Sunday, 5 January 2014

केजरीवाल जी की कहाँ गई नैतिकता और कहाँ गया आम आदमियत्व ?

आम आदमी पार्टी  बहुमत सिद्ध करने में तो सफल हुई किन्तु जनता का विश्वास खो दिया! केवल लाल बत्तियाँ आप को पसंद नहीं थीं इसलिए सरकार बदल दी गई !आश्चर्य !!!   

       आम आदमी पार्टी का सारा भांगड़ा देखने के बाद धीरे धीरे समाज को अब एक बात तो समझ में आने लगी है कि नैतिकता, सिद्धांतवाद, सत्यवादिता एवं सेवा भावना आदि  से कोसों  दूर जाती जा रही आमआदमी पार्टी अब धीरे धीरे काँग्रेस पार्टी के अनुरूप ही काम करने लगी है।महँगाई से लेकर सब कुछ वही बिल्कुल वही !आमआदमी पार्टी सरकार में अंतर केवल इतना हुआ है कि गाड़ियों की टोपियाँ अर्थात लाल बत्तियाँ उतारी गई हैं और आम आदमियों के शिर पर लगा दी गई हैं। केवल लाल बत्तियाँ "आप" को पसंद नहीं थीं इसलिए सरकार बदल दी गई!धन्य है आमआदमी पार्टी!!!

       दिल्ली वासियों की जो समस्या जहाँ थी वो वहीँ पर है सत्ता में जैसे लोग तब थे वैसे लोग अब हैं पहले जो लोग थे वो भी केवल अपने को ईमानदार बताते थे आमआदमी पार्टी वाले भी केवल अपने को ईमानदार बताते हैं! 

     यदि इनमें नैतिकता थी तो जिन पार्टियों  को ये लोग भ्रष्ट कहते रहे दलाल कहते रहे उनकी कृपा पर आश्रित होकर इन्हें सरकार नहीं चलानी चाहिए थी !इन्हें जल्दी क्या थी ।

      यदि इन्होंने सुरक्षा न लेने का सिद्धांत बनाया ही था तो उसका पालन करना चाहिए था अन्यथा ऐसे आडम्बर कहने की आवश्यकता ही क्या थी!पहले तो सादगी के चक्कर में मेट्रो के अंदर मीडिया घुसा ले जाना फिर कार पर चढ़े घूमना ये कैसा सिद्धांत ?

     पहले तो काँग्रेस को गाली देना फिर उसी के समर्थन से सरकार चलाना ये कैसा सिद्धांत ?

      सरकारी गाड़ी न लेने की बात कहकर फिर सरकारी गाड़ियों पर चढ़े घूमना ये कैसा सिद्धांत ?

       सादगी से रहने की बात कहकर फिर सरकारी हाईटेक आवास में रहने के लिए टूट पड़ना वो तो भला हो समाजा  और  मीडिया का जिन्होंने आम आदमी पार्टी की स्वार्थान्ध आत्मा को झकझोरा कि आप तो त्यागी विरागी हैं आपकी आत्मा का इस तरह डोलना ठीक नहीं है तब जाकर किसी तरह त्याग के सिद्धांतों पर टिकी आम आदमी पार्टी की आत्मा किन्तु जिन्हें जो समझना था उन्होंने मन की भावना तो समझ ही ली है कि आप और आप वाले चाहते क्या हैं आप ही सोचिए कि ये कैसा  सिद्धांत?

     केजरीवाल जी न जाने क्या सोचकर उनके समर्थन से मुख्यमंत्री केजरीवाल बने हैं ऐसी भी क्या जल्दी थी ?चूँकि काँग्रेस और भाजपा को वो भ्रष्ट पार्टियाँ मानते हैं इसलिए  इन पार्टियों का समर्थन लेना उनके जैसे स्वच्छ पवित्र नेता को दो कारणों से शोभा नहीं देता है पहला तो उन्होंने ऐसा कह रखा है इसलिए दूसरी बात कि उन्होंने ही जिन दलों को भ्रष्ट माना है उनसे आशा कैसी और क्यों ?

          जनता से सलाह लेकर सरकार बनाने की बात एक मजाक से अधिक कुछ भी नहीं हैं अपनी बातों और सिद्धांतों पर कायम रहना आपको जनता नहीं सिखाएगी आपको अपने बनाए मानकों का पालन स्वयं करना चाहिए था ऐसे तो जनता की   आड़ में छिप कर बड़ा से बड़ा पाप कोई भी करता रहेगा और कह  देगा कि हमने तो जनता से राय ले  ली थी । सच्चाई यह है कि यदि जनता सलाह देने की ही स्थिति में होती तो ये सारी  दुर्दशा अब तक क्यों भोगती ?

          सबसे महत्त्व पूर्ण बात यह है कि क्या ये सच नहीं है कि जो जनता काँग्रेस को गलत मानती थी उसने केजरी वाल को वोट दिया है और जो जनता केजरीवाल की बातों पर भरोसा नहीं करती थी उसने काँग्रेस को साथ दिया है तो परस्पर विरोधी विचारधारा के वोट से बने विधायकों के समर्थन से बनी सरकार को नैतिक कैसे कहा जा सकता है ?क्योंकि काँग्रेस को वोट देने वाले लोग जिन केजरीवाल जी को पसंद नहीं करते हैं तब तो उन्होंने काँग्रेस को वोट दिया है फिर यदि काँग्रेस समर्थन के बहाने उस वोट से केजरीवाल का समर्थन करती है जो वोट केजरीवाल को पसंद नहीं करता है या यूँ कह लें कि केजरीवाल की बातों पर भरोसा नहीं करता है।  उस वोटर की ताकत काँग्रेस पार्टी  केजरीवाल को कैसे दे सकती है और केजरीवाल को लेना ही क्यों चाहिए क्या काँग्रेस ने अपने उस वोटर से सलाह लेकर केजरी वाल का समर्थन किया है जिसने ऐसी मुशीबत में भी काँग्रेस के प्रति समर्पित होकर उसके आठ विधायक जितवाए हैं! आखिर लोकतांत्रिक प्रक्रिया में उन विधायकों एवं वोटरों को बंधुआ मजदूर तो नहीं माना जा सकता है इस समर्थन में उस वोटर की भावना का सम्मान होते नहीं दिख रहा है इस लिए काँग्रेस और केजरी वाल दोनों से लोकतांत्रिक भावना के पालन में चूक हुई है! 

     अरविन्द जी इसी लिए कहा गया है कि जिस चीज को खाना होता है उसके प्रति घृणा  नहीं पैदा की जाती है। आप चाहते तो दूसरों को भ्रष्ट और बेईमान कहने के बजाए अपनी ईमानदारी आगे बढ़ा सकते थे हो सकता है कि उससे वोट इतनी जल्दी न मिलते और सरकार न बन पाती किन्तु आपकी ईमानदारी के सिद्धांत बचाए जा सकते थे जिनके लिए व्यक्ति सारे जीवन प्रयास करता है आखिर सरकार बनाने की इतनी भी क्या जल्दी थी । 

      जिन्हें आपने भ्रष्ट कहा था आज उनके गले लगना  ठीक नहीं लगा! फिर भी आपकी अभिलाषा पूरी हुई आप मुख्यमंत्री बन कर प्रसन्न हैं आपकी समाज साधना  सफल हुई इसके लिए आपको पुनः बधाई !धन्यवाद !!!

 

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