पुलिस पर पॉलिस की जरूरत !  सरकार यदि ऐसा कर पाने में सफल हुई तो वास्तव में अच्छे दिन आएँगे ही !अन्यथा अच्छे दिनों की बात कहकर लोग उपहास ही करते रहेंगे !
  पुलिस जनता के मन में अपने विभाग के प्रति बढ़ते अविश्वास को दूर करने का प्रयास करे ताकि जनता उसके साथ विश्वास  पूर्वक खड़ी हो सके और जिस दिन जनता का भरोस जीतने में कामयाब हो जाएगी पुलिस उस दिन अपराधियों के आचरण पर केवल  अंकुश ही नहीं लगेगा अपितु अपना समाज अपराध मुक्त होने की ओर अग्रसर होगा !
     "आखिर किसी मंत्री की खोई हुई भैंसें या कुत्ते कैसे खोज लेती है पुलिस और किसी के गायब बच्चों को नहीं खोज पाती !" ये अंतर समाप्त करने की जिम्मेदारी पुलिस विभाग स्वयं ले !तब पुलिस पर बढ़ेगा जनता का भरोस !  
   आज पुलिस वालों तक पर लोग हाथ छोड़ने या हमले करने लगे हैं ये गंभीर चिंता का विषय है  क्योंकि पुलिस को तो हर जगह हर परिस्थिति में पहुँचना ही होता है और हर किसी से जूझना ही होता है यदि पुलिस ईमानदारी पूर्वक शीघ्र ही अपने सम्मान के लिए सतर्क नहीं हुई तो बाकी समाज की जो दुर्दशा होगी वो तो होगी ही पुलिस भी सुरक्षित नहीं होगी अपराधियों के हौसले दिनोंदिन इतने बढ़ते जाएँगे !
      पुलिस का गौरव गिराने में दो लोगों की बड़ी भूमिका है एक तो पुलिस के विभाग के ही घूस खोर लोग और दूसए वे नेता जो दरोगा जी के थप्पड़ मार कर अपनी नेतागिरी चमकाने के चक्कर में होते हैं  उन्हें भी सोचना चाहिए कि पुलिस का सम्मान यदि हम नहीं करेंगे तो कोई और क्यों करेगा और पुलिस का सम्मान संकट में पड़ते ही हम एवं हमारी पारिवारिक व्यापारिक सामाजिक आदि सारी सुरक्षा संकट में पड़ जाती है इस लिए हमें प्रयास करके कभी भी ईमानदार पुलिस कर्मियों की प्रतिष्ठा घटने नहीं देनी चाहिए !और बेईमान पुलिस कर्मियों पर नियंत्रण पुलिस अंदर से लगाए !
   जो पुलिस वाले पैसे लेकर गलत काम करने की अनुमति दे देते हैं वो वास्तव में पुलिस विभाग को बदनाम करने के अपराधी हैं क्योंकि गलत काम करने वालों की शिकायत जो ऐसे पुलिस वालों से करता है उसकी सूचना शिकायत करने वाले के नाम पते के साथ वे तुरंत अपराधियों को दे देते हैं क्योंकि वो इसी के पैसे ले लेते हैं । फिर होती है शिकायत करता की मरम्मत जिसमें वो अपराधी उसे एवं उसके परिवार को सभी प्रकार से प्रताड़ित करते हैं जिसमें वो बिलकुल अकेला होता है ! इसका दुष्परिणाम ये होता है कि इसके बाद कोई कितना भी बड़ा अपराध क्यों न करता रहे किन्तु वो व्यक्ति आँखें झुका कर निकल जाता है किन्तु पुलिस को सूचना देने की हिम्मत नहीं करता है उससे प्रेरित होकर अन्य लोग भी ऐसा करने लगते हैं अब अपराध का सपना तो पुलिस को होगा नहीं अब तो जब कोई अपराधी ही गलत काम करने की अनुमति लेने आएगा तभी पता लग पाएगा किन्तु जिसे पता लगेगा वो पकड़ेगा क्यों ?और जो पकड़ सकता होगा उसे वो मिलेगा ही क्यों ?इतने मूर्ख तो अपराधी भी नहीं होते हैं ! 
