हे अंबेडकर साहब !यदि ब्राह्मण गलत ही थे तो उनका बहिष्कार क्यों नहीं कर दिया गया ?स्वयं आप ब्राह्मणों से दूरी बनाकर क्यों नहीं रह सके ?नेता लोग भी ब्राह्मणों को बाहर का रास्ता क्यों नहीं दिखा देते ! ब्राह्मणों और सवर्णों के प्रति घृणा की भावना पैदा करने वाले लोग आज राजनीति के प्रियपात्र बने हुए हैं ब्राह्मणों और सवर्णों की निंदा करने वालों की संख्या(वोट)अधिक होने के कारण नेता लोग रामनवमी कम और आपकी जयंती ज्यादा मनाते हैं !
चूँकि राजनीति इस समय पूरी तरह जातिवादी हो चुकी है इस दृष्टिकोण से यदि त्रिभुवन स्वामी प्रभु श्री राम को भी देखा जाने लगा हो तो क्या माना जाए कि भगवान राम क्षत्रिय थे सवर्ण थे हिंदू थे ब्राह्मणों से घृणा नहीं करते थे इसलिए चबूतरे पर पड़े हैं रामनवमी पर कोई CM - PM न वहाँ झाँकने जाता है और न ही सरकारी स्तर पर कोई बड़े काम काज ही आयोजित किए जाए हैं क्यों ?जबकि नेताओं की जयंतियाँ मनाई जाती हैं बड़े धूमधाम से !भगवानों के प्रति ऐसी आस्था क्यों है हमारी !मेरा किसी महाप्रुष की जयंती मानाने से कोई द्वेष नहीं है किंतु श्री राम के प्रति आस्था की उपेक्षा भी सही नहीं जाती !
सनातन हिंदूधर्मसम्राट प्रभु श्री राम ही हैं सनातन हिन्दू धर्म को छोड़कर जब कोई किसी अन्य धर्म को स्वीकार करता है इसका मतलब श्री राम भावना का परित्याग नहीं तो और क्या होता है !हम श्री राम को मानते हुए भी किसी ऐसे व्यक्ति को आस्था पुरुष के रूप में स्वीकार कर सकते हैं जिसकी हमारे मर्यादा पुरुषोत्तम से पटरी ही न खाती हो !
विश्व में भारत की पताका फहराने वाले श्री राम प्रभु के जन्म दिवस पर उचित तो है कि देश के सभी मुख्यमंत्रियों तथा प्रधानमंत्री जी को पहुँचना चाहिए प्रभु श्री राम केवल हिन्दुओं या भारत वासियों के ही नहीं हैं वो तो मानवता पसंद हर जीव जगत के स्वामी हैं उस धर्म को छोड़कर किसी अन्य धर्म की शरण स्वीकार करना और नेताओं का वहाँ पहुँचना और रामनवमी पर अयोध्या न पहुँचना ये सोचने को तो मजबूर करता है कि प्रभु श्री राम के साथ ऐसा क्यों ?
'रामनवमी' में अयोध्या पहुँचने से नेताओं को इसीलिए डर लगता है क्या ?क्योंकि श्री राम हिंदू थे सवर्ण थे क्षत्रिय थे और ब्राह्मणों का सम्मान करते थे उनसे घृणा न करते थे न फैलाते थे !बारी राजनीति !!
जाति संप्रदाय और स्त्री पुरुष भेदभाव पर टिकी भारतीय राजनीति क्या इस प्रकरण को भी इसी दृष्टि से देखती है?इसीलिए श्री राम नवमी को अयोध्या जाने में जिन नेताओं को वोट बैंक का खतरा दिखता है वही नेता उन नेताओं की जयंती बड़ी धूम धाम से मनाते देखे जाते हैं जो केवल सवर्णों की निंदा करने जैसे सबसे बड़े गुण के कारण ही कभी प्रसिद्धि पा चुके हैं !
चूँकि राजनीति इस समय पूरी तरह जातिवादी हो चुकी है इस दृष्टिकोण से यदि त्रिभुवन स्वामी प्रभु श्री राम को भी देखा जाने लगा हो तो क्या माना जाए कि भगवान राम क्षत्रिय थे सवर्ण थे हिंदू थे ब्राह्मणों से घृणा नहीं करते थे इसलिए चबूतरे पर पड़े हैं रामनवमी पर कोई CM - PM न वहाँ झाँकने जाता है और न ही सरकारी स्तर पर कोई बड़े काम काज ही आयोजित किए जाए हैं क्यों ?जबकि नेताओं की जयंतियाँ मनाई जाती हैं बड़े धूमधाम से !भगवानों के प्रति ऐसी आस्था क्यों है हमारी !मेरा किसी महाप्रुष की जयंती मानाने से कोई द्वेष नहीं है किंतु श्री राम के प्रति आस्था की उपेक्षा भी सही नहीं जाती !
