अशोक सिंघल जी आशाराम जी की मदद कर कितनी पाएँगे ?क्योंकि ज्योतिषीय नाम संकट का सामना कर रहे हैं आशाराम जी !
आखिर क्या है इन समस्याओं का समाधान और क्या हो सकता है इनका उपाय ?
किन्हीं भी दो या दो से अधिक लोगों का नाम यदि एक अक्षर से ही प्रारंभ होता है-
जैसेः-राम-रावण, कृष्ण-कंस आदि
अशोक सिंघल जी यदि आशाराम जी की मदद करना चाहते हैं तो करें किन्तु उसके परिणाम आशा के अनुकूल नहीं होंगे ज्योतिषीय दृष्टि से मुझे लगता है कि होम करने से पूर्व हाथ बचाकर रखने की तैयारी पर अच्छे ढंग से चिंतन कर लिया जाना चाहिए !कोई और पहल करे तो ठीक है ।
इसीप्रकार आशाराम जी भी इसी ज्योतिषीय नाम प्रतिकूलता का दंड भोग रहे हैं -
आशाराम और अशोक गहलोत (मुख्यमंत्री राजस्थान)
आशारामऔरआनंदपुरोहित(सरकारीवकील)
आशाराम और अजय पाल लांबा(इंवेस्टीगेटिंगऑफीसर)
आशाराम औरअजय लांबा (डीसीपी )
आशाराम और आम आदमी पार्टी
आशाराम और आम आदमी पार्टी
आशाराम और आरक्षण बचाओ समिति
आशाराम और अशोक सिंघल जी
इसीप्रकार दो टी.वी.चैनल जिन्होंने आशाराम जी की गिरफ्तारी की खबर दिखाने में विशेष रूचि ली है -
आशाराम और आजतक ( टी.वी.चैनल ) आशारामऔरआनंदबाजारपत्रिका(टी.वी.चैनलA.B.P)
सच्चाई तो ईश्वर ही जाने जो न्याय प्रणाली के आधीन है कानून व्यवस्था पर
सबको भरोसा रखना ही चाहिए! किंतु हम तो ज्योतिष शास्त्र का एक
दृष्टिकोण समाज के सामने रखना चाह रहे हैं कि इन्हीं नामों का पहला अक्षर
एक जैसा मिलने के ज्योतिषीय दोष के कारण आशाराम जी को इन लोगों का तीखा
विरोध झेलना पड़ा! वर्णविज्ञान -
अक्षर लिखने पढ़ने के काम तो आते ही हैं इसके साथ ही साथ इनमें से प्रत्येक अक्षर का अपना अपना स्वभाव होता है जो अक्षर जिस व्यक्ति के नाम का पहला अक्षर होता है उस अक्षर का उस व्यक्ति पर इतना बड़ा प्रभाव पड़ता है कि उसका स्वभाव उस अक्षर की तरह बनता चला जाता है और जैसा स्वभाव होता है वैसी सोच बनती चली जाती है !वर्णों के भी आपस में एक दूसरे वर्ण के साथ मित्र शत्रु आदि संबंध होते हैं !जिन दो वर्णों के आपस में दूसरे के साथ जैसे संबंध होते हैं उन वर्णों से प्रारंभ नाम वाले लोगों के भी आपस में एक दूसरे के प्रति वैसे ही विचार बनने लग जाते हैं वैसे ही संबंध होते देखे जाते हैं नाम के प्रथम वर्ण का इतना बड़ा असर होता है !
संबंध विज्ञान-
वर्तमान जीवन शैली में सबसे बड़ा संकट संबंधों पर अविश्वास का है अत्यंत घनिष्ठ संबंधों या नाते रिश्तेदारियों में भी लोग एक दूसरे के साथ धोखा धड़ी घात प्रतिघात आदि करने लगे हैं इसलिए किसी पर भरोसा करना दिनोंदिन कठिन होता जा रहा है !संबंध बिगड़ते जा रहे हैं लोग छोटी छोटी बातों पर अत्यंत नजदीकी संबंधों को भी बिना बिचार किए तोड़ दिया करते हैं इसलिए हर कोई मानसिक दृष्टि से अकेला होता जा रहा है !पति पत्नी तलाक लेने लगे हैं !
ऐसा होने के दो कारण प्रमुख हैं एक उन दोनों का अपना अपना समय कैसा चल रहा है और दूसरा जैसा जिसका समय होता है वैसा उसका स्वभाव और सोच बनती जाती है वैसे ही बिचार आते हैं !इसलिए उन दो में से यदि किसी एक का समय ख़राब चल रहा होता है तो उतने समय के लिए उसे क्रोध आने लगता है इसलिए वो सबसे लड़ता है और सबसे संबंध तोड़ने को तैयार बैठा रहता है किंतु उसके साथियों सम्बन्धियों का यदि समय अच्छा होता है तो वो उसकी सारी गलतियाँ सहकर भी अपने संबंधों को बचा लिया करते हैं !किंतु जब उन दोनों का ख़राब समय एक साथ आ जाता है तब दोनों को गुस्सा आने लगता है और वे दोनों एक दूसरे से संबंध तोड़ देने की मनस्थिति बना लेते हैं ऐसी ही परिस्थिति में विवाह विच्छेद अर्थात तलाक हो जाता है एक से एक नजदीकी संबंध आदि तोड़ दिए जाते हैं !किंतु किसी के भी जीवन में ऐसी परिस्थिति यदि कुछ कुछ समय अर्थात कुछ महीनों वर्षों आदि के लिए आती जाती रहती है तो ये उसके अपने समय संबंधी समस्या है जिसका निदान हमारी
'समयविज्ञान' विधा के द्वारा ही हो सकता है!और यदि किसी का किसी के प्रति ऐसा भाव हमेंशा ही बना रहता रहा हो तो ये उन दोनों के नाम के पहले वर्ण (अक्षर) के कारण पैदा हुई समस्या होती है !
