक दिनों तक चलने वाली कई बड़ी बीमारियाँ सरकार इनसे बचाव के लिए समय रहते यदि सचेत नहीं हो सकी तो उपर्युक्तसमय तक ये बीमारियाँ सरकार के नियंत्रण से बाहर भी जा सकती हैं पानी के किनारे रहने वाली जनता इन्हीं बीमारियों से  विशेष परेशान होगी | इस भूकंप  से नदी के किनारे बसने वाले लोगों की क्षति होगी । जल जनित बीमारियों जैसी बड़ी बाधाएँ निकट भविष्य में अधिक होना संभव हैं।इस भूकंप का विशेष प्रभाव 30 -8-2017 तक रहेगा !भारत पाक सीमा पर ये शांति20-12-2017 तक रहेगी किंतु जैसे जैसे समय बीतता जाएगा वैसे वैसे भूकंप का प्रभाव घटता जाएगा और भूकंप से सम्बंधित कही गई बातें भी सामान्य होती चली जाएँगी !     इस  क्षेत्र में जलजनित गैसों के प्रकोप से ये भूकम्प आया  है और उन्हीं गैसों के प्रकोप से ज्वर आदि बीमारियाँ अचानक बढ़ती चली जाएँगी !जैसे जैसे समय बीतेगा वैसे वैसे स्थिति सामान्य  होती जाएगी | 


      पुनः  इस भूकंप  से नदी के किनारे बसने वाले लोगों की बहुत बड़ी क्षति होगी । जल जनित बीमारियों से बचने के लिए नदी तालाब आदि के जलों के संपर्क में रहने से अधिक से अधिक बचने का प्रयास करें 


      भूकंप के बाद दिखा भूकंप का प्रभाव -


 चूँकि 8 -7- 2017 वाले इस भूकंप के द्वारा शान्ति का सन्देश दिया जा रहा है इसलिए भारत पाक सीमा पर भारतीयों और पाकिस्तानियों के द्वारा तनाव घटाने के प्रयास प्रारम्भ होंगे किंतु 8 -7- 2017 को म्यांमार में आए भूकंप से पूर्वी भारत समेत चीन आदि का वो संयुक्त क्षेत्र प्रभावित हुआ था वो उस क्षेत्र में उन्माद फैलाने वाला या उत्तेजना पैदा करने वाला था इसलिए वहाँ के लोग वहाँ पर तो उत्तेजना पहला ही सकते हैं साथ ही भारत के जिस भी भाग में उत्तेजना फैलती है उसके लिए देश के पूर्वोत्तर भूकंप प्रभावित भाग में रहने वाले लोगों को या इस सीमा से जुड़े चीन आदि देशों को जिम्मेदार माना जाना चाहिए !






दिल्ली -


22-8-2016 एवं 10-9-2016 को दिल्ली और हरियाणा में आए भूकम्प का फल !


    इस वर्ष दिल्ली और हरियाणा के यमुना किनारे वाले क्षेत्रों में वर्षाजनित ज्वर आदि बीमारियों से टूटेगा कई वर्षों का रिकार्ड !महामारी का स्वरूप भी ले सकती हैं ये बीमारियाँ सरकार जनता की सुरक्षा के लिए सतर्क रहे !25 अक्टूबर तक रहेगी अधिक दिक्कत !


       प्राचीन विज्ञान के हिसाब से इन दोनों भूकंपों के केंद्र जल से संबंधित हैं अतः दिल्ली और हरियाणा में यमुना के किनारे और यमुना जल के संपर्क में रहने वाले लोग जल जनित बड़ी बीमारियों के शिकार होंगे !जमुना नदी के अलावा भी इन क्षेत्रों में तालाब आदि के संपर्क में रहने वाले लोग या गंदे जल का सेवन करने वाले लोग हों या गंदे जल में नहाने वाले लोग इस समय कई बड़ी बीमारियों के शिकार हो सकते हैं कुल मिलाकर पानी के प्रदूषण से प्रदूषित वायु का स्पर्श होने से भी हो सकती हैं उल्टी दस्त एवं ज्वर जैसी अधिक दिनों तक चलने वाली कई बड़ी बीमारियाँ सरकार इनसे बचाव के लिए समय रहते यदि सचेत नहीं हो सकी तो इस वर्ष ये बीमारियाँ सरकार के नियंत्रण से बाहर भी जा सकती हैं पानी के किनारे रहने वाली जनता इन्हीं बीमारियों से  भीषण त्राहि त्राहि कर उठेगी ।इस  भूकंप  से यमुना नदी के किनारे बसने वाले लोगों की बहुत बड़ी क्षति होगी । जल जनित बीमारियों जैसी बड़ी बाधाएँ निकट भविष्य में बहुत अधिक होना संभव हैं । इस भूकंप का फल आगामी 6 महीनों तक रहेगा !प्राचीन विज्ञान के हिसाब से ऐसे भूकंप का केंद्र जल से संबंधित होता है !दिल्ली और हरियाणा के क्षेत्र में जलजनित गैसों के प्रकोप से ये दोनों भूकम्प आए हैं और उन्हीं गैसों के प्रकोप से ज्वर आदि बीमारियाँ अचानक बढ़ती चली जाएँगी !इस भूकंप का असर 45 दिनों तक अधिक रहेगा उसके बाद धीरे धीरे सामान्य होता चला जाएगा और बीमारियाँ भी समय के साथ साथ धीरे धीरे घटती चली जाएँगी !बीमारियों से कई दशकों का रिकार्ड टूटेगा इस वर्ष !



दिल्ली में 17 -11-2016 को प्रातः 4:30 बजे आया भूकंप ! जानिए कि क्या होगा इसका असर !


दिल्ली और एनसीआर में गुरुवार तड़के करीब 4:30 बजे भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए. रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 4.2 मापी गई. राजस्थान और उत्तर भारत के कई राज्यों में भी भूकंप के झटके महसूस किए गए. 


इस भूकंप का फल -   इस भूकंप से प्रभावित क्षेत्र के आकाश में धुआँ धुँआ सा दिखाई पड़ने लगेगा तेज हवाएँ चलना भी संभव है आँधी तूफान का प्रकोप भी बढ़ सकता है ! सूर्य की किरणें भी धूमिल दिखेंगी अनाज, जल और औषधियों का नाश होगा !शरीरों में सूजन ,दमा एवं खाँसी से उत्पन्न पीड़ा बढ़ने  लगेगी  ।ज्वर रोग तथा  पागलपन की परेशानियाँ बढ़ेंगी इस क्षेत्र के अच्छे खासे शिक्षित और समझदार लोग भी न केवल पागलों जैसी दलीलें देते दिखेंगे अपितु उपद्रवी गतिविधियों में सम्मिलित होने में भी गर्व महसूस  करेंगे ।डॉक्टरों ,सैनिकों, महिलाओं नाचने गाने वालों ,फिल्मी कलाकारों एवं कारीगरों और व्यापार करने वाले लोगों पर विशेष भारी है ये भूकंप !ऐसे भूकंप से प्रभावित क्षेत्र के लोगों को दिमागी चक्कर आने की बीमारियाँ बढ़ती हैं अचानक ऐसा गुस्सा आता है कि मरने मारने को उतारू हो जाते हैं इस भूकंप से प्रभावित क्षेत्रों के लोग ! साँस फूलने संबंधी बीमारियाँ भयंकर रूप लेती जाती हैं ऐसे भूकंपों का प्रभाव तो 180 दिनों का होता है किंतु जैसे जैसे समय बीतता है वैसे वैसे  घटता चला जाता है तब भी 45 दिन विशेष भारी होते हैं ।दिल्ली को स्वास्थ्य समस्याओं के साथ साथ आतंकवादी समस्याओं से भी विशेष सावधान रहना होगा ! इसलिए 1-1-2017 तक ऐसी  परिस्थिति बनी रहेगी ! 2-5जनवरी को ईश्वर की ओर से मिल सकता है अगला भूकंपीय सन्देश वो भूकंप ईश्वर के अगले आदेश से समाज को अवगत कराएगा उसके आधार पर आगे क्या होगा उसके वृत्तान्त का वर्णन किया जा सकेगा ! 