सनातन हिंदूधर्मसम्राट प्रभु श्री राम ही हैं सनातन हिन्दू धर्म को छोड़कर जब कोई किसी अन्य धर्म को स्वीकार करता है इसका मतलब श्री राम भावना का परित्याग नहीं तो और क्या होता है !हम श्री राम को मानते हुए भी किसी ऐसे व्यक्ति को आस्था पुरुष के रूप में स्वीकार कर सकते हैं जिसकी हमारे मर्यादा पुरुषोत्तम से पटरी ही न खाती हो !
विश्व में भारत की पताका फहराने वाले श्री राम प्रभु के जन्म दिवस पर उचित तो है कि देश के सभी मुख्यमंत्रियों तथा प्रधानमंत्री जी को पहुँचना चाहिए प्रभु श्री राम केवल हिन्दुओं या भारत वासियों के ही नहीं हैं वो तो मानवता पसंद हर जीव जगत के स्वामी हैं उस धर्म को छोड़कर किसी अन्य धर्म की शरण स्वीकार करना और नेताओं का वहाँ पहुँचना और रामनवमी पर अयोध्या न पहुँचना ये सोचने को तो मजबूर करता है कि प्रभु श्री राम के साथ ऐसा क्यों ?
'रामनवमी' में अयोध्या पहुँचने से नेताओं को इसीलिए डर लगता है क्या ?क्योंकि श्री राम हिंदू थे सवर्ण थे क्षत्रिय थे और ब्राह्मणों का सम्मान करते थे उनसे घृणा न करते थे न फैलाते थे !बारी राजनीति !!
जाति संप्रदाय और स्त्री पुरुष भेदभाव पर टिकी भारतीय राजनीति क्या इस प्रकरण को भी इसी दृष्टि से देखती है?इसीलिए श्री राम नवमी को अयोध्या जाने में जिन नेताओं को वोट बैंक का खतरा दिखता है वही नेता उन नेताओं की जयंती बड़ी धूम धाम से मनाते देखे जाते हैं जो केवल सवर्णों की निंदा करने जैसे सबसे बड़े गुण के कारण ही कभी प्रसिद्धि पा चुके हैं !
सवर्णों की निंदा करके कुछ लोग दलितों के मसीहा बन गए इसी गुण से वे लोग कितने बड़े बड़े पदों पर पहुँच गए किंतु उन्होंने दलितों के लिए किया क्या ?ये भी सोचा जाना चाहिए कि ब्राह्मणों ने कभी किसी का बुरा नहीं किया !
ब्राह्मण लोग भी यदि बिलासी हो जाते तो भारत की प्राचीन विद्याओं को आज तक सहेज कर किसने रखा होता !ब्राह्मण लोग भी यदि केवल जनसंख्या बढ़ाने में लगे रहते तो आज उनकी भी बात सुनी जाती उनके विषय में भी कोई सोचता !किंतु जन संख्या बढ़ाने में पिछड़ने के कारण कोई भी योजना सवर्णों के नाम पर चलते नहीं दिखाई सुनाई देती है वो भी नेताओं की पहली पसंद बने होते और सवर्ण महापुरुषों के यहाँ भीCM - PM जैसे बड़े ओहदों पर बैठे लोग जाया करते और उनकी भी जयंती सरकारी तौर पर धूमधाम से मनाई जा रही होती किंतु जनसंख्या बढ़ाने में पीछे रह गए सवर्ण इसीलिए तो आज अपनी और अपने आस्था पुरुषों की बेइज्जती करवाते घूम रहे हैं !
ब्राह्मणों को गालियाँ दे देकर सवर्णों के प्रति घृणा फैलाकर लोग खुद तो बड़े बड़े ओहदों पर पहुँच गए किंतु दलितों को भूल गए !पार्कों में मूर्तियाँ लगवाने में हाथी बनवाने में जो पैसा फूँका गया वो गरीबों के विकास में भी लगाया जा सकता था !किंतु दलितों गरीबों को गरीब बनाए रहने में ही अपनी भलाई समझने वाले नेता लोग ऐसा कुछ करेंगे ही क्यों जिससे उनका उत्थान हो सके !
