समय और मौसम -
'काले सर्वं प्रतिष्ठितं' अर्थात सब कुछ समय में ही विद्यमान है !प्रकृति में या शरीर में अच्छे बुरे जो भी बदलाव होते हैं वो समय के कारण ही होते हैं समय जब जैसा होता है तब तैसे बदलाव होते रहते हैं इन बदलावों को देखकर ही पता लगता है कि समय बीत रहा है !कुल मिलाकर समय में ही सब कुछ प्रतिष्ठित है !
'काले सर्वं प्रतिष्ठितं' अर्थात सब कुछ समय में ही विद्यमान है !प्रकृति में या शरीर में अच्छे बुरे जो भी बदलाव होते हैं वो समय के कारण ही होते हैं समय जब जैसा होता है तब तैसे बदलाव होते रहते हैं इन बदलावों को देखकर ही पता लगता है कि समय बीत रहा है !कुल मिलाकर समय में ही सब कुछ प्रतिष्ठित है !
                         'कालः सृजति भूतानि कालः संहरते प्रजाः '
     अर्थात समय ही सबको जन्म देता है और समय ही सबका संहार करता है !
             'अग्नि सोमात्मकं जगत '
     यह संपूर्ण 
संसार अग्नि अर्थात सूर्य और सोम अर्थात चंद्र (जल)मय है !इस संसार में जो 
कुछ भी बना या बिगड़ा है उसमें कारण समय ही है और समय को समझने का आधार सूर्य और चंद्र ही हैं !
    
 इसी 
 सूर्य के प्रभाव को आयुर्वेद की भाषा में 'पित्त' और चंद्र के प्रभाव को 
'कफ' 
कहा जाता है !सूर्य और चंद्र के संयुक्त न्यूनाधिक प्रभाव से 'वायु'  का 
निर्माण होता है तथा वायु संबंधी बदलाव सूर्य और चंद्र के न्यूनाधिक प्रभाव
 
से होते हैं !इसी वायु को आयुर्वेद की भाषा में 'वात' कहा जाता है !जिस 
प्रकार से ये वात  पित्त और कफ का असंतुलन शरीरों को रोगी बनाते देखा जाता 
है उसी प्रकार से ये तीनों प्रकार का असंतुलन तीन प्रकार प्राकृतिक आपदाओं 
को जन्म देता है !आँधी-तूफान ,वर्षा- बाढ़ एवं भूकंप आदि प्राकृतिक घटनाएँ 
इन्हीं प्राकृतिक वात  पित्त  कफ आदि के असंतुलन से होने वाली घटनाएँ हैं !
 
     चूँकि प्राकृतिक आपदाओं का  मूल कारण  वात पित्त और कफ आदि हैं 
!और ये तीनों ही सूर्य और चंद्र के प्रभाव से घटते बढ़ते रहते हैं जिससे 
प्राकृतिक आपदाएँ घटित होती हैं !इन सूर्य चंद्र की गति एवं उनके घटने बढ़ने
 वाले प्रभाव का 
पूर्वानुमान सिद्धांत गणित के द्वारा बहुत पहले से ही  लगाया जा सकता है 
इसीलिए तो 
सूर्य चंद्र आदि में होने वाले ग्रहणों का  आगे से आगे सैकड़ों वर्ष पहले 
सटीक पूर्वानुमान लगा लिया जाता है !
     इसी गणित की प्रक्रिया से 
सूर्य और चंद्र की गति प्रभाव आदि का अध्ययन करके उससे  वात पित्त और कफ 
आदि त्रिदोषों के संतुलन असंतुलन आदि का पूर्वानुमान लगाकर उसी के आधार पर 
निकट भविष्य में किसी क्षेत्र विशेष में संभावित प्राकृतिक अच्छी बुरी घटनाओं का पूर्वानुमान अनुसंधान पूर्वक लगाया जा सकता है !उद्देश्य की पूर्ति करने में सहायक होता है 'समयविज्ञान' -
    