वर्णविज्ञान से जाँचा जा सकता है कि किसका भाव किसके प्रति कैसा रहेगा ?
किसी परिवार के सदस्यों के बीच या पति पत्नी आदि के आपसी संबंधों में यदि अकारण एक दूसरे के प्रति अविश्वास या शंका बनी रहती हो इसलिए परिवार के सदस्य एक दूसरे के प्रति भरोसा न कर पाते हों !ऐसी भावना एक दूसरे के प्रति काफी लम्बे समय से देखी जा रही हो तो ऐसे परिवारों के सदस्यों को वर्ण बिषैलेपन का शिकार समझा जाना चाहिए !
इसके लिए उस घर के किन्हीं दो या दो से अधिक लोगों के नाम के पहले अक्षरों की जाँच करनी होती है !यदि ये वर्ण आपस में शत्रु होते हैं तो ऐसे लोगों का चिंतन हमेंशा एक दूसरे का विरोधी रहता है !इस कारण किसी की गलती न होने पर भी ऐसे लोग कभी भी एक दूसरे के प्रति भरोसा नहीं कर पाते हैं !यही वो सबसे बड़ा कारण है कि जिसके आधार पर बिना किसी कारण या बिना किसी हानि लाभ के भी लोग एक दूसरे के प्रति विद्वेष पूर्ण चिंतन में लगे रहते हैं निंदा आलोचना आदि किया करते हैं ! इसी कारण से ऐसे लोग अपने पिता पुत्र भाई बहन पति पत्नी या किसी अन्य सगे संबंधी नाते रिस्तेदार के प्रति भी दुर्भावना रखने लगते हैं !उनके द्वारा अपने प्रति किए जाने वाले अच्छे से अच्छे बात व्यवहार या सहयोगात्मक प्रयास में भी कमियाँ खोज लिया करते हैं और अकारण ही उनसे घृणा अलगाव ईर्ष्या द्वेष आदि मानने लगते हैं !
परिवारों की तरह ही सरकारों राजनैतिक दलों संगठनों सरकारी कार्यालयों प्राइवेट संस्थानों जैसे सामूहिक कार्यक्षेत्रों में एक साथ काम करने वाले बहुत लोग होते हैं उनके नाम के पहले अक्षरों के साथ यदि अपने सीनियर या जूनियर सहयोगी का उचित तालमेल नहीं बनता तो वहाँ भी एक दूसरे के प्रति अविश्वास का वातावरण बना रहता है !ऐसे लोग कोई ऐसा काम नहीं करेंगे जिससे उनके विरोधी नाम अक्षर वाले व्यक्ति का यश बढे ,उसे सुख पहुँचे या उसे इसका श्रेय अर्थात क्रेडिट मिल सके !
प्रधान मंत्री या मुख्यमंत्रियों के कार्यालयों में अत्यंत महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी सँभालने वाले प्रमुख अफसरों के नाम का पहला अक्षर यदि प्रधान मंत्री या मुख्यमंत्रियों आदि के नाम के पहले अक्षर का शत्रु हुआ तो वर्ण विज्ञान की दृष्टि से वो अफसर कभी ऐसा कोई प्रयास नहीं करना चाहेगा जिससे उस प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री आदि का सम्मान बढ़ सके तथा उन्हें उस सफलता का श्रेय मिल सके !इसलिए वे अक्सर टाल मटोल किया करते हैं !
राजनैतिक दलों में पदाधिकारियों या चुनावी प्रत्याशियों के चयन में भी वर्ण विज्ञान की दृष्टि से विचार करके इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि पार्टीनेतृत्व के प्रति और पार्टी के प्रति इनकी निष्ठा कैसी और कितनी रहेगी !
किसी क्षेत्र विशेष के चुनावों में प्रत्याशी बनाते समय तीन बातों का विचार करना बहुत आवश्यक होता है पहला अपने प्रत्याशी और उसके सामने चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों का समय कैसा है दूसरा अपने प्रत्याशी और सामने चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों के नाम के पहले अक्षरों की दृष्टि से अक्षरबल में किस पार्टी का कौन प्रत्याशी कितना अधिक मजबूत दिखाई दे रहा है !तीसरी बात जिस लोकसभा या विधान सभा सीट से जो प्रत्याशी चुनाव लड़ने जा रहा है उस शहर के नाम के पहले अक्षर का उस प्रत्याशी के नाम के पहले अक्षर के साथ कैसा संबंध है क्या उस सीट पर चुनाव लड़ने से इस प्रत्याशी का सम्मान बढ़ सकता है इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !
जैसे - उत्तर प्रदेश में उमाभारती जी के नेतृत्व में विधान सभा का चुनाव लड़ा जाना बिलकुल निरर्थक था क्योंकि 'उ'त्तरप्रदेश और 'उ'माभारती जी दोनों के नाम का पहला अक्षर 'उ' है !एकाक्षर दोष के कारण यहाँ सफलता मिलने की संभावना एक प्रतिशत भी नहीं थी !ऐसे ही अन्यत्र भी विचार किया जाना चाहिए !
इसी प्रकार से किस नाम वाले शहर के लिए किस नाम वाले अधिकारी कितना अधिक लाभप्रद हो सकते हैं अधिकारियों की नियुक्ति करते समय इस बात का विचार किया जा सकता है !