सरकारी स्कूलों में ज्यादातर दलितों और गरीबों के बच्चे पढ़ते हैं इसलिए वहां शिक्षक पढ़ाना ही नहीं चाहते और न पढ़ाते ही हैं चार घंटे उन्हें स्कूल में रुकना होता है वो रुके भी तो !दो घंटे भोजन के ड्रामे में निकल जाता है पढ़ाते कब हैं ये किसी को नहीं पता !उसका कारण यदि वे पढ़ जाएँगे तो नेताओं की सच्चाई समझ जाएँगे इसलिए नेता लोग सरकारी स्कूलों की स्थिति सुधरने ही नहीं देना चाहते !बच्चों को स्कूलों में भोजन और पैसों में फँसा कर रखे हुए हैं उनके अभिभावकों को घरों में आटा दाल चावल कपड़े लत्ते आरक्षण आदि के आश्वासन दे देकर उन्हें फँसाए पड़े हैं !नेता लोग बच्चों को पढ़ने नहीं दे रहे और उनके घर वालों को काम नहीं करने दे रहे हैं !दलित जब तक इस सच्चाई को समझते नहीं तब तक उनका कल्याण भगवान् भी नहीं कर सकते !
प्रभु श्री राम इस सच्चाई को समझते थे कि ब्राह्मणों ने इस देश और समाज के लिए बहुत कुछ किया है इसलिए वे सम्मान करते थे वो मानते थे कि त्याग बलिदान पूर्वक विद्या की उपासना करने और लगातार ईश्वर की आराधना में लगे रहने एवं सारे विश्व के प्रति कल्याण कामना रखने वाले व्राह्मण निंदा योग्य नहीं हैं !
दूसरी ओर ब्राह्मणों की बुराई करने वाले लोगों ने खुद क्या किया है ब्राह्मणों और सवर्णों के प्रति घृणा फैलाकर खुद ब्राह्मणों सवर्णों से ही चिपक गए और दलितों को बता गए कि तुम्हारी गरीबत और पिछड़ेपन के लिए दोषी हैं ब्राह्मण और सवर्ण !तुम इनसे घृणा करते रहना बस तुम्हें आटा दाल चावल आरक्षण का आश्वासन मिलता रहेगा और जो मेहनत करेंगे वे तरक्की करते चले जाएंगे तुम उन्हें देख देख कर कुढ़ते रहना !
इस प्रकार से सवर्णों के विरुद्ध घृणा के बीज बो बोकर नेताओं की कई कई पीढ़ियाँ इस देश को लूटती खाती चली आ रही हैं नेताओं के बेटा बेटी बहू भांजे भतीजे जिन्हें अपनी नाक पोछने का ढंग भी नहीं पता है जिन्हें शौचना भी नौकर सिखाते रहे हैं वे भी जब राजनीति में लांच किए जाते हैं तो विकास की बातें न करके अपनी राजनैतिक यात्रा की शुरुआत सवर्णों की निंदा से और दलितों को विकास का आश्वासन देकर करते हैं यही उनके बाप किया करते थे यदि दलित सुधरे नहीं तो यही उनके बेटे भी करते रहेंगे !और दलित जहाँ के तहाँ पड़े घुटते रहेंगे !
राजनीति इतनीगंदी मंडी है जहाँ कानून बनाने के साथ ही दलाल उन्हें बेचने का बयाना लेना शुरू कर देते हैं और सरकारी मशीनरी बेचने लगती है तुरंत !ऐसे भ्रष्टाचारी युग में नेता और सरकारी कर्मचारी पहले अपना और अपनों का ही पेट भर लें फिर दलितों को कुछ देंगे नहीं तो आश्वासन तो देंगे ही !
रही बात दलितों के शोषण की तो ब्राह्मणों और सवर्णों ने कभी किसी दलित का शोषण नहीं किया और करते भी क्या ऐसा था क्या उनके पास !वैसे भी सवर्णों की शोषण की कभी प्रवृत्ति ही नहीं रही वे अपने परिश्रम और ईमानदारी पर ही भरोसा किया करते थे उसी के बल पर आज भी गरीब सवर्ण लोग अपनी तरक्की करते जा रहे हैं और जो ऐसा नहीं करते वे सवर्ण भी गरीब हैं उसके लिए तो कोई नहीं कहता !यदि कोई गरीब किसी के शोषण करने से ही होता है तो गरीब सवर्णों का शोषण किसने किया आखिर उसे भी तो पकड़ कर सामने लाया जाए !
