Tuesday, 14 April 2015

दलितों के पिछड़ेपन के लिए दोषी हैं स्वयं दलित न कि सवर्ण !किसी के यहाँ बच्चा न हो तो उसके लिए दोषी पड़ोसी कैसे ?

  दलितों के शोषण का सवर्णों पर झूठा आरोप मढ़ना बंद किया जाए ! साथ ही सवर्णों की जनसंख्या इतनी घटी कैसे इसकी जाँच कराई जाए !
    दलितों का शोषण कभी किसी ने किया ही नहीं है इसीलिए शोषण के नहीं मिलते हैं प्रमाण !फिर आरक्षण क्यों ?जनसंख्या बल से कमजोर सवर्णो को दलितों के शोषण का झूठा आरोप लगाकर सताया जा रहा है और रची जा रही है सवर्णों के विरुद्ध आरक्षणी साजिश !   वोटबल से कमजोर सवर्णों का कोई राजनैतिक दल नहीं देना चाहता है साथ !दलितों के शोषण का दुष्प्रचार करके किया जा रहा है सवर्णों के साथ आरक्षण का अत्याचार !     
      वोटबल से कमजोर सवर्णों ने कब किया था दलितों का शोषण कैसे किया था कितना किया था और तब बहुसंख्यक दलितों ने सहा क्यों होगा ?क्यों नहीं किया उसी समय उसका प्रतिकार ? सवर्णों के साथ अब  हो रहा है आरक्षण रूपी अत्याचार !आज कोई भी राजनैतिक दल नहीं देना चाहता सवर्णों का साथ !सच्चाई जानने समझने सुनने को भी कोई तैयार ही नहीं है आखिर क्यों ?
     सवर्णों के पूर्वज जब मार डाले गए जिससे सवर्णों की संख्या घट गई इसीलिए उनकी संपत्ति बढ़ना स्वाभाविक ही था अन्यथा जब चारों वर्ण समान थे और चारो वर्णों की जनसंख्या भी तो समान रही होगी किन्तु  सवर्णों की जन संख्या इतनी कम क्यों और कैसे घट गई !इसकी चिंता किसी को क्यों नहीं है किंतु सवर्णों की संपत्ति बढ़ने पर छाती कूट रहे हैं राजनैतिक लोग आखिर क्यों ?दलितों को खुश करने के लिए दे रहे हैं सवर्णों को गालियाँ !
  महान जाति वैज्ञानिक महर्षि मनु ने दलित नाम की किसी जाति का वर्णन ही नहीं किया है आखिर तब उसका शोषण कैसे हो गया ?
   यदि दलित शब्द का अर्थ दबा, कुचला टुकड़ा,भाग,खंड आदि होता है तो किसी वर्ण को दलित कहने के पीछे मंसा आखिर क्या थी ?आखिर क्या कभी है इनमें !क्या वो लाचार हैं, अपाहिज हैं, विकलांग हैं या वो परिश्रमी वर्ग  परिश्रम पूर्वक कमाई करके अपने  बच्चे नहीं पाल सकता है  क्या  ?
  सवर्णों पर दलितों के शोषण का आरोप लगाना कहाँ तक उचित है !सवर्णों ने यदि शोषण किया होता तो उनके  होना चाहिए था धन !किंतु आज वो भी तो नौकरी मेहनत मजदूरी करते घूम रहे हैं !इससे इंकार कैसे किया जा सकता है ?
      दलितों की किस समस्या का समाधान है आरक्षण ?
  वेद न पढ़ पाने के कारण यदि ये गरीब रह गए तो वेद पढ़ाइए किंतु आरक्षण क्यों ? 
   यदि वेद न पढ़ने देने के कारण वे तथाकथित दलित रह गए तो आरक्षण क्यों ?इन्हें वेद  पढ़ने की सुविधा मुहैया करानी चाहिए आखिर वे भी कश्यप ऋषि की संताने हैं उन्हें वेद पढ़ना ही  चाहिए किन्तु आरक्षण का लोभ क्यों ?