6-2-2017 को 22.35 बजे दिल्ली में आया 'वातज' भूकंप !इसकी तीव्रता 6.00


"दिल्ली एनसीआर में देर शाम भूकंप के झटके महसूस किए गए. देहरादून से भी खबर है कि भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए हैं. भूकंप का केंद्र उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में बताया गया है. रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 5.3 मापी गई है.देहरादून , कुमाऊं, गढ़वाल ,पश्चिमी यूपी एवं पंजाब में भी झटके महसूस किए गए !"   अब देखिए इस भूकंप का फल !इस भूकंप का फल -    इस भूकंप से प्रभावित क्षेत्र के आकाश में धुआँ धुँआ सा दिखाई पड़ने लगेगा तेज हवाएँ चलना भी संभव है आँधी तूफान का प्रकोप भी बढ़ सकता है ! सूर्य की किरणें भी धूमिल दिखेंगी अनाज, जल और औषधियों का नाश होगा !   शरीरों में सूजन ,दमा एवं खाँसी से उत्पन्न पीड़ा बढ़ने  लगेगी  ।ज्वर रोग तथा  पागलपन की परेशानियाँ बढ़ेंगी इस क्षेत्र के अच्छे खासे शिक्षित और समझदार लोग भी न केवल पागलों जैसी दलीलें देते दिखेंगे अपितु उपद्रवी गतिविधियों में सम्मिलित होने में भी गर्व महसूस  करेंगे ।     डॉक्टरों ,सैनिकों, महिलाओं नाचने गाने वालों ,फिल्मी कलाकारों एवं कारीगरों और व्यापार करने वाले लोगों पर विशेष भारी है ये भूकंप !ऐसे भूकंप से प्रभावित क्षेत्र के लोगों को दिमागी चक्कर आने की बीमारियाँ बढ़ती हैं अचानक ऐसा गुस्सा आता है कि मरने मारने को उतारू हो जाते हैं इस भूकंप से प्रभावित क्षेत्रों के लोग !     साँस फूलने संबंधी बीमारियाँ भयंकर रूप लेती जाती हैं ऐसे भूकंपों का प्रभाव तो 180 दिनों का होता है किंतु जैसे जैसे समय बीतता है वैसे वैसे घटता चला जाता है तब भी 45 दिन विशेष भारी होते हैं ।दिल्ली को स्वास्थ्य समस्याओं के साथ साथ आतंकवादी समस्याओं से भी विशेष सावधान रहना होगा ! इसलिए 29-3-2017 तक ऐसी  परिस्थिति बनी रहेगी !     फिल हाल अभी इसमें रूद्रप्रयाग  दिल्ली पिथौरागढ़ ,देहरादून , कुमाऊं, गढ़वाल ,पश्चिमी यूपी एवं पंजाब समेत समस्त क्षेत्र को आतंकवादी हमलों से विशेष सावधान रहना चाहिए ! सरकार को ध्यान देने की आवश्यकता है कि इस क्षेत्र में कोई तनाव न तैयार होने पाए !



भूकंप :दिल्ली-एनसीआर में 2- 6 -2017,4.24 AM,तीव्रता 5,'सूर्यज' भूकंप !भूकंपकेंद्र 'रोहतक'


अब जानिए क्या है इस भूकम्प का फल -   भूकंपीय क्षेत्र में अग्नि सम्बन्धी समस्याएँ बहुत अधिक भी बढ़ सकती हैं इस समय भूकंप से प्रभावित क्षेत्र में वायुमण्डल में व्याप्त है अग्नि !इसलिए अग्नि से सामान्य वायु भी इस समय ज्वलन शील गैस जैसे गुणों से युक्त होकर विचरण कर रही है इसलिए कभी भी कहीं भी आग लगने की दुर्घटनाएँ घट सकती हैं कुएँ तालाब नदियाँ आदि बहुत जल्दी सूखने लगेंगी !वर्षा की संभावनाएँ अत्यंत कमजोर हो जाएंगी भूकंप से प्रभावित क्षेत्र में अगले 50 दिनों तक वर्षा की संभावनाएँ बिलकुल न के बराबर होंगी !      गर्मी से संबंधित रोग विशेष रूप से पनपेंगे  इसके अलावा इस समय दिशाओं में जलन, तारे टूटना ,उल्कापात होने जैसी घटनाएँ भी देखने सुनने को मिल सकती हैं ।      इस भूकंप के कारण ही नदियाँ कुएँ तालाब आदि का जलस्तर तेजी से घटेगा !पित्त अर्थात गर्मी से संबंधित रोगों से सतर्क रहना चाहिए !      यहीं से शुरू होकर रोहतक में लोगों के आपसी सम्बन्ध दिनोंदिन तनाव पूर्ण होते चले जाएँगे लोग एक दूसरे मरने पर उतारू हो जाएंगे निकट भविष्य में अशांति संभव है लोगों के आपसी सम्बन्धों में कटुता बढ़ती चली जाएगी !उचित होगा कि  17 -7 - 2017 तक लोगों के आपसी विश्वास को बढ़ाए  और बनाए रखा जाए ।वैसे तो इस भूकंप का दुष्प्रभाव 5 -12-2017 तक रहेगा इसलिए सरकार की ओर से भी विशेष  सावधानी बरती जानी चाहिए  !     इतना ही नहीं अपितु इस भूकंप के दुष्प्रभाव से शरीर में जलन की बीमारियाँ बढ़ेंगी, तरह तरह के ज्वर फैलेंगे बिचर्चिका और बिसर्पिका जैसी त्वचा सम्बन्धी बीमारियाँ एवं पीलिया रोग निकट भविष्य में बढ़ने की सम्भावना है !इसका विशेष दुष्प्रभाव अभी से लेकर17 -7 - 2017 तक रहेगा किंतु जैसा जैसा समय बीतता जाएगा वैसा वैसा घटता जाएगा दुष्प्रभाव !











पकिस्तान  


31-8-2016 सुबह तड़के PAK-चीनभूकंप के ज़बरदस्त झटकों से 'थर्राया'


      31 अगस्त 2016 से भारत के विरुद्ध चीन और पकिस्तान के संयुक्त प्रयास प्रारम्भ होंगे जिनसे भारत को बड़ा नुक्सान पहुँचा सकते हैं !इसलिए सरकार  को बहुत सतर्क रहना चाहिए फरवरी 2017 तक पाकिस्तान और चीन मिलकर कोई बड़ा षड्यंत्र कर सकते हैं भारत के खिलाफ !इसलिए इस समय के बीच भारत सरकार  को  भी बात पर भरोसा नहीं करना चाहिए !


       इस  भूकंप के प्रभाव से चीन और पाकिस्तान के लोगों में आपसी शांति का कारक होगा दोनों देशों आपसी मित्रता बढ़ेगी ।इस भूकंप के प्रभाव से यहाँ के लोगों के बीच आपसी भाईचारे की भावना का निर्माण हो!लोगों के बीच आपसी संबंध सामान्य बनाने के प्रयास फलीभूत होंगे ! सहन शीलता बढ़ेगी इस भूकंप का फल आगामी 6 महीनों तक रहेगा !



 भूकंप भारत और पाकिस्तान में - 1-10-2016 \ दोपहर 1:34 मिनट पर तीव्रता 5.5 थी।    भूकंप के झटके पेशावर, गिलगिट, इस्लामाबाद और खैबर -पख्तूनख्वा प्रांत के कुछ हिस्सो में महसूस किए गए।इस भूकंप के झटके कश्मीर घाटी में भी महसूस किए गए !     इस भूकंप का फल -   भूकंप से प्रभावित क्षेत्र के आकाश में धुआँ धुँआ सा दिखाई पड़ने लगेगा तेज हवाएँ चलेंगी संभव है आँधी तूफान का प्रकोप भी बढ़े ! सूर्य की किरणें भी धूमिल दिखेंगी अनाज, जल और औषधियों का नाश होगा !   शरीरों में सूजन ,दमा एवं खाँसी से उत्पन्न पीड़ा बढ़ने  लगेगी  ।ज्वर रोग तथा  पागलपन की परेशानियाँ बढ़ेंगी इस क्षेत्र के अच्छे खासे शिक्षित और समझदार लोग भी न केवल पागलों जैसी दलीलें देते दिखेंगे अपितु उपद्रवी गतिविधियों में सम्मिलित होने में गर्व महसूस  करेंगे ।डॉक्टरों ,सैनिकों, महिलाओं नाचने गाने वालों ,फिल्मी कलाकारों एवं कारीगरों और व्यापार करने वाले लोगों पर विशेष भारी है ये भूकंप !इस भूकंप के आने के बाद अक्टूबर 2016 की 3,4,7,15,30तारीखों को एवं नवंबर की 14 तारीख को भूकंप आने की प्रबल सम्भावना बनी रहती है किंतु यदि ऐसा  हुआ तो ऐसे भूकंप से प्रभावित देशों के शासकों के लिए बड़ा संकट पैदा करता है यह भूकम्प !ऐसे भूकंप से प्रभावित क्षेत्र के लोगों को दिमागी चक्कर आने की बीमारियाँ बढ़ती हैं अचानक ऐसा गुस्सा आता है कि मरने मारने को उतारू हो जाते हैं इस भूकंप से प्रभावित क्षेत्रों के लोग !साँस फूलने संबंधी बीमारियाँ भयंकर रूप लेती जाती हैं ऐसे भूकंपों का प्रभाव तो 180 दिनों का होता है किंतु जैसे जैसे समय बीतता है वैसे वैसे घटता जाता है तब भी 45 दिन विशेष भारी होते हैं ।यदि बीच में कोई दूसरे भूकंप आए या प्रकृति में इससे जुड़ी कोई और घटना घटी तो प्रभाव मिश्रित अर्थात मिला जुला दिखने लगता है ! चूँकि इस भूकंप का केंद्र पाकिस्तान में था और इसका प्रभाव कश्मीर तक में था इसलिए इस भूकंप से प्रभावित क्षेत्र के लोग मरने मारने के लिए उतावले हो  सकतें हैं जिनके पागलपन को पचाने की सामर्थ्य भारत को पैदा करने होगी !इसमें ध्यान देने लायक विशेष बात यह है कि इस भूकंप के झटके इस्लामाबाद में तो लगे हैं किंतु दिल्ली में नहीं लगे हैं !इस्लामाबाद पाकिस्तान की राजधानी होने के कारण पाकिस्तान की सत्ता का केंद्र इस्लामाबाद होना स्वाभाविक है देश से संबंधित सारे निर्णय वहीं लिया जाना भी स्वाभाविक है ! इसलिए हमें यह निश्चित मानना चाहिए कि इस पागलपन में पकिस्तान की सरकार तो सम्मिलित होगी किंतु भारत की सरकार परिपक्वता का परिचय देगी तथापि भारत सरकार को 14 नवम्बर तक अपना सुरक्षा तंत्र विशेष मजबूत रखना चाहिए।भूकंप से प्रभावित पाकिस्तानियों और भूकंपीकश्मीरियों का ये पागलपन भारत को कोई बड़ी चोट न दे जाए ! क्योंकि पाकिस्तानी और कश्मीरी अलगाववादी बड़ी वारदातों को भी अंजाम दे सकते हैं इससे इनकार नहीं किया जा सकता है ।