जिन्हें दोनों समय भूख लगती है शरीर स्वस्थ हैं संतानों को जन्म देने की क्षमता रखते हैं वे ऐसे पुंसत्व संपन्न लोग यदि कहें कि वे किसी के शोषण करने से गरीब हो गए तो ये उनकी कायरता है कमजोरी है आलस्य है स्वाभिमान विहीनता है लक्ष्य लालषा का अभाव है इसमें किसी और को दोषी ठहरना सच्चाई से मुख मोड़ना है !जो उन्नति नहीं अपितु अवनति का मार्ग प्रशस्त करता है !
कहते हैं सवर्णों की लड़कियों के विवाह दलितों के यहाँ किए जाने लगें तो सामाजिक समरसता आ जाएगी !अरे !सवर्णों की लड़कियों को भेड़ बकडियाँ क्यों समझा जा रहा है कि में बाँध दी जाएंगी तो बंधी रहेंगी !उनका भी स्वाभिमान है उनकी भी च्वाइस है अपने जीवन का निर्णय लेने का हक़ तो उन्हें भी है वैसे भी आरक्षण पाकर भी खुद कुछ कर न पाने वाले और अपनी असफलता के लिए दूसरों को दोषी ठहराने वाले लोगों का वरण कोई भी स्वाभिमानी कन्या क्यों करना चाहेगी और उसे इसके लिए बाध्य कैसे और क्यों किया जाएगा जिसने उन्हें जन्म दिया है उन पर बोझ नहीं हैं बेटियां जो अपने जीते जी स्वाभिमान विहीन अकर्मण्य लोगों के हाथों में सौंप देंगे अपनी प्राणों से प्यारी बेटियां !इसके लिए पहले पात्रता पैदा करनी होगी आरक्षण का मोह छोड़ना होगा और ईमानदारी से परिश्रम पूर्वक अपनी कमाई से अपना जीवन यापन करने की सामर्थ्य प्रमाणित करनी होगी !सरकारी आटा चावल दाल के भरोसे नहीं ब्याही जा सकती हैं सवर्णों की लड़कियां !स्वाभिमानी दिखने के लिए आरक्षण तो छोड़ना ही होगा और कम्पटीशन में सवर्णों के सामने स्वयं सीधे उतरना होगा !
रही बात दलितों के शोषण की तो ब्राह्मणों और सवर्णों ने कभी किसी दलित का शोषण नहीं किया और करते भी क्या ऐसा था क्या उनके पास !वैसे भी सवर्णों की शोषण की कभी प्रवृत्ति ही नहीं रही वे अपने परिश्रम और ईमानदारी पर ही भरोसा किया करते थे उसी के बल पर आज भी गरीब सवर्ण लोग अपनी तरक्की करते जा रहे हैं और जो ऐसा नहीं करते वे सवर्ण भी गरीब हैं उसके लिए तो कोई नहीं कहता !यदि कोई गरीब किसी के शोषण करने से ही होता है तो गरीब सवर्णों का शोषण किसने किया आखिर उसे भी तो पकड़ कर सामने लाया जाए !
जिन्हें दोनों समय भूख लगती है शरीर स्वस्थ हैं संतानों को जन्म देने की क्षमता रखते हैं वे ऐसे पुंसत्व संपन्न लोग यदि कहें कि वे किसी के शोषण करने से गरीब हो गए तो ये उनकी कायरता है कमजोरी है आलस्य है स्वाभिमान विहीनता है लक्ष्य लालषा का अभाव है इसमें किसी और को दोषी ठहरना सच्चाई से मुख मोड़ना है !जो उन्नति नहीं अपितु अवनति का मार्ग प्रशस्त करता है !
