भाग्य से ज्यादा और समय से पहले किसी को न सफलता मिलती है और न ही सुख !
विवाह, विद्या ,मकान, दुकान ,व्यापार, परिवार, पद, प्रतिष्ठा,संतान आदि का सुख हर कोई अच्छा से अच्छा चाहता है किंतु मिलता उसे उतना ही है जितना उसके भाग्य में होता है और तभी मिलता है जब जो सुख मिलने का समय आता है अन्यथा कितना भी प्रयास करे सफलता नहीं मिलती है ! ऋतुएँ भी समय से ही फल देती हैं इसलिए अपने भाग्य और समय की सही जानकारी प्रत्येक व्यक्ति को रखनी चाहिए |एक बार अवश्य देखिए -http://www.drsnvajpayee.com/
Saturday, 2 January 2021
कोरोना महामारी - खगोलविज्ञान -मौसम - वैक्सीन और शंकाएँ
महामारी से लड़ने की तैयारी ही नहीं थी ?
वैश्विक
तैयारियों के निगरानी बोर्ड की स्वीकारोक्ति :- सितंबर 2019 में वैश्विक
तैयारियों के निगरानी बोर्ड की हैल्थ इमरजेंसी को लेकर
विश्व तत्परता दिवस पर पहली वार्षिक रिपोर्ट कोरोना वायरस के संक्रमण से कुछ
महीने पहले प्रकाशित हुई थी. उसमें कहा गया है "-यह दुखद है कि प्लानेट
संभावित विनाशकारी महामारी के लिए तैयार नहीं है !"
विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख टेड्रोस एडहॉनम की स्वीकारोक्ति :-27 दिसंबर 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख टेड्रोस एडहॉनम ने महामारी
की तैयारी के
अंतरराष्ट्रीय दिवस पर दिए गए
एक वीडियो संदेश में कहा -"महामारी से लड़ने की कोई तैयारी नहीं थी !महामारी
आने पर हम पैसा बहाते हैं और महामारी बीत जाने पर हम सबकुछ भूलकर चुप बैठ
जाते हैं अगली किसी
भी महामारी को रोकने के लिए कोई तैयारी नहीं करते हैं। यह खतरनाक रूप से अदूरदर्शी है !इतिहास हमें बताता है कि यह आखिरी महामारी नहीं होगी। महामारी
हमारे जीवन की सच्चाई है!इसलिए अगली महामारी से लड़ने की तैयारी हमें अभी से प्रारंभ कर देनी चाहिए! " ऐसी परिस्थिति में
प्रश्न उठता है कि यदि भविष्य
में होने वाली महामारियों से जनता को बचाने के लिए यदि तैयारियाँ करनी ही
नहीं थीं तो ऐसे अनुसंधानों के नाम पर सरकारें जनता के उस धन को खर्च
क्यों करती हैं जो जनता के द्वारा टैक्स रूप में विकास कार्यों के लिए
सरकारों को दिया जाता है | यह जनता के द्वारा अत्यंत कठोर परिश्रम पूर्वक
कमाया हुआ धन होता है | महामारी की मुसीबत में ऐसे
अनुसंधानों के बदले में जनता को मिला क्या ?जिन अनुसंधानों के लिए जनता का
इतना धन हमेंशा से खर्च होता आ रहा है वही अनुसंधान इतनी
बड़ी महामारी में जनता के किस काम आए जनता अकेली अपने बल पर जूझती रही !आखिर
उन अनुसंधानों से इस महामारी में जनता को कितनी मदद मिली ? विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख टेड्रोस एडहॉनम के द्वारा अब यह कहा जाना कि कोरोनामहामारी अंतिम नहीं है महामारी
हमारे जीवन की सच्चाई है!इसलिए अगली महामारी से लड़ने की तैयारी हमें अभी से प्रारंभ कर देनी चाहिए!
ऐसे में प्रश्न उठता है कि विनाशकारी महामारी के लिए पृथ्वी के तैयार न होने का कारण लापरवाही है या अज्ञान है या जरूरत नहीं समझी गई
या फिर पहले घटित हुई महामारियों को हमारे चिकित्सा वैज्ञानिक अंतिम महामारी मान लेते
रहे हैं इसीलिए अब तक महामारियों के बिषय में कुछ तैयारी करना आवश्यक क्यों नहीं समझा गया होगा |
विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख टेड्रोस एडहॉनम के द्वारा अब
कहा जा रहा है
कि भविष्य में आने वाली संभावित महामारियों के लिए हमें अभी से तैयारियाँ
शुरू कर देनी चाहिए किंतु तैयारियों के रूप में अभी से किया क्या जाएगा ये अभी तक
स्पष्ट नहीं है|आखिर अभी से सोशल डिस्टेंसिंग ,मॉस्क धारण और लॉकडाउन जैसी
चीजों को सरकारें हमेंशा हमेंशा के लिए अनिवार्य तो कर नहीं सकतीं हैं
इसके अतिरिक्त तो कोई चिकित्सा विधि कोरोना महामारी के समय दिखाई नहीं पड़ी |
मेरी जानकारी के अनुशार सोशल डिस्टेंसिंग ,मॉस्क धारण और लॉकडाउन जैसी प्रक्रियाएँकोरोना महामारी को बढ़ने से रोकने की दृष्टि से कितनी सहायक हैं इसे किसी वैज्ञानिकपरीक्षण के द्वारा प्रमाणित नहीं किया जा सका है |
दूसरी बात विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख टेड्रोस एडहॉनम ने कही है -.".महामारी हमें ये बताती है कि मनुष्य के
स्वास्थ्य, जीवों और इस धरती के बीच बहुत गहरा रिश्ता है।"
किंतु
रिस्ता तो आपस में संपूर्ण चराचर प्रकृति का ही है इसलिए महामारी और
प्रकृति के संयुक्त अनुसंधान की आवश्यकता को आखिर समझा क्यों नहीं जा रहा
है ? किसी भी महामारी का संक्रमण केवल मनुष्यों में ही नहीं अपितु
संपूर्ण प्रकृति में फैलता है वृक्षों बनस्पतियों खाने पीने की वस्तुओं
हवा एवं जल आदि संपूर्ण जगत फैल जाता है | इसके दुष्प्रभाव से न केवल शरीर
प्रभावित होते हैं अपितु मन भी बेचैन हो उठते हैं |
इसीलिए
तो सभी हर महामारियों से पहले ऋतुएँ अपने स्वभाव को छोड़ने लग जाती हैं
मौसम का चक्र बदलने लगता है प्राकृतिक आपदाएँ घटित होने लगती हैं समाज में
उन्माद फैलने लग जाता है दो देशों या दो समुदायों में या दो देशों आदि में
आपसी तनाव बढ़ने लग जाता है देशों की सीमाओं पर हिंसक वारदातें प्रारंभ
होने लग जाती हैं देशवासी अपनी सरकारों से अकारण असंतुष्ट होकर उनके
विरुद्ध आंदोलन करने लग जाते हैं |महामारी के प्रभाव से मानसिक शक्ति का
ह्रास हो जाने के कारण सामजिक एवं शासकीय उन्माद पनपता है जिससे कई बार कुछ
बड़ी दुर्घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं |
कुल मिलाकर विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख टेड्रोस एडहॉनम ने चिकित्सकीय अनुसंधानों के नाम पर लापरवाही होने की सच्चाई
स्वीकार तो की है इसके लिए उनकी प्रशंसा होनी चाहिए किंतु वे जो भविष्य
में संभावित महामारियों से लड़ने के लिए जो अभी से तैयारियॉँ करने की बात
कहते हैं वो होगा कैसे क्या वर्तमान चिकित्सकीय अनुसंधानों में यह क्षमता
है पर ऐसा कर पाना संभव हो क्योंकिजब
महामारियों के बिषय में अभी तक कुछ पता ही नहीं लगाया जा
सका है कि इनकी शुरुआत कैसे होती है ये बिना दवा के भी समाप्त कैसे हो
जाती
हैं इनके लक्षण क्या होते हैं इनका विस्तार कितना होता है इनका प्रसार
माध्यम क्या होता है ये हवा में है या नहीं आदि और भी ऐसी बहुत साड़ी बातें
जिनका महामारी के समय ही किया जा सकता था किंतु अभी तक खाली हाथ खड़े
वैज्ञानिकों को ऐसे अनुसंधान किस आधार पर बढ़ाए जा सकेंगे ये भविष्य में
देखा जाएगा |
कोरोना योद्धा
किसी किले की रक्षा के लिए तैनात योद्धाओं का कर्तव्य बनता है कि वे प्रयत्न पूर्वक किले की रक्षा करें |वो भी ये काम तब और अधिक सतर्कता पूर्वक करने की आवश्यकता होती है जब शत्रु पक्ष के लोग कई बार गुप चुप रूप से किले में प्रवेश पाने में सफल हो गए हों ऐसी परिस्थिति में सुरक्षा व्यवस्था में लगे लोगों की जिम्मेदारी ज्यादा बन जाती है दूसरी बात पूर्व के अनुभवों के आधार पर परिस्थिति का आकलन करने और उससे निपटने में अधिक आसानी हो जाती है |
कई बार ऐसी घटनाएँ घट जाने पर तो और अधिक सतर्कता बरतना उनका आवश्यक कर्तव्य बन जाता है कि वे किले की सुरक्षा से संबंधित खुपिया जानकारी हमेंशा जुटाते रहें ताकि संभावित किसी ऐसी गतिविधि के बिषय में घटना घटित होने से पहले ही पूर्वानुमान लगाया जा सके जिससे किले के अंदर शत्रु पक्ष का प्रवेश न हो जाए इतनी सतर्कता के बाद भी यदि शत्रु पक्ष के लोग किसी प्रकार से गुपचुप रूप में किले के अंदर प्रवेश करने में सफल हो ही जाएँ तो इससे खुपिया विभाग की असफलता तो झलकती ही है इसके साथ ही साथ सुरक्षा व्यवस्था की भी असफलता मानी जाती है क्योंकि योद्धाओं की तैनाती के बाद भी वे किले के अंदर प्रवेश पाने में कैसे सफल हो गए| इसके बाद सतर्क सुरक्षा व्यवस्था को इस बात का अंदाजा तुरंत लग जाना चाहिए कि हमारी किस चूक से इनको प्रवेश करने का अवसर मिला होगा !दूसरी बात इनका प्रवेश लगभग कब हुआ होगा |तीसरी बात कि प्रवेश करने वाले लोग लगभग कितने हो सकते हैं चौथी बात ये कितने बलवान हैं और ये हमें चोट पहुँचाने में कितने सक्षम हैं ?आदि बातों का सम्यक बिचार करके ही हम उन पर विजय प्राप्त करने की आशा कर सकते हैं |
इसी दृष्टि से यदि कोरोना महामारी के बिषय में भी बिचार किया जाए तो बताया जाता है कि पिछले कई सौ वर्षों से महामारियाँ तो लगभग प्रत्येक सौ वर्षों में कुछ लक्षण बदल बदल कर आया जाया करती हैं | उनके बिषय में पूर्वानुमान लगाने उनके लक्षण पहचानने एवं उनसे रोक थाम के लिए औषधि निर्माण आदि कार्य करने के लिए चिकित्सा वैज्ञानिकों के द्वारा कोई न कोई अनुसंधान हमेंशा चलाए जाते रहते हैं | जिन पर जनता के द्वारा दिए गए टैक्स से प्राप्त धन से सरकारें काफी बड़ी मात्रा में धन चिकित्सकीय अनुसंधानों पर भी खर्च किया करती हैं जिस धन से वैज्ञानिक लोग ऐसी महामारियों के बिषय में लगातार अनुसंधान किया करते हैं |वे अनुसंधान पिछले सौ वर्षों में कितने प्रभावी रहे हैं इसका पता तभी लग पाता है जब कोई दूसरी महामारी आती है तब उन अनुसंधानों के द्वारा महामारी के समय में जनता को कितते प्रतिशत मदद पहुँचाई जा सकी है उतने प्रतिशत महामारी से संबंधित उन अनुसंधानों को सफल माना जाता है कुल मिलाकर उन अनुसंधानों से जनता को कितना लाभ मिल पाया इसका परीक्षण भी महामारियों के समय ही हो पाता है |
ऐसी परिस्थिति में सन 1918 से 1920 के मध्य में आई महामारी के बाद पहली बार सन 2020 में महामारी आई है जो कोरोनामहामारी के रूप में प्रसिद्ध हुई है | महामारियों के बिषय में अभी तक किए गए अनुसंधानों से प्राप्त अनुभवों के आधार पर इस कोरोना महामारी को पराजित करने का प्रयास किया जाता रहा किंतु जनता को उससे कोई विशेष मदद नहीं पहुँचाई जा सकी है |
पिछले कुछ सौ वर्षों से प्रायः प्रत्येक सौ वर्षों में महमारी का चक्र लौट कर आते देखा जा रहा है इसके बाद भी चिकित्सकीय अनुसंधानों के द्वारा महामारी के बिषय में किसी भी प्रकार का पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो पाया है|महामारी कब से प्रारंभ हुई कहाँ प्रारंभ हुई उसके निश्चित लक्षण क्या हैं उसका विस्तार कितना है प्रसार माध्यम क्या है किस प्रकार के मौसम का प्रभाव कोरोना महामारी पर कैसा प्रभाव डालेगा तापमान घटने और बढ़ने का मौसम पर कैसा असर पड़ेगा!महामारी हवा में विद्यमान रहती है या नहीं ?संक्रमण रोकने की दृष्टि से लॉकडाउन ,सोशल डिस्टेंसिंग एवं मास्क लगाने का प्रभाव कितना पड़ता है मेरी जानकारी के अनुशार इसे किसी वैज्ञानिक परीक्षण अर्थात ट्रायल आदि के आधार पर प्रमाणित नहीं किया जा सका है|महामारी संक्रमण काल में भी सभी संक्रमित स्थानों या परिवारों में भी सभी लोग महामारी से एक जैसे प्रभावित नहीं होते हैं कुछ लोग तो बिलकुल संक्रमित ही नहीं होते हैं कुछ लोग संक्रमित होकर भी स्वस्थ हो जाते हैं जबकि कुछ लोग मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं इस अंतर का कारण का कोई ऐसा वैज्ञानिक कारण नहीं खोजा जा सका है जिसके आधार पर किसी व्यक्ति की जाँच करवाकर उसे यह स्पष्टतौर पर बताया जा सके कि उसे ऐसी महामारियों के समय में संक्रमित होने का भय कितने प्रतिशत है संक्रमण से बचने के लिए उसे आगे से आगे किस प्रकार की कितनी औषधि का प्रयोग करना चाहिए खान पान में किस प्रकार का पथ्य परहेज आदि करना चाहिए जिससे उसे महामारी से संक्रमित होने का भय कम से कम रहेगा | ऐसी बहुत सारी बातों के बिषय में अभी तक वैज्ञानिकदृष्टि से कोई निश्चित जानकारी नहीं जुटाई जा सकी है |
महामारियों में अक्सर देखा जाता है कि संक्रमण का प्रभाव स्थान ,समय और व्यक्तियों के अनुशार अलग अलग पड़ने का कारण क्या है ? महामारी कुछ देशों प्रदेशों में अधिक फैलती है कुछ देशों प्रदेशों में कम इसका कारण नहीं खोजा जा सका है | संक्रमण एक समय में अपने आप से बढ़ने लगता है और दूसरे समय में अपने आप से कम होने लगता है और तीसरे समय में अपने आपसे ही समाप्त होने लगता है और धीरे धीरे समाप्त भी हो जाता है | इसके अपने आपसे से घटने बढ़ने या समाप्त होने का वैज्ञानिक कारण भी अभी तक खोजा नहीं जा सका है |
इसीप्रकार से जिन परिस्थितियों में कोई एक व्यक्ति महामारी से संक्रमित नहीं होता है उन्हीं परिस्थितियों दूसरा व्यक्ति जाता है उसके बाद स्वस्थ भी हो जाता है और उन्हीं परिस्थितियों में रह रहा कोई तीसरा व्यक्ति संक्रमित होकर मृत्यु को प्राप्त होते देखा जाता है | ऐसी परिस्थितियों में इतना बड़ा अंतर होने का कारण क्या है | इसका कोई वैज्ञानिक परीक्षण युक्त उचित कारण नहीं खोजा जा सका है |
इस प्रकार से महामारी के बिषय में संपूर्ण प्रमाणित जानकारी जुटाए बिना हम उस पर बिजय प्राप्त करने के लिए किसी औषधिक के निर्माण के बिषय में सोच भी कैसे सकते हैं क्योंकि चिकित्सा कर्म एवं औषधि निर्माण के लिए निदान अर्थात रोग के बिषय में संपूर्ण जानकारी जुटाया जाना बहुत आवश्यक होता है इसके बिना चिकित्सा करने एवं औषधि निर्माण करने के बिषय में हम सोच भी कैसे सकते हैं |
कुलमिलाकर अभी तक किए गए अनुसंधानों के आधार पर यह कैसे कहा जा सकता है कि महामारियों का सामना करने वाले हम सक्षम कोरोना योद्धा हैं क्योंकि किसी युद्ध से लड़ने के लिए हमारे पास यदि वह युद्ध लड़ने के लिए यदि आवश्यक जानकारी ही न हो हमारे पास ऐसे हथियार ही न हों जिनके द्वारा युद्ध लड़ा जा सकता हो ऐसी उस यद्ध में कूदने का मतलब अपने साथ ही विश्वासघात करना होता है | जिसकी कीमत हमारे चिकित्सकों को हर स्तर पर चुकानी पड़ी है | आखिर उनका भी जीवन बहुमूल्य है वे भी किसी के आत्मीय स्वजन हैं वे इस देश की धरोहर हैं बिना किसी वैज्ञानिक तैयारी के महामारी से संक्रमित लोगों देखभाल के लिए उन्हें जाना कितना उचित था |
मूल बात पर पुनः आते हैं किले घुस आए शत्रु सैनिक जब अपनी इच्छा के अनुसार लूटपाट करने में सफल होने के बाद इच्छा से अपने अपने स्थान को जाने लगें उस समय हम अपने किले के दरवाजे पर तोप रखकर यह दिखने कि कोशिश करें कि इस तोप के प्रभाव से हम शत्रु सैनिकों को खदेड़ने सक्षम हो सकते हैं | किंतु वो टॉप कितनी कारगर है ये तो तभी पता चल पाएगा जब कोई दूसरी महामारी आएगी !
यही स्थिति महामारी से निपटने के लिए बनाई गई औषधियों या वैक्सीनों की है इनके प्रभाव से परिचय तो अब दूसरी महामारी के समय ही हो पाएगा अबकी बार तो जो होना था वह हो ही चुका है |
अब पछताए होत का जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत !
