दलितों को किस्तों में  आरक्षण देने से अच्छा है कि उन्हें सौंपी जाए देश और सभी  प्रदेशों की वागडोर !
     दलितों का दुःख दूर करने की पवित्र पहल !   
 
सभी पार्टियों के नेता और सभी सरकारों के मंत्री अपने पद पदवी दलितों को सौंपे सभी अधिकारी अपने अपने विभाग के किसी महादलित को दें अपना पद !जातिवाद को मिटाने की इच्छा रखने वाले नेता लोग ईमानदारी पूर्वक  अपने बेटा बेटियों की शादियाँ दलितों के यहाँ करें अन्यथा झूठे नारे लगाने बंद करें !   देश में जो सबसे अधिक गरीब महादलित हो उसे राष्ट्रपति बनाया जाए उससे जो नंबर दो पर हो उसे प्रधानमंत्री ऐसे ही क्रमवार सारे पद बाँटे जाएँ ! राजनैतिक पार्टियों की कमान नेता लोग गरीब दलितों के हाथ में सौंपें !पार्टी संविधान में संशोधन किए जाएँ और चुनावों में सभी टिकटें केवल दलितों को दी जाएँ मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री एवं सभी मंत्रियों के पद केवल दलितों के लिए आरक्षित किए जाएँ ! जिस पार्टी का अध्यक्ष दलित न हो उसका बहिष्कार किया जाए !
     किसी के शोषण के लिए सवर्णों को बदनाम करना बंद किया जाए !सवर्णों को सरकारों  की किसी कृपा की जरूरत नहीं है पिछले साठ सालों में आत्मगौरव के साथ अपनी आजीविका चलाते रहे आगे भी मर नहीं जाएँगे किंतु प्रतिभाओं को रौंद करके तुष्टीकरण की राजनीति यदि फलवती होती है तो सवर्णों को स्वीकार्य है! अगर सवर्ण अपनी प्रतिभा को सँभाल कर रख पाए तो कहीं भी जाकर कमा खा लेंगे !माँस नहीं मेहनत हर किसी को प्यारी है सवर्णों को आरक्षण चाहिए नहीं प्रतिभाओं के स्वागत के लिए विश्व आँचल पसारे खड़ा है |
  जातिवाद से उतना 
खतरा नहीं है जितना राजनीतिवाद  से है!इसलिए जातिवाद समाप्त करने के लिए राजनैतिक पार्टियों के मुखिया अपने अपने पार्टी पदों पर बतावें दलितों को !उन्हीं के सामने हाथ जोड़कर अपने लिए सेवा पूछें जो वो बतावें वो नेता करें !यदि ऐसा नहीं कर सकते तो दलितों के उत्थान की झूठी बकवास बंद करें !
      जातिवाद न तो खाने खिलाने में है और न ही छुआ छूत में अपितु जातिवाद लोगों की सोच में घुसा हुआ हुआ है जिसे समाप्त करना हँसी खेल नहीं है जातिवाद यदि छुवा छूत  में होता   तो आज बजार से ख़रीदा गया नमकीन विस्कुट होटल का खाना कितने लोग नहीं खा रहे हैं अर्थात सभी खा रहे हैं किस जातिधर्म के लोग बना रहे हैं कोई पूछता है क्या या पैकिट पर लिखा होता है और कंपनियाँ गंगाजल छिड़क कर तब बेचती हैं इसलिए जातिगत अस्पृश्यता की अब कहीं कोई चर्चा नहीं है फिर जातिगत आरक्षण क्यों ?
     अब बात विवाहादि संबंधों की  से  सम्बन्ध बनाकर शारीरिक संबंधों तक पहुँचते हैं तो क्या वो पहले जातियाँ पूछते हैं तब जुड़ते हैं केवल विवाहादि संबंधों में कुछ लोग इन बातों का ध्यान देते हैं बहुत लोग नहीं भी देते हैं !फिर जातिगत आरक्षण क्यों ?हर समाज में हर प्रकार के लोग होते हैं लोगों की अलग अलग सोच होती है उसी हिसाब से वे व्यवहार करते हैं उसमें केवल सवर्ण और ब्राह्मण ही नहीं हैं अपितु सभी लोग हैं ।  
