Friday, 28 June 2019

ग्लोबलवार्मिंग 2


ग्लोबलवार्मिंग और जलवायुपरिवर्तन जैसी आशंका का आधार क्या है ?
        वैसे तो मौसम संबंधी घटनाओं में  असंतुलन  हमेंशा से होता रहा है कहीं वर्षा और बाढ़ अधिक होती है तो कहीं सूखा अधिक पड़ता है आँधी तूफान की घटनाएँ कई बार अधिक घटित होती हैं !ऋतुओं का समय बदल रहा है !इसीलिए इनका पूर्वानुमान लगा पाना  दिनोंदिन कठिन होता जा रहा है !सूखा,अकाल,वर्षा,बाढ़ एवं आँधी तूफ़ान जैसी मौसमसंबंधी घटनाओं के विषय में मौसम भविष्यवक्ता लोग जो  भविष्यवाणियाँ करते हैं वो गलत होते  देखी जा रही हैं इसलिए उन्हें यह लगने लगा है कि जलवायु परिवर्तन रहा है !
      ग्रीष्म ऋतु में "गंगा जी सूखती जा रहीं हैं इसका कारण यह बताया गया है कि ग्लोबलवार्मिंग के  कारण गर्मी बढ़ रही है इसलिए गंगाजल सूख रहा है इसीप्रकार से उसी ग्रीष्म ऋतु के समय में गंगा जी का जलस्तर जब बढ़ने लगता है तो उसका कारण भी ग्लोबलवार्मिंग को ही बताया जा रहा है !उसका तर्क दिया जा रहा है कि ग्लोबलवार्मिंग के कारण गर्मी बढ़ने से बर्फ पिघल रही है इसलिए गंगा जी में जलस्तर बढ़ रहा है ! इस प्रकार से परस्पर विरोधी इन  दोनों प्रकार की बातों में ग्लोबलवार्मिंग को  ही कारण बताया जा रहा है !
      
कहीं कम और कहीं अधिक वर्षा हो रही है या कहीं सूखा और कहीं बाढ़ की घटनाएँ घटित हो रही हैं वर्षा का वितरण ठीक ढंग से नहीं हो पा रहा है ! इसी प्रकार से आँधी तूफ़ान आदि घटनाएँ चूँकि अधिक घटित हो रही हैं इसका ग्लोबलवार्मिंग और  जलवायुपरिवर्तन को बताया जा रहा है !
 ग्लोबलवार्मिंग और  जलवायुपरिवर्तन का  भ्रम क्यों हुआ ?
     मौसमभविष्यवाणी  करने वाले लोगों के द्वारा जितनी भी मौसम संबंधी जितनी भी मौसम संबंधी जितनी भी मौसम संबंधी जितनी भी मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ जी जाती थीं  उनमें से अधिकाँश गलत निकल जाया करती थीं ऐसा अभी भी होते देखा जाता है !दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमानों के विषय में तो लगता है कि वे बोले ही गलत होने के लिए जाते हैं ऐसी परिस्थिति में बार बार गलत होते  रहने के कारण ऐसी भविष्यवाणियों का उपहास होने लगा था !इसलिए मौसम भविष्यवक्ताओं ने जवाबदेही से बचने के लिए ग्लोबलवार्मिंग और  जलवायुपरिवर्तन की परिकल्पना की होगी !वैसे भी ग्लोबलवार्मिंग और  जलवायुपरिवर्तन के कारण क्या हैं और इसके लक्षण क्या हैं इस विषय में अभी तक कोई विश्वसनीय उत्तर नहीं दिए जा सके हैं !घूम फिर कर एक ही बात आती है !चूँकि मौसम भविष्यवक्ता लोग जिस प्रकार की भविष्यवाणियाँ करते हैं मौसम संबंधी घटनाएँ मौसमभविष्यवक्ताओं के आदेशों का पालन नहीं करती हैं इसलिए मौसमभविष्यवैज्ञानिकों के द्वारा मौसमसंबंधी घटनाओं के लिए दोषारोपित किया जा रहा है कि मौसम ग्लोबलवार्मिंग और  जलवायुपरिवर्तन के  कारण मौसम संबंधी घटनाएँ मौसमभविष्यवैज्ञानिकों  की आज्ञा का पालन नहीं कर रही हैं आप स्वयं देख लीजिए -
   प्रश्न - मौसम किसे कहते हैं ?
