Saturday, 19 May 2018

chikit

                             
                                                              डॉ .शेषनारायण वाजपेयी 
  ज्योतिषाचार्य,व्याकरणाचार्य,
एम. ए. हिंदी, पी.जी.डी.पत्रकारिता 
Ph.D. हिंदी(ज्योतिष) B.H.U 

               
                                     ज्योतिषायुर्वेद               

                                                                       1.
                                                    चिकित्सा में पूर्वानुमान  -
      किसी के शरीर में रोग होने से पहले ही उनका पूर्वानुमान लगाकर रोक थाम के लिए उचित प्रयास किसे जा  सकते हैं !पूर्वानुमान हो जाने पर आहार विहार खान पान रहन सहन आदि स्वास्थ्य अनुकूल संयमित बना करके उचित चिकित्सकीय सावधानियाँ वरती जा सकती हैं इस प्रकार से कई रोगों को प्रारंभ होने से पहले ही रोका जा सकता है !जो  रोग प्रारंभ हो भी गए उनका विस्तार होने से पहले ही उन्हें चिकित्सकीय सावधानियों से समाप्त किया जा सकता है !इसके लिए ज्योतिष आयुर्वेद और योग जैसे शास्त्रों में अनेकों विधि व्यवस्थाएँ मिलती हैं !रोगों की इसी पूर्वानुमान पद्धति से प्रारंभ में ही रोगों की असाध्यता का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है !
     ज्योतिष शास्त्र के द्वारा समय का अनुसन्धान करके ,योग के द्वारा शरीर के आतंरिक अनुभवों का अनुसंधान करके एवं आयुर्वेद के द्वारा शरीर में दिखने वाले अरिष्ट लक्षणों के आधार पर साध्य कष्टसाध्य एवं असाध्य रोगों  का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है ! इसके साथ साथ मृत्यु के आसन्न समय का भी पूर्वानुमान भी लगा लिया जाता है !
        प्रचलित चिकित्सा कर्म में प्रायः किसी के शरीर में  हो चुके रोगों की चिकित्सा पर ही ध्यान होता है वे रोग जैसे जैसे बढ़ते जाते हैं जाँच और चिकित्सा का दायरा वैसे वैसे बढ़ता चला जाता है !चिकित्सा के द्वारा कुछ रोगों से मुक्ति मिल  जाती है चिकित्सा के बाद भी कुछ रोग चला करते हैं यहाँ तक कि सघन चिकित्साकाल में भी कुछ  रोगियों की मृत्यु होते देखी जाती है !ऐसी परिस्थिति में प्रारंभिक काल से ही पूर्वानुमान  की बहुत बड़ी आवश्यकता होती है !
    प्रायः किसी को कोई रोग एक बार हो जाने के बाद रोगी को रोग जनित पीड़ा तो मिल ही चुकी होती है ! अब वो पीड़ा और अधिक न बड़े और उसे घटाने का प्रयास करके रोगी को स्वस्थ करना यह विधा चिकित्सा की दृष्टि से वर्तमान समय में प्रचलित है किंतु आवश्यक होने के बाद भी यह विधा चिकित्सा के संपूर्ण उद्देश्यों को पूरा नहीं कर पाती है !रोग होने से पूर्व रोग का पूर्वानुमान लगाकर किसी को रोगी होने से बचा लेना चिकित्सा की सर्वोत्तम पद्धति है ! इसमें ज्योतिषशास्त्र का भी सहयोग लिया जा सकता है !     
                                                             2.
                        ऋतुओं के विकार से होने वाले रोगों का पूर्वानुमान -
    मेष संक्रांति से वृष के अंत तक ग्रीष्मऋतु मानी गई है ,मिथुन और कर्क में प्रावृट,सिंह और कन्या संक्रांति में वर्षा,तुला और बृश्चिक  में शरद ,धनु और मकर में हेमंत तथा कुंभ और मीन की संक्रांति में बसंत ऋतु  होती है ! इसी क्रम में समय के अनुशार ही दोष संचित कुपित और शांत होते रहते  हैं ! - शार्ङ्गधर संहिता 
       कई बार ऋतुओं के जो स्वाभाविक गुण हैं उन गुणों की अधिकता होने से या उनके विपरीत गुण आ जाने से वातादि दोष प्रकुपित हो जाते हैं इससे उनसे संबंधित तरह तरह के रोग पनपने लगते हैं!
      चूँकि ऋतुओं का सीधा संबंध सूर्य से है इसलिए सूर्य के बनते बिगड़ते स्वभाव का और घटते बढ़ते प्रभाव का असर ऋतुओं पर पड़ता ही है!इसलिए ऋतुओं के स्वाभाविक गुणों के घटने बढ़ने आदि विकारों का कारण सूर्य है और सूर्य पर प्रभाव डालने वाले ग्रहों की दृष्टि और युति आदि है !
     इस प्रकार से ऋतुएँ सूर्य आदि ग्रहों  के आधीन हैं और सूर्य की गति युति आदि का आकलन सिद्धांत गणित एवं फलित ज्योतिष के द्वारा किया जा सकता है ! इससे सूर्य आदि ग्रहों के स्वभाव प्रभाव के घटने बढ़ने का गणितागत अनुसंधान करके उसी के आधार पर ऋतुओं में आने वाले संभावित विकारों और उन विकारों के कारण होने वाले संभावित रोगों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !
       उसी के अनुशार उचित आहार विहार संयम सदाचरण एवं संभावित रोगों से बचने के लिए औषधि आदि के द्वारा रोग निरोधक (प्रिवेंटिव) चिकित्सकीय सावधानियाँ वरती जा सकती हैं !ऐसे प्रयास से संभावित रोगों के होने से पूर्व ही रोगों को नियंत्रित करके लोगों को रोगी होने से बचाया जा सकता है !
          अन्य मत से ऋतुओं का कारण सूर्य और चंद्र दोनों को  ही माना गया है -
 'अग्निसोमात्मकंजगत' "त एते शीतोष्णवर्ष लक्षणाश्चन्द्रादित्ययोः" अर्थात ऋतुओं के परिवर्तन का कारण सूर्य और चंद्र हैं !इसमें भी      "वर्षाशरदहेमंताः तेषु भगवान् आप्यायते सोमः " 
     अर्थात वर्षा शरद और हेमंत ये तीन  चंद्र के प्रभाववाली ऋतुएँ हैं ! 
         इसी प्रकार से शिशिर बसंत और ग्रीष्म ये सूर्य के प्रभाव वाली ऋतुएँ हैं !
                      "शिशिरवसंतग्रीष्माः भगवान् आप्यायतेर्कः !"    
      इससे सूर्य एवं चंद्र की गति युति आदि का आकलन सिद्धांत गणित एवं फलित ज्योतिष के द्वारा करके ऋतुओं में आने वाले संभावित विकारों का और उनके कारण होने वाले संभावित रोगों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है ! ऐसे रोगों को भविष्य में  होने से रोकने के लिए सावधानी पूर्वक चिकित्सा शास्त्र के द्वारा प्रभावी प्रयास करके समाज को ऋतु विकारजन्य संभावित रोगों की पीड़ा से बचाया जा सकता है !
                                        3.
महामारी फैलने का पूर्वानुमान - 
   सूर्य चंद्र आदि ग्रहों नक्षत्रों आदि के दुष्ट संयोग से प्राकृतिक परिस्थितियाँ बिगड़ने लग  जाती हैं !
                        नक्षत्रग्रहचंद्रसूर्यानिलानां दिशां च प्रकृति भूतानामृतु वैकारिकाः भावाः !   
                                                                                                                         -चरक संहिता  
    इससे उस क्षेत्र या जनपद में वातादि दोष प्रकुपित होकर वहाँ के वायु,जल,देश और समय को विकारवान बना देते हैं !ग्रहों के ऐसे कुयोग सामूहिक रोगों के द्वारा उस जनपद को नष्ट करने वाले होते हैं !
           इमानेवं दोषयुक्तांश्चतुरो भावान जनपदोध्वंसकरान !
                                                                         -चरक संहिता 
       इससे वहाँ की वायु औषधियाँ अन्न जल आदि सब प्रदूषित होकर रोगकारक हो जाते हैं !इन्हें उपयोग करने से रोग होने लगते हैं !इस प्रकार से उस क्षेत्र में महामारी फैल जाती है और उनका उपयोग किए बिना जीवन जी पाना संभव ही नहीं  होता है ! यथा -           
                       - तासामुपयोगाद्विविधरोगप्रादुर्भावोमरको वा भवेदिति ! 
                                                                                               -सुश्रुत संहिता
    ऐसे ग्रहदूषित अन्न,जल एवं औषधियों आदि का उपयोग करने को रोका गया है !अदूषित बनस्पतियों का और अदूषित जल का एवं पुराने अन्न का उपयोग करने को कहा गया है !!यथा -
                                 " तत्र अव्यापान्नानां औषधीनामपां चोपयोगः "
    ऐसी परिस्थिति में सावधानी वरतने हेतु उतने समय के लिए निवात स्थान में रहकर यथा संभव वायु दोषों से बचाव किया जा सकता है !यंत्रों के द्वारा जल को शुद्ध करके उसका उपयोग करते हुए ग्रहदूषित जल के उपयोग से बचा जा सकता है ! इसीप्रकार से ग्रह दूषित स्थान से बचाव के लिए उतने समय के लिए दूसरे स्थान में जाकर बसा जा सकता है !किंतु ग्रहदूषित काल अर्थात समय से बचना संभव नहीं है समय तो सभी जगहों पर साथ ही रहेगा !इसलिए बुरे समय से बच पाना सबसे कठिन है ! 
       अतएव समय के दोष का परिमार्जन करने के लिए अदूषित समय  में संगृहीत बनस्पतियोँ के द्वारा  समयशास्त्र के  अनुशार अच्छे समय में निर्मित औषधियों के  प्रयोग  से ग्रहदूषित समयजन्य रोग पीड़ा से भी बचा जा सकता है !ऐसी समयबली औषधियों के प्रयोग से ग्रहदूषित वायु,जल,देश और समय आदि चारों प्रकार के प्रदूषण जनित रोगों की पीड़ा से बचा जा सकता है !
                                   चतुर्ष्वपि तु दुष्टेषु कालान्तेषु यदा नराः !
                                    भेषजे नोपपाद्यंते न भवंत्यातुरा तदा !!
                                                                                     -चरक संहिता 
       