कहते हैं सवर्णों की लड़कियों के विवाह दलितों के यहाँ किए जाने लगें तो सामाजिक समरसता आ जाएगी !अरे !सवर्णों की लड़कियों को भेड़ बकडियाँ क्यों समझा जा रहा है कि में बाँध दी जाएंगी तो बंधी रहेंगी !उनका भी स्वाभिमान है उनकी भी च्वाइस है अपने जीवन का निर्णय लेने का हक़ तो उन्हें भी है वैसे भी आरक्षण पाकर भी खुद कुछ कर न पाने वाले और अपनी असफलता के लिए दूसरों को दोषी ठहराने वाले लोगों का वरण कोई भी स्वाभिमानी कन्या क्यों करना चाहेगी और उसे इसके लिए बाध्य कैसे और क्यों किया जाएगा जिसने उन्हें जन्म दिया है उन पर बोझ नहीं हैं बेटियां जो अपने जीते जी स्वाभिमान विहीन अकर्मण्य लोगों के हाथों में सौंप देंगे अपनी प्राणों से प्यारी बेटियां !इसके लिए पहले पात्रता पैदा करनी होगी आरक्षण का मोह छोड़ना होगा और ईमानदारी से परिश्रम पूर्वक अपनी कमाई से अपना जीवन यापन करने की सामर्थ्य प्रमाणित करनी होगी !सरकारी आटा चावल दाल के भरोसे नहीं ब्याही जा सकती हैं सवर्णों की लड़कियां !स्वाभिमानी दिखने के लिए आरक्षण तो छोड़ना ही होगा और कम्पटीशन में सवर्णों के सामने स्वयं सीधे उतरना होगा !
दलितों के हित का राग अलापने वाले नेता लोग जब पहला चुनाव लड़े थे तब कितना धन और संपत्तियाँ थीं उनके पास और आज कितनी हैं इसके बीच कमाई कैसे की और कैसे लगे अरबों की सम्पत्तियों के अंबार !राजनैतिक भ्रष्टाचार के अलावा रोजी रोजगार तो उन्हें कुछ करते नहीं देखा गया किंतु उनकी जाँच करवावे कौन !चोर चोर मौसेरे भाई !आज वो उनकी करवा दें तो कल वे उनकी करवाएँगे भय तो सबको है !इस ऊहापोह में दलितों और गरीबों के लिए कागजों में बनाई जाने वाली योजनाएँ नेता अधिकारी कर्मचारी आदि मिलकर चबा जाते हैं जनता देखते रह जाती है !
दलितों को सिखाया गया है अपने विकास के लिए औरों पर बोझ बनना और अपने ह्रास का दोषी औरों को ठहरा देना किंतु इसका मतलब आपका अपना वजूद कुछ नहीं था आपके अपने उत्थान पतन में आपकी अपनी कोई भूमिका ही नहीं थी आखिर क्यों ?आपकी इतनी बड़ी जनसंख्या भयवश तो घुटने टेक नहीं सकती थी फिर आप पिछड़े क्यों ?अपने पूर्वजों से क्यों नहीं पूछा कि आप करते क्या रहे !इसलिए जब तक अपने विकास और ह्रास की जिम्मेदारी आप स्वयं नहीं संभालेंगे तब तक कोई दूसरा कन्धा लगाकर कब तक आपको खड़ा बनाए रखेगा !
ब्राह्मणों में यदि योग्यता और ईमानदारी जैसे पवित्रगुण न होते तो नेता लोग कब का बर्बाद कर चुके होते सवर्णों को किंतु गुणों से रक्षा होती रहती है !
घरों से गरियाकर भगाए गए दो दो कौड़ी के नेता लोग ब्राह्मणों को गालियाँ दे देकर विधायक सांसद मंत्री मुख्यमंत्री आदि क्या क्या नहीं बन गए !ब्राह्मण गलत कभी नहीं रहे यही कारण है कि हर कोई ब्राह्मणों से जुड़ा रहना चाहता है यदि ब्राह्मण गलत ही थे तो उनका बहिष्कार क्यों नहीं किया गया ?अंबेडकर साहब
ने भी दूसरी शादी ब्राह्मण के यहाँ ही की थी और उनके शिक्षक तो ब्राह्मण थे
ही !
अंबेडकर साहब ने जिनके कहने पर अपने नाम से 'सकपाल' टाइटिल
हटाकर 'अंबेडकर' जोड़ा था वो उनके आत्मीय शिक्षक ब्राह्मण थे उनका नाम था
महादेव अंबेडकर !इसी प्रकार से अंबेडकर साहब की दूसरी पत्नी सविता
अम्बेडकर भी जन्म से ब्राह्मण थीं !