भूमिका
वर्तमान पीढ़ी
ने महामारी के बिषय में सुना ही था देखा नहीं था जिसे कोरोना महामारी के रूप में देख भी लिया है | वर्तमान विश्व की जो युवा पीढ़ी अपनी स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए केवल चिकित्सकों को ही सब कुछ मानती रही है यहाँ तक कि अपने चिकित्सा वैज्ञानिकों को भगवान का दूसरा स्वरूप मानती रही है | संपूर्ण
विश्व चिकित्सकों के ही भरोसे निर्भीक जीवन जीता रहा रहा है | चिकित्सावैज्ञानिक भी
समाज के विश्वास पर हमेंशा खरे उतरते रहे हैं |ऐसा बहुत कम ही हुआ है जब
हमारे चिकित्सा वैज्ञानिकों ने हार मानी हो जब तक जिसकी आयु रही है तब तक
उसे स्वस्थ जीवन देने के लिए चिकित्सकों ने हमेंशा प्राण प्रण से प्रयत्न
किए हैं जिसके लिए उनकी जितनी भी प्रशंसा की जाए उतनी कम है | वर्तमान पीढ़ी
के संपूर्ण विश्व ने इतना तो अपनी आँखों से भी देख ही लिया है कि वर्तमानसमय विज्ञान चिकित्सकीय अनुसंधान के क्षेत्र में अत्यधिक उन्नति कर चुका है वैज्ञानिकों के महान परिश्रम से
चिकित्सा जगत ने प्रशंसनीय सफलता पायी है जिस पर हर किसी को गर्व होना स्वाभाविक ही है |
जहाँ एक ओर चिकित्सकीय अनुसंधान सफलता के नए नए शिखर चूमते हुए नित्य देखे जाते हैं वहीं दूसरी ओर उसी युवाविश्व ने अपने जीवन में पहली बार कोरोना महामारी के समय अपने उसी उन्नत विज्ञान को लाचार बेबश एवं किंकर्तव्यविमूढ़ होते देखा है |
इतने सारे चिकित्सकीय संसाधनों से संपन्न होने के बाद भी विश्व के सुयोग्य चिकित्सा वैज्ञानिक कोरोना महामारी के बिषय में कुछ भी निश्चय पूर्वक कहने की स्थिति में नहीं हैं |महामारी को प्रारंभ हुए एक वर्ष बीत चुका है किंतु अभीतक यह नहीं पता लगाया जा सका है कि इस महामारी के पैदा होने के लिए जिम्मेदार आधारभूत कारण क्या है इससे संक्रमितों की संख्या अचानक बढ़ने और कम होने का कारण क्या होता है और इसके समाप्त होने का कारण क्या होता है | इसके पैदा होने तथा घटने या बढ़ने में अथवा इसके समाप्त होने में मनुष्यकृत प्रयासों की भूमिका कितनी है और क्या है ? क्योंकि इससे मुक्ति दिलाने के लिए औषधि कोई बनाई नहीं जा सकी तथा वैक्सीन का प्रयोग प्रारंभ होने से पूर्व ही कुछ देशों में लगभग समाप्त हो चुकी थी जबकि कुछ देशों में इसका प्रभाव बचा है वह भी धीरे धीरे समाप्त हो रहा है |यह महामारी जिस सर्दी के मौसम में सर्दी के प्रभाव से बढ़ती बताई जा रही थी उसी सर्दी के मौसम में भीषण सर्दी पड़ने पर भी समाप्त होती जा रही है जबकि चिकित्सकीय अनुमान तो सर्दी की ऋतु में कोरोना महामारी का प्रभाव के बढ़ने के थे जबकि यह तो समाप्त होती जा रही है|इसीप्रकार से कोरोना संक्रमण को समाप्त करने के लिए लॉकडाउन लगाया जाता था किंतु विशेष कर भारत वर्ष में जैसे जैसे लॉकडाउन हटाया जाने लगा वैसे वैसे महामारी समाप्त होने लगी !विशेषकर धनतेरस दीपावली आदि की बाजारों में भारी भीड़ उमड़ती रही उसके बाद सारी बाजारें पूरी तरह खोल दी गईं शोशल डिस्टेंसिग जैसी गाइडलाइन का पालन होते कहीं नहीं दिखा फिर भी कोरोना समाप्त होते चला गया ऐसी और भी बहुत सारे अनुमान थे जो महामारी के बिषय में वैज्ञानिकों के द्वारा समय समय पर लगाए गए थे उनके विरुद्ध सारी घटनाएँ घटित होती चली गईं |
इसी प्रकार से इस संक्रमण की अंतरगम्यता कितनी है क्योंकि कुछ देशों में तो फलों और सब्जियों के अंदर भी पाया गया है | महामारी कब और कहाँ पैदा हुई यह प्राकृतिक है या मानव निर्मित है इसका विस्तार कितना है और प्रसार माध्यम क्या है यह स्पर्श से फैलती है या वायुमंडल में विद्यमान है | इसके घटने बढ़ने पर मौसम का प्रभाव कितना पड़ता है ?आदि और भी कोरोना महामारी से संबंधित बहुत सारी ऐसी बातें हैं जो जिनका निश्चय पूर्वक पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों ने भले कितना भी परिश्रम क्यों न किया हो किंतु उन शंकाओं के समाधान एवं इससे संबंधित प्रश्नों के उत्तर अभी तक नहीं खोजे जा सके हैं |
यही कारण है कि वैज्ञानिकों के द्वारा अत्यंत परिश्रम पूर्वक बनाई गई कोरोना वैक्सीन पर समाज को विश्वास करने में कठिनाई होने लगी क्योंकि जनता ने अभी तक सुन रखा था कि रोग का परीक्षण जितना सटीक होता है उतनी ही सटीक औषधि का निर्माण किया जा सकता है किसी रोग के सही परीक्षण के बिना उससे मुक्ति दिलाने वाली कोई औषधि कैसे बनाई जा सकती है | कोरोना महामारी के बिषय में जब कुछ पता ही नहीं किया जा सका है तब उसके लिए बनाई जाने वाली वैक्सीन कितनी विश्वसनीय हो सकती है | इस शंका से समाज का एक वर्ग परेशान हो गया और वैक्सीन लगवाने में वह अरुचि करने लगा |
इसके बाद भी जनता इसके बाद भी जनता को यह प्रश्न दिन रात परेशान किए हुए है कि जिन चिकित्सकों पर हमारा इतना बड़ा विश्वास है उनकी योग्यता और अनुसंधानों पर भी कोई संशय नहीं है इसके बाद भी कोई ऐसा बड़ा कारण तो रहा ही है अन्यथा इतना विश्वास तो हमें भी है कि
हमारे सुयोग्य वैज्ञानिक बिना किसी विशेष कारण के ऐसे तो हार मानने वाले तो नहीं ही
थे |
चिकित्सा के क्षेत्र में विज्ञान ने बहुत विकास किया है इसमें किसी भी प्रकार का संशय नहीं है इसके बाद भी मानव स्वभाव से कुछ प्रश्न अनुत्तरित हैं जिनके उत्तर खोजना चिकित्सा विज्ञान के लिए अत्यंत आवश्यक है |
स्वस्थ रहने के लिए चिकित्सा शास्त्र में बताए गए नियम संयम पथ्य परहेज का पूर्ण पालन करने के बाद भी कोई सर्वांग स्वस्थ मनुष्य सहज जीवन जीते हुए भी बिना किसी कारण के रोगी कैसे हो जाता है उसके अचानक रोग युक्त होने का कारण क्या हो सकता है ?
किसी व्यक्ति के रोग युक्त होने में वह स्वयं कारण होता है या प्राकृतिक परिस्थितियाँ !प्राकृतिक परिस्थितियाँ तो सबको एक समान रोगी करतीं किंतु एक जैसे वातावरण में रहने वाले बहुत सारे स्वस्थ लोगों में से कुछ लोगों के अचानक अस्वस्थ होने का कारण क्या हो सकता है ?उसे खोजा जाना चाहिए !
किसी अस्वस्थ व्यक्ति के स्वस्थ होने के लिए चिकित्सा कितनी आवश्यक है क्या बिना चिकित्सा के स्वस्थ नहीं हुआ जा सकता है | गाँवों जंगलों या ऐसे स्थानों पर रहने वाले जहाँ चिकित्सा सुविधाएँ दूर दूर तक दिखाई नहीं पड़ती हैं ! रोग उन्हें भी होते हैं चोट चभेट लगने पर घाव उनके भी होते हैं वहाँ चिकित्सा सुविधाएँ न होने पर भी स्वस्थ वे भी होते हैं उनके स्वस्थ होने का कारण क्या है ?
इसीप्रकार से बड़े बड़े महानगरों में रहने वाले चिकित्सकीय संसाधनों से संपन्न लोग सघन चिकित्सकाल में रहते हुए भी स्वस्थ नहीं हो पाते हैं रोगी ही बने रहते हैं कुछ लोग तो उसी परिस्थिति में अत्यंत चिकित्सकीय सतर्कता बरतने के बाद भी मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं !ऐसी परिस्थिति में किसी रोगी के स्वस्थ या अस्वस्थ रहने का कारण यदि चिकित्सा का मिलना और न मिलना ही है तो जिन्हें चिकित्सा सुविधाएँ उपलब्ध हैं उन्हें तो स्वस्थ ही रहना चाहिए उनके स्वस्थ न होने का कारण क्या है ?
किसी व्यक्ति की मृत्यु का मुख्य कारण किसी रोग का होना या कोई दुर्घटना घटित होना ही है या कुछ और ? क्योंकि जहाँ कुछ लोग वृद्धापन आ जाने पर या अस्वस्थ हो जाने पर या किसी दुर्घटना का शिकार होने पर मृत्यु को प्राप्त होते हैं वहीं बहुत लोग ऐसे भी होते हैं जो युवा हैं उनके शरीर भी स्वस्थ हैं उनके साथ कोई दुर्घटना भी नहीं घटित हुई इसके बाद भी उनकी मृत्यु होते देखी जाती है !ऐसी परिस्थिति में उनकी मृत्यु का कारण क्या हो सकता है ?
चिकित्सकीय संसाधनों से संपन्न अत्यंत आर्थिक क्षमतावान बड़े बड़े सेठ साहूकार ,राजा महाराजा ,प्रधानमंत्री राष्ट्रपति आदि भी रोग कारक समय आने पर रोगी हो ही जाते हैं और मृत्यु का समय आने पर मृत्यु को भी प्राप्त होते देखे जाते हैं | ऐसी परिस्थिति में किसी की मृत्यु होने की प्रक्रिया उसके शरीर के आधीन होती है या शरीर के अतिरिक्त कोई अन्य कारण भी हो सकता है जिसके प्रभाव से किसी के जीवन में मृत्यु जैसी घटना घटित होती है |
महामारियों के समय एक साथ बड़ी संख्या में मृत्यु को प्राप्त होने का कारण महामारियों का प्रकोप होता है या उन लोगों की आयु ही समाप्त हो चुकी होती है ? यदि आयु ही समाप्त होने को कारण माना जाए तो किसी की आयु किस उम्र में समाप्त होगी इसका पूर्वानुमान कैसे लगाया जाए और यदि मृत्यु का कारण महामारी को माना जाए तो उसी वातावरण और उन्हीं परिस्थितियों में उन्हीं स्थानों में रहने वाले बहुत लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें महामारी काल में भी बड़ी बीमारी तो छोड़िए सर्दी जुकाम तक नहीं होता है बहुत लोग कुछ अस्वस्थ होकर स्वस्थ हो जाते हैं जबकि कुछ लोग मर जाते हैं | महामारी का प्रभाव तो सब पर एक समान ही पड़ रहा होता है किंतु प्रभावित होने वाले लोगों की तीन श्रेणियाँ क्यों हो जाती हैं ?
सभी प्रकार की भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाओं या महामारियों में बहुत बड़ी संख्या में लोग प्रभावित होते हैं किंतु उनपर उन दुर्घटनाओं या महामारियों का प्रभाव अलग अलग पड़ने का कारण क्या है कुछ स्वस्थ बने रहते हैं कुछ के चोट लग जाती है या अधिक घायल हो जाते हैं जबकि कुछ मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं | यदि उनकी मृत्यु का कारण दुघटना या महामारी होती तो वो तो सबके साथ समान रूप से घटित हुई फिर उसका प्रभाव तीन क्यों दिखाई पड़ा ?
किसी चिकित्सालय में लगभग एक जैसे 100 रोगियों को एक साथ एडमिट करके एक जैसी चिकित्सा प्रारंभ की जाती है | चिकित्सकीय प्रभाव से कुछ लोग तो स्वस्थ हो जाते हैं कुछ अस्वस्थ ही बने रहते हैं जबकि कुछ मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं | ऐसी परिस्थिति में किसी रोगी के स्वस्थ होने का कारण यदि चिकित्सा को माना जाए तो चिकित्सा तो सभी की एक समान और एक जैसी हुई किंतु उस चिकित्सा के परिणाम तीन प्रकार के निकले कुछ स्वस्थ हो गए कुछ अस्वस्थ बने रहे जबकि कुछ मृत्यु को प्राप्त हो गए और यदि चिकित्सा को न माना जाए तो और दूसरा ऐसा क्या कारण था जिसके तीन अलग अलग प्रकार थे जिसके कारण तीन प्रकार की घटनाएँ घटित हुईं ?
किसी चिकित्सालय में स्वस्थ होने के लिए बहुत सारे रोगियों को लाया जाता है उन्हें एडमिट करके उन्हें स्वस्थ करने के लिए उनकी चिकित्सा की जाती है इसके बाद भी कुछ लोगों की मृत्यु होने का कारण क्या है और यदि वह कारण ही प्रधान कारण है तो फिर किसी के स्वस्थ होने या न होने या मृत्यु को प्राप्त होने में चिकित्सा की भूमिका क्या है ?
कोरोनामहामारी-खगोलविज्ञान-मौसम-वैक्सीन और आशंकाएँ !
कोरोना महामारी से संपूर्ण विश्व की तरह ही भारत भी परेशान रहा है वर्तमान समय में कोरोना महामारी का वेग अत्यंत कम है विशेष कर भारत वर्ष में तो कोरोना महामारी का संक्रमण लगभग समाप्त हो रहा है यहाँ तक कि धन तेरस दीपावली आदि त्योहारी बाजारों या साप्ताहिक बाजारों में उमड़ती रही भारी भीड़ों के बाबजूद कोरोना संक्रमण विशेष नहीं बढ़ा !इसी प्रकार से बिना किसी मास्क एवं सामाजिक दूरी बनाए इतने लंबे समय से दिल्ली में धरने पर बैठे किसानों पर संक्रमण का कोई असर नहीं पड़ा ! अपितु संक्रमितों की संख्या दिनोंदिन कम होती जा रही थी ऐसी परिस्थिति में वैक्सीन की गुणवत्ता सिद्ध करने का सुअवसर तेजी से निकला जा रहा था संभवतः इसीलिए संक्रमितों की संख्या घटने का श्रेय वैक्सीन को देने के लिए ही जल्दबाजी में वैक्सीन के प्रयोग की अनुमति दी गई !इसके अतिरिक्त और कोई दूसरा अतिरिक्त आवश्यक कारण वैक्सीन की आपात मंजूरी देने के लिए नहीं दिख रहा है | लोगों को लगने लगा कि अब वैक्सीन प्रारंभ हो जाने के बाद वैक्सीन के प्रभाव से कोरोना समाप्त होने की घोषणा कर दी जाएगी | इसीलिए वैक्सीन के आकस्मिक प्रयोग पर प्रश्न भी उठने स्वाभाविक हैं और इनके उत्तर मिलने भी चाहिए |
समय समय पर दिए जाने वाले वैज्ञानिकों के वक्तव्यों की कसौटी पर क्यों न कसा जाए वैक्सीन को !
जिन वैज्ञानिकों ने मार्च अप्रैल 2020 में कहा था कि मई जून में गर्मी बढ़ने पर कोरोना स्वयं समाप्त हो जाएगा !उनका यह अनुमान पूरी तरह गलत हो जाने पर फिर भी अक्टूबर नवंबर में कहा जाने लगा कि दिसंबर जनवरी में सर्दी बढ़ने पर कोरोना संक्रमण काफी अधिक बढ़ जाएगा किंतु ऐसा नहीं हुआ और उनकी ये दोनों बातें गलत हो गईं इसके बाद वही वैज्ञानिक लोग जो कोरोना महामारी से मौसम का संबंध क्या है यही नहीं समझ सके उन्हीं वैज्ञानिकों ने अचानक कोरोना संक्रमितों की संख्या काफी कम होते देखकर वैक्सीन बना लेने का दावा कर दिया !
इसी प्रकार से जिन वैज्ञानिकों ने कहा था कि कोरोना एक दूसरे के छूने या संपर्क में आने से संक्रमण प्रसार बढ़ने की बात कही थी जिसके कारण लॉकडाउन लगाया बाजार बंद किए गए लोगों को पृथकबास में रखा गया किंतु इसके बिरुद्ध दिल्ली सूरत मुंबई आदि से लाखों मजदूर निकले उन्होंने न मास्क लगाया न आपसी दूरी पर ध्यान दिया न खाने पीने की स्वच्छता पवित्रता रखी कई कई दिन तक पैदल गए उसमें बच्चे बूढ़े रोगी गर्भिणी स्त्रियाँ भी थीं कुछ महिलाओं को प्रसव भी हुआ !ऐसे ही छोटे छोटे घरों में घनी बस्तियों में मास्क आदि वैज्ञानिकों की बताई किसी भी प्रकार की सावधानी का निर्वाह नहीं किया जा सका इसके बाद भी वे सब के सभी लोग संक्रमण मुक्त बने रहे !यही स्थिति गाँवों में रही इसके बाद भी वे लोग उस प्रकार से संक्रमित होते नहीं देखे गए !मास्क और दो गज दूरी वाली वैज्ञानिकों की बातें यहाँ भी अपनी वैज्ञानिकता को प्रमाणित करने में असफल रहीं ! इन्हीं अध्ययनों के आधार पर यदि वही वैज्ञानिक वैक्सीन बनाने की बातें कर रहे हैं तो उन पर कितना विश्वास किया जाना चाहिए ? वैक्सीन के बिषय में बिचार करते समय यह बात भी ध्यान रखी जानी चाहिए !
छोटे छोटे घरों में घनी बस्तियों में गाँवों में गरीबों में मास्क या सामाजिक दूरी आदि वैज्ञानिकों की बताई किसी
भी प्रकार की सावधानी का निर्वाह नहीं किया जा सका इसके बाद भी वे सब के
सभी लोग संक्रमण मुक्त बने रहे !इसका कारण उनकी इम्युनिटी या प्रतिरोधक क्षमता को बताया गया !यदि वैज्ञानिकों के द्वारा कही जाने वाली ये बातें सच मान ली जाएँ तो युवा वर्ग के लोगों में प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है उन्हें संक्रमित बिलकुल नहीं या बहुत कम होना चाहिए था जबकि संक्रमित होने वाले लोगों में युवा वर्ग (18 से 44 वर्ष) के लोगों की संख्या सबसे अधिक रही है !ऐसे वैज्ञानिकों के ऐसे प्रमाणित न हो सकने वाले वक्तव्य उन्हीं के द्वारा निर्मित वैक्सीन के प्रभाव के बिषय में संशय पैदा करने के लिए पर्याप्त हैं !
जिन चिकित्सा वैज्ञानिकों के द्वारा चिकित्सा के नाम पर रोगियों को अस्पतालों में एडमिट करके भारी भरकम चिकित्सा करने का दावा किया जा रहा था !उन्हीं के द्वारा यह भी कहा जा रहा था संक्रमण की कोई दवा नहीं बनाई जा सकी है ऐसी परिस्थिति में बिना किसी औषधि के उनकी चिकित्सा कैसे की जा रही थी और चिकित्सा के नाम पर जिन औषधियों का प्रयोग किया जा रहा था वे उपयुक्त थीं या नहीं थीं उनका कोरोना संक्रमितों पर अच्छा या बुरा कुछ तो प्रभाव पड़ा ही होगा !
महामारी :विज्ञान :अनुसंधान :अफवाहें और अंधविश्वास !
वैज्ञानिक अनुसंधानों से इतनी अपेक्षा तो रखी ही जाती है कि जो बोला जाए उसकी सच्चाई का कोई न कोई ऐसा मजबूत प्रामाणिक आधार हो जिसकी अच्छी प्रकार से परीक्षा की जा चुकी हो जिसके समर्थन में दिए जाने वाले तर्क इतने मजबूत हों कि उनके कटने की संभावना कम से कम हो और उन तर्कों का परिस्थितियों के साथ भी मेल खाता हो ताकि जनता भी उन्हें वैज्ञानिक अनुसंधानों की उपज मानकर उनपर उस प्रकार का विश्वास कर सके जो लोगों की कथा कहानियों कल्पनाओं एवं निराधार बातों से अलग हों उनमें चिंतन का गौरव झलक रहा हो |
यदि ऐसी पारदर्शिता नहीं बरती जाएगी और महामारी जैसे बिषयों में जब सारा समाज ही तरह तरह की आशंकाओं से आशंकित हो उस समय विज्ञान के नाम पर जिसे आ रहा हो वह मुख उठा कर बोल दे रहा हो जिसका सच्चाई से कोई संबंध ही न हो तो वैज्ञानिक अनुसंधानों अंधविश्वासों और अफवाहों में क्या अंतर रह जाएगा | झूठ साँच बोलकर अपना स्थान तो जादू टोना करने वाले तांत्रिकों पाखंडियों ने भी बना ही रखा है |
किसी बिषय में विज्ञान और रिसर्च का नाम ले लेकर अपनी मनगढंत बातें बोले जाने को उसी प्रकार से विज्ञान सम्मत नहीं माना जा सकता है जिस प्रकार से आयुर्वेद में वर्णित द्रव्यों जड़ी बूटियों आदि का अपने मन मुताबिक संमिश्रण करके उन्हें किसी रोग की आयुर्वेदिक औषधि नहीं कहा जा सकता जब तक कि उस रोग का वर्णन एवं उस रोग के लिए बनाई गई औषधि की विधि एवं उसमें पड़ने वाले घटक द्रव्यों का वर्णन आयुर्वेद में वर्णित निदान एवं औषधियों की श्रेणी में सम्मिलित मिलता न हो !जीरा धनियाँ हल्दी नीम गिलोय आदि का सम्मिश्रण करके उसे किसी भी रोग की आयुर्वेदिक दवा केवल इसलिए नहीं माना जा सकता कि इन द्रव्यों का वर्णन आयुर्वेदिक पद्धति में मिलता है जबकि कुछ लोग ऐसा करते देखे जाते हैं |
अक्सर देखा जाता है कि महामारियों के प्रकोप से डरे सहमे समाज के भय का दोहन करने के लिए जादू टोना करने वाले तांत्रिक मुल्ला मौलवी आदि तरह तरह के पाखंडी अपने अपने उत्पाद बेचने के लिए निकल पड़ते हैं और बड़ी चतुराई से उस महामारी से मुक्ति दिलाने वालों की दौड़ में सम्मिलित होते देखे जाते हैं | समय प्रभाव से महामारी से संक्रमितों की संख्या जब जब कम होने लगती है तब तब उस प्रकार के पाखंडीलोग अपने उत्पादों की प्रशंसा करने लगते हैं और जब प्रकोप बढ़ने लगता है तब तब दुम दबाकर शांत बैठ जाते हैं इसी स्थिति का अनुकरण यदि विज्ञान भी करने लगेगा तो विज्ञान और अंधविश्वास में अंतर क्या रह जाएगा |
वस्तुतः वर्तमान समय विशेषकर महामारी के बिषय में विज्ञान भी अंधविश्वास फैलाने वालों से अपने को बहुत अलग नहीं कर पा रहा है |बहुत सारे बिषयों विज्ञान ने अत्यंत उन्नत तरक्की करके मानवता की मदद की है मानव जीवन को सरल बनाया है चिकित्सा के क्षेत्र में कई असंभव से लगने वाले कार्यों को संभव कर दिखाया है इसके लिए विज्ञान की जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है जितनी सच्चाई इस है उतनी ही सच्चाई इस बात में भी है कि प्रकृति को समझने में विज्ञान सक्षम नहीं हो पाया है यही कारण है प्रकृति घटनाओं एवं प्राकृतिक महामारियों को समझ पाने में विज्ञान अक्षम रहा है | यही कारण है ऐसे बिषयों में वैज्ञानिक या तो मौन रहते हैं या फिर मनगढंत जोड़ तोड़ करके कुछ कहानियाँ गढ़ लेते हैं जिनका कोई प्रामाणिक आधार नहीं होता है और परिस्थितियों से उनका कोई संबंध भी नहीं होता है |
यही कारण है कि केवल कोरोना महामारी ही नहीं अपितु वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान भूकंप आदि घटना को न समझ पाने के कारण ही प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने में उनकी सफलता आज तक संदिग्ध है | उन घटनाओं के घटित लिए जो कारण उनकेद्वारा बताए जाते हैं उनका कोई प्रामाणिक आधार नहीं होता है वे उनकी कोरी कल्पनाएँ मात्र होती हैं | कोरोना महामारी को समझ पाने में सफल न होने के बाद भी इस बिषय में समय समय पर वैज्ञानिकों के द्वारा दिए गए वक्तव्यों को यदि एक स्थान पर रखकर देखा जाए तो उनमें से अधिकाँश बातों में दूर दूर तक कोई तालमेल ही नहीं दिखता है प्रमाणिकता के अभाव में विज्ञान के नाम पर केवल कोरी कल्पनाएँ होती हैं |जिसका जो मन आता है वो वही मुख उठा कर बोल देता है विज्ञानं के नाम पर इतनी स्वतंत्रता भी नहीं होनी चाहिए कि जनता एक ओर कोरोना महामारी की भीषण आपदा से जूझ रही हो दूसरी ओर रिसर्च के नाम पर कुछ ऐसा किया ही न जा सका हो जिसके द्वारा महामारी की इतनी बड़ी आपदा में वैज्ञानिक अनुसंधानों से कुछ तो मदद मिली होती | हमेंशा चलाए जाने वाले वैज्ञानिक अनुसंधान महामारी की इतनी बड़ी मुसीबत में आखिर जनता के किस काम आ सके !