         इसमें सबसे बड़ी बिचारणीय बात ये है कि उस क्षेत्र के वायु,जल,देश और समय आदि को प्रदूषित करने वाला समय आने वाला है जिससे अन्न,जल ,औषधियाँ आदि दूषित हो जाएँगी इसका पूर्वानुमान पहले से कैसे किया जा सकता है और बिना इसके उनके उपयोग से बचने का प्रयास कैसे किया जा सकता है !क्योंकि विपरीत ग्रहों का संयोग बनते ही प्रकृति पर उनका दूषित प्रभाव तुरंत पड़ने लगता है इससे   वायु,जल,देश और समय आदि साथ ही साथ दूषित होते चलते हैं !जब इस ग्रह जनित प्रदूषण के प्रभाव से प्रदूषित वायु,जल,देश और समय आदि दूषित होकर समाज को रोगों की चपेट में ले ही लेते हैं उसके बाद समयबली औषधियों के प्रयोग से यदि रोगों से मुक्ति मिल भी जाए तब भी लोगों को रोग जनित पीड़ा तो मिल ही गई यदि इस पीड़ा से भी मुक्ति दिलानी है उसके लिए आवश्यक है कि रोग होने ही न पाए और रोग होने से पहले ही रोग का निदान एवं उसकी चिकित्सा हो जाए तब तो चिकित्सा के सर्वोत्तम उद्देश्य की सिद्धि हो सकती है !
     इसके लिए चिकित्सक को भविष्य में वायु,जल,देश और समय आदि के प्रदूषित करने वाले ग्रहों के दुष्ट संयोग का पूर्वानुमान भगवान् पुनर्वसु आत्रेय की तरह ही ज्योतिषशास्त्र के द्वारा बहुत पहले से ही कर लिया जाना चाहिए !तभी ऐसे कुयोग के विषय में समाज को भी पहले से सावधान किया जा सकता है !इसके साथ साथ ऐसे रोगों से मुक्ति दिलाने हेतु बनस्पतियों के संग्रह एवं औषधियों के निर्माण के लिए  चिकित्सकों को अदूषित समय भी मिल जाएगा ! ऐसे पूर्वानुमान ज्योतिषशास्त्र के द्वारा ही प्राप्त  किए जा सकते हैं ! 
       भगवान् पुनर्वसु आत्रेय ने ज्योतिषशास्त्र का सहयोग लेकर जिस प्रकार से आषाढ़ मास में ही भविष्य संबंधी रोगों का पूर्वानुमान लगाकर उससे संबंधित चिकित्सकीय तैयारियों के लिए उपदेश कर दिया था यदि आज भी ज्योतिषशास्त्र  के सहयोग से समय संबंधी ऐसे अनुसंधान किए जाएँ तो आज  भी भविष्य में घटित होने वाले रोगों को होने से पहले ही सावधानी पूर्वक उन्हें रोका जा सकता है !
                                                               4. 
                             औषधीयद्रव्य , बनस्पतियाँ और समय -
      बुरे समय के प्रभाव से बनस्पतियों जैसे विकार आ जाते हैं उसी प्रकार से अच्छा समय आने पर बनस्पत्तियों के गुण भी बहुत अधिक बढ़ जाते हैं !ऐसे समय में यदि औषधीय द्रव्यों बनस्पतियों आदि का संग्रह किया जाए और सही समय पर  औषधियों का निर्माण किया जाए !तो वो औषधियाँ बहुत अधिक गुणकारी हो जाती हैं !इसीप्रकार से अच्छे समय पर रोगियों को औषधि खिलाई जाए तो रोगी को रोगमुक्ति दिलाने की दिशा में कई गुना अधिक अनुकूल प्रभाव पड़ता है !अच्छे समय के संयोग से बनस्पतियों एवं औषधीय द्रव्यों का अच्छा प्रभाव बहुत अधिक बढ़ जाता है !यथा -                    
1.   मेष राशि के सूर्य में मसूर को नीम के पत्तों के साथ खावे तो एक वर्ष तक सर्प से भय नहीं होता है !
                  मसूरं निम्बपत्राभ्यां खादेत मेषगते रवौ !
                  अब्दमेकं न भीतिः स्यात विषात्तस्य न संशयः !!
                                                                                            -चक्रदत्त
 2. संतान के लिए - रसरत्न समुच्चय में वर्णित प्रयोग -
  •    सर्पाक्षी प्रयोग -
            रविवार के दिन सर्पाक्षी को मूल एवं पत्र सहित उखाड़ कर लाना होता है !   
  •  देवदाली प्रयोग -
       रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र हो उस दिन देवदाली की जड़ को लाकर प्रयोग करना होता है !
  •  अश्वगंधा प्रयोग -
 रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र हो उस दिन अश्वगंधा की जड़ को लाकर प्रयोग किया जाता है !    
  •  कर्कोटकी प्रयोग -
कृत्तिका नक्षत्र में पूर्व दिशा की ओर मुख करके बाँझ ककोड़े की जड़ को खोद कर लाया जाता है ! 

   पुंसवन कर्म -
    अपामार्ग आदि कई प्रकार की औषधियों का प्रयोग पुष्य में करने के लिए कहा गया है !यथा -

                    पिबेतपुष्ये जले पिष्टानेक द्वित्रि समस्तशः !!
                                                                     -अष्टांगहृदय                             -
कालकृत औषधियाँ -
  अति वायु वाले  समय में ,वायु रहित समय में ,धूप ,छाया,चाँदनी युक्त समय ,अंधकार ,शीत,उष्ण,वर्षा आदि युक्त  समय का उपयोग बनस्पतिसंग्रह ,औषधि निर्माण और चिकित्सा  में किया जाता है !
   प्रवालपिष्टी बनाने में प्रवाल  को चाँदनी में रखते हैं ! इसी प्रकार से औषधीय द्रव्यों को निश्चित समय तक भूमि या धान्यराशि में रखने  आदि का विधान बताया गया है !
      रोगी की सूचना देने वाले दूत के आने  समय -
     कृत्तिका ,आर्द्रा,श्लेखा,मघा ,मूल ,पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपदा, पूर्वाफाल्गुनी,भरणी नक्षत्रों  में और चतुर्थी ,नवमी और षष्ठी तिथि में संध्याकाल में जिस रोगी के लिए कोई व्यक्ति आता  लिए शुभ नहीं होता है !- शुश्रुत

    इसीप्रकार से माधव निदान में देवता आदि  के ग्रहण के समय  को भी ज्योतिष शास्त्र  के द्वारा समझाया गया  है !             
       इस प्रकार से ज्योतिष शास्त्र और चिकित्सा शास्त्र के संयुक्त अनुसंधान से चिकित्सा संबंधी कई आवश्यक बातों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !इसके साथ ही साथ बनस्पतियों के संग्रह के लिए एवं औषधि निर्माण के लिए अत्यंत उत्तम समय का चयन किया जा सकता है !ऐसी समयबली  औषधियों का प्रयोग करके समयजनित कष्ट साध्य रोगों से भी मुक्ति दिलाई जा सकती है !
                                                                    5.
आगंतुज रोगों का पूर्वानुमान -
     किसी रोग के प्रारंभ होने के समय या चोट लगने के समय के आधार पर अनुसंधान करके इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि ये रोग या चोट समय के अनुशार कितनी गंभीर है  अर्थात इससे कितने दिनों या महीनों में पीड़ामुक्ति मिलेगी अथवा ये किसी बड़े और गंभीर रोग का छोटा सा दिखने वाला प्रारंभिक स्वरूप तो नहीं है !यदि ऐसा है भी तो उसका बढ़ा हुआ संभावित स्वरूप कितना तक विकराल हो सकता है!उससे बचने के लिए सावधानियाँ किस किस प्रकार से वरती  जा सकती हैं ! इस प्रकार से समय का अनुसंधान करके ऐसी सभी बातों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !
      इसीप्रकार से जन्मसमय के आधार पर अनुसंधान करके भविष्य में घटित होने वाली स्वास्थ्य संबंधी दुर्घटनाओं का या भविष्य में होने वाले रोगों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !
    प्रायः देखा जाता है कि सामूहिक रोगों या महामारियों के फैलने पर उस क्षेत्र में रहने वाले बहुत सारे लोग उससे प्रभावित होते हैं अर्थात रोगी हो जाते हैं किंतु वहाँ रहने वाले सभी के साथ ऐसा होते नहीं देखा जाता है !इसी प्रकार से किसी दुर्घटना में बहुत सारे लोग एक साथ एक जैसे शिकार होते हैं !किंतु उन सबके साथ परिणाम एक जैसे नहीं होते हैं !कुछ स्वस्थ होते हैं कुछ अस्वस्थ रहते हैं और कुछ मृत हो जाते हैं !
     इसका कारण है कि उन सभी के जन्म समय के आधार पर उस समय जिनका जैसा समय चल रहा होता है रोग और दुर्घटना से वो उतना कम या अधिक प्रभावित होते हैं !उसका अपना समय यदि अच्छा चल रहा होता है तब तो बड़ा रोग पाकर या बड़ी दुर्घटना का शिकार होकर भी एक सीमा तक बचाव हो जाता है कई को तो खरोंच भी नहीं लगने पाती है इसी प्रकार से जिसका समय अच्छा नहीं या बुरा चल रहा होता है उसे परिणाम भी वैसे ही भोगने पड़ते हैं !
         इस प्रकार से किसी के जन्म समय का अनुसंधान करके उसके स्वास्थ्य से संबंधित भविष्य में घटित होने वाली अच्छी या बुरी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !इससे उसे आगे से आगे सावधान करके भविष्य संबंधी रोगों और दुर्घटनाओं से बचाव के लिए प्रेरित किया जा सकता है इसके अतिरिक्त भी प्रिवेंटिव प्रयास किए जा सकते हैं !   
         इसी प्रकार से किसी रोगी के जन्म समय का अनुसंधान करके उसके स्वास्थ्य के लिए प्रतिकूल समय का पूर्वानुमान किया जा सकता है ! उस प्रतिकूल समय की अवधि तक उसके लिए अच्छे से अच्छे चिकित्सक और अच्छी से अच्छी औषधियों के प्रयोग निरर्थक या अल्पप्रभाव कारक सिद्ध होते हैं !ऐसे लोग उतने समय तक चिकित्सक और औषधियाँ बदल बदल कर समय व्यतीत किया करते हैं !बुरा समय बीतने के बाद  ही उनपर चिकित्सा आदि उपायों का असर होने लगता है और वे स्वस्थ हो जाते हैं !रोगी के जन्म समय का अनुसंधान करके रोगी की ऐसी परिस्थितियों का भी पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !
                                                           6 . 
                       समय विज्ञान और पूर्वानुमान -
     ब्रह्मांड और शरीर की संरचना एक प्रकार से हुई है इसलिए जिन वात पित्त आदि दोषों के विकृत होने पर जिस दोष से प्रेरित होकर प्रकृति में भूकंप आदि उत्पात होते हैं उसी दोष का उसी प्रकार का असर मनुष्यादि जीवों पर भी पड़ता है और वे रोगी हो  जाते हैं जिसका असर उस क्षेत्र में 30 दिनों से लेकर 180 दिनों तक रहता है जो उत्तरोत्तर घटता चला जाता है !इसलिए प्राकृतिक आपदाओं के घटित  होने के समय के आधार पर अनुसन्धान करके इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि किस क्षेत्र में कब किस प्रकार के रोगों के  फैलने की संभावना है !  
     चिकित्सा शास्त्र के 'आतुरोपक्रमणीय' प्रकरण में किसी रोगी की चिकित्सा करने से पूर्व आयु का    पूर्वानुमान लगाने  के लिए कहा गया है जिसके लिए सुश्रुत आदि ग्रंथों में दीर्घायु मध्यमायु अल्पायु आदि पुरुषों के शारीरिक  लक्षणों का वर्णन  किया गया है ये मूल रूप से सामुद्रिक शास्त्र से उद्धृत हो सकते हैं जहाँ आयु के साथ साथ अन्य सभी प्रकार के रोगों के परीक्षण के लिए भी ऐसे सामुद्रिक लक्षणों का वर्णन किया गया है ! आयु संबंधी पूर्वानुमान लगाने के ऐसे लक्षण योग में भी हैं जहाँ रोगी के आतंरिक अनुभवों के आधार पर आयु संबंधी पूर्वानुमान लगा लिए जाते हैं !इसी प्रकार से ज्योतिष शास्त्र में रोग और मृत्यु के अलग अलग भाव ही हैं जिनका अनुसंधान करके इनसे संबंधित पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं ! वैसे भी आयु के विषय में चिकित्सक रोगी रोग और औषधि आदि चारों से अधिक महत्त्व समय का होता है !आयु पूर्ण होने का समय आने पर रोगी के शरीर  में लगने वाली तिनके की चोट भी बज्रप्रहार से अधिक पीड़ा देकर प्राण हर लेती है !
     -            "कालप्राप्तस्य कौन्तेय !बज्रायन्ते तृणान्यपि "       
        ऐसे ही ग्रहों की विपरीतता से वात पित्त आदि तीनों दोषों के पारस्परिक अनुपात बिगड़ने से या दोषों के प्रकुपित होने के दुष्प्रभाव से जिस समय जिस प्रकार से मनुष्य शरीर रोगी होने लगते हैं !इसीकारण से उस समय त्रिदोषों के न्यूनाधिक अनुपात का जो असर मनुष्य शरीरों पर पड़ रहा होता है वही असर प्रकृति और समस्त प्राकृतिक वातावरण पर भी पड़ रहा होता है !इसलिए  बनस्पतियाँ भी उस समय उसीप्रकार के दोषों से युक्त हो जाती हैं ! यही कारण है कि जो बनस्पतियाँ अपने जिन गुणों के कारण जिन रोगों से मुक्ति दिलाने के लिए प्रसिद्ध मानी जाती हैं वही बनस्पतियाँ ऐसे समय में उन्हीं रोगों पर असर हीन हो जाती हैं !
     ऐसी ही परिस्थिति में रोगों के बढ़ते जाने और औषधियों के असर न करने से रोग बढ़ते चले जाते हैं और महामारी आदि का स्वरूप  धारण करते  चले जाते हैं जब बुरे ग्रहों का दुष्प्रभाव घटता है तब वे रोग स्वतः समाप्त होने लग जाते हैं !ऐसे समयों का पूर्वानुमान ज्योतिष शास्त्र से किया जा  सकता है !
                          7.  
       समय स्वयं में ही औषधि है -
         इसीलिए चिकित्सा शास्त्र के ऋतुचर्या प्रकरण में 'समय' को आदि मध्य अंत रहित स्वयंभू भगवान् बताया गया है !अतएव चिकित्सा शास्त्र में समय की भी विशेष प्रधानता है !इसीलिए तो हेमंत ऋतु के समय में पित्तजन्य रोगों की शांति अपने आप से ही हो जाती है और ग्रीष्म ऋतु के समय में कफजन्य रोगों की शांति स्वतः हो जाती है इसी प्रकार से हेमंत ऋतु के समय में वातजन्य रोगों की शांति स्वयमेव  हो जाती है !
       अच्छे और अनुकूल ग्रह भी स्वास्थ्यरक्षक होते हैं सुश्रुत में 'ग्रहनक्षत्रचरितैर्वा' लिखा गया है यदि ग्रह नक्षत्रों के बुरे प्रभाव से रोग होते हैं तो उन्हीं ग्रहों के अनुकूल प्रभाव और उनकी उत्तमगति एवं अच्छे ग्रहों के साथ युति तथा अच्छे ग्रहों की दशाओं आदि के प्रभाव से रोगों से मुक्ति भी मिलती है ऐसे समय में रोगी को बहुत शीघ्र स्वास्थ्य लाभ हो जाता है !
       उत्तम समय में बनस्पतियों का संग्रह  यदि उत्तमरीति से किया जाए और ऐसे ही अनुकूल समय में  यदि उत्तम प्राकृतिक परिस्थितियों में ही  औषधियों का निर्माण किया जाए तो ये औषधियाँ अपने अपने उत्तम एवं संपूर्ण गुणों से युक्त अत्यंत प्रभावशाली हो जाती हैं !
     ऐसी औषधियों के आहरण और निर्माणकाल में अनुकूलग्रहादि परिस्थितियों का ध्यान रखा गया होता है इसलिए ग्रहबल, समयबल से संपन्न औषधियाँ विपरीतग्रह संयोग एवं प्रतिकूल समय के दुष्प्रभाव से फैलने वाली महामारियों में अचूक असर  करते देखी जाती हैं !ऐसी दिव्य औषधियाँ ग्रहजनित विपरीत स्वास्थ्य परिस्थितियों के कारण होने वाले रोगों से भी मुक्ति दिलाने में सक्षम होती हैं !
        बुरे समय में होने वाले रोग अच्छे समय में जैसे स्वतः दूर हो जाते हैं उसी प्रकार से अच्छे समय में निर्मित औषधियाँ भी बुरे समय या ग्रहों की विपरीतता में होने वाले रोगों से भी मुक्ति दिलाने में सहायक होती हैं !
                                      