अम्बेडकर साहब से उनके शिक्षक महादेव अंबेडकर जी न केवल बहुत अधिक स्नेह करते थे अपितु वैसे भी वे अंबेडकर साहब की मदद किया करते थे उनके आपसी संबंध अत्यंत मधुर थे यदि ऐसा न होता तो उन्होंने उनके कहने पर अपने नाम की टाइटिल क्यों बदल ली थी और यदि बदल भी ली थी तो बाद में फिर से सकपाल बन सकते थे किन्तु ये उनका आपसी स्नेह एवं उन ब्राह्मण शिक्षक महोदय के प्रति सम्मान ही था जो उन्होंने आजीवन निभाया !
इसी प्रकार से अंबेडकर साहब की दूसरी पत्नी जन्म से ब्राह्मण थीं विवाह से पहले उनकी पत्नी का नाम शारदा कबीर था। बाद में सविता अम्बेडकर रूप में जानी गईं !वे सन 2002 तक जीवित रही वे अंतिम साँस तक बाबा साहब के आदर्शो के प्रति समर्पित रहीं !
ब्राह्मण विरोधी नेताओं ने उन्हें सम्मानित करना तो दूर उनका जिक्र करना तक मुनासिब नहीं समझा ! जबकि रमादेवी अम्बेडकर से जुड़े न जाने कितने स्मारक, पार्क इत्यादि हैं वो बाबा साहेब की पहली पत्नी थीं !
दलितों का शोषण सवर्णों ने बिलकुल नहीं किया किन्तु दलितों के बिछुड़ने के कारण कुछ और ही थे !
दलित लोग यदि वास्तव में अपनी उन्नति चाहते हैं तो ऐसे नेताओं को अपने दरवाजे से दुदकार कर भगा दें जो उन्हें खुश करने के लिए सवर्णों की निंदा करते हैं ! दलित लोग भी अब अपना लालच छोड़कर नेताओं से देश एवं समाज के विकास का हिसाब माँगें ! सीधे कह दें कि आप मेरी हमदर्दी मत कीजिए आपके पास इतनी संपत्ति कहाँ से आई आपका धंधा व्यापार क्या है और आप करते कब हैं ! और यदि न बतावें तो सीधे पूछिए हमारा हक़ क्यों हड़पा है आपने ! भले वो दलित नेता ही क्यों न हों ! अपराध अपराध है उसमें जातिवाद नहीं चलता !
ब्राह्मणों ने सबके साथ अच्छा व्यवहार किया किंतु जो सफल हुए उन्होंने सफलता का श्रेय अपनी योग्यता को दिया किंतु जो असफल हुए उन्होंने अपने अपमान भय से दोष ब्राह्मणों पर मढ़ दिया ! वैसे भी हर असफल व्यक्ति अपनी असफलता की जिम्मेदारी हमेंशा दूसरों पर डालता है । नक़ल करते पकड़ा गया विद्यार्थी हमेंशा अपने बगल में बैठे विद्यार्थी पर ही दोष मढ़ता है बड़े बड़े अपराधों में पड़े गए लोगों को कहते सुना जाता है कि हमें गलत फँसाया गया है किंतु यदि इनकी बात सही मान ली जाए तो क्यों कोई दोषी माना जाएगा !
बंधुओ ! ब्राह्मण यदि किसी की तरक्की में कभी बाधक बने होते तो आजादी के बाद आज तक इतना लंबा समय मिला जिसमें कोई भी स्वाभिमानी व्यक्ति अपनी तरक्की अपने परिश्रम से कर सकता था उसे आरक्षण की भी जरूरत नहीं पड़ती ! आखिर गरीब सवर्ण भी तो अपनी तरक्की बिना आरक्षण के अपने बल पर ही करते हैं वो अपने स्वाभिमान को गिरवी नहीं होने देते हैं । अपने स्वाभिमान को सुरक्षित रखने वाले किसी भी जाति के व्यक्ति का अपमान करने का साहस करने में हर कोई डरता है कि ये अपने स्वाभिमान के लिए मर मिटेगा इसलिए इससे भिड़ना ठीक नहीं है । ऐसे लोगों की इज्जत भी होती है और माँ बहन बेटियाँ भी सुरक्षित बनी रहती हैं ।
जो लोग कहते हैं कि हम बिना आरक्षण के तरक्की ही नहीं कर सकते इसका सीधा सा मतलब है कि उन्होंने अपने मुख से अपने को कमजोर मान लिया है और कमजोर लोगों का अपमान तो होता ही है इसमें जातियाँ कहाँ से आ गईं । कमजोर जाति की बात छोड़िये कमजोर भाई का अपमान उसका सगा भाई करने लगता है । कमजोर बेटे का पक्ष अधिकाँश माता नहीं लेते ! कमजोर पति को पत्नी सम्मान नहीं देती है कमजोर पिता का सम्मान उसकी संतानें नहीं करती हैं ऐसे में स्वयं अपने ऊख से अपने को कमजोर कहने वाले लोग सम्मान की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं बड़े बड़े पदों पर पहुँच कर भी लोग या तो अपने को कमजोर ही मन करते हैं या फिर सवर्णों को शत्रु मानने लगते हैं !