मार्च 2020 में एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर और एक कार्डियोलॉजिस्ट ने
मेडिकल-आर्काइव पर एक प्रीप्रिंट पोस्ट किया था कि ब्रिटेन में कोविड से
केवल 5700 मौतें होंगी। जबकि ऐसा नहीं हुआ !
हृदय रोगियों ने अपने वैज्ञानिकों से जानना चाहा कि भाई कोरोना से हमें खतरा कितना है ?
इस प्रश्न के उत्तर में विभिन्न वैज्ञानिकों ने अपनी अपनी रिसर्च के आधार पर कोरोना काल में हृदय रोगियों के लिए अधिक खतरा होने का अनुमान लगाया था किंतु ऐसा नहीं हुआ अपितु व्यवहार में देखा गया कि कोरोना काल में हॉर्ट अटैक कम हुए !
इस पर वैज्ञानिकों ने यह पता लगाने के लिए दोबारा रिसर्च की कि हार्ट अटैक कम क्यों हुए ?
अनुसंधान करने के बाद उन्हें अंदाजा लगा कि कोरोना काल में लॉकडाउन के कारण हृदयरोगी अस्पतालों में नहीं आए होंगे ! लॉकडाउन खुल जाने के बाद भी जब अधिक संख्या में हृदयरोगी अस्पतालों में नहीं पहुँचे तो फिर वैज्ञानिकों ने इस बिषय में रिसर्च पूर्वक अंदाजा लगाया कि शायद कोरोना संक्रमित होने के डर के कारण हृदयरोगी अधिक संख्या में अस्पतालों में नहीं पहुँचे !ऐसे में प्रश्न उठता कि यदि वे अस्पताल नहीं गए या तो हृदयरोगियों की संख्या बहुत अधिक बढ़ गई होगी और हृदयरोगी घरों में दुबके बैठे रहे होंगे या चिकित्सा के अभाव में हृदयरोगियों की काफी अधिक संख्या में मृत्यु हुई होगी !
इस शंका का समाधान खोजने के लिए पुनः रिसर्च की गई रिसर्च के परिणाम स्वरूप एक और सच्चाई निकल कर सामने आई कि स्वदेश से लेकर विदेश तक कोरोना के चलते हार्टअटैक के केस 40 प्रतिशत से लेकर 70 प्रतिशत तक कम हुए हैं |
फिर प्रश्न हुआ कि यदि कोरोना काल में हार्टअटैक के केस इतने कम हुए तो लोगों की मृत्यु की संख्या क्यों बढ़ रही है ?यह पता लगाने के लिए फिर रिसर्च प्रारंभ किया गया तो पता लगा कि कोरोना के बिषय में वैज्ञानिकों के द्वारा तरह कोरोना को लेकर तरह की डरावनी अफवाहें फैलाने से लोगों में बढ़े मृत्युभय के कारण लोगों की मृत्यु होते देखी गई है |
प्रश्नउठा कि जिस कोरोना काल में हृदयरोगियों के लिए अधिक खतरा बताया गया था उसी कोरोना काल में हार्टअटैक के मामले लगभग पचास प्रतिशत कम होने का कारण क्या है ?इस बात की खोज करने के लिए रिसर्च पुनः प्रारंभ किया गया तो रिसर्च से पता लगा कि कोरोना काल में बाहर
का खानपान, प्रदूषण जैसी चीजें कोरोना काल में नहीं के बराबर हुई हैं।लोगों को अधिकतर समय आने घरों में अपनों के बीच में बैठकर बिताना पड़ा !डॉक्टर और विशेषज्ञों का कहना है कि इसके पीछे कोरोना वायरस और लॉकडाउन के कारण हमारी जीवनशैली में आए सुधार बड़ी वजह हैं। इस लिए भागदौड़ से अलग अच्छा वातावरण मिलने की वजह से जो लोग पहले से ही हार्टअटैक के रिस्क फैक्टर में थे, उन्हें राहत
मिली।इसलिए कोरोना काल में हृदयरोगियों को स्वाभाविक रूप से हृदयरोगों से अधिक परेशानी नहीं उठानी पड़ी अपितु राहत मिली !ऐसे ही रिसर्चों से एक और अंदाजा लगाया जा सका कि जन्मजात हृदय रोगियों को कोरोना का खतरा नहीं है |
विशेषबात :कुल मिलाकर जब तक कोरोना चला तब तक वैज्ञानिकों की रिसर्च चली किंतु अंत तक हृदय रोगियों को उनके प्रश्न का कोई निश्चित उत्तर नहीं दिया जा सका कि कोरोना संक्रमण का प्रभाव हृदय रोगियों पर क्या होगा ?
ऐसी परिस्थिति में यदि इसकी कोई निश्चित उत्तर चिकित्सा वैज्ञानिकों के पास नहीं था कि कोरोनासंक्रमण काल का प्रभाव हृदयरोगियों पर कैसा पड़ेगा तो शुरू में ही उन्हें इस प्रकार की अफवाहें फैलाने से बचा जाना चाहिए था जिन वैज्ञानिकी अफवाहों के कारण कोरोना के भय से भयभीत होने से कुछ हृदय रोगियों की मृत्यु हुई !
कुछ वैज्ञानिकों के द्वारा बताया गया कोरोना महामारी से हृदयरोगियों को अधिक खतरा -
16 अगस्त 2020 कोविड-19 रोगी जो हृदय रोग से ग्रसित हैं या जिनमें हृदय रोग होने का जोखिम है, उनके मरने की आशंका अधिक है.यह बात बड़े पैमाने पर हुए एक अध्ययन में सामने आई है |
पीएलओएस वन जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, हृदयरोग से ग्रसित
कोविड-19 रोगियों का इलाज करने के दौरान चिकित्सकों को इनके जोखिम कारकों
को समझना कठिन रहा !
इटली के मैग्ना ग्रेसेया विश्वविद्यालय के लेखकों ने कहा, “ज्यादातर लोगों
के लिए कोरोनावायरस रोग (कोविद -19) हल्की बीमारी का कारण बनता है,
हालांकि, यह गंभीर निमोनिया पैदा कर सकता है और कुछ लोगों में मृत्यु का
कारण बन सकता है.” इस अध्ययन में शोध टीम ने एशिया, यूरोप और अमेरिका में
कुल 77,317 अस्पताल में भर्ती मरीजों कोविड -19 रोगियों पर प्रकाशित 21
अवलोकन संबंधी अध्ययनों के आंकड़ों का विश्लेषण करके पता लगाया गया कि “कोविड -19 रोगियों में हृदय संबंधी जटिलताएं आम हैं और यह मृत्यु दर बढ़ाने में योगदान दे सकती हैं.”
29 Sep 2020 पीएमसीएच के मेडिसिन रोग विभाग्ध्यक्ष व कोविड सेंटर के नोडल प्रभारी डॉ
यूके ओझा ने कहा कि कोरोना सबसे ज्यादा फेफड़े व हृदय को प्रभावित कर रहा
है। इससे हृदय रोगियों को अधिक गंभीर
जटिलताओं के चलते खतरा बढ़ जाता है। जिसके चलते दिल में इंफेक्शन के खतरे
के साथ ही हार्ट फेल होने की भी संभावना बढ़ जाती है।
डॉ. के.के.अग्रवाल, अध्यक्ष, हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने कहा – यह
कहीं हद तक सच है कि हार्ट पेशेंट में दूसरे लोगों के मुकाबले कोरोना वायरस
का खतरा अधिक है और इसीलिए उन्हें सावधानी भी दूसरे लोगों से अधिक बरतने
की ज़रुरत है ।
07 Dec 2020 कोरोना काल में घर से बाहर न निकलने से भी फेफड़ों में संक्रमण और हार्ट अटैक का खतरा अधिक है |
25अगस्त 2020 प्रकाशित :दिल्ली के सबसे बड़े सुपरस्पेशलिटी अस्पतालों में से एक GB Pant
Hospital में दिल पर हुई स्टडी में चौकाने वाली बातें सामने आई है. जांच
में पता चला है कि यह वायरस दिल के मरीज़ों के लिए बेहद खतरनाक साबित हो रहा
है. इससे लोगों को हार्ट अटैक जैसे मामलों में भी बढोत्तरी हो रही है.!जानकारी के मुताबिक स्टडी में 45 और 80 के बीच की उम्र के सात कोरोना
संक्रमित रोगियों पर अध्ययन किया गया. इसमें कोरोना से दिल पर पड़ने वाले
असर से जुड़ी समस्याएं सामने आई !
.30-9-2020प्रकाशित :कोरोना काल में हार्ट अटैक के मामले 20 प्रतिशत तक बढ़े!
वैज्ञानिकों के अंदाजे के विरुद्ध कोरोनाकाल में हार्टअटैक की घटनाएँ बहुत कम घटित हुईं !
02-08-2020 को एक लेख प्रकाशित हुआ उसमें बताया गया -"कोरोना काल में 70 प्रतिशत कम हुए हार्ट अटैक !" 12 Aug 2020 को प्रकाशित : इस कोरोना काल में हार्ट अटैक के मामले 30 फीसदी कम हुए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना काल में न केवल भारत में हर्ट अटैक के मामले कम हुए, बल्कि विदेशों में भी यही स्थिति सामने आई है।
12 Aug 2020 को प्रकाशित :विशेषज्ञों के मत से लॉकडाउन हार्ट अटैक रोगियों के लिए फायदेमंद साबित हुआ। अब विस्तार से इस बात का पता लगाने की कोशिश हो रही है कि वे कौन से जोखिम कारक हैं जो कोरोना काल में कम हुए हैं और जिसका सीधा असर साइलेंट यानी बिना लक्षणों वाले हर्ट अटैक पर हुआ है। 'एशिया पेसेफिक वैस्कुलर इंटरवेंशन सोसाइटी' की ओर से इसके अध्ययन के लिए टीम का गठन किया गया है।
02 Jul 2020 प्रो. एनएन खन्ना अपोलो ग्रुप के सलाहकार और अस्पताल में हृदयरोग विभागाध्यक्ष का प्रकाशित वक्तव्य :देश ही नहीं विश्व में भी कम हार्ट अटैक हुए !कोविड काल में हार्ट अटैक के मामले सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी कम आए हैं।
02 Aug 2020 : कोरोना के चलते 70 फीसदी कम हुए हार्ट अटैक के मरीज !कोरोना के कारण बीते चार महीनों में
अस्पतालों में हार्ट अटैक के मरीजों की संख्या में गिरावट आई है। एम्स से
लेकर राम मनोहर लोहिया अस्पताल, सफदरजंग अस्पताल सहित कई दूसरे अस्पतालों
में हार्ट अटैक के मरीजों के मामलों में कमी देखने को मिली है। लॉकडाउन
खुलने के बाद भी हार्ट अटैक वाले मरीजों की संख्या में कोई वृद्धि नहीं हुई
है।
आरएमएल अस्पताल के कार्डियोलॉजी विभाग में
कार्यरत एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. तरुण कुमार ने बताया कि आरएमएल अस्पताल में
60-70 फीसदी की गिरावट हार्ट अटैक के मरीजों में देखने को मिली है। सिर्फ
3-4 हार्ट अटैक के मरीज ही अस्पताल पहुंच रहे है। लॉकडाउन खुल जाने के बाद
भी स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है |
02 Aug 2020:एम्स में भी कमी :एम्स अस्पताल के कार्डियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. अंबुज रॉय बताते है कि
एम्स ही नहीं दूसरे जगहों पर भी हार्ट अटैक के मरीजों में कमी आई है।
कोरोना के डर से अस्पताल न आना इसकी मुख्य वजह हो सकती है।
अमेरिका में भी हुई 48 फीसदी की गिरावट दर्ज :डॉक्टर के मुताबिक, हार्ट अटैक के मरीज कम होने का असर दिल्ली ही नहीं,
बल्कि वैश्विक तौर पर भी देखने को मिला है। खासतौर पर जब से कोरोना का
प्रकोप फैला है। उन्होंने एक शोध का हवाला देते हुए बताया कि अमेरिका के एक
शहर में इस संबंध में अध्ययन किया गया, जिसमें कोरोना से पहले और कोरोना
काल की अवधि में शोध हुआ। शोध में सामने आया कि हार्ट अटैक के मामलों में
48 फीसदी तक की गिरावट दर्ज हुई है।
कोरोनाकाल में भी हार्टअटैक कम होने का कारण कुछ यूँ बताया गया !
12
Aug 2020 को प्रकाशित : चिकित्सा क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार विजेता
अमेरिका के प्रो. फरीद मुराद, अपोलो ग्रुप के सलाहकार और हृदयरोग
विभागाध्यक्ष प्रो. एनएन खन्ना समेत कई विशेषज्ञों ने इस बात पर सहमति जताई
कि हार्ट अटैक के मरीज या तो बहुत कम हो गए हैं या फिर अस्पतालों में कम
पहुंच रहे हैं। दरअसल, हार्ट अटैक के लिए ट्रिगर माने जाने वाले कई रिस्क
फैक्टर मतलब जोखिम कारक, जैसे कि बाहर का खानपान, प्रदूषण जैसी चीजें
कोरोना काल में नहीं के बराबर हुई हैं। इस वजह से जो लोग पहले से ही हर्ट
अटैक के रिस्क फैक्टर में थे, उन्हें राहत मिली।कुछ लोग बहुत समय के बाद अपनों के साथ अपने घरों में काम काज के तनाव से अलग इतना समय शांत एवं एकांत बिता सके !
कोलंबिया विश्वविद्यालय अंतर्गत
इरविंग मेडिकल सेंटर में हुए अध्ययन में कहा गया है कि जो बच्चे जन्मजात
हार्ट डिसीज के साथ पैदा होते हैं, उन्हें गंभीर कोरोना संक्रमण का खतरा
नहीं है। शोधकर्ता अमेरिका के वैगेलोस कॉलेज ऑफ फिजिशियन और सर्जन में
जन्मजात दिल के रोगियों का विश्लेषण करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं।
उनका कहना है कि सिर्फ जन्मजात हृदय रोग गंभीर कोरोना लक्षणों का कारक नहीं
हो सकता।
मौतों का कारण कोरोना कम तथा कोरोना की अफवाहें एवं मरने का तनाव अधिक रहा !
24दिसंबर 2020 प्रकाशित :कोरोना से हार्ट अटैक के मामले 10 से 15 फीसदी बढ़ रहे हैं. चिकित्सकों का
कहना है कि सबसे बड़ा कारण कोविड को लेकर डर है. लोग कोविड टेस्ट से बचने
के लिए अस्पताल नहीं जा रहे हैं, जिससे मौतें बढ़ रही हैं. मृत घोषित होने
के बाद जब अस्पताल लाया जाता है तो कोविड फोबिया सामने आता है. तमाम रोगों
से ग्रस्त 90 फीसदी मरीज डॉक्टरों के संपर्क में नहीं हैं.
इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल के कार्डियो-थोरेसिक एंड वैस्कुलर सर्जरी के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. मुकेश गोयल
कहते हैं, कोरोनाकाल में इमरजेंसी यूनिट में हार्ट अटैक के मामले कम आ रहे
हैं। कोरोना के कारण मरीज अस्पताल आने से डर रहे हैं। इसलिए घर पर
कार्डियक अरेस्ट के कारण होने वाली मौतों की संख्या बढ़ रही है।
02 Aug 2020 प्रकाशित :डर मुख्य कारण :सफदरजंग अस्पताल में भी हार्ट अटैक के मरीजों की संख्या में गिरावट आई है।
अस्पताल के एक डॉक्टर के अनुसार, पहले रोजाना दस हार्ट अटैक के मरीज इलाज
के लिए आते थे। अब संख्या पांच पर सिमट गई है। इसका मुख्य कारण कोरोना के
डर से अस्पताल इलाज के लिए न आना है। हल्का हार्ट अटैक होने पर मरीज उसे
कोरोना के डर से दरकिनार कर रहा है। जब उसे दोबारा तकलीफ महसूस होती है तो
हार्ट अटैक होने के बारे में पता चलता है।
29 जुलाई 2020,एम्स के डॉ. अजय मोहन के अनुसार, कोविड-19 महामारी ने देश और दुनियाभर के
लोगों के जीवन में कई स्तरों पर तनाव ला दिया है. लोग न केवल अपने परिवार
के बीमार होने के बारे में चिंतित हैं, बल्कि वे आर्थिक और भावनात्मक
मुद्दों, सामाजिक समस्याओं और संभावित अकेलेपन से निपट रहे हैं. अब ये तनाव
शरीर और दिलों पर असर डाल रहा है!
02 Jul 2020लॉकडाउन के दौरान पूरे प्रदेश में कोरोना संक्रमण से जितनी लोगों की मौत
हुई है, उससे कई गुना ज्यादा लोगों की मौत अकेले एससीबी मेडिकल में कोरोना
के खौफ के कारण हुई है। जानकारी के मुताबिक साढ़े तीन महीने के लॉकडाउन के
दौरान एससीबी मेडिकल में दूसरी बीमारी से पीड़ित 3 हजार लोगों ने दम तोड़
दिया है। इन लोगों के मृत्यु के पीछे का कारण कोरोना भय को माना गया है।
क्योंकि कोरोना के भय के कारण विभिन्न गम्भीर बीमारी से पीड़ित लोग अपना
इलाज कराने अस्पताल नहीं गए और जब अस्पताल पहुंचे तब तक उनकी हालत इतनी
बिगड़ गई थी कि उन्हें बचाना मुश्किल हो गया।
25दिसंबर2020 को प्रकाशित :कोरोना काल में बढ़ीं हार्ट अटैक से होने वाली
मौतें! कोरोना के दौरान हार्ट अटैक के केस 10 से 20 फीसदी बढ़े हैं, जिसकी
बड़ी
वजह है कि हृदय रोगी कोविड टेस्ट (Covid Heart attack Cases) से बचने के
लिए अस्पताल जाने से बच रहे हैं. मुंबई के तमाम अस्पतालों में करीब 90
फीसदी दिल के मरीज अपने डॉक्टरों के संपर्क में नहीं हैं. ऐसे में जब दिल
के रोगियों को गंभीर हालात में लिया जाता है तो उन्हें बचाना मुश्किल होता
है|
कोरोना से मृत्यु :
6 जून, 2020 वैज्ञानिकों के द्वारा कोरोना महामारी से संक्रमितों की मृत्यु बड़ी संख्या में हुई बताया जा रहा है !
सांस लेने में
तकलीफ या कोविड जैसे कुछ अन्य लक्षणों के कारण बिना डॉक्टरी सलाह के गलत
दवा लेने से भी मौतें बढ़ी हैं|
जिन्हें कोरोना चिकित्सा के होने के बाद स्वस्थ होने पर हृदयरोग हुआ इससे शंका हुई !
जनता ने अक्सर अपने प्रिय चिकित्सा वैज्ञानिकों से सुन रखा था कि कोरोनासंक्रमण से मुक्ति दिलाने के लिए अभी तक कोई उपयुक्त औषधि या वैक्सीन आदि नहीं बनी है जिससे कोरोना संक्रमितों की चिकित्सा की जा सके इसके बाद भी कहा जा रहा था कि कोरोना संक्रमित होने के बाद तुरंत चिकित्सा के लिए डॉक्टरों से संपर्क करें !लोग ऐसा कर भी रहे थे वे अस्पतालों में एडमिट भी किए जा रहे थे और उनकी चिकित्सा भी की जा रही थी जिसके मोटे मोटे बिल भी संक्रमित लोगों को चुकाने पड़ रहे थे !
ऐसी परिस्थिति में आम जनता के मन में शंका स्वाभाविक ही था कि यदि कोरोना संक्रमण के लिए कोई औषधि बानी ही नहीं थी तो चिकित्सालयों में संक्रमितों को एडमिट करके चिकित्सा किस रोग की किन औषधियों से और कैसे की जा रही थी ?
रोग का स्वभाव नहीं पता था रोग का संक्रमण बढ़ने और घटने का कारण नहीं पता था वेंटिलेटर लगे होने के बाद भी लोगों की मृत्यु होते देखी जा रही थी इसके बाद भी चिकित्सा करना संभव कैसे था क्योंकि प्रत्येक कुशल चिकित्सक किसी रोगी की चिकित्सा करने से पूर्व रोग के वास्तविक स्वरूप को समझ लेना चाहता है उसके बाद ही उसके द्वारा की गई उस रोग की चिकित्सा सफल होते देखी जाती है ऐसी परिस्थिति में जिस रोग के बिषय में कुछ भी पता ही न हो उसकी चिकित्सा कैसे संभव है !फिर भी यदि कोई चिकित्सा करता ही है तो उस चिकित्सा के अच्छे या बुरे कुछ भी परिणाम हो सकते हैं |
चिकित्सालयों में जाकर स्वस्थ होने वाले रोगों के शरीरों में ही बाद में कुछ विशेष प्रकार के दूसरे रोग पनपते देखे गए जबकि कोरोना से संक्रमित तो बहुत बड़ा वर्ग हुआ बताया जाता है किछ लोगों ने संक्रमण की जाँच करवाई कुछ लोगों ने जाँच नहीं भी करवाई कोई दवा भी नहीं ली संक्रमण के लक्षण पहचानकर घरों में ही बने रहे और स्वस्थ होगए उनके शरीरों में इस प्रकार के दुष्प्रभाव होते नहीं देखे गए !