                 निवेदक -
     डॉ.शेष नारायण वाजपेयी 
  फ्लैट नं 2 ,A-7 /41,कृष्णानगर,दिल्ली -51 
  मो.9811226973 /83  
   Gmail -vajpayeesn @gmail.com

Saturday, 12 May 2018

AB

समय और मौसम -
     'काले सर्वं प्रतिष्ठितं' अर्थात सब कुछ  समय में ही विद्यमान है !प्रकृति में या शरीर में अच्छे बुरे जो भी बदलाव होते हैं वो समय के कारण ही होते हैं समय जब जैसा होता है तब तैसे बदलाव होते रहते हैं इन बदलावों को देखकर ही पता लगता है कि समय बीत रहा है !कुल मिलाकर समय में ही सब कुछ प्रतिष्ठित है !
                         'कालः सृजति भूतानि कालः संहरते प्रजाः '
     अर्थात समय ही सबको जन्म देता है और समय ही सबका संहार करता है !
             'अग्नि सोमात्मकं जगत '
     यह संपूर्ण संसार अग्नि अर्थात सूर्य और सोम अर्थात चंद्र (जल)मय है !इस संसार में जो कुछ भी बना या बिगड़ा है उसमें कारण समय ही है और समय को समझने का आधार सूर्य और चंद्र ही हैं !
     इसी सूर्य के प्रभाव को आयुर्वेद की भाषा में 'पित्त' और चंद्र के प्रभाव को 'कफ' कहा जाता है !सूर्य और चंद्र के संयुक्त न्यूनाधिक प्रभाव से 'वायु'  का निर्माण होता है तथा वायु संबंधी बदलाव सूर्य और चंद्र के न्यूनाधिक प्रभाव से होते हैं !इसी वायु को आयुर्वेद की भाषा में 'वात' कहा जाता है !जिस प्रकार से ये वात  पित्त और कफ का असंतुलन शरीरों को रोगी बनाते देखा जाता है उसी प्रकार से ये तीनों प्रकार का असंतुलन तीन प्रकार प्राकृतिक आपदाओं को जन्म देता है !आँधी-तूफान ,वर्षा- बाढ़ एवं भूकंप आदि प्राकृतिक घटनाएँ इन्हीं प्राकृतिक वात  पित्त कफ आदि के असंतुलन से होने वाली घटनाएँ हैं !
      चूँकि प्राकृतिक आपदाओं का मूल कारण  वात पित्त और कफ आदि हैं !और ये तीनों ही सूर्य और चंद्र के प्रभाव से घटते बढ़ते रहते हैं जिससे प्राकृतिक आपदाएँ घटित होती हैं !इन सूर्य चंद्र की गति एवं उनके घटने बढ़ने वाले प्रभाव का पूर्वानुमान सिद्धांत गणित के द्वारा बहुत पहले से ही लगाया जा सकता है इसीलिए तो सूर्य चंद्र आदि में होने वाले ग्रहणों का  आगे से आगे सैकड़ों वर्ष पहले सटीक पूर्वानुमान लगा लिया जाता है !
     इसी गणित की प्रक्रिया से सूर्य और चंद्र की गति प्रभाव आदि का अध्ययन करके उससे वात पित्त और कफ आदि त्रिदोषों के संतुलन असंतुलन आदि का पूर्वानुमान लगाकर उसी के आधार पर निकट भविष्य में किसी क्षेत्र विशेष में संभावित प्राकृतिक अच्छी बुरी घटनाओं का पूर्वानुमान अनुसंधान पूर्वक लगाया जा सकता है !उद्देश्य की पूर्ति करने में सहायक होता है 'समयविज्ञान' -
     अत्यंत निकट आ जाने पर यदि प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान लगा भी लिया जाए तो भी ये उस उद्देश्य की पूर्ति नहीं कर पाता है क्योंकि जो प्राकृतिक आपदा अत्यंत निकट आ चुकी है उससे सम्पूर्ण बचाव हो पाना संभव नहीं है !कृषि आदि क्षेत्र में वर्षा संबंधी पूर्वानुमान कुछ दिन पहले लग जाने से विशेष लाभ नहीं हो पाता है क्योंकि उन्हें फसलों के बोने एवं उपज को संरक्षित करने का निर्णय कुछ महीने पहले लेना होता है इतने पहले किसानों को वर्षा या सूखा संबंधी पूर्वानुमान उपलब्ध कराए बिना कृषि एवं किसानों का विकास नहीं किया जा सकता है इसके विषय में झूठे तीर तुक्के लगाने से अच्छा है कि समय विज्ञान का सहयोग लेकर ऐसे विषयों से संबंधित अनुसंधानों को और अधिक गति दी जा सकती है !ये केवल वर्षा ही नहीं अपितु सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के विषय में सहयोगी प्रक्रिया है !इससे प्राकृतिक आपदाओं के वेग का भी पूर्वानुमान समय से पहले लगाया जा सकता है !
     