इसलिए सभी आरक्षण भोगियों को आपस में बैठकर चिंतन करना चाहिए तब उन्हें पता लगेगा कि उन्होंने आरक्षण से पाया कुछ ख़ास नहीं है किंतु भिखारी होने का ठप्पा जरूर लगवा लिया ! साथ ही इससे देश का बहुत बड़ा नुक्सान ये हुआ है कि एक से एक नकारा कामचोर मक्कार नेता लोग आरक्षण भोगी जातियों का वोट लेने के लिए चुनावों के समय सवर्णों को गाली देकर हीरो बन जाते हैं और चुनाव के बाद दलितों की स्थिति जस की तस रहती है कोई बदलाव नहीं आता ।
अम्बेडकर साहब से उनके शिक्षक महादेव अंबेडकर जी न केवल बहुत अधिक स्नेह करते थे अपितु वैसे भी वे अंबेडकर साहब की मदद किया करते थे उनके आपसी संबंध अत्यंत मधुर थे यदि ऐसा न होता तो उन्होंने उनके कहने पर अपने नाम की टाइटिल क्यों बदल ली थी और यदि बदल भी ली थी तो बाद में फिर से सकपाल बन सकते थे किन्तु ये उनका आपसी स्नेह एवं उन ब्राह्मण शिक्षक महोदय के प्रति सम्मान ही था जो उन्होंने आजीवन निभाया !
इसी प्रकार से अंबेडकर साहब की दूसरी पत्नी जन्म से ब्राह्मण थीं विवाह से पहले उनकी पत्नी का नाम शारदा कबीर था। बाद में सविता अम्बेडकर रूप में जानी गईं !वे सन 2002 तक जीवित रही वे अंतिम साँस तक बाबा साहब के आदर्शो के प्रति समर्पित रहीं !
ब्राह्मण विरोधी नेताओं ने उन्हें सम्मानित करना तो दूर उनका जिक्र करना तक मुनासिब नहीं समझा ! जबकि रमादेवी अम्बेडकर से जुड़े न जाने कितने स्मारक, पार्क इत्यादि हैं वो बाबा साहेब की पहली पत्नी थीं !
दलितों का शोषण सवर्णों ने बिलकुल नहीं किया किन्तु दलितों के बिछुड़ने के कारण कुछ और ही थे !
दलित लोग यदि वास्तव में अपनी उन्नति चाहते हैं तो ऐसे नेताओं को अपने दरवाजे से दुदकार कर भगा दें जो उन्हें खुश करने के लिए सवर्णों की निंदा करते हैं ! दलित लोग भी अब अपना लालच छोड़कर नेताओं से देश एवं समाज के विकास का हिसाब माँगें ! सीधे कह दें कि आप मेरी हमदर्दी मत कीजिए आपके पास इतनी संपत्ति कहाँ से आई आपका धंधा व्यापार क्या है और आप करते कब हैं ! और यदि न बतावें तो सीधे पूछिए हमारा हक़ क्यों हड़पा है आपने ! भले वो दलित नेता ही क्यों न हों ! अपराध अपराध है उसमें जातिवाद नहीं चलता !
ब्राह्मणों ने सबके साथ अच्छा व्यवहार किया किंतु जो सफल हुए उन्होंने सफलता का श्रेय अपनी योग्यता को दिया किंतु जो असफल हुए उन्होंने अपने अपमान भय से दोष ब्राह्मणों पर मढ़ दिया ! वैसे भी हर असफल व्यक्ति अपनी असफलता की जिम्मेदारी हमेंशा दूसरों पर डालता है । नक़ल करते पकड़ा गया विद्यार्थी हमेंशा अपने बगल में बैठे विद्यार्थी पर ही दोष मढ़ता है बड़े बड़े अपराधों में पड़े गए लोगों को कहते सुना जाता है कि हमें गलत फँसाया गया है किंतु यदि इनकी बात सही मान ली जाए तो क्यों कोई दोषी माना जाएगा !