30 सितंबर 2020 को प्रकाशित :वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट कहती है, कोरोना से रिकवर हो चुके मरीजों
के हार्ट पर गहरा असर पड़ा है। संक्रमण के इलाज के बाद इनमें सांस लेने में
दिक्कत, सीने में दर्द जैसे लक्षण दिख रहे हैं। हार्ट के काम करने की
क्षमता पर बुरा असर पड़ रहा है। जो लम्बे समय तक दिखेगा।
30 सितंबर 2020 को प्रकाशित :अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन जर्नल में प्रकाशित रिसर्च के मुताबिक कोरोना
से रिकवर होने वाले 100 में से 78 मरीजों के हार्ट डैमेज हुए और दिल में
सूजन दिखी। रिसर्च कहती है, जितना ज्यादा संक्रमण बढ़ेगा भविष्य में उतने
ज्यादा बुरे साइड-इफेक्ट का खतरा बढ़ेगा।
30 सितंबर 2020 को प्रकाशित :ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी की रिसर्च के मुताबिक कोरोना से रिकवर होने वाला
हर 7 में से 1 इंसान हार्ट डैमेज से जूझ रहा है। यह सीधेतौर पर उनकी फिटनेस
पर असर डाल रहा है।
02 Aug 2020 प्रकाशित :कोरोना को हराने के बाद मरीज भले ही स्वस्थ्य हो गया हो, लेकिन बीमारी के
संक्रमण ने शरीर के दूसरे अंगों को भी नुकसान पहुंचाया है। हाल ही में
प्रकाशित एक शोध में यह जानकारी आई है कि कोरोना फेफड़ों को ही नहीं दिल को
भी क्षति पहुंचा रहा है। हार्ट अटैक की संभावना प्रबल हो जाती है। कोरोना
को हराने वाले 100 मरीजों पर शोध किया गया था, जिनकी उम्र 45 से 53 के बीच
में थी। उनकी एमआरआई कराने पर सामने आया कि 78 मरीजों के दिल के आकार में
बदलाव देखने को मिला है। इस तरह के बदलाव केवल हार्ट अटैक के आने के बाद ही
किसी मरीज में देखने को मिलते हैं।
जनता ने अपने वैज्ञानिकों से पूछा कि कोरोना से सबसे अधिक खतरा किस उम्र के लोगों को है ?
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सबसे अधिक 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को बताया था जबकि संक्रमण का सबसे अधिक खतरा 18 से 44 वर्ष के लोगों को हुआ है | यहाँ भी वैज्ञानिकों का अनुमान सही नहीं निकला !
01 Apr 2020 जहाँ एक ओर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कोरोना वायरस
संक्रमण का सबसे ज्यादा खतरा उन लोगों को को बताया था जिनकी उम्र 60 साल या
इससे अधिक है |
30 Dec 2020 को एक सर्वे के आंकड़े प्रकाशित किए गए जिसमें लिखा है -"18 से 44 वर्ष के लोग कोरोना से सबसे अधिक पीड़ित हुए हैं |"
जनता ने अपने वैज्ञानिकों से पूछा कोरोना कब तक रहेगा आपका क्या पूर्वानुमान है ?
वैज्ञानिकों ने इस प्रकार से बताया कोरोना पूर्वानुमान!
2-4-2020 को प्रकाशित: चीन के सबसे बड़े कोरोना वायरस एक्सपर्ट डॉ. झॉन्ग
नैनशैन ने ने दावा किया है कि"4 हफ्तों में कम होंगे कोरोना वायरस के मामले !"
17 अप्रैल 2020 को प्रकाशित :गृह मंत्रालय के आंतरिक सर्वेक्षण में पता
चला है कि मई के पहले सप्ताह में कोरोना के मरीजों की संख्या में काफी
तेजी देखने को मिलेगी. हालांकि, इसके बाद कोरोना मरीजों की संख्या
धीरे-धीरे कम होने लगेगी.!
24 अप्रैल 2020 को नीति आयोग के सदस्य और चिकित्सा प्रबंधन समिति के प्रमुख वीके पॉल ने एक
अध्ययन पेश किया था , जिसमें उन्होंने भविष्यवाणी की थी -"देश में कोरोना संक्रमण के नए मामले
16 मई तक खत्म हो जाएंगे.
27 अप्रैल 2020 को सिंगापुर यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी एंड डिजाइन के
शोधकर्ताओं का एक रिसर्च प्रकाशित हुआ जिसमें उन्होंने कहा है -"भारत में
27 मई 2020 तक कोरोना संक्रमण समाप्त हो सकता है !
8 May 2020 को एम्स के डायरेक्टर डॉ. गुलेरिया ने जून-जुलाई में कोरोना संक्रमण चरम पर पहुंचने की बात कही है |
09 May 2020केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने कहा, जल्द फ्लैट ही नहीं रिवर्स हो जाएगा कोरोना ग्राफ !
09 May 2020बिहार के बरिष्ठ यूरोलॉजिस्ट डॉ. अजय कुमार ने कहा कि जून-जुलाई में कोरोना के मरीज बढ़ेंगे नहीं अपितु घटने शुरू होंगे !
09 May 2020 डॉ. अमरकांत आईएमए, बिहार के निर्वाचित अध्यक्ष डॉ. अमरकांत झा ने कहा कि जून में
कोरोना का संक्रमण स्थिर हो जायेगा। इसके बाद इसमें उत्तरोत्तर घटोत्तरी
होगी।
Jun
6, 2020ऑनलाइन जर्नल एपीडेमीयोलॉजी इंटरनेशनल में प्रकाशित:"मध्य सितंबर
के आसपास भारत में खत्म हो सकती है कोरोना महामारी ".
15 जून 2020 इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा गठित रिसर्च ग्रुप की ओर से कहा गया कि नवंबर महीने में कोरोना संक्रमण अपने पीक पर होगा!
16- 6-2020 को भारतीय वैज्ञानिक न्यूकिलीयर एवं अर्थसाइंटिस्ट डॉ. के एल सूंदर कृष्णा वैज्ञानिक ने दावा किया कि 21 जून 2020 को कोरोना वायरस समाप्त हो जाएगा |
1
अगस्त, 2020 को महामारी को लेकर स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए हुई बैठक
के बाद ये बयान जारी किया-" कोरोना वायरस महामारी के "लम्बे" वक्त रहने की
संभावना है.|"
19 अक्टूबर 2010 को प्रकाशित दक्षिणी भारत वाणिज्य और उद्योग
मंडल द्वारा आयोजित एक परिचर्चा में विश्व स्वास्थ्य संगठन की चीफ साइंटिस्ट सौम्या विश्वनाथन का एक बयान -"2 साल तक कोरोना से राहत नहीं!"
अब विस्तार से -
2-4-2020 को प्रकाशित:"4 हफ्तों में कम होंगे कोरोना वायरस के मामले !"चीन के सबसे बड़े कोरोना वायरस एक्सपर्ट डॉ. झॉन्ग
नैनशैन ने ने दावा किया है कि अगले चार
हफ्तों में पूरी दुनिया बदल जाएगी. मतलब पहले जैसी हो जाएगी. कोरोना वायरस
के नए मामलों में कमी आएगी. साथ ही ये भी भविष्यवाणी की है कि चीन में अब
कोरोना वायरस का दूसरा हमला नहीं होगा. ये भविष्यवाणी की हैं . डॉ. झॉन्ग कोरोना वायरस को लेकर चीन की सरकार द्वार तैनात मुख्य
टीम के प्रमुख भी हैं.!
17 अप्रैल 2020 को प्रकाशित :गृह मंत्रालय की ओर से किए गए एक आंतरिक सर्वेक्षण में पता
चला है कि मई के पहले सप्ताह में कोरोना के मरीजों की संख्या में काफी
तेजी देखने को मिलेगी. हालांकि, इसके बाद कोरोना मरीजों की संख्या
धीरे-धीरे कम होने लगेगी.!
24 अप्रैल 2020 को नीति आयोग के सदस्य और चिकित्सा प्रबंधन समिति के प्रमुख वीके पॉल ने एक
अध्ययन पेश किया था , जिसमें उन्होंने भविष्यवाणी की थी -"देश में कोरोना संक्रमण के नए मामले
16 मई तक खत्म हो जाएंगे. उनके अध्ययन के अनुसार, 3 मई से भारत में रोज
आने वाले मामलों में 1500 से थोड़ा ऊपर जाएगा और 12 मई तक 1,000 मामलों तक
गिर जाएगा और 16 मई तक शून्य हो जाएगा."किंतु यह रिसर्च भी सच्चाई की कसौटी पर खरा नहीं उतर सका | वैज्ञानिकमहोदय ने अब तक के आंकड़ों के विश्लेषण के जरिए
भविष्य के लिए प्रोजेक्शन ग्राफ पेश कर बताया कि 30 अप्रैल तक देश में
कोरोना का संक्रमण अपने चरम पर होगा और 30 अप्रैल के बाद देश में कोरोना संक्रमण में गिरावट का
दौर शुरू हो सकता है।यही डॉक्टर वीके पॉल जी महामारी से निपटने के लिए बने टास्क फोर्स के सदस्य बताए जाते हैं |
26 Apr 2020 07:12 AMआईआईटी कानपुर ने कहा -"भारत जल्द ही कोरोना संकट से उबरेगा!"किंतु ऐसा नहीं हुआ उसके बाद भी महामारी का संक्रमण लगातार बढ़ता चला गया |
वैज्ञानिक रिसर्च के नाम पर यह शोध आईआईटी में फिजिक्स विभाग के प्रोफेसर
महेंद्र वर्मा किया था उन्होंने अपने सहयोगियों सौम्यदीप चैटर्जी, असद अली, शाश्वत
भट्टाचार्या और शादाब आलम की मदद से दुनिया भर के देशों के कोरोना पॉजिटिव
मामलों और हुई मौतों के आधार पर गणितीय अध्ययन किया और उन्होंने आकलन के लिए
वर्ल्ड मीटर वेबसाइट का सहारा भी लिया था ।
27 अप्रैल को सिंगापुर यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी एंड डिजाइन के
शोधकर्ताओं का एक रिसर्च प्रकाशित हुआ जिसमें उन्होंने कहा है -"भारत में
27 मई 2020 तक कोरोना संक्रमण समाप्त हो सकता है !इस अध्ययन के अनुसार 8
दिसंबर 2020 को दुनिया भर में कोरोनोवायरस 100 फीसदी तक खत्म हो जाएगा."इस
रिसर्च की माने तो दुनिया में कोरोनावायरस के 97% केस 30 मई तक, 99% केस 17
जून तक और 100% केस 9 दिसंबर 2020 तक खत्म हो जाएंगे.!
इनके द्वारा लगाया गया पूर्वानुमान पूरी तरह ध्वस्त हुआ उन्होंने भारत में
27 मई 2020 तक कोरोना संक्रमण समाप्त होने की बात कही जो पूरी तरह गलत हो
गया !
8 May 2020 को एम्स के डायरेक्टर डॉ. गुलेरिया ने चेतावनी जारी की थी -", जून-जुलाई में चरम पर पहुंच सकती है महामारी !"
स्पष्टीकरण देते हुए कहा गया कि डाटा के अध्ययन से यह बात तो साफ है कि अब यह
लग रहा है कि जिस हिसाब से यह बीमारी बढ़ रही है उससे यह कहा जा सकता है कि
बीमारी अगले एक दो महीने (जून-जुलाई) में अपने चरम पर होगी।
09 May 2020डॉ. गुलेरिया के बयान पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने कहा, जल्द फ्लैट ही नहीं रिवर्स हो जाएगा कोरोना ग्राफ !मुझे नहीं पता कि क्या सोचकर डॉ. गुलेरिया ने यह बयान दिया है लेकिन व्यक्तिगत तौर
पर मैं कह सकता हूं कि आने वाले सप्ताहों में धीरे-धीरे
पूरी तरह से फ्लैट होगा और रिवर्स भी होगा।
AIIMS
के डायरेक्टर डॉ. गुलेरिया के इसी बयान पर-
09 May 2020बिहार के सीनियर डॉक्टरों ने कहा, जून-जुलाई में कोरोना के मरीज बढ़ेंगे नहीं अपितु घटने शुरू होंगे !वरिष्ठ
यूरोलॉजिस्ट डॉ. अजय कुमार ने कहा कि डॉ. रणदीप गुलेरिया के इस बयान का
आधार क्या है, उन्होंने इसके लिए आंकड़े कहां से इकट्ठे किए , इसकी कोई जानकारी
नही है। इसे सामान्यीकृत तरीके से सभी पर लागू नहीं किया जा सकता।
09 May 2020 जून में कोरोना का संक्रमण स्थिर हो जायेगा :डॉ. अमरकांत आईएमए, बिहार के निर्वाचित अध्यक्ष डॉ. अमरकांत झा ने कहा कि जून में
कोरोना का संक्रमण स्थिर हो जायेगा। इसके बाद इसमें उत्तरोत्तर घटोत्तरी
होगी।
विशेषबात:डॉ.गुलेरिया ने जो कुछ कहा और उनके बयान के संदर्भ में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जी ने जो कुछ कहा इसके अतिरिक्त बिहार के वरिष्ठ
यूरोलॉजिस्ट डॉ. अजय कुमार जी एवंआईएमए बिहार के निर्वाचित अध्यक्ष डॉ.अमरकांत झा ने जो कुछ कहा उसमें सच की कसौटी पर कसने लायक कुछ भी नहीं निकला सब कुछ गलत होता चला गया |
Jun
6, 2020ऑनलाइन जर्नल एपीडेमीयोलॉजी इंटरनेशनल में प्रकाशित:"मध्य सितंबर
के आसपास भारत में खत्म हो सकती है कोरोना महामारी ". स्वास्थ्य मंत्रालय
के दो जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने यह दावा किया है!
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा गठित रिसर्च ग्रुप का रिसर्च !
15 जून 2020 इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा गठित रिसर्च ग्रुप की स्टडी बेहद चौंकाने वाली बात सामने आई !उसके मुताबिक नवंबर महीने में कोरोना अपने पीक पर होगा साथ ही इस दौरान
देशभर में कोरोना मरीजे के लिए बेड्स और वेंटिलेटर्स की कमी हो सकती है !जबकि 18 सितम्बर के बाद कोरोना संक्रमण क्रमशः समाप्त होने लगा था संक्रमितों के स्वस्थ होने की संख्या दिनोंदिन बढ़ने लगी थी |
21जून 2020 तक समाप्त हो जाएगा कोरोना !
16- 6-2020 को भारतीय वैज्ञानिक न्यूकिलीयर एवं अर्थसाइंटिस्ट डॉ. के एल सुंदर कृष्णा वैज्ञानिक ने दावा किया कि 21 जून 2020 को सूर्यग्रहण के दिन कोरोना वायरस खत्म हो जाएगा |
1
अगस्त, 2020 को महामारी को लेकर स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए हुई बैठक
के बाद ये बयान जारी किया-" कोरोना वायरस महामारी के "लम्बे" वक्त रहने की
संभावना है.|"19 अक्टूबर 2010 को प्रकाशित दक्षिणी भारत वाणिज्य और उद्योग
मंडल द्वारा आयोजित एक परिचर्चा में विश्व स्वास्थ्य संगठन की चीफ साइंटिस्ट सौम्या विश्वनाथन का एक बयान -"2 साल तक कोरोना से राहत नहीं!"
बिशेष बात -अध्ययन में
सामने आई है !
शंका :जनता ने जानना चाहा कि वायरस का प्रसार हवा से होता है या नहीं ?
1जुलाई2020 को प्रकाशित:भारत
में 24 मार्च से लॉकडाउन चल रहा था।1जून से अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हो
गई है जिसके बाद कोरोना और तेजी से फैलता जा रहा है। देश में अब तक कुल
संक्रमित मरीजों का आंकड़ा सात लाख के पार पहुंच गया है। महज एक जुलाई से
पांच जुलाई के बीच एक लाख से ज्यादा मरीज आ गए। कोरोना वायरस से प्रभावित
देशों की सूची में भारत तीसरे पायदान पर आ गया है। भारत से ऊपर अब केवल दो
ही देश हैं ब्राजील और अमेरिका।ऐसी परिस्थिति में कोरोना संक्रमण बढ़ने का कारण कोरोना संक्रमण के प्रसार का माध्यम कहीं हवा ही तो नहीं है ?
वैज्ञानिकों के द्वारा दी गई जानकारी -
6 जुलाई 2020 को प्रकाशित :32 देशों के 239 वैज्ञानिकों का दावा- हवा से फैल रहा कोरोना !वैज्ञानिकों का दावा है कि कोरोना वायरस हवा
के जरिए भी फैलता है, लेकिन डब्ल्यूएचओ इसे लेकर गंभीर नहीं है और संगठन
ने अपनी गाइडलाइंस में भी इस पर चुप्पी साधी हुई है !
7 जुलाई 2020 को प्रकाशित :विश्व स्वास्थ्य संगठन में संक्रमण से बचाव और नियंत्रण सम्बंधी
तकनीकी टीम की प्रमुख डॉक्टर बेनेडेट्टा अलेग्रांज़ी के अनुसार
शोधार्थियों ने कोविड संक्रमण के फैलने के सम्बंध में विश्व स्वास्थ्य
संगठन की सिफारिशों पर पुनर्विचार की अपील की है। लेकिन विश्व
स्वास्थ्य संगठन को हवा के जरिए इस वायरस के फैलने का कोई ठोस प्रमाण
नहीं मिला है |
7 जुलाई 2020 को प्रकाशित :विश्व स्वास्थ्य संगठन वैज्ञानिकों की बात पर रिसर्च करने की बात कह रहा है। रिसर्च के बाद ही
सामने आ पाएगा कि क्या वाकई कोरोना वायरस हवा में फैल सकता है !
6 मार्च 2020 :आईएमआरसीप्रमुख डॉ बलराम भार्गव का कहना है कि वायरस का प्रसार हवा के माध्यम से नहीं होता है वायरस का खतरा जीव जनित होता है संक्रमितों के संपर्क में आने से वायरस का खतरा होता है |
21 Jul 2020 वैज्ञानिक तथा औद्योगिक
अनुसंधान परिषद (CSIR) ने लोगों को बंद जगहों पर भी मास्क पहनने की नसीहत
दी गई है।
21 Jul 2020 CSIR के चीफ शेखर सी मांडे
ने विभिन्न स्टडी तथा
विश्लेषणों के हवाले से लिखा कि जितने भी सबूत निकले हैं उससे पता चलता है
कि SARS-CoV-2 का हवा से भी प्रसार संभव है।
--------------------------------------------
डब्ल्यूएचओ ने पहले कहा था कि इस वायरस का संक्रमण हवा से नहीं फैलता है।
यह सिर्फ थूक के कणों से ही फैलता है। ये कण कफ, छींक और बोलने से शरीर से
बाहर निकलते हैं। ये इतने हल्के नहीं होते कि हवा के साथ दूर तक उड़ जाएं।
वे बहुत जल्द ही जमीन पर गिर जाते हैं।
-----------------------------------------
कोरोनावायरस हवा से भी फैल सकता है -"द न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, 32 देशों के 239 वैज्ञानिकों ने यह दावा किया है।"
WHO ने स्वीकारा, हवा के जरिए भी फैल सकता है कोरोना वायरस, जरूर जानें यह 2 बात ! पहले WHO इस बात
को मानने से इनकार कर रहा था लेकिन कुछ विशेष मामलों और इस बात के सुबूतों
की पुष्टि करने के बाद अब उसने इस बारे में नया बयान जारी किया है,इसी बीच इस
बात की आशंका जताई जा रही थी कि कोरोना वायरस हवा के जरिए भी फैल रहा है।
अब WHO ने इस पर अपना बयान जारी किया है।
विशेषबात :जनता ने अपने वैज्ञानिकों से जानना चाहा कि हवा से भी प्रसार संभव है क्या ?तो
32 देशों के 239 वैज्ञानिकों ने बताया कि कोरोना वायरस हवा
के जरिए फैलता है | आईएमआरसीप्रमुख डॉ बलराम भार्गव का कहना है कि वायरस का प्रसार हवा के माध्यम से नहीं होता है| विश्व
स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि हवा के जरिए इस वायरस के फैलने का कोई ठोस प्रमाण
नहीं मिला है |रिसर्च के बाद ही
सामने आ पाएगा कि क्या वाकई कोरोना वायरस हवा में फैल सकता है!इसी प्रकार से कुछ अन्य वैज्ञानिकों ने हवा के माध्यम से वायरस फैलने का समर्थन किया तो कुछ ने विरोध जनता को अपने प्रश्न का उत्तर कुछ नहीं मिला अंत में उसने जो उचित लगा वो निर्णय लिया !
वैज्ञानिकों से प्रश्न : कोरोनासंक्रमण पर मौसम का क्या असर होगा ?
महामारी पर वैज्ञानिक उत्तर :कोरोनासंक्रमण पर मौसम का असर नहीं है !
11 Aug 2020 को डब्ल्यूएचओ के आपात मामलों के प्रमुख डॉ. माइकल रेयान का एक बयान प्रकाशित हुआ -"कोरोना
वायरस (कोविड-19) में मौसमी प्रवृत्ति दिखाई नहीं पड़ रही है। इसके चलते
इस खतरनाक वायरस पर अंकुश पाना कठिन होता जा रहा है।"
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ.आशीष झा ने राहुल गाँधी से बात करते हुए कहा - कोरोना को लेकर कई तरह के सबूत हैं कि मौसम फर्क डालता है,लेकिन गर्मी से ये रुक जाएगा, ऐसा
तर्क देना पूरी तरह सही नहीं है !
वैज्ञानिकों से प्रश्न :तापमान बढ़ने पर कोरोनासंक्रमण समाप्त हो जाएगा क्या ?
वैज्ञानिक उत्तर : तापमान बढ़ते ही समाप्त हो सकता है कोरोना वायरस !
वैज्ञानिकों के तर्क :
12 Jun 2020को प्रकाशित :भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मुंबई के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में दावा किया है - "गर्म मौसम में कोरोना वायरस के सक्रिय रहने की गुंजाइश कम है |"
March 17, 2020अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में दिए एक बयान में
कोरोनावायरस का कनेक्शन में मौसम से जोड़ते हुए कहा था कि अप्रैल माह की
शुरुआत में कोरोनावायरस का असर अपने आप खत्म हो जाएगा। इसके पीछे उनका तर्क
था कि भीषण गर्मी में वायरस मर जाते हैं, जिससे इसका प्रभाव
धीरे-धीरे खत्म होने लगेगा।
March 17, 2020 विशेषज्ञों का मानना है कि चीन में ठंड के मौसम में अस्तित्व में आए कोरोनावायरस के आधार पर कहा जा रहा है कि तामपान में गिरावट से इसका असर बढ़ सकता है।
वैज्ञानिकों से प्रश्न :तापमान घटने और सर्दियों के बढ़ने का कोरोनासंक्रमण पर कैसा प्रभाव पड़ेगा ?