किस मंत्री मुख्यमंत्री आदि के साथ किस किस नाम वाले अधिकारी कितनी अच्छी भूमिका का निर्वाह कर सकेंगे वर्ण विज्ञान के आधार पर इस बात का भी पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !
किसी विश्व विद्यालय या अन्य संस्था का कुलपति या प्रमुख पद देते समय उनके और उस विश्व विद्यालय या संस्था के नाम के पहले अक्षरों के साथ वर्ण विज्ञान की दृष्टि से संबंधों के विषय में विचार कर लिया जाना चाहिए !इसके द्वारा इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि कौन सी संस्था किस व्यक्ति के लिए कितनी लाभकारी है एवं कौन सा व्यक्ति किस संस्था के लिए कितना लाभकारी होगा !
अपने देश के संबंध किन किन देशों और उनके किन किन शासकों के साथ कितने अच्छे या बुरे रह सकते हैं उनके नाम के पहले अक्षरों के आधार पर वर्ण विज्ञान की दृष्टि से इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !यहाँ इस बात का भी ध्यान रखा जा सकता है कि विश्व के किस देश के किस नेता के साथ बात करने जाने के लिए अपने देश की सरकार का कौन सा सक्षम व्यक्ति वार्ता के लिए भेजा जाए जो उस यात्रा से अपने देश के लिए अनुकूल एवं लाभप्रद वातावरण का निर्माण कर सके !
मित्र नामाक्षरों की पहचान -
जिन दो लोगों के नाम के पहले अक्षरों की आपस में मित्रता होती है ! ऐसे नाम वाले यदि अपरिचित लोग भी हों जिनसे पहली बार मिल रहे होते हैं वो भी उन्हें अपना लगने लगता है और कुछ ही देर मिलकर उसके साथ घुल मिल जाते हैं उसे अपना मित्र या शुभ चिंतक समझने लगते हैं !इस प्रकार से नाम के प्रथम अक्षरों में बहुत अधिक शक्ति होती है !ऐसे लोग शत्रु अक्षरों से संबंधित देशों प्रदेशों शहरों गाँवों से अरुचि रखने लगते हैं !यही कारण है कि कलकत्ते में रहने व्यक्ति यह जानते हुए कि जूस कलकत्ते में भी बिकता है फिर भी कलकत्ते को छोड़कर वो दिल्ली आकर दिल्ली में जूस बेचने का काम करते देखा जाता है !इसीप्रकार दिल्ली का व्यक्ति कलकत्ते में जूस बेचने गया होता है !क्योंकि दोनों के नाम के पहले अक्षर उन उन शहरों के नाम के पहले अक्षरों के मित्र नहीं होते हैं !
वर्ण विज्ञान का विशेष महत्त्व -
वर्णों की भूमिका केवल इतनी ही नहीं होती है अपितु इनका आपस में एक दूसरे वर्ण के साथ ऐसा संबंध भी होता है कि कौन वर्ण किस वर्ण से कितना स्नेह रखता है कौन किससे कितनी शत्रुता रखता है !इसके अलावा कौन वर्ण किस वर्ण से ऊपर रह सकता है और कौन वर्ण से नीचे रहना पसंद करेगा !यदि इसके अनुशार वर्णों का स्वभाव समझते हुए आपसे में एक दूसरे के साथ व्यवस्थित न किया गया तो उन दोनों वर्णों से संबंधित लोग एक दूसरे के साथ प्रेम पूर्वक नहीं रह पाते हैं !
किसी संगठन ,पार्टी ,परिवार, समाज आदि में कोई दो या दो से अधिक ऐसे नाम हों जो एक अक्षर से प्रारंभ होते हों उनके आपसी संबंध पहले तो बहुत मधुर होते हैं किंतु बाद में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विरोधी भूमिका अदा करते हुए किसी भी हद तक चले जाते हैं !
सच्चाई ये है कि न वहाँ के हीरो अन्ना थे और न यहाँ के अरविंदकेजरीवाल हैं और यदि कोई हीरो बनना चाहेगा तो वही होगा जो यही आम आदमी पार्टी के अ वाले भी करेंगे !
साहित्य लेखन, फिल्म या नाटक निर्माण में में चयनित पात्रों के नामाक्षर का प्रभाव !
साहित्य लेखन आदि में जिन पात्रों का चयन किया जाता है उनके जो जो नाम रखे जाते हैं उनमें से जिन जिन पात्रों का चयन किया जाता है उन नामों के प्रथमाक्षरों का आपसी संबंध यदि उनकी उस साहित्य में निर्धारित की गई भूमिका के आधार पर रखा जाता है तभी उस साहित्य या फ़िल्म आदि में सजीवता आ पाती है उसी के अनुशार उसे लोकप्रियता मिलती है !किन्हीं दो पात्रों की यदि आपस में शत्रुता दिखानी है तो उनके नाम के पहले अक्षर आपस में एक दूसरे के शत्रु होने चाहिए तो उनके अभिनय में जान पड़ जाती है !
हिंदी का महान काव्य श्री रामचरित मानस जो न केवल पूजा में भी प्रयोग किया जाता है अपितु हिंदी के काव्यों में सर्वाधिक लोकप्रिय होने का श्रेय तो प्रभु श्री राम के प्रति लोगों की आस्था है इसके साथ साथ इसमें वर्ण विज्ञान की भी बहुत बड़ी भूमिका है !गोस्वामी जीने वर्ण विज्ञान की उचित स्थापना करने के लिए नाम विज्ञान का इतना अधिक उपयोग किया है कि जहाँ किसी पात्र का नाम उसकी भूमिका के अनुशार उपयुक्त नहीं लगा तो लेखक ने कथा के भाव के अनुशार सजीवता लेन के लिए वहाँ उन पात्रों के पर्यायवाची शब्दों का पर्याप्त उपयोग किया है जिससे और अधिक लोकप्रियता प्राप्त हो सकी !