असम -



15-11-2016 को प्रातः 7.40 बजे 5.0 तीव्रता का असम में भूकंप

   मंगलवार को नॉर्थ ईस्ट के 7 राज्यों में 5.0 तीव्रता का पैत्तिक प्रवृत्ति  का भूकंप (कृ)आया , भूकंप का केंद्र बांग्लादेश से सटे असम के करीमगंज जिले में था. 
   इस समय इस भूकंपीय क्षेत्र के वायुमण्डल में व्याप्त है अग्नि !इसलिए अग्नि से सामान्य वायु भी इस समय  ज्वलन शील गैस जैसे गुणों से युक्त होकर विचरण कर रही है । इसके अलावा इस समय दिशाओं में जलन, तारे टूटना ,उल्कापात होने जैसी घटनाएँ भी देखने सुनने को मिल सकती हैं ।
     इस भूकंप के कारण ही नदियाँ कुएँ तालाब आदि अबकी बार बहुत जल्दी ही सूखते चले जाएँगे !यहीं से शुरू होकर भारत और बांग्लादेश के मध्य आपसी सम्बन्ध दिनोंदिन अत्यंत तनाव पूर्ण होते चले जाएँगे निकट भविष्य में भारत और बांग्लादेश बीच आपसी सम्बन्धों में कटुता इतनी अधिक बढ़ती चली जाएगी कि अभी से सतर्कता बरती जानी बहुत आवश्यक है ।इसलिए उचित होगा कि भारत पड़ोसी देश पर कम से कम मई 2017  तक विश्वास करना बिलकुल बंद कर दे पड़ोसी के द्वारा कभी भी कैसा भी कोई भी विश्वास घात संभव है !
     इसके अलावा भी असम, मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर आदि में लोगों को अकारण क्रोध आएगा और आपस में वैमनस्य फैलेगा समाज में विद्रोह का वातावरण बनेगा जो इन क्षेत्रों की अशांति का प्रमुख कारण  होगा !केंद्र सरकार को इस क्षेत्र पर विशेष ध्यान रखते हुए सावधान रहना चाहिए यहाँ थोड़ी भी विद्रोह की चिनगारी बहुत बड़े ज्वालपुंज को जन्म दे सकती है सरकार और समाज सतर्क रहे !
    इतना ही नहीं अपितु इस भूकंप के दुष्प्रभाव से शरीर में जलन की बीमारियाँ बढ़ेंगी, तरह तरह के ज्वर फैलेंगे बिचर्चिका और बिसर्पिका जैसी त्वचा सम्बन्धी बीमारियाँ एवं पीलिया रोग निकट भविष्य में बहुत अधिक बढ़ जाने की सम्भावना है !सरकार एवं स्वास्थ्य विभाग ओर से इस दिशा में विशेष सतर्कता बरती जानी चाहिए !इसका विशेष दुष्प्रभाव अभी से लेकर मई  2017 तक रहेगा किंतु जैसा जैसा समय बीतता जाएगा वैसा वैसा घटता जाएगा दुष्प्रभाव



भूकंप 11-12-2016 ,7.27AM,तीव्रता 4.2, पूर्वोत्तर के सभी सात राज्य !


                                          पित्तज भूकंप :   "पूर्वोत्तर के सभी सात राज्य- असम, मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर आदि में भूकंप का केंद्र मेघालय के पश्चिम खासी जिले में था। भूकंप के झटके सुबह करीब 7.27 बजे महसूस किए गए।        इस समय इस भूकंपीय क्षेत्र के वायुमण्डल में व्याप्त है अग्नि !इसलिए अग्नि से सामान्य वायु भी इस समय ज्वलन शील गैस जैसे गुणों से युक्त होकर विचरण कर रही है । इसके अलावा इस समय दिशाओं में जलन, तारे टूटना ,उल्कापात होने जैसी घटनाएँ भी देखने सुनने को मिल सकती हैं ।


     इस भूकंप के कारण ही नदियाँ कुएँ तालाब आदि बहुत जल्दी ही सूखते चले जाएँगे !यहीं से शुरू होकर भारत और चीन बांग्लादेश के मध्य आपसी सम्बन्ध दिनोंदिन अत्यंत तनाव पूर्ण होते चले जाएँगे निकट भविष्य में भारत और चीन बांग्लादेश के बीच आपसी सम्बन्धों में कटुता इतनी अधिक बढ़ती चली जाएगी कि अभी से सतर्कता बरती जानी बहुत आवश्यक है ।इसलिए उचित होगा कि भारत इन पड़ोसी देशों पर कम से कम जून 2017  तक विश्वास करना बिलकुल बंद कर दे इनके द्वारा कभी भी कैसा भी कोई भी विश्वास घात संभव है !


     इसके अलावा भी असम, मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर आदि में लोगों को अकारण क्रोध आएगा और आपस में वैमनस्य फैलेगा समाज में विद्रोह का वातावरण बनेगा जो इन क्षेत्र की अशांति का प्रमुख कारण  होगा !केंद्र सरकार को इस क्षेत्र पर विशेष ध्यान रखते हुए सावधान रहना चाहिए यहाँ थोड़ी भी विद्रोह की चिनगारी बहुत बड़े ज्वालपुंज को जन्म दे सकती है सरकार और समाज सतर्क रहे !


    इतना ही नहीं अपितु इस भूकंप के दुष्प्रभाव से शरीर में जलन की बीमारियाँ बढ़ेंगी, तरह तरह के ज्वर फैलेंगे बिचर्चिका और बिसर्पिका जैसी त्वचा सम्बन्धी बीमारियाँ एवं पीलिया रोग निकट भविष्य में बहुत अधिक बढ़ जाने की सम्भावना है !सरकार एवं स्वास्थ्य विभाग ओर से इस दिशा में विशेष सतर्कता बरती जानी चाहिए !इसका विशेष दुष्प्रभाव अभी से लेकर जून  2017 तक रहेगा किंतु जैसा जैसा समय बीतता जाएगा वैसा वैसा घटता जाएगा दुष्प्रभाव !"


     भूकंप के बाद दिखा भूकंप का प्रभाव -


        इस भूकंप के बाद से अचानक  मणिपुर आदि में पहले से चली आ रही हिंसक घटनाएँ बहुत अधिक बढ़ गईं !मणिपुर के इंफाल पूर्व जिले में कर्फ्यू, हिंसक झड़पों के बाद बसें जलाई गई !मणिपुर में क्यों गुस्से में थे प्रदर्शनकारी?मोबाइल इंटरनेट सेवा बंद,मणिपुर में बंद तो पहले से ही चल रहा था किंतु इस आंदोलन ने उग्र रूप इस भूकंप के बाद ही लिया !पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा में बड़ी आतंकी घुसपैठ पर बांग्लादेश ने चेताया ! ये तनाव 6 महीने आगे तक चलने की संभावना है |



भूकंप :24 -2-2017 शाम पांच बजकर 32 मिनट पर मणिपुर में आया "सन्निपातज"भूकंप



 भूकंप  "सन्निपातज"


 मणिपुर में शुक्रवार को मध्यम तीव्रता वाले भूकंप का झटका महसूस किया गया. इसकी तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 5.2 मापी गई.इससे पहले तड़के तीन बजकर नौ मिनट पर सिक्किम में भूकंप का झटका महसूस किया गया, जिसकी तीव्रता 3.5 मापी गई.