   ऐसे घूसखोर पुलिस के लोगों की  जब कहीं बहुत अधिक भद्द पिटने लगती है और अपनी ही नौकरी पर बन आती है  तो फिर सगे किसी के नहीं होते और अपराधी को पकड़ कर मीडिया के सामने नहा धोकर खड़े हो जाते हैं और बाकायदा करते हैं प्रेस कांफ्रेंस ! कहाँ कितने तीर मारे तब पकड़ में आए अपराधी आदि सबकुछ बड़े विस्तार पूर्वक बताते हैं ! किन्तु इस बात का उनके पास कोई जवाब नहीं होता है कि यह गलत काम आखिर आज तक हो क्यों रहा था और यदि आपको पता नहीं था तो क्यों ?आपका सूचना तंत्र इतना कमजोर क्यों है  ? 
   दिल्ली जैसी राष्ट्रीय राजधानी में पार्क में लड़के लड़कियों के जोड़े बैठकर अश्लील हरकतें बड़ी ठसक में करते हैं कोई रोक ले उन्हें !एक दिन मेरे सामने किसी ने थाने में फोन कर दिया तो वहाँ से दो लोग आए और गाली गलौच करते पार्क में घुस गए और चारों तरफ डंडा फटकारते  वहाँ पहुँचे जहाँ ये सब हो रहा था और कुछ बोल बाल कर एक को पकड़ कर थोड़ी दूर ले गए फिर छोड़कर चले गए  कुछ देर बाद मैं उधर पहुँचा तो देखा फिर सब वैसा  ही चल रहा था तो मैंने उनमें से एक को धमकाते हुए बोला ये सब क्या हो रहा है अभी पुलिस बाले फिर आ जाएँगे क्यों ऐसे काम करते हो जो वो आकर फिर से गाली दें ! तो उन्होंने कहा गाली तो पार्क में आने वालों को देते हैं वो हमें दे ही नहीं सकते हैं ! हमने कहा यदि वो तुम्हें इतना ही डरते हैं तो तुम्हें पकड़ कर क्यों ले गए थे ?उन्होंने कि यदि पकड़ कर ले जाते तो छोड़ क्यों देते !इसपर मैंने कहा कि   तुमने माफी माँगी होगी इसलिए छोड़ दिया होगा ,तो वो सब हँस पड़े और कहने लगे कि हमें पकड़ना तो नाटक था वस्तुतः वो हमें पकड़कर जिनके पास ले गए थे वही लोग हैं जिन्होंने हमारी शिकायत की थी उन्हीं की पहचान करवाने ले गए थे और भी जो लोग हम लोगों की शिकायत करते हैं उनकी भी पहचान करवा देते हैं ऐसे ही लोगों में से दो लोगों की पहचान करवा कर गए हैं वो उनसे संडे  को निपटूँगा मैं ! 
   जो लोग पुलिस वालों को कुछ देते नहीं हैं पार्क में फ्री में घूम घाम कर चले जाते हैं उन्हें गाली देते हैं वो  हम लोगों को नहीं देते ,हमने कहा क्यों ?तो उनमें से एक बोला हमसे तो उन्हें आमदनी होती है सप्ताह में  दो दो सौ रूपए लेते  हैं हमसे बाकी कोई क्या दे देता है उन्हें !कहने लगे कि आज तो पुराना वाला भी पुलिस वाला आ गया था उसकी ड्यूटी आजकल कहीं और लगती है लेकिन वो कह रहा है कि ट्रांसफर करवा कर जल्द ही  यहीं आ जाऊँगा !इसलिए लेता है नहीं तो फिर बैठने नहीं देगा !दूसरे दिन पुलिस वाले वही दोनों महाशय मिले तो मैंने उनसे पूछा कि क्या हुआ कल वो तो भागे ही नहीं तो उन्होंने कहा क्या कहें नए लड़के हैं करने दो उन्हें भी मौज मस्ती !और आप लोग उधर मत जाया करो ऐसे लड़कों के मुख लगना ठीक नहीं है ये सब चाकू वाकू भी लिए होते हैं ! बंधुओ !ऐसे कैसे बढ़े पुलिस का सम्मान !
    चौराहे पर जाम लगा हो तो खड़े देखा करते हैं ये किंतु मोटरसाइकिल वालों को रोक लेते हैं उनकी तलाशी लेने के बाद कोई न कोई कमी निकल ही आती है उनमें और कमी के ही  पैसे होते  हैं ऐसे टैम्पो आदि हर सवारी के साथ करते हैं ट्रक वालों से तो लेते ही हैं !छोटे छोेटे बच्चे गाड़ियाँ चला रहे होते हैं उन्हें एक ही बल होता है कोई पकड़ेगा तो सौ पचास रूपए ले लेगा !