फिल्मों आदि के अधिक लोकप्रिय होने में भी वर्ण विज्ञान की बहुत बड़ी भूमिका होती है !
वर्णविज्ञान का स्वरूप -
वर्णविज्ञान की दृष्टि से सर्व प्रथम किसी वर्ण का अपना स्थायी स्वभाव समझना होता है इसके बाद देखना होता है कि अपने जैसे दूसरे वर्ण के विषय में उसका रुख कैसा होता है !दूसरी बात अन्य वर्णों के साथ उसका स्थायी स्वभाव कैसा होता है !तीसरी बात वो वर्ण किन्हीं अन्य शत्रु वर्णों का भी अपने स्वभाव के अनुशार किन किन विंदुओं पर और किस किस प्रकार के प्रकरणों में किसका समर्थन कर सकता है ! इसी के अनुशार उन नामों से संबंधित लोगों के पारस्परिक व्यवहार का अनुमान लगा लिया जाता है !
विशेष -
किन्हीं भी दो लोगों का नाम यदि एक अक्षर से प्रारंभ होता है तो उनका स्वभाव सोच शौक शान आदि एक जैसे होते हैं इसलिए ऐसे लोगों के विचार एक दूसरे से बहुत मिलते हैं इसलिए ऐसे लोग बहुत अच्छे दोस्त होते हैं क्योंकि इनकी पसंद प्रायः एक जैसी होती है ! इसलिए ऐसे दोनों लोग जब किसी एक ही चीज को एक साथ पसंद कर बैठते हैं तब इनके बीच कितना भी बड़ा बैर विरोध हो सकता है उसके बाद प्रायः एक को नष्ट होना होता है !इसलिए उचित यही होगा कि जीवन के सभी क्षेत्रों में एक अक्षर से प्रारंभ नाम वाले किन्हीं दो लोगों को आमने सामने खड़े होने से बचना चाहिए आपसी वाद विवाद से, आर्थिक लेन देन से अपनी पसंद पीछे करने का अभ्यास करना चाहिए !कई बार किसी एक प्रेमी या प्रेमिका पर एक अक्षर वाले कोई दो लोग आकृष्ट हो जाते हैं !दोनों ओर से यदि समय रहते संयम नहीं वरता गया तो ऐसे प्रकरणों में परिणाम बहुत दुखद होते देखे जाते हैं!जैसे सीता जी श्री राम की तो पत्नी ही थीं उन पर रावण भी आकृष्ट हो गया !राम और रावण दोनों 'र' के आमने सामने आते ही रावण मारा गया !
ऐसी परिस्थितियाँ प्रेम प्रसंग वाले प्रकरणों में विशेष चिंतनीय होती हैं !क्योंकि दोनों का स्वभाव सोच और पसंद एक जैसी होने के कारण दोनों एक दूसरे को बहुत शीघ्र पसंद कर लेते हैं लेकिन ऐसे लोग जितने ज्यादा दिन एक साथ रह लेते हैं उतने ही अधिक एक दूसरे के लिए घातक हो जाते हैं !
ऐसी वर्णविषैलेपन के शिकार बहुत लोग अपनों को खोते जा रहे हैं परिवार टूटते जा रहे हैं विवाह विघटित होते जा रहे हैं !नाते रिस्तेदारियाँ बिगड़ती जा रही हैं नेताओं अफसरों राजनैतिक दलों के संबंध एक दूसरे से बिगड़ते जा रहे हैं !अफसरों के अपने आधीन होने वाले कर्मचारियों या अपने सीनियर लोगों से संबंध बिगड़ते जा रहे हैं ऐसे लोग एक दूसरे से बदला लेने की ताक में रहा करते हैं !यही स्थिति प्राइवेट संस्थानों में होती है इससे कई बड़े संस्थान व्यापार आदि नाम के विषैलेपन के कारण छिन्न भिन्न जाते हैं! इसी कारण से कई बड़े बड़े राजघराने तहस नहस होते देखे जाते हैं -कौशल्या - कैकेयी ! इसीप्रकार से राजनैतिक दलों में नेता लोग एक दूसरे से बैर विरोध बाँध कर बैठ जाते हैं !ऐसे लोग एक दूसरे की छोटी छोटी कमियाँ पकड़ कर एक दूसरे के दुश्मन बन बैठते हैं जबकि इसका मुख्य कारण एक दूसरे की कमियाँ न होकर वर्ण विषैलापन होता है !
इसके कुछ उदाहरण सामने रखकर बात करते हैं -
ओबामा-ओसामा,
परवेजमुशर्रफ-पाकिस्तान,
कलराजमिश्र-कल्याणसिंह,
नरसिंहराव-नारायणदत्ततिवारी,
लालकृष्णअडवानी-लालूप्रसाद,
मायावती-मनुवाद,
मायावती-मुलायम ,
अमरसिंह - आजमखान,
अमर सिंह - अखिलेशयादव,
अमरसिंह - अनिलअंबानी,
अमरसिंह - अमिताभबच्चन,
अमरसिंह -अजीतसिंह
प्रमोदमहाजन-प्रवीणमहाजन-प्रकाशमहाजन
नजीब जंग -नजीब अहमद (J.N.U.छात्र )
जेडीयू के लिए जीतन राममाँझी, उत्तर प्रदेश के लिए उमाभारती ने नेतृत्व में लड़ा गया चुनाव निरर्थक रहा !महाराष्ट्र के लिए मनसे भूमिका विहीन रहेगी , हरियाणा के लिए हविपा, गुजरात के लिए गुजरात परिवर्तन पार्टी आदि निरर्थक ही सिद्ध होती रही हैं !यही हाल ' म'ध्यप्रदेश में 'मा'धवराव सिंधिया जी की 'म'ध्यप्रदेशविकासकांग्रेस का रहा !
