Sunday, 25 October 2015

सांसद और विधायक बनने के लिए जब शिक्षा और सदाचरण की कोई सीमा रेखा है ही नहीं तो वो पालन किसका करें !

   लोकसभा या विधान सभाओं में लड़ने - झगड़ने वाले ,शोर मचाने वाले ,माइक फेंकने या कुर्सी मारने वाले  नेता लोग किसी  मज़बूरी में तो ऐसा नहीं करते हैं आखिर उन्हें भी उन्हीं के अनुशार क्यों न समझा जाए !   
 आज राजनीति के बिना किसी भी क्षेत्र में किसी का भी गुजारा नहीं है यदि कोई सीधा शालीन समझदार आदमी राजनीति न भी करना चाहे तो दूसरे लोग उसके साथ राजनीति करके उसे फँसा देंगे इसलिए उसे चाहकर या अनचाहे भी करनी होती है राजनीति !किंतु राजनैतिक जगत में आज अधिकांश कैसे लोग सक्रिय हैं ये किसी से छिपा नहीं है स्वदेश से लेकर विदेश तक हमारी लोकसभा या विधानसभाओं की कार्यवाही देखने वालों को अच्छी तरह से पता है कि भारतीय राजनीति जिस ओर बहक  चुकी है यदि समय रहते उसे रोका  न गया तो परिस्थितियाँ ज्यादा भी बिगड़ सकती हैं ।           आज सांसदों विधायकों से कहा जाता है कि आप चर्चा में भाग लें किंतु चर्चा के लिए ज्ञान अनुभव और अध्ययन की आवश्यकता होती है किंतु जिसके पास ये तीनों न हों वो वहाँ बैठकर क्या करे !और चुप  कहाँ तक बैठे ! इसलिए  लोकसभा या विधान सभाओं में अपनी अपनी कला योग्यता का प्रदर्शन हर कोई करना चाहता है जिसे भाषण देना आता है सो भाषण देता है और जिसे गाली देना आता है सो गाली देता है !जिसे कुस्ती लड़ना आता है सो उठापटक करता है इसी पाकर से माइक फेंकने के स्पशलिस्ट माइक फ़ेंक कर मारते हैं और कुर्सी फेंकने की कला के विशेषज्ञ कुर्सी फ़ेंक फ़ेंक कर मारते देखे जाते हैं , कई बार कुछ विधान सभाओं में कुछ सदस्य लोग अपने मोबाईल में ब्लू फ़िल्म देखते भी देखे गए !इसी प्रकार से कार्यवाही के बीच कुछ लोग सो जाते हैं बेचारों को नहीं समझ में आती है वो सार गर्भित चर्चा तो कैसे समझें और क्या करें ! 
    कुल मिलाकर संसद और विधान सभाएँ चूँकि देश और प्रदेश के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व करती हैं ऐसी परिस्थिति में देश और प्रदेशों में जितने भी प्रकार के लोग होते हैं सभी कलाओं से संपन्न लोग यदि कहीं एक जगह बैठेंगे तो वहाँ चर्चा तो कम बाजारों और मेलों  जैसा वातावरण ही मुश्किल से बन पाएगा फिर हाय तोबा क्यों ?
   बंधुओ !मैंने खुद चार विषय से MA किया है BHU से Ph.D. किया है विभिन्न विषयों में सौ से अधिक किताबें लिखी हैं उनमें कई काव्य हैं हमारी लिखी हुई 27 किताबें प्रारंभिक कक्षाओं के पाठ्यक्रमों में पढ़ाई भी जा रही हैं और भी बहुत कुछ है- (See More  About Me http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/p/blog-page_7811.html  )
        इतने सबके बाद भी अच्छी अच्छी राजनैतिक पार्टियों से जुड़ने के लिए गया वहाँ के मठाधीशों को अपनी योग्यता प्रमाण पत्र दिखलाए उनकी कापियाँ भी दीं अपनी लिखी हुई किताबों की प्रतियाँ भी उन्हें भेंट कीं इसके बाद उनसे उस राजनैतिक पार्टी में अपने योग्य सेवा माँगी जिसमें मेरी शिक्षा का भी सदुपयोग हो सके किंतु उन नेताओं ने अपनी पार्टी में हमें प्रवेश देना ही ठीक नहीं समझा !
    बंधुओ !जब इन राजनेताओं ने हमारे अंदर न जाने ऐसी कौन सी अयोग्यता दो मिनट में भाँप ली कि हमें अपनी पार्टी में सक्रिय रूप से जोड़ना ठीक नहीं समझा गया !ऐसी परिस्थिति में देश के और बहुत सारे पढे लिखे लोगों को राजनैतिक दल केवल सैम्पल पीस के रूप में ही रखते होंगे या फिर हमारी तरह ही मुख मोड़ लेते होंगे उनसे भी !और उन्हें भी वापस भेज दिया जाता होगा उनके घर !
   यदि सच्चाई यही है तो लोकसभा या विधान सभाओं में लड़ने - झगड़ने वाले ,शोर मचाने वाले ,माइक फेंकने या कुर्सी मारने वाले नेताओं को ही दोषी क्यों माना जाए !यदि है तो राजनीति का वर्तमान सारा सिस्टम ही दोषी है उसे सुधारने के प्रयास भी तो किए जाने चाहिए साथ ही सांसद और विधायक बनने के लिए भी शिक्षा और सदाचरण की कुछ तो खींची ही जाएँ सीमा रेखाएँ जिनका पालन मिलजुलकर सभी लोग करें !

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