  शहरों में व्यूटी पार्लरों की आड़ में कई जगहों पर वेश्यालय चलाए जा रहे हैं जहाँ लड़कियों के लिए लड़के और लड़कों के लिए लड़कियाँ रखी हुई होती हैं अथवा कस्टमर आने पर काल करके बुला लिए जाते हैं ऐसे लोग !सुना जाता है कि ऐसे ही पार्लरों से नशे के सामान की  सम्मानजनक सप्लाई होती है ! जब तक पार्लर इस प्रकार की आपराधिक गतिविधियों में सम्मिलित नहीं थे तब तक समाज में घटने वाली आपराधिक गतिविधियाँ आज की अपेक्षा कम थीं !अच्छे अच्छे परिवारों के लोग भी ऐसे पार्लरों की पवित्र वेश्यावृत्ति में आसानी से सम्मिलित हो जाते हैं संभवतः इसी सुविधा के चलते पार्लरी संस्कृति दिन दूनी रात चौगुनी फैलती जा रही है !हो सकता है कि ऐसे असामाजिक कार्य करने वाले पार्लरों की  संख्या बहुत कम हो किन्तु जो भी है उसे रोकने की जिम्मेदारी किसकी है और जिसकी भी है वो इस दिशा में क्या कुछ कर रहे हैं !ऐसा होने क्यों और कैसे दिया जा रहा है ! 
    इसी प्रकार से सब्जी बेचने वालों से, सार्वजनिक जगहों पर गाड़ी खड़ी करने वालों से,बिना टिकट रेलवे में चलने वालों से या और किसी भी प्रकार से गलत काम करने वालों का एक ही बल है पकड़े जाएँगे तो पुलिस को पैसे देकर  छूट जाएँगे !
     इन सब बातों को कहने के पीछे हमारा उद्देश्य  केवल ये है कि इस प्रकार के निंदनीय आचरण करने वाले लोग जिस किसी भी विभाग में हों उसका सम्मान घटाया ही करते हैं इसलिए ऐसे विभागों में जो ईमानदार अधिकारी कर्मचारी हों सरकार उन्हें चिन्हित करे और उनसे उन विभागों की सफाई स्वयं करवावे और उनकी मदद पीछे से सरकार स्वयं करे ! अन्यथा ईमानदार अधिकारियों कर्मचारियों को बेईमान लोग जीने ही नहीं देंगे उनके नाम पहले ही अपराधियों को देकर उनकी धुनाई करवा देंगें ! ये हाल हर विभाग का है ! 
   दिल्ली में तीस हजारी मेट्रो स्टेशन से उतर कर जब तीस हजारी की ओर चलने 
लगो तो वहाँ कुछ लँगड़े  लूले भिखारी बैठे होते हैं एक दिन मैं वहाँ से निकल 
रहा था तो एक भिखारी  अपनी अधकटी टाँग बीच रास्ते तक फैलाए था लोग बचा बचा 
कर निकल रहे थे यह देखकर मैंने उससे कहा कि पैर समेट कर रख लो तो उसने कहा 
क्यों रख लूँ मैंने कहा कहीं चोट लग जाएगी तो वो कहने लगा ऐसे कैसे लग 
जाएगी मार के देखो तो सही मैंने कहा मैं मारने  को नहीं कह रहा हूँ मैं तो 
ये कह रहा हूँ कि लग सकती है खैर वो ज्यादा गरम हुआ तो मैंने कहा मैं अभी 
पुलिस बोलाता हूँ था तो उसने कहा बोला लो क्या कर लेगा वो रोज बीस रूपए 
हमसे लेता है दस रूपए बैठने के और दस रूपए ये घायल वाली टाँग आगे करके 
बैठने  के इसी टाँग को देखकर लोग पैसे देते हैं !यह सुनकर मुझे आश्चर्य 
जरूर हुआ किन्तु सच्चाई श्री राम जी जाने ! हाँ ,यदि ऐसा वास्तव में है  तो
 बहुत गलत है इस पर नियंत्रण किया जाना चाहिए !अन्यथा पुलिस का गौरव दिनोंदिन घटता 
जा रहा है ! 
 
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