 उत्तर - निर्धारित समय पर किसी स्थान पर बाह्य वातावरणीय परिस्थितियों में होने वाला परिवर्तन मौसम कहलाता है।विभिन्न स्थानों पर अधिकतम एवं न्यूनतम तापमान, बादलों एवं वायु की स्थिति,आर्द्रता आदि।
प्रश्न - मौसम में अप्रत्याशित बदलाव क्या हो रहा है ?

उत्तर - मानसून अपने निश्चित समय नहीं आता है !ऋतुओं से संबंधित घटनाओं के घटित होने का समय बदल रहा है ! 
प्रश्न - मौसम के पैटर्न में बदलाव का कारण क्या है ?
उत्तर -  'ग्लोबलवार्मिंग' अर्थात पृथ्वी का तापमान बढ़ना है ! 
प्रश्न -  'ग्लोबलवार्मिंग' से क्या क्या नुक्सान होता है ?
उत्तर - गर्मी बढ़ती है ,आँधीतूफ़ान की घटनाएँ बढ़ती हैं एवं वायु प्रदूषण बढ़ता है !
 प्रश्न -'ग्लोबलवार्मिंग' बढ़ने का कारण क्या है ?
उत्तर -'जलवायुपरिवर्तन' के कारण बती है 'ग्लोबलवार्मिंग' 
प्रश्न 'जलवायुपरिवर्तन' हो रहा है इसका पता कैसे लगा ?
उत्तर-मानसून प्रभावित हो रहा करता है !मौसम के लक्षणों में बदलाव हो रहा है ! वर्षा कहीं कम और कहीं ज्यादा हो रही है, पवनों की दिशा में परिवर्तन हो रहे हैं, देश में बाढ़, चक्रवात, और सूखे जैसी प्रकृतिक आपदाओं की आवृत्ति बढ़ती जा रही है!कहीं वर्षा और कहीं सूखे की घटनाएँ बहुत तेजी से घटित होते देखी जा रही हैं !गर्मियाँ लंबी और सर्दियाँ  छोटी होती जा रही हैं !अक्टूबर-नवंबर माह तक गर्मी पड़ते देखी जा रही है फरवरी-मार्च तक सर्दी पड़ने लगी है एवं अगस्त-सितंबर से वर्षा होना शुरू होता है !ऐसी घटनाओं को देखकर लगता है कि जलवायुपरिवर्तन हो रहा है! 
प्रश्न - 'जलवायुपरिवर्तन' होने का कारण क्या है ?
उत्तर - जलवायु परिवर्तन का मुख्यकारण वायुप्रदूषण माना जाता है !जंगलों की कटाई आदि का भी असर होता है !
 प्रश्न -वायुप्रदूषण बढ़ने का कारण क्या है  ?
 उत्तर - औद्योगिक क्रांति के बाद मनुष्य द्वारा उद्योगों से निःसृत कार्बन डाई आक्साइड आदि गैसों के वायुमण्डल में अधिक मात्रा में बढ़ जाने का परिणाम ग्रीनहाउस प्रभाव और वैश्विक तापन है !ज्वालामुखी फटने से वायु प्रदूषण बढ़ता है ! फ्रिज, एयर कंडीशनर और दूसरे कूलिंग मशीनों की सीएफसी गैसों के ऊत्सर्जन के कारण वायु प्रदूषण बढ़ता है !
     इसके अतिरिक्त मनुष्य की क्रियाओं का परिणाम माना जा रहा है वायु प्रदूषण ! दशहरे में रावण जलने से, दिवाली में पटाके जलने से होली में होली जलने से,सर्दी में हवा रुक जाने से गर्मी में हवा के साथ धूल उड़ने से ,गाड़ियों के धुएँ से ,फसलों के अवशेष जलने से,घर बनने से,ईंट भट्ठे चलने से,हुक्का पीने से,महिलाओं के स्प्रे करने से,भौगोलिक कारणों से ऐसे ही और भी तमाम कारण बताए जाते हैं उनसे वायु प्रदूषण बढ़ता है !ऐसे और भी बहुत सारे कारण वैज्ञानिकों के द्वारा समय समय पर वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए गिनाए जाते रहते हैं !
 प्रश्न - जलवायु परिवर्तन से क्या क्या नुक्सान हो सकते हैं ?
