Sunday, 12 January 2014

भाजपा का स्वयंभू मसीहा !

  एजेंडे के खींच तान में उलझा भाजपा हाईकमान !

    बात बस इतनी है कि काले धन का मुद्दा किसका है,इसी प्रकार से भ्रष्टाचार एवं  टैक्स मुक्ति आदि से जुड़े मुद्दे भाजपा के हैं या किसी और के ?और यदि किसी और के हैं तो क्या भाजपा उनके लिए उस और की मदद कर रही है !और यदि यह सच है तो भाजपा क्या इतने दिन में अपने चुनावी मुद्दे भी नहीं बना पाई है क्या?यदि यह सच है तो उसकी अपनी चुनावी तैयारियाँ  क्या हैं और यदि उसे दूसरों के एजेंडे पर ही चुनाव लड़ना होगा तो मुख्य विपक्षी दल होने के नाते उसकी अपनी योग्यता  क्या है?

  कल का कौतूहल-

    देश की मुख्य विपक्षी पार्टी के  समर्थक एक बाबा जी ने आजकल बीते कुछ दिनों से अपने स्वर कुछ बदल दिए हैं हमने तो टेलीवीजन चैनलों पर ही सुना है कि अब वे अपना समर्थन देने के लिए कोई शर्त भी रख रहे हैं कि यदि ऐसा तो वैसा अर्थात भाजपा यदि मेरी शर्त मानेगी तो मैं उसका समर्थन करूँगा। अभी तक पानी पी पीकर भाजपा का समर्थन करने की कसमें खाने वाले बाबा जी का अचानक बदला हुआ रुख देखकर हर कोई हैरान था कि आखिर क्या कुछ घटित हुआ जो बाबा जी को अचानक करवट बदलनी पड़ी !खैर ये बात तो लोगों की  है किन्तु बाबा जी देखने में परेशान से  लग रहे थे और वे हों भी क्यों न !संभवतः वे सोच रहे होंगे कि लोकपाल का श्रेय तो अन्ना हजारे ले गए अरविन्द केजरीवाल को  दिल्ली की सरकार मिल गई !शोर हमने भी खूब मचाया किन्तु हमारे हाथ तो कुछ भी नहीं लगा!यदि विदेश से काला धन लाने का और टैक्स मुक्ति का मुद्दा ही हमारा बन जाए अर्थात ये हो जाए कि बाबा जी के दबाव में आकर ही काला धन विदेश से लाने पर मुख्य विपक्षी पार्टी तैयार हुई है यही स्थिति टैक्स मुक्ति मुद्दे की हो जाए जिससे किसी तरह इन सफलताओं के हीरो बाबा जी माने जाएँ !भारतीय धर्मनीति, योगनीति, आयुर्वेद नीति ,साधुनीति, व्यापार नीति के बाद  राजनीति के हीरो भी बाबा जी ही मानें जाएँ !और हर क्षेत्र में मजबूत सिक्का उन्हीं का चले!