   डॉक्टर भीम राव अंबेडकर साहब के साथ हो सकता है कुछ लोगों ने अप्रिय व्यवहार किया हो किंतु ब्राह्मण शिक्षक महादेव अम्बेडकर जो उनसे विशेष स्नेह रखते थे उनके कहने पर अम्बेडकर ने अपने नाम से सकपाल हटाकर 'अम्बेडकर' जोड़ लिया था उस अम्बेडकर नाम से उन्हें कभी घृणा नहीं हुई जबकि वो उस ब्राह्मण शिक्षक की जाति  या उपनाम जो भी रहा हो जो अम्बेडकर साहब से बहुत स्नेह करते थे । आखिर उस ब्राह्मण के स्नेह को भुला क्यों दिया जाए जिससे पता लगता है कि ब्राह्मणों ने कभी किसी प्रतिभा का दमन नहीं किया है अपितु उसे प्रोत्साहित ही किया है किंतु प्रतिभा हो तब न !
    प्रतिभा संपन्न लोग आज भी दलित वर्ग के होने के बाद भी किसी आरक्षण के मोहताज नहीं हैं और उन्होंने अपना विकास अपनी प्रतिभा के बल पर किया है सम्मान उस विकास से मिलता है उसी से आत्मगौरव बनता है जिसे कोई दूसरा मिटा नहीं सकता ! 
  जातियों की खोज महान जाति वैज्ञानिक  महर्षि मनु ने जब की थी तब जिन दलित जातियों को ज्ञान गुण और प्रतिभा के आधार पर कमजोर मानकर उन्हें चतुर्थ श्रेणी में रखा था लाखों वर्षों बाद आज भी दलित वर्ग महर्षि मनु की अवधारणा को झुठला नहीं सका है आज भी सरकारें महर्षि मनु के मत पर ही मोहर लगाती जा रही हैं अर्थात मनु बचनों को ही मानने पर मजबूर हैं मनु भी दलितों को कमजोर मानते थे वर्तमान सरकारें भी दलितों को कमजोर मान रही हैं जैसे मनु केवल कुछ लोगों को कमजोर न मानकर अपितु उन कमजोर लोगों की एक जाति बना दी थी मानों उन्होंने ऐसा मान लिया था कि लाखों वर्ष बाद तक इनकी संतानें भी अपने बल पर तरक्की नहीं कर सकेंगी आज सरकारें भी लगभग यही मान रही हैं अन्यथा साथ साल से चले आ रहे आरक्षण की कोई समय सीमा तो होनी चाहिए किन्तु सरकारों को महर्षि मनु की तरह ये भरोसा ही नहीं हो पा  रहा है कि दलित वर्ग कभी अपने बलपर भी आगे बढ़ पाएगा इसीलिए आरक्षण बढ़ाए जा रही हैं !किंतु दलितों में कमजोरी किस बात की है ये न मनु लिखकर  गए हैं और न ही सरकारें बताने को तैयार हैं आखिर क्यों ?   अगर कुछ जातियों की उपेक्षा हुई तो उसका कारण क्या था शोध इस विषय पर होना चाहिए क्योंकि जिन जातियों को सतयुग में मनु ने चतुर्थ श्रेणी में रखा था उन्हीं जातियों को इस युग में भी सरकारें कमजोर मान रही हैं क्यों ?
    जो नेता दलितों को वास्तव में आगे बढ़ाना चाहते हों वो अपनी पार्टी का अध्यक्ष किसी दलित को बनावें और पार्टी के सभी चुनावों में अधिकाँश टिकटें दलितों को दें मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री का पद दलितों के लिए आरक्षित करें!लेकिन सवर्णों को बदनाम करना बंद करें !किसी के पिछड़ेपन से सवर्णों का कोई लेना देना ही नहीं है सवर्ण मेहनत कर के कम खा रहे हैं उन्हें किसी आरक्षण का लालच नहीं है, रही बात दलितों की तो दलितों का धन जिन्होंने लूटा है उनके घरों की तलाशी ली जाए और उन्हीं से पूछा  जाए दलितों की दलाली में नेता अरबपति हो गए ! नेताओं से कोई पूछे कि इनके आयस्रोत क्या हैं ये धंधा करते कब हैं ?