यदि अछूत माने जाने के कारण ये लोग दलित हैं तो अब सवर्णों को अछूत घोषित करके उनके साथ बंद कर देना चाहिए रोटी बेटी के सम्बन्ध किन्तु आरक्षण क्यों ?
    अछूत माने जाने के कारण यदि वो तथाकथित दलित पीछे रह गए तो आरक्षण क्यों ?उन्हें अब  सवर्णों को अछूत घोषित करके उनसे रोटी बेटी का सम्बन्ध रोक देना चाहिए। आखिर अछूत घोषित किए जाने जैसे अपमान को  आरक्षण रूपी लालच में क्यों सह जाना ?
यदि दलित लोग पहले तपस्या नहीं कर पाए इसलिए दलित हैं तो अब करें न तपस्या !अब आखिर कौन रोक रहा हैं उन्हें !किन्तु आरक्षण क्यों ? 
   इस युग में तो वो तपस्या भी कर सकते हैं अब तो कानून का राज है।अब उन्हें कौन रोक सकता है?किन्तु आरक्षण क्यों ?
  पहले यदि इन्हें व्यापार नहीं करने दिया गया तो अब करें न व्यापार !बनियों ने व्यापार करके अपने को आगे बढ़ाया यदि कोई और भी करता तो उस पर क्या रोक लगी थी ?कुलमिलाकर अब कर लें व्यापार किंतु आरक्षण क्यों ?
  दलितों की राजनीति करने वाले नेताओं की आय के अपने स्रोत क्या हैं आखिर कहाँ से इकट्ठा हो रही है उनके पास करोड़ों अरबों की माया ?
   दलितों के समर्थन के नाम पर ही तो सवर्णों को गाली दे देकर अपनी नेतागिरी चमकाने वाले लोग  आज अरबों रूपए के घोटाले किए घूम रहे हैं जो करोड़ों में बताए जाते हैं।दलितों के नाम पर लिए गए  पैसे पर स्वयं तो ऐय्यासी करते घूमेंगे और दलितों को खुश करने के लिए सवर्णों को गाली देंगे आखिर ऐसे लोगों के अपने आय के श्रोत क्या हैं ?
     सरकार चाहे तो ऐसी नीतियाँ बनावे जिनका लाभअपने को गरीब समझने वाला हर व्यक्ति ले सके।किसी के मस्तक पर दलित या दरिद्र  लिखकर किसी का अपमान क्यों करना ?हो सकता है कोई अभी गरीब हो कुछ दिन बाद उसका काम चल निकले उसकी आर्थिक स्थिति ठीक हो जाए तो उसके मस्तक पर हमेंशा के लिए दलित या दरिद्र क्यों लिखना ?इस तथाकथित दलित वर्ग के बहुत लोगों ने आरक्षण का लाभ लिये बिना भी अपनी आर्थिक स्थिति परिश्रम पूर्वक सुधारी है वो गर्व से जीवन यापन करते हैं।उन्होंने दालित्य की खाल को उतार कर फेंक दिया है।उन्हें किसी की कृपा पर नहीं अपने परिश्रम पर भरोसा होता है। 
     आखिर गरीब सवर्ण भी अपनी मेहनत की कमाई से ही बच्चे पालते हैं ।उन बच्चों में अपने माता पिता के संघर्ष का स्वाभिमान होता है जिसके बल पर वे आगे बढ़ते हैं।सवर्णों में भी कुछ लोग ऐसे भी हैं जो संघर्ष नहीं करना चाहते वो बेशक दलित न कहे जाते हों किन्तु हालात उनके भी बहुत खराब हैं।कुछ लोग संघर्ष करके भी सफल नहीं हो पाते हैं उसमें वो भाग्य को कोसते हैं जबकि अन्य लोग सवर्णों को कोस कर सुख पाने का असफल प्रयास करते हैं।माना कि तथाकथित दलितों की अपेक्षा कुछ प्रतिशत अधिक लोग सवर्णों में सम्पन्न होगें किन्तु इसका मतलब यह भी नहीं है कि सारे सवर्ण  सम्पन्न ही हैं।ऐसा भी नहीं है कि सवर्णों का सम्पन्न वर्ग गरीब सवर्णों की कोई मासिक या अन्य प्रकार से कोई आर्थिक सहायता करता हो।     