     राजनैतिक वार्ता के लिए दिल्ली की कुछ बात ही और है इस चक्कर में अबकी बार अपने वार्षिकोत्सव के साथ साथ अपना सारा आश्रम ही उठाकर बाबा जी  दिल्ली ले आए और फिर बुलाकर बैठाए  गए देश की मुख्य विपक्षी पार्टी के बड़े बड़े नेतात्रय और उनके सामने बाबा जी ने फेंका अपना एजेंडा ,किन्तु भला हो राज्य सभा में नेता प्रतिपक्ष का जिन्होंने इतनी सफाई से पानी फेरा आखिर वकील साहब जो ठहरे उन्होंने बाबा जी की और उनके आयोजन की और उनकी देश भक्ति की प्रशंसा करते हुए साफ कह दिया कि भ्रष्टाचार समाप्त करने का प्रमुख मुद्दा तो हमारी पार्टी का है ही साथ  ही कालाधन वापस लाने के लिए भी हमारी पार्टी निरंतर संघर्ष करती रही है! इसके लिए ही तो  हमारे बयोवृद्ध नेता ने चार साल पहले रथ यात्रा भी निकाली थी इसीलिए यह तो हमारी पार्टी का  प्रमुख मुद्दा पहले से रहा है आज भी है इसमें  कहने की कोई बात ही नहीं है !इसके बाद  बोलने की बारी आई पार्टी अध्यक्ष जी की उन्होंने भी बड़ी सफाई से कालाधन वापस लाने वाला मुद्दा अपनी पार्टी के पास ही रखा! फिर पार्टी के पी.एम.प्रत्याशी जी का नंबर आया उन्होंने गम्भीरता पूर्वक अपना एवं अपनी पार्टी का पक्ष रखते हुए बाबा जी को प्रणाम एवं उनकी प्रशंसा आदि खूब कर दी पर कालाधन वापस लाने से लेकर भ्रष्टाचार मुक्ति, किसान हित, टैक्स मुक्ति आदि सारे मुद्दे अपनी पार्टी के एजेंडे के रूप में ही बड़े जतन से सँभालकर अपनी पार्टी के पास ही रखे और भाषण पूरा कर दिया! इस बात से बाबा जी की आत्मा संतुष्ट नहीं हुई आखिर वे जो कहलाना चाह रहे थे वह बात तो सामने आई ही नहीं इसके बाद बाबा जी  स्वयं माइक लेकर खड़े हुए और फिर से उसी एजेंडे पर बोलने के लिए लगाया पी.एम. इन वेटिंग के मुख में माइक शायद उन्हें आशा रही होगी कि धोखे से भी कोई ऐसा शब्द निकल जाए जिससे लगने लगे कि काले धन वाले बाबा जी के मुद्दे को हम लोग एवं हमारी पार्टी गम्भीरता से लेगी ऐसा कुछ भी उनके मुख से निकलवाने पर पूरी तरह अमादा लग रहे थे बाबा जी! सोचते होंगे कि यदि ऐसा कुछ हुआ तो  ले उड़ेंगे किन्तु वे भी मजे खिलाड़ी हैं आखिर पी.एम.प्रत्याशी ऐसे ही थोड़े बनाए गए हैं उन्होंने अपनी पहले कही हुई बातें ही दोहरा  दीं इससे बाबाजी की बेचैनी घटी नहीं !अब निराश हताश बाबा जी ने माइक उठाकर पार्टी अध्यक्ष जी के मुख में लगाकर उन्हें एजेंडे पर बोलने को बाध्य किया किन्तु वे भी पार्टी अध्यक्ष जो ठहरे उन्होंने भी सारे एजेंडे फिर से अपनी पार्टी के पास ही रखते हुए अपनी पहले कही हुई बात ही दोबारा कह दी!सारा खेल बिगड़ गया अब बाबा जी ने स्वयं अपने हाथ में माइक पकड़ कर उन दोनों लोगों के सामने रखने लगे घुमा घुमाकर अपने एजेंडे और उन दोनों लोगों से हाँ कराना चाह रहे थे किन्तु जब उससे कोई रस नहीं निकला तो बाबा जी स्वयं अपने एजेंडे बोलते गए और पब्लिक को समझाते गए कि ये लोग सब कुछ ठीक ही करेंगे किन्तु उन दोनों  नेताओं के मुख से कुछ नहीं निकलने पर निराश हताश बाबा जी की बेचैनी बढ़ती ही जा रही थी कि ये तो जा रहे हैं कुछ हल भी नहीं निकला ये तो सारा भाँगड़ा ही बेकार जा रहा है! फिर जाते जाते उन्होंने अंतिम दाँव मारने की कोशिश की और समाज से कहने लगे कि आप लोगों की जो उचित,सच्चाई युक्त और न्यायसंगत योजनाएँ होंगी उसमें ये लोग आप लोगों का साथ अवश्य देंगे!इन्हीं अमृत बचनों के साथ उन्होंने अपनी हारी थकी बाणी  को बिश्राम दिया, भगवान् उनकी  आत्मा को शांति दे !दूसरी ओर वो अध्यक्ष जी और भावी प्रधान मंत्री जी किसी तरह से पीछा छुड़ाकर अपने अपने लोकों  को गए !भाजपा के कर्मठ एवं निष्ठावान कार्यकर्ताओं के लिए हमारे जैसे हैरान परेशान लोगों ने भी चैन की साँस ली !कि चलो बच गई पार्टी एवं पार्टी के असंख्य कार्यकर्ताओं की श्रम साधना!और जो उपलब्धि होगी उसका  श्रेय अब उन्हीं को मिलेगा जो उसके वास्तविक हक़दार हैं। दूसरा कोई अपने वाक्चातुर्य से पार्टी को मिलने योग्य उसका  श्रेय उससे लेकर अब अपने हक़ में नहीं कर पाएगा !