इन दोनों भूकंपों का फल -


"आकाश में बड़े बड़े काले काले गंभीर शब्द करने वाले बादल आने लगते हैं आवश्यकता के अनुशार वर्षा करते हैं । यह भूकंप मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री एवं वहां के संगठन प्रमुखों के लिए सभी प्रकार से हानिकारक है इनकी सुरक्षा की विशेष चिंता की जानी चाहिए !प्रधानमंत्री की यात्रा के एकदिन पहले आया भूकंप संभव है कि सत्ता परिवर्तन करके मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के दलों के अलावा किसी अन्य दल या संगठन को सत्ता हस्तांतरित करने की सूचना देने आया हो भूकंप !ये भूकंप 25 फरवरी को मोदी जी की रैली में अनहोनी की चेतावनी देने आया था प्रशासन की विशेष सतर्कता से टाला जा सका !दूसरी बात मणिपुर में किसी दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने का सीधा सा मतलब है कि जनता केंद्र वा प्रांत की सरकारों के दलों को बहुमत नहीं दिया है ।यह सत्ता परिवर्तन का इशारा है !

             भूकंप के बाद दिखा भूकंप का प्रभाव -

      25 फरवरी को मोदी जी की रैली इंफाल के अचोउआ में होने वाली थी इसी बीच 24 फरवरी को एक हथगोला बीजेपी के उम्मीदवार निंगोमबाम लेकाई में  पाया गया.तो दूसरा बम थाउबल जिले में बीजेपी कार्यकर्ता के घर के सामने पाया गया. यह जगह रैली के स्थान से 40 किमी. दूर है.! कुल मिलाकर भूकंप विज्ञान की दृष्टि से ये भूकंप वहाँ के मुख्यमंत्री  प्रधानमंत्री जी आदि के लिए विशेष भय के संकेत दे रहा था | 



भूकंप :मणिपुर 4-3- 2017 सुबह 05:08 पर तीव्रता 3.5 ,'पित्तज 'भूकंप !अब जानिए क्या है इस भूकम्प का फल -   अग्नि सम्बन्धी समस्याएँ बहुत अधिक भी बढ़ सकती हैं इस समय भूकंप से प्रभावित क्षेत्र में वायुमण्डल में व्याप्त है अग्नि !इसलिए अग्नि से सामान्य वायु भी इस समय ज्वलन शील गैस जैसे गुणों से युक्त होकर विचरण कर रही है । इसके अलावा इस समय दिशाओं में जलन, तारे टूटना ,उल्कापात होने जैसी घटनाएँ भी देखने सुनने को मिल सकती हैं । इस भूकंप के कारण ही नदियाँ कुएँ तालाब आदि का जलस्तर तेजी से घटेगा !पित्त अर्थात गर्मी से संबंधित रोगों से सतर्क रहना चाहिए !      यहीं से शुरू होकर मणिपुर में लोगों के आपसी सम्बन्ध दिनोंदिन तनाव पूर्ण होते चले जाएँगे निकट भविष्य में अशांति संभव है लोगों के आपसी सम्बन्धों में कटुता बढ़ती चली जाएगी !उचित होगा कि 19 -4 - 2017 तक लोगों के आपसी विश्वास को बढ़ाए  और बनाए रखा जाए ।    इतना ही नहीं अपितु इस भूकंप के दुष्प्रभाव से शरीर में जलन की बीमारियाँ बढ़ेंगी, तरह तरह के ज्वर फैलेंगे बिचर्चिका और बिसर्पिका जैसी त्वचा सम्बन्धी बीमारियाँ एवं पीलिया रोग निकट भविष्य में बढ़ने की सम्भावना है !इसका विशेष दुष्प्रभाव अभी से लेकर19 -4 - 2017तक रहेगा किंतु जैसा जैसा समय बीतता जाएगा वैसा वैसा घटता जाएगा दुष्प्रभाव !


     भूकंप का दिखा उत्तेजनात्मक असर - ये आगामी 6 महीनों तक चलने की संभावना है !






बनासकांठा  -


भूकंप 13 -3-2017 को 15.52 बजे बनासकांठा  जिले में 4.4 की तीव्रता वाला 'वातज'भूकंप !


अब देखिए इस भूकंप का फल !   इस भूकंप से प्रभावित क्षेत्र के आकाश में धुआँ धुँआ सा दिखाई पड़ने लगेगा तेज हवाएँ चलना भी संभव है आँधी तूफान का प्रकोप भी बढ़ सकता है ! सूर्य की किरणें भी धूमिल दिखेंगी अनाज, जल और औषधियों का नाश होगा !   शरीरों में सूजन ,दमा एवं खाँसी से उत्पन्न पीड़ा बढ़ने  लगेगी  ।ज्वर रोग तथा  पागलपन की परेशानियाँ बढ़ेंगी इस क्षेत्र के अच्छे खासे शिक्षित और समझदार लोग भी न केवल पागलों जैसी दलीलें देते दिखेंगे अपितु उपद्रवी गतिविधियों में सम्मिलित होने में भी गर्व महसूस  करेंगे ।     डॉक्टरों ,सैनिकों, महिलाओं नाचने गाने वालों ,फिल्मी कलाकारों एवं कारीगरों और व्यापार करने वाले लोगों पर विशेष भारी है ये भूकंप !ऐसे भूकंप से प्रभावित क्षेत्र के लोगों को दिमागी चक्कर आने की बीमारियाँ बढ़ती हैं अचानक ऐसा गुस्सा आता है कि मरने मारने को उतारू हो जाते हैं इस भूकंप से प्रभावित क्षेत्रों के लोग !     साँस फूलने संबंधी बीमारियाँ भयंकर रूप लेती जाती हैं ऐसे भूकंपों का प्रभाव तो 180 दिनों का होता है किंतु जैसे जैसे समय बीतता है वैसे वैसे घटता चला जाता है तब भी 45 दिन विशेष भारी होते हैं ।इस भूकंप से प्रभावित क्षेत्र को 28-4-2017 तक स्वास्थ्य समस्याओं के साथ साथ आतंकवादी समस्याओं से भी विशेष सावधान रहना होगा ! सरकार को ध्यान देने की आवश्यकता है कि इस क्षेत्र में कोई तनाव न तैयार होने पाए !


                  भूकंप के बाद दिखा भूकंप का प्रभाव -


   गुजरात के पाटन में दंगा, दो की मौत: 5000 लोगों की भीड़ ने बोला हमला, 20 घर फूंके, कई मुस्लिम परिवारों ने छोड़ा गांव !ध्यान रहे कि बनासकांठा  जिला और पाटन दोनों पास पास पड़ते हैं ! भूकंप के प्रभाव से ही यहाँ ऐसा हुआ ! 








त्रिपुरा -


     13 -04-2016को आए भूकंप का केंद्र म्यांमार था उत्तर- पूर्वी भारत और त्रिपुरा के अगरतला में भी !


   फल -ये भूकंप इस क्षेत्र के लोगों में आपसी शांति का कारक होगा  देशों एवं लोगों के बीच आपसी सद्भावना का निर्माण करेगा और इस सात्विक सोच का असर वर्तमान भारत चीन संबंधों में भी सकारात्मक दिखेगा आपसी संबंध सामान्य बनाने के प्रयास फलीभूत होंगे ! इस भूकंप का फल आगामी 6 महीनों तक रहेगा !इसमें भारत चीन संबंधों को सामान्य बनाने के सफल प्रयास होंगे ।     


      प्राचीन विज्ञान के हिसाब से ऐसे भूकंप का केंद्र जल से संबंधित होता है ! समुद्र में हुई जलीय हलचलों से निर्मित गैसों का भूकंप के रूप में प्रकटीकरण माना जाना चाहिए ! वैसे शास्त्रीय मान्यताओं के हिसाब से तो ये भूकंप जल जनित ही माना गया है ।


    दूसरी बात ऐसे जलीय भूकंपों  में  आफ्टर शॉक्स नहीं आया करते हैं एक बार ही भूकम्प आता है बस !तीसरी बात ऐसे भूकंपों से समुद्रों और नदियों के किनारे बसने वाले लोगों की बड़ी क्षति होती है जल जनित बीमारियाँअतिवृष्टि या सुनामी जैसी बाधाएँ निकट भविष्य में संभव हैं ।