वैज्ञानिक उत्तर : तापमान घटते और सर्दियों के बढ़ते ही बढ़ सकता है कोरोना संक्रमण !
वैज्ञानिकों के तर्क :
10 Oct 2020 को नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल का बयान प्रकाशित हुआ -"दिल्ली में सर्दियों में कोरोना से हालात बिगड़ सकते हैं। रोजाना औसतन 15 हजार मरीज आ सकते हैं।"
स्वास्थ्य मंत्री जी का वक्तव्य :
11 Oct 2020 देश के स्वास्थ्य मंत्री जी ने रविवार को 'संडे संवाद
कार्यक्रम' में कहा -"SARS Cov 2 एक रेस्पिरेट्री वायरस है और ऐसे वायरस को
ठंड के मौसम में बढ़ने के लिए जाना जाता है।इसलिए सर्दियों में भारत में
ज्यादा खतरनाक हो जाएगा कोरोना "
वैज्ञानिकों से प्रश्न :कोरोनासंक्रमण पर वर्षा होने का क्या असर होगा ?
24 Mar 2020 को दिल्ली-एनसीआर
में मंगलवार को आंधी के साथ तेज बारिश हुई।लोगों के मन में सवाल उठा कि
बारिश का कोरोना वायरस पर क्या असर होनेवाला है।वायरस इससे खत्म हो जाएगा
या और बढ़ेगा?
बारिश का पानी बैक्टीरिया को तो फिर भी खत्म कर पाता है लेकिन
वायरस के पनपने के लिए ये काफी अनुकूल मौसम है.
साल 2012 में हुई एक स्टडी :बारिश का
मौसम कोरोना संक्रमण को और बढ़ा सकता है !
साइंस जर्नल करंट ओपिनियन इन
वायरोलॉजी में आई इस स्टडी :
वैज्ञानिकों ने वायरस-रेनवॉटर रिलेशनशिप का
अध्ययन किया. इसके मुताबिक वायरस किस तेजी से फैलता है ये सिर्फ वायरस की
संक्रामकता पर नहीं, बल्कि कई चीजों पर निर्भर करता है. इसमें मौसम,
ह्यूमिडिटी, तापमान और हवा का बहाव भी शामिल हैं. श्वसन तंत्र पर हमला करने
वाले सारे वायरस इसी तरह से फैलते हैं|
मलेशिया में स्टडी हुई :
इस दौरान देखा गया कि बारिश के मौसम में वायरस तेजी से फैलता है |
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस बेंगलुरु के
प्रोफेसर राजेश सुंदरसन कहते हैं - जैसे ही हम सामान्य रुटीन की तरफ
जाएंगे, इंफेक्शन का खतरा बढ़ता जाएगा. बारिश के साथ ये खतरा और बढ़ जाएगा !
भास्कर में एम्स के कम्युनिटी मेडिसिन के प्रोफेसर डॉ. संजय राय की बात छपी
है.
उनके अनुसार कोरोना के बारिश से संबंध पर फिलहाल खास स्टडी नहीं की गई
है लेकिन ये मान सकते हैं कि बारिश के दौरान वायरस की सक्रियता में कमी
नहीं होगी बल्कि तीव्रता और बढ़ेगी. ऐसा इसलिए है क्योंकि इस दौरान तापमान
और आर्द्रता किसी भी वायरस के फैलने और अधिक देर तक रहने में मददगार होती
है
भारत में भी ये स्टडी
हुई :
यहां पर अलग-अलग हिस्सों में बारिश में असमानता के कारण वायरस
के फैलाव का प्रतिशत अलग-अलग रहा और किसी निश्चय पर नहीं पहुँचा जा सका |
31 मई 2020 वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि बारिश में और बढ़ सकता है कोरोना संक्रमण, !
यूनिवर्सिटी ऑफ डेलावेयर में एपिडेमियोलॉजी विभाग की वैज्ञानिक डॉ जेनिफर
होर्ने ने एक इंटरव्यू में -
बारिश के पानी में सफाई करने लायक असर नहीं होता है. और न ही ये वायरस
को खत्म कर पाता है, बल्कि बारिश का मौसम कई सारी मौसमी बीमारियां लेकर आता
है, जिनमें वायरस और बैक्टीरियल दोनों तरह की बीमारियां हैं. चूंकि कोरोना
भी वायरस है इसलिए ये भी दूसरे वायरसों की तरह ही व्यवहार करेगा अर्थात बढ़ेगा !
आईएमआरसीप्रमुख डॉ बलराम भार्गव का कहना है -
तापमान के गिरने से कोरोना संक्रमण के बढ़ने पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है
सेंट्रल फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन की वेबसाइट पर उनकी राय नहीं मिली है -
वर्षा और कोरोनावायरस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली है और न ही विश्व स्वास्थ्य संगठन की साइट पर
अलग से कोरोना और बारिश से जुड़ी कोई स्टडी देखने को मिली है |
विशेष बात :जनता को उसके प्रश्न का स्पष्ट उत्तर कुछ भी तो नहीं मिला !कुछ वैज्ञानिकों ने कहा कि कोरोना वायरस के संक्रमण पर मौसम का प्रभाव बिलकुल नहीं पड़ेगा !तो कुछ ने कहा कोरोना वायरस सर्दी में बढ़ेगा कुछ ने कहा वर्षा में बढ़ेगा और कुछ ने कहा गर्मी बढ़ने पर कोरोना वायरस समाप्त हो जाएगा किंतु वैज्ञानिकों द्वारा लगाए गए ऐसे सभी अंदाजों को झुठलाते हुए कोरो वायरस का संक्रमण गर्मी में बढ़ा वर्षात में पहले बढ़ा फिर घटा और जिस सर्दी में बहुत बढ़ जाने की की बात वैज्ञानिकों ने कही थी उसमें आकर हमेंशा हमेंशा के लिए समाप्त हो कोरोना !
कुलमिलाकर वैज्ञानिकों के द्वारा जनता को उनके प्रश्न का कोई विश्वसनीय उत्तर नहीं दिया जा सका जिस पर विशवास करके जनता उसका पालन कर सके !
वैक्सीन बना लेने के दावे -
प्रायः जब जब महामारी या कोई भयानक रोग आया है तो उसके समाप्त होने के बाद उससे मुक्ति दिलाने वाली औषधियाँ बना लेने का दावा किया जाता रहा है इसी लिए किसी रोग विशेष की वैक्सीनें भी प्रायः रोग का वेग कम होने या समाप्त होने पर ही बनती रही हैं | ऐसी परंपरा ही हमेंशा से चली आ रही है अबकी बार कोरोना संक्रमण बढ़ने पर भी बहुत लोग ऐसे अवसरों की ताक में बैठे थे कि कोरोना जैसे ही समाप्त होने लगेगा तो दवा या वैक्सीन बना लेने का दावा कर दिया जाएगा -हुआ भी कुछ यही कोरोना संक्रमण की गति जैसे ही कुछ कम होते दिखाई दी वैज्ञानिकों ने वैक्सीन बना लेने के अपने अपने दावे करने शुरू कर दिए -
05 May 2020 02:07 PM क्या आ गई खुशखबरी? इजरायल के रक्षा मंत्री नैफ्टली बेन्नेट ने दावा, हमने बना ली कोरोना की वैक्सीन !
7 मई 2020 को कोरोना वैक्सीन पर अमेरिका से आई अच्छी खबर ! मरीजों पर शुरू हुआ क्लिनिकल ट्रायल !कोरोना वैक्सीन का क्लिनिकल परीक्षण शुरू हो गया है. इसके तहत अमेरिकी
मरीज को पहला इंजेक्शन दिया
गया!
7 मई 2020 को इटली ने किया ये दावा इटली सरकार ने बताया कि हमारे वैज्ञानिकों द्वारा कोरोना के एंटी बॉडी ढूंढ़ लिया गया है. जल्द ही इसको हम उपयोग में लायेंगे !इससे जल्द ही दुनिया से खत्म हो जायेगा कोरोना का नामोनिशान !
18 मई 2020 को बांग्लादेश के डॉक्टरों का दावा- खोज ली कोरोना की दवा, 4 दिन में ठीक हो गए 60 मरीज !
दुनिया को कोरोना वायरस वैक्सीन का इंतजार, रूसी अरबपतियों ने अप्रैल में ही लगवा लिया टीका कोरोना वायरस से पूरी दुनिया जूझ रही है। इस बीच
एक बड़ा खुलासा हुआ है कि रूस के अरबपतियों ने अप्रैल महीने में ही
कोरोना वायरस का टीका लगवा लिया था।
21जुलाई 2020बड़ी खुशखबरी! कोरोना वैक्सीन के एक नहीं, तीन टीके लगभग तैयार;ये
खुशखबरी यहीं खत्म नहीं हो रही है. दरअसल पूरी दुनिया में कोरोना वायरस
(COVID19) के 3 दमदार टीके तैयार हो चुके हैं और अच्छी बात ये है कि ये
तीनों ही ट्रायल के अंतिम चरण में हैं | ऑस्ट्रेलिया (Australia) स्थित
युनिवर्सिटी ऑफ मेलबर्न,ब्रिटेन (Britain) की ऑक्सफोर्ड युनिवर्सिटी(Oxford
University),,चीनी कंपनी सिनोवैक वैक्सीन बनाने का दावा किया है !
11 अगस्त 2020 को टीवी स्क्रीन पर आकर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन
ये दावा करते हैं कि उनके वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ कारगर
वैक्सीन तैयार कर ली है |
वैक्सीन और बहाने
कोरोना
वायरस के वैक्सीन को लेकर दावे तो बहुत किए गए हैं लेकिन कोरोना संक्रमण दोबारा जोर पकड़ने लगा अब लोग वैक्सीन बना लेने के दावे करने वालों की ओर ताकने लगे -
अब तक यह किसी को
पता नहीं आखिरकार कब तक इसका टीका लोगों को मिल पाएगा. बताया जा रहा है कि कोरोना के वैक्सीन
को विकसित करने के लिए पूरी दुनिया में करीब 200 प्रोजेक्ट चल रहे हैं.
इनमें से 20 प्रोजेक्ट मानव परीक्षण स्तर तक पहुंच पाए हैं. जितने भी टीकों
के परीक्षण की रिपोर्ट आई है उसमें ज्यादातर यही संकेत दे रहे हैं कि यह
फेफड़ों को संक्रमण से बचाने में कारगर है लेकिन संक्रमण को पूरी तरह यह
टीका नहीं रोक सकता ! कुलमिलाकर संक्रमण बढ़ने और वैक्सीन बनाने में सफलता न मिलने पर तरह तरह के दूसरे तीसरे बहाने खोजे जाने लगे -
1जून 2020, 2:50 PM रोम. (इटली खुशखबरी! बिना वैक्सीन के ही खत्म होगा कोरोना, डॉक्टर्स का दावा- कमजोर होने लगा वायरस !
वैक्सीन इसीलिए नहीं बन पाएगी क्योंकि कोरोना इतनी तेजी से समाप्त होता जा कि वालंटियर ही नहीं मिल पा रहे हैं |
11 Aug 2020 को डब्ल्यूएचओ के आपात मामलों के प्रमुख डॉ. माइकल रेयान का एक बयान प्रकाशित हुआ -"कोरोना
वायरस (कोविड-19) में मौसमी प्रवृत्ति दिखाई नहीं पड़ रही है। इसके चलते
इस खतरनाक वायरस पर अंकुश पाना कठिन होता जा रहा है।"
कोरोना मरीजों की कमी से
वैज्ञानिकों कीचिंता बढ़ी :
4 जून 2020खत्म हो रहा कोरोना? मरीजों की कमी से
वैज्ञानिकों की बढ़ी चिंता, वैक्सीन ट्रायल के लिए नहीं मिल रहे वॉलेंटियर
- वाशिंगटन !
कोरोना बार बार अपना स्वरूप बदल रहा है इसलिए नहीं बन पाएगी वैक्सीन !
2 Sep 2020 को प्रकाशित हुआ -"खुद को बार-बार बदल रहा है कोरोना वायरस, ऐसे में कैसे बन पाएगी वैक्सीन, टेंशन में एक्सपर्ट!"इस
अध्यनन में कई रिसर्च इंसीट्यूट ने भाग लिया था जिसमें संक्रामक रोगों और
वैश्विक स्वास्थ्य कार्यक्रम में प्रतिरक्षा, मैकगिल विश्वविद्यालय
स्वास्थ्य केंद्र के अनुसंधान संस्थान और मैकगिल इंटरनेशनल टीबी सेंटर,
कनाडा के विशेषज्ञ शामिल थे।
16 अप्रैल 2020ताइवान के नेशनल चेंग्गुआ यूनिवर्सिटी ऑफ एजुकेशन के वी-लुंग वांग और
ऑस्ट्रेलिया में मर्डोक विश्वविद्यालय के सहयोगियों ने किया है. शोधकर्ताओं
का कहना है कि कोरोना वायरस के रूप बदलने पर यह पहली रिपोर्ट है जिससे
वैक्सीन की खोज पर खतरा मंडरा सकता है. . स्वरूप बदलने के
कारण संभव है कि इस वायरस की वर्तमान में बन रही वैक्सीन बेकार हो जाए !
26 Apr 2020 10:37 AM (IST)को कहा गया "यदि बदला कोरोना वायरस का स्वरूप तो बढ़ सकती है समस्या, 6 माह तक रखनी
होगी नजर !भविष्य में यदि कोरोना वायरस का
स्वरूप बदला तो ये पूरी दुनिया के लिए बड़ी समस्या बन सकता है। यदि ऐसा
नहीं हुआ तो इसकी वैक्सीन को बनाने में कम समय लगेगा।"
वैज्ञानिकों से जनता का प्रश्न : वैक्सीन क्यों नहीं बनपाएगी ?
वैज्ञानिकों के उत्तर :वैक्सीन बनाने के लिए कोरोना के बिषय में जो आवश्यक जानकारी होनी चाहिए थी वो अभी तक नहीं जुताई जा सकी है और किसी भी रोग के बिषय में संपूर्ण जानकारी किए बिना उस रोग से मुक्ति दिलाने वाली दवा या वैक्सीन नहीं बनाई जा सकती है |
2020-07-09 को प्रकाशित :कोरोना वायरस के बिषय में इन प्रश्नों का उत्तर खोजे बिना औषधि या वैक्सीन बनाना या चिकित्सा करना असंभव है !
इस वायरस को आए हुए 6 महीने से ज्यादा का समय बीत चुका हैएक करोड़ से ज्यादा लोग अब तक इस महामारी का शिकार बन चुके हैं. वहीं पांच
लाख से ज्यादा लोग इस बीमारी की वजह से काल के गाल में समा चुके हैं लेकिन 9 जुलाई तक इसके वैक्सीन या दवा की खोज में प्रमाणिक सफलता नहीं मिली है.|अब भी
कोरोना को लेकर कुछ ऐसे रहस्य हैं जिसके बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं
है. साइंस जर्नल नेचर ने दुनिया के वैज्ञानिकों के हवाले से एक रिपोर्ट
प्रकाशित की है जिसमें इस महामारी को लेकर ऐसे रहस्यों का जिक्र किया गया
है जिससे अब तक पर्दा नहीं उठा है. माना जा रहा है कि जब तक इन 5 सवालों का जवाब नहीं मिलता तब तक इस वायरस का प्रभावी उपाय नहीं किया जा
सकता.!-
आखिर कहां से आया यह वायरस ?
6 महीने से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी वैज्ञानिक अभी तक इस निष्कर्ष पर
नहीं पहुंच पाए हैं कि आखिर यह वायरस कब, कहां और कैसे पैदा हुआ. शुरुआती
रिपोर्टों में यह दावा किया जाता रहा है कि यह चमगादड़ से इंसानों में फैला
है. इसके पीछे आरएटीजी 13 को जिम्मेदार बताया जा रहा है जो चमगादड़ों में
पाया जाता है. हालांकि कुछ वैज्ञानिक इस दावे को सही नहीं मानते हैं और
उनका दावा है कि अगर ऐसा होता तो इंसान और चमगादड़ों के जीनोम में चार
फीसदी का अंतर नहीं होता जो इस वायरस के लिए जिम्मेदार है.
मानव शरीर में वायरस के खिलाफ प्रतिक्रिया अलग-अलग क्यों? जितने
भी लोग कोरोना वायरस से प्रभावित हुए हैं उनमें देखा गया है कि समान, उम्र
और समान क्षमता के बाद भी हर व्यक्ति पर इस वायरस का प्रभाव अलग-अलग पड़ता
है. यह अब तक अबूझ पहेली ही है कि आखिरकार ऐसा क्यों होता है. वैज्ञानिक
अब तक नहीं समझ पाए हैं कि वायरस के खिलाफ अलग-अलग शरीर की प्रतिक्रिया एक
दूसरे से भिन्न क्यों है
वायरस के खिलाफ कब तक शरीर में रहेगी प्रतिरोधक क्षमता ! वैज्ञानिक
अब तक यह नहीं समझ पाए हैं कि कोरोना से संक्रमित होने के बाद मरीज के
शरीर में उस वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता कब तक बनी रहेगी. वायरस जनित
दूसरी बीमारियों में यह क्षमता कुछ महीनों तक शरीर में बनी रहती है. इसलिए
शोध के जरिए वैज्ञानिक यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि कोरोना से संक्रमित
होने के बाद मरीज में उत्पन्न एंटीबॉडीज कितने समय तक इस बीमारी से शरीर
को प्रतिरक्षा प्रदान कर सकती है.
वायरस कहीं कम- कहीं ज्यादा घातक क्यों ? दुनिया के कई देशों
में इस वायरस ने अपना बेहद खतरनाक रूप दिखाया है और लाखों लोगों की जान ले
ली है. वहीं कुछ देशों में इसका प्रभाव कम है. यही वजह है कि वैज्ञानिक इस
वायरस के कार्यप्रणाली को समझने की कोशिश में जुटे हुए हैं. क्षेत्र के
हिसाब से वायरस में बदलावों का भी वैज्ञानिक अध्ययन कर रहे हैं !
वैक्सीन नहीं बन पाने के बिषय में जनता का वैज्ञानिकों से प्रश्न:
अपने वैज्ञानिकों से जनता जानना चाहती थी कि यदि वैक्सीन नहीं बन पाई तो कोरोना संक्रमण की कैसी स्थिति रहेगी ?
वैज्ञानिकों के उत्तर :
16 Jul 2020 को वाशिंगटन. वैज्ञानिकों
ने चेतावनी दी है कि अगर सितंबर तक कोरोना पर काबू न पाया गया तो यह दुनिया
में स्पेनिश फ्लू जैसा सितम ढाएगा। सितंबर-अक्तूबर से दोबारा तेजी पकड़ने
के साथ जनवरीफरवरी में यह दोबारा चरम पर पहुंच सकता है।
अमेरिका के मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के
शोधकर्ताओं की रिसर्च :
वैक्सीन नहीं बनी तो भारत में 2021 में कोरोना के 2.87 लाख मामले सामने आ
सकते हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक, मामले इतने
बढ़े तो देश संक्रमण की चपेट में आ जाएगा।
कोरोनो वायरस महामारी का सबसे बुरा दौर अभी आने वाला
है। भारत में भी कोरोना वैक्सीन या दवाई के बिना आने वाले महीनों में
कोविड-19 के मामलों में भारी उछाल देखने को मिल सकता है। रिसर्च के अनुसार,
2021 के अंत तक हर दिन 2.87 लाख मामलों के साथ भारत दुनिया में सबसे अधिक
प्रभावित देश बन सकता है।
विशेष:शोधकर्ताओं ने दुनिया के 84
देशों में जांच के आंकड़ों के आधार पर महामारी मॉडल विकसित किया है। यह
अनुमान, दुनिया के शीर्ष 10 देशों में रोजाना संक्रमण की दर के आधार पर
लगाया है।
विशेष बात :बिना
वैक्सीन बने ही 16 नवंबर 2020 के बाद कोरोना संक्रमण हमेंशा हमेंशा के लिए
समाप्त होने लगा और धीरे धीरे संक्रमण समाप्त होता चला गया !
सपनों का समुद्र - जिस प्रकार से मौसम पूर्वानुमान गलत निकल जाने के बाद जलवायु परिवर्तन रोने के सुझाव दिये जाने लगते हैं और भविष्य में मौसम को अपने अनुशार चलाने के सपने दिखाए जाने लगते हैं ठीक उसी प्रकार से जब इस महामारी से बचाव के लिए कुछ नहीं किया जा सका तो दुनियाँ को अगली महामारी से तैयार रहने के सपने दिखाए जाने लगे-
"दुनिया को अगली महामारी के लिए रहना होगा तैयार!" 8
Sep 2020 को प्रकाशित :डब्ल्यूएचओ के जेनेवा स्थित मुख्यालय में एक न्यूज
ब्रीफिंग के दौरान डब्ल्यूएचओ प्रमुख टेड्रोस अधनोम ग्रेबेसियस ने कहा-"
दुनिया को अगली महामारी के लिए रहना होगा तैयार "
एक ओर जहाँ कोरोना संक्रमितों को स्वस्थ होने के लिए चिकित्सालयों में जाने की सलाह दी जाती रही वहीँ 23 अप्रैल 2020 को प्रकाशित एक समाचार :"दम
घोंट देता है कोरोना, देखते रह जाते हैं डॉक्टर, वेंटिलेटर भी काम नहीं
आता !"न्यूयॉर्क सिटी के बेलेउवे हॉस्पिटल के डॉक्टर रिचर्ड लेवितान ने कहा
कि
मैं दो दशकों से मेडिकल के छात्रों को वेंटिलेटर्स के बारे में सबकुछ बता
रहा हूं. उसकी ताकत के बारे में पढ़ाता हूं. लेकिन कोरोना वायरस से बीमार
मरीजों में एक ऐसी दिक्कत सामने आ रही है, जिसमें वेंटिलेटर्स भी मदद नहीं
कर पा रहे हैं.|
कोरोना का विस्तार क्षेत्र कितना है ?