उत्तर-इससे बारिश के तरीकों में बदलाव होगा , हिमखण्डों और ग्लेशियरों के पिघलने की गति बढ़ेगी , समुद्र के जलस्तर में वृद्धि होगी !इससे दुनियाँ में भारी वर्षा, बाढ़, सूखा, तूफान, चक्रवात जैसी आपात स्थितियाँ कहीं अधिक बढ़  जाएँगी ।गर्म अक्षांशों में वर्षा घटने से सूखे जैसी स्थिति से कृषि की पैदावार घट जाएगी ,बर्फ के सर्दियों में तेजी से पिघलने के कारण गर्मी के समय नदियों में पानी कम हो जाएगा!भारत जैसे देश में लगभग 7000 किलोमीटर लंबा समुद्रतट है और भारत की चौथाई जनसंख्या तट के 50 किलोमीटर के अंदर बसती है, समुद्र का जल स्तर बढ़ने से जमीन डूबने, खेत, घर, बस्तियाँ व नगर नष्ट होने, खारा पानी तटों पर अंदर आने जैसे खतरनाक प्रभाव हो सकते हैं।जो देश लगभग पूरे द्वीप हैं और समुद्र तट पर ही बसे हैं, जैसे बांगलादेश, मालदीव, मॉरीशस आदि, उनके लिये भारी खतरा है।इससे वैज्ञानिकों द्वारा ऐसी आशंकाएँ व्यक्तकी जा रही हैं कि पृथ्वी किस दर से गर्म हो रही है तथा यह कितनी और अधिक गर्म होगी।
 प्रश्न -  जलवायु परिवर्तन पर अनुसंधान कैसे किया जाता है ?
उत्तर- पृथ्वी के इतिहास को दीर्घ अवधियों में बाँट कर देखा जाता है !किसी स्थान विशेष की जलवायु का पता लगाने के लिये कम-से-कम 30 वर्षों के मौसम की जानकारी को आवश्यक बताई जाती है  कोई स्थान कैसा है यह वहाँ की जलवायु से पता चल जाता है।चूँकि इस समय मौसम से संबंधित घटनाओं का ढाँचा बदल रहा है इसका मतलब जलवायु परिवर्तन हो रहा है  ऐसा मान लिया गया है !

                                              मौसमभविष्यवक्ताओं की जबरदस्ती -       
       मौसमसंबंधी घटनाओं के लिए मौसम भविष्यवक्ताओं ने जो भी नियमावली बनाई है मौसम संबंधी घटनाएँ उनकी आज्ञा का पालन नहीं कर रही हैं !मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा लंबे समय तक रिसर्च करने के बाद मौसम संबंधी घटनाओं के घटित होने का समय निश्चित किया गया है उनका मानना है जिस घटना के लिए मैंने जो समय निश्चित किया है मौसम संबंधी घटनाओं को उसी समय पर घटित होना चाहिए और जिस घटना का पूर्वानुमान लगाने में हम असफल हो गए हों या हमने जिस घटना के विषय में भविष्यवाणी न की हो उसे नहीं घटित होना चाहिए ! जिसका पूर्वानुमान न लगाया गया हो मौसम संबंधी ऐसी कोई घटना यदि घटित होती है उस घटना  को घटित होने का कारण ग्लोबलवार्मिंग और  जलवायुपरिवर्तन को माना जाना चाहिए !
    इसी नियम के तहत मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा मानसून आने के लिए जो तारीख निश्चित की गई है उस तारीख से पहले बरसना शुरू हो जाए तो उसे मानसूनी बारिश न मानकर अपितु प्रिमानसूनी बारिश मानी  जाएगी  और उस तारीख के बाद में बरसे तो मानसूनी बारिश कहा जाएगा !उनके द्वारा निश्चित की गई तारीख से बरसने लगे तो समय से पहुँचा हुआ मानसून माना जाएगा और यदि उस तारीख से न बरसे तो ग्लोबलवार्मिंग और  जलवायुपरिवर्तन के  कारण मानसून देर से आया हुआ मान लिया जाता है !
     चूँकि इतने वर्षों में मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा मानसून आने की सही तारीखों पर मानसून बार ही आया होगा तभी उनके अनुसार दी गई सही तारीख पर बरसा शुरू हो सकी होगी बाक़ी अभी तक अधिकाँश वर्षों में मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा बताई  हुई  मानसून के पूर्वानुमान संबंधी तारीखों पर वर्षा प्रारंभ नहीं हो सकी है!विशेष बात यह है कि मौसम भविष्यवक्ता लोग  मानसून पहुँचने अर्थात वर्षाऋतु के समय में बारिश प्रारंभ होने का सही पूर्वानुमान नहीं बता सके यह कहने के बजाए  मानसून समय पर नहीं पहुँचा यह कहा जा रहा है !ये मौसमभविष्यवक्ताओं की जबरदस्ती नहीं तो और क्या है !उनकी इस जबरदस्ती को  ही ग्लोबलवार्मिंग और  जलवायुपरिवर्तन  कहा जा रहा है !   