3-1- 2017 को 14.39 बजे त्रिपुरा में भूकंप !तीव्रता 5.5-7'कफज' भूकंप (श)! इसके प्रभाव से कई महीने से जारी मणिपुर आदि पूर्वोत्तर राज्यों क्षेत्रों में बीते कई महीने से चली आ रही हिंसा संपूर्ण रूप से शांत होती चली जाएगी !      त्रिपुरा के अंबासा में मंगलवार दोपहर 2 बजकर 42    मिनट पर 5.5 तीव्रता का भूकंप महसूस किया गया। त्रिपुरा की राजधानी अगरतला से 59 किमी दूर अंबासा और कुमारघाट के बीच लोंगतोराई पहाड़ी भूकंप का केंद्र रहा। भूकंप के झटके भारत के असम, त्रिपुरा के अलावा पड़ोसी देश बांग्लादेश, भूटान और उत्तरी म्यांमार में भी महसूस किए गए।अगरतला समेत मेघालय, मणिपुर, मिजोरम और दक्षिणी असम तक महसूस किए गए। अब जानिए इस भूकंप का फल-    इस भूकम्प से प्रभावित क्षेत्र में वर्षा बाढ़ का प्रकोप विशेष बढ़ सकता है नदियों तालाबों एवं समुद्र के किनारे रहने वाले लोगों के लिए विशेष हानिकारक हो सकता है इसमें कफज एवं जलजनित बीमारियाँ अधिक बढ़ सकती हैं अतिवृष्टि और बाढ़ से परेशानियाँ बढ़ सकती हैं !इनसे निपटने के लिए सावधानी और सतर्कता तो रखी ही जानी चाहिए !     इस भूकंप के प्रभाव से पड़ोसी बांग्लादेश, भूटान और उत्तरी म्यांमार एवं भारत के त्रिपुरा ,अगरतला समेत मेघालय, मणिपुर, मिजोरम और दक्षिणी असम में वर्षा बाढ़ एवं जल जनित बीमारियों की बड़ी सम्भावना है इसके साथ साथ इस भूकंप का एक बहुत अच्छा फल यह भी है कि इस क्षेत्र के लोगों और देशों के आपसी संबंधों में मधुरता आएगी । इस भूकंप से  प्रभावित लोग और देश सभी प्रकार के आपसी शिकायत शिकवे भुलाकर आपस में मिलजुल कर शांति पूर्ण ढंग से काम करना पसंद करेंगे !इस क्षेत्र की आम जनता में भी हिंसा मुक्त वातावरण बनेगा !लोगों की मानसिकता एक दूसरे के प्रति संवेदन शील और सात्विक बनेगी !इस भूकंप का इस प्रकार का असर वैसे तो 3-1- 2017 से 18-2-2017 तक विशेष रहेगा इसके बाद धीरे धीरे घटता चला जाएगा !जबकि इसका सामान्य असर तो 7-6-2016 तक रहेगा !       भारत बाँगलादेश , भूटान और वर्मा की सरकारों को चाहिए कि इस बीच आपसी विवादित मुद्दों को निपटाकर एक दूसरे के सहयोग से आपसी विकास के लिए मजबूत महत्वपूर्ण रास्ते खोजें !इन विषयों में महत्वपूर्ण सफलता मिल सकती है !      


 एक और विशेष बात :


    11-12-2016 ,7.27AM,तीव्रता 4.2, पूर्वोत्तर के सभी सात राज्यों में जो भूकंप आया था   वो पित्तज होने के कारण विशेष अमंगल कारी क्रोध कारक एवं हिंसा लड़ाई झगड़े को प्रोत्साहित करने वाला था उसका दुष्प्रभाव यद्यपि जून 2017 तक रहने वाला था अर्थात अशुभ था !किंतु इसी क्षेत्र में 3-1- 2017 को आया भूकंप पिछले भूकंप के जून 2017 तक चलने वाले दुष्प्रभाव को यहीं से समाप्त होने की घोषणा करता है । अतएव  क्षेत्र में इसके बाद पूर्ण सुख शांति युक्त वातावरण का निर्माण होगा !


     भूकंप के बाद दिखा  भूकंप का असर - 


   पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा में बड़ी आतंकी घुसपैठ पर बांग्लादेश ने चेताया !





नेपाल -



नेपाल में  28-11-2016 प्रातः 5.5 पर भूकंप आया ! इसकी थी तीव्रता 5.6 ,जानिए इसका असर !


           नेपाल में आया 'पित्तज' (वि)भूकंप !    नेपाल में तड़के भूकंप के झटके महसूस किए गए जिनकी तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 5.6  मापी गई. भूकंप सुबह पांच बजकर पांच मिनट पर 10 किलोमीटर की गहराई में आया. नेपाल के नेशनल साइज्मोलॉजिकल सेंटर ने बताया कि भूकंप का केंद्र काठमांडो से करीब 150 किलोमीटर पूर्व में एवरेस्ट क्षेत्र के निकट सोलुखुम्बु जिले में था.     अब जानिए क्या है इस भूकम्प का फल -   अग्नि सम्बन्धी समस्याएँ और अधिक भी बढ़ सकती हैं इस समय भूकंप से प्रभावित क्षेत्र में वायुमण्डल में व्याप्त है अग्नि !इसलिए अग्नि से सामान्य वायु भी इस समय ज्वलन शील गैस जैसे गुणों से युक्त होकर विचरण कर रही है । इसके अलावा इस समय दिशाओं में जलन, तारे टूटना ,उल्कापात होने जैसी घटनाएँ भी देखने सुनने को मिल सकती हैं ।


     इस भूकंप के कारण ही नदियाँ कुएँ तालाब आदि का जलस्तर तेजी से घटेगा !पित्त अर्थात गर्मी से संबंधित रोगों से सतर्क रहना चाहिए !


     यहीं से शुरू होकर नेपाल और चीन के मध्य आपसी सम्बन्ध दिनोंदिन तनाव पूर्ण होते चले जाएँगे निकट भविष्य में नेपाल और चीन के बीच आपसी सम्बन्धों में कटुता बढ़ती चली जाएगी !नेपाल के लिए उचित होगा कि चीन पर कम से कम 13-1-2017 तक विश्वास करना बिलकुल बंद कर दे पड़ोसी के द्वारा कभी भी कैसा भी कोई भी विश्वास घात संभव है !


    इतना ही नहीं अपितु इस भूकंप के दुष्प्रभाव से शरीर में जलन की बीमारियाँ बढ़ेंगी, तरह तरह के ज्वर फैलेंगे बिचर्चिका और बिसर्पिका जैसी त्वचा सम्बन्धी बीमारियाँ एवं पीलिया रोग निकट भविष्य में बढ़ने की सम्भावना है !शर्दी का मौसम होने से कुछ बचाव हो सकता है !इसका विशेष दुष्प्रभाव अभी से लेकर 13-1-2017 तक रहेगा किंतु जैसा जैसा समय बीतता जाएगा वैसा वैसा घटता जाएगा दुष्प्रभाव !"


     भूकंप के बाद दिखा भूकंप का प्रभाव -


     चीन ने नेपाल के साथ मिलकर भारत को दिया ये बड़ा झटका !भारत को चोट देने वाली ये डील पक्की तो 28 -11 -2016 के भूकंप के तुरन्त बाद हुई किंतु घोषणा 8 दिसंबर को हुई !किंतु ये भूकंप के पहले बनी आपसी सहमति थी जबकि चीन और नेपाल के बीच इसके बाद अगले 6 महीने तक ऐसी किसी भी मधुरता का कोई सन्देश मिलने की संभावना नहीं रहेगी !





 भूकंप 1-12-2016 को,तीव्रता 5.2,गुरुवार रात 10 बजकर 35 पर भारत-नेपाल सीमा,उत्तराखंड के धारचूला में केंद्र ! ! 


 कफज भूकंप और उसका फल !   दिल्ली-एनसीआर समेत उत्तर भारत में भूकंप के झटके, यह इलाका भारत-नेपाल सीमा पर स्थित है। भूकंप के झटकों से पड़ोसी देश नेपाल भी हिल गया। वहीं, बताया गया है कि उत्तराखंड के बागेश्वर, चामोली समेत कुमाऊं और गढ़वाल में भी तेज झटके महसूस किए गए।भूकंप के झटके सबसे ज्यादा उत्तराखंड के श्रीनगर, चमोली, चंपावत, अल्मोड़ा और बागेश्वर में महसूस किए गए।      अब जानिए इस भूकंप का फल-    इस भूकम्प से प्रभावित क्षेत्र में वर्षा बाढ़ का प्रकोप विशेष बढ़ सकता है नदियों तालाबों एवं समुद्र के किनारे रहने वाले लोगों के लिए विशेष हानिकारक हो सकता है इसमें कफज एवं जलजनित बीमारियाँ अधिक बढ़ सकती हैं !संभव हैं अथवा अतिवृष्टि और बाढ़ से परेशानियाँ बढ़ें !किंतु माध्यम तीव्रता का भूकंप होने के कारण इसका प्रभाव भी मध्यम ही रहेगा इसलिए विशेष चिंता की बात नहीं है !फिर भी सावधानी और सतर्कता तो रखी ही जानी चाहिए !     इस भूकंप के प्रभाव से भारत और नेपाल के बीच आपसी संबंधों में मधुरता आएगी दोनों देश आपसी शिकायत शिकवे भुलाकर एक दूसरे के साथ मिलजुल कर शांति पूर्ण ढंग से काम करना पसंद करेंगे !इस क्षेत्र की आम जनता में भी हिंसा मुक्त वातावरण बनेगा !लोगों की मानसिकता एक दूसरे के प्रति संवेदन शील बनी रहेगी रहेगी !इस भूकंप का असर वैसे तो 1-5-2017 किंतु 15-1 -2017 इसका प्रभाव विशेष देखने को मिलेगा !       भारत और नेपाल सरकारों को चाहिए कि इस बीच आपसी विवादित मुद्दों को निपटाकर एक दूसरे के सहयोग से दोनों देशों के विकास के लिए मजबूत महत्वपूर्ण रास्ते खोजे जा सकते हैं !आगे के 180दिनों का सदुपयोग भारत और नेपाल दोनों ही देशों की सरकारों को करना चाहिए !  भारत के लिए विशेष अवसर प्रदान कर रहा है यह भूकंप :