भाजपा और वर्ण विज्ञान-
भाजपा और भारत है !अटल जी जैसे सुयोग्य नेता के होते हुए भी भाजपा तब तक सत्ता में नहीं आ सकी जब तक 'राजग' बनकर चुनाव मैदान में नहीं उतरी !इसीलिए तो उसे राजगावतार लेना पड़ा ! यदि ऐसा न करती तो प्रांतों में जीतती जाती किंतु केंद्र की सत्ता भाजपा के हाथ नहीं लगती ! 'राजग' बनने के बाद से ही ये काम संभव हो पाया !
राजग में नरेंद्र मोदी को प्रमुखता मिलते ही नितीशकुमार छोड़ गए थे 'राजग' !अब दोनों का फिर एक साथ जो तालमेल बैठा है उसमें नरेंद्र मोदी जी के अलावा किसी तीसरे की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है और ये चलेगी भी तभी तक जब तक कोई तीसरा पक्ष इन दोनों को मिलाने के लिए अत्यंत सावधानी और सतर्कता पूर्वक अपनी भूमिका का निर्वाह करता रहेगा !
इसीप्रकार से नितिन गडकरी जी जब भाजपा के अध्यक्ष थे तब उनके और नरेन्द्रमोदी जी के संबंध भी .... !ऐसे प्रकरणों में जब कोई मजबूत तीसरा व्यक्ति अच्छी भूमिका निभाने लगता है और ऐसे लोगों को आमने सामने आने से बचा ले जाता है तो ऐसे लोग एक सरकार में रहकर भी प्रेम पूर्वक कार्य करते देखे जा सकते हैं !
दिल्ली भाजपा और वर्ण विज्ञान-
दिल्ली भाजपा में जब से विजयेंद्रजी -विजयजोलीजी -विजयकृष्ण शर्मा जी - विजयकुमारमल्होत्राजी - विजयगोयलजी आदि लोग एक साथ आमने सामने या साथ साथ बने रहे तब तक शीला दीक्षित जी को बिना विशेष परिश्रम किए भी चुनावी जीत मिलती रही !और दिल्ली भाजपा को लगातार नुक्सान उठाना पड़ता रहा है !
उदाहरण स्वरूप में सर्वप्रथम 'अ' अक्षर-
वर्ण माला का पहला अक्षर 'अ' है इसलिए सर्वप्रथम 'अ' अक्षर की चर्चा करना ही उचित होगा !
'अ'न्ना हजारे का आंदोलन और वर्ण विज्ञान-
'अ'न्ना हजारे का भ्रष्टाचार विरोधी बिल भी लोक सभा में पास हुआ किंतु राज्य सभा में लटक गया क्योंकि वहाँ अभिषेक मनुसिंघवी और अरुण जेटली आमने सामने थे जहाँ दोनों लोग एक अक्षर वाले हों वहाँ आपस में कोई सहमति बन ही नहीं सकती है !इसके अलावा तीसरे अ वाले अन्ना हजारे थे !इसलिए अभिषेक मनुसिंघवी और अरुण जेटली की किसी बहस से अन्ना को यशलाभ हो पाना संभव ही नहीं था ।
यही हाल अन्ना हजारे के आंदोलन का हुआ ! अन्ना आंदोलन में अग्निवेष, अरविंद केजरीवाल और अमित त्रिवेदी एक साथ रहकर किसी लक्ष्य को कैसे प्राप्त कर सकते थे !
अन्ना हजारे का रामलीला मैदान में सम्मान और रामदेव का अपमान क्यों ?
इसी प्रकार से अन्ना हजारे को तो रामलीला मैदान से सम्मान पूर्वक बार बार मनाया गया !इसी प्रकार से जब इसी प्रकार के आंदोलन के लिए रामदेव दिल्ली आए तो तत्कालीन सरकार के चार चार मंत्री उन्हें मनाने के लिए हवाई अड्डे पर गए किंतु जब ये बात राहुलगाँधी को पता लगी तब तक रामदेव का कार्यक्रम रामलीला मैदान में शुरू हो गया था !ये तीन र आमने सामने आते ही जो हुआ वो सबको पता है !यही रामदेव दूसरी बार भी रामलीला मैदान आए किंतु जब तक उनके विरोध में मौसम बनता उससे पहले ही वे रामलीला मैदान छोड़कर छोड़कर राजीवगांधी स्टेडियम के लिए निकले किंतु र ने वहाँ भी पीछा नहीं छोड़ा भाग्य अच्छा था इसलिए ये वहाँ तक पहुँच नहीं सके और अम्बेडकर स्टेडियम में रुक गए इससे बचाव हो गया !
आमआदमी पार्टी में एवं अरविंद केजरीवाल के इतने अधिक विवाद क्यों ?
अब बात आम आदमी पार्टी की जिसमें अरविंदकेजरीवाल का कोई भविष्य हो ही नहीं सकता है !मनीष सिसोदिया की प्रमुखता में पार्टी चल रही है उन्हीं की सहयोगवृत्ति जब तक रहेगी तभी तक प्रतीकात्मक मुख्यमंत्री रखे जा सकते हैं अरविंद केजरीवाल !इसके आलावा केवल अपने बलपर आम आदमी पार्टी में अरविन्द जी का कोई भविष्य नहीं है !