       इसी प्रकार से वर्षा ऋतु में वर्षा कब से शुरू होकर कब तक चलेगी, वर्षा की मात्रा किस प्रकार की रहेगी सूखा पड़ने और बारिश होने के आसार कब कब हैं इसके विषय में मौसमवैज्ञानिक लोग अक्सर भविष्यवाणियाँ किया करते हैं उनमें से जो सही निकल जाएँ वो तो मौसमभविष्यवक्ताओं  का मौसम पर्वानुमान और उनके द्वारा की गई भविष्यवाणियों में से गलत निकल जाएँ उनके लिए ऐसा समझा जाना चाहिए कि भविष्यवाणियाँ तो सहीं थीं वर्षा होने की तारीख आदि वही सही थी !मौसम के नियमानुसार उस  दिन वहाँ पर उतनी ही बारिस होनी चाहिए थी जैसी भविष्यवाणी की गई थी चूँकि वैसा नहीं हो पाया इसलिए अब यह न कहकर कि मौसमभविष्यवक्ताओं के द्वारा की गई भविष्यवाणी सही नहीं हुई अपितु यह कहा जाएगा कि जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षाऋतु मौसम भविष्यवक्ताओं के आदेश की अवहेलना कर रही है इसीलिए सूखा अल्पवर्षा अतिवर्षा जैसी मनमानी घटनाएँ घटित होते जा रही हैं उन पर किसी का कोई अंकुश नहीं रह गया है इसलिए इसे ग्लोबलवार्मिंग और  जलवायुपरिवर्तन  का असर कहा जाएगा !
       ऐसे ही आँधी तूफानों के आने के विषय में मौसमभविष्यवक्ताओं के द्वारा सही एवं सटीक भविष्यवाणियाँ न की जा सकें और जो की जाएँ उनमें से काफी बड़े अनुपात में गलत निकल जाएँ तो उनके द्वारा की गई उन भविष्यवाणियों को गलत नहीं माना जाएगा अपितु कहा जाएगा कि ग्लोबलवार्मिंग और जलवायुपरिवर्तन आदि के कारण आँधी तूफान की घटनाएँ अपने निश्चित समय पर घटित न होकर आगे पीछे घटित होते देखी जा रही हैं !वस्तुतः मौसमभविष्यवक्ताओं के द्वारा अपनी भविष्यवाणियों में आँधी तूफानों के घटित होने का जो समय बताते हैं वही उनके घटित होने का सही समय होता है !उसके अलावा किसी दूसरे समय में घटित हों या न घटित हों इसका मतलब ग्लोबलवार्मिंग और  जलवायुपरिवर्तन हो रहा है !
       इसी प्रकार से वायु प्रदूषण बढ़ने के विषय में इसे रोकने या कम करने के लिए अनुसंधान बहुत बड़े बड़े हो रहे हैं भारी भरकम धनराशि भी खर्च की जा रही है किंतु अभी तक इस बात निर्णय  नहीं किया जा सका है कि वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण प्राकृतिक है या मनुष्यकृत!यदि मनुष्यकृत ही है तो इसके पूर्वानुमान से संबंधित भविष्यवाणियाँ मौसमभविष्यवक्ताओं के द्वारा किस आधार पर की जाती हैं कि दो दिन और बढ़ा रहेगा तीन दिन और बढ़ा रहेगा आदि ऐसा कहने के पीछे उनका आधार क्या होता है क्योंकि जितने प्रकार के कार्यों को प्रदूषण फैलाने के लिए दोषी माना जाता है वो प्रदूषण फैलाने वाले कार्य किस दिन करेंगे और किस दिन नहीं करेंगे इसका अनुमान लगाए बिना यह कैसे कहा जा सकता है कि वायु प्रदूषण इतने दिन और रहेगा ! दूसरी बात वायु प्रदूषण को मनुष्यकृत मानने में एक बड़ी कठिनाई यह भी है कि जहाँ जहाँ वायु प्रदूषण बढ़ता है सब जगह जरूरी नहीं कि वे कार्य हर जगह उसी समय उसी रूप में किए जा रहे हों !वैसे तो मनुष्य की कार्यप्रणाली कुछ अंतर के साथ हमेंशा और हर देश प्रदेश में लगभग एक जैसी रहती है इसलिए वायुप्रदूषण की मात्रा हर दिन एवं हर जगह थोड़े बहुत अंतर के साथ लगभग एक जैसी ही रहती है !उसका कारण सभी देशों में लोगों की दिनचर्या लगभग एक जैसी है भूख प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन लगती है वो किसी भी देश जाति समुदाय संप्रदाय आदि का क्यों न हो !