भूकंप नेपाल में 27 फ़रवरी 2017 को -"पित्तज भूकंप"      


नेपाल में मध्यम तीव्रता वाले भूकंप के दो झटके महसूस किए गए स्थानीय समयानुसार सोमवार 27, फ़रवरी 2017 सुबह 9 बजकर 22 मिनट पर 4.6 तीव्रता का भूकंप आया. इसके बाद सुबह 10 बजकर छह मिनट पर 4.7 तीव्रता का भूकंप आया.  अब जानिए क्या है इस भूकम्प का फल -   अग्नि सम्बन्धी समस्याएँ बहुत अधिक भी बढ़ सकती हैं इस समय भूकंप से प्रभावित क्षेत्र में वायुमण्डल में व्याप्त है अग्नि !इसलिए अग्नि से सामान्य वायु भी इस समय ज्वलन शील गैस जैसे गुणों से युक्त होकर विचरण कर रही है । इसके अलावा इस समय दिशाओं में जलन, तारे टूटना ,उल्कापात होने जैसी घटनाएँ भी देखने सुनने को मिल सकती हैं ।      इस भूकंप के कारण ही नदियाँ कुएँ तालाब आदि का जलस्तर तेजी से घटेगा !पित्त अर्थात गर्मी से संबंधित रोगों से सतर्क रहना चाहिए !      यहीं से शुरू होकर नेपाल में आपसी सम्बन्ध दिनोंदिन तनाव पूर्ण होते चले जाएँगे निकट भविष्य में नेपाल में अशांति संभव है लोगों के आपसी सम्बन्धों में कटुता बढ़ती चली जाएगी !नेपाल के लिए उचित होगा कि 13-4-2017 तक लोगों के आपसी विश्वास को बढ़ाए  और बनाए रखे ।    इतना ही नहीं अपितु इस भूकंप के दुष्प्रभाव से शरीर में जलन की बीमारियाँ बढ़ेंगी, तरह तरह के ज्वर फैलेंगे बिचर्चिका और बिसर्पिका जैसी त्वचा सम्बन्धी बीमारियाँ एवं पीलिया रोग निकट भविष्य में बढ़ने की सम्भावना है !इसका विशेष दुष्प्रभाव अभी से लेकर 13-4 -2017 तक रहेगा किंतु जैसा जैसा समय बीतता जाएगा वैसा वैसा घटता जाएगा दुष्प्रभाव !

       भूकंप का दिखा उत्तेजनात्मक असर - सीमा पर बढ़ा तनाव, किसानों को डर-गेहूं की तैयार फसल में आग लगा सकते हैं नेपाली !और भी तमाम प्रकार के तनावों का सामना कर रहा था ये क्षेत्र !

 नेपाल और म्यांमार में भूकंप 'वातज' 2-7-2017 \ रविवार को 7.28 AM \ तीव्रता 4.9 एवं 10 :49 AM बजे भी !


 यह भूकंप नेपाल,म्यांमार और भारत सीमा में आया इसका मुख्य केंद्र  म्यांमार-भारत सीमा रहा. 


 अब देखिए इस भूकंप का फल !    इस भूकंप से प्रभावित क्षेत्र के आकाश में धुआँ धुँआ सा दिखाई पड़ने लगेगा तेज हवाएँ चलना भी संभव है आँधी तूफान का प्रकोप भी बढ़ सकता है ! सूर्य की किरणें भी धूमिल दिखेंगी अनाज, जल और औषधियों का नाश होगा !   शरीरों में सूजन ,दमा एवं खाँसी से उत्पन्न पीड़ा बढ़ने  लगेगी  ।ज्वर रोग तथा  पागलपन की परेशानियाँ बढ़ेंगी इस क्षेत्र के अच्छे खासे शिक्षित और समझदार लोग भी न केवल पागलों जैसी दलीलें देते दिखेंगे अपितु उपद्रवी गतिविधियों में सम्मिलित होने में भी गर्व महसूस  करेंगे ।डॉक्टरों ,सैनिकों, महिलाओं नाचने गाने वालों ,फिल्मी कलाकारों एवं कारीगरों और व्यापार करने वाले लोगों पर विशेष भारी है ये भूकंप !ऐसे भूकंप से प्रभावित क्षेत्र के लोगों को दिमागी चक्कर आने की बीमारियाँ बढ़ती हैं अचानक ऐसा गुस्सा आता है कि मरने मारने को उतारू हो जाते हैं इस भूकंप से प्रभावित क्षेत्रों के लोग !     साँस फूलने संबंधी बीमारियाँ भयंकर रूप लेती जाती हैं ऐसे भूकंपों का प्रभाव तो 2-12-2017दिनों का होता है किंतु जैसे जैसे समय बीतता है वैसे वैसे घटता चला जाता है तब भी 17-8-2017 का समय विशेष भारी होगा ।इस भूकंप से प्रभावित क्षेत्र को तब तक स्वास्थ्य समस्याओं के साथ साथ आतंकवादी समस्याओं से भी विशेष सावधान रहना होगा ! सरकार को ध्यान देने की आवश्यकता है कि इस क्षेत्र में कोई तनाव न तैयार होने पाए !







म्यांमार -


13 -4-2016  को म्यांमार भारत चीन में आया 'चन्द्रज' भूकंप !  इसका केंद्र म्यांमार था 


     किंतु पूर्वोत्तर भारत समेत बहुत बड़े भूभाग को इस भूकंप ने प्रभावित किया था


वैदिक वांग्मय के अनुशार इस भूकंप के आने का फल मैंने अपने ब्लॉग पर इस नाम से ही उसी दिन प्रकाशित कर दिया था उसके बाद वो पेज कभी खोला नहीं गया और न ही कोई संशोधन किया गया !ये है वो लेख -


   "भूकंप (13 -04-2016) के प्रभाव से भारत और चीन के आपसी संबंध होंगे मधुर !


 13 -04-2016 को 19. 28 बजे देश के पूर्वोत्तर में आया था भूकंप  ! इस भूकंप से प्रभावित क्षेत्रों में अति शीघ्र अधिक वर्षा बाढ़ से हो सकती भारी क्षति !जबकि समाज में व्याप्त असंतोष एवं आपसी  बैर विरोध की भावना घटेगी और भाईचारे का वातावरण बनेगा !विशेष बात यह है कि इस भूकंप में आफ्टर शॉक्स नहीं आतेहैं !


 13-04-2016 को आए भूकंप की शास्त्र वर्णित विशेषताएँ - 


       बंधुओ ! किसी भी भूकंप के कारण जन धन की हानि तो होती ही है किंतु भूकंप प्रभाव से होने वाले शकुन अपशकुनों की दृष्टि से यदि देखा जाए  तो ये भूकंप इस क्षेत्र के लोगों में आपसी शांति का कारक होगा  देशों एवं लोगों के बीच आपसी सद्भावना का निर्माण करेगा और इस सात्विक सोच का असर वर्तमान भारत चीन संबंधों में भी सकारात्मक दिखेगा आपसी संबंध सामान्य बनाने के प्रयास फलीभूत होंगे ! इस भूकंप का फल आगामी 6 महीनों तक रहेगा !इसमें भारत चीन संबंधों को सामान्य बनाने के सफल प्रयास होंगे ।


      प्राचीन विज्ञान के हिसाब से ऐसे भूकंप का केंद्र जल से संबंधित होता है ! समुद्र में हुई जलीय हलचलों से निर्मित गैसों का भूकंप के रूप में प्रकटीकरण माना जाना चाहिए ! वैसे शास्त्रीय मान्यताओं के हिसाब से तो ये भूकंप जल जनित ही माना गया है ।


 दूसरी बात ऐसे जलीय भूकंपों  में  आफ्टर शॉक्स नहीं आया करते हैं एक बार ही भूकम्प आता है बस !तीसरी बात ऐसे भूकंपों से समुद्रों और नदियों के किनारे बसने वाले लोगों की बड़ी क्षति होती है जल जनित बीमारियाँअतिवृष्टि या सुनामी जैसी बाधाएँ निकट भविष्य में संभव हैं ।


      इस भूकंप के बाद चीन के साथ भारत के संबंधों में भी मधुरता आई थी साथ ही पूर्वी भारत के पूर्वी जिलों में कुछ महीनों तक लगातार भारी वर्षा और बाढ़ की स्थिति बनी रही थी !यद्यपि वर्षा और बाढ़ की संभावनाएँ इस क्षेत्र में विशेष रहती ही हैं फिर भी भूकंपजनित फलों को नकारा कैसे जा सकता है !