हो चुके हैं उसकी पीड़ा तो रोगी भोग ही रहा होता है!इसलिए उचित तो ये है कि रोगी को रोग होने से पहले ही यदि इस बात के संकेत मिलना संभव हो सकें कि निकट भविष्य में उसका शरीर रोगी हो सकता है और रोगों की प्रकृति का पूर्वानुमान लगाया जा सके तो उनसे बचने के लिए संभावित रोगी पहले से ही अपने खान पान रहन सहन आदि में सुधार  कर सकता है संयम पूर्वक पथ्य परहेज का सेवन करने का प्रयास कर सकता है !चिकित्सकीय सतर्कता वरतना शुरू कर सकता है !योग व्यायाम आदि का सहारा ले सकता है !इस प्रकार का संयमित जीवन जीने से संभव है उस रोग को होने से पहले ही रोक लिया जाए अथवा यदि हो भी तो उसके वेग को अत्यंत कम कर दिया जाए !जिससे उसको रोग की पीड़ा एवं शारीरिक क्षति कम से कम हो !       
     कई बार किसी रोगी के शरीर में तत्काल दिखाई देने वाले रोगों का स्वरूप अत्यंत सामान्य दिखाई दे रहे होते हैं उसी दृष्टि से उस रोग की सामान्य रूप से ही चिकित्सा प्रारम्भ कर दी जाती है जबकि वो किसी बहुत भयंकर रोग का अत्यंत प्रारंभिक स्वरूप होता है जिसका पता बहुत बाद में चल पाता है कि किंतु तबतक तो बहुत देर हो चुकी होती है !
      ऐसे रोगियों की चिकित्सा के नाम पर जाँच पे जाँच होती चली जाती है और औषधियाँ बदल बदल कर प्रयोग किया जा रहा होता है !रोग के अंदर से परत दर परत दूसरे तीसरे आदि रोग निकलते चले जाते हैं और उन उनकी जाँच दवाई आदि करते कराते रोगी के जीवन का अत्यंत बहुमूल्य बहुत समय  बीतता चला जाता है ! इस प्रकार से चिकित्सकीय उहापोह की स्थिति में उस रोग की तह तक पहुँचते पहुँचते रोगी की स्थिति  इतनी  अधिक बिगड़ चुकी होती है कि उस अवस्था में पहुँचने के बाद शरीर को स्वस्थ कर पाना चिकित्सा की दृष्टि से बहुत कठिन हो जाता है और रोगी की मृत्यु तक होते देखी जाती है ! ऐसी परिस्थिति में चिकित्सकीय उहापोह की स्थिति में बीत गए समय का आजीवन पछतावा बना रहता है !
     इसलिए किसी शरीर में रोग प्रारंभ होते ही या किसी के दुर्घटनाग्रस्त होते ही यदि उस रोग या चोट के भविष्य में बिगड़ने वाले स्वरूप का अंदाजा पहले ही लगाना संभव हो पावे तो अत्यंत सतर्क एवं सघन चिकित्सा शुरू से ही दी जाने लगे तो संभवतः परिणाम कुछ और अधिक अच्छे प्राप्त किए जा सकते हैं!
     ऐसी परिस्थिति में  रोग प्रारंभ होने या चोट चभेट लगने के प्रारंभिक समय तथा रोगी के जन्म समय का  'समयविज्ञान' विधा से अनुसंधान करके उस रोगवृद्धि की संभावित सीमाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !

Tuesday, 17 April 2018

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  समय शास्त्र का महत्व -
    वेद में समय के विषय में 'कालो ब्रह्म' कहा गया है अर्थात समय ही भगवान है !
       दूसरी बात कही गई -  'काले सर्वं प्रतिष्ठितं' अर्थात सब कुछ  समय में ही विद्यमान है !क्या कब कहाँ किसके विषय में हुआ था या होगा ये सब कुछ समय में ही प्रतिष्ठित है अर्थात समय में ही विद्यमान है !
तीसरी बात बताई गई-
                         'कालः सृजति भूतानि कालः संहरते प्रजाः '
     अर्थात समय ही सबको जन्म देता है और समय ही सबका संहार करता है !
एक और बहुत बड़ी बात कही गई है -  'अग्नि सोमात्मकं जगत 'अर्थात यह संपूर्ण संसार अग्नि अर्थात सूर्य और सोम अर्थात चंद्र (जल)मय है !
      इसलिए प्रकृति से लेकर मानवजीवन तक से संबंधित समस्त समस्याओं एवं समाधानों का प्रमुख कारण समय ही है और समय की गति का ज्ञान सूर्य और चंद्र  के संचार से ही होता है !इसलिए समयके संचार को समझने के लिए  सूर्य और चंद्र की गति को ही समझना होगा !
        सूर्य और चंद्र की गति को गणित से समझा जा सकता है जिस गणित से   सूर्य और चंद्र  आदि ग्रहों की  वर्तमान गति  निकाली जा सकती है उसी गणित से तो सूर्य और चंद्र  आदि ग्रहों की भविष्य संबंधी गति उपस्थिति आदि   जानी जा सकती है उसी गणित के द्वारा ही तो जैसे सैकड़ों वर्ष पहले के सूर्य चन्द्रादि ग्रहणों का पता लगा लिया जाता है वैसे ही उसी गणित के द्वारा वर्षा बाढ़ आँधी तूफान एवं भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं से लेकर मनुष्यों के स्वास्थ्य एवं मानसिक तनावों का पूर्वानुमान वर्षों पहले क्यों नहीं लगाया जा सकता है !
      इसी दृढ़ निश्चय के बलपर भारत के पूर्व मनीषियों ने ग्रह गणित पर बहुत परिश्रम पूर्वक अनुसन्धान किए जिसके बल पर समय को समझने में बहुत बड़ी सफलता प्राप्त की है !  उसी समय संबंधी अनुसंधान के बल पर प्राचीन भारत कई बड़ी समस्याओं के समाधान आसानी से खोज लेता रहा है !इसके अभाव में वर्तमान विश्व कई बड़ी समस्याओं से जूझ रहा है जिनका समाधान कहीं नहीं मिल पा रहा है समय अच्छा और बुरा दो प्रकार का होता है जिसका प्रभाव प्रकृति शरीर और समाज तीनों पर पड़ते देखा जाता है समय अच्छा होता है तब तो सब जगह अच्छा अच्छा दिखाई पड़ता है और समय बुरा होता है तब सब जगह बुरा घटित होने लगता है इसी कारण से प्रकृति शरीर और समाजसे संबंधित कई बड़ी समस्याएँ स्वयं ही पैदा होती और समाप्त होती रहती हैं !किंतु प्रकृति की स्वयं घटित होने वाली ऐसी अवस्था में बुरा समय तो समुद्र की लहर की तरह आकर चला जाता है किंतु उसके दुष्प्रभाव से जो घटनाएँ घटित हो जाती हैं उनकी भरपाई लंबे समय में भी नहीं हो पाती है !
      इसी कारण भीषणबाढ़,आँधीतूफान एवं भूकंप आदि घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं सामूहिक और  व्यक्तिगत बड़ी बड़ी बीमारियाँ होते देखी जाती हैं !मनोरोग तनाव आदि बढ़ते देखे जाते हैं !सामाजिक उन्माद जैसी घटनाएँ देखने को मिलती हैं !पारिवारिक संबंध बिगड़ने लगते हैं परिवार टूटने लगते हैं पति पत्नी के बीच आपसी तनाव होने लगता है संबंध विच्छेद होते देखा जाता है !ऐसी सभी समस्याओं का समय विज्ञान की दृष्टि से पूर्वानुमान लगाकर उनका समाधान भी समय के आधार पर ही कर लिया जाता था किंतु समय विज्ञान की उपेक्षा से ऐसी समस्याएँ समाज को नीरस बनाती जा रही हैं !
     समय की इसी महत्ता को विदेशी विद्वान् भी भारत का सम्मान करते रहे हैं और उन्होंने ने भी अपने अपने काल खंड में अपने अपने देशों में समय विज्ञान पर महत्वपूर्ण  कार्य किया है कई ने तो किताबें तक लिखी हैं !
    अलबरूनी - संस्कृत  और ज्योतिष दोनों विषयों के विद्वान थे उन्होंने लिखा है कि 'ज्योतिष शास्त्र में हिन्दू लोग संसार की सभी जातियों से बढ़कर हैं। मैंने अनेक भाषाओं के अंकों के नाम सीखे हैं, पर किसी जाति में भी हजार से आगे की संख्या के लिए मुझे कोई नाम नहीं मिला। हिन्दुओं में 18 अंकों तक की संख्या के लिए नाम हैं जिनमें अंतिम संख्या का नाम परार्ध बताया गया है।'उन्होंने इंडिका नाम से एक पुस्तक भी लिखी है जिसका जर्मन में अनुवाद एडवर्ड  सी सात्रो ने करवाया !अलबरूनी के अलावा अल्फजारी ,याकूब बिन तारिक ,सब अलहसन आदि इस्लामिक विद्वानों ने भी समय विज्ञान पर बहुत काम किया है !
प्रो. मैक्समूलर ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि 'भारतवासी आकाशमंडल और नक्षत्रमंडल आदि के बारे में अन्य देशों के ऋणी नहीं हैं। इन वस्तुओं के मूल आविष्कर्ता वे ही हैं।'
फ्रांसीसी पर्यटक फ्राक्वीस वर्नियर भी भारतीय ज्योतिष-ज्ञान की प्रशंसा करते हुए लिखते हैं कि 'भारतीय अपनी गणना द्वारा चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण की बिलकुल ठीक भविष्यवाणी करते हैं। इनका ज्योतिष ज्ञान प्राचीन और मौलिक है।'
फ्रांसीसी यात्री टरवीनियर ने भी भारतीय ज्योतिष की प्राचीनता और विशालता से प्रभावित होकर कहा है कि 'भारतीय ज्योतिष ज्ञान प्राचीनकाल से ही अतीव निपुण हैं।'
इन्साइक्लोपीडिया ऑफ‍ ब्रिटैनिका में लिखा है‍ कि 'इसमें कोई संदेह नहीं कि हमारे (अंग्रेजी) वर्तमान अंक-क्रम की उत्पत्ति भारत से है।  
     ग्रीक के प्रसिद्ध  विद्वान् मार्सेली फिकिनों ने  समय विज्ञान की महत्ता समझते हुए इसी संदर्भ में 'लिबर्टीबिटा' नाम  से एक पुस्तक भी लिखी है !
    इसी प्रकार से इब्नबबूता 
     अकबर के नव रत्नों में अब्दुल रहीम खानखाना भी थे उन्होंने मानव जीवन से संबंधित समस्याओं के  समाधान हेतु इसी समयविज्ञान को अत्यंत उपयोगी और प्रभावी माना है ! न केवल इतना अपितु इस विषय में 'खेटकौतुकं' और 'द्वाविंशद्योगावली'नामक  उन्होंने दो पुस्तकें भी लिखी हैं !
     प्रसिद्ध विद्वान्  पैरासेल्सस प्रसिद्ध चिकित्सा शास्त्री थे उन्होंने चिकित्सा जगत के लिए समय विज्ञान को अत्यंत उपयोगी बताया है !शरीर की क्रियाओं और औषधियों पर पड़ने वाले समय के प्रभाव का उन्होंने विस्तार पूर्वक वर्णन किया है !उन्होंने अपनी पुस्तक 'दि फ़ण्डामेंटो सेपियेण्टी' में लिखा कि प्रचलित चिकित्सा प्रणाली मनुष्य के केवल स्थूल शरीर के लिए समर्पित है जबकि रोग केवल स्थूल शरीर में ही नहीं होते हैं !दूसरी बात वर्तमान चिकित्सा पद्धति शरीर में विद्यमान  रोगों के प्रति ही समर्पित है किंतु इसमें उस रोग के अतीत का यथार्थ आकलन नहीं होता एवं उसके भविष्य में संभावित बदलाव पर कोई यथार्थ आकलन नहीं होता !स्वस्थ होने की आशा से चिकित्सा प्रारंभ की जाती है जबकि रोग के विपरीत दिशा में बढ़ने की आशंका बनी रहती है 
!इसलिए उन्होंने चिकित्सा के विषय में समय विज्ञान को अत्यंत उपयोगी माना है !
     विश्व के  इतने बड़े बड़े विद्वानों ने भारत के जिस समय विज्ञान को  भविष्य संबंधी पूर्वानुमान लगाने में अत्यंत सक्षम माना है तो उचित है कि उसी के द्वारा भविष्य संबंधी रोगों तनावों एवं प्राकृतिक आपदाओं से संबंधित सभी प्रकार के पूर्वानुमानों के लिए अनुसंधान किए जाने चाहिए !
     इसके अतिरिक्त जो लोग समय विज्ञान से संबंधित ग्रह विज्ञान आदि को मानने में संकोच करते हों या इसे अंध विश्वास आदि मानते हों उन्हें इसके अलावा किसी अन्य पद्धति से भी भविष्य संबंधी पूर्वानुमान लगाने लिए स्वतंत्र प्रयास करने चाहिए जो तर्क की कसौटी पर कैसे जा सकें !