पेट भरने का इंतिजाम विश्व का प्रत्येक व्यक्ति अपने अपने हिसाब से करता है विकास की प्रतिस्पर्द्धा में प्रत्येक देश और प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे को अपने से पीछे कर देना चाहता है ! इस विकास की प्रतिस्पर्द्धा में घर सब जगह बनते हैं उद्योग धंधे गाड़ियाँ आदि हर जगह हमेंशा चलती हैं ऐसे ही किसी जगह धुआँ धूल या कार्वन उत्सर्जन करने वाला एक काम कुछ कम होता होगा तो इसीप्रकार का कोई दूसरा काम अधिक होता होगा !इसलिए वायुप्रदूषण सभी जगह सभी समय पर लगभग एक जैसा होना चाहिए किंतु ऐसा नहीं होता है अपितु कहीं कुछ कम और कहीं कुछ अधिक होता है !इसीप्रकार से किसी समय में वायु प्रदूषण कुछ कम और किसी समय में कुछ अधिक होता है !स्थान और समय दोनों में अंतर होने का कारण क्या हो सकता है ? 
    मौसमवैज्ञानिकों को  ऐसे  विषयों पर अनुसंधान करने में चूँकि कोई सफलता नहीं मिल सकी इसलिए यह कहने के बजाए अपितु यह कहा जाएगा कि वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जनता की कार्यप्रणाली ही जिम्मेदार है ! 
     इसीप्रकार से वर्षा ऋतु में वर्षा कैसी होगी इस विषय पर अप्रैल के महीने में मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा पूर्वानुमान घोषित किया जाता है यदि वह पूर्वानुमान जून जुलाई में पहुँचकर गलत हो जाए तो मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा  की जाने वाली भविष्यवाणियाँ गलत हो गईं ऐसा कहने के बजाय  'एलनीनो' 'ला-नीना' जैसी समुद्रीघटनाओं का प्रभाव बता दिया जाता है !
      ऐसी परिस्थिति में सबसे अधिक विचारणीय बात यह है कि यदि वर्षा होने न होने या कम ज्यादा होने पर और आँधी तूफानों के आने संबंधी घटनाओं पर तथा मानसून आने की तारीखों पर एवं वायु प्रदूषण बढ़ने घटने के लिए यदि ग्लोबलवार्मिंग, जलवायुपरिवर्तन, 'एलनीनो' 'ला-नीना' जैसी घटनाओं का इतना अधिक प्रभाव है इनके कारण मौसमवैज्ञानिकों के द्वारा लगाए जाने वाले पूर्वानुमान इतना  अधिक प्रभावित हो जाते हैं कि मौसमसंबंधी घटनाएँ कई बार मौसम संबंधी भविष्यवाणियों के बिलकुल विपरीत घटित होते देखी जाती हैं !कई बार ऐसा हो जाने के कारण ऐसी भविष्यवाणियों पर जनता का विश्वास हो पाना कठिन होता है !क्योंकि मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा की जाने वाली न जाने कौन भविष्यवाणी कब गलत हो जाए !
    इसलिए मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाने वालों की सार्थकता तभी है जब ग्लोबलवार्मिंग, जलवायुपरिवर्तन, 'एलनीनो' 'ला-नीना' जैसी घटनाओं के भविष्यवाणियों पर पड़ने वाले प्रभाव का भी अनुसंधान करते हुए सबके संयुक्त प्रभाव पर रिसर्च हो उसके आधार पर जो पूर्वानुमान उपलब्ध हों केवल उन्हें ही अपनी भविष्यवाणियों में सम्मिलित किया जाए !इसके अलावा केवल उपग्रहों और रडारों से प्राप्त चित्रों को देख देख कर उन्हीं उन्हीं की गति और दिशा को नाप तौल कर  पूर्वानुमान बताते  रहने की अपेक्षा इसके वास्तविक कारणों पर भी अनुसंधान करने का प्रयास किया जाए !यह मौसम भविष्यवक्ताओं का अपना दायित्व है और ऐसा किया ही जाना चाहिए क्योंकि  उनके कहने के अनुशार ग्लोबलवार्मिंग, जलवायुपरिवर्तन, 'एलनीनो' 'ला-नीना'जैसी घटनाएँ होती हैं और इनका वर्षा आँधी तूफ़ान जैसी घटनाओं पर असर होता है !ऐसी परिस्थिति में में उस असर का अनुसंधानकी बिना मौसम संबंधी पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है और उसके सच होने की उम्मींद भी कितनी की जानी चाहिए !