   भाजपा का समर्पित चिंतक होने के नाते मेरा निवेदन तो यही है कि अब भाजपा को किसी की शर्त के सामने घुटने नहीं टेकने चाहिए और अपने बल पर चुनाव लड़ना चाहिए। वैसे भी जिस देश में राष्ट्रीय पार्टियाँ दो ही हों कोई यदि एक से दुश्मनी कर ही ले तो अपना साम्राज्य सुरक्षित  रखने के लिए किसी दल से तो जुड़ना ही पड़ेगा अन्यथा दलों वाले लोगों के द्वारा दल दल में फँसा देने का भय तो उसे भी हमेंशा ही रहेगा !इसलिए किसी के शर्त के सामने घुटने नहीं टेकने चाहिए !

      वैसे भी कुछ हो न हो किन्तु भाजपा को एक बात तो समाज के सामने स्पष्ट कर ही देनी  चाहिए कि उसे आम समाज के सहारे चलना है या साधू समाज के ?       जो चरित्रवान विरक्त तपस्वी एवं शास्त्रीय स्वाध्यायी संत हैं उनके धर्म एवं वैदुष्य में सेवा भावना से सहायक होकर विनम्रता से साधुओं का आशीर्वाद लेना एवं उनकी समाज सुधार की शास्त्रीय बातों विचारों के समर्थन में सहयोग देना ये और बात है! सच्चे साधू संत भी अपने धर्म कर्म में सहयोगी दलों नेताओं व्यक्तियों कार्यक्रमों में साथ देते ही  हैं किन्तु उसके लिए कोई शर्त रखे और वो मानी जाए ये परंपरा ही ठीक नहीं है ! 

        विदेश से कालाधन लाने जैसी भ्रष्टाचार निरोधक लोकप्रिय योजनाओं के लिए भाजपा को स्वयं अपने कार्यक्रम न केवल बनाने अपितु घोषित भी करने चाहिए ताकि ऐसी योजनाओं का श्रेय केवल भाजपा और उसके लिए दिन रात कार्य करने वाले उसके परिश्रमी कार्यकर्ताओं को मिले।वो भाजपा की पहचान में सम्मिलित हो जिन्हें लेकर दुबारा समाज में जाने लायक  कार्यकर्ता बनें उनका मनोबल बढ़े !अन्यथा कुछ योजनाओं का श्रेय नाम देव ले जाएँगे कुछ का कामदेव और भाजपा के पास अपने लिए एवं अपने कार्यकर्ताओं के लिए बचेगा क्या ? ऐसे तो दस लोग और मिल जाएँगे वो भी अपने अपने मुद्दे भाजपा को पकड़ा कर चले जाएँगे भाजपा उन्हें ढोती फिरे श्रेय वो लोग लेते रहें ।

      इसलिए भाजपा को मुद्दे अपने बनाने चाहिए उनके आधार पर समर्थन माँगना चाहिए । अब यह समाज ढुलममुल भाजपा का साथ छोड़कर अपितु सशक्त भाजपा का साथ देना चाहता है। 

        जो ऐसी शर्तें रखते हैं ऐसे लोगों के अपने समर्थक कितने हैं और वो उनका कितना साथ देते हैं यह उनके आन्दोलनों  में देखा जा चुका है किसी ने पुलिस के विरोध में एक दिन धरना प्रदर्शन भी नहीं किया था सब भाग गए थे । 

        दूसरी बात संदिग्ध साधुओं की विरक्तता पर अब सवाल उठने लगे हैं अब  लोग किसी बाबा की अविरक्तता  सहने को तैयार नहीं हैं किसी भी व्यापारी या ब्याभिचारी बाबा से अधिक संपर्क इस समय लोग नहीं बना  रहे  हैं सम्भवतः इसीलिए कथा कीर्तन भी घटते जा रहे हैं ।

       इसलिए भाजपा समर्थकों का भाजपा से निवेदन है कि वो अपने मुद्दों पर ही समाज से समर्थन माँगे तो बेहतर होगा !




No comments:

Post a Comment