20-4-2020:नदी के पानी में कोरोना के लक्षण ! पेरिस की सीन नदी और अवर्क नहर के पानी में कोरोना कोरोना वायरस का संक्रमण पाया गया है !
26 Apr 2020 वैज्ञानिकों का दावा: अपने आप ठीक हुआ ओजोन परत पर बना सबसे बड़ा छेद!दुनिया इस समय कोविड-19 महामारी से लड़ रही है। वहीं एक अच्छी खबर यह है
कि पृथ्वी के बाहरी वातावरण की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार ओजोन परत पर बना
सबसे बड़ा छेद स्वत: ही ठीक हो गया है। वैज्ञानिकों ने पुष्टि है कि
आर्कटिक के ऊपर बना दस लाख वर्ग किलोमीटर की परिधि वाला छेद बंद हो गया है।
इसके बारे में वैज्ञानिकों को अप्रैल महीने की शुरुआत में पता चला था।माना जा रहा था कि ये छेद उत्तरी ध्रुव पर कम तापमान के परिणामस्वरूप बना था |
कोरोना प्राकृतिक है या मनुष्य कृत है ?
19-4-2020 : चीन के वुहान में कोरोना वायरस के संक्रमण की शुरुआत कैसे हुई ?
इसमें दुनिया भर के रिसर्चरों और पत्रकारों की महीनों से रुचि रही है | कोरोना वायरस वुहान के मीट बाजार से फैला जहां चमगादड़ बेचे जा रहे थे.
लेकिन अब बताया जा रहा है कि उस बाजार में चमगादड़ थे ही नहीं और वायरस चीन
की लैब से निकला है. तो सच्चाई क्या है?
पश्चिमी मीडिया में रिपोर्ट किया जा रहा है कि पास के वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी से वायरस लीक हुआ |
जनवरी के अंत में "साइंस" नाम की विज्ञान पत्रिका ने एक लेख छापते हुए चीन
के आधिकारिक बयान पर सवाल उठाया जिसके अनुसार वायरस मीट बाजार में जानवरों
से इंसानों में फैला. इसके बाद "द लैंसेंट" पत्रिका ने लिखा कि कोविड-19
संक्रमण के शुरुआती 41 मामलों में से 13 कभी वुहान के मीट बाजार गए ही नहीं !
1-5-2020 -ट्रंप ने कहा कि चीन की लैब से पैदा हुआ कोरोना बायरस ! जबकि अमेरिका के वैज्ञानिक जोर देकर कह रहे हैं कि कोरोना वायरस प्राकृतिक है |इसके अपनी रिसर्च का हवाला भी दे रहे हैं |
23-4-2020:स्टैनफोर्ड मेडिकल स्कूल में संक्रमक रोगों के प्रोफेसर रॉबर्ट शेफर का कहना है -"प्रकृति में इस प्रकार की कई चीजें मौजूद हैं जिनसे इस प्रकार की महामारी पैदा हो सकती है |
23-4-2020: ट्यूलन स्कूल ऑफ़ मेडिसिन के प्रोफेसर डॉ.रॉबर्ट गैरी का कहना है कि यह मानव निर्मित नहीं अपितु प्राकृतिक है |
24अप्रैल2020: विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है किवर्तमान तक के सभी उपलब्ध
साक्ष्यों से पता चलता है कि कोरोना वायरस प्राकृतिक है और इसमें किसी तरह
की कोई हेराफेरी नहीं है और न ही यह मानव निर्मित वायरस है।
12 मई 2020चीन में शानदोंगे फर्स्ट मेडिकल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कहा कि जहां
शोधकर्ता चमगादड़ को वायरस का प्राकृतिक वाहक मान रहे हैं, वहीं वायरस की
उत्पत्ति अब भी स्पष्ट नहीं है।
पोलियो आदि की वैक्सीनें।
वैक्सीन को आपात मंजूरी देने की आवश्यकता क्यों पड़ी ?
इसीलिए न कि बिना किसी दवा या वैक्सीन आदि के ही कोरोना बिलकुल न समाप्त हो जाए क्या इसीलिए जल्दबाजी में टीके लगाने की अनुमति दी जा रही है ?
वैक्सीन से लाभ क्या होगा ?
ये प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाएगी या कोरोना संक्रमण को समाप्त करेगी !प्रतिरोधक क्षमता तो प्राकृतिक रूप से ही बढ़ जाती है और कोरोनासंक्रमण से मुक्ति भी प्राकृतिक रूप से मिलते देखी जाती है अन्यथा भारत में लगभग एक करोड़ लोग कोरोना संक्रमण से मुक्त हुए कैसे ?और यदि बिना वैक्सीन के ही एक करोड़ लोग संक्रमण मुक्त हो सकते हैं तो ढाई लॉक से भी कम बची संक्रमितों की संख्या के लिए किसी वैक्सीन को श्रेय क्यों दिया जाए ?
आजकल मीडिया में अक्सर सुर्खियाँ देखी सुनी जाती हैं -"अब कोरोना भागेगा !" "अब कोरोना हारेगा!" "अब तो कोरोना से जंग जीतेंगे!" "अब कोरोना को पराजित कर दिया जाएगा !" आदि और भी बहुत कुछ !अत्यंत उत्साह में कुछ लोगों को कोरोना योद्धा तक सिद्ध कर दिया गया है !ये उसी प्रकार का ओवर कॉन्फिडेंस है जैसे छाता बनने के बाद बादलों को चुनौती दी जाए या नौका बनाकर बाढ़ को चुनौती दी जाए ऐसे ही अन्य प्रकृति आपदाएँ भी रही हैं |
इसलिए यदि बिचार किया जाए तो महामारी को पराजित करने लायक आखिर हमारे पास है क्या ?और कोरोना जैसी महामारी के सामने ठहरने लायक है ही क्या हमारे पास !आखिर किस बल पर हम लड़ सकेंगे कोरोना महामारी से !
यदि बात वैज्ञानिक अनुसंधानों की ही की जाए तो हमेंशा की तरह ही आज कोरोना को समाप्तप्राय मानकर दवा या वैक्सीन आदि बनाने का दावा कोई भी करने के लिए स्वतंत्र है किंतु यदि तर्क के धरातल पर देखा जाए तो कोरोना की वैक्सीन बनाना तो बहुत बड़ी बात है कोरोना है क्या आज तक इसी बात का अंदाजा नहीं लगाया जा सका है | कोरोना मनुष्यकृत है या
प्राकृतिक है?इसका विस्तार क्षेत्र कितना है?इसका प्रसार माध्यम क्या है
!इस महामारी की व्याप्ति हवा में है या नहीं?इसके संक्रमण घटने बढ़ने पर
सर्दी गर्मी वर्षा आदि मौसमसंबंधी गतिविधियों का कोई असर पड़ता भी
है या नहीं ?आदि बिषयों में कोई सही एवं सटीक जानकारी नहीं दी जा सकी है |ये संक्रमण प्रारंभ कब हुआ समाप्त कब होगा ?इसके बिषय में न कोई जानकारी दी जा सकी न कोई पूर्वानुमान बताया जा सका !इसके बाद भी कहा जा रहा है कि वैक्सीन बना ली गई है |
ऐसा कहीं होता है क्या कि किसी रोग के बिषय में आप कुछ भी न जानते हों इसके बाद भी उस रोग से पीड़ित व्यक्ति की चिकित्सा करने लग जाएँ !उस रोग से मुक्ति दिलाने की दवा या वैक्सीन आदि बनाने का दावा करने लगें !चिकित्सा की पहली शर्त है निदान अर्थात रोग और रोग के स्वभाव को समझाना उसके बाद ही उसकी चिकित्सा संभव है किंतु रोग को सही सही समझे बिना ही उसकी निर्माण कर लेने का दावा करने वाले लोगों की इस अतिरिक्त प्रतिभा को हमारे लिए समझ पाना संभव नहीं है | सर्दी जुकाम बुखार पेट दर्द शिर दर्द आदि सामान्य रोगों पर भी पहले रोग होने का कारण खोजा जाता है और बाद में उसी के आधार पर उसके निवारण के बिषय में प्रयास किया जाता है |
वैक्सीन पर विश्वास !
चिकित्सा से ही यदि कोरोना ठीक होना होता तो चिकित्सकीय सामर्थ्य अमेरिका
अत्यंत सक्षम होने के बाद भी सर्वाधिक कोरोना दंश झेलने को विवश हुआ !भारत
में मुंबई दिल्ली जैसे साधन संपन्न शहरों में ही कोरोना का प्रकोप अधिक
दिखाई देता रहा |
01
Apr 2020 अब सवाल यह उठता है कि कोरोना वायरस के इलाज के लिए अब तक कोई
दवा दुनिया के किसी देश के पास उपलब्ध नहीं है तो फिर लोग ठीक कैसे हो रहे
हैं? विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि अब तक इसकी कोई दवा उपबल्ध नहीं
है। दवा बनाने के लिए बहुत से देश लगातार कोशिश कर रहे हैं !जहाँ एक ओर
कोरोना अनियंत्रित होता जा रहा है उसके रोग लक्षण स्वभाव विस्तार प्रसार
माध्यम आदि किसी को पता ही नहीं लग रहा है चिकित्सक देखते रह जा रहे हैं
सघन चिकित्सा कक्ष में भी लोग मरते जा रहे हैं कोई दवा कोई वैक्सीन आदि कुछ
भी बचाव के लिए नहीं है इसके बाद भी कुछ लोग स्वयं भी स्वस्थ होते जा रहे हैं !
कोरोना होने के बाद बिना किसी दवा या वैक्सीन के इतनी बड़ी संख्या में रोगी
स्वस्थ होते चले गए !जिन्होंने कोरोना संक्रमित होने के बाद चिकित्सालयों
की शरण ली तो उन्हें चिकित्सा के नाम पर कुछ न कुछ खिलाया पिलाया जाता रहा
शरीरों पर उनके दुष्प्रभाव भी होते रहे जिन्हें कोरोना के बदलते स्वरूप से
जोड़कर देखा जाता रहा !
बिष ही बिष को मारता है बताया जाता है कि सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति के
शरीर का बिष उतारने के लिए सर्प बिष से बना टीका लगाया जाता है किंतु जिसे
सर्प ने काटा न हो उसे यदि वो सर्प बिष से बना टीका लगा दिया जाए तो नुक्सान भी करता है |
ऐसी परिस्थिति में ये सर्व विदित ही है कि महामारियाँ भी बिषाणुओं से ही
तैयार होती हैं तो उसकी औषधियां भी उसी प्रकार के घटक द्रव्यों के
सम्मिश्रण से बनाई जाती होंगी !ऐसी परिस्थिति में उनका प्रयोग संक्रमितों
या बिना संक्रमितों पर एक जैसी प्रक्रिया से कैसे किया जा सकता है !यदि वो
कुछ रोगियों को लाभ कर सकती है तो स्वस्थ लोगों पर उसका प्रभाव हानिकारक भी
तो हो सकता होगा !जो दवा प्रभाव विहीन होगी उसके सेवन से यदि किसी का भी
नुक्सान नहीं हो सकता है तो उससे सभी को लाभ होने की आशा कैसे की जा सकती
है | आखिर क्या कारण रहा होगा जब ब्रिटेन में 8 दिसंबर को 8 लाख वैक्सीन
देने की प्रक्रिया प्रारंभ की जाती है और तेरह दिसंबर से ही कोरोना का नया
स्ट्रेन सामने आ जाता है | ऐसी परिस्थितियों का भी शायद ही कभी
रहस्योद्घाटन हो !
चिकित्सा के क्षेत्र में सबसे बड़ी समस्या है कि जो परीक्षार्थी हैं
वही परीक्षक है वही परीक्षा पत्र को जाँच कर नंबर देने वाले वही पास फेल
करने वाले होते हैं ऐसी परिस्थितियों में उस क्षेत्र के लोगों से हुई
गलतियों की संभावना बाहर आ पाना बहुत कठिन होता है |
आज तक सर्दी-जुकाम जैसे साधारण से प्राकृतिक वायरल इंफेक्शन का मुकम्मल
इलाज नहीं खोजा जा सका है। वहीं स्माल पॉक्स, मिजील्स, चिकन पॉक्स जैसी
वायरल बीमारियों की वैक्सीन बना ली गई है।
वैक्सीन भी रोग प्रतिरोधक क्षमता के सिद्धांत पर ही काम करती है जिसमें
बीमारी के कुछ कमजोर कीटाणु स्वस्थ मानव शरीर में पहुंचाए जाते हैं। इसलिए
वैक्सीनेशन के बाद बुखार आना स्वाभाविक लक्षण माना जाता है और वैक्सीन
द्वारा मानव शरीर में पहुंचाई गई कीटाणुओं की अल्प मात्रा के खिलाफ लड़कर
शरीर उस बीमारी से लड़ने की क्षमता विकसित कर लेता है।
लेकिन कोरोना वायरस साधारण वायरस नहीं है और ना ही प्राकृतिक है, इसलिए
ये साधारण दवाएं और सिद्धांत इसके इलाज में कारगर सिद्ध होंगे, इसमें संदेह
है। तो जिस प्रकार लोहा ही लोहे को काटता है और जहर ही जहर को मारता है,
कृत्रिम कोरोना वायरस का इलाज एक दूसरा कृत्रिम वायरस ही हो सकता है। जैसे
कोरोना वायरस को लैब में तैयार किया गया है, ठीक वैसे ही एक ऐसा वायरस लैब
में तैयार किया जाए जो कोरोना वायरस का तोड़ हो, जो उसे नष्ट कर दे। जीहां,
यह संभव है।
मानव शरीर के हित में उपयोग में लाने के लिए काफी समय से वायरस की
जेनेटिक इंजीनियरिंग की जा रही है।जेनेटिक इंजीनियरिंग की मदद से ही कई
पौधों के ऐसे बीज आज निर्मित किए जा चुके हैं जो पैदावार भी बढ़ाते हैं और
जिनकी रोग प्रतिरोधात्मक क्षमता इतनी अच्छी होती है कि वे संक्रमित नहीं
होते। ऐसी फसल को जीएम फसल कहा जाता है। इसी तकनीक से वैक्सीन भी बनाई जा
चुकी है। इस विधि का प्रयोग करके जो वैक्सीन तैयार की जाती है उसे
रिकॉम्बीनेंट वैक्सीन कहते हैं। इस प्रकार जो पहली वैक्सीन तैयार की गई थी,
वह हेपेटाइटिस बी के लिए थी जिसे 1986 में मंजूर किया गया था।
दरअसल वायरस और बैक्टीरिया प्रजाति को अभी तक अधिकतर बीमारी फैलने और
मानव शरीर पर आक्रमण करने के लिए ही जाना जाता रहा है। पर सभी वायरस और
बैक्टीरिया ऐसे नहीं होते। कुछ तो मानव के मित्र होते हैं और सैकड़ों की
संख्या में मानव शरीर में मौजूद रहते हैं।और कुछ वायरस तो ऐसे होते हैं जो
बीमारी फैलाने वाले बैक्टीरिया को नष्ट करते हैं इन्हें बैक्टेरियो फेज के
नाम से जाना जाता है।
इसी प्रकार वायरस द्वारा कैंसर का इलाज खोजने की दिशा में भी
वैज्ञानिकों ने उत्साहवर्धक नतीजे प्राप्त किए हैं जिसे जीन थेरेपी कहा
जाता है। इसके द्वारा लाइलाज कहे जाने वाले कई आनुवांशिक रोगों का भी इलाज
खोजा जा रहा है। वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस के स्ट्रक्चर यानी उसके ढांचे
का पता लगा लिया है।अब उन्हें ऐसा वायरस जो ह्यूमन फ्रेंडली यानी मानव के
शरीर के अनुकूल हो, उसमें जेनेटिक इंजीनियरिंग की सहायता से ऐसे गुण विकसित
करने होंगे जो मानव शरीर को नुकसान पहुंचाए बिना शरीर में मौजूद कोरोना
वायरस के संपर्क में आते ही उसे नष्ट कर दे।
वैज्ञानिकों पर अविश्वास !