       किसी रसोइए को भोजन बनाने की जिम्मेदारी जब सौंपी जाती है तो ये जिम्मेदारी उसकी होती है कि वह पकवान जिम्मेदारी सौंपने वाले की इच्छा के अनुशार स्वादिष्ट बनाया जाए !उसमें फिर किंतु परंतु की गुंजाइस नहीं रह जाती है !सारी सामग्री मिलने के बाद उस भोजन निर्माण सामग्री में सम्मिलित प्रत्येक द्रव्य की मात्रा का अनुसंधान करके वह रसोइया निश्चित करता है कि इस पकवान का स्वाद संबंधित व्यक्ति की इच्छा के अनुशार कैसे बनेगा !यह उसकी जिम्मेदारी होती है और कर्तव्य भी !उसी हिसाब से वह उस सामग्री का उपयोग करने के लिए स्वतंत्र होता है ! ऐसी परिस्थिति  नौसिखिए अनाड़ी रसोइए अक्सर पकवान का स्वाद बिगड़ जाने के बाद कहते सुने जाते हैं घी कम रह गया ,नमक अधिक हो गया ,आग अधिक तेज जल गई,आटा कड़ा गुँथ गया गरम मशाला  कम रह गया आदि आदि !ऐसी बातें करके वह केवल अपनी झेंप मिटाने की कोशिश कर रहा होता है किंतु ऐसी बातें सुनने के बाद भी लोग उस रसोइए की दलीलों से संतुष्ट नहीं होते हैं और उसे सीधे सीधे उसकी पकवान बनाने संबंधी योग्यता को ही ललकारने लगते हैं और कह देते हैं अब ये कहानियाँ क्यों सुना रहे हो यदि तुममे पकवान बनाने की योग्यता नहीं थी तो तुम पहले ही मना कर देते !
       ठीक यही स्थिति मौसम संबंधी भविष्यवक्ताओं की है कि यदि उन्हें लगता है कि ग्लोबलवार्मिंग, जलवायुपरिवर्तन, 'एलनीनो' 'ला-नीना' जैसी घटनाओं का यदि मौसम संबंधी पूर्वानुमानों पर इतना बड़ा असर है तो उसके प्रभाव को समझना सबसे पहले आवश्यक है और यदि उसके प्रभाव को समझ पाने की योग्यता का अभाव है तो आधार विहीन आधी अधूरी तीरतुक्कों वाली भविष्यवाणियाँ करते रहने से अच्छा है कि ये बात स्पष्ट रूप से कह दी जानी चाहिए कि देखो "ग्लोबलवार्मिंग, जलवायुपरिवर्तन, 'एलनीनो' 'ला-नीना'आदि के प्रभाव के कारण मेरे द्वारा की गई कोई भी मौसमसंबंधी भविष्यवाणी गलत हो सकती है ! क्योंकि  ग्लोबलवार्मिंग, जलवायुपरिवर्तन, 'एलनीनो' 'ला-नीना' जैसी घटनाओं के प्रभाव की हमें समझ नहीं है " यदि वो ऐसा नहीं करते तो एक ओर भविष्यवाणी करते जाते हैं उसी भविष्यवाणी के साथ साथ यही  ग्लोबलवार्मिंग, जलवायुपरिवर्तन, 'एलनीनो' 'ला-नीना' वाला प्रभाव अपनी सुविधानुसार साथ साथ लिए चल रहे होते हैं कि भविष्यवाणी सच हुई तो भविष्यवाणी और गलत हुई तो ऐसी प्राकृतिक घटनाओं का प्रभाव !यदि वैज्ञानिक लोग ही इनके प्रभाव का अध्ययन अनुसंधान करके इनकी सच्चाई समाज के सामने नहीं रख पाएँगे तो ये जनता को हर बार ऐसे प्रभावों के विषय में क्यों बताते हैं जनता इनका निष्कर्ष कैसे निकालेगी !मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा आत्मसुरक्षा में गढ़ी गई ऐसी कथा कहानियों का अभिप्राय जनता कैसे समझे ?जनता मौसम वैज्ञानिक तो है नहीं !