    आरक्षण माँगने वालों का स्वास्थ्य परीक्षण हो कि इनमें ऐसी कमी क्या है कि ये सवर्णों की तरह अपने बल पर अपनी तरक्की क्यों नहीं कर सकते ?आखिर इन्हें इतना कमजोर क्यों समझा जा रहा है ? और किसी में कोई कमी दिखाई पड़े तो उसका इलाज कराया जाए अन्यथा ऐसे कमजोर बताकर दलितों के साथ ये अपाहिजों जैसा वर्ताव आखिर कबतक किया जाएगा !क्यों चाहिए उन्हें जातिगत आरक्षण ?और आरक्षण या किसी भी प्रकार की सुविधाएँ जबतक जातियों के आधार पर दी जाएँगी तब तक जातिवाद मिटाना कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी है ।यदि ऐसा न होता तो अभी तक दलितों को दिए गए अधिकार और धनात्मक सुविधाएँ गईं आखिर कहाँ !क्यों नहीं हो सकी दलितों की तरक्की ?   
    दलितों के हितैषी 
 राजनेताओं से पूछा जाए कि आप कमाते कैसे हैं आपका धंधा क्या है और आप अपना
 व्यापार करते कब हैं क्या आपके व्यापार में केवल मुनाफा ही होता है आखिर 
कैसे जी लेते हैं बिना कुछ किए इतनी मौजमस्ती की जिंदगी !और लोगों को बताते
 हैं कि जातिवाद के कारण कुछ लोग पिछड़ गए किंतु सच बोलिए महोदय ! पिछड़े 
केवल कुछ लोग ही नहीं हैं पिछड़ा तो पूरा देश है हाँ जिसने नेताओं को सलाम 
ठोंका वो आगे बढ़ गया !यहाँ लोगों के पिछड़ने का कारण राजनैतिक निकम्मापन  है
 !नेताओं के आय स्रोतों की जाँच हो तो पता चल जाएगा कि जातिवाद से उतना 
खतरा नहीं है जितना राजनीतिवाद  से  है चुनावों से पहले जिन पार्टियों या 
सरकारों के जिन नेताओं को भ्रष्टाचारी घोटालेवाज कहकर उन्हें जेल भेजने की 
बात कही जाती है चुनाव जीतने के बाद वही नेता दुम दबाकर बैठ जाते हैं मानों
 उन्हें भी भविष्य में अपने घोटालों की जाँच न हो जाए इसका डर हो !कोई नेता
 जल्दी जल्दी किसी नेता की जाँच नहीं करवाना छठा है भले ही वो विरोधी 
पार्टी का ही क्यों न हो !क्योंकि राजनीति में आते समय प्रायः नेता किराया 
उधार लेकर ही आते हैं और जब तक राजनीति में रहते हैं तब तक कोई धंधा 
व्यापार कर नहीं पाते हैं फिर भी सारी  सुख सुविधाएँ भोगते भोगते अरबपति कब
 बन जाते हैं ये रहस्य उन नेताओं को भी नहीं पता होता है जबकि इसी रहस्य 
में दफन है गरीबों का भाग्य !
    बंधुओ !इस रहस्य का उद्घाटन न हो जाए जो सारी  पोल खुल जाए राजनैतिक कैरियर चौपट हो जाए ये नेताओं की सबसे बड़ी चिंता होती है यही कारण  है कि दलितों का मुख चतुराई पूर्वक सवर्णों की ओर मोड़ा करते हैं कि तुम्हारा शोषण इन्होंने किया है जबकि किया उन्होंने है जो सवर्णों को बदनाम करते हैं । 
सवर्णों
 के स्वाभिमान को विश्व जनता है कि इन्होंने कभी आरक्षण नहीं माँगा है 
अन्यथा भिखारी समझ कर सवर्णों से भी लोग घृणा कर रहे होते देश विदेश के लोग
  !
 आरक्षण माँगने वालों से पूछा जाए कि उनके शरीरों में ऐसी कमी क्या है कि वे अपने बल पर आगे 
नहीं बढ़ सकते उन्हें आगे बढ़ने के लिए आरक्षण की बैशाखी चाहिए और सवर्ण लोगों 
में ऐसी बहादुरी क्या है कि इस देश में सवर्णों के लिए कुछ नहीं चाहिए !