 अत्यंत निकट आ जाने पर यदि प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान लगा भी लिया 
जाए तो भी ये उस उद्देश्य की पूर्ति नहीं कर पाता है
 क्योंकि जो प्राकृतिक आपदा अत्यंत निकट आ चुकी है उससे सम्पूर्ण बचाव हो 
पाना संभव नहीं है !कृषि आदि क्षेत्र में वर्षा संबंधी पूर्वानुमान कुछ दिन
 पहले लग जाने से विशेष लाभ नहीं हो पाता है क्योंकि उन्हें फसलों के बोने 
एवं उपज को संरक्षित करने का निर्णय कुछ महीने पहले लेना होता है इतने पहले
 किसानों को वर्षा या सूखा संबंधी पूर्वानुमान उपलब्ध कराए बिना कृषि एवं 
किसानों का विकास नहीं किया जा सकता है इसके विषय में झूठे तीर तुक्के 
लगाने से अच्छा है कि समय विज्ञान का सहयोग लेकर  ऐसे विषयों से संबंधित 
अनुसंधानों को और अधिक गति दी जा सकती है !ये केवल वर्षा ही नहीं अपितु सभी
 प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के विषय में सहयोगी प्रक्रिया है !इससे 
प्राकृतिक आपदाओं के वेग का भी पूर्वानुमान समय से पहले लगाया जा सकता है !
हो चुके हैं उसकी पीड़ा तो रोगी भोग ही रहा होता है!इसलिए 
उचित तो ये है कि रोगी को रोग होने से पहले ही यदि इस बात के संकेत मिलना 
संभव हो सकें कि निकट भविष्य में उसका शरीर रोगी हो सकता है और रोगों की 
प्रकृति का पूर्वानुमान लगाया जा सके तो उनसे बचने के लिए संभावित रोगी 
पहले से ही अपने खान पान रहन सहन आदि में सुधार  कर सकता है संयम पूर्वक 
पथ्य परहेज का सेवन
 करने का प्रयास कर सकता है !चिकित्सकीय सतर्कता वरतना शुरू कर सकता है 
!योग व्यायाम आदि का सहारा ले सकता है !इस प्रकार का संयमित जीवन जीने से 
संभव है उस रोग को होने
 से पहले ही रोक लिया जाए अथवा यदि हो भी तो उसके वेग को अत्यंत कम कर दिया
 जाए !जिससे उसको रोग की पीड़ा एवं शारीरिक क्षति कम से कम हो !        
कई बार किसी रोगी के शरीर में तत्काल दिखाई देने वाले रोगों का स्वरूप अत्यंत सामान्य दिखाई दे रहे होते हैं उसी दृष्टि से उस रोग की सामान्य रूप से ही चिकित्सा प्रारम्भ कर दी जाती है जबकि वो किसी बहुत भयंकर रोग का अत्यंत प्रारंभिक स्वरूप होता है जिसका पता बहुत बाद में चल पाता है कि किंतु तबतक तो बहुत देर हो चुकी होती है !
कई बार किसी रोगी के शरीर में तत्काल दिखाई देने वाले रोगों का स्वरूप अत्यंत सामान्य दिखाई दे रहे होते हैं उसी दृष्टि से उस रोग की सामान्य रूप से ही चिकित्सा प्रारम्भ कर दी जाती है जबकि वो किसी बहुत भयंकर रोग का अत्यंत प्रारंभिक स्वरूप होता है जिसका पता बहुत बाद में चल पाता है कि किंतु तबतक तो बहुत देर हो चुकी होती है !
     
 ऐसे रोगियों की चिकित्सा के नाम पर जाँच पे जाँच होती चली जाती है और 
औषधियाँ बदल बदल कर प्रयोग किया जा रहा होता है !रोग के अंदर से परत दर परत
 दूसरे तीसरे आदि रोग निकलते चले जाते हैं और उन उनकी जाँच दवाई आदि करते 
कराते रोगी के जीवन का अत्यंत बहुमूल्य बहुत समय  बीतता  चला जाता है ! इस प्रकार से चिकित्सकीय उहापोह की स्थिति में उस रोग
 की तह तक पहुँचते पहुँचते रोगी की स्थिति  इतनी  अधिक बिगड़ चुकी होती है 
कि उस अवस्था में पहुँचने के बाद शरीर को स्वस्थ कर पाना चिकित्सा की 
दृष्टि से बहुत कठिन हो जाता है और रोगी की मृत्यु तक होते देखी जाती है ! 
 ऐसी परिस्थिति में चिकित्सकीय उहापोह की स्थिति में बीत गए समय का आजीवन पछतावा बना रहता है !
 
    इसलिए किसी शरीर में रोग प्रारंभ होते ही या किसी के दुर्घटनाग्रस्त 
होते ही यदि उस रोग या चोट के भविष्य में बिगड़ने वाले स्वरूप का अंदाजा 
पहले ही लगाना संभव हो पावे तो अत्यंत सतर्क एवं सघन चिकित्सा शुरू से ही 
दी जाने लगे तो संभवतः परिणाम कुछ और अधिक अच्छे प्राप्त किए जा सकते हैं!
     ऐसी परिस्थिति में  रोग प्रारंभ होने या चोट चभेट लगने के प्रारंभिक समय तथा रोगी के जन्म समय का  'समयविज्ञान' विधा से अनुसंधान करके उस रोगवृद्धि की संभावित सीमाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है ! 
No comments:
Post a Comment