            मौसम भविष्यवक्ताओं को सोचना होगा !                   

     प्रकृति को किसी एक अवस्था  में बाँध कर कभी कोई नहीं रख सकता है और न ही ऐसी चेष्टा की जानी चाहिए ! जिसमें यदि पृथ्वी समेत समस्त वातावरण के तापमान बढ़ने का समय चल रहा है तो तापमान बढ़ेगा ही उसके लिए इतना हो हल्ला क्यों ?इसके साथ ही हमें इस बात को भी याद रखना होगा कि प्रकृति का कोई भी आचरण जीवन के लिए हानिकारक नहीं हो सकता है !यह अलग बात है कि मनुष्यों के कुछ कार्यों के परिणामों के प्रतिक्रिया स्वरूप कुछ ऐसी प्राकृतिक दुर्घटनाएँ घटित हो जाएँ जिससे जीवन बाधित हो !
      इसे लेकर ऐसे भ्रम भी नहीं फैलाए जाने चाहिए कि जैसे तापमान बढ़ने से बहुत कुछ उलट पुलट हो जाएगा !जिस प्रकार से प्रातः काल की अपेक्षा दोपहर में तापमान बहुत अधिक बढ़ जाता है ऐसे ही शिशिर ऋतु की अपेक्षा ग्रीष्म ऋतु में  तापमान बहुत अधिक बढ़ जाता है !किंतु इन दोनों ही समयोंजनित अवस्थाओं में तापमान बढ़ने से प्रकृति तथा जीवन केवल उतना ही शोषित होता है जितना आवश्यक है और जितना मनुष्य समेत सभी जीव जंतु तथा प्रकृति के पेड़ पौधे आदि सह पाते हैं !इससे किसी को कोई नुक्सान नहीं होता है किंतु नुक्सान उतना ही होता है जो समय जनित ऐसी अवस्था में समय के अलावा अन्य प्रकार की भी विपरीत परिस्थितियाँ सह रहे होते हैं ! जल के अभाव में कुछ पेड़ पौधे सूख जाते हैं कुछ जीव जंतु मर जाते हैं कुछ मनुष्यों को लू लग जाती है उससे कुछ दिनों के लिए कुछ बीमारियाँ हो जाती हैं इसके बाद ऋतु परिवर्तन होते ही लोग भी स्वस्थ हो जाते हैं और पेड़ पौधे भी हरे भरे होकर लहलहा उठते हैं !
     जिस प्रकार से निकट भविष्य में जल संकट खड़ा हो रहा है बहुत जगहों पर लोग पीने के पानी को तरसने लगे हैं इसके लिए भी ग्लोबल वार्मिंग को जिम्मेदार बताया जा रहा है किंतु इसके लिए हमें भी सोचना होगा कि जल वर्षा पहले से कम तो नहीं होती पानी तो पूरा मिलता है कितनी भीषण बाढ़ आते देखी जाती है किंतु जल संरक्षित करने के अब उस प्रकार के साधन नहीं रहे पहले कुआँ तालाब होते थे जिनसे वर्षा का जल पृथ्वी के अंदर के जलाशयों को भरा करता था इसके बाद लोग अपनी आवश्यकता के अनुशार रस्सी बाल्टियों से पानी निकाला करते थे इसके लिए लोगों को परिश्रम करना पड़ा था इसलिए वे उतना ही जल निकालते थे जितनी उन्हें आवश्यकता होती थी !
      अब विकास की अंधीदौड़ में कुएँ तालाब आदि बंद होते चले गए बड़े बड़े शहर बसने लगे जिनसे जमीन का भूभाग अधिक पक्का होता चला गया जिससे जमीन के अंदर पानी जाने की कोई गुंजाइस रही ही नहीं !दूसरी ओर जनसँख्या बढ़ती चली गई जिससे पानी की आवश्यकता अधिक बढ़ गई एवं मोटर आदि से पानी निकाला जाने लगा जिससे पानी का दोहन आवश्यकता से अधिक होने लगा !पहले अपने पूर्वजों ने एक धर्म भाव भी बना रखा था कि पानी गंदा करने से या पानी फैलाने से पाप लगता है वो भावना भी आधुनिकता की अंधी होड़ में समाप्त कर दी गई !वृक्ष भी अपने आस पास बहुत जल संचित रखते हैं !जंगलों की कटाई से उस जल में भी कमी आई है !पहले लोग वृक्षों को देखकर इस बात का अनुमान लगा लिया करते थे कि कहाँ कितना जल होने की संभावना है !