बंधुओ ! ब्राह्मण यदि किसी की तरक्की में कभी बाधक बने होते तो आजादी के बाद आज तक इतना लंबा समय मिला जिसमें कोई भी स्वाभिमानी व्यक्ति अपनी तरक्की अपने परिश्रम से कर सकता था उसे आरक्षण की भी जरूरत नहीं पड़ती ! आखिर गरीब सवर्ण भी तो अपनी तरक्की बिना आरक्षण के अपने बल पर ही करते हैं वो अपने स्वाभिमान को गिरवी नहीं होने देते हैं । अपने स्वाभिमान को सुरक्षित रखने वाले किसी भी जाति के व्यक्ति का अपमान करने का साहस करने में हर कोई डरता है कि ये अपने स्वाभिमान के लिए मर मिटेगा इसलिए इससे भिड़ना ठीक नहीं है । ऐसे लोगों की इज्जत भी होती है और माँ बहन बेटियाँ भी सुरक्षित बनी रहती हैं ।
जो लोग कहते हैं कि हम बिना आरक्षण के तरक्की ही नहीं कर सकते इसका सीधा सा मतलब है कि उन्होंने अपने मुख से अपने को कमजोर मान लिया है और कमजोर लोगों का अपमान तो होता ही है इसमें जातियाँ कहाँ से आ गईं । कमजोर जाति की बात छोड़िये कमजोर भाई का अपमान उसका सगा भाई करने लगता है । कमजोर बेटे का पक्ष अधिकाँश माता नहीं लेते ! कमजोर पति को पत्नी सम्मान नहीं देती है कमजोर पिता का सम्मान उसकी संतानें नहीं करती हैं ऐसे में स्वयं अपने ऊख से अपने को कमजोर कहने वाले लोग सम्मान की अपेक्षा कैसे कर सकते हैं बड़े बड़े पदों पर पहुँच कर भी लोग या तो अपने को कमजोर ही मन करते हैं या फिर सवर्णों को शत्रु मानने लगते हैं !
इसलिए सभी आरक्षण भोगियों को आपस में बैठकर चिंतन करना चाहिए तब उन्हें पता लगेगा कि उन्होंने आरक्षण से पाया कुछ ख़ास नहीं है किंतु भिखारी होने का ठप्पा जरूर लगवा लिया ! साथ ही इससे देश का बहुत बड़ा नुक्सान ये हुआ है कि एक से एक नकारा कामचोर मक्कार नेता लोग आरक्षण भोगी जातियों का वोट लेने के लिए चुनावों के समय सवर्णों को गाली देकर हीरो बन जाते हैं और चुनाव के बाद दलितों की स्थिति जस की तस रहती है कोई बदलाव नहीं आता ।
भगवान श्री राम से किसी नेता की कोई तुलना हो ही नहीं सकती किंतु आश्चर्य होता है ऐसे नेताओं को देखकर !जिस किसी ब्राह्मण से विद्या पाई हो भोजन सहयोग लिया हो उसकी जातीय टाइटिल आजीवन अपने नाम के साथ धारण किए रहा हो दूसरा विवाह भी ब्राह्मण लड़की के साथ किया हो फिर उस ब्राह्मण जाति की आलोचना का औचित्य क्या था !
ब्राह्मणों और सवर्णोंके नाम पर कुछ सवर्ण परिवारों में भी डालडा पैदा हो गया है उसे लगता है कि उनके पुरखों ने पहले कभी दलितों का शोषण किया होगा इसलिए आज वो डालडा चाह रहा है कि ब्राह्मणों को कश्मीर चला जाना चाहिए और यहाँ हिन्दुओं को भेदा भाव भूलकर उन कायरों की तरह सभी सवर्णों को दलित देवताओं की गालियां खानी चाहिए किंतु असली सवर्ण कायरों की तरह जीना कभी पसंद नहीं करेंगे !डालडे को देशी घी से घृणा होना स्वाभाविक ही है !ऐसेलोग अपने नामों के साथ टाइटिल तो सवर्णों की लगाते हैं किंतु मिलावट उनकी है जिनके गुण गाते हैं अगर ऐसे डुब्लिकेट ब्राह्मणों सवर्णों या उनके पुरखों ने किसी दलित का कोई शोषण किया है तो उनको माफी मांगनी चाहिए और दलितों का हिस्सा वापस लौटाना चाहिए !
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