पूर्वी भारत म्यांमारमें भूकंप के झटके 24-8-2016 \ 16.5 बजे !


    भूकंप का केंद्र म्यांमार में जमीन से 58 किमी. नीचे था। रिक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता 6.8 मापी गई।  


  " म्यांमार से लेकर पूर्वोत्तर भारत में पश्चिम बंगाल ,उत्तरप्रदेश ,बिहार ,झारखंड,उड़ीसा ,असम, अरुणाचलप्रदेश, नगालैंड, त्रिपुरा, मणिपुर और मिजोरम आदि में  भूकंप का तगड़ा झटका महसूस किया गया। कोलकाता, पटना, दरभंगा, गुवाहाटी और लखनऊ में भूकंप के झटके महसूस किए गए।"


   भूकंप से प्रभावित प्रदेशों में पिछले 4 महीने से भीषण वर्षा और बाढ़ से मची त्राहि त्राहि प्रभाव पूर्वक अब तुरंत समाप्त हो जाएगी इस भूकंप से प्रभावित प्रदेशों में पिछले 4 महीने से चली आ रही वर्षात अब तुरंत बंद हो जाएगी ! बाढ़ पे अतिशीघ्र अंकुश लग जाएगा नदियाँ कुएँ तालाब आदि बाढ़ की अतिविशाल जल राशि को अतिशीघ्र स्वयं पी जाएँगे !पूर्वी क्षेत्रों में समुद्र  के समान फैला बाढ़ का यह विशाल पानी  कुछ ही दिनों में अतिशीघ्र सूख कर गया कहाँ इसका अनुमान भी लगाना कठिन होगा ! भूकंप से प्रभावित बाढ़ पीड़ित प्रदेशों की असहाय सरकारें एवं आपदा प्रबंधन विभाग राहत की सांस लेगा !सरकारें एवं आपदा प्रबंधन विभाग पूर्वोत्तर भारत की जिस बाढ़ को देखकर लाचार है वह अतिशीघ्र स्वयं समाप्त हो जाएगी !यहाँ तक कि जमीन की नमी बहुत जल्दी सूख जाएगी तथा अग्नि एवं गर्मी से संबंधित प्रकोप बढ़ेंगे पित्त प्रकुपित होने से संभावित बीमारियाँ फैलेंगी !


   पूर्वोत्तर भारत में असंतोष पनपेगा !यहाँ के लोग आपस में एक दूसरे के साथ हिंसक वर्ताव करने लगेंगे !चीन,बांग्लादेश आदि पर विश्वास करना भारत सरकार  अविलम्ब बंद कर दे अन्यथा चीन की ओर से भारत को कभी भी कोई भी बड़ी से बड़ी चोट दी जा सकती है भारत सरकार को चाहिए कि अगले 6 महीने के लिए चीनसे किसी भीप्रकार की न कोई मेल मिलाप संबंधी बात करे और न ही चीन की किसी बात पर भरोसा करे" ।     हमारे द्वारा अपने ब्लॉग पर लिखी गई यह वैदिक भूकंपीय सूचना भी सच साबित हुई है क्योंकि इस भूकंप के बाद वर्षा और बाढ़ अचानक घट गई थी और चीन के साथ संबंधों में भी उत्तेजना बढ़ने लग गई थी !




भूकंप -25-3-2017 म्यामार में 7.5बजे तीव्रता 5.0 केंद्र म्यांमार-भारत सीमा क्षेत्र ! 'सन्निपातज ' ! 


भूकंप का फल -आकाश में बड़े बड़े काले काले गंभीर शब्द करने वाले बादल आने लगते हैं आवश्यकता के अनुशार वर्षा करते हैं । यह भूकंप मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री एवं वहाँ  के संगठन प्रमुखों के लिए सभी प्रकार से हानिकारक है इनकी सुरक्षा की विशेष चिंता की जानी चाहिए !वहाँ  के लोगों को कफ के रोगों से कष्ट प्रदान करने वाला है !   



 नेपाल और म्यांमार में भूकंप 'वातज' 2-7-2017 \ रविवार को 7.28 AM \ तीव्रता 4.9 एवं 10 :49 AM बजे भी !


 यह भूकंप नेपाल,म्यांमार और भारत सीमा में आया इसका मुख्य केंद्र  म्यांमार-भारत सीमा रहा. 


 अब देखिए इस भूकंप का फल !    इस भूकंप से प्रभावित क्षेत्र के आकाश में धुआँ धुँआ सा दिखाई पड़ने लगेगा तेज हवाएँ चलना भी संभव है आँधी तूफान का प्रकोप भी बढ़ सकता है ! सूर्य की किरणें भी धूमिल दिखेंगी अनाज, जल और औषधियों का नाश होगा !   शरीरों में सूजन ,दमा एवं खाँसी से उत्पन्न पीड़ा बढ़ने  लगेगी  ।ज्वर रोग तथा  पागलपन की परेशानियाँ बढ़ेंगी इस क्षेत्र के अच्छे खासे शिक्षित और समझदार लोग भी न केवल पागलों जैसी दलीलें देते दिखेंगे अपितु उपद्रवी गतिविधियों में सम्मिलित होने में भी गर्व महसूस  करेंगे ।डॉक्टरों ,सैनिकों, महिलाओं नाचने गाने वालों ,फिल्मी कलाकारों एवं कारीगरों और व्यापार करने वाले लोगों पर विशेष भारी है ये भूकंप !ऐसे भूकंप से प्रभावित क्षेत्र के लोगों को दिमागी चक्कर आने की बीमारियाँ बढ़ती हैं अचानक ऐसा गुस्सा आता है कि मरने मारने को उतारू हो जाते हैं इस भूकंप से प्रभावित क्षेत्रों के लोग !     साँस फूलने संबंधी बीमारियाँ भयंकर रूप लेती जाती हैं ऐसे भूकंपों का प्रभाव तो 2-12-2017दिनों का होता है किंतु जैसे जैसे समय बीतता है वैसे वैसे घटता चला जाता है तब भी 17-8-2017 का समय विशेष भारी होगा ।इस भूकंप से प्रभावित क्षेत्र को तब तक स्वास्थ्य समस्याओं के साथ साथ आतंकवादी समस्याओं से भी विशेष सावधान रहना होगा ! सरकार को ध्यान देने की आवश्यकता है कि इस क्षेत्र में कोई तनाव न तैयार होने पाए !








चीन -



2016-08-31 सुबह तड़के PAK-चीनभूकंप के ज़बरदस्त झटकों से 'थर्राया'


      31 अगस्त 2016 से भारत के विरुद्ध चीन और पकिस्तान के संयुक्त प्रयास प्रारम्भ होंगे जिनसे भारत को बड़ा नुक्सान पहुँचा सकते हैं !इसलिए सरकार  को बहुत सतर्क रहना चाहिए फरवरी 2017 तक पाकिस्तान और चीन मिलकर कोई बड़ा षड्यंत्र कर सकते हैं भारत के खिलाफ !इसलिए इस समय के बीच भारत सरकार  को  भी बात पर भरोसा नहीं करना चाहिए !


       इस  भूकंप के प्रभाव से चीन और पाकिस्तान के लोगों में आपसी शांति का कारक होगा दोनों देशों आपसी मित्रता बढ़ेगी ।इस भूकंप के प्रभाव से यहाँ के लोगों के बीच आपसी भाईचारे की भावना का निर्माण हो!लोगों के बीच आपसी संबंध सामान्य बनाने के प्रयास फलीभूत होंगे ! सहन शीलता बढ़ेगी इस भूकंप का फल आगामी 6 महीनों तक रहेगा !




  25\26 नवंबर 2016 रात 10.30 बजे आया चीन में भूकम्प !जानिए इसका असर !!  