22 मई 2020: डोनाल्ड ट्रंप ने इस हफ्ते दो बार कहा कि हमारे देश के वैज्ञानिकों की बात बेसिर पैर की है. उनकी बातों में कोई सबूत नहीं है |
वायुप्रदूषण न बढ़े तो प्राकृतिक आपदाएँ नहीं रुक सकती हैं उसी पाकर से ऑड इवेन लगाने से वायु प्रदूषण नहीं रुक सकता !जिसप्रकार से नहाना बंद कर देने से बाढ़ नहीं रुक सकती !गमलों का पानी खाली कर देने से डेंगू नहीं रुक सकता उसी प्रकार से लॉकडाउन लगा देने से कोरोना संक्रमण नहीं रुक सकता है |
- खगोलविज्ञान -
चिकित्सावैज्ञानिकों के अनुसंधानों से अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि कोरोनावायरस मनुष्यकृत है या प्राकृतिक है !यदि यह वायरस मनुष्यकृत है तब तो इस बात का पता लगाना मानवीय प्रयासों से भी संभव हो सकता था कि कोरोना महामारी का जन्म कब हुआ कहाँ हुआ किस प्रकार से हुआ इसमें संक्रमकता कितनी है इसका प्रसार माध्यम क्या है ! इसका विस्तार कहाँ तक है इस संक्रमण के बढ़ने घटने पर मौसम का प्रभाव कितना है !इस वायरस का प्रभाव लगभग कितने दिनों तक रहता है !कैसे वातावरण में रहने से, क्या खाने पीने से या कैसे रहने से कोरोना वायरस से संक्रमित होने या संक्रमितलोगों में संक्रमण बढ़ने का खतरा अधिक रहता है | क्या खाने पीने से कैसे रहने से संक्रमण का खतरा कम रहता है | ऐसी और भी कोरोना वायरस से संबंधित सभी आवश्यक जानकारियाँ जुटाई जा सकती थीं किंतु ऐसा नहीं किया जा सका इसका मतलब है कि कोरोना वायरस मनुष्यकृत नहीं अपितु प्राकृतिक था |
कोरोना वायरस यदि वास्तव में प्राकृतिक ही है तब तो इसका अनुसंधान भी यंत्रों की अपेक्षा प्राकृतिक परिवर्तनों का अनुसंधान करके ही किया जाना चाहिए | प्रकृति में हमेंशा होते रहने वाले परिवर्तन समय के आधीन होते हैं जब जैसा समय होता है तब तैसे बदलाव होते हैं | समय में होने वाले अच्छे और बुरे परिवर्तनों को पता लगाने एवं इनका पूर्वानुमान जानने के लिए खगोलीय परिवर्तनों का अनुसंधान करना होता है क्योंकि खगोलीय ग्रहगति को समझे बिना अच्छे या बुरे समय के संचार को समझना केवल कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी होता है |
बुरे समय का प्रभाव प्रकृति पर पड़ने से
प्रकृतिविप्लव अर्थात ऋतुध्वंस होने लगता है| गर्मी की ऋतु में वर्षा और वर्षा ऋतु में बिलकुल सूखा या फिर बहुत अधिक वर्षा तथा सर्दी की ऋतु में या तो बहुत कम सर्दी या फिर बहुत अधिक सर्दी होने लगती है | हिंसक आँधी तूफ़ान बार
बार आने लगते हैं बुरे समय के ही प्रभाव से कुछ क्षेत्रों में भीषण गर्मी
के कारण सूखा ही सूखा दिखाई देता है तो कुछ क्षेत्रों में हिंसक भीषण
वर्षा बाढ़ बर्फबारी जैसी घटनाऍं बार बार घटित होते देखी जाने लगती हैं |
बुरे समय के प्रभाव से ही कुछ क्षेत्रों में वायु प्रदूषण का स्तर दिनोंदिन बढ़ता चला जाता है|कुछ
देशों प्रदेशों में भूकंप एवं
बज्रपात जैसी हिंसक दुर्घटनाएँ बार बार घटित होने लगती हैं |मनुष्यों से
लेकर पशु पक्षी तक सभी के स्वभावों में तामसी बदलाव आने के कारण सभी अपने
अपने स्वभावजन्य गुण छोड़ने एवं दूसरे के गुणों को ग्रहण करने लगते हैं
|
बुरे समय का प्रभाव पाताल की गहराई से लेकर आकाश की ऊँचाई तक विद्यमान रहता है | कुऍं नदी तालाबों झीलों तथा नदियों का जल महामारियों के प्रभाव से प्रभावित होने के कारण बिषैला हो जाता है बिषैली हवाएँ चलने लगती हैं हवा और पानी के बिषैला हो जाने से संपूर्ण प्रकृति पेड़पौधे बनौषधियाँ फलफूल शाक सब्जियाँ आदि सभी खाने पीने के पदार्थ संपूर्ण रूप से बिषैले हो जाते हैं जिन्हें खाने पीने से एवं ऐसे प्रदूषित वातावरण में रहने के कारण महामारी जनित संक्रमण का प्रभाव प्रायः सभी लोगों पर एक समान पड़ता है | इसके बाद भी उनका विशेष अधिक दुष्प्रभाव उन्हीं लोगों में दिखाई पड़ता है जिनकी शारीरिक मानसिक एवं आत्मिक प्रतिरोधक क्षमता विशेष दुर्बल होती है |
जिनका अपना समय विशेष अच्छा चल होता है जो भोजन लेते समय पथ्य परहेज का सेवन करते हैं जो नशे के सेवन से अपने शरीरों मन आदि को दूषित नहीं होने देते हैं | जो सदाचरण एवं ब्रह्मचर्य आदि संयम धारण करते हैं जो ईश्वराधन में रूचि का पालन करते हैं जो ईमानदारी पूर्वक धनार्जन करते हैं और अपने खून पसीने की कमाई से परिश्रम पूर्वक अर्जित धन से अपना एवं अपने परिवारों का भरण पोषण करते हैं जो अमर्यादित यौनाचार से दूर रहते हैं !ऐसे प्रतिरोधक क्षमता संपन्न लोग महामारी काल में भी महामारी से प्रभावित लोगों के बीच में रहने पर भी एवं महामारी से संक्रमितों का स्पर्श होने पर भी स्वस्थ जीवन व्यतीत किया करते हैं |
इसके बिपरीत प्रतिरोधक क्षमता से विहीन बहुत लोग नशे का सेवन करते हैं अमर्यादित यौनाचार में संलिप्त रहते हैं भ्रष्टाचार पूर्वक धनार्जन करके उसी से अपने पत्नी बच्चों एवं प्रिय परिवारों का भरण पोषण करते हैं ईश्वराराधन से विमुख सदाचरण विहीन जीवन जीते हैं | ऐसे साधन संपन्न एवं प्रतिरोधक क्षमता विहीन लोग कितने भी चिकित्सकों के संपर्क में रहकर कितने भी शक्तिबर्द्धक खानपान रस रसायनों का सेवन करके भी महामारी से प्रभावित होते देखे जाते हैं | ऐसे प्रतिरोधक क्षमता विहीन लोग कितनी भी शुद्ध पवित्र जगहों पर कितने भी संक्रमण मुक्त वातावरण में रहते हुए कैसे भी एकांत का सेवन करते रहें कितना भी किसी के स्पर्श से बचते रहें इसके बाद भी महामारी से संक्रमित होते देखे जाते हैं क्योंकि ऐसे ही प्रतिरोधक क्षमता विहीन लोगों का आश्रय लेकर महामारियाँ अपने प्रभाव का विस्तार करती हैं इसलिए ऐसे लोगों को संक्रमित होने के लिए किसी के स्पर्श की आवश्यकता ही नहीं होती है अपितु ये लोग स्वयं ही महामारियों के आश्रय स्थल होते हैं |महामारी से संक्रमित ऐसे लोगों पर औषधियों का प्रभाव विशेष अधिक नहीं पड़ता है |
जिन लोगों का समय कुछ अच्छा और कुछ बुरा होता है ऐसे मध्यमस्तरीय प्रतिरोधक क्षमता से संपन्न लोग महामारियों से संक्रमित होकर भी स्वस्थ और सुखी जीवन जीने में सफल होते देखे जाते हैं |
कुल मिलाकर बुरे समय के प्रभाव से महामारियाँ जन्म लेती हैं और बुरे समय का प्रभाव रहता है तब तक ऐसी महामारियों का संक्रमण बढ़ता चला जाता है और जैसे ही बुरा समय समाप्त होने लगता है वैसे ही महामारियाँ स्वतः समाप्त होने लग जाती हैं महामारी के समाप्त होने में किसी चिकित्सकीय प्रयास की कोई भूमिका नहीं होती है|
औषधियाँ हमेंशा रोगों से मुक्ति लिए ही बनाई जा सकती है महारोगों में औषधियों की कोई विशेष भूमिका नहीं होती है | महारोगों पर भी यदि औषधियों का अच्छा प्रभाव पड़ने ही लगे तो महारोग किस बात के !फिर तो वे भी रोगों की ही श्रेणी में आ जाएँगे|वस्तुतः महारोग या महामारी की श्रेणी में केवल वही रोग आते हैं जिनके न तो लक्षण निश्चित होते हैं और न ही औषधियाँ !बुरे समय के प्रभाव से होने वाली महामारियाँ समय का वेग अधिक होने के कारण हर पल अपना स्वरूप बदलती रहती हैं | इसीप्रकार से समय के प्रभाव के कारण ही औषधियाँ अपनी विशेषताओं को खोकर निर्वीर्य हो जाती हैं | इसलिए गुणहीन औषधियों के प्रयोग से कोई लाभ नहीं होने पाता है | महामारियाँ समाप्त होने का अंदाजा तभी लग पाता है जब चिकित्सकीय प्रयास रोगों पर अंकुश लगाने में सफल होने लगते हैं और हमेंशा चली जाती हैं तथा अच्छे समय के प्रभाव से महामारियाँ स्वतः समाप्त होने लग जाती हैं |
महामारी प्रारंभ होने के कुछ वर्ष पहले से लोगों
के स्वभाव तामसी होने लगते हैं | ब्यभिचार घूसखोरी नशाखोरी उन्माद पागलपन
हिंसा की भावना प्रबल होने लग जाती है| लोग कलह प्रिय क्रोध
प्रिय बिलासी होने लग जाते हैं| छोटे छोटे कारणों से हत्या एवं
आत्महत्या जैसी घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं |इसी उन्माद के कारण लोग अपने ही देश के शासकों के विरुद्ध बिना किसी विशेष कारण के ही आंदोलन संघर्ष षड्यंत्र आदि करने
लगते हैं | देशों की सीमाओं पर तनाव बढ़ने लगता है | कुछ देशों में अकारण ही आपसी तनाव पैदा हो जाता है इसलिए वे आपस में लड़ने के
लिए उतावले हो उठते हैं |
महामारी के प्रसार में सहायक चूहों,
टिड्डियों और पक्षियों का प्रजनन अधिक होने से इनकी पैदावार बहुत अधिक बढ़ने लग जाती है और जब तक महामारी रहती है तब तक बढ़ती चली जाती है|महामारी के प्रभाव से अधिक मात्रा में पैदा हुए हुए चूहों,
टिड्डियों और पक्षियों का विशाल समूह महामारी समाप्त होने के साथ ही साथ स्वतः नष्ट होते देखे जाते हैं |
कुल मिलाकर महामारी प्रारंभ होने के कुछ वर्ष पहले से लोग धीरे धीरे अपने अपने धर्म कर्म छोड़कर सदाचरण विहीन होने लगते हैं
केवल कर्म को ही प्रधान मानकर ईश्वरीय शक्तियों को नकारने लगते हैं परिहास करने लगते हैं उन्हें
लगने लगता है कि ईश्वर नाम की अवधारणा ही गलत है !उनका मानना होता है कि केवल कर्म के द्वारा ही अपनी इच्छा के अनुशार चिकित्सा समेत सभी कार्यों में सफलता पाई जा सकती है | चिकित्सकीय प्रयासों के द्वारा सभी रोगों से मुक्ति पाई जा सकती है आयुरक्षा की जा सकती है स्वास्थ्य रक्षा के लिए चिकित्सा ही सब कुछ है | विपरीत समय के प्रभाव से लोगों के मन में इस प्रकार की भावना आने लग जाती है |यह भ्रम तभी टूटता है जब समय प्रभाव से प्रकट हुई महामारियाँ अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए चिकित्सा व्यवस्था को निष्प्रभावी करके हुए संपूर्ण विश्व को अपने आधीन कर लेती है| ऐसी परिस्थिति में समय प्रभाव से ही संपूर्ण रोग लक्षणों की नियमावली एवं औषधियों के गुणधर्म कुछ समय के लिए शून्य कर दिए जाते हैं | जिससे लक्षणों को देखकर रोगों की पहचान कर पाना कठिन होता है और इसके बिना चिकित्सा करना भी संभव नहीं हो पाता है | इसके साथ ही समय प्रभाव से गुणरहित हुई औषधियॉँ भी महामारी में होने वाले रोगों पर निष्प्रभावी होती हैं |ऐसे कठिन समय में एक मात्र ईश्वरीय शक्तियाँ ही संसार के सभी प्राणियों का सहारा बनती हैं |भारत वर्ष के मनीषियों ने इसीलिए चेचक जैसी महामारियों को भी माता कहकर संबोधित किया है |
महामारियाँ मौसम और तनाव !
भूकंप आदि प्राकृतिक घटनाओं की तरह ही महामारियाँ भी प्राकृतिक रूप से ही घटित होती हैं इसलिए इसके अध्ययन अनुसंधान आदि की प्रक्रिया भी प्राकृतिक रूप से ही चलाई जानी चाहिए !इसका अनुसंधान भी प्रकृति और प्राकृतिक घटनाओं को सम्मिलित करके ही किया जाना चाहिए तभी तो महामारी से संबंधित किसी निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है |
इसी उद्देश्य से मैंने पिछले कुछ वर्षों से घटित हो रही कुछ बड़ी प्राकृतिक घटनाओं का डेटा संग्रह करना प्रारंभ कर दिया !क्योंकि कोरोना महामारी के बिषय में अध्ययन अनुसंधान आदि करने के लिए हमें पिछले कुछ वर्षों में घटित होती रही वैश्विक प्राकृतिक घटनाओं की जानकारी होनी चाहिए थी वे जिस समय घटित हुईं उनके बिषय में जानकारी होनी चाहिए थी उसी समय के आधार पर ही तो इस अनुसंधान को आगे बढ़ाया जाना था |
सीमित संसाधनों के कारण सूचना के स्रोत भी हमारे पास अत्यंत सीमित ही हैं इसलिए कोरोना महामारी के बिषय में वैश्विक प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में समयबद्ध जानकारी जुटा पाना हमारे लिए संभव नहीं था |इसलिए मुझे लगा कि भारतवर्ष को ही केंद्र में रखकर यदि अनुसंधान किया जाए तो भारतवर्ष एवं उसके आस पास के देशों में पिछले कुछ वर्षों में घटित प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में अनुसंधान करना चाहिए |
पिछले कुछ वर्षों से संपूर्ण प्रकृति में ही उथल पुथल मची हुई है !भारत के विभिन्न प्रदेशों में भूकंप की घटनाएँ बार बार घटित होती देखी जा रही हैं |कोरोनाकाल में भूकंप के झटके जब जब लगते रहे तब तब संक्रमितों की संख्या अचानक बढ़ जाती रही !इसका भी कोई कारण तो होगा !कोरोना वर्ष में मई के महीने तक वर्षा होती रही ऐसा हमेंशा तो नहीं होता था | बार बार हिंसक बज्रपात होते रहे जिसमें बहुत सारे लोग मारे गए |ऐसी घटनाएँ हमेंशा तो नहीं घटित होती रही हैं | वैसे भी विगत कुछ वर्षों से हिंसक आँधी तूफान एवं चक्रवात जैसी घटनाएँ घटित होते देखी जा रही हैं | हिंसक वर्षा एवं बाढ़ जैसी घटनाएँ घटित होती देखी जा रही हैं |पिछले कुछ वर्षों से वायुप्रदूषण गंभीर स्तर तक बढ़ते देखा जा रहा है | ऐसी और भी बहुत सारी प्राकृतिक सामाजिक आदि घटनाएँ पिछले छै सात वर्षों से ज्यादा घटित होते देखी जाती रही हैं वैसे सामान्य रूप से ऐसी घटनाएँ घटित होते नहीं दिखाई पड़ती हैं |
ऐसी परिस्थिति में मौसम विज्ञान संबंधी अनुसंधानों में वैज्ञानिकता होती तो ऐसी मौसम संबंधी घटनाओं के घटित होने के आधार पर कोरोना जैसी महामारी के आने के पहले ही महामारी के प्रारंभ होने से पहले ही महामारी के बिषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है ऐसी मौसम संबंधी घटनाओं के आधार पर ही इस बात पूर्वानुमान भी लगाया जा सकता था कि कोरोना महामारी से संबंधित संक्रमण घटने बढ़ने का समय कब कब होगा एवं इसके हमेंशा हमेंशा के लिए समाप्त होने के बिषय में उचित अनुमानित समय क्या होगा ?यह संक्रमण बढ़ने का कारण क्या है आदि और भी बहुत सारी महामारी से संबंधी बातों का अनुमान मौसम संबंधी घटनाओं को देखकर लगाया जा सकता था किंतु मौसम संबंधी विज्ञान इतना सक्षम नहीं है कि वो मौसम संबंधी घटनाओं के बिषय में पूर्वानुमान ही लगा सके ऐसी परिस्थिति में मौसम वैज्ञानिकों से यह अपेक्षा करना कतई ठीक नहीं होगा कि वे वर्षा जैसी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने के आधार भूत कारण खोज सकें !वैसे भी उपग्रहों रडारों के द्वारा आँधी तूफानों एवं बादलों की जासूसी करके उनके बढ़ने की गति और दिशा के आधार पर कहाँ कब किस प्रकार की घटनाएँ घटित हो सकती हैं उसका अंदाजा लगा लिया जाता है | ऐसी परिस्थिति में मौसम संबंधी ऐसे तीर तुक्के लगाने से महामारी जैसी घटनाओं के बिषय में कोई जानकारी या पूर्वानुमान कैसे प्राप्त किया जा सकता है |इसके लिए तो मौसम संबंधी वास्तविक विज्ञान चाहिए जो मौसम संबंधी घटनाओं का पूर्वानुमानलगाने के साथ साथ मौसम बिगड़ने के कारण होने वाले रोगों के बिषय में भी जानकारी प्राप्त की जा सके |
यही स्थिति भूकंपविज्ञान संबंधी अनुसंधानों की भी है जब भूकंपों के बिषय में अभी तक कोई विज्ञान ही नहीं खोजा जा सका है इसीलिए तो भूकंप आने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारणों की खोज अभी तक नहीं की जा सकी है और उन कारणों की बिना भूकंपों से प्रभावित होने वाली महामारियों के बिषय में कोई जानकारी कैसे जुटाई जा सकती है इसके लिए पहले तो भूकंप संबंधी जानकारी जुटाई जानी आवश्यक है |
वायुप्रदूषण बढ़ने के प्रभाव से कोरोना संक्रमण बढ़ जाता है ऐसा समय समय पर वैज्ञानिक भी स्वीकार करते रहे हैं !ऐसी परिस्थिति में कोरोना संक्रमण घटने बढ़ने का पूर्वानुमान लगाने के लिए सबसे पहले आवश्यक हो जाता है कि वायुप्रदूषण बढ़ने के आधारभूत जिम्मेदार वास्तविक कारण खोजे जाएँ जिनके कारण वायुप्रदूषण बढ़ता है उसके आधार पर वायु प्रदूषण बढ़ने के बिषय में पूर्वानुमान लगाया जाए यदि ऐसा कर पाने में सफलता मिल जाती है तो इसके आधार पर कोरोना संक्रमण बढ़ने के बिषय में पूर्वानुमान लगाना संभव हो सकता है ,किंतु अभी तक वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारण को ही नहीं खोजा जा सका है |
वायुप्रदूषण का पता लगाने के लिए वैज्ञानिक अनुसंधानों के अभाव में दशहरा आया तो रावण के जलने को दीवाली आई तो पटाखे फोड़ने को ,होली आई तो होली जलने को ,सर्दी आई तो एयरलॉक होने को, गर्मी आई तो तेज हवाओं के साथ धूल उड़ने को, धानकाटने के समय पराली जलाने को वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार मान लिया जाता है | इनमें से कोई कारण नहीं मिलने पर कुछ हमेंशा विद्यमान रहने वाले कारणों का चयन कर लिया जाता है क्योंकि ये हमेंशा ही चला करते हैं | निर्माणकार्यों वाहनों उद्योगों ईंट भट्ठों एवं हुक्का पीने वालों के मुख से निकलने वाले धुएँ को वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण मानकर काम चला लिया जाता है | यहाँ तक कि महिलाओं के द्वारा किए जाने वाले स्प्रे एवं धूप अगरबत्ती हवन या चूल्हा जलाए जाने जैसी और न जाने कितनी गतिविधियों को वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार बता दिया जाता है | ऐसी परिस्थिति में वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए बहुत सारे कारणों को जिम्मेदार बता दिया गया है इसलिए वायु प्रदूषण बढ़ने के बिषय में पूर्वानुमान लगा पाना कैसे संभव हो सकता है और उसके बिना उसके प्रभाव से बढ़ने वाले कोरोना जैसे संक्रमण के बढ़ने के बिषय में पूर्वानुमान लगा पाना कैसे संभव हो सकता है |
वैज्ञानिकों का मानना था कि कोरोना वायरस जैसे बिषाणु गर्मी की ऋतु में तापमान के बढ़ने से मर जाते हैं और तापमान घटने से बढ़ जाते हैं | इसीलिए वैज्ञानिकों के द्वारा कहा गया था कि गर्मी बढ़ने पर कोरोना समाप्त हो जाएगा और सर्दी प्रारंभ होने से पहले यह भी कहा गया था कि सर्दी बढ़ने पर कोरोना संक्रमण बहुत अधिक बढ़ जाएगा !किंतु न तो गर्मी बढ़ने से कोरोना संक्रमण कम हुआ और न ही सर्दी बढ़ने पर कोरोना संक्रमण बढ़ा दोनों अनुमान गलत निकल गए !किंतु यदि ऐसा होता भी तो दूसरी बड़ी समस्या यह थी कि तापमान बढ़ने घटने के बिषय में सही सटीक पूर्वानुमान लगाने के लिए अभी तक कोई वैज्ञानिक अनुसंधान सफल ही नहीं हो सके हैं एवं सर्दी की ऋतु में तापमान घटने के लिए पूर्वानुमान व्यक्त कर दिए जाते हैं यह प्रायः सही भी निकल जाता है और इसके लिए वैज्ञानिक अनुसंधानों या पूर्वानुमानों की आवश्यकता भी नहीं होती है क्योंकि यही तो प्रकृति क्रम है इसलिए ऐसा तो होगा ही किंतु पूर्वानुमानों की आवश्यकता तो तब होती है जब सर्दी की ऋतु में भी सर्दी बहुत कम या बहुत अधिक हो इसी प्रकार गरमी की ऋतु में भी जब गर्मी बहुत अधिक या बहुत कम हो या गर्मी की ऋतु में वर्षा होने लगे ऐसी परिस्थिति को ही सही सही समझने के लिए ही तो वैज्ञानिक अनुसंधानों की आवश्यकता होती है |क्योंकि ऐसा वातावरण रोगों की उत्पत्ति एवं महामारी का संक्रमण बढ़ने में सहायक माना गया है इसलिए ऐसे ऋतुध्वंस को आगे से आगे समझने के लिए वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर लगाए गए सही एवं सटीक पूर्वानुमानों कीआवश्यकता होती है | उसी के आधार पर महामारी आदि से संबंधित पूर्वानुमान लगाने में मदद मिलती है किंतु दुर्भाग्य से मौसम संबंधी ऐसी परिस्थितियों का पूर्वानुमान लगाने के लिए अभी तक कोई सही एवं सटीक वैज्ञानिक अनुसंधान विकसित ही नहीं किए जा सके हैं इसलिए प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने के लिए वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर जो मौसम संबंधी जो तीरतुक्के जिम्मेदार लोगों के द्वारा लगाए भी जाते हैं वे गलत निकल जाते हैं ऐसा होने के लिए वे लोग या तो आश्चर्य व्यक्त कर देते हैं या रिसर्च की आवश्यकता बता देते हैं या फिर जलवायुपरिवर्तन जैसे काल्पनिक बड़े नामों का सहारा लेकर पूर्वानुमान गलत होने के लिए उन्हें ही जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है | यही कारण है कि प्रकृतिक्रम के अनुशार कोरोना वर्ष (2020) की गर्मी की ऋतु में तापमान बढ़ना निश्चित था ही किंतु मई महीने तक वर्षा होती रही ऐसी परिस्थिति में अपेक्षित तापमान बढ़ना संभव ही नहीं हो पाया !ऐसी परिस्थिति में तापमान घटने और बढ़ने के लिए जिम्मेदार कारणों को चिन्हित करके यदि अनुसंधान पूर्वक उनके बिषय में पूर्वानुमान लगाने का विज्ञान विकसित किया जा सका होता तभी तो तापमान बढ़ने और घटने के बिषय में पूर्वानुमान लगा पाना संभव था !इसी तापमान से संबंधित पूर्वानुमान के आधार पर ही तो महामारी से संबंधित संक्रमण घटने बढ़ने के बिषय में पूर्वानुमान लगाया जाना था |