     इसलिए ग्लोबल वार्मिंग जैसी कथा कहानियों से बहुत भयभीत होने की आवश्यकता ही नहीं है !वैसे भी ग्लोबलवार्मिंग घटाने के लिए मनुष्य कर  क्या लेगा !मनुष्यकृत प्रयासों की भी तो कुछ सीमाएँ हैं जिनके ऊपर मनुष्यकृत प्रयास फलदायी नहीं होते हैं !
     मौसमभविष्यवक्ताओं के नाम पर फलफूल रहे हैं मौसमभूतवक्ता लोग ! 
       मौसम भविष्यवक्ताओं के नाम से जिम्मेदारी सँभाल रहे लोगों की रूचि मौसम संबंधी भविष्य बताने से अधिक मौसम संबंधी 'भूत' बताने में होती है कहाँ कितने सेंटीमीटर बारिश हुई कहाँ आँधी आई कहाँ प्रदूषण बढ़ा कहाँ बाढ़ आई !कहाँ वर्षा ने कितने वर्षों का रोकार्ड तोडा ,गर्मी ने कितने वर्षों का रिकार्ड तोडा और सर्दी ने कितने वर्षों का रिकार्ड तोडा आँधी तूफानों ने कितने वर्षों का रिकार्ड तोडा वायु प्रदूषण कब सबसे अधिक रहा !गर्मी कम हुई सर्दी कम हुई या वर्षा कम हुई ऐसी बातें बताया करते हैं !
      ये सारी बीती हुई घटनाओं का संग्रह मौसम भविष्यवक्ताओं को इसलिए करना होता है कि वो इसी के आधार पर अनुसंधान करके  मौसम संबंधी भावी घटनाओं का पूर्वानुमान लगा सकें !इनका जनता क्या करेगी और जनता का इनसे लेना देना क्या जहाँ जो जिस प्रकार की घटना घटित होती हैं वो मीडिया के द्वारा जनता को पता लग ही जाता है यदि कहाँ कितने सेंटीमीटर बारिस हुई ये नहीं भी पता लगेगा तो इससे जनता का क्या बिगड़ जाएगा !  मौसम भविष्यवक्ता लोग ऐसी बातों में अपना समय लगाने के बजाए ऐसी बातों पर बिचार करें जिनसे जनता का लाभ हो अर्थात मौसम संबंधी पूर्वानुमान आगे से आगे पता लग सके !     
      वस्तुतः मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में जो घटनाएँ क्रम में चल  रही होती हैं उसमें तो थोड़ा बढ़ा घटा कर मौसम वाले लोग मौसम संबंधी पूर्वानुमान बताया करते हैं जैसे गर्मी की ऋतु आई तो गर्मी अधिक होगी कम होगी या सामान्य रहेगी इसी प्रकार से सर्दी वर्षा आदि ऋतुओं में उनके संबंध में थोड़ा घटा बढाकर भविष्यवाणियाँ करने के लिए तीर तुक्के भिड़ाया करते हैं ! ऐसे ही वर्षा ऋतु के आने से पहले मानसून के विषय में तारीखें बताने लगते हैं उन्हीं तारीखों को कारण बातबातकर आगे पीछे खिसकाया करते हैं !ये सब ऋतुओं से संबंधित सामान्य बातें होती हैं जिनका घटित होना आम बात है इसीलिए लोगों का ध्यान उधर नहीं  जाता है !
        कई बार मौसम संबंधित कुछ ऐसी घटनाएँ अचानक घटित होती हैं जिनसे बहुत बड़ा वर्ग प्रभावित होता है भीषण आँधी तूफ़ान अतिवर्षा बाढ़ जैसी और भी ऐसी बड़ी प्राकृतिक घटनाएँ जिनसे बड़ी जन धन की हानि संभावित होती है !लोग उसके विषय में पूर्वानुमान जानना चाहते हैं ताकि उनसे संबंधित यथा संभव अपना बचाव खोज सकें किंतु अभी तक मौसम भविष्यवक्ताओं को इसमें सफलता नहीं मिल सकी है निकट भविष्य में घटित हुई मौसम संबंधी कुछ घटनाएँ देखकर तो यही प्रमाणित होता है कि मौसमभविष्यवक्ता लोग मौसमभूतवक्ता अधिक हैं क्योंकि वे भविष्य से अधिक भूत संबंधी घटनाएँ गिनाया करते हैं !