                चीन में आया 'वातज'(चि) भूकंप !    भूकंप की तीव्रता रिक्‍टर पैमाने पर 6.9 रही है। इसका केंद्र चीन किर्गिस्‍तान और ताजिकिस्‍तान की सीमा पर एकटो काउंटी के करीब था।     यह वातज (अ) भूकंप होने के कारण लंबे भूभाग को प्रभावित करता है इसमें आफ्टर शख्स बहुत दिनों तक आ सकते हैं इस भूकंप का अंतिम झटका 10 जनवरी 2017 के आस पास उसी जगह पर आ सकता है जहाँ पहला आया था किंतु पहले की अपेक्षा धीरे धीरे कमजोर होता जाएगा बीच बीच में भी झटके आ सकते हैं !    इस भूकंप से प्रभावित क्षेत्र के आकाश में धुआँ धुँआ सा दिखाई पड़ने लगेगा तेज हवाएँ चलना भी संभव है आँधी तूफान का प्रकोप भी बढ़ सकता है ! सूर्य की किरणें भी धूमिल दिखेंगी अनाज, जल और औषधियों का नाश होगा !    शरीरों में सूजन ,दमा एवं खाँसी से उत्पन्न पीड़ा बढ़ने  लगेगी  ।ज्वर रोग तथा  पागलपन की परेशानियाँ बढ़ेंगी इस क्षेत्र के अच्छे खासे शिक्षित और समझदार लोग भी न केवल पागलों जैसी दलीलें देते दिखेंगे अपितु उपद्रवी गतिविधियों में सम्मिलित होने में भी गर्व महसूस  करेंगे ।     डॉक्टरों ,सैनिकों, महिलाओं नाचने गाने वालों ,फिल्मी कलाकारों एवं कारीगरों और व्यापार करने वाले लोगों पर विशेष भारी है ये भूकंप !ऐसे भूकंप से प्रभावित क्षेत्र के लोगों को दिमागी चक्कर आने की बीमारियाँ बढ़ती हैं अचानक ऐसा गुस्सा आता है कि मरने मारने को उतारू हो जाते हैं इस भूकंप से प्रभावित क्षेत्रों के लोग !     साँस फूलने संबंधी बीमारियाँ भयंकर रूप लेती जाती हैं ऐसे भूकंपों का प्रभाव तो 180 दिनों का होता है किंतु जैसे जैसे समय बीतता है वैसे वैसे घटता चला जाता है। इसलिए यह क्षेत्र प्रायः 180 दिनों तक तनाव युक्त वातावरण में ही जीता रहेगा !इतने दिनों तक यहाँ कैसे भी उपद्रव हो सकते हैं 



चीन में भूकंप ! 8-2-2017शाम सात बजकर 11 मिनट पर 4.9 तीव्रता ! 'वातज'     बीजिंग, 8 फरवरी (वार्ता) चीन के युन्नान प्रांत में भूकंप के झटकाें के कारण पांच लोग घायल हो गये। शिन्हुआ संवाद समिति ने स्थानीय अधिकारियों के हवाले से बताया कि शाम सात बजकर 11 मिनट पर 4.9 तीव्रता का भूकंप आया।   इस भूकंप का फल -   इस भूकंप से प्रभावित क्षेत्र के आकाश में धुआँ धुँआ सा दिखाई पड़ने लगेगा तेज हवाएँ चलना भी संभव है आँधी तूफान का प्रकोप भी बढ़ सकता है ! सूर्य की किरणें भी धूमिल दिखेंगी अनाज, जल और औषधियों का नाश होगा !   शरीरों में सूजन ,दमा एवं खाँसी से उत्पन्न पीड़ा बढ़ने  लगेगी  ।ज्वर रोग तथा  पागलपन की परेशानियाँ बढ़ेंगी इस क्षेत्र के अच्छे खासे शिक्षित और समझदार लोग भी न केवल पागलों जैसी दलीलें देते दिखेंगे अपितु उपद्रवी गतिविधियों में सम्मिलित होने में भी गर्व महसूस  करेंगे ।     डॉक्टरों ,सैनिकों, महिलाओं नाचने गाने वालों ,फिल्मी कलाकारों एवं कारीगरों और व्यापार करने वाले लोगों पर विशेष भारी है ये भूकंप !ऐसे भूकंप से प्रभावित क्षेत्र के लोगों को दिमागी चक्कर आने की बीमारियाँ बढ़ती हैं अचानक ऐसा गुस्सा आता है कि मरने मारने को उतारू हो जाते हैं इस भूकंप से प्रभावित क्षेत्रों के लोग !     साँस फूलने संबंधी बीमारियाँ भयंकर रूप लेती जाती हैं ऐसे भूकंपों का प्रभाव तो 180 दिनों का होता है किंतु जैसे जैसे समय बीतता है वैसे वैसे घटता चला जाता है तब भी 47 दिन विशेष भारी होते हैं ।चीन को स्वास्थ्य समस्याओं के साथ साथ आतंकवादी समस्याओं से भी विशेष सावधान रहना होगा ! इसलिए 22 -3-2017 तक ऐसी  परिस्थिति बनी रहेगी !इस क्षेत्र को आतंकवादी हमलों से विशेष सावधान रहना चाहिए ! सरकार को ध्यान देने की आवश्यकता है कि भूकंप क्षेत्र में कोई तनाव न तैयार होने पाए !



27-3-2017 \5.1AM को चीन में 'पित्तज' भूकंप ! 5.1 तीव्रता !


 दक्षिण पश्चिमी चीन में स्थित यांग्बी काउंटी में आज 5.1 तीव्रता वाले भूकंप के झटके महसूस किए गए. युन्नान प्रांत की यांग्बी काउंटी के एक प्रचार अधिकारी वांग कैशुन ने कहा कि भूकंप का केंद्र देश के अजिया और पुपिंग गांवों में था.


अब जानिए क्या है इस भूकम्प का फल -   भूकंपीय क्षेत्र में अग्नि सम्बन्धी समस्याएँ बहुत अधिक भी बढ़ सकती हैं इस समय भूकंप से प्रभावित क्षेत्र में वायुमण्डल में व्याप्त है अग्नि !इसलिए अग्नि से सामान्य वायु भी इस समय ज्वलन शील गैस जैसे गुणों से युक्त होकर विचरण कर रही है । इसके अलावा इस समय दिशाओं में जलन, तारे टूटना ,उल्कापात होने जैसी घटनाएँ भी देखने सुनने को मिल सकती हैं ।      इस भूकंप के कारण ही नदियाँ कुएँ तालाब आदि का जलस्तर तेजी से घटेगा !पित्त अर्थात गर्मी से संबंधित रोगों से सतर्क रहना चाहिए !      यहीं से शुरू होकर चंबा में लोगों के आपसी सम्बन्ध दिनोंदिन तनाव पूर्ण होते चले जाएँगे निकट भविष्य में अशांति संभव है लोगों के आपसी सम्बन्धों में कटुता बढ़ती चली जाएगी !उचित होगा कि 13 -5 - 2017 तक लोगों के आपसी विश्वास को बढ़ाए  और बनाए रखा जाए ।    इतना ही नहीं अपितु इस भूकंप के दुष्प्रभाव से शरीर में जलन की बीमारियाँ बढ़ेंगी, तरह तरह के ज्वर फैलेंगे बिचर्चिका और बिसर्पिका जैसी त्वचा सम्बन्धी बीमारियाँ एवं पीलिया रोग निकट भविष्य में बढ़ने की सम्भावना है !इसका विशेष दुष्प्रभाव अभी से लेकर13 -5 - 2017तक रहेगा किंतु जैसा जैसा समय बीतता जाएगा वैसा वैसा घटता जाएगा दुष्प्रभाव !



चीन में भूकंप ,11-5-2017 को सुबह 5.58 बजे ,तीव्रता 5.4 \'पित्तज '


चीन के पश्चिमी क्षेत्र शिजियांग में गुरुवार को 5.4 तीव्रता वाले भूकंप के झटके महसूस किए गए जिसके कारण आठ लोगों की मौत हो गई और 11 अन्य लोग घायल हो गए. भूकंप स्थानीय समयानुसार सुबह पांच बजकर 58 मिनट पर आया. 


 अब जानिए क्या है इस भूकम्प का फल -


  भूकंपीय क्षेत्र में अग्नि सम्बन्धी समस्याएँ बहुत अधिक भी बढ़ सकती हैं इस समय भूकंप से प्रभावित क्षेत्र में वायुमण्डल में व्याप्त है अग्नि !इसलिए अग्नि से सामान्य वायु भी इस समय ज्वलन शील गैस जैसे गुणों से युक्त होकर विचरण कर रही है । इसके अलावा इस समय दिशाओं में जलन, तारे टूटना ,उल्कापात होने जैसी घटनाएँ भी देखने सुनने को मिल सकती हैं ।


     इस भूकंप के कारण ही नदियाँ कुएँ तालाब आदि का जलस्तर तेजी से घटेगा !पित्त अर्थात गर्मी से संबंधित रोगों से सतर्क रहना चाहिए !


     यहीं से शुरू होकर चंबा में लोगों के आपसी सम्बन्ध दिनोंदिन तनाव पूर्ण होते चले जाएँगे निकट भविष्य में अशांति संभव है लोगों के आपसी सम्बन्धों में कटुता बढ़ती चली जाएगी !उचित होगा कि  27   -6  - 2017 तक लोगों के आपसी विश्वास को बढ़ाए  और बनाए रखा जाए ।


    इतना ही नहीं अपितु इस भूकंप के दुष्प्रभाव से शरीर में जलन की बीमारियाँ बढ़ेंगी, तरह तरह के ज्वर फैलेंगे बिचर्चिका और बिसर्पिका जैसी त्वचा सम्बन्धी बीमारियाँ एवं पीलिया रोग निकट भविष्य में बढ़ने की सम्भावना है !इसका विशेष दुष्प्रभाव अभी से लेकर


27  -6  - 2017तक रहेगा किंतु जैसा जैसा समय बीतता जाएगा वैसा वैसा घटता जाएगा दुष्प्रभाव !