आम आदमी पार्टी के आतंरिक विवाद -
अरविंद केजरीवाल,आशुतोष ,अजीत झा, अलकालांबा, आशीष खेतान,अंजलीदमानियाँ ,आनंद जी, आदर्शशास्त्री,असीम अहमद इसी प्रकार से अजेश,अवतार ,अजय,अखिलेश,अनिल,अमान उल्लाह खान आदि और भी 'अ' से प्रारम्भ नाम वाले जो लोग हों आम आदमी पार्टी से संबंधित प्रायः सभी प्रकार के विवादों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष इन लोगों की भूमिका अवश्य रहेगी इसके बिना पार्टी के अंदर या बहार पार्टी के लिए संकट खड़ा करने वाला कोई बड़ा विवाद नहीं होगा ! 'अ' से प्रारम्भ नाम वाले लोग कब किस बात को कितनी बड़ी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना कर पार्टी के कितने बड़े भाग को प्रभावित करके कितनी बड़ी समस्या तैयार कर दें कहना कठिन होगा !
'आ'म आदमी पार्टी के मुखिया 'अ'रविंद केजरीवाल कैसे हुए अचानक मौन ?
दिल्ली पुलिस कमिश्नर - आलोक वर्मा (मार्च 2016 से जनवरी 2017)
अमूल्य पटनायक 30 जनवरी 2017 से
सीबीआई के नए प्रमुख - अनिल सिन्हा ,आलोक वर्मा
चुनाव आयुक्त - अचल कुमार ज्योति(6 जून २०17 )
वित्त सलाहकार - अरविंद सुब्रमण्यन
वित्त मंत्री -अरुण जेटली
सबसे बड़ी बात उप राज्यपाल श्री 'अ'निल वैजल जी के सामने आते ही 'अ'अक्षर वाले 'अ'रविंद केजरी वाल बिल्कुल मौन हो गए !
इतना सब होने के बाद जो कसर बाकी बची भी थी वो मुख्यमंत्री 'अ'रविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के लिए अक्सर समस्या तैयार करते रहने वाले विधायक 'अ'मानुल्ला खान का चीफ सेक्रटरी 'अं'शु प्रकाश के साथ विवाद हुआ !
ये ही वे सभी कारण हैं जिनके कारण अरविंद केजरीवाल बाहर से भीतर तक अक्सर विवादित बने रहते हैं !
आम आदमी पार्टी की दिल्ली में इतनी बड़ी विजय कैसे ?-
दिल्ली के चुनावों में भाजपा के पास कोई राजनैतिक नायक नहीं था जिसके नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाता !अचानक थोपे गए नेता को कार्यकर्ता लोग पचा ही नहीं सके !वैसे भी वर्ण विज्ञान की दृष्टि से किरण जी का अरविंद केजरीवाल से कोई मुकाबला नहीं था !उधर काँग्रेस दो बड़ी बिमारियों से जूझ रही थी पहली तो सत्ता विरोधी लहर और दूसरी अजय माकन और अरविंदर सिंह का एक दूसरे के आमने सामने आ जाना !इससे ये आपस में ही एक दूसरे से गुंथे रहे उधर विपक्ष के द्वारा उपलब्ध कराई गई अनुकूल परिस्थितियों के कारण अरविंद केजरीवाल की पार्टी विजयी हो गई !
इधर अजय माकन से रुष्ट होकर जो अरविंदर सिंह लवली काँग्रेस छोड़कर चले गए थे अब वे वापस आ गए हैं किंतु अभी भी अजय माकन और अरविंदर सिंह लवली का मधुर मिलन टिकाऊ नहीं है इसलिए पार्टीहित में इन दोनों में से किसी एक की भूमिका बदली जानी चाहिए !
समाजवादी पार्टी और परिवार में अखिलेश के आते ही कलह क्यों हुई ?
'अ'मरसिंह और 'अ'खिलेश -
सपा में जब तक मुलायम सिंह जी का बर्चस्व रहा तब तक 'अ'मरसिंह प्रिय बने रहे और आजम खान पार्टी से बाहर कर दिए गए थे !अखिलेश को न आजमखान पसंद थे और न आजम खान को अखिलेश फिर आजमखान अल्प संख्यक चेहरा थे इसलिए उनसे समझौता किया गया और 'अ'मर सिंह जी को बाहर कर दिया गया !
'अ' अक्षर वाले 'अ'मर सिंह जी की यात्रा 'अ'खिलेश, 'आ'जमखान, 'अ'मिताभबच्चन, 'अ'भिषेकबच्चन , 'अ'निलअम्बानी, 'अ'जीतसिंह के यहाँ होते हुए फिर पहुँची 'अ'खिलेश और 'आ'जमखान के यहाँ उसी पुराने घर में वही हुआ !
अब बात परिवार की तो शिवपाल यादव के बेटे हैं 'आ'दित्य' यादव उर्फ 'अंकुर' यादव और 'अनुभा' यादव उनकी बेटी है ! यदि ये राजनीति में न भी सक्रिय होते तो भी इनकी मानसिकता तो 'अ'खिलेश विरोधी रहेगी ही उसका असर शिवपाल सिंह पर पड़ना स्वाभाविक है !मुलायम सिंह में साथ ये समस्या नहीं थी इसलिए मुलायम सिंह तो संबंध चल गए लेकिन अखिलेश के साथ नहीं निभ सकी !शिवपाल जी अपने बच्चों की भावना को नजर अंदाज कैसे कर देते !