     हे दलित बंधुओ!सम्मान यदि तुम्हें भी 
सवर्णों की तरह चाहिए तो सवानों की तरह ही आप भी आरक्षण को ठुकरा दीजिए और 
म्हणत करके कमाइए खाइए अपनी भुजाओं का भरोसा कीजिए  देखो अभी सम्मान बनता 
है कि नहीं किंतु आरक्षण सरकारी कृपा है और किसी की कृपा के सहारे जीने 
वाले का स्वाभिमान कैसा ?
      आज सवर्णों के लिए कोई योजना नहीं है 
कोई सुविधा नहीं है कोई आरक्षण नहीं है फिर भी कभी किसी से आरक्षण की भीख 
नहीं माँगते अपने परिश्रम से कमाते खाते हैं यही कारण है कि किसी नेता से 
या किसी पार्टी से कभी दब के बात नहीं करते इसी कारण उनका सम्मान बना है 
अन्यथा सेवकों को सुख और भिखारियों को सम्मान और नशेड़ी को धन ,और 
ब्यभिचारियों को सद्गति कभी नहीं मिला करती है ! 
   बंधुओ ! सवर्णों के विरुद्ध आरक्षण एक 
षड्यंत्र के तहत लाया गया था ताकि सवर्णों को पीछे धकेला जाए इनका सम्मान 
घटाया जाए उन्हें गरीब बनाया जाए ताकि सवर्ण लोग भी नेताओं के सामने 
भिखारियों की तरह गिड़गिडाएँ किंतु स्वाभिमानी सवर्णों ने संघर्ष पूर्वक 
अपना विकास करके दिखा दिया है या संघर्ष कर रहे हैं किंतु लालच देने वाले 
नेताओं के सामने घुटने नहीं टेके हैं !
    यदि हमारे सभी देशवासी आरक्षण को ठोकर मारकर 
लालच देने वाले नेताओं को दुदकार कर दरवाजे से भगाना शुरू कर दें तो देखो 
अभी भ्रष्टाचार समाप्त होता है कि नहीं !देखो देश की तरक्की होती है कि 
नहीं !
    ऐसे नेता लोग दलितों की दीन दशा दिखाकर 
माँगते हैं और खुद खा जाते हैं इससे देश का धन न दलितों के काम आ रहा है और
 न देश के बिना किसी घोषित आय स्रोत के भी दलित धन से नेता अरबपति होते जा 
रहे हैं राजनीति में आते समय इनके पास कुछ था नहीं और राजनीति में आने के 
बाद कुछ धंधा व्यापार कर नहीं सके फिर भी अरबपति आखिर ये दलितों का धन नहीं
 तो है किसका  !सवर्णों के नाम पर तो कभी कोई अनुदान पास नहीं न हुआ जो वो 
खा जाएँगे ! ये दलितों का ही हिस्सा मार जाते हैं और सवारों की बुराई करके 
दलितों को फुसला कर उनका वोट भी ले लेते हैं किंतु उन्हें कभी कुछ देते 
नहीं हैं पिछले साठ  सालों से यही खेल खेले जा रहे हैं !
     दलितों को नेताओं से पूछना चाहिए कि हमारे हिस्से का धन तुम्हारे पास पहुँचा कैसे !और आज किस मुख से मांगने आए हो वोट ?
    ये आरक्षण की आग लगाई तो नेताओं ने ही है !अब
 गुर्जरों को क्यों न मिले आरक्षण उन्हें भी दिया जाए और भी जो बचे खुचे 
अपने को कमजोर मानने वाले लोग हों उन्हें भी दिया जाए !
 जहाँ
 तक बात सवर्णों की है भारतीय राजनेता सवर्णों के विरुद्ध आरक्षणी साजिश 
रचने का कितना भी कुचक्र रचते रहें किंतु विश्व जनता है कि सवर्णों ने अपने
 देश में रहकर सरकारों के द्वारा रचे जा रहे सभी प्रकार के जातीय अत्याचार 
सहकर भी कठिन परिश्रम करके अपना विकास किया है ।   
 
 
        
    
 
 
 
 
          
      
 
  
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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