  
     

Wednesday, 11 April 2018

giit govindam



अशोक सिंघल जी आशाराम जी की मदद कर कितनी पाएँगे ?क्योंकि ज्योतिषीय नाम संकट का सामना कर रहे हैं आशाराम जी !

आखिर क्या है इन समस्याओं का समाधान और क्या हो सकता है इनका उपाय ? 

     किन्हीं भी  दो या दो से अधिक लोगों का नाम यदि एक अक्षर से ही प्रारंभ होता है-

जैसेः-राम-रावण, कृष्ण-कंआदि 

शोक सिंघल जी यदि शाराम जी की मदद करना चाहते हैं तो करें किन्तु उसके परिणाम आशा के अनुकूल नहीं होंगे ज्योतिषीय दृष्टि से मुझे लगता है कि होम करने से पूर्व हाथ बचाकर रखने की तैयारी पर अच्छे ढंग से चिंतन कर लिया जाना चाहिए !कोई और पहल करे तो ठीक है ।

इसीप्रकार आशाराम जी भी इसी ज्योतिषीय नाम प्रतिकूलता का दंड भोग रहे हैं -
 आशाराम और शोक गहलोत (मुख्यमंत्री राजस्थान)
 आशारामऔरनंदपुरोहित(सरकारीवकील) 
 आशाराम और जय पाल लांबा(इंवेस्टीगेटिंगऑफीसर)
                   
 आशाराम औरजय लांबा  (डीसीपी )   
 शाराम और म आदमी पार्टी
शाराम और रक्षण बचाओ समिति 
शाराम  और शोक सिंघल जी 
  इसीप्रकार दो टी.वी.चैनल जिन्होंने आशाराम जी की गिरफ्तारी की खबर दिखाने में विशेष रूचि ली है -
शाराम और जतक ( टी.वी.चैनल )शारामऔरनंदबाजारपत्रिका(टी.वी.चैनलA.B.P)
    सच्चाई तो ईश्वर ही जाने जो न्याय प्रणाली के आधीन है कानून व्यवस्था पर सबको भरोसा रखना ही चाहिए! किंतु हम तो  ज्योतिष शास्त्र का एक दृष्टिकोण समाज के सामने रखना चाह रहे हैं कि  इन्हीं नामों का पहला अक्षर एक जैसा मिलने के  ज्योतिषीय दोष के कारण आशाराम जी को इन लोगों का तीखा विरोध झेलना पड़ा!

वर्णविज्ञान -

     अक्षर लिखने पढ़ने के काम तो आते ही हैं इसके साथ ही साथ इनमें से प्रत्येक अक्षर का अपना अपना स्वभाव होता है जो अक्षर जिस व्यक्ति के नाम का पहला अक्षर होता है उस अक्षर का उस व्यक्ति पर इतना बड़ा प्रभाव पड़ता है कि उसका स्वभाव उस अक्षर की तरह बनता चला जाता है और जैसा स्वभाव होता है वैसी सोच बनती चली जाती है !वर्णों के भी आपस में एक दूसरे वर्ण के साथ मित्र  शत्रु आदि संबंध होते हैं !जिन दो वर्णों के आपस में दूसरे के साथ जैसे संबंध होते हैं उन वर्णों से प्रारंभ नाम वाले लोगों के भी आपस में एक दूसरे के प्रति  वैसे ही विचार बनने लग जाते हैं वैसे ही संबंध होते देखे जाते हैं नाम के प्रथम वर्ण का इतना बड़ा असर होता है !


  संबंध विज्ञान-


 वर्तमान जीवन शैली में सबसे बड़ा संकट संबंधों पर अविश्वास का है अत्यंत घनिष्ठ संबंधों या नाते रिश्तेदारियों में भी लोग एक दूसरे के साथ धोखा धड़ी घात प्रतिघात आदि करने लगे हैं इसलिए किसी  पर भरोसा करना दिनोंदिन  कठिन होता जा रहा है !संबंध बिगड़ते जा रहे हैं लोग छोटी छोटी बातों पर अत्यंत नजदीकी संबंधों को भी बिना बिचार किए तोड़ दिया करते हैं इसलिए हर कोई मानसिक दृष्टि से अकेला होता जा रहा है !पति पत्नी तलाक लेने लगे हैं ! 


     ऐसा होने के दो कारण प्रमुख हैं एक उन दोनों का अपना अपना समय कैसा चल रहा है और दूसरा जैसा जिसका समय होता है वैसा उसका स्वभाव और सोच बनती जाती है वैसे ही बिचार आते हैं !इसलिए उन दो में से यदि किसी एक का समय ख़राब चल रहा होता है तो उतने समय के लिए उसे क्रोध आने लगता है इसलिए वो सबसे लड़ता है और सबसे संबंध तोड़ने को तैयार बैठा रहता है किंतु उसके साथियों सम्बन्धियों का यदि समय अच्छा होता है तो वो उसकी सारी  गलतियाँ सहकर भी अपने संबंधों को बचा लिया करते हैं !किंतु जब उन दोनों का ख़राब समय एक साथ आ जाता है तब दोनों को गुस्सा आने लगता है और वे दोनों एक दूसरे से संबंध तोड़ देने की मनस्थिति बना लेते हैं ऐसी ही परिस्थिति में विवाह विच्छेद अर्थात तलाक हो जाता है एक से एक नजदीकी संबंध आदि तोड़ दिए जाते हैं !किंतु किसी के भी जीवन में ऐसी परिस्थिति यदि कुछ कुछ समय अर्थात कुछ महीनों वर्षों आदि के लिए आती जाती रहती है तो ये उसके अपने समय संबंधी समस्या है जिसका निदान हमारी


'समयविज्ञान' विधा के द्वारा ही हो सकता है!और यदि किसी का किसी के प्रति ऐसा भाव हमेंशा ही बना रहता रहा हो तो ये उन दोनों के नाम के पहले वर्ण (अक्षर) के कारण पैदा हुई  समस्या होती है !


वर्णविज्ञान से जाँचा जा सकता है कि किसका भाव किसके प्रति कैसा रहेगा ?


    किसी परिवार के सदस्यों के बीच या पति पत्नी आदि के आपसी संबंधों में यदि अकारण एक दूसरे के प्रति अविश्वास या शंका बनी रहती हो इसलिए परिवार के सदस्य एक दूसरे के प्रति भरोसा न कर पाते हों !ऐसी भावना एक दूसरे के प्रति काफी लम्बे समय से देखी जा रही हो तो ऐसे परिवारों के सदस्यों को वर्ण बिषैलेपन का शिकार समझा जाना चाहिए !


    इसके लिए उस घर के किन्हीं दो या दो से अधिक लोगों  के नाम के पहले अक्षरों की जाँच करनी होती है !यदि ये वर्ण आपस में शत्रु होते हैं तो ऐसे लोगों का चिंतन हमेंशा एक दूसरे का विरोधी रहता है !इस कारण किसी की गलती न होने पर भी ऐसे लोग कभी भी एक दूसरे के प्रति भरोसा नहीं कर पाते हैं !यही वो सबसे बड़ा कारण है कि जिसके आधार पर बिना किसी कारण या बिना किसी हानि लाभ के भी लोग एक दूसरे के प्रति विद्वेष पूर्ण चिंतन में लगे रहते हैं निंदा आलोचना आदि किया करते हैं ! इसी कारण से ऐसे लोग अपने पिता पुत्र भाई बहन पति पत्नी या किसी अन्य सगे संबंधी नाते रिस्तेदार के प्रति भी दुर्भावना रखने लगते हैं !उनके  द्वारा अपने प्रति किए जाने वाले अच्छे से अच्छे बात व्यवहार या सहयोगात्मक प्रयास में भी कमियाँ खोज लिया करते हैं और अकारण ही उनसे घृणा अलगाव ईर्ष्या द्वेष आदि मानने लगते हैं !


   परिवारों की  तरह ही सरकारों राजनैतिक दलों संगठनों सरकारी कार्यालयों प्राइवेट संस्थानों जैसे सामूहिक कार्यक्षेत्रों में एक साथ काम करने वाले बहुत लोग होते हैं उनके नाम के पहले अक्षरों के साथ यदि अपने सीनियर या जूनियर सहयोगी का उचित तालमेल नहीं बनता तो वहाँ भी एक दूसरे के प्रति अविश्वास का वातावरण बना रहता है !ऐसे लोग कोई ऐसा काम नहीं करेंगे जिससे उनके विरोधी नाम अक्षर वाले व्यक्ति का यश बढे ,उसे सुख पहुँचे या उसे इसका श्रेय अर्थात क्रेडिट मिल सके !


    प्रधान मंत्री या मुख्यमंत्रियों के  कार्यालयों में अत्यंत महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी सँभालने वाले प्रमुख अफसरों के  नाम का पहला अक्षर यदि प्रधान मंत्री या मुख्यमंत्रियों आदि के नाम के पहले अक्षर का शत्रु हुआ तो वर्ण विज्ञान की दृष्टि से  वो अफसर कभी ऐसा कोई प्रयास नहीं करना चाहेगा जिससे उस प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री आदि का सम्मान बढ़ सके तथा उन्हें उस सफलता का श्रेय मिल सके !इसलिए वे अक्सर टाल मटोल किया करते हैं !


   राजनैतिक दलों में पदाधिकारियों या चुनावी प्रत्याशियों के चयन में भी वर्ण विज्ञान की दृष्टि से विचार करके इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि पार्टीनेतृत्व के प्रति और पार्टी के प्रति इनकी निष्ठा कैसी और कितनी रहेगी !


    किसी क्षेत्र विशेष के  चुनावों में प्रत्याशी बनाते समय तीन बातों का विचार करना बहुत आवश्यक होता है पहला अपने  प्रत्याशी और उसके सामने चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों का समय कैसा है दूसरा अपने प्रत्याशी और  सामने चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों के नाम के पहले अक्षरों की दृष्टि से अक्षरबल में किस पार्टी का कौन प्रत्याशी कितना अधिक मजबूत दिखाई दे रहा है !तीसरी बात जिस लोकसभा या विधान सभा सीट से जो प्रत्याशी चुनाव लड़ने जा रहा है उस शहर के नाम के पहले अक्षर का उस प्रत्याशी के नाम के पहले अक्षर के साथ कैसा संबंध है क्या उस सीट पर चुनाव लड़ने से इस प्रत्याशी का सम्मान बढ़ सकता है इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !


    जैसे - उत्तर प्रदेश में उमाभारती जी के नेतृत्व में विधान सभा का चुनाव लड़ा जाना बिलकुल निरर्थक था क्योंकि 'उ'त्तरप्रदेश और 'उ'माभारती जी दोनों के नाम का पहला अक्षर 'उ' है !एकाक्षर दोष के कारण यहाँ सफलता मिलने की संभावना एक प्रतिशत भी नहीं थी !ऐसे ही अन्यत्र भी विचार किया जाना चाहिए !