     1947 में देश आजाद हुआ उसके पहले सैकड़ों वर्ष तक देश गुलाम रहा तो उन आक्रांताओं ने सवर्णों को कोई अतिरिक्त आर्थिक सहायता राशि नहीं दी थी जो तथाकथित दलितों को न मिली हो जिससे वे दलित हो गए।
            दलित शब्द का अर्थ क्या होता है ये जानने के लिए मैंने शब्दकोश देखा जिसमें टुकड़ा,भाग,खंड,आदि अर्थ दलित शब्द के  किए गए हैं।मूल शब्द दल से दलित शब्द बना है।मैं कह सकता हूँ कि टुकड़ा,भाग,खंड,आदि शब्दों का प्रयोग कोई किसी मनुष्य के लिए क्यों करेगा?इसके बाद दल का दूसरा अर्थ समूह भी होता है।जैसे कोई भी राजनैतिक या गैर राजनैतिक दल, इन दलों में रहने वाले लोग दलित कहे जा सकते हैं।इसी दल शब्द से ही दाल  बना है।चना, अरहर आदि दानों के दल बना दिए जाते हैं जिन्हें दाल कहा जाता है।इस प्रकार दलित शब्द के टुकड़े,भाग,खंड,आदि और कितने भी अर्थ निकाले जाएँ  किंतु दलित शब्द का अर्थ दरिद्र या गरीब नहीं हो सकता है।
  राजनैतिक साजिश के तहत यदि इस शब्द का अर्थ अशिक्षित,पीड़ित,दबा,कुचला आदि  करके ही कोई राजनैतिक लाभ लेना चाहे तो यह शब्द ही बदलना पड़ेगा,क्योंकि इस शब्द का अर्थ शोषित,पीड़ित,दबा,कुचला आदि करने पर यह ध्यान देना होगा कि इसमें जिन जिन प्रकारों का वर्णन है वो सब कोई अपने आप से भले बना हो किंतु किसी के दलित बनने में किसी और का दोष  कैसे हो सकता है?यदि किसी और ने किसी का शोषण करके उसे दलित बनाया होता तो दलित की जगह दालित होता।जब बनाने वाला कोई और होता है तो आदि अच की वृद्धि होकर जैसे चना, अरहर आदि दानों के दल बना दिए जाते हैं जिन्हें दाल कहा जाता है क्योंकि चना आदि यदि चाहें भी कि वे अपने आप से दाल बन जाएँ  तो नहीं बन सकते।जैसेः- तिल से बनने के कारण उसे तैल कहा जाता है।बाकी सारे तैलों का तो नाम रख लिया गया है तैल तो केवल तिल से ही पैदा हो सकता है।ऐसे ही वसुदेव के पुत्र होने के कारण ही तो वासुदेव कहे गए। इसी प्रकार दलित की जगह दालित होता। चूँकि शब्द दलित है इसलिए किसी और का इसमें क्या दोष ?वैसे भी किसी ने क्या सोच कर दलित कहा है यह तो वही जाने किंतु इस ईश्वर की बनाई हुई सृष्टि  में कम से कम हम तो किसी को दलित नहीं कह सकते ऐसा कहना तो उस ईश्वर की बनाई हुई सृष्टि का अपमान है।
    आज दलित साहित्य या साहित्यकार,दलित विधायक ,दलित संसद ,दलित मंत्री ,दलितमुख्य मंत्री,दलित प्रधान मंत्री आदि कहा जाने लगा है तो दलित शब्द का अर्थ दबा कुचला शोषित पीड़ित नहीं है क्या ?क्योंकि मुख्य मंत्री,गृहमंत्री,प्रधान मंत्री आदि यदि स्वयं दलितअर्थात  दबे  कुचले  शोषित पीड़ित आदि कहेंगे तो देश उनसे क्या आशा करे ?और क्या वे विदेशों के ही महान मंचों पर देश का पक्ष गौरवान्वित कर पाएँगे ? क्या हमेशा से हमारे प्रति उपेक्षा का भाव रखने वाला  पश्चिमी जगत मौका मिलने पर इस बात के लिए चूक जाएगा ?क्या वह  कह सकता है कि तुम तो खुद दबे  कुचले  शोषित पीड़ित हो तुमसे क्या आशा?कैसे निपटोगे आतंकवाद से?तुम तो आतंकवादियों को सजा होने पर भी कठोर दंड देने से डरते हो । 