यही हाल 'रामगोपालजी का है उनके बेटे 'अ'क्षय' यादव और भांजे 'अ'रविंद' यादव के नाम भी तो 'अ' अक्षर से ही प्रारंभ होते हैं इसलिए 'अ'क्षय' यादव और 'अ'रविंद' यादव का चिंतन भी अखिलेश विरोधी है जिससे राम गोपाल जी प्रभावित हैं अखिलेश के लिए वे भी शिवपाल जी की ही भूमिका निभा रहे हैं किंतु मीठे बनकर जो अखिलेश के लिए अधिक घातक है !
इसी प्रकार से''अ'भिषेक' उर्फ ''अं'शुल राजपाल यादव जी के बेटे हैं ''अ'नुराग यादव' जी धर्मेंद्र यादव के छोटे भाई हैं ''अ'पर्णा'यादव हैं आपकी पुत्र बधू हैं और इन सबके नाम भी तो 'अ' अक्षर से ही प्रारंभ होते हैं इनमें हर किसी को आप 'अ'खिलेश विरोधी समझिए और आपस में भी ये सारे 'अ' अक्षर वाले एक दूसरे की जड़ें काटते रहेंगे यह भी मानकर चलिए !
पार्टी पदाधिकारियों में भी यही हाल है - 'आ'जमखान और उनके बच्चे 'अ'दीब और 'अ'ब्दुल्लाह ये सभी 'अ' अक्षर वाले होने के कारण इनकी पटरी आपस में खाए न खाए किंतु 'अ'खिलेश और 'अ'मरसिंह का विरोध करने के लिए ये तीनों एक होंगे !
'अ'मरसिंह जी भी 'अ' अक्षर वाले हैं इसीलिए वे अपने भाई 'अ'रविंद सिंह के साथ संबंध नहीं निभा सके तो 'अ'खिलेश' जैसे अन्य लोगों के साथ कैसे निभा सकते हैं! 'अ' अक्षर वाले 'अ'मिताभ बच्चन 'अ'भिषेक बच्चन ,'अ'निल अंबानी ,'अ'जीत सिंह आदि से निपटते निपटाते अब पहुँचे हैं 'अ'खिलेश से निपटने! जहाँ से जिन कारणों से निकाले गए थे वे कारण वैसे ही बने रहने के बाद दोबारा उसी पार्टी में उनका निर्वाह कैसे हो सकता है !
पार्टी में अखिलेश यादव की समस्याएँ -
'आ'जम खान - 'अ'फजलअंसारी ,डा. 'अ'शोक वाजपेयी, 'अ'म्बिका चौधरी, 'अ'बुआजमी रहे बचे 'आ'शु मलिक जैसे 'अ' अक्षर वाले सभी लोगों के साथ 'अ'खिलेश का निर्वाह कैसे हो सकता है !
वस्तुतः 'अ' अक्षर का स्वभाव दुस्साहसी होता है वो अपने बराबरी में किसी को पसंद ही नहीं करता !इस अक्षर से प्रारंभ नाम वाले व्यक्ति हों शहर हों या देश हों वो अपने को दूसरों से बहुत अच्छा सिद्ध करना चाहते हैं वो हों या न हों ये और बात है !'आ'गरा, 'अ'लीगढ़ ,'आ'जमगढ़ ,'अ'मेठी आदि !इसी प्रकार से 'अ'मेरिका की स्थिति है !
मुख्य बात -
ये बात तो हुई केवल 'अ' अक्षर की दूसरी बात 'अ' अक्षर के साथ किसी दूसरे 'अ' अक्षर की इसी प्रकार से 'अ' अक्षर वाले किसी स्त्री या पुरुष के संबंध बिना 'अ' अक्षर वाले अर्थात भिन्न भिन्न अक्षरों से प्रारंभ नाम वाले किस व्यक्ति के साथ कैसे रहेंगे !ये बात भी बहुत महत्त्वपूर्ण है इस बात को भी इसी वर्णविज्ञान के द्वारा समझा जा सकता है !जिसका वर्णन इस विषय से संबंधित हमारी निकट भविष्य में प्रकाशित होने वाली पुस्तक में देखने को मिलेगा !क्योंकि यहाँ विस्तार भय के कारण देना उचित नहीं है !
'अ' अक्षर की ही भाँति सभी अक्षरों का अपना अपना स्वभाव होता है और सभी अक्षरों के अपने अपने मित्र शत्रु सम आदि होते हैं ! अक्षरों के अनुशार ही उनसे प्रारंभ नाम वाले लोगों के आपस में एक दूसरे के साथ संबंध होते हैं !
अक्षरों का बहुत बड़ा प्रभाव होता है !अपने देश भारत को वर्तमान में तीन नामों से जाना जाता है !तीनों के फल अलग अलग हैं !'भा'रत नाम को यदि प्रचारित किया जाए तो भारत का सम्मान बढ़ेगा !'इं'डिया नाम भारत को दुस्साहसी और दूसरों का पिठलग्गू बनाता है ! 'हिं'दुस्तान शब्द लड़कपन का प्रतीक है इस नाम पर यदि भारतवर्ष की पहचान बने तो भररत को कोई गंभीरता से नहीं लेगा !इसलिए अपने देश का भारत नाम ही सर्व श्रेष्ठ है !
मुसलमान और हिंदू नाम को वर्ण विज्ञान की दृष्टि से यदि तौला जाए तो मुसलमान का 'म' हिंदू के''हि' शब्द पर भारी पड़ सकता है !इसलिए हिंदुओं को केवल हिन्दू न कहकर अपितु सनातनहिंदूधर्मी कहा जाए तो हिन्दुओं की पहचान शक्तिवान धर्म की बनाता है !
सपा बसपा का गठबंधन -
इस गठबंधन को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए क्योंकि इस गठबंधन के प्रति दोनों तरफ से यदि थोड़ी सावधानी और उदारता बरती गई तो ये गठबंधन लंबे समय तक चलने वाला स्वाभाविक रूप भी ले सकता है !