   इसी प्रकार से  किस नाम वाले शहर के लिए किस नाम वाले अधिकारी कितना अधिक लाभप्रद हो सकते हैं अधिकारियों  की नियुक्ति करते समय इस बात का विचार किया जा सकता है !


     किस मंत्री मुख्यमंत्री आदि के साथ किस किस नाम वाले अधिकारी कितनी अच्छी भूमिका का निर्वाह कर सकेंगे वर्ण विज्ञान के आधार पर इस बात का भी पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !


    किसी विश्व विद्यालय या अन्य संस्था का कुलपति या प्रमुख पद देते समय उनके और उस विश्व विद्यालय या संस्था के नाम के पहले अक्षरों के साथ वर्ण विज्ञान की दृष्टि से संबंधों के विषय में विचार कर लिया जाना चाहिए !इसके द्वारा इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि कौन सी संस्था किस व्यक्ति के लिए कितनी लाभकारी है एवं कौन सा व्यक्ति किस संस्था के लिए कितना लाभकारी होगा !


    अपने देश के संबंध किन किन देशों और उनके किन किन शासकों के साथ कितने अच्छे या बुरे रह सकते हैं उनके नाम के पहले अक्षरों के आधार पर वर्ण विज्ञान की दृष्टि से इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !यहाँ इस बात का भी ध्यान रखा जा सकता है कि विश्व के किस देश के किस नेता के साथ बात करने जाने के लिए अपने देश की सरकार का कौन सा सक्षम व्यक्ति वार्ता के लिए भेजा जाए जो उस यात्रा से अपने देश के लिए अनुकूल एवं लाभप्रद वातावरण का निर्माण कर सके !


    मित्र नामाक्षरों की पहचान -


    जिन दो लोगों के नाम के पहले अक्षरों की आपस में मित्रता होती  है ! ऐसे नाम वाले यदि अपरिचित लोग भी हों जिनसे पहली बार मिल रहे होते हैं वो भी उन्हें अपना लगने लगता है और कुछ ही देर मिलकर उसके साथ घुल मिल जाते हैं उसे अपना मित्र या शुभ चिंतक समझने लगते हैं !इस प्रकार से नाम के प्रथम अक्षरों में बहुत अधिक शक्ति होती है !ऐसे लोग शत्रु  अक्षरों से संबंधित देशों प्रदेशों शहरों गाँवों से अरुचि रखने लगते हैं !यही कारण है कि कलकत्ते में रहने व्यक्ति यह जानते हुए कि जूस कलकत्ते में भी बिकता है फिर भी कलकत्ते को छोड़कर वो दिल्ली आकर दिल्ली में जूस बेचने का काम करते देखा जाता है !इसीप्रकार दिल्ली का व्यक्ति कलकत्ते में जूस बेचने गया होता है !क्योंकि दोनों के नाम के पहले अक्षर उन उन शहरों के नाम के पहले अक्षरों के मित्र नहीं होते हैं !


     वर्ण विज्ञान का विशेष महत्त्व -


       वर्णों की भूमिका केवल इतनी ही नहीं होती है अपितु इनका आपस में एक दूसरे वर्ण के साथ  ऐसा संबंध भी होता है कि कौन वर्ण किस वर्ण से कितना स्नेह रखता है कौन किससे कितनी शत्रुता रखता है !इसके अलावा कौन वर्ण किस वर्ण से ऊपर रह सकता है और कौन वर्ण से नीचे रहना  पसंद करेगा !यदि इसके अनुशार वर्णों का स्वभाव समझते हुए आपसे में एक दूसरे के साथ व्यवस्थित न किया गया तो उन दोनों वर्णों से संबंधित लोग एक दूसरे के साथ प्रेम पूर्वक नहीं रह पाते हैं !


        किसी संगठन ,पार्टी ,परिवार, समाज आदि में कोई दो या दो से अधिक ऐसे नाम हों जो एक अक्षर से प्रारंभ होते हों उनके आपसी संबंध पहले तो बहुत मधुर  होते हैं किंतु बाद में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विरोधी भूमिका अदा करते हुए किसी भी हद तक चले जाते हैं !    


      सच्चाई ये है कि न वहाँ के हीरो अन्ना थे और न यहाँ के अरविंदकेजरीवाल हैं और यदि कोई हीरो बनना चाहेगा तो वही होगा जो यही आम आदमी पार्टी के अ वाले भी करेंगे !


   साहित्य लेखन, फिल्म या नाटक निर्माण में  में चयनित पात्रों के नामाक्षर का प्रभाव !


  साहित्य लेखन आदि में जिन पात्रों का चयन किया जाता है उनके जो जो नाम रखे जाते हैं उनमें से जिन जिन पात्रों का चयन किया जाता है उन नामों के प्रथमाक्षरों का आपसी संबंध यदि उनकी उस साहित्य में निर्धारित की गई भूमिका के आधार पर रखा जाता  है तभी उस साहित्य या फ़िल्म आदि में सजीवता आ पाती है उसी के अनुशार उसे लोकप्रियता मिलती है !किन्हीं दो पात्रों की यदि आपस में शत्रुता दिखानी है तो उनके नाम के पहले अक्षर आपस में एक दूसरे के शत्रु होने चाहिए तो उनके अभिनय में जान पड़ जाती है !


   हिंदी का महान काव्य श्री रामचरित मानस जो न केवल पूजा में भी प्रयोग किया जाता है अपितु हिंदी के काव्यों में सर्वाधिक लोकप्रिय होने का श्रेय तो प्रभु श्री राम के प्रति लोगों की आस्था है इसके साथ साथ इसमें वर्ण विज्ञान की भी बहुत बड़ी भूमिका है !गोस्वामी जीने वर्ण विज्ञान की उचित स्थापना करने के लिए नाम विज्ञान का इतना अधिक उपयोग किया है कि जहाँ किसी पात्र का नाम उसकी भूमिका के अनुशार उपयुक्त नहीं लगा तो लेखक ने कथा के भाव के अनुशार सजीवता लेन के लिए वहाँ उन पात्रों के पर्यायवाची शब्दों का पर्याप्त उपयोग किया है जिससे और अधिक लोकप्रियता प्राप्त हो सकी !


    फिल्मों आदि के अधिक लोकप्रिय होने में भी वर्ण विज्ञान की बहुत बड़ी भूमिका होती है !


वर्णविज्ञान का स्वरूप -


   वर्णविज्ञान की दृष्टि से सर्व प्रथम किसी वर्ण का अपना स्थायी स्वभाव समझना होता है इसके बाद देखना होता है कि अपने जैसे दूसरे वर्ण के विषय में उसका रुख कैसा होता है !दूसरी बात अन्य वर्णों के साथ उसका स्थायी स्वभाव कैसा होता है !तीसरी बात वो वर्ण किन्हीं अन्य शत्रु वर्णों का भी अपने स्वभाव के अनुशार किन किन विंदुओं पर और किस किस प्रकार के प्रकरणों में किसका समर्थन कर सकता है ! इसी के अनुशार उन नामों से संबंधित लोगों के पारस्परिक व्यवहार का अनुमान लगा लिया जाता है !


विशेष -


     किन्हीं भी दो लोगों का नाम यदि एक अक्षर से प्रारंभ होता है तो उनका स्वभाव सोच शौक शान आदि एक जैसे होते हैं इसलिए ऐसे लोगों के विचार एक दूसरे से बहुत मिलते हैं इसलिए ऐसे लोग बहुत अच्छे दोस्त होते हैं क्योंकि इनकी पसंद प्रायः एक जैसी होती है ! इसलिए ऐसे दोनों लोग जब किसी एक ही चीज को एक साथ पसंद कर बैठते हैं तब इनके बीच कितना भी बड़ा बैर विरोध हो सकता है उसके बाद प्रायः एक को नष्ट होना होता है !इसलिए उचित यही होगा कि जीवन के सभी क्षेत्रों में एक अक्षर से प्रारंभ नाम वाले किन्हीं दो लोगों को आमने सामने खड़े होने से बचना चाहिए आपसी वाद विवाद से, आर्थिक लेन देन से अपनी पसंद पीछे करने का अभ्यास करना चाहिए !कई बार किसी एक प्रेमी या प्रेमिका पर एक अक्षर वाले कोई दो लोग आकृष्ट हो जाते हैं !दोनों ओर से यदि समय रहते संयम नहीं वरता गया तो ऐसे प्रकरणों में परिणाम बहुत दुखद होते देखे जाते हैं!जैसे सीता जी श्री राम की तो पत्नी ही थीं उन पर रावण भी आकृष्ट हो गया !राम और रावण दोनों 'र' के आमने सामने आते ही रावण मारा गया !


  ऐसी परिस्थितियाँ प्रेम प्रसंग वाले प्रकरणों में विशेष चिंतनीय होती हैं !क्योंकि दोनों का स्वभाव सोच और पसंद एक जैसी होने के कारण दोनों एक दूसरे को बहुत शीघ्र पसंद कर लेते हैं लेकिन ऐसे लोग जितने ज्यादा दिन एक साथ रह लेते हैं उतने ही अधिक एक दूसरे के लिए घातक हो जाते हैं !


    ऐसी वर्णविषैलेपन के शिकार बहुत लोग अपनों को खोते जा रहे हैं परिवार टूटते जा रहे हैं विवाह विघटित होते जा रहे हैं !नाते रिस्तेदारियाँ बिगड़ती जा रही हैं नेताओं अफसरों राजनैतिक दलों के संबंध एक दूसरे से बिगड़ते जा रहे हैं !अफसरों  के अपने आधीन होने वाले कर्मचारियों या अपने सीनियर लोगों से संबंध बिगड़ते जा रहे हैं ऐसे लोग एक दूसरे से बदला लेने की ताक में रहा करते हैं !यही स्थिति प्राइवेट संस्थानों में होती है इससे कई बड़े संस्थान व्यापार आदि नाम के विषैलेपन के कारण छिन्न भिन्न  जाते हैं! इसी कारण से कई बड़े बड़े राजघराने तहस नहस होते देखे जाते हैं -कौशल्या - कैकेयी ! इसीप्रकार से राजनैतिक दलों में नेता लोग एक दूसरे से बैर विरोध बाँध कर बैठ जाते हैं !ऐसे लोग एक दूसरे की छोटी छोटी कमियाँ पकड़ कर एक दूसरे के दुश्मन बन बैठते हैं जबकि इसका मुख्य कारण एक दूसरे की कमियाँ न होकर वर्ण विषैलापन होता है !


       इसके कुछ उदाहरण सामने रखकर बात करते हैं -


ओबामा-ओसामा,


परवेजमुशर्रफ-पाकिस्तान,


कलराजमिश्र-कल्याणसिंह,


नरसिंहराव-नारायणदत्ततिवारी,


लालकृष्णअडवानी-लालूप्रसाद,


मायावती-मनुवाद,


मायावती-मुलायम ,


अमरसिंह - आजमखान,


अमर सिंह - अखिलेशयादव,


अमरसिंह - अनिलअंबानी,


अमरसिंह - अमिताभबच्चन,


अमरसिंह -अजीतसिंह    


प्रमोदमहाजन-प्रवीणमहाजन-प्रकाशमहाजन


नजीब जंग -नजीब अहमद (J.N.U.छात्र )


    जेडीयू के लिए जीतन राममाँझी, उत्तर प्रदेश के लिए उमाभारती ने नेतृत्व में लड़ा गया चुनाव निरर्थक रहा !महाराष्ट्र के लिए मनसे भूमिका विहीन रहेगी , हरियाणा के लिए हविपा, गुजरात के लिए गुजरात परिवर्तन पार्टी आदि निरर्थक ही सिद्ध होती रही हैं !यही हाल ' म'ध्यप्रदेश में 'मा'धवराव सिंधिया जी की 'म'ध्यप्रदेशविकासकांग्रेस का रहा !