    इस लिए  हमारा इस देश के नीति नियामकों से निवेदन है कि दलित और अल्प संख्यक जैसे मनोबल गिराने वाले शब्दों का प्रयोग करने से न केवल बचना चाहिए अपितु देश के हर नागरिक को यह विश्वास दिलाया जाना चाहिए कि सारा देश आपका है और आप सारे देश के हैं ।
  हम जाति, क्षेत्र,समुदाय,संप्रदाय ,लिंग आदि के नामपर यदि भेद भाव करते ही रहे तो स्वस्थ समाज की परिकल्पना कैसे की जा सकती है ?
    क्या तभी नियम नहीं बना दिया जाना चाहिए था कि किसी के गुण दोषों का मूल्यांकन जाति, क्षेत्र ,समुदाय,संप्रदायवाद आदि के नाम पर करना दंडनीय अपराध होगा और किसी भी प्रकार के आरक्षण या  सुविधा की पात्रता भी जाति, क्षेत्र ,समुदाय,संप्रदाय आदि के आधार पर न मानी जाए !वोट बल से कमजोर सवर्णों का पक्ष कोई राजनैतिक दल आखिर  क्यों ले ?क्यों मुद्दा उठावे कोई पत्रकार?आखिर देश के लिए समान रूप समर्पित सभी वर्गों के लिए सरकार द्वारा किसी भी प्रकार की  सुविधा या सहयोग प्रदान करते समय प्रजा प्रजा में भेद भाव नहीं किया जाना चाहिए !आज सवर्ण किसे मानें अपना प्रशासक और किससे कहें अपनी समस्याएँ आखिर उन पर यह आरोप पहले ही मढ़ दिया गया है कि उन्होंने दलितों का शोषण किया था।आखिर इस शोषण के आरोप का सच या आधार  क्या है ? 
     मैं निजी तौर पर भारत वर्ष के किसी भी नर नारी को दलित या अछूत मानने को तैयार नहीं हूँ हर देशमें गरीब और अमीर दो प्रकार का वर्गीकरण तो दिखाई पड़ता है और उचित भी यही है। इसमें यह दलित जैसा  नाम करण  कुछ उन लोगों के द्वारा किया गया जिनको बिना कुछ परिश्रम किए धरे इससे कुछ लाभ की लालषा या लालच होगा।जिसे अपनी कमाई एवं परिश्रम का भरोसा होगा वह दलित बनना ही क्यों पसंद करेगा?कोई सम्मान प्रिय व्यक्ति सारी  समाज में अपना गौरव क्यों गिराएगा।अपने हाथ पैर आदि स्वास्थ्य सुरक्षित रहते हुए अपने दुलारे प्यारे बच्चों को कोई दलित अर्थात कुचला-कुचला,खंड-खंड कहलाना कोई क्यों पसंद करेगा?कोई जो देता हो वो रख ले किन्तु ईश्वर न किसी के प्रिय बच्चों को ऐसे अशुभ शब्दों का संबोधन मिले ऐसा कम से कम मैं तो कभी नहीं चाहूँगा और न ही किसी को दलित कहूँगा न दलित मानूँगा ही अपितु वो किस मजबूरी में दलित कहलाते हैं वो मजबूरी दूर करने का प्रयास करूँगा ।ईश्वर कृपा करे तो बहुत जल्दी मैं वह करके दिखा भी दूँगा।कुछ दिन की पवित्र प्रेरणा से न केवल दालित्य समाप्त होगा अपितु मनोबल बढ़ाकर मुख्य धारा में सम्मिलित कर लूँगा मुझे विश्वास है क्योंकि मैं छोटे पैमाने पर यह  कर के देख भी चुका हूँ ।