इसका कारण 'मा'यावती और 'मु'लायम सिंह जी के नाम के पहले अक्षर 'म' होने के कारण दोनों का अहंकार टकरा जाता था किंतु 'मा'यावती और 'अ'खिलेश के साथ अब परिस्थितियाँ बिल्कुल बदल गई हैं और दोनों एक दूसरे के साथ निर्वाह करके लंबे समय तक गठबंधन पूर्वक राजनीति कर सकते हैं !किंतु इसमें विशेष बात यह है कि हर मुद्दे पर अखिलेश को ही मायावती के आगे झुकना होगा जबकि मायावती गठबंधन चलाएँगी भी तो सर्वाधिकार अपने हाथ में लेकर जिस दिन ऐसा यहीं हुआ उस दिन ..... !किंतु थोड़े बहुत किंतु परंतु के साथ दोनों पक्ष आपसी समझौते को व्यवस्थित रखना चाहेंगे ! इसमें यदि किसी तीसरे पक्ष का प्रवेश हुआ तो इस गठबंधन पर उसका और उसकी सलाहों का भी असर पड़ा सकता है !
महागठबंधन की संभावनाएँ -
इसकी दो सबसे बड़ी कमजोरियाँ हैं एक तो प्रधानमंत्री पद के योग्य प्रत्याशी का अभाव !इसका कारण ये है कि महागठबंधन में जो सबसे बड़ी पार्टी होगी उसके सबसे बड़े नेता का नाम यदि 'र' अक्षर पर होता है जिसकी कि सम्भावना दिखाई पड़ती है !तो 'र' अक्षर के स्वभाव में ही नहीं है सीधे तौर पर स्वाभाविक रूप से अपने बल पर कोई पद प्राप्त करके उस पर आसीन हो जाना !इस अक्षर वाले लोग परदे के पीछे रहकर दूसरों को पद प्रतिष्ठा दिलाकर उसका श्रेय लेने के शौकीन होते हैं ऐसे 'र' अक्षर वाले लोग नैतिकता के कारण ,शिक्षा आदि योग्यता के कारण,धनबल से ,बंशानुगत क्रम से ,सहानुभूति से , अचानक प्राप्त समस्याओं के समाधान के रूप में दूसरे लोगों के द्वारा विकल्प विहीन अवस्था में किसी पद पर थोप दिए जाते हैं जब तक वो लोग सहानुभूति पूर्वक सहयोग करते हैं तभी तक वे उस पद पर आसीन रह पाते हैं !वस्तुतः ऐसे अधिकाँश लोग परिस्थितियों से प्रकट हुए नेता होते हैं !किसी का जन्म समय यदि बहुत अधिक बलवान हो तब र अक्षर वाले लोग भी इस सिद्धांत से अलग हटकर कुछ कर पाते हैं किंतु ऐसे उदाहरण बहुत कम देखने को मिलते हैं !
भगवान श्री राम का ही विषय लिया जाए तो नियमानुसार बड़े पुत्र का राज्य पर अधिकार होता ही है किंतु कैकेयी के विवाह में रखी गई शर्त मान लेने के बाद राज्य पर पहला अधिकार कैकेयी के पुत्र भरत का था !श्री राम ने दो राज्य अपने भुजबल से जीतकर दूसरों को राजा बनाया किंतु जब खुद को राजा बनने का अवसर आया तो भारत जीने जिस राज्य को लेने से मना कर दिया वो राज्य उन्हें स्वीकर करना पड़ा !
निकटवर्ती समय में श्रीमान राजीव गाँधी जी ,उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री राम प्रकाश गुप्त ,रावड़ी देवी और चलती गाड़ी में बैठ लेने वाले रामबिलास पासवान आदि हैं !विपक्ष के अभाव में कुछ प्रदेशों में कोई और मुख्यमंत्री या प्रधान मंत्री र अक्षर वाला व्यक्ति भी बन सकता है किंतु ऐसी संभावनाएँ अत्यंत कम होती हैं !ऐसे लोग दूसरों की मदद करने के लिए तो ऊर्जा रखते हैं किंतु अपनी गाड़ी दूसरों के सहारे ही चलानी होती है !
इसलिए प्रधानमंत्री पद के योग्य प्रत्याशी का चयन सबसे बड़ी चुनौती होगी !और दूसरी बात उस संभावित गठबंधन की दो प्रमुख सदस्य 'म'मता और 'मा'या दोनों का 'म' अक्षर है जो एक दूसरे से कभी भी टकरा सकता है इसलिए इससे सावधान रहना होगा !इसके अलावा और जो भी नेता लोग इसके साथ जुड़ेंगे तब उन पर भी विचार करना होगा सब पर सामूहिक रूप से विचार किया जा सकता है !
उत्तर प्रदेश सरकार -
मुख्यमंत्री 'अ'रविंद केजरीवाल के चीफ सेक्रटरी 'अं'शु प्रकाश जैसे 'अ'रविंद केजरीवाल के लिए शुभ नहीं हैं अंत में वही लोग एक दूसरे के आमने सामने आ गए ! वही स्थिति मुख्यमंत्री ‘आ’दित्यनाथ और श्री अरविन्द कुमार के साथ है ! ऐसी स्थिति में सरकार के काम काज से सरकार के यश विस्तार की कल्पना नहीं की जानी चाहिए ये स्थिति सरकार से संबंधित योजनाओं कानून व्यवस्था के कार्यान्वयन में विवादों को जन्म देती रहेगी !जो योगी सरकार के भविष्य के लिए उचित नहीं है !
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