भाजपा  और वर्ण विज्ञान-


  भाजपा और भारत है !अटल जी जैसे सुयोग्य नेता के होते हुए भी भाजपा तब तक सत्ता में नहीं आ सकी जब तक 'राजग' बनकर चुनाव मैदान में नहीं उतरी !इसीलिए तो उसे राजगावतार लेना पड़ा ! यदि ऐसा न करती तो प्रांतों में जीतती जाती किंतु केंद्र की सत्ता भाजपा के हाथ नहीं लगती ! 'राजग' बनने के बाद से ही ये काम संभव हो पाया !


       राजग में  नरेंद्र मोदी को प्रमुखता मिलते ही नितीशकुमार छोड़ गए थे 'राजग' !अब दोनों का फिर एक साथ जो तालमेल बैठा है उसमें नरेंद्र मोदी जी के अलावा किसी तीसरे की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है और ये चलेगी भी तभी तक जब तक कोई तीसरा पक्ष इन  दोनों को मिलाने के लिए अत्यंत सावधानी और सतर्कता पूर्वक अपनी भूमिका का निर्वाह करता रहेगा !


    इसीप्रकार से नितिन गडकरी जी जब भाजपा के अध्यक्ष थे तब उनके और नरेन्द्रमोदी जी के संबंध भी .... !ऐसे प्रकरणों में जब कोई मजबूत तीसरा व्यक्ति अच्छी भूमिका निभाने लगता है और ऐसे लोगों को आमने सामने आने से बचा ले जाता है तो ऐसे लोग एक सरकार में रहकर भी प्रेम पूर्वक कार्य करते देखे जा सकते हैं !


दिल्ली भाजपा और वर्ण विज्ञान-


   दिल्ली भाजपा में जब से विजयेंद्रजी -विजयजोलीजी -विजयकृष्ण शर्मा जी - विजयकुमारमल्होत्राजी - विजयगोयलजी  आदि लोग एक साथ आमने सामने या साथ साथ बने रहे तब तक शीला दीक्षित जी को बिना विशेष परिश्रम किए भी चुनावी जीत मिलती रही !और  दिल्ली भाजपा को लगातार नुक्सान उठाना पड़ता रहा है !


उदाहरण स्वरूप में सर्वप्रथम 'अ' अक्षर-


    वर्ण माला का पहला अक्षर 'अ' है इसलिए सर्वप्रथम 'अ' अक्षर की चर्चा करना ही उचित होगा !


'अ'न्ना हजारे का  आंदोलन और वर्ण विज्ञान-


    'अ'न्ना हजारे का भ्रष्टाचार विरोधी बिल भी लोक सभा में पास हुआ किंतु राज्य सभा में लटक गया क्योंकि वहाँ  अभिषेक मनुसिंघवी और अरुण जेटली आमने सामने थे जहाँ दोनों लोग एक अक्षर वाले हों वहाँ आपस में कोई सहमति बन ही नहीं सकती है !इसके अलावा तीसरे अ वाले अन्ना हजारे थे !इसलिए अभिषेक मनुसिंघवी और अरुण जेटली की किसी बहस  से अन्ना को यशलाभ हो पाना संभव ही नहीं था ।


   यही हाल अन्ना हजारे के आंदोलन का हुआ ! अन्ना आंदोलन में अग्निवेष, अरविंद केजरीवाल और अमित त्रिवेदी एक साथ रहकर किसी लक्ष्य को कैसे प्राप्त कर सकते थे !


अन्ना हजारे का रामलीला मैदान में सम्मान और रामदेव का अपमान क्यों ?


   इसी प्रकार से अन्ना हजारे को तो रामलीला मैदान से सम्मान पूर्वक बार बार मनाया गया !इसी प्रकार से जब इसी प्रकार के आंदोलन के लिए रामदेव दिल्ली आए तो तत्कालीन सरकार के चार चार मंत्री उन्हें मनाने के लिए हवाई अड्डे पर गए किंतु जब ये बात राहुलगाँधी को पता लगी तब तक रामदेव का कार्यक्रम रामलीला मैदान में शुरू हो गया था !ये तीन र आमने सामने आते ही जो हुआ वो सबको पता है !यही रामदेव दूसरी बार भी रामलीला मैदान आए किंतु जब तक उनके विरोध में मौसम बनता उससे पहले ही वे रामलीला मैदान छोड़कर छोड़कर राजीवगांधी स्टेडियम के लिए निकले किंतु र ने वहाँ भी पीछा नहीं छोड़ा भाग्य अच्छा था इसलिए ये वहाँ तक पहुँच नहीं सके और अम्बेडकर स्टेडियम में रुक गए इससे बचाव हो गया !


आमआदमी पार्टी में एवं अरविंद केजरीवाल के इतने अधिक विवाद क्यों ?


     अब बात आम आदमी पार्टी की जिसमें अरविंदकेजरीवाल का कोई भविष्य हो ही नहीं सकता है !मनीष सिसोदिया की प्रमुखता में पार्टी चल रही है उन्हीं की सहयोगवृत्ति जब तक रहेगी तभी तक प्रतीकात्मक मुख्यमंत्री रखे जा सकते हैं अरविंद केजरीवाल !इसके आलावा केवल अपने बलपर आम आदमी पार्टी में अरविन्द जी का कोई भविष्य नहीं है !


          आम आदमी पार्टी के आतंरिक विवाद -


   अरविंद केजरीवाल,आशुतोष ,अजीत झा,  अलकालांबा, आशीष खेतान,अंजलीदमानियाँ ,आनंद जी, आदर्शशास्त्री,असीम अहमद इसी प्रकार से अजेश,अवतार ,अजय,अखिलेश,अनिल,अमान उल्लाह खान  आदि और भी 'अ' से प्रारम्भ नाम वाले जो लोग हों आम आदमी पार्टी से संबंधित प्रायः सभी प्रकार के विवादों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष इन लोगों की भूमिका अवश्य रहेगी इसके बिना पार्टी के अंदर या बहार पार्टी के लिए संकट खड़ा करने वाला कोई बड़ा विवाद नहीं होगा ! 'अ' से प्रारम्भ नाम वाले लोग कब किस बात को कितनी बड़ी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना कर  पार्टी के कितने बड़े भाग को प्रभावित करके कितनी बड़ी समस्या तैयार कर दें कहना कठिन होगा !


    'आ'म आदमी पार्टी के मुखिया 'अ'रविंद केजरीवाल कैसे हुए अचानक मौन ?


दिल्‍ली पुलिस कमिश्‍नर -  आलोक वर्मा (मार्च 2016 से जनवरी 2017)


                                      अमूल्य पटनायक 30 जनवरी 2017 से


सीबीआई के नए प्रमुख - अनिल सिन्हा ,आलोक वर्मा


चुनाव आयुक्त -       अचल कुमार ज्योति(6 जून २०17 )


वित्त  सलाहकार -     अरविंद सुब्रमण्यन


वित्त मंत्री -अरुण जेटली


    सबसे बड़ी बात उप राज्यपाल श्री 'अ'निल वैजल जी के सामने आते ही 'अ'अक्षर वाले 'अ'रविंद केजरी वाल बिल्कुल मौन हो गए !


  इतना सब होने के बाद जो कसर बाकी बची भी थी वो मुख्यमंत्री 'अ'रविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के लिए अक्सर समस्या तैयार करते रहने वाले विधायक 'अ'मानुल्ला खान का चीफ सेक्रटरी 'अं'शु प्रकाश के साथ विवाद हुआ !


   ये ही वे सभी कारण हैं जिनके कारण अरविंद केजरीवाल बाहर से भीतर तक अक्सर विवादित बने रहते हैं !


आम आदमी पार्टी की दिल्ली में इतनी बड़ी विजय कैसे ?-


  दिल्ली के चुनावों में भाजपा के पास कोई राजनैतिक नायक नहीं था जिसके नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाता !अचानक थोपे गए नेता को कार्यकर्ता लोग पचा ही नहीं सके !वैसे भी वर्ण विज्ञान की दृष्टि से किरण जी का अरविंद केजरीवाल से कोई मुकाबला नहीं था !उधर काँग्रेस दो बड़ी बिमारियों से जूझ रही थी पहली तो सत्ता विरोधी लहर और दूसरी अजय माकन और अरविंदर सिंह का एक दूसरे के आमने सामने आ जाना !इससे ये आपस में ही एक  दूसरे से गुंथे रहे उधर विपक्ष के द्वारा उपलब्ध कराई गई अनुकूल परिस्थितियों के कारण अरविंद केजरीवाल की पार्टी विजयी हो गई !


    इधर अजय माकन से रुष्ट होकर जो अरविंदर सिंह लवली काँग्रेस छोड़कर चले गए थे अब वे वापस आ गए हैं किंतु अभी भी अजय माकन और अरविंदर सिंह लवली का मधुर मिलन टिकाऊ नहीं है इसलिए पार्टीहित में इन दोनों में से किसी एक की भूमिका बदली जानी चाहिए !


समाजवादी पार्टी और परिवार में अखिलेश के आते ही कलह क्यों हुई ?


'अ'मरसिंह और 'अ'खिलेश -


    सपा में जब तक मुलायम सिंह जी का बर्चस्व रहा तब तक 'अ'मरसिंह प्रिय बने रहे और आजम खान पार्टी से बाहर कर दिए गए थे !अखिलेश को न आजमखान पसंद थे और न आजम खान को अखिलेश फिर आजमखान अल्प संख्यक चेहरा थे इसलिए उनसे समझौता किया गया और 'अ'मर सिंह जी को बाहर कर दिया गया !


 'अ' अक्षर वाले 'अ'मर सिंह जी की यात्रा 'अ'खिलेश,  'आ'जमखान, 'अ'मिताभबच्चन, 'अ'भिषेकबच्चन , 'अ'निलअम्बानी, 'अ'जीतसिंह के यहाँ होते हुए फिर पहुँची 'अ'खिलेश और 'आ'जमखान  के यहाँ उसी पुराने घर में वही हुआ !


     अब बात परिवार की तो शिवपाल यादव के बेटे हैं 'आ'दित्य' यादव उर्फ 'अंकुर' यादव  और 'अनुभा' यादव उनकी बेटी है ! यदि ये राजनीति में न भी सक्रिय होते तो भी इनकी मानसिकता तो 'अ'खिलेश विरोधी रहेगी ही उसका असर शिवपाल सिंह पर पड़ना स्वाभाविक है !मुलायम सिंह में साथ ये समस्या नहीं  थी इसलिए मुलायम सिंह तो संबंध चल गए लेकिन अखिलेश के साथ नहीं निभ सकी !शिवपाल जी अपने बच्चों की भावना को नजर अंदाज कैसे कर देते !