      अधिक  से अधिक एक पीढ़ी के पंद्रह-बीस वर्षों की शिक्षा एवं सही दिशा के रोजगार में  परिश्रम करने से  हर किसी आने वाली पीढ़ियों के जन्म जन्मान्तर का दालित्य छुटा सकती है।अच्छे अच्छे लोग सम्मानित समझेंगे । इसीप्रकार आने वाली पीढियाँ सुधरती चली जाएँगी ।
    पंद्रह-बीस वर्षों के परिश्रम कहने  आशय शिक्षा काल सुधारने की बात है अगर कोई नेता खूँटा नेक नीयत से इतना प्रेरित करने या इसमें सहयोग करने को तैयार हो जाए तो गरीबत घट या मिट सकती है।यह मेरी  कोई खोज या उपलब्धि नहीं है ये सबको पता है किन्तु ये लोग सोचते हैं कि शिक्षा के लिए प्रेरित करने से ये सब आगे बढ़ जाएँगे अपना लाभ क्या होगा?
      परिश्रम इन नेताओं के बश का नहीं है और न ही देश को आगे ले जाने की  ही कोई ठोस योजना है ऐसे नेताओं की ईच्छा केवल इतनी है कि अन्य नेताओं के भ्रष्टाचार में हमें भी बराबर की भागीदारी मिले।आखिर ये भ्रष्टाचार समाप्त करने की नियत क्यों नहीं है? मैं तो कहता हूँ कि सभी जाति,क्षेत्र ,समुदाय ,संप्रदाय के नेताओं  की राजनीति में आने से पहले से अभी तक की संचित संपत्ति के आय श्रोतों की जाँच ईमानदारी पूर्वक गरीब जनता के द्वारा करवाई  जानी चाहिए या  दलित बंधुओं के द्वारा ही करा ली जाए किन्तु वे गरीब हों ताकि गरीबों की पीड़ा समझने वाले हों। जाति, क्षेत्र ,समुदाय ,संप्रदाय  का  भेदभाव  किए  बिना वे लोग चिन्हित किए जाने चाहिए ताकि उनका  सामाजिक बहिष्कार किया जा सके और ईमानदार राजनेताओं के साथ साथ हर जाति, क्षेत्र ,समुदाय ,संप्रदाय के संघर्षप्रिय ईमानदार आम आदमी की भी पहचान हो सके । किसी पद या पैसे के लोलुप औरों का हिस्सा हड़पने वाले कुछ राजनैतिक भेड़ियों  के द्वारा  खुले मंचों से जातिगत शोषण के नामपर किसी जाति विशेष के लोगों को गाली देना कितना न्यायोचित था  ?
    इनसे तत्तद जाति, क्षेत्र ,समुदाय,संप्रदाय के भले और ईमानदार कर्मनिष्ठ लोगों पर क्या बीतती है इसका एहसास मुझे है चूँकि मैंने न केवल इस पीड़ा को भोगा है अपितु चार विषय से एम.ए.एवं पी.एच.डी. करने के बाद जब ऐसी ही गालियों एवं शोषण के आरोपों से आहत होकर सरकार से आजीवन नौकरी न माँगने का व्रत लिया था और आज तक बेशक भटक रहा हूँ किन्तु किसी भी सरकारी या  निजी सेवा के प्रपत्र पर कभी हस्ताक्षर नहीं किए हैं, मैं संघर्ष पूर्वक उसी व्रत का पालन अभी भी कर रहा हूँ ।
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दलितों की मदद का कारोबार करने वाले नेता आज अरबोंपति हो गए आखिर क्या हैं उनकी आय के स्रोत ?और कहाँ से इकठ्ठा की है इतनी अकूत संपत्ति ?

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