वर्तमान समय में आपराधिक घटनाएँ बढ़ने का कारण भी मौसम संबंधी व्यतिक्रम ही था !प्रकृति के साथ साथ ही जीवन भी चलता है इसीलिए प्रकृति की तरह ही जीवन में भी पिछले कुछ वर्षों से उथल पुथल मची हुई देखी जा रही थी लोगों के स्वभाव तामसी होते जा रहे हैं इसीलिए समाज में वैमनस्य बढ़ाने वाली घटनाएँ अधिक घटित होते देखी जा रही हैं !देश की सभी सीमाओं पर तनाव हिंसा घुसपैठ विस्फोटकों की बाढ़ एवं आतंकी घटनाएँ बार बार घटित होती देखी जाती रही हैं | चीन पाकिस्तान आदि दोनों तरफ से तनाव तैयार करने के लिए प्रयास संपूर्ण कोरोना काल में किए जाते रहे हैं |मौसम संबंधी पूर्वानुमान का अंदाजा न होने के कारण इस बात का पूर्वानुमान लगाना कठिन हो जाता है कि किस देश या स्थान पर किस समय किस प्रकार के अपराध संभावित हो सकते हैं |
भारत समेत पाकिस्तान अफगानिस्तान बाँगलादेश चीन नेपाल यहाँ तक कि अमेरिका आदि देशों में भी स्थापित अपनी ही सरकारों को अस्थिर करने के प्रयास किए जाते रहे हैं सरकारों के विरुद्ध हिंसकआंदोलन दंगे पत्थरबाजी एवं छोटी छोटी बातों पर होती हत्या आत्महत्या जैसी हिंसक घटनाएँ प्राकृतिक विक्षोभ की सूचना महामारी प्रारंभ होने के कई वर्ष पहले से देने लगी थीं |
इतना ही नहीं अपितु महामारी आने के कुछ वर्ष पहले से प्राकृतिकपरिवर्तनों के बुरे प्रभाव से समाज का चिंतन दिनोंदिन दूषित होता जा रहा था !इसीलिए महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार ,ब्यभिचार ,बाबाओं ,शिक्षकों नेताओं अफसरों की ब्यभिचारिक घटनाओं में संलिप्तता की घटनाएँ दिनोंदिन बढ़ती जा रही थीं | नेताओं और अधिकारियों की बढ़ती घूसखोरी भ्रष्टाचार चोरी डकैती अपहरण हत्या फिरौती वसूली मिलावट खोरी जैसे जघन्य अपराधों में संलिप्तता जैसी घटनाएँ अक्सर घटित होने लगी थीं |
माता पिता जैसे ज्येष्ठ श्रेष्ठ लोगों का अपमान अवमानना तिरस्कार गोहत्या भ्रूण हत्या जैसी अप्रिय घटनाएँ नास्तिकता,विश्वासघात,असहनशीलता के कारण बिखरते परिवार एवं टूटतेविवाह तथा स्वजनों से बिगड़ते संबंध !ब्यभिचार प्रधान वेषभूषा ,अनियंत्रित खानपान रहन सहन तथा जीवन के सभी क्षेत्रों में संयम के टूटते तटबंध समाज के सभी वर्गों में एवं जीवन के सभी क्षेत्रों में होता पतन इस बात के संकेत दे रहा था कि प्रकृति में तामसी प्रवृत्ति सीमा से अधिक बढ़ चुकी है और प्राकृतिक वातावरण दिनोंदिन बिषैला होता जा रहा है |
ऐसा सबकुछ सामान्य रूप से तो हमेंशा ही घटित होता रहता है किंतु ऐसी घटनाओं की जब अधिकता होने लगती है तो महामारी जैसी घटनाओं की संभावना अधिक बनते देखी जाती है |
ऐसा प्रायः हमेंशा से होता चला आ रहा है जिसमें प्रत्येक लगभग 80 वर्षों के बाद क्रमशः समय बिगड़ने लगता है समय का प्रभाव प्राकृतिक वातावरण पर पड़ता है जिससे मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाएँ ऋतु मर्यादा का अतिक्रमण करने लगती हैं बार बार ऋतुध्वंस होने लगता है सर्दी गर्मी बर्षा आदि का प्रभाव अपनी अपनी ऋतुओं में बहुत कम या बहुत अधिक होने लगता है और सभी ऋतुएँ अपना अपना प्रभाव दूसरी ऋतुओं में प्रकट करने लगती हैं |
प्राकृतिक वातावरण बिगड़ने से हवा और जल दूषित होने लगते हैं इसका दुष्प्रभाव वृक्षों बनस्पतियों अन्न आदि की फसलों शाक सब्जियों पर पड़ता है जिससे खान पान की समस्त वस्तुएँ प्रदूषित होने लगती हैं जिसे खाने पीने का वैसा ही प्रभाव मन बुद्धि बिचारों चिंतन आदि पर पड़ता है | प्रकृति से लेकर जीवन तक घटित होने वाली ऐसी घटनाएँ भविष्य में संभावित महामारियों समेत समस्त प्राकृतिक आपदाओं की सूचना दे रही होती हैं |
महामारियाँ घटित होने के बाद प्रकृति से लेकर जीवन तक के समस्त पक्षों में क्रमिक सुधार प्रारंभ होता है जो लगभग 50 वर्षों तक इसी निरंतरता में आगे बढ़ता जाता है उसके बाद पुनः क्षरण प्रारंभ होता है और इसी अनुपात में क्रमशः क्षरण होता चला जाता है |धीरे धीरे पुनः
मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाएँ ऋतु मर्यादा का अतिक्रमण करने लगती हैं बार
बार ऋतुध्वंस होने लगता है सर्दी गर्मी बर्षा आदि का प्रभाव अपनी अपनी
ऋतुओं में बहुत कम या बहुत अधिक होने लगता है और सभी ऋतुएँ अपना अपना
प्रभाव दूसरी ऋतुओं में प्रकट करने लगती हैं | उससे चिंतन दिनोंदिन दूषित होता चला जाता है और प्रत्येक 90 से 110 वर्ष के बीच महामारियाँ बार बार आती जाती रहती हैं यह प्रकृति का चक्र है जो हमेंशा एक जैसा चला करता है |
सन 2020 में कोरोना महामारी आई है |इसके सौ वर्ष पूर्वस्पैनिश फ्लू तथा उसके सौ वर्ष पूर्व हैजा एवं उसके सौ वर्ष पहले हैजा तथा उसके सौ वर्ष पूर्व प्लेग
स्पैनिश फ्लू ने 1918 से 1919
:इससे 100 वर्ष पूर्व स्पैनिश फ्लू ने 1918 से 1919
के बीच में कहर मचाया था। इस महामारी से दुनिया भर में करीब 50 करोड़ लोग
संक्रमित हुए थे, जबकि करीब 5 करोड़ लोगों ने अपनी जान गंवाई थी। यद्यपि इस
महामारी की शुरुआत स्पेन से नहीं हुई थी, फिर भी स्पेन एक ऐसा देश था, जिसने इस महामारी के फैलने की
खबर को दबाया नहीं और पूरी ईमानदारी से सबके सामने रखा था ।इसलिए इसका नाम स्पैनिश फ्लू रखा
गया।
इससे लगभग 100 वर्ष पहले सन् 1817 में कोलकाता में हैजा फैलना शुरू हुआ था ।
हैजा धीरे धीरे संपूर्ण एशियाई देशों में फैलता चला गया था उसमें भी
एक लाख से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई थी |
उससे 100 वर्ष पहले सन् 1720 में पूरी दुनिया में प्लेग फैला था।
1720 की शुरुआत
में साउदर्न फ्रांस में करीब 1.26 लाख लोग प्लेग की वजह से अपनी जान गंवा
बैठे थे। प्लेग का कहर 1720 से 1722 के बीच पूरी दुनियाँ में देखने को मिला था। इसे ग्रेट
प्लेग ऑफ मार्सिले कहा जाता है|
इससे पहले भी ऐसा होता रहा होगा क्योंकि समय विज्ञान की दृष्टि से ऐसा विपरीत समय प्रत्येक सौ वर्ष में लौटकर मनुष्यों के स्वच्छंद आचरण में अंकुश लगाया करता है फिर धीरे धीरे 100 वर्षों में मानव मन विकृतियों का शिकार होता है फिर समय किसी न किसी महामारी से दण्डित करके मनुष्यों को धर्मकर्म संयम सदाचरण सद्भावना परोपकार आदि भावों से आप्लावित किया करता है |
महामारी समेत समस्त प्राकृतिक घटनाएँ समय रूपी धागे में माला की तरह पिरोई हुई होती हैं समय बीतता जाता है घटनाएँ घटित होती जाती हैं|जिसप्रकार से सर्दी गर्मी और वर्षा आदि ऋतुएँ समय जनित घटनाएँ हैं इसीलिए इन ऋतुओं के आने और जाने में मनुष्यकृत प्रयासों की कोई भूमिका नहीं होती है समय बीतता जाता है और घटनाएँ घटित होती जाती हैं | समय समाप्त होते ही ऋतुओं का प्रभाव स्वतः समाप्त होने लगता है | समय बीतते ही सर्दी की ऋतु समाप्त हो जाती है उसके साथ ही साथ सर्दी का प्रभाव भी स्वतः समाप्त हो जाता है | उसके बाद बिना किसी प्रयास के स्वतः ही गर्मी की ऋतु प्रारंभ हो जाती है और अपने समय पर गर्मी की ऋतु स्वतः समाप्त हो जाती है तो गर्मी का प्रभाव भी स्वतः समाप्त होता जाता है इसके बाद बिना किसी मनुष्यकृत प्रयास के वर्षा ऋतु प्रारंभ हो जाती है |इसी प्रकार से महामारियाँ भी अपने अपने समय से आती जाती रहती हैं |
इतिहास और घटनाएँ
प्रथम विश्व युद्ध: यूरोप में होने वाला यह एक वैश्विक युद्ध था जो 28 जुलाई 1914 से 11 नवंबर 1918 तक चला था। इस
युद्ध ने 6 करोड़ यूरोपीय व्यक्तियों (गोरों) सहित 7 करोड़ से अधिक सैन्य
कर्मियों को एकत्र करने का नेतृत्व किया |
जलियाँवाला बाग़ नरसंहार:13 अप्रैल 1919. को जलियाँवाला बाग़ नरसंहार काण्ड हुआ था को ये वो दिन था जो हर भारतीय को सदियों के लिए एक गहरा जख़्म दे गया.
हर सदी में आने वाली इन महामारियों की कहानी. क्यों हर 100 साल में होता है
इंसानी सभ्यता पर हमला. क्यों सब कुछ होते हुए भी इन महामारियों के सामने
बेबस हो जाता है इंसान. पिछली चार सदियों से हर सौ साल पर अलग-अलग
महामारियों ने दुनिया पर हमला किया. और हर बार लाखों लोगों को बेमौत मार
गईं ये महामारियां. और हर बार हमने इन महामारियों का इलाज ढूंढने में इतनी
देर कर दी कि बहुत देर हो गई
पथ पर
कुल मिलाकर महामारी जैसी घटना समय विज्ञान की दृष्टि से बिचार करने
महामारी के बिषय में की जाने वाली वैज्ञानिक कल्पनाएँ
कुछ इस प्रकार की देखी जाती हैं जिनमें बताया जाता है कि महामारियाँ पूरी
दुनिया में एक साथ नहीं फैलती हैं . यह किसी एक देश से शुरू होती हैं फिर
वहां से दूसरे देश में लोग जाते हैं वहां संक्रमण होता है. फिर वहां से
तीसरे देश में लोग जाते हैं वहां संक्रमण होता है और यह कई चरणों में पूरी
दुनियाँ में फैलता है !
अब कहा जा रहा है
कि भविष्य में आने वाली संभावित महामारियों के लिए हमें अभी से तैयारियाँ
शुरू कर देनी चाहिए किंतु तैयारियों के रूप में किया क्या जाएगा ये अभी तक
स्पष्ट नहीं है रूप में
महामारी से
साल 1918 में दुनियाभर के 5० करोड़ से ज्यादा लोग संक्रमित हुए थे और करीब
2-5 करोड़ लोगों की जान चली गई थी चूंकि न तो स्पेनिश फ्लू का कोई इलाज था न
टीका, जैसा कि अभी कोरोना वायरस
संक्रमण के समय है, इसलिए यह बीमारी बड़े पैमाने पर फैलती चली गई.1918 की
महामारी से कोई देश अछूता नहीं था.
स्पेनिश फ्लू 1918 के बसंत काल में अमेरिका से शुरू हुआ था,साइंटिस्ट्स, डॉक्टर्स और हेल्थ वर्कर्स के लिए इस बीमारी को पहचानना
मुश्किल हो गया था। ये इतनी तेज से गहरा असर कर रही थी कि इसे काबू करना
संभव नहीं था। उस दौर में इस महामारी के इलाज के लिए न तो कोई सटीक दवा थी
और न ही कोई वैक्सीन।
किसी महामारी के फैलने की जांच जासूसी पड़ताल जैसी ही होती है। किसी जासूसी
जांच में सबूतों के गायब होने से पहले अपराध की जगह पर पहुंचना होता है,
प्रत्यक्षदर्शियों से बात करनी होती है। इसके बाद जांच की शुरुआत होती है।
सबूतों की कड़ियों को जोड़ते हुए महामारी को खोजना होगा !
समय प्रभाव से जब जब संक्रमितों की संख्या
घटने लगती है तब तब वैक्सीन बनाने वाले अपने ट्रायल को सफल बताने लगते हैं
और समय प्रभाव से ही जब जब संक्रमितों की संख्या बढ़ने लगती है तब तब
ट्रायल को असफल बताने लग जाते हैं |
इसीक्रम में जब संक्रमितों
की संख्या स्थायी रूप से घटने लगती है और रिकवरी स्थायी रूप से बढ़ने लगती
है उस समय जिस वैक्सीन का ट्रायल चल रहा होता है उसे सफल मान लिया जाता है |
ऐसी परिस्थिति में जिन्हें वैक्सीन दी जा रही होती है जितने प्रतिशत वे
स्वस्थ हो रहे होते हैं उतने ही प्रतिशत वे लोग भी स्वस्थ हो रहे होते हैं
जो वैक्सीन नहीं ले रहे होते हैं ऐसी परिस्थिति में इसका परीक्षण करना संभव
नहीं हो पाता है कि स्वस्थ होने वाले रोगी वैक्सीन के प्रभाव से स्वस्थ हो
रहे हैं या अपने आपसे !
भारत में अबकी बार भी यही हुआ जैसे ही 18 सितंबर के बाद समयप्रभाव से कोरोना संक्रमितों की संख्या तेजी से कम होने लगी और रिकवरी बढ़ती चली गई तो बहुत लोगों ने अपनी अपनी दवाओं वैक्सीनों को कोरोना से मुक्ति दिलाने हेतु सफल मान लिया |
यही हमेंशा से होता रहा है भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ आदि अन्य प्राकृतिक
आपदाओं की तरह ही महामारियाँ भी हमेंशा टिकने के लिए नहीं आती हैं वे भी
अपने समय से आती और समय से ही जाती रही हैं |
आज कुछ लोगों को लगता है कि पोलियो चेचक जैसे रोगों को वैक्सीन बनाकर
ही भगाया जा सका अन्यथा वे हमेंशा ही यहीं बनी रहतीं !उन्हें चिंतन करना
चाहिए कि ऐसा तो पहले भी नहीं था कि हमेंशा से ही सभी लोग पोलियो चेचक जैसे रोगों से ग्रस्त रहे हों वैक्सीन बनने के बाद ही उन्हें ऐसे रोगों से मुक्ति मिली हो !
सच्चाई तो यह है कि जो लोग कोरोना वैक्सीन या महामारियों से मुक्ति दिलाने
वाली दवा या वैक्सीन बनाने का दावा करते हैं उन्हें ही यह नहीं पता होता
है कि ऐसे रोग अचानक पैदा होने का कारण क्या है इनके लक्षण क्या हैं आदि
आदि !
संयोग ही इसे कहा जाएगा जब जिस महारोग के समाप्त होने का समय आ चुका
होता है उस समय उसे समाप्त होना ही होता है ऐसे समय जो वैक्सीन बनकर ट्रायल
पर चल रही होती हैं उन्हें ही ऐसे रोगों की वैक्सीन मान लिया जाता है ये मजबूरी भी है क्योंकि महामारी के समाप्त होने के बाद उस औषधि या वैक्सीन आदि का परीक्षण कर पाना संभव भी नहीं होता है |
16- 6-2020 को चेन्नई के भारतीय वैज्ञानिकन्यूक्लियर और अर्थ साइंटिस्ट डॉ.
के एल सुंदर कृष्णाने दावा किया है कि कोविड-19 महामारी किसी तरह पिछले साल 26 दिसंबर 2019 को हुए एक सूर्य ग्रहण
से जुड़ी हुई है. डॉ. के एल सुंदर कृष्ण ने एएनआई को बताया
कि उनका मानना है कि 26 दिसंबर को हुए ग्रहण ने सौर मंडल में ग्रह विन्यास
को बदल दिया.है कृष्णा का कहना है कि कोरोना वायरस के प्रकोप और सूर्य
ग्रहण के बीच सीधा कनेक्शन है जो 26 दिसंबर 2019 को हुआ था. उनका दावा है
कि आने वाले 21 जून के सूर्यग्रहण के दिन कोरोना वायरस खत्म हो जाएगा.| डॉ. कृष्णा के मुताबिक, ग्रहों के बीच ऊर्जा में बदलाव
के कारण यह वायरस ऊपरी वायुमंडल से उत्पन्न हुआ है। इसी बदलाव के कारण धरती
पर उचित वातावरण बना। ये न्यूट्रॉन सूर्य की सबसे अधिक विखंडन ऊर्जा से
निकल रहे हैं। न्यूक्लियर फॉर्मेशन की यह प्रक्रिया बाहरी मटेरियल के कारण
शुरू हुई होगी, जो ऊपरी वायुमंडल में बायो मॉलिक्यूल और बायो न्यूक्लियर के
संपर्क में आने से हो सकता है। बायो मॉलिक्यूल संरचना (प्रोटीन) का
म्यूटेशन इस वायरस का एक संभावित स्रोत हो सकता है। सौर मंडल में ग्रहों की
स्थिति में बदलाव हुआ है।
विशेष बात:डॉ.
के एल सुंदर कृष्णाजी की बातों से यह सिद्ध होता है कि खगोलीय घटनाओं का प्रभाव प्राकृतिक घटनाओं के साथसाथ महामारियों आदि पर भी पड़ता हैइसीलिए उससे प्रकृति एवं जीवन दोनोंही प्रभावित होते हैं |
मैं पिछले 25 वर्षों से खगोलविज्ञान और मौसम एवं मौसम और महामारीसे
संबंधित बिषयों में खगोलविज्ञान और आयुर्वेद के संयुक्त अध्ययन के अनुशार
अनुसंधान करता आ रहा हूँ !खगोलीय परिवर्तनों का प्रभाव मौसम पर पड़ता है और
मौसम का प्रभाव स्वास्थ्य पर पड़ता है | इसी क्रम में खगोलीय बड़े
परिवर्तनों का प्रभाव बड़ी संख्या में लोगों पर पड़ता है उससे महामारी जैसी
घटनाएँ घटित होती हैं |
इसीलिए आयुर्वेद के शीर्षग्रंथ 'चरकसंहिता' में वर्णित प्रक्रिया के आधार
पर मैंने महामारी के बिषय में अनुसंधान प्रारंभ किया था उसके आधार पर
महामारी के बिषय में जो सच्चाई पता लगी वो मैनें प्रधानमंत्री जी की मेल पर
19 मार्च 2020 को भेज दी थी | जिसमें लिखा था "महामारी प्राकृतिक है ,हवा
में व्याप्त है,इसके लक्षण खोज पाना असंभव होगा एवं इसकी औषधि नहीं बनाई
जा सकेगी !प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने से बचाव हो सकेगा और 6 मई से इस
महामारी का प्रथम चरण समाप्त हो जाएगा !"
महामारी के दूसरे चरण के बिषय में प्रधानमंत्री जी को दूसरी मेल मैंने 16
जून 2020 को भेजी थी !उसमें लिखा था कि यह कोरोना महामारी 8 अगस्त 2020 से
पुनः बढ़नी प्रारंभ होगी जो क्रमशः बढ़ते बढ़ते 24 सितंबर 2020 तक शिखर पर
पहुँचेगी और बिना किसी दवा या वैक्सीन के ही 25 सितंबर 2020 से यह महामारी
स्वतः समाप्त होनी प्रारंभ होगी जो 16 नवंबर तक क्रमशः हमेंशा हमेंशा के
लिए समाप्त होती चली जाएगी | "
वैक्सीन के बिषय में मैंने 7 नवंबर को प्रधानमंत्री जी को जो मेल भेजी
थी उसमें लिखा है -"कोरोना 25 सितंबर से समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा !
ऐसी परिस्थिति में 25 सितंबर के बाद बनी किसी भी औषधि या वैक्सीन के
प्रभाव का परीक्षण होना संभव न हो पाने के कारण उसे कोरोना की औषधि या
वैक्सीन के रूप में मान्यता दिया जाना न्याय संगत नहीं होगा |"
हमारे द्वारा महामारी के बिषय में लगाए गए ये सभी पूर्वानुमान अभी तक
सही होते देखे जा रहे हैं ऐसी परिस्थिति में 16 नवंबर के बाद संपूर्ण वायु
मंडल कोरोना मुक्त हो चुका है उसी का प्रभाव है कि कोरोना संक्रमितों की
संख्या दिनों दिन कम होती जा रही है | विशेष कर भारत में तो अब ढाई लाख से
भी कम कोरोना संक्रमितों की संख्या बची है वो भी दिनों दिन घटती जा रही है
परिस्थिति में वैक्सीन लगाए जाने से उसका कोई प्रभाव पड़ता भी है या नहीं
इसका परीक्षण कैसे किया जा सकेगा ?
ऐसी परिस्थिति में वैक्सीन जो लगवाएंगे और जो नहीं लगवाएँगे उन
दोनों के स्वास्थ्य में किस प्रकार से कितना अंतर दिखाई देगा उसका अनुमान
क्या है ?महामारियों और उसके बिषय में बनाई जाने जाने वाली औषधियों
वैक्सीनों आदि के बिषय में इस भ्रम निवारण प्रायः कभी नहीं हो पाता है
किंतु सच्चाई तो सामने लाई ही जानी चाहिए यह आवश्यक भी है|
खगोलविज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो महामारी भी भूकंप ,आँधी तूफानों आदि की तरह की ही प्राकृतिक
आपदा है जिस प्रकार से आँधी तूफानों भूकंपों को घटित होने को किसी वैक्सीन
से नहीं रोका जा सकता है उसी प्रकार से किसी भी महामारी को किसी वैक्सीन से होने वाला नुक्सान इसलिए इसका मतलब यह भी नहीं कि जब तक कोरोना महामारी का प्रकोप रहा तब तक जो लोग
प्रधानमंत्री जी को भेजी गई मेलें देखने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें !
01 May 2020 को प्रकाशित :अमेरिका ने अब माना, 'मानवनिर्मित' नहीं है कोविड-19 वायरस,इंटेलिजेंस कम्युनिटी (आईसी) भी वैज्ञानिकों
की व्यापक सहमति के साथ बिन्दु पर पहुंची है कि कोविड-19 मानव निर्मित
नहीं है और न ही यह अनुवांशिक तौर पर संशोधित है।
किसी महामारी के फैलने की जांच जासूसी पड़ताल जैसी ही होती है। किसी जासूसी
जांच में सबूतों के गायब होने से पहले अपराध की जगह पर पहुंचना होता है,
प्रत्यक्षदर्शियों से बात करनी होती है। इसके बाद जांच की शुरुआत होती है।
सबूतों की कड़ियों को जोड़ते हुए महामारी को खोजना होगा !
पहली मेल में व्यक्त पूर्वानुमान !
01
Apr 2020 अब सवाल यह उठता है कि कोरोना वायरस के इलाज के लिए अब तक कोई
दवा दुनिया के किसी देश के पास उपलब्ध नहीं है तो फिर लोग ठीक कैसे हो रहे
हैं? विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि अब तक इसकी कोई दवा उपबल्ध नहीं
है। दवा बनाने के लिए बहुत से देश लगातार कोशिश कर रहे हैं !जहाँ एक ओर
कोरोना अनियंत्रित होता जा रहा है उसके रोग लक्षण स्वभाव विस्तार प्रसार
माध्यम आदि किसी को पता ही नहीं लग रहा है चिकित्सक देखते रह जा रहे हैं
सघन चिकित्सा कक्ष में भी लोग मरते जा रहे हैं कोई दवा कोई वैक्सीन आदि कुछ
भी बचाव के लिए नहीं है इसके बाद भी कुछ लोग स्वयं भी स्वस्थ होते जा रहे हैं !
No comments:
Post a Comment