    यही हाल 'रामगोपालजी का है उनके बेटे 'अ'क्षय' यादव और भांजे 'अ'रविंद' यादव  के नाम भी तो 'अ' अक्षर से ही प्रारंभ होते हैं इसलिए 'अ'क्षय' यादव और 'अ'रविंद' यादव का  चिंतन भी अखिलेश विरोधी है जिससे राम गोपाल जी प्रभावित हैं अखिलेश के लिए वे भी शिवपाल जी की ही भूमिका निभा रहे हैं किंतु मीठे बनकर जो अखिलेश के लिए अधिक घातक है !


    इसी प्रकार से''अ'भिषेक' उर्फ ''अं'शुल  राजपाल यादव जी के बेटे हैं ''अ'नुराग यादव'  जी धर्मेंद्र यादव के छोटे भाई हैं ''अ'पर्णा'यादव हैं आपकी पुत्र बधू हैं और इन सबके नाम भी तो 'अ' अक्षर से ही प्रारंभ होते हैं इनमें हर किसी को आप 'अ'खिलेश विरोधी समझिए और आपस में भी ये सारे  'अ' अक्षर वाले एक दूसरे की जड़ें काटते रहेंगे यह भी मानकर चलिए !


    पार्टी पदाधिकारियों में भी यही हाल है - 'आ'जमखान और उनके बच्चे 'अ'दीब और 'अ'ब्दुल्लाह  ये सभी 'अ' अक्षर वाले होने के कारण इनकी पटरी आपस में खाए न खाए किंतु 'अ'खिलेश और 'अ'मरसिंह का विरोध करने के लिए ये तीनों एक होंगे !


'अ'मरसिंह जी भी 'अ' अक्षर वाले हैं इसीलिए वे अपने भाई 'अ'रविंद सिंह के साथ संबंध नहीं निभा सके तो 'अ'खिलेश' जैसे अन्य लोगों के साथ कैसे निभा सकते हैं!  'अ' अक्षर वाले 'अ'मिताभ बच्चन 'अ'भिषेक बच्चन ,'अ'निल अंबानी ,'अ'जीत सिंह आदि से निपटते निपटाते अब पहुँचे हैं 'अ'खिलेश से निपटने! जहाँ से जिन कारणों से निकाले गए थे वे कारण वैसे ही बने रहने के बाद दोबारा उसी पार्टी में उनका निर्वाह कैसे हो सकता है ! 


पार्टी में अखिलेश यादव की समस्याएँ -


'आ'जम खान - 'अ'फजलअंसारी ,डा. 'अ'शोक वाजपेयी, 'अ'म्बिका चौधरी, 'अ'बुआजमी रहे बचे 'आ'शु मलिक जैसे  'अ' अक्षर वाले सभी लोगों के साथ 'अ'खिलेश का निर्वाह कैसे हो सकता है !


      वस्तुतः 'अ' अक्षर का स्वभाव दुस्साहसी होता है वो अपने बराबरी में किसी को पसंद ही नहीं करता !इस अक्षर से प्रारंभ नाम वाले व्यक्ति हों शहर हों या देश हों वो अपने को दूसरों से बहुत अच्छा सिद्ध करना चाहते हैं वो हों या न हों ये और बात है !'आ'गरा, 'अ'लीगढ़ ,'आ'जमगढ़ ,'अ'मेठी आदि !इसी प्रकार से 'अ'मेरिका की स्थिति है !

 मुख्य बात -
        ये बात तो हुई केवल  'अ' अक्षर की दूसरी बात
'अ' अक्षर के साथ किसी दूसरे 'अ' अक्षर की इसी प्रकार से 'अ' अक्षर वाले किसी स्त्री या पुरुष के संबंध बिना 'अ' अक्षर वाले अर्थात भिन्न भिन्न अक्षरों से प्रारंभ नाम वाले किस व्यक्ति के साथ कैसे रहेंगे !ये बात भी बहुत महत्त्वपूर्ण है इस बात को भी इसी वर्णविज्ञान के द्वारा समझा जा सकता है !जिसका वर्णन इस विषय से संबंधित हमारी निकट भविष्य में प्रकाशित होने वाली पुस्तक में देखने को मिलेगा !क्योंकि यहाँ विस्तार भय के कारण देना उचित नहीं है !

        'अ' अक्षर की ही भाँति सभी अक्षरों  का अपना अपना स्वभाव होता है और सभी अक्षरों के अपने अपने मित्र शत्रु सम आदि होते हैं ! अक्षरों के अनुशार ही उनसे प्रारंभ नाम वाले लोगों के आपस में एक दूसरे के साथ संबंध होते हैं !
      अक्षरों का बहुत बड़ा प्रभाव होता है !अपने देश भारत को वर्तमान में तीन नामों से जाना जाता है !तीनों के फल अलग अलग हैं !'भा'रत नाम को यदि प्रचारित किया जाए तो भारत का सम्मान बढ़ेगा !'इं'डिया नाम भारत को दुस्साहसी और दूसरों का पिठलग्गू बनाता है ! 'हिं'दुस्तान शब्द लड़कपन का प्रतीक है इस नाम पर यदि भारतवर्ष की पहचान बने तो भररत को कोई गंभीरता से नहीं लेगा !इसलिए अपने देश का भारत नाम ही सर्व श्रेष्ठ है !
     मुसलमान और हिंदू नाम को वर्ण विज्ञान की दृष्टि से यदि तौला जाए तो मुसलमान का 'म' हिंदू के''हि' शब्द पर भारी पड़ सकता है !इसलिए  हिंदुओं को केवल हिन्दू न कहकर  अपितु सनातनहिंदूधर्मी कहा जाए तो हिन्दुओं की पहचान शक्तिवान धर्म की बनाता है !

      सपा बसपा का गठबंधन -
     इस गठबंधन को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए क्योंकि इस गठबंधन के प्रति दोनों तरफ से यदि थोड़ी सावधानी और उदारता बरती गई तो ये गठबंधन लंबे समय तक चलने वाला स्वाभाविक रूप भी ले सकता है !
     इसका कारण 'मा'यावती और 'मु'लायम सिंह जी के नाम के पहले अक्षर 'म' होने के कारण दोनों का अहंकार टकरा जाता था किंतु 'मा'यावती और 'अ'खिलेश के साथ अब परिस्थितियाँ बिल्कुल बदल गई हैं और दोनों एक दूसरे के साथ निर्वाह करके लंबे समय तक गठबंधन पूर्वक राजनीति कर सकते हैं !किंतु इसमें विशेष बात यह है कि हर मुद्दे पर अखिलेश को ही मायावती के आगे झुकना होगा जबकि मायावती गठबंधन चलाएँगी भी तो सर्वाधिकार अपने हाथ में लेकर जिस दिन ऐसा यहीं हुआ उस दिन ..... !किंतु थोड़े बहुत किंतु परंतु के साथ दोनों पक्ष  आपसी समझौते को व्यवस्थित रखना चाहेंगे ! इसमें यदि किसी तीसरे पक्ष का प्रवेश हुआ तो इस गठबंधन पर उसका और उसकी सलाहों का भी असर पड़ा सकता है !
महागठबंधन की संभावनाएँ -
    इसकी दो सबसे बड़ी कमजोरियाँ हैं एक तो प्रधानमंत्री पद के योग्य प्रत्याशी का अभाव !इसका कारण ये है कि महागठबंधन में जो सबसे बड़ी पार्टी होगी उसके सबसे बड़े नेता का नाम यदि 'र' अक्षर पर होता है जिसकी कि सम्भावना दिखाई पड़ती है !तो 'र' अक्षर के स्वभाव में ही नहीं है सीधे तौर पर स्वाभाविक रूप से अपने बल पर कोई पद प्राप्त करके उस पर आसीन हो जाना !इस अक्षर वाले लोग परदे के पीछे रहकर दूसरों को पद प्रतिष्ठा दिलाकर उसका श्रेय लेने के शौकीन होते हैं ऐसे 'र' अक्षर वाले लोग नैतिकता के कारण ,शिक्षा आदि योग्यता के कारण,धनबल से ,बंशानुगत क्रम से ,सहानुभूति से , अचानक प्राप्त समस्याओं के समाधान के रूप में दूसरे लोगों के द्वारा विकल्प विहीन अवस्था में किसी पद पर थोप दिए जाते हैं जब तक वो लोग सहानुभूति पूर्वक सहयोग करते हैं तभी तक वे उस पद पर आसीन रह पाते हैं !वस्तुतः ऐसे अधिकाँश लोग परिस्थितियों से प्रकट हुए नेता होते हैं !किसी का जन्म समय यदि बहुत अधिक बलवान हो तब र अक्षर वाले लोग भी इस सिद्धांत से अलग हटकर कुछ कर पाते हैं किंतु ऐसे उदाहरण बहुत कम देखने को मिलते हैं !

       भगवान श्री राम का ही विषय लिया जाए तो नियमानुसार बड़े पुत्र का राज्य पर अधिकार होता ही है किंतु कैकेयी के विवाह में रखी गई शर्त मान लेने के बाद राज्य पर पहला अधिकार कैकेयी के पुत्र भरत का था !श्री राम ने दो राज्य अपने भुजबल से जीतकर दूसरों को राजा बनाया किंतु जब खुद को राजा बनने का अवसर आया तो भारत जीने जिस राज्य को लेने से मना  कर दिया वो राज्य उन्हें स्वीकर करना पड़ा !
      निकटवर्ती समय में श्रीमान राजीव गाँधी जी ,उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री राम प्रकाश गुप्त ,रावड़ी देवी और चलती गाड़ी में बैठ लेने वाले रामबिलास पासवान आदि हैं !विपक्ष के अभाव में कुछ प्रदेशों में कोई और मुख्यमंत्री या प्रधान मंत्री र अक्षर वाला व्यक्ति भी बन सकता है किंतु ऐसी संभावनाएँ अत्यंत कम होती हैं !ऐसे लोग दूसरों की मदद करने के लिए तो ऊर्जा रखते हैं किंतु अपनी गाड़ी दूसरों के सहारे ही चलानी होती है !
    इसलिए प्रधानमंत्री पद के योग्य प्रत्याशी का चयन सबसे बड़ी चुनौती होगी !और दूसरी बात उस संभावित गठबंधन की दो प्रमुख सदस्य 'म'मता और 'मा'या दोनों का 'म' अक्षर है जो एक दूसरे से कभी भी टकरा सकता है इसलिए इससे सावधान रहना होगा !इसके अलावा और जो भी नेता लोग इसके साथ जुड़ेंगे तब उन पर भी विचार करना होगा सब पर सामूहिक रूप से विचार किया जा सकता है !


     उत्तर प्रदेश सरकार -


     मुख्यमंत्री 'अ'रविंद केजरीवाल के चीफ सेक्रटरी 'अं'शु प्रकाश जैसे 'अ'रविंद केजरीवाल के लिए शुभ नहीं हैं अंत में वही लोग एक दूसरे के आमने सामने आ गए ! वही स्थिति मुख्यमंत्री ‘आ’दित्यनाथ और श्री अरविन्द कुमार के साथ है ! ऐसी स्थिति में सरकार के काम काज से सरकार के यश विस्तार की कल्पना नहीं की जानी  चाहिए ये स्थिति सरकार से संबंधित योजनाओं कानून व्यवस्था के कार्यान्वयन में विवादों को जन्म देती  रहेगी !जो योगी सरकार के भविष्य के